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सामाजिक न्याय

ऑनर किलिंग: एक बड़ी समस्या

  • 07 Feb 2018
  • 7 min read

संदर्भ:

  • हाल ही में ऑनर किलिंग से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि दो वयस्क अगर शादी करते हैं तो कोई तीसरा उसमें दखल नही दे सकता है।

क्या था मामला?

  • सुप्रीम कोर्ट एक गैर सरकारी संगठन ‘शक्ति वाहिनी’ द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई कर रही था, जिसमें ऑनर किलिंग को विशिष्ट अपराध (organized crime) की श्रेणी में डाले जाने की माँग की गई थी।

क्या रहा न्यायालय का फैसला?

  • देश की शीर्ष अदालत ने कहा है कि यदि दो बालिग़ अपनी मर्ज़ी से शादी करते हैं तो कोई भी तीसरा व्यक्ति उसमें दखल नहीं दे सकता है।
  • साथ में न्यायालय ने यह भी बताया है कि हिन्दू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 5 में एक ही गोत्र में शादी न करने को उचित बताया गया है।
  • उल्लेखनीय है कि ऑनर किलिंग के केवल 3 प्रतिशत मामले ही गोत्र से संबंधित होते हैं, जबकि 97% मामले  धर्म तथा अन्य कारणों से संबंधित होते हैं।

क्या है ऑनर किलिंग?

  • परिवार के किसी सदस्य विशेष रूप से महिला सदस्य की उसके सगे-संबंधियों द्वारा होने वाली हत्या को ऑनर किलिंग कहा जाता है। ये हत्याएँ प्रायः परिवार और समाज की प्रतिष्ठा के नाम पर की जाती हैं।

ऑनर किलिंग के कारण

Poor

  • लगातार सख्त होती जाति व्यवस्था:
    ► देश में जातिगत धारणाएँ लगातार बलवती होती जा रही हैं। अधिकांश ऑनर किलिंग के मामले तथाकथित उच्च और नीची जाति के लोगों के प्रेम संबंधों के मामले में देखने को मिले हैं। अंतर-धार्मिक संबंध भी ऑनर किलिंग का एक बड़ा कारण है।
  • औपचारिक प्रशासन का अभाव:
    ► ऑनर किलिंग का मूल कारण औपचारिक शासन का ग्रामीण क्षेत्रों तक नहीं पहुँच पाना है।
    ► पंचायत समिति जैसे औपचारिक संस्थानों की अनुपस्थिति में ग्रामीण क्षेत्रों में निर्णयन की शक्ति अवैध एवं गैर-संवैधानिक संस्थाएँ, जैसे- खाप पंचायतों के हाथ में चली जाती है।
  • निरक्षरता और अधिकारों के संबंध में अनभिज्ञता:
    ► शिक्षा के अभाव में समाज का बड़ा हिस्सा अपने