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सरोगेसी (विनियमन) विधेयक-2016

  • 21 Dec 2018
  • 10 min read

चर्चा में क्यों?


19 दिसंबर को लोकसभा ने सरोगेसी (विनियमन) विधेयक-2016 पारित कर दिया। इस विधेयक में देश में कॉमर्शियल उद्देश्यों से जुड़ी सरोगेसी (Surrogacy) पर रोक लगाने, सरोगेसी का दुरुपयोग रोकने के साथ ही निस्संतान दंपतियों को संतान सुख की प्राप्ति सुनिश्चित करने के प्रावधान किये गए हैं।

क्या है सरोगेसी?


सरोगेसी का हिंदी में सीधा-सीधा अर्थ है- किराये की कोख। प्रजनन विज्ञान की प्रगति ने उन दंपतियों तथा अन्य लोगों के लिये प्राकृतिक रूप से संतान-सुख प्राप्त करना संभव बना दिया है, जिनकी किन्हीं कारणों से अपनी संतान नहीं हो सकती। इसी से ‘सरोगेट मदर’ की अवधारणा जन्मी है। सरोगेसी सहायक प्रजनन की एक विधि है। गर्भावधि सरोगेसी यानी Gestational Surrogacy इसका अधिक सामान्य रूप है। इस विधि में सरोगेट संतान आनुवंशिक तौर पर पिता और सरोगेट मां से संबंधित होती है। दूसरी ओर, IVF में सरोगेट संतान पूर्ण रूप से सामाजिक रूप से मान्य अभिभावकों (Traditional Surrogacy) से जुड़ी होती है।

क्यों पड़ी विनियमन की ज़रूरत?

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भारत विभिन्न देशों के दंपतियों के लिये सरोगेसी केंद्र के तौर पर उभरा है और यहाँ सरोगेट मदर्स का शोषण, सरोगेसी से जन्मे बच्चों को त्यागने और मानव भ्रूणों एवं क्रोमोसोम्स की खरीद-बिक्री में बिचौलियों के रैकेट से जुड़ी जैसी अनैतिक गतिविधियाँ होती रहती हैं। भारत के विधि आयोग की 228वीं रिपोर्ट में भी उपयुक्त कानून बनाकर कॉमर्शियल सरोगेसी पर रोक लगाने और ज़रूरतमंद भारतीय नागरिकों के लिये नैतिक व परोपकारी सरोगेसी की अनुमति की सिफारिश की गई है।

क्या खास है इस विधेयक में?


यह कानून देश में सरोगेसी सेवाओं को विनियमित करेगा और यह इसका सबसे बड़ा प्लस पॉइंट है। हालाँकि मानव भ्रूण और क्रोमोसोम्स की खरीद-बिक्री सहित कॉमर्शियल सरोगेसी पर रोक रहेगी, लेकिन कुछ खास उद्देश्यों के लिये निश्चित शर्तों के साथ ज़रूरतमंद निस्संतान दंपतियों के लिये नैतिक सरोगेसी की अनुमति दी जाएगी। इस कानून से सरोगेसी में अनैतिक गतिविधियों को नियंत्रित करने में तो मदद मिलेगी ही, साथ ही सरोगेसी के कॉमर्शियल होने पर रोक लगेगी। इसके अलावा, सरोगेट मदर्स एवं सरोगेसी से जन्मी संतान के संभावित शोषण पर भी रोक लगेगी।

    • यह विधेयक केंद्रीय स्तर पर राष्ट्रीय सरोगेसी बोर्ड एवं राज्य सरोगेसी बोर्डों के गठन और राज्य एवं केंद्रशासित प्रदेशों में उपयुक्त प्राधिकारियों के ज़रिये भारत में सरोगेसी का नियमन करेगा।
    • यह कानून सरोगेसी का प्रभावी विनियमन, कॉमर्शियल सरोगेसी की रोकथाम और ज़रूरतमंद निस्संतान दंपतियों के लिये नैतिक सरोगेसी की अनुमति सुनिश्चित करेगा। 
    • नैतिक लाभ उठाने की चाहत रखने वाले सभी निस्संतान भारतीय विवाहित दंपतियों को इससे लाभ मिलेगा।
    • जो भी दंपति सरोगेसी के विकल्प को चुनना चाहते हैं उन्हें 90 दिनों के भीतर इनफर्टिलिटी सर्टिफिकेट देना होगा।
    • सरोगेट मदर और सरोगेसी से उत्पन्न संतान के अधिकार भी सुरक्षित होंगे।
    • इस विधेयक के सबसे दमदार प्रावधान के तहत ‘कॉमर्शियल सरोगेसी' पर रोक लगाने और परिवारों में निस्संतान दंपतियों की सुविधा को ध्यान में रखा गया है।
    • इस विधेयक में NRI दंपतियों को भी शामिल किया गया है, लेकिन विदेशी नागरिकों के लिये कोई प्रावधान नहीं है।
    • देशभर में ऐसे बहुत सारे क्लीनिक चल रहे हैं जो कॉमर्शियल सरोगेसी का हब बन गए हैं, लेकिन विधेयक के पारित होने के बाद इस पर रोक लग जाएगी।
    • ‘नजदीकी रिश्तेदार' (Close Relative) को स्पष्ट तौर पर परिभाषित किया गया है।
    • नियमों का उल्लंघन करने वालों को 10 साल तक की जेल की सज़ा और 10 लाख रुपए तक का जुर्माने का प्रावधान है।
    • यह विधेयक जम्मू-कश्मीर राज्य को छोड़कर पूरे भारत पर लागू होगा। 

