भारतीय अर्थव्यवस्था
मक्का उत्पादन में हरित क्रांति
- 20 Jul 2024
- 13 min read
प्रिलिम्स के लिये:हरित क्रांति, मक्का, अनाज फसल, इथेनॉल, इथेनॉल सम्मिश्रण, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन मेन्स के लिये:खाद्य सुरक्षा, कृषि संसाधन, हरित क्रांति |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत के मक्का उद्योग में उल्लेखनीय परिवर्तन आया है, जो सामान्य चारा फसल से ईंधन एवं औद्योगिक क्षेत्रों में एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में विकसित हुआ है।
- यह बदलाव एक व्यापक हरित क्रांति का संकेत है, जो गेहूँ और चावल में की गई ऐतिहासिक प्रगति को दर्शाता है, लेकिन यह प्रगति निजी क्षेत्र के नवाचारों से प्रेरित है।
भारत में मक्का उत्पादन की वर्तमान स्थिति क्या है?
- उत्पादन में तीन गुना वृद्धि: वर्ष 1999-2000 से भारत के मक्का उत्पादन में तीन गुना से भी अधिक वृद्धि हुई है, जो 11.5 मिलियन टन से बढ़कर वार्षिक 35 मिलियन टन से भी अधिक हो गई है, साथ ही प्रति हेक्टेयर औसत उपज भी 1.8 से बढ़कर 3.3 टन हो गई है।
- भारत पाँचवाँ सबसे बड़ा मक्का उत्पादक है, जो वर्ष 2020 में वैश्विक उत्पादन का 2.59% है।
- चावल तथा गेहूँ के बाद मक्का भारत में तीसरी सबसे महत्त्वपूर्ण अनाज फसल है। यह देश में कुल खाद्यान्न उत्पादन का लगभग 10% है।
- उपज में सुधार: इसी अवधि में प्रति हेक्टेयर औसत उपज 1.8 से बढ़कर 3.3 टन हो गई है।
- प्रमुख राज्य: कर्नाटक, मध्यप्रदेश, बिहार, तमिलनाडु, तेलंगाना, महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश मुख्य मक्का उपज वाले राज्य हैं।
- वर्ष भर खेती: मक्के का उत्पादन संपूर्ण वर्ष होता है, मुख्य रूप से खरीफ फसल के रूप में (मक्का की खेती का 85% क्षेत्र इसी मौसम में होता है)।
- निर्यात मात्रा: भारत ने वर्ष 2022-23 में 8,987.13 करोड़ रुपए मूल्य के 3,453,680.58 मीट्रिक टन मक्का का निर्यात किया।
- प्रमुख निर्यात गंतव्य: बांग्लादेश, वियतनाम, नेपाल, मलेशिया और श्रीलंका भारतीय मक्का के प्रमुख बाज़ार हैं।
- प्रमुख उपयोग: लगभग 60% मक्के का उपयोग मुर्गी और पशुओं के चारे के रूप में किया जाता है, जबकि केवल लगभग 20% का ही मनुष्यों द्वारा सीधे उपभोग किया जाता है।
- मक्का पशुधन आहार में एक प्राथमिक ऊर्जा स्रोत है, जिसमें 55-65% ब्रॉयलर आहार और 15-20% मवेशी आहार मक्का से प्राप्त होता है।
- स्टार्च और इथेनॉल: मक्का के दानों में 68-72% स्टार्च होता है, जिसका उपयोग कपड़ा, कागज़ और फार्मास्यूटिकल्स जैसे उद्योगों में किया जाता है।
- हाल के घटनाक्रमों ने इथेनॉल उत्पादन के लिये मक्का के उपयोग पर ध्यान केंद्रित कर दिया है , विशेष रूप से खाद्य सुरक्षा चिंताओं के कारण इथेनॉल सम्मिश्रण में चावल के विकल्प के रूप में।
- पेराई के मौसम के दौरान, भट्टियाँ (distilleries) गन्ने के शिरे और जूस/सिरप से संचालित होती हैं, जबकि ऑफ-सीज़न में इनके संचालन हेतु अनाज का उपयोग किया जाता है तथा हाल ही में इन्होंने मक्के का उपयोग शुरू किया है।
मक्के की हरित क्रांति की तुलना गेहूँ और चावल से कैसे की जा सकती है?
