नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

डेली न्यूज़

  • 06 Aug, 2019
  • 83 min read
भारतीय अर्थव्यवस्था

प्रथम राष्ट्रीय समय सारणी अध्ययन

चर्चा में क्यों?

वित्‍त मंत्रालय का राजस्‍व विभाग वैश्विक व्‍यापार बढ़ाने की अपनी रणनीतिक प्रतिबद्धता के तहत 1 से 7 अगस्‍त के बीच भारत का प्रथम राष्‍ट्रीय ‘टाइम रिलीज स्‍टडी’ अथवा समय सारणी अध्ययन [India’s first national Time Release Study (TRS)] कराएगा।

टाइम रिलीज स्‍टडी क्या है?

  • TRS दरअसल अंतर्राष्‍ट्रीय स्‍तर पर मान्‍यता प्राप्‍त एक साधन (टूल) है जिसका उपयोग अंतर्राष्‍ट्रीय व्‍यापार के प्रवाह की दक्षता एवं प्रभावकारिता मापने के लिये किया जाता है और इसकी वकालत विश्‍व सीमा शुल्‍क संगठन ने की है।
  • उत्‍तरदा‍यी गवर्नेंस से जुड़ी इस पहल के ज़रिये कार्गो यानी माल के आगमन से लेकर इसे भौतिक रूप से जारी करने तक वस्‍तुओं की मंज़ूरी के मार्ग में मौजूद नियम आधारित और प्रक्रियागत बाधाओं (विभिन्‍न टच प्‍वाइंट सहित) को मापा जाएगा।
  • इसका मुख्‍य उद्देश्‍य व्‍यापार प्रवाह के मार्ग में मौजूद बाधाओं की पहचान करना एवं उन्‍हें दूर करना है।
  • इसके साथ ही प्रभावशाली व्‍यापार नियंत्रण से कोई भी समझौता किये बगैर सीमा संबंधी प्रक्रियाओं की प्रभावकारिता एवं दक्षता बढ़ाने के लिये आवश्‍यक संबंधित नीतिगत एवं क्रियाशील उपाय करना है।

TRS के लाभ

  • इस पहल से भारत को ‘कारोबार में सुगमता’ विशेषकर सीमा पार व्‍यापार संकेतक के मामले में अपनी बढत को बरकरार रखने में मदद मिलेगी जो सीमा पार व्‍यापार की व्‍यवस्‍था की दक्षता को मापता है।
  • पिछले वर्ष इस संकेतक से जुड़ी भारत की रैंकिंग 146वीं से सुधरकर 80वीं हो गई।
  • इस पहल के अपेक्षित लाभार्थी निर्यात उन्‍मुख उद्योग और सूक्ष्‍म, लघु एवं मध्‍यम उद्यम (MSMEs) होंगे जो तुलनीय अंतरराष्‍ट्रीय मानकों के साथ भारतीय प्रक्रियाओं के और अधिक मानकीकरण से लाभ उठाएंगे।
  • राष्‍ट्रीय स्‍तर पर किये जाने वाले TRS ने इसे एक कदम और आगे बढ़ा दिया है तथा एकसमान एवं बहुआयामी क्रिया विधि विकसित की है जो कार्गो मंज़ूरी प्रक्रिया के नियामकीय एवं लॉजिस्टिक्‍स पहलुओं को मापती है और वस्‍तुओं के लिये औसत रिलीज़ टाइम को प्रमाणित करती है।

अन्य प्रमुख बिंदु

  • यह अध्‍ययन एक ही समय में 15 बंदरगाहों पर कराया जाएगा जिनमें समुद्री, हवाई, भूमि एवं शुष्‍क बंदरगाह शामिल हैं और जिनका आयात संबंधी कुल प्रवेश बिलों (बिल ऑफ एंट्री) में 81 प्रतिशत और भारत के अंदर दाखिल किये जाने वाले निर्यात संबंधी शिपिंग बिलों में 67 प्रतिशत हिस्‍सेदारी होती है।
  • राष्‍ट्रीय स्‍तर वाला TRS आधारभूत प्रदर्शन माप को स्‍थापित स्‍थापित करेगा और इसके तहत सभी बंदरगाहों पर मानकीकृत परिचालन एवं प्रक्रियाएँ होंगी।
  • TRS के निष्‍कर्षों के आधार पर सीमा पार व्‍यापार से जुड़ी सरकारी एजेंसियाँ उन मौजूदा एवं संभावित बाधाओं को पहचानने में समर्थ हो जाएंगी जो व्‍यापार के मुक्‍त प्रवाह के मार्ग में अवरोध साबित होती हैं।
  • इसके साथ ही ये सरकारी एजेंसियाँ माल या कार्गो जारी करने के समय को घटाने के लिये आवश्‍यक सुधारात्‍मक कदम भी उठाएंगी। यह पहल केंद्रीय अप्रत्‍यक्ष कर एवं सीमा शुल्‍क बोर्ड की अगुवाई में हो रही है।

स्रोत: pib


शासन व्यवस्था

SC में न्यायाधीशों की संख्या बढ़ाने का प्रस्ताव पारित

चर्चा में क्यों?

लोकसभा ने देश की शीर्ष अदालत अर्थात् सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या को वर्तमान में 31 (मुख्य न्यायाधीश सहित) से बढ़ाकर 34 (मुख्य न्यायाधीश सहित) करने के लिये एक विधेयक पारित किया।

प्रमुख बिंदु:

  • वर्ष 2009 के बाद यह पहला अवसर है जब सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि की जाएगी।

क्यों लिया गया यह निर्णय?

  • वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में लगभग 59,331 मामले लंबित हैं।
  • मुख्य न्यायाधीश (Chief Justice of India-CJI) रंजन गोगोई के अनुसार, भारत में न्यायाधीशों की कमी के कारण कई महत्त्वपूर्ण मामलों का फैसला करने के लिये उचित संवैधानिक पीठों की संख्या भी पूरी नहीं हो पा रही है।
  • न्यायाधीशों की संख्या को बढ़ाने के लिये CJI ने भारतीय प्रधानमंत्री को एक पत्र लिखा था जिसके बाद सरकार ने यह निर्णय लिया है।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

अर्थव्यवस्था के प्रोत्साहन हेतु प्रयास

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक ने जून में मौद्रिक नीति समीक्षा में रेपो दर को घटाकर 5.75% कर दिया, ताकि विकास दर को प्रोत्साहित किया जा सके।

वर्तमान परिदृश्य:

  • जून में रेपो रेट पिछले नौ वर्षों में सबसे निचले स्तर पर रहा।
  • फरवरी माह से अब तक तीन दरों के माध्यम से समग्र रूप से 75 आधार अंकों की कटौती के बावजूद आर्थिक विकास को प्रोत्साहित नहीं किया जा सका है।
  • इसके बावजूद वर्तमान में आर्थिक गतिविधियों में कोई विशेष तेज़ी नहीं आ सकी है। इसलिये आगामी मौद्रिक नीति की घोषणा में RBI से एक और बड़ी कटौती की उम्मीद की जा रही है।
  • RBI द्वारा की गई कटौती का लाभ बैंकों के कर्ज़दारों को नहीं मिल पा रहा है। इसके कारण आर्थिक गतिविधियों में तेज़ी नहीं आ पा रही है।
  • RBI के आकलन के अनुसार, 75 अंकों की कटौती के लाभ में से बैंकों द्वारा इस वर्ष केवल 21 आधार अंकों की कटौती का लाभ ही उधारकर्त्ताओं को दिया जा सका है।

रेपो और रिवर्स रेपो रेट क्या हैं?

  • RBI अर्थव्यवस्था में ब्याज दर संरचना को प्रभावित करने और मुद्रास्फीति का प्रबंधन करने के लिये रेपो दर का उपयोग करता है।
  • तकनीकी रूप से, रेपो दर वह दर है जिस पर वाणिज्यिक बैंक केंद्रीय बैंक से उधार लेते हैं, और रिवर्स रेपो ब्याज की दर वह दर होती है, जिस पर वाणिज्यिक बैंक, केंद्रीय बैंक में धन जमा करते हैं।

ब्याज दरों में कटौती पर वैश्विक रुख:

  • पारंपरिक दृष्टिकोण के हिसाब से कम ब्याज दर के माध्यम से निवेश लागत कम हो जाती है। इसके परिणामस्वरूप निवेश अधिक आकर्षक होता है, जो व्यवसायों के लिये बेहतर है।
  • सरकार इस स्थिति के लिये प्रयासरत रहती है क्योंकि इससे उच्च विकास और अधिक रोज़गार सृजन के लिये उच्च निवेश आकर्षित होता है। इसके विपरीत केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था की दीर्घकालिक स्थिरता और वृद्धि के लिये कई बार ब्याज की उच्च दर का निर्धारण करता है।
  • केंद्रीय बैंक और सरकार के बीच इस प्रकार की असमंजस्य की स्थिति को कई बारगी देखा गया है; जैसे- 1992 के चुनावों के हार के बाद जार्ज बुश ने फेडरल बैंक की नीतियों को ज़िम्मेदार बताया। इसी प्रकार वर्तमान में भी अमेरिकी फेडरल बैंक अपने ऊपर डोनाल्ड ट्रंप के दबावों की बात कर रहा है।
  • भारत में भी इस प्रकार के मामले वित्त मंत्री चिदंबरम और RBI गवर्नर सुब्बाराव के बीच विवादों के रूप में संज्ञान में आए है।
  • सरकारें आमतौर उच्च ब्याज दरों से बचने का प्रयास करती हैं, क्योंकि इससे परियोजना लागत बढ़ती हैं जो निवेशक को हतोत्साहित करती है।
  • विकास दर और नाममात्र ब्याज दर ( Nominal Interest Rates) सकारात्मक रूप से सहसंबद्ध होती हैं। इस प्रकार का दृष्टिकोण इकोलॉजिकल इकोनॉमिक्स पत्रिका में प्रकाशित पुनर्विचारित मौद्रिक नीति: ब्याज दर और नाममात्र GDP विकास के USA, UK, जर्मनी और जापान की अनुभवजन्य परीक्षण 2018 (Reconsidering Monetary Policy: An Empirical Examination of the Relationship Between Interest Rates and Nominal GDP Growth) नामक शोध द्वारा समर्थित है।
  • केंद्रीय बैंक सरकार द्वारा निर्धारित राजकोषीय घाटे पर नज़र रखता है। उच्च राजकोषीय घाटे के समय केंद्रीय बैंक के लिये मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना कठिन कार्य हो जाता है। इसके बाद केंद्रीय बैंक मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिये ब्याज दरों को बढ़ा देता हैं।

RBI के प्रयासों की कम प्रभावशीलता के कारण:

  • जनता द्वारा जमा धन के एक हिस्से का प्रयोग वाणिज्यिक बैंक उधारकर्त्ताओं को उधार देने के लिये करते हैं।
  • हाल ही में भारतीय स्टेट बैंक ने तरलता संबंधी सुधारों का हवाला देते हुए अपनी जमा दरों को कम कर दिया है। बैंक में जमाकर्त्ताओं के जमा पर उच्च ब्याज दिये जाने के चलते बैंक की लागत बढ़ जाती है।
  • लघु बचत योजनाओं की प्रतिस्पर्द्धात्मक उच्च ब्याज दर तथा सार्वजनिक भविष्य निधि और राष्ट्रीय बचत प्रमाणपत्र की उच्च ब्याज जमा दर के कारण वाणिज्यिक बैंकों को जमा दरें उच्च रखनी पड़ रही है।
  • गैर-बैंकिंग वित्त कंपनी IL&FS द्वारा ऋण भुगतान की असमर्थता से उत्पन्न तरलता की कमी के कारण जमा दरें उच्च स्तर पर बनी हुई हैं । RBI ने तरलता को नियंत्रित करने के लिये हस्तक्षेप किया लेकिन ये हस्तक्षेप पर्याप्त नहीं थे।
  • RBI नए गवर्नर शक्तिकांत दास द्वारा ओपन मार्केट ऑपरेशन (OMO) के माध्यम से पिछले दो महीनों में चलनिधि की स्थिति में सुधार के प्रयास किये हैं। इस प्रकार ओपन मार्केट ऑपरेशन का सहारा लेना सरकारी प्रतिभूतियों की गिरती यील्ड (Yield) को प्रदर्शित करता है।

इस प्रकार, बैंकों द्वारा उधारकर्त्ताओं को कम ब्याज दरों के लाभ वितरित करने के लिये परिस्थितियाँ अनुकूल हैं।

आर्थिक विकास दर को प्रोत्साहित करने की रणनीति:

  • उत्पादन के तीन मुख्य कारकों में पूंजी, भूमि और श्रम शामिल हैं; सभी कारक बराबर रूप से एक वाणिज्यिक इकाई के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण होते हैं।
  • पूंजी के साथ ही भूमि उपलब्धता और लागत भी एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है।
  • इसी तरह पर्याप्त श्रम बल की उपलब्धता के बाद भी श्रम बल की दक्षता एक स्तर पर अर्थव्यवस्था के लिये चिंता की बात है।
  • इसके अलावा बाजार के माहौल और मांग को ध्यान में रखा जाना चाहिये। यदि उपयोगकर्त्ताओं के पास कम मुद्रा हो तो वह निश्चित रूप से मांग को भी प्रभावित करेगी।
  • इसलिये, ऐसे वातावरण में जहाँ उत्पादन के अन्य कारक एक निवेशक के लिये अनुकूल नहीं होते हैं, वहाँ केवल कम ब्याज दरें ही निवेशकों को पर्याप्त रूप से आकर्षित नही करेंगी।

सरकार की राजकोषीय नीतियों और RBI ब्याज दरों को कम रखने जैसे समन्वित प्रयासों के माध्यम से ही मांग को प्रोत्साहित करके अर्थव्यवस्था में विकास दर को तीव्र किया जा सकता है।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

उपभोक्‍ता संरक्षण विधेयक, 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोक सभा में चर्चा के उपरांत उपभोक्‍ता संरक्षण विधेयक, 2019 (Consumer Protection Bill, 2019) पारित हो गया।

प्रमुख बिंदु

  • इस विधेयक का उद्देश्‍य उपभोक्‍ता विवादों का निपटारा करने के लिये उपभोक्‍ता प्राधिकरणों की स्‍थापना करना है जिससे उपभोक्‍ता के हितों की रक्षा सुनिश्चित की जा सके।
  • केंद्रीय उपभोक्‍ता मामले तथा खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय ने इस विधेयक में नियमों को सरल बनाया है।
  • विधेयक के पारित होने से उपभोक्‍ताओं को त्‍वरित न्‍याय प्राप्त होगा।
  • इस विधेयक के माध्यम से सरकार उपभोक्‍ता शिकायतों से संबंधित पूरी प्रक्रिया को सरल बनाने के पक्ष में है।
  • विधेयक में केंद्र सरकार द्वारा केंद्रीय उपभोक्‍ता संरक्षण प्राधिकरण (Central Consumer Protection Authority- CCPA) के गठन का प्रस्‍ताव है।
    • प्राधिकरण का उद्देश्‍य उपभोक्‍ता के अधिकारों को बढ़ावा देना एवं कार्यान्‍वयन करना है।
    • प्राधिकरण को शिकायत की जाँच करने और आर्थिक दंड लगाने का अधिकार होगा।
    • यह गलत सूचना देने वाले विज्ञापनों, व्‍यापार के गलत तरीकों तथा उपभोक्‍ताओं के अधिकारों के उल्‍लंघन के मामलों का नियमन करेगा।
    • प्राधिकरण को गलतफहमी पैदा करने वाले या झूठे विज्ञापनों के निर्माताओं या उनका समर्थन करने वालों पर 10 लाख रुपए तक का जुर्माना तथा दो वर्ष के कारावास का दंड लगाने का अधिकार होगा।

विधेयक की मुख्य विशेषताएँ

  • केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) के अधिकार:
    • उपभोक्ता अधिकारों के उल्लंघन और संस्थान की शिकायतों की जाँच करना।
    • असुरक्षित वस्तुओं और सेवाओं को वापस लेना।
    • अनुचित व्‍यापार और भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाना।
    • भ्रामक विज्ञापनों के निर्माता / समर्थक/ प्रकाशक पर जुर्माना लगाना।
  • सरलीकृत विवाद समाधान प्रक्रिया
    • आर्थिक क्षेत्राधिकार को बढ़ाया गया है:
      • जिला आयोग -1 करोड़ रुपए तक।
      • राज्य आयोग- 1 करोड़ रुपए से 10 करोड़ रुपए तक।
      • राष्ट्रीय आयोग -10 करोड़ रुपए से अधिक।
    • दाखिल करने के 21 दिनों के बाद शिकायत की स्‍वत: स्वीकार्यता।
    • उपभोक्ता आयोग द्वारा अपने आदेशों को लागू कराने का अधिकार।
    • दूसरे चरण के बाद केवल कानून के सवालों पर अपील का अधिकार।
    • उपभोक्ता आयोग से संपर्क करने में आसानी:
      • निवास स्थान से फाइलिंग की सुविधा।
      • ई- फाइलिंग।
      • सुनवाई के लिये वीडियो कांफ्रेंसिंग की सुविधा।
  • मध्यस्थता
    • एक वैकल्पिक विवाद समाधान (ADR) तंत्र।
    • उपभोक्ता फोरम द्वारा मध्यस्थता, जहाँ भी शुरु में ही समाधान की गुंजाइश हो और दोनों पक्ष इसके लिये सहमत हों।
    • मध्यस्थता केंद्रों को उपभोक्ता फोरम से जोड़ा जाएगा।
    • मध्यस्थता के माध्यम से होने वाले समाधान में अपील की सुविधा नहीं।
  • उत्पाद की ज़िम्मेदारी
    • यदि किसी उत्‍पाद या सेवा में दोष पाया जाता है तो उत्पाद निर्माता/विक्रेता या सेवा प्रदाता को क्षतिपूर्ति के लिये ज़िम्मेदार माना जाएगा।
    • दोषपूर्ण उत्‍पाद का आधार:
      • निर्माण में खराबी।
      • डिज़ाइन में दोष।
      • वास्‍तविक उत्‍पाद का उत्‍पाद की घोषित विशेषताओं से अलग होना।
      • प्रदान की जाने वाली सेवाओं का दोषपूर्ण होना।

विधेयक से उपभोक्ताओं को लाभ

  • वर्तमान में न्याय पाने के लिये उपभोक्‍ताओं के पास एक ही विकल्‍प है, जिसमें काफी समय लगता है। केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण (CCPA) के माध्यम से विधेयक में त्‍वरित न्‍याय की व्‍यवस्‍था की गई है।
  • भ्रामक विज्ञापनों तथा उत्पादों में मिलावट की रोकथाम के लिये कठोर सज़ा का प्रावधान।
  • दोषपूर्ण उत्पादों या सेवाओं को रोकने के लिये निर्माताओं और सेवा प्रदाताओं पर ज़िम्मेदारी का प्रावधान:
    • उपभोक्ता आयोग से संपर्क करने में आसानी और प्रक्रिया का सरलीकरण।
    • मध्यस्थता के माध्यम से मामलों के शीघ्र निपटान की गुंजाइश।
    • नए युग के उपभोक्ता मुद्दों- ई कॉमर्स और सीधी बिक्री के लिये नियमों का प्रावधान।

स्रोत: PIB


जैव विविधता और पर्यावरण

भूमि व जल योजनाओं का एकीकरण

चर्चा में क्यों?

  • भारत सरकार भूमि निम्नीकरण से निपटने के लिये जल व भूमि से सबंधित योजनाओं के एकीकरण पर विचार कर रही है।
  • UNCCD की कॉन्फ्रेंस ऑफ़ पार्टीज़ (COP) के 14वें सत्र का आयोजन 2-13 सितंबर तक नई दिल्ली में होगा जहाँ विभिन्न देशों की सरकारों के रणनीतिक रूप से भूमि के प्रभावी उपयोग और सतत भूमि प्रबंधन के समान लक्ष्यों पर सहमत होने की उम्मीद है।

प्रमुख बिंदु

  • भूमि निम्नीकरण से निपटने के लिये सरकार द्वारा मनरेगा सहित विभिन्न कार्यक्रमों के लिये बजट का आवंटन करने के साथ ही परिवर्तनकारी योजनाओं (Transformative Project) पर कार्य किया जा रहा है।
  • सरकार भूमि निम्नीकरण तटस्थता (Land Degradation Neutrality) के लक्ष्यों को निर्धारित करने के साथ जल व भूमि से संबंधित योजनाओं के अभिसरण द्वारा संसाधनों के अधिकतम प्रयोग की योजना पर विचार कर रही है।
  • TERI द्वारा जारी ‘भारत में सूखा, भूमि निम्नीकरण और मरुस्थलीकरण का अर्थशास्त्र’ रिपोर्ट के अनुसार उत्पादक भूमि का ह्रास वनों, आर्द्रभूमि, चरागाह भूमियों (Rangelands) और अन्य पारिस्थितिकी तंत्रों के लिये चिंता का विषय है।

आवश्यकता क्यों?

  • भारत की लगभग 30 प्रतिशत भूमि का निम्नीकरण हो चुका है।
  • देश में भूमि निम्नीकरण और भूमि उपयोग परिवर्तन (Land Use Change) के कारण प्रतिवर्ष 3,17,739 करोड़ रुपए की आर्थिक हानि का अनुमान है जो कि वर्ष 2014-15 में देश की GDP का 2.54 प्रतिशत तथा कृषि, वानिकी और मत्स्य पालन क्षेत्रों से GVA का लगभग 15.9 प्रतिशत है।
  • उपरोक्त अनुमानित लागत में हानि का लगभग 82 प्रतिशत भूमि निम्नीकरण के कारण और 18 प्रतिशत भूमि उपयोग परिवर्तन के कारण है।
  • वर्ष 2030 तक भूमि निम्नीकरण और भूमि उपयोग परिवर्तन (Land Use Change) के कारण क्रमश: 94.53 मिलियन हेक्टेयर और 106.15 मिलियन हेक्टेयर भूमि क्षेत्र के निम्नीकरण की संभावना है।
  • जल क्षरण से प्रभावित क्षेत्र और खुले जंगलों के तहत क्षेत्र (मध्यम घने और बहुत घने जंगलों के साथ तुलना में) में दोनों परिदृश्यों में वृद्धि का अनुमान है। इससे निपटने के लिये भारत को इन क्षेत्रों में सुधार करने हेतु अधिक प्रयास की आवश्यकता होगी।

भूमि निम्नीकरण के कारण

  • जनसंख्या का दबाव
  • जलवायु परिवर्तन
  • मृदा प्रदूषण
  • भूमि उपयोग परिवर्तन (LUC)
  • निर्वनीकरण
  • झूम कृषि जैसी कृषि पद्धतियों का प्रयोग
  • अधिक चराई
  • अधिक सिंचाई
  • बाढ़ व सूखा

सरकार के प्रयास

  • वर्ष 2001 में मरुस्थलीकरण की समस्या से निपटने के लिये The National Action Programme for Combating Desertification (मरुस्थलीकरण रोकथाम हेतु राष्ट्रीय कार्ययोजना) तैयार किया गया।
  • वर्तमान में भूमि क्षरण और मरुस्थलीकरण से संबंधित मुद्दों पर कार्यवाही करने वाले कुछ प्रमुख कार्यक्रम इस प्रकार हैं:
    • एकीकृत वाटरशेड प्रबंधन कार्यक्रम (IWMP)
    • राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (NAP)
    • राष्ट्रीय हरित भारत मिशन (GIM )
    • महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (MGNREGS)
    • कमांड एरिया डेवलपमेंट एंड वाटर मैनेजमेंट प्रोग्राम (CADWM)
    • मृदा स्वास्थ्य कार्ड योजना।
  • वर्ष 2016 में भारत का मरुस्थलीकरण और भूमि निम्नीकरण एटलस (Desertification and Land Degradation Atlas) जारी किया गया जिसमें वर्ष 2003-05 और वर्ष 2011-2013 की स्थिति की तुलना की गयी है जो सुभेद्यता और जोखिम मूल्यांकन के आधार पर कार्रवाई करने के लिये आधारभूत डेटा प्रदान करता है।

‘संयुक्‍त राष्‍ट्र मरुस्‍थलीकरण रोकथाम कन्‍वेंशन’

(United Nations Convention to Combat Desertification- UNCCD)

संयुक्त राष्ट्र मरुस्थलीकरण रोकथाम कन्वेंशन संयुक्त राष्ट्र के अंतर्गत तीन रियो समझौतों (Rio Conventions) में से एक है। अन्य दो समझौते हैं-

1. जैव विविधता पर समझौता (Convention on Biological Diversity- CBD)।

2. जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क समझौता (United Nations Framework Convention on Climate Change (UNFCCC)।

  • UNCCD एकमात्र अंतर्राष्ट्रीय समझौता है जो पर्यावरण एवं विकास के मुद्दों पर कानूनी रूप से बाध्यकारी है।

स्रोत: बिज़नेस लाइन


शासन व्यवस्था

मॉब लिंचिंग और ऑनर किलिंग के विरुद्ध विधेयक

चर्चा में क्यों?

राजस्थान विधानसभा ने मॉब लिंचिंग (Mob Lynching) और ऑनर किलिंग (Honour Killing) के विरुद्ध विधेयक पारित कर दिया है।

प्रमुख बिंदु:

  • इस विधेयक के पारित होने से अब राजस्थान में मॉब लिंचिंग और ऑनर किलिंग, संज्ञेय और गैर-ज़मानती अपराध बन गए हैं।
  • राजस्थान में इस अपराध के लिये अब आजीवन कारावास तथा 5 लाख रुपए तक के जुर्माने की सज़ा दी जा सकती है।
  • ऑनर किलिंग पर रोक लगाने के उद्देश्य से विधेयक में दोषी के लिये मौत की सज़ा का भी प्रावधान किया गया है।

क्या होती है मॉब लिंचिंग?

जब अनियंत्रित भीड़ द्वारा किसी दोषी को उसके किये अपराध के लिये या कभी-कभी अफवाहों के आधार पर ही बिना अपराध किये भी तत्काल सज़ा दी जाए अथवा उसे पीट-पीट कर मार डाला जाए तो इसे भीड़ द्वारा की गई हिंसा या मॉब लिंचिंग कहते हैं। इस तरह की हिंसा में किसी कानूनी प्रक्रिया या सिद्धांत का पालन नहीं किया जाता और यह पूर्णतः गैर-कानूनी होती है।

क्यों लाया गया विधेयक?

देश के वर्तमान परिदृश को देखते हुए इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि यह विधेयक राजस्थान सरकार का एक साहसी कदम है। पहलू खान हत्याकांड राजस्थान में मॉब लिंचिंग का एक बहुचर्चित उदाहरण है, जिसमे कुछ तथाकथित गौ रक्षकों की भीड़ द्वारा गौ तस्करी के झूठे आरोप में पहलू खान की पीट-पीट कर हत्या कर दी गई थी। यह तो सिर्फ राजस्थान का ही उदाहरण है इसके अतिरिक्त देश के कई अन्य हिस्सों में भी ऐसी ही घटनाएँ सामने आई थीं। इसके अलावा राजस्थान में ऑनर किलिंग भी एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है और वहाँ आए दिन कोई-न-कोई मामला सामने आता ही रहता हैं जब सम्मान और परंपरा के नाम पर तमाम लोगों की मृत्यु कर दी जाती है।

क्या कहता है राजस्थान का लिंचिंग रोधी विधेयक?

  • नए कानून के तहत इस संदर्भ में दर्ज किये गए सभी मामलों की जाँच इंस्पेक्टर या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी द्वारा ही की जाएगी।
  • इसके अलावा राज्य का DGP लिंचिंग को रोकने के लिये राज्य समन्वयक (State Coordinator) के रूप में एक IG या उससे ऊपर के रैंक के अधिकारी की नियुक्ति भी करेगा।
  • यदि लिंचिंग का शिकार हुए पीड़ित व्यक्ति को ‘सामान्य चोटें’ या फिर ‘गंभीर चोटें’ आती हैं तो अभियुक्त को क्रमशः सात दिन या फिर दस साल तक की सज़ा हो सकती है।
  • यदि इस हमले के कारण पीड़ित की मृत्यु हो जाती है तो अभियुक्त को उम्रकैद की सज़ा हो सकती है।
  • यह विधेयक षड्यंत्रकारियों को भी जवाबदेह बनता है।

इस संदर्भ में अन्य भारतीय कानून:

  • भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) में लिंचिंग जैसी घटनाओं के विरुद्ध कार्रवाई को लेकर किसी तरह का स्पष्ट उल्लेख नहीं है और इन्हें धारा- 302 (हत्या), 307 (हत्या का प्रयास), 323 (जान-बूझकर घायल करना), 147-148 (दंगा-फसाद), 149 (आज्ञा के विरुद्ध इकट्ठे होना) तथा धारा- 34 (सामान्य आशय) के तहत ही निपटाया जाता है।
  • भीड़ द्वारा किसी की हत्या किये जाने पर IPC की धारा 302 और 149 को मिलाकर पढ़ा जाता है और इसी तरह भीड़ द्वारा किसी की हत्या का प्रयास करने पर धारा 307 और 149 को मिलाकर पढ़ा जाता है तथा इसी के तहत कार्यवाही की जाती है।
  • IPC की धारा 223A में भी इस तरह के अपराध के लिये उपयुक्त क़ानून के इस्तेमाल की बात कही गई है, सीआरपीसी में भी स्पष्ट रूप से इसके बारे में कुछ नहीं कहा गया है।
  • भीड़ द्वारा की गई हिंसा की प्रकृति और उत्प्रेरण सामान्य हत्या से अलग होते हैं, इसके बावजूद भारत में इसके लिये अलग से कोई कानून मौजूद नहीं है।

निष्कर्ष

उपरोक्त बिंदुओं से स्पष्ट है कि मॉब लिंचिंग और ऑनर किलिंग का हमारे सामाजिक सद्भाव पर कितना नकारात्मक प्रभाव पड़ता है, इसलिये राजस्थान सरकार की तरह सभी राज्य सरकारों तथा देश की केंद्र सरकार को गंभीरता से इस पर विचार करना चाहिये और सामाजिक संतुलन तथा सामाजिक सद्भाव को बनाए रखने हेतु कुछ कड़े कदम उठाने चाहिये।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

श्रम संहिता: इसमें निहित समस्याएँ

संदर्भ

हाल ही में केंद्र सरकार ने 44 श्रमिक नियमों को 4 संहिताओं से प्रतिस्थापित करने की पेशकश की। ये चार संहिताएँ हैं: वेतन संहिता, औद्योगिक संबंध संहिता, सामाजिक सुरक्षा संहिता तथा पेशागत सुरक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य व कार्य शर्त संहिता।

  • इस संबंध में ऐसे बहुत से प्रश्न है जिनके जवाब अभी तक नहीं मिल पाए हैं, उदाहरण के तौर पर क्या ये संहिताएँ श्रमिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा करती हैं? क्या ये श्रमिकों के गरिमापूर्ण जीवन स्तर को बनाए रख सकती है?
  • यहाँ यह निर्देशित करने की ज़रुरत है कि वास्तविक श्रमिक नियमों को दशकों के संघर्ष के बाद बनाया गया था ताकि श्रमिकों की गरिमा को सुनिश्चित किया जा सके। ऐसे में ये नए बदलाव कितने सार्थक और प्रभावी साबित होंगे यह विचारणीय है।

संहिताओं की उपयोगिता एवं लाभ

किसी भी देश की आर्थिक प्रगति के लिये उद्योगों का विकास होना आवश्यक है विशेषकर विनिर्माण क्षेत्र में, जो अन्य क्षेत्रों की अपेक्षा अधिक श्रमिक गहन होता है। यदि श्रम कानूनों में बाज़ार और श्रमिकों के ज़रुरी हितों का ध्यान नहीं रखा जाता है तो ऐसे उद्योगों का सीमित विकास ही हो पाता है। यदि कानून अधिक श्रमिकोन्मुख होते हैं तो जहाँ एक ओर उद्योगों के कार्यकरण एवं उत्पादन के प्रभावित होने की संभावना बढ़ जाती है वहीं दूसरी ओर यदि श्रम कानूनों को निजी क्षेत्र को ध्यान में रखकर बनाया जाता है तो श्रमिकों का शोषण होने की संभावना बनी रहती है। इसी विचार को आधार बनाकर प्रायः श्रम कानूनों का निर्माण किया जाता है।

संहिताओं के साथ समस्याएँ

  • ये संहिताएँ श्रमिकों के संवैधानिक अधिकारों की रक्षा और उनके गरिमापूर्ण जीवन स्तर की विरोधी हैं।
  • वास्तविक श्रम कानून को दशकों के संघर्ष के बाद बनाया गया था ताकि श्रम करने वाले लोगों की गरिमा सुनिश्चित की जा सके।
  • श्रम मंत्रालय ने न्यूनतम वेतन स्तर 178 रुपए करने का प्रस्ताव रखा है जो कि किसी प्रस्तावित मानदंड या अनुमान की विधि से विहीन है।
    • यह पूँजी और निवेश को भी आकर्षित करने हेतु राज्यों के मध्य प्रतिस्पर्द्धा को बढावा दे सकता है।
    • इसे ‘भुखमरी वेतन’ कहा जा रहा है, जबकि मंत्रालय की स्वयं की समिति ने न्यूनतम वेतन 375 रुपए करने का सुझाव दिया था।
  • श्रमबल का 95 प्रतिशत हिस्सा जो कि असंगठित है, इन संहिताओं द्वारा उपेक्षित है जबकि इन्हें कानूनी सुरक्षा की सबसे ज़्यादा ज़रूरत है।
  • इनमें यह सुनिश्चित नहीं किया गया है कि एक नियोक्ता, कर्मचारी या उद्यम से संबंधित निर्णयों हेतु प्रावधान कौन करेगा?
  • न्यूनतम वेतन अधिनियम प्रावधान करता है कि प्रशिक्षुओं को कर्मचारी नहीं माना जाएगा।
    • साक्ष्यों से यह जानकारी प्राप्त होती है कि प्रशिक्षु अनुबंध के तहत कार्य करते हैं तथा वे स्थाई कर्मचारी भी होते है।
  • संहिता में ‘15 वर्ष से कम उम्र कर्मचारी’ के बारे में एक प्रावधान है जिसका तात्पर्य बाल श्रम को वैध करने से संबंधित हो सकता है। अर्थात् स्पष्टता का अभाव है।
  • वेतन संहिता श्रम के संविदात्मक रूप को खत्म करने की जगह उसे वैध और प्रोत्साहित करती है।
  • वेतन संहिता ने ‘वसूली योग्य अग्रिम राशि’ के प्रावधान को पुनः शामिल किया है जो कि सर्वोच्च न्यायालय द्वारा घोषित बलपूर्वक और बंधुआ मज़दूरी से जुडा हुआ है। अतः अग्रिम भुगतान द्वारा पीड़ित एवं संवेदनशील प्रवासी श्रमिक कार्य से बंध जाएंगे।
  • संहिता में 8 घंटे के कार्यदिवस को समाप्त कर दिया गया है तथा ओवरटाइम बढ़ाने से संबंधित कई प्रावधान जोड़े गए है।
  • यह नियोक्ताओं को बोनस भुगतान में टाल मटोल का अवसर भी प्रदान करता है।

निष्कर्ष

सुरक्षा, स्‍वास्‍थ्‍य सुविधाएँ और कार्यस्‍थलों में कामकाज की बेहतर स्थितियाँ श्रमिकों के कल्‍याण के साथ ही देश के आर्थिक विकास के लिये भी पहली शर्त होती है। देश का स्‍वस्‍थ कार्यबल अधिक उत्‍पादक होगा और कार्यस्‍थलों में सुरक्षा के बेहतर इंतजाम होने से दुर्घटनाओं में कमी आएगी जो कर्मचारियों के साथ ही नियोक्‍ताओं के लिये भी फायदेमंद रहेगा। हालाँकि यहाँ इस बात पर भी गौर किये जाने की आवश्यकता है कि अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से श्रमिक अधिकारों में वृद्धि उत्पादन पर नकारात्मक प्रभाव डालती है। लेकिन आर्थिक विश्लेषक यह भी मानते हैं कि यदि श्रमिक अधिकार एवं उनकी समस्याओं को एक उचित मंच प्रदान नहीं किया जाएगा तो धीरे-धीरे यह नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न करेगा। इसके अतिरिक्त किसी भी लोकतांत्रिक देश में प्रत्येक व्यक्ति को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार होता है, कुछ विशेष मामलों को छोड़कर औद्योगिक संस्थान भी इसके दायरे में आते हैं। इसी विचार के आधार पर श्रमिक संगठनों एवं हड़ताल को वैधानिक मान्यता दी जाती रही है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

ई-कॉमर्स नीति का ड्राफ्ट

चर्चा में क्यों?

ऑनलाइन खरीद करने वालों के हितों की रक्षा हेतु उपभोक्ता मामलों के विभाग (Department of Consumer Affairs) ने ई कॉमर्स से संबंधित दिशा-निर्देशों हेतु एक ड्राफ्ट/मसौदा जारी किया है जिसमें कहा गया है कि एक ई-कॉमर्स इकाई (e-commerce entity) किसी वस्तु या सेवा के मूल्य को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित नहीं कर सकती है।

उपभोक्ता संरक्षण हेतु ई-कॉमर्स से संबंधित दिशा-निर्देश 2019

(E-commerce guidelines for consumer protection 2019)

Advantage India

  • ई-कॉमर्स व्यापार में धोखाधड़ी को रोकने, अनुचित व्यापार प्रयासों की रोकथाम करने और उपभोक्ताओं के वैध अधिकारों एवं हितों की रक्षा के लिये इन दिशा-निर्देशों को मार्गदर्शक सिद्धांत के रूप में जारी किया गया हैं।
  • ये दिशा-निर्देश बिज़नेस टू कंज्यूमर ई-कॉमर्स (Business-to-Consumer E-Commerce) पर लागू होंगे, इसमें वस्तुओं और सेवाओं को भी शामिल किया जाएगा।
  • इसमें प्रावधान किया गया है कि प्रत्येक ई-कॉमर्स इकाई को अपनी वेबसाइट पर शिकायत अधिकारी का नाम और उससे संपर्क संबंधी जानकारी को सार्वजनिक किया जाना चाहिये।
  • साथ ही उपयोगकर्त्ता शिकायत कैसे कर सकते हैं, इसकी संपूर्ण जानकारी भी देनी चाहिये।
  • ड्राफ्ट के अनुसार, एक ई-कॉमर्स फर्म स्वयं को गलत तरीके से पेश नहीं कर सकती है। अर्थात् कई बार यह देखने को मिलता है कि कंपनियाँ ऑनलाइन ग्राहक बनकर अपने उत्पादों पर सकारात्मक टिप्पणी लिखने, रेटिंग देने, आदि जैसी गतिविधियों में लिप्त होती है; ऐसी स्थिति में अक्सर भ्रामकता उत्पन्न हो जाती है, ड्राफ्ट में स्पष्ट किया गया है कि ई-कॉमर्स फर्म को ऐसी किसी गतिविधि में लिप्त नहीं होना चाहिये।
  • ड्राफ्ट के अनुसार ई-कॉमर्स फर्म को यह सुनिश्चित करना चाहिये कि ग्राहकों की व्यक्तिगत जानकारी सुरक्षित है।

अनिवार्य प्रावधान

  • ग्राहकों के जानकारी पूर्ण निर्णय हेतु किसी भी फर्म के लिये यह अनिवार्य होगा कि वह विक्रेता के साथ किये गए समझौते से संबंधित रिटर्न, रिफंड, एक्सचेंज, वारंटी/गारंटी, भुगतान के तरीकों, शिकायत निवारण तंत्र की पूर्ण जानकारी प्रदर्शित करे।
  • ड्राफ्ट में यह भी मांग की गई है कि यदि ई-कॉमर्स फर्म को किसी नकली उत्पाद के बारे में पता चलता है और यदि विक्रेता वह उस उत्पाद को सही सिद्ध करने में असफल रहता है तो फर्म को इसकी सूची तैयार करनी चाहिये तथा इस सूची को ग्राहकों के साथ साझा किया जाना चाहिये।

स्रोत: द हिंदू


सामाजिक न्याय

सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2019

चर्चा में क्यों?

हाल ही में लोकसभा ने सरोगेसी (विनियमन) विधेयक, 2019 को पारित किया। इस विधेयक में व्यावसायिक सेरोगेसी (commercial surrogacy) पर प्रतिबंध लगाने, राष्ट्रीय सेरोगेसी बोर्ड व राज्य सेरोगेसी बोर्ड के गठन तथा सरोगेसी की गतिविधियों और प्रक्रिया के विनियमन के लिये उपयुक्त अधिकारियों की नियुक्ति का प्रावधान किया गया है।

प्रमुख बिंदु

इस विधेयक द्वारा सेरोगेसी के लिये कोख किराए पर देने वाली महिला के शोषण को रोकने और सेरोगेसी से पैदा हुये बच्चे के अधिकारों को सुरक्षित करने के प्रावधान किये गए हैं।

  • यह विधेयक सरोगेसी का विकल्प चुनने वाले दंपत्ति के हितों की भी देखभाल करेगा।
  • यह विधेयक परोपकारी सरोगेसी को विनियमित करता है तथा व्यावसायिक सरोगेसी को प्रतिबंधित करता है।
  • विधेयक परोपकारी सरोगेसी की अनुमति देता है जिसमें मौद्रिक लाभ (Monetary Reward) के रूप में सरोगेट माँ के लिये केवल चिकित्सा व्यय और बीमा कवरेज शामिल है।

स्रोत: द हिंदू


भारत-विश्व

ब्राज़ील के नए कीटनाशक नियम

चर्चा में क्यों?

हाल ही में ब्राज़ील की स्वास्थ्य निगरानी एजेंसी एनविसा (Anvisa) ने कीटनाशकों से संबंधित नए नियमों को मंज़ूरी दी है जिनके अनुसार यदि कीटनाशकों से ‘मृत्यु का जोखिम’ उत्पन्न होता है तो ब्राज़ील में कीटनाशकों को ‘अत्यंत विषैले’ के रूप में वर्गीकृत किया जाएगा।

नियमों में ढील देना

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization-WHO) कीटनाशकों को विषाक्तता के आधार पर चार वर्गों में वर्गीकृत करता है: बेहद खतरनाक, अत्यधिक खतरनाक, मध्यम रूप से खतरनाक और कम खतरनाक।
  • नए नियमों के अनुसार, 'बेहद खतरनाक और ज़हरीले कीटनाशकों' को अब निचली श्रेणियों में पुनर्वर्गीकृत किया जाएगा।
  • इस प्रकार नए नियम मौजूदा वर्गीकरण मॉडल के विपरीत हैं जो त्वचा और आँखों में जलन जैसे अन्य प्रभावों के साथ-साथ मृत्यु के जोखिम पर भी विचार करते हैं।

ब्राज़ील, बीन्स और ग्लाइफोसेट (शाकनाशक)

  • दो साल पहले ब्राज़ील दुनिया में सोयाबीन का शीर्ष निर्यातक था और विश्व के आधे सोयाबीन बाज़ार पर इसी का कब्ज़ा था, इसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका का स्थान था।
  • ब्राज़ील के सोयाबीन निर्यात ने पिछले साल 83.6 मिलियन टन का रिकॉर्ड तोड़ दिया। इस वर्ष भी, यह चीन की बढ़ती मांग के कारण विश्व स्तर पर सोयाबीन का प्रमुख निर्यातक होने के मार्ग पर है।
  • लेकिन इसमें कीटनाशक एक बड़ी अड़चन है।
  • ब्राज़ील के किसान देश की प्रमुख निर्यात फसलों- सोयाबीन, मक्का, गन्ना, कॉफी, चावल, बीन्स, और कपास को उगाने में कीटनाशकों का उपयोग करते हैं।

ब्राज़ीलियाई सोयाबीन हानिकारक क्यों है?

  • सोयाबीन एक प्रमुख फसल है जिस पर कीटनाशकों का प्रयोग बहुत अधिक होता है।
  • ब्राज़ील में कीटनाशक का उपयोग प्रति हेक्टेयर उत्पादन की तुलना में तीन गुना तेज़ी से बढ़ा है, सोयाबीन के उत्पादन में प्रति एक प्रतिशत की वृद्धि के साथ ही कीटनाशक के उपयोग में 13 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
  • ध्यातव्य है कि ब्राज़ील में लगभग 95 प्रतिशत सोयाबीन, मक्का और कपास की फसल पर ग्लाइफोसेट का उपयोग किया जाता है और वास्तव में इसका कोई विकल्प भी उपलब्ध नहीं है।

ग्लाइफोसेट से होने वाले नुकसान

Glyphosate

  • व्यापक स्तर पर उपयोग किया जाने वाला यह कीटनाशक कई प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं से जुड़ा है।
  • WHO के तहत एक अंतर-सरकारी एजेंसी इंटरनेशनल एजेंसी फॉर रिसर्च ऑन कैंसर (International Agency for Research on Cancer) द्वारा इस कीटनाशक को एक संभावित मानव कार्सिनोजेन (Human Carcinogen) के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
  • जनवरी 2019 में सबसे पहले रूसी संघ के स्वास्थ्य प्राधिकरण ने ब्राज़ील के कृषि मंत्रालय को बताया था कि यदि रूस के बाज़ारों में भेजी जाने वाली फसलों में ग्लाइफोसेट कीटनाशक का प्रयोग होगा तो यह ब्राज़ीलियाई सोयाबीन को खरीदना बंद कर देगा।
  • रूस के बाद स्वीडन की सुपर मार्केट शृंखला Paradiset ने भी ब्राज़ील के सभी उत्पादों को हटाने के आदेश दिये थे और तब तक ब्राज़ील का बहिष्कार करने की घोषणा की थी जब तक कि ब्राज़ील की सरकार कीटनाशकों से संबंधित नीति में परिवर्तन नहीं करती।

ब्राज़ील तथा भारत

  • वर्ष 2017 में म्याँमार (60 प्रतिशत) और चीन (10 प्रतिशत) के बाद ब्राज़ील भारत में बीन्स का तीसरा सबसे बड़ा विक्रेता था तथा बाज़ार में इसकी हिस्सेदारी 6% प्रतिशत थी।
  • ब्राज़ील से भारत ने 34 मिलियन बीन्स का आयात किया और ब्राज़ील बीन इंस्टीट्यूट (Ibrafe) का उद्देश्य ब्राज़ील की व्यापार और निवेश संवर्द्धन एजेंसी (Apex-Brasil) तथा ब्राज़ील के कृषि, पशुधन एवं खाद्य आपूर्ति मंत्रालय (Brazilian Ministry of Agriculture, Livestock and Food Supply-MAPA) के समर्थन से वर्ष 2020 तक ब्राज़ील के निर्यात को दोगुना करना है।
  • पिछले साल आयातित दालों में ग्लाइफोसेट की मौजूदगी चिंता का विषय रही है और इस संबंध में स्वास्थ्य मंत्रालय के एक बयान के अनुसार, कोडेक्स मानकों में निर्दिष्ट दालों में 'ग्लाइफोसेट' के लिये MRL को आयात के लिये मंज़ूरी के रूप में अंतिम माना जाएगा।

आगे की राह

  • चूँकि भारत के पास ग्लाइफोसेट की अधिकतम अवशिष्ट सीमाओं के संबंध में कोई निर्धारित मानक नहीं हैं, इसलिये FSSAI ने WHO और FAO द्वारा गठित एक संयुक्त समिति कोडेक्स एलिमेथ्रिस (Codex Alimentarius) द्वारा निर्धारित मानकों का उपयोग करने का निर्णय लिया है।
  • समिति द्वारा निर्धारित सीमाओं के अनुपालन के लिये उत्पादों के आयातित शिपमेंट के परीक्षण का सुझाव भी दिया गया है।
  • ऐसी संभावनाएँ भी व्यक्त की जा रही हैं कि ब्राज़ील भविष्य में अपने कीटनाशक नियमों में संशोधन कर सकता है तथा कीटनाशकों के प्रयोग के संबंध में नियमों में और अधिक ढील दे सकता है। ऐसे में वैश्विक उपभोक्ताओं या आयातक देशों को ब्राज़ील से फसलों को आयात करने की मंज़ूरी देते समय सतर्क रहने की ज़रूरत है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


जैव विविधता और पर्यावरण

मुंबई के समुद्री तटों पर मिल रहे हैं टारबॉल्स

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दक्षिण मुंबई के एक प्रसिद्ध पर्यटक स्थल, गिरगाँव चौपाटी में रेतीले समुद्र के तट पर बड़े, काले तेल से सने हुए कुछ गोले या टारबॉल्स (Tarballs) दिखाई दिये थे।

Tarballs

क्या हैं ये टारबॉल्स (Tarballs)?

  • टारबॉल्स गहरे काले रंग की गेंदे होती हैं, जिनका निर्माण समुद्री वातावरण में कच्चे तेल के अपक्षय (Weathering) के कारण होता है।
  • एक हालिया शोध-पत्र के मुताबिक चारकोल की इन गेंदों को तटों तक लाने का काम समुद्री लहरों द्वारा किया जाता है।
  • टारबॉल्स आमतौर पर सिक्के के आकार के होते हैं और समुद्र तटों पर बिखरे हुए पाए जाते हैं। हालाँकि बीते कुछ वर्षों में ये बास्केटबॉल के आकार के हो गए हैं और इनका वजन लगभग 6-7 किलोग्राम तक पहुँच गया है।

क्या टारबॉल्स तेल रिसाव को इंगित करते हैं?

  • आमतौर पर टारबॉल्स की उपस्थिति समुद्र में तेल के रिसाव का ही संकेत देती हैं, परंतु हर बार मानसून के दौरान पश्चिमी तटों पर इनकी उपस्थिति की वार्षिक घटना समुद्री जीव वैज्ञानिकों के लिये परीक्षण का एक प्रमुख विषय बन गया है।
  • इस संदर्भ में विशेषज्ञों ने अधिकारियों से सतर्कता बरतने और इस बात की जाँच करने के लिये कहा है कि कहीं समुद्री जहाज़ अपने जले हुए तेल का कचरा समुद्रों में ही तो नहीं फेंक रहे हैं।
  • तेल के कुओं में दरारें, जहाज़ो की तली से अचानक तथा स्वयं होने वाला रिसाव, नदियों का अपवाह, नगरपालिकाओं के सीवेज़ के ज़रिये निर्मुक्त होने वाला मल-जल तथा औद्योगिक प्रदूषक आदि भी टारबॉल्स के निर्माण का कारण हैं।

क्या टारबॉल्स हानिकारक हैं?

  • महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Maharashtra Pollution Control Board) द्वारा इसे वार्षिक घटना मानने से इनकार कर दिया गया है।
  • तट की ओर बहकर जाने वाले ये टारबॉल्स समुद्र में मछली पकड़ने के लिये लगाए गए जाल में फँस सकते हैं, परिणामस्वरूप मछुआरों को परेशानियों का सामना करना पड़ सकता है।
  • वैश्विक समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र के लिये टारबॉल्स प्रदूषण एक प्रमुख चिंता का विषय है। ये टारबॉल्स अपने साथ कई प्रकार के बैक्टीरिया और कवक लेकर चलते हैं, जिसके कारण बहुत से मानव एवं पशु रोग उत्पन्न हो सकते हैं।

पूर्व में टारबॉल्स के मामले?

  • टारबॉल्स को तोड़ना मुश्किल है और इसलिये ये समुद्र में लंबी दूरी तक यात्रा कर सकते हैं। वर्ष 2010 से ही गोवा, दक्षिण, मंगलुरु और लॉस एंजेल्स में समुद्र तटों पर टारबॉल्स की घटनाओं के मामले दर्ज किये गए हैं।
  • भारत में अभी तक समुद्री टारबॉल्स के कारण समुद्री तट को बंद करने का मामला सामने नहीं आया है।

स्रोत : इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

दवाओं की ट्रैकिंग के लिये QR कोड

चर्चा में क्यों?

जल्द ही केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय दवाईयों के मुख्य घटकों के बारे में जानने हेतु दवा कंपनियों द्वारा भारत में दवा बनाने के लिये कोड लगाए जाने को अनिवार्य कर सकता है।

  • यदि इसे लागू किया जाता है, तो दवाओं के मूल घटकों और उनके संचलन आदि को इंगित करने तथा उनकी प्रामाणिकता सुनिश्चित करने के लिये सरकार द्वारा उठाया गया संभवतः यह पहला कदम होगा।

ट्रैकिंग के लिये QR कोड

  • दवाओं में इस्तेमाल किये जाने वाले सक्रिय फार्मास्यूटिकल घटक (Active Pharmaseutical Ingredient-API) की पैकेजिंग के प्रत्येक स्तर पर त्वरित प्रतिक्रिया (Quick Response-QR) कोड को अनिवार्य करने वाला एक मसौदा संशोधन तैयार है तथा जल्द ही इसे अधिसूचित किया जाएगा।
  • एक API दवा या कीटनाशक में मौजूद मूल दवा/घटक होता है जो जैविक रूप से सक्रिय होता है।
  • एक दवा के प्रभावी होने के लिये उसमें उपयोग किये गए API का प्रभावी होना अत्यंत आवश्यक है।
  • प्रथम प्रयास के तौर पर देश में निर्मित और आयात की जाने वाली प्रत्येक API (को ट्रैक एवं ट्रेस करने के लिये पैकेजिंग) के प्रत्येक स्तर पर इसके लेबल पर एक QR कोड होगा।
  • भारत वर्तमान में कुछ आवश्यक दवाओं के निर्माण हेतु APIs के लिये चीन पर निर्भर है।

इस प्रयास की आवश्यकता क्यों है?

  • सक्रिय फार्मास्यूटिकल घटक (Active Pharmaceutical Ingredient) किसी भी दवा को बनाने के लिये सबसे महत्त्वपूर्ण घटक होता है।
  • आपूर्ति शृंखला के संबंध में इसकी सुरक्षा और शुद्धता हेतु उचित भंडारण APIs की गुणवत्तापूर्ण आपूर्ति में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
  • API निर्माताओं को उनके उत्पादों की गुणवत्ता और शुद्धता के लिये जवाबदेह एवं ज़िम्मेदार ठहराया जाना चाहिये।
  • विभिन्न विक्रेताओं के API उनकी गुणवत्ता, विनिर्देशों और शुद्धता के संबंध में परिभाषित विशिष्टताओं के अनुसार नहीं होते हैं तथा कुछ मामलों में इनके वांछित परिणाम भी प्राप्त नहीं होते हैं।
  • अधिकांश APIs का निर्माण उपयुक्त स्थान पर नहीं किया जाता हैं अथवा जैविक सक्रिय पदार्थ बनाने हेतु इन API के उत्पादन में आवश्यकतानुसार वैज्ञानिक तकनीकों का उपयोग नहीं किया जाता है।

नकली दवाओं पर अंकुश लगाना

  • भारत में दवा विनियामक निकायों ने कई बार बड़े-बड़े दवा उत्पादकों द्वारा उत्पादित दवाओं को गुणवत्ता परीक्षण में फेल किया है।
  • भारत में नकली और गुणवत्ताहीन दवा समस्या के विषय में अभी भी स्पष्टता का अभाव है।
  • अमेरिका ने इस वर्ष अपनी विशेष 301 रिपोर्ट (Special 301 Report) में अनुमान लगाया कि भारतीय बाज़ार में बेची जाने वाली दवाओं में से 20 प्रतिशत नकली दवाएँ हैं तथा ये रोगी के स्वास्थ्य एवं सुरक्षा के लिये बहुत अधिक हानिकारक साबित हो सकती हैं।
  • हालाँकि वर्ष 2014 और वर्ष 2016 के दौरान भारत सरकार द्वारा किये गए एक राष्ट्रव्यापी सर्वेक्षण से यह निष्कर्ष प्राप्त हुआ कि लगभग 3 प्रतिशत दवाएँ मानकों के अनुरूप नहीं हैं तथा केवल 0.023 प्रतिशत दवाएँ ही नकली या गुणवत्ताहीन थीं।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019

चर्चा में क्यों?

लोकसभा ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षणिक सशक्तीकरण के लिये एक विधेयक ट्रांसजेंडर व्यक्तियों (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019 पारित किया।

ट्रांसजेंडर

Transgender

  • ट्रांसजेंडर वह व्यक्ति है, जो अपने जन्म से निर्धारित लिंग के विपरीत लिंगी की तरह जीवन बिताता है।
  • जब किसी व्यक्ति के जननांगों और मस्तिष्क का विकास उसके जन्म से निर्धारित लिंग के अनुरूप नहीं होता है तब महिला यह महसूस करने लगती है कि वह पुरुष है और पुरुष यह महसूस करने लगता है कि वह महिला है।

प्रमुख बिंदु

  • इस विधेयक में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के सामाजिक, आर्थिक एवं शैक्षिक सशक्तीकरण के लिये एक कार्य प्रणाली उपलब्ध कराने का प्रावधान किया गया है ।
  • इस विधेयक से हाशिये पर खड़े इस वर्ग के विरूद्ध लांछन, भेदभाव और दुर्व्यवहार कम होने तथा इन्हें समाज की मुख्य धारा से जोड़ने से अनेक ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को लाभ पहुँचेगा।
  • इससे समग्रता को बढ़ावा मिलेगा और ट्रांसजेंडर व्यक्ति समाज के उपयोगी सदस्य बन जाएंगे।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को सामाजिक बहिष्कार से लेकर भेदभाव, शिक्षा सुविधाओं की कमी, बेरोज़गारी, चिकित्सा सुविधाओं की कमी, जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों की सुरक्षा) विधेयक, 2019 एक प्रगतिशील विधेयक है क्योंकि यह ट्रांसजेंडर समुदाय को सामाजिक, आर्थिक और शैक्षिक रूप से सशक्त बनाएगा।

ट्रांसजेंडर व्यक्ति (अधिकारों का संरक्षण) विधेयक, 2019

Transgender Persons (Protection of Rights) Bill 2019

  • ट्रांसजेंडर व्यक्ति को परिभाषित करना।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्ति के विरुद्ध विभेद का प्रतिषेध करना।
  • ऐसे व्यक्ति को उस रूप में मान्यता देने के लिये अधिकार प्रदत्त करने और स्वत: अनुभव की जाने वाली लिंग पहचान का अधिकार प्रदत्त करना।
  • पहचान-पत्र जारी करना।
  • यह उपबंध करना कि ट्रांसजेंडर व्यक्ति को किसी भी स्थापन में नियोजन, भर्ती, प्रोन्नति और अन्य संबंधित मुद्दों के विषय में विभेद का सामना न करना पड़े।
  • प्रत्येक स्थापन में शिकायत निवारण तंत्र स्थापित करना।
  • विधेयक के उपबंधों का उल्लंघन करने के संबंध में दंड का प्रावधान सुनिश्चित करना।

भारत में ट्रांसजेंडर्स के समक्ष आने वाली परेशानियाँ

  • ट्रांसजेंडर समुदाय की विभिन्न सामाजिक समस्याएँ जैसे- बहिष्कार, बेरोज़गारी, शैक्षिक तथा चिकित्सा सुविधाओं की कमी, शादी व बच्चा गोद लेने की समस्या,आदि।
  • ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को मताधिकार वर्ष 1994 में ही मिल गया था, परंतु इन्हें मतदाता पहचान-पत्र जारी करने का कार्य पुरुष और महिला के प्रश्न पर उलझ गया।
  • इन्हें संपत्ति का अधिकार और बच्चा गोद लेने जैसे कुछ कानूनी अधिकार भी नहीं दिये जाते हैं।
  • इन्हें समाज द्वारा अक्सर परित्यक्त कर दिया जाता है, जिससे ये मानव तस्करी का आसानी से शिकार बन जाते हैं।
  • अस्पतालों और थानों में भी इनके साथ अपमानजनक व्यवहार किया जाता है।

सामाजिक तौर पर बहिष्कृत

  • भारत में किन्नरों को सामाजिक तौर पर बहिष्कृत कर दिया जाता है। इसका मुख्य कारण इन्हें न तो पुरुषों की श्रेणी में रखा जा सकता है और न ही महिलाओं की, जो लैंगिक आधार पर विभाजन की पुरातन व्यवस्था का अंग है।
  • इसका नतीज़ा यह होता है कि ये शिक्षा हासिल नहीं कर पाते हैं और बेरोज़गार ही रहते हैं। ये सामान्य लोगों के लिये उपलब्ध चिकित्सा सुविधाओं का लाभ तक नहीं उठा पाते हैं।
  • इसके अलावा ये अनेक सुविधाओं से भी वंचित रह जाते हैं।

स्रोत: PIB


शासन व्यवस्था

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद

चर्चा में क्यों?

राम जन्मभूमि-बाबरी मस्जिद विवाद के सौहार्दपूर्ण समाधान और मध्यस्थता के प्रयास विफल हो गए हैं। 6 अगस्त, 2019 से सर्वोच्च न्यायालय ने 30 सितंबर, 2010 को दिये गए इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ की गई अपील पर सुनवाई शुरू की है।

क्या था इलाहाबाद उच्च न्यायालय का फैसला?

  • 30 सितंबर, 2010 को इलाहाबाद उच्च न्यायालय के जस्टिस सुधीर अग्रवाल, एस. यू. खान और डी. वी. शर्मा की बेंच ने मंदिर मुद्दे पर अपना फैसला सुनाते हुए अयोध्या की विवादित 2.77 एकड़ ज़मीन को तीन बराबर हिस्सों में बाँटने का आदेश दिया था।
  • बेंच ने तय किया था कि जिस जगह पर रामलला की मूर्ति है, उसे रामलला न्यास को दे दिया जाए। राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह निर्मोही अखाड़े को दे दी जाए। बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा सुन्नी वक्फ बोर्ड को दिया जाए।

कौन हैं 3 पक्ष?

  • निर्मोही अखाड़ा: विवादित ज़मीन का एक-तिहाई हिस्सा यानी राम चबूतरा और सीता रसोई वाली जगह।
  • रामलला न्यास: एक-तिहाई हिस्सा यानी रामलला की मूर्ति वाली जगह।
  • सुन्नी वक्फ बोर्ड: विवादित ज़मीन का बचा हुआ एक-तिहाई हिस्सा।

क्या है विवाद?

  • राम मंदिर मुद्दा वर्ष 1989 के बाद अपने उफान पर था। इस मुद्दे की वज़ह से तब देश में सांप्रदायिक तनाव फैला था। देश की राजनीति इस मुद्दे से प्रभावित होती रही है।
  • हिंदू संगठनों का दावा है कि अयोध्या में भगवान राम की जन्मस्थली पर विवादित बाबरी ढाँचा बना था।
  • राम मंदिर आंदोलन के दौरान 6 दिसंबर, 1992 को अयोध्या में विवादित बाबरी ढाँचा गिरा दिया गया था। मामला अब सर्वोच्च न्यायालय में है।

बातचीत का कानूनी आधार

  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा बातचीत का सुझाव अपने आप में नया नहीं था।
  • विवादों को सुलझाने के लिये बातचीत (Negotiation) या मध्यस्थता (Mediation) न्यायालय की प्रक्रिया का एक स्वीकृत हिस्सा है।
  • नागरिक प्रक्रिया संहिता (Code of Civil Procedure) की धारा 89 न्यायाधीशों को यह सुनिश्चित करने के लिये कहती है कि न्यायालय के बाहर विवाद को हल करने के सभी रास्ते समाप्त हो गए हैं।
  • जहाँ न्यायालय को यह प्रतीत होता है कि किसी समझौते के ऐसे तत्त्व विद्यमान है, जो पक्षकारों को स्वीकार्य हो सकते है वहाँ न्यायालय समझौते के निबंधन बनाएगा और उन्हें पक्षकारों को उनकी टीका-टिप्पणी के लिये देगा और पक्षकारों की टीका-टिप्पणी प्राप्त करने के पश्चात् न्यायालय संभव समझौते के निबंधन पुनः बना सकेगा और उन्हें:

(क) मध्यस्थता (Arbitration);

(ख) सुलह (Conciliation);

(ग) न्यायिक समझौते जिसके अंतर्गत लोक अदालत के माध्यम से समझौता भी है; या

(घ) बीच-बचाव (Mediation) के लिये, निर्दिष्ट करेगा।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

भारत का डीप ओशन मिशन

चर्चा में क्यों?

भारत इस साल अक्तूबर में अपना महत्त्वाकांक्षी 'डीप ओशन मिशन' (Deep Ocean Mission) लॉन्च करने के लिये तैयार है।

डीप ओशन मिशन

(Deep Ocean Mission)

  • उपग्रहों का डिज़ाइन तैयार करने और उन्हें लॉन्च करने में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) के सफल कार्यों का अनुकरण करते हुए भारत सरकार ने महासागर के गहरे कोनों का पता लगाने के लिये ₹ 8,000 करोड़ की लागत से पाँच वर्षों हेतु यह योजना तैयार की है।
  • इसके लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये प्रमुख परिदेयों में से एक अपतटीय विलवणीकरण संयंत्र है जो ज्वारीय ऊर्जा के साथ काम करेगा, और साथ ही एक पनडुब्बी वाहन विकसित करना है जो बोर्ड पर तीन लोगों के साथ कम-से-कम 6,000 मीटर की गहराई तक जा सकता है।
  • रिपोर्ट के अनुसार, यह मिशन 35 साल पहले इसरो द्वारा शुरू किये गए अंतरिक्ष अन्वेषण के समान गहरे महासागर का पता लगाने का प्रस्ताव करता है।
  • केंद्रीय पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय इसका नोडल मंत्रालय है।
  • इन तकनीकी विकासों को सरकार की एक अम्ब्रेला (यानी समग्र); योजना महासागर सेवा, प्रौद्योगिकी, अवलोकन, संसाधन मॉडलिंग और विज्ञान (Ocean Services, Technology, Observations, Resources Modelling and Science-O-SMART) के तहत वित्तपोषित किया जाएगा।

समुद्र में खनन के निहितार्थ:

  • मिशन का एक मुख्य उद्देश्य समुद्र के नितल पर पॉलीमेटॉलिक नोड्यूल्स को खोजना और उनको बाहर निकालना है।
  • इनका आकार छोटे गोल आलू की तरह होता है जो मैंगनीज़, निकेल, कोबाल्ट, तांबा और लोहे के हाइड्रॉक्साइड जैसे खनिजों से बने हैं।
  • ये लगभग 6,000 मीटर की गहराई पर हिंद महासागर की सतह पर बिखरे हुए हैं, जिनका आकार कुछ मिलीमीटर से सेंटीमीटर तक के बीच हो सकता है।
  • इन धातुओं का इस्तेमाल इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों, स्मार्टफोन, बैटरी और सौर पैनलों में भी किया जा सकता है।

समुद्री खनन के नियामक और विनियमन:

  • अंतर्राष्ट्रीय समुद्री प्राधिकरण (International Seabed Authority-ISA) एक स्वायत्त अंतर्राष्ट्रीय संगठन है, जो गहरे समुद्र में खनन के लिये क्षेत्र आवंटित करता है। इसकी स्थापना वर्ष 1982 में संयुक्त राष्ट्र समुद्री कानून पर अभिसमय (United Nations Convention on the Law of the Sea) के तहत हुई थी।
  • भारत वर्ष 1987 में पायनियर इन्वेस्टर (Pioneer Investor) का दर्जा प्राप्त करने वाला पहला देश था। भारत को मध्य हिंद महासागर बेसिन में नोड्यूल अन्वेषण के लिये लगभग 1.5 लाख वर्ग किमी. का क्षेत्र दिया गया था।
  • भारत ने वर्ष 2002 में ISA के साथ एक अनुबंध पर हस्ताक्षर किये, जिसमें समुद्री सतह के पूर्ण संसाधन में से 50% भाग को छोड़ दिया और शेष 75,000 वर्ग किमी के क्षेत्र को बरकरार रखा गया।
  • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक विज्ञप्ति के अनुसार, इस क्षेत्र में अनुमानित पॉलिमेटॉलिक नोड्यूल संसाधन क्षमता 380 मिलियन टन (MT) है, जिसमें 4.7 मीट्रिक टन निकेल, 4.29 मीट्रिक टन तांबा, 0.55 मीट्रिक टन कोबाल्ट और 92.99 मीट्रिक टन मैंगनीज़ है।
  • आगे के अध्ययनों ने खनन क्षेत्र को 18,000 वर्ग किमी. तक सीमित करने में मदद की है जो प्रथम पीढ़ी का खनन स्थल होगा।

Deep Ocean Mission

अन्य देशों की स्थिति:

  • मध्य हिंद महासागर बेसिन के अतिरिक्त केंद्रीय प्रशांत महासागर में भी पॉलीमेटॉलिक नोड्यूल क्षेत्र की पहचान की गई है। इसे क्लेरियन-क्लिपर्टन ज़ोन (Clarion-Clipperton Zone) के रूप में जाना जाता है।
  • 29 ठेकेदारों (Contractors) के साथ गहरे समुद्र में पॉलीमेटॉलिक नोड्यूल, पॉलीमेटॉलिक सल्फाइड और कोबाल्ट-समृद्ध फेरोमैंगनी क्रस्ट्स की खोज के लिये 15 साल का एक अनुबंध किया। बाद में इस अनुबंध को वर्ष 2022 तक पाँच वर्षों के लिये बढ़ा दिया गया था।
  • चीन, फ्राँस, जर्मनी, जापान, दक्षिण कोरिया, रूस और कुछ छोटे द्वीप जैसे कुक आइलैंड्स, किरिबाती भी गहरे समुद्र में खनन की दौड़ में शामिल हो गए हैं। अभी तक अधिकांश देशों ने उथले पानी में अपनी प्रौद्योगिकियों का परीक्षण किया है और वे गहरे समुद्र में निकासी शुरू नहीं कर पा रहे हैं।

भारत में खनन की स्थिति:

  • भारत की खनन साइट लगभग 5,500 मीटर की गहराई पर है, जहाँ पर उच्च दबाव और बेहद कम तापमान है।
  • भारत द्वारा रिमोट से संचालित वाहन और इन-सीटू सॉइल टेस्टर को 6,000 मीटर की गहराई में तैनात कर मध्य हिंद महासागर बेसिन में खनन क्षेत्र की पूरी समझ विकसित की जा रही है।
  • भारत द्वारा 6000 मीटर की गहराई के लिये विकसित की गई खनन मशीन अभी तक लगभग 900 मीटर तक चलने में सक्षम है, जल्द ही इस खनन मशीन की क्षमता को 5,500 मीटर तक विकसित करना है।
  • खनन में मौसम की स्थिति और जहाजों की उपलब्धता भी एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है।
  • नोड्यूल्स को सतह पर कैसे लाया जाए, यह समझने के लिये और भी परीक्षण किये जा रहे हैं।

खनन का पर्यावरणीय प्रभाव?

  • प्रकृति के संरक्षण के लिये अंतर्राष्ट्रीय संघ (International Union for Conservation of Nature- IUCN) के अनुसार, ये गहरे दूरस्थ स्थान अद्वितीय प्रजातियों के आवास हो सकते हैं, जिन्होंने स्वयं को कम ऑक्सीजन, कम प्रकाश, उच्च दबाव और बेहद कम तापमान जैसी स्थितियों के लिये अनुकूलित किया है।
  • इस तरह के खनन अभियान उनकी खोज के पहले ही उन्हें विलुप्त कर सकते हैं।
  • गहरे समुद्र की जैव-विविधता और पारिस्थितिकी की अभी तक काफी कम समझ है, इसलिये इनके पर्यावरणीय प्रभाव का आकलन करना और पर्याप्त दिशा-निर्देशों को तैयार करना मुश्किल हो जाता है।
  • समुद्री सतह के अवसादी प्लम (Sediment Plumes) को लेकर भी पर्यावरणविद् चिंतित हैं क्योंकि खनन के दौरान उत्पन्न निलंबित कण ऊपरी महासागर की परतों में फिल्टर फीडर को नुकसान पहुँचा सकते हैं।
  • खनन वाहनों से ध्वनि प्रदूषण, प्रकाश प्रदूषण और तेल के फैलाव जैसी अतिरिक्त चिंताएँ भी व्यक्त की जा रही हैं।

समुद्र में खनन की आर्थिक व्यवहार्यता:

  • ISA के नवीनतम अनुमान में कहा गया है कि यह वाणिज्यिक रूप से तब व्यावहारिक होगा जब प्रतिवर्ष लगभग तीन मिलियन टन खनन किया जाएगा।
  • प्रौद्योगिकी दक्षता और कुशलता को बढ़ाने के लिये अभी और भी अध्ययन किये जा रहे हैं।

स्रोत- द हिंदू


विविध

Rapid Fire करेंट अफेयर्स 6 अगस्त

  • सरकार ने देशभर में नागरिकों की जनसंख्या का लेखा-जोखा रखने के लिये उसका आधार तैयार करने हेतु सितंबर 2020 तक राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर (National Population Register-NPR) तैयार करने का निर्णय किया है। NPR बनाने का उद्देश्य देश के हर नागरिक के लिये एक व्यापक पहचान डेटाबेस तैयार करना है, जिसमें जनसांख्यिकी एवं बायोमीट्रिक जानकारी रहेगी। यह NPR देश में रहने वाले नागरिकों की एक सूची होगी, जिसके पूरा होने और प्रकाशित होने के बाद नेशनल रजिस्ट्रेशन आइडेंटिटी कार्ड (National Registration Identity Card –NRIC) तैयार करने के लिये इसके एक आधार बनने की उम्मीद है। यह NRIC असम के NRC का अखिल भारतीय प्रारूप होगा। NPR के लिये किसी नागरिक को एक ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया जाएगा, जो उस स्थानीय इलाके में पिछले 6 महीने से रह रहा हो या जो इलाके में 6 महीने या इससे अधिक समय तक रहने का इरादा रखता हो। भारत के प्रत्येक निवासी को NPR में पंजीकरण कराना अनिवार्य होगा। यह NPR स्थानीय (ग्राम/कस्बा), अनुमंडल, ज़िला, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर तैयार किया जाएगा। ‘नागरिकता (नागरिकों के पंजीयन एवं राष्ट्रीय पहचान पत्र जारी करने संबंधी) नियमावली, 2003 के नियम 3 के उपनियम (4) के अनुपालन में केंद्र सरकार ने NPR तैयार करने और उसे अद्यतन करने का फैसला किया है।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार ने एक देश-एक राशन कार्ड योजना पायलट आधार पर तेलंगाना, आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में लॉन्च की है। इस राज्यों में यह योजना 1 अगस्त, 2019 से प्रभावी हो गई है। विदित हो कि केंद्र सरकार ने अगस्त, 2020 तक इस योजना का क्रियान्वयन पूरे देश में करने का लक्ष्य रखा है। इससे निर्धन लोगों को समय पर उनका हक़ दिलाने और राशन वितरण की प्रक्रिया में चोरी/लापरवाही रोकने में सहायता मिलेगी। इस योजना के तहत उपभोक्ता किसी अन्य राज्य की किसी भी राशन दुकान से रियायती दरों पर अनाज ले सकेंगे। एक देश-एक राशन कार्ड की इस सुविधा से रोज़गार की तलाश में शहरों की ओर पलायन करने वाले निर्धन लोगों को सबसे ज़्यादा फायदा मिल सकेगा। देशभर में एक ही राशन कार्ड का इस्तेमाल होने से फ़र्ज़ी राशन कार्ड बनाने वालों पर भी लगाम कसी जा सकेगी। आधार कार्ड की तर्ज पर प्रत्येक राशन कार्ड को एक विशिष्ट पहचान नंबर दिया जाएगा। इससे फ़र्ज़ी राशन कार्ड बनाना काफी मुश्किल हो जाएगा, साथ ही सरकार ऐसी व्यवस्था करेगी, जिसमें एक ऑनलाइन एकीकृत सिस्टम बनाया जाएगा। इस सिस्टम में राशन कार्ड का डेटा स्टोर होगा तथा इससे राशन दुकानदारों द्वारा उपभोक्ताओं को अनाज की आपूर्ति आदि की जानकारी वास्तविक समय (Real Time) में दर्ज की जा सकेगी।
  • हाल ही में भारतीय वायुसेना ने अपना वीडियो गेम लॉन्च किया है। इस गेम का नाम Indian Air Force: A Cut Above है और इसे गूगल प्ले-स्टोर के अलावा एपल स्टोर से भी फ्री में डाउनलोड किया जा सकता है। भारतीय वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल बी.एस. धनोआ ने इस गेम को आधिकारिक तौर पर लॉन्च किया। इंडियन एयरफोर्स के इस गेम का उदेश्य युवाओं को भारतीय वायु सेना के बारे में जानकारी देना और उन्हें एयरफोर्स जॉइन करने के लिये प्रोत्साहित करना है। इस गेम के प्रमुख फीचर्स में ट्रेनिंग, सिंगल प्लेयर और फ्री फ्लाइट जैसे कई मोड्स दिये गए हैं। इसके अलावा इस गेम में भारतीय वायुसेना के बारे में भी पूरी जानकारी दी गई है। इस गेम में प्लेयर्स को 10 मिशन मिलेंगे और इसे ऑनलाइन के अलावा ऑफलाइन भी खेला जा सकेगा। इसके अलावा एक टीम के रूप में भी कई लोगों के साथ यह गेम खेला जा सकता है और गेमिंग के दौरान ऑनलाइन ही लोगों से जुड़ने की भी सुविधा है। गेम के बेहतरीन अनुभव के लिये इसमें ऑग्युमेंट रियलिटी का भी सपोर्ट दिया गया है। गेम के दौरान प्लेयर्स को एयरक्राफ्ट को हैंडल करने और चलाने के बारे में भी जानकारी दी जाएगी तथा इसके बाद ही प्लेयर्स को एयरक्राफ्ट चलाने का मौका मिलेगा।
  • छत्तीसगढ़ सरकार राज्य के नागरिकों के आजीविका संवर्द्धन के लिये हर ज़िले में आजीविका अंगना योजना लॉन्च करने की योजना बना रही है। राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने हाल ही में बिलासपुर ज़िले के तखतपुर ब्लॉक के गनियारी स्थित पहले आजीविका अंगना केंद्र (मल्टी-एक्टिविटी सेंटर) की शुरुआत की। इस मल्टी एक्टिविटी सेंटर में एक ही परिसर में स्वरोजगार की अनेक गतिविधियाँ संचालित होती हैं। राज्य के पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग द्वारा निर्मित 'आजीविका अंगना' में डोम के भीतर महिलाएँ गणवेश और जूट बैग की सिलाई, अगरबत्ती, एलईडी बल्ब, कांच की चूड़ियाँ तथा सेनेटरी पैड बनाने का काम करती हैं। दूसरी तरफ डोम के बाहर वे पेपर ब्लॉक, फ्लाई-ऐश ब्रिक्स, सीमेंट पोल एवं चेन-लिंक फेंसिंग बनाने का काम करती हैं, जिसे अब तक पुरुषों के वर्चस्व वाला माना जाता था। इस योजना में स्वरोज़गार शुरू करने के पहले सभी महिलाओं को उनके कार्यों का व्यापक प्रशिक्षण भी दिया जाता है। पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग के अंतर्गत ग्रामीण आजीविका मिशन, महिला एवं बाल विकास विभाग तथा श्रम विभाग की योजनाओं के तहत यहाँ स्वरोज़गार की गतिविधियाँ संचालित की जा रही हैं। इस योजना का उद्देश्य स्वयं-सहायता समूहों की महिलाओं को आर्थिक तौर पर आत्मनिर्भर बनाना है। इसके अलावा यहाँ काम करने वाली महिलाओं को परिसर में ही संचालित श्रमिक अन्न सहायता केंद्र में मात्र 5 रुपए में पर्याप्त भोजन मिल जाता है।

close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2
× Snow