    सरोगेसी हब बन चुका है भारत


    सरोगेसी के लिये आज भारत एक अनुकूल गंतव्य बन चुका है। देश में सहायक प्रजनन तकनीक (Assisted Reproductive Technology-ART) उद्योग में लगभग 25 अरब रुपए का सालाना कारोबार होता है, जिसे विधि आयोग ने ‘स्वर्ण कलश’ की संज्ञा दी है। भारत में सरोगेसी के तेज़ी से बढ़ने का मुख्य कारण इसका सस्ता और सामाजिक रूप से मान्य होना है। इसके अलावा, गोद लेने की जटिल प्रक्रिया के चलते भी सरोगेसी एक पसंदीदा विकल्प के रूप में उभरी है। आज देशभर में गली-नुक्कड़ तक में कृत्रिम गर्भाधान, IVF और सरोगेसी की सुविधा मुहैया कराने वाले क्लीनिक मौजूद हैंl

    विधेयक के उद्देश्य और कारण

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    • विधेयक के उद्देश्यों एवं कारणों में कहा गया है कि पिछले कुछ वर्षो में भारत विभिन्न देशों के दंपतियों के लिये सरोगेसी के केंद्र के रूप में उभरा है।
    • विधेयक में संतान उत्पन्न करने में अक्षम 23 से 50 वर्ष की निस्संतान महिला तथा 26 से 55 वर्ष के निस्संतान पुरुष (भारतीय विवाहित दंपति) नैतिक सरोगेसी का सहारा ले सकते हैं।
    • संबंधित दंपति को कम-से-कम पांच वर्ष से विधिपूर्वक विवाहित होन चाहिये और सरोगेसी प्रक्रियाओं के लिये भारतीय नागरिक होना चाहिये।
    • सरोगेसी से उत्पन्न संतान का किसी भी स्थिति में परित्याग नहीं किया जाएगा और उसे जैविक रूप से उत्पन्न संतान के समान अधिकार मिलेंगे।
    • सरोगेट मदर निस्संतान दंपति की निकट रिश्तेदार होनी चाहिये और पहले से विवाहित होनी चाहिये। ऐसी महिला को केवल एक बार सरोगेट मदर बनने की अनुमति दी जाएगी।
    • कोई व्यक्ति, संगठन, क्लीनिक तथा लैब सरोगेसी से जुड़ा किसी भी भी प्रकार का विज्ञापन आदि नहीं करेगा।
    • फैशन और फिगर के लिये सरोगेसी के ज़रिये संतान प्राप्ति पर रोक लगेगी।

    सरोगेसी पर सुप्रीम कोर्ट


    2015 में सुप्रीम कोर्ट ने भारत को सरोगेसी टूरिज्म के लिये पसंदीदा जगह बताते हुए इस पर चिंता जताई थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को व्यावसायिक सरोगेसी पर प्रतिबंध लगाने की सलाह देते हुए मानव भ्रूण के आयात की अनुमति देने संबंधी नीति की दोबारा जाँच करने का निर्देश दिया था। गौरतलब है कि 2013 में केंद्र ने एक अधिसूचना जारी की थी जिसमें विदेशी दंपतियों के लिये कृत्रिम प्रजनन के ज़रिये मानव भ्रूणों के आयात को मंज़ूरी दी गई थी। तब सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सरोगेसी से संबंधित कई मुद्दे किसी कानून के तहत नहीं आते और सरकार को समग्र दृष्टिकोण के साथ एक कानून लाना होगा।

    फिलहाल भारत में सरोगेसी को नियंत्रित करने के लिये कोई कानून नहीं है और कॉमर्शियल सरोगेसी को तर्कसंगत माना जाता है। किसी कानून के न होने की वज़ह से ही Indian Council for Medical Research (ICMR) ने भारत में ART क्लीनिकों के प्रमाणन, निरीक्षण और नियंत्रण के लिये 2005 में दिशा-निर्देश जारी किये थे। लेकिन इनके उल्लंघन और बड़े पैमाने पर सरोगेट मदर्स के शोषण और जबरन वसूली के मामलों के कारण इसके लिये  कानून की ज़रूरत महसूस की गई।


    स्रोत: Indian Express, AIR, PIB तथा अन्य

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