- स्व-परागण बनाम पर-परागण: स्व-परागण वाले गेहूँ और चावल के विपरीत, मक्का की पर-परागण वाली प्रकृति संकर प्रजनन को व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य बनाती है।
- गेहूँ और चावल में हरित क्रांति का कारण उच्च उपज देने वाली किस्मों की खेती करना था, जो स्वयं परागण करने वाले पौधे थे तथा जिनका संकरण नहीं किया जा सकता था।
- मक्के में हरित क्रांति निजी क्षेत्र के नेतृत्व में हुई है और वर्तमान में भी जारी है। मक्के की खेती में 80% से ज़्यादा हिस्सा निजी क्षेत्र की संकर किस्मों (Hybrids) का है तथा उच्च पैदावार केवल पहली पीढ़ी तक ही सीमित है।
- यदि किसान इन उपजों से अनाज बचाकर उन्हें बीज के रूप में पुनः उपयोग में लाते हैं, तो वे वही उपज नहीं प्राप्त कर सकते (बीजों की स्वतः समाप्ति प्रकृति)।
- मक्के की खेती में नवोन्मेष: भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) ने उच्च एमाइलोपेक्टिन स्टार्च घटक के साथ भारत की पहली "मोमी" मक्का (Waxy Maize) संकर (AQWH-4) विकसित की है, जो इसे इथेनॉल उत्पादन के लिये बेहतर बनाती है।
- मक्के में स्टार्च दो पॉलिमरों का मिश्रण होता है, जिसमें ग्लूकोज़ अणु एक सीधी शृंखला (एमाइलोज) और शाखित रूप (एमाइलोपेक्टिन) में एक साथ बँधे होते हैं।
- सामान्य मक्के के स्टार्च में 30% एमाइलोजा और 70% एमाइलोपेक्टिन होता है, जबकि IARI के मोमी मक्का संकर (Waxy Maize Hybrid) में 93.9% एमाइलोपेक्टिन होता है।
- एमाइलोज स्टार्च अनाज को कठोर बनाता है, जबकि एमाइलोपेक्टिन इसे नरम बनाता है, जिससे स्टार्च की रिकवरी और किण्वन दर प्रभावित होती है।
- अनाज की मृदुता आटा उत्पादन के लिये इसे अच्छी तरह से पीसने में सहायक होती है। उच्च एमाइलोपेक्टिन वाले कणिकाओं को ग्लूकोज़ इकाइयों में आसानी से तोड़ा जा सकता है। फिर ग्लूकोज़ को खमीर का उपयोग करके इथेनॉल में किण्वित किया जाता है।
- सामान्य मक्के के दानों में 68-72% स्टार्च होता है, लेकिन केवल 58-62% ही रिकवरी योग्य होता है। नए पूसा वैक्सी मक्का हाइब्रिड-1 में 71-72% स्टार्च है और रिकवरी 68-70% है।
- यह संकर किस्म प्रति हेक्टेयर 7.3 टन की औसत उपज प्रदान करती है और इसकी क्षमता 8.8 टन तक पहुँचने की है।
- निजी क्षेत्र की भूमिका: अंतर्राष्ट्रीय मक्का और गेहूँ सुधार केंद्र (International Maize and Wheat Improvement Center- CIMMYT) ने कुनिगल (कर्नाटक) में मक्का डबल हैप्लोइड (DH) फैसिलिटी स्थापित की है, जो उच्च उपज वाली, आनुवंशिक रूप से शुद्ध अंतःप्रजनन किस्मों का उत्पादन करती है।
- यह फैसिलिटी संसाधान के विकास को गति प्रदान करती है तथा उत्पादन क्षमता में वृद्धि करती है।
- पारंपरिक प्रक्रिया में, 6 से 8 पीढ़ियों तक लगातार स्व-परागण द्वारा अंतःप्रजनन किस्में तैयार की जाती हैं। DH तकनीक केवल दो फसल चक्रों के बाद पूरी तरह से समान किस्म के उत्पादन को सक्षम बनाती है।
- वर्ष 2022 में, कुनिगल फैसिलिटी ने 29,622 मक्का डीएच किस्मों का उत्पादन और साझाकरण किया। ये किस्में उच्च उपज देने वाली, सूखे, गर्मी और जल-जमाव के प्रति सहिष्णु, पोषक तत्त्वों के उपयोग में कुशल तथा कीटों और फॉल आर्मीवर्म व मक्का की खेती के लिये घातक नेक्रोसिस जैसी बीमारियों के प्रति प्रतिरोधी हैं।
- माहिको, श्रीराम बायोसीड, एडवांटा सीड्स जैसी कंपनियाँ उच्च उपज वाली मक्का संकर किस्मों के विकास और प्रचार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं।
भारत में मक्के के उत्पादन को प्रोत्साहित करने हेतु कौन-सी पहलें की गई हैं?
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM)
- भारत मक्का शिखर सम्मेलन (India Maize Summit): वर्ष 2022 में आयोजित किया गया, जिसका उद्देश्य बढ़ती मांग को पूरा करने तथा किसानों की समृद्धि बढ़ाने के लिये मक्के की स्थायी आपूर्ति सुनिश्चित करना है।
- राष्ट्रीय कृषि विकास योजना (RKVY)
हरित क्रांति:
- 1960 के दशक में नॉर्मन बोरलॉग ने इसका नेतृत्व किया, जिसके परिणामस्वरूप गेहूँ की उच्च उपज देने वाली किस्मों (HYVs) का विकास हुआ और वर्ष 1970 में उन्हें नोबेल शांति पुरस्कार मिला।
- भारत में, एम.एस. स्वामीनाथन ने हरित क्रांति में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे खाद्यान्न उत्पादन, विशेष रूप से गहूँ और चावल के उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई।
- इस क्रांति ने भारत को वर्ष 1967-68 और वर्ष 1977-78 के बीच खाद्यान्न की कमी वाले देश से खाद्य उत्पादन में विश्व के अग्रणी कृषि देशों में से एक बना दिया।
- इसमें वर्षा पर निर्भरता कम करने के लिये विभिन्न सिंचाई विधियों को शामिल करना, श्रम लागत को कम करने तथा दक्षता बढ़ाने के लिये प्रमुख कृषि पद्धतियों का मशीनीकरण करना और मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने व फसलों की सुरक्षा के लिये रासायनिक उर्वरकों एवं कीटनाशकों का उपयोग शामिल था।
- फसल की सघनता और उपज बढ़ाने के लिये मौजूदा कृषि भूमि पर दोहरी फसल उगाने की विधि को अपनाया गया।
- सिंचाई और उच्च उपज वाली फसलों (HYV) के बीजों का उपयोग करके, विशेष रूप से अर्द्ध-शुष्क तथा शुष्क क्षेत्रों में अधिक भूमि को खेती के अंतर्गत लाकर कृषि क्षेत्र का विस्तार किया गया।
- हरित क्रांति के कारण अनाज उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई, जिससे भारत विश्व के सबसे बड़े कृषि उत्पादकों में से एक बन गया।
- परिणामस्वरूप, भारत गेहूँ, चावल और अन्य खाद्यान्नों का शुद्ध निर्यातक बन गया तथा हाल के वर्षों में निर्यात रिकॉर्ड स्तर पर पहुँच गया।
- उच्च उत्पादकता ने आय में वृद्धि के माध्यम से कई छोटे किसानों को गरीबी से बाहर निकालकर गरीबी उन्मूलन में भी योगदान दिया।
- हरित क्रांति ने कई चुनौतियाँ भी प्रस्तुत कीं, जिनमें सिंथेटिक उर्वरकों और कीटनाशकों से पर्यावरण का क्षरण, मृदा अपरदन तथा जल प्रदूषण शामिल हैं। इसके कारण जैवविविधता और फसलों की आनुवंशिक विविधता को क्षति पहुँची, देशी फसलों का विस्थापन हुआ तथा खेती के पारंपरिक तौर-तरीके भी प्रभावित हुए।
- इसके अतिरिक्त, इससे फसलों पर कीटों, बीमारियों और जलवायु परिवर्तन का खतरा भी बढ़ गया।
दृष्टि मेन्स प्रश्न: प्रश्न: भारत के मक्का उद्योग के एक बुनियादी चारा फसल से ईंधन और औद्योगिक क्षेत्रों में एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में हाल के परिवर्तन पर चर्चा कीजिये। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न: नीचे चार ऊर्जा फसलों के नाम दिये गए हैं। इनमें से किस एक की खेती एथेनॉल के लिये की जा सकती है? (2010) (a) जट्रोफा उत्तर: (b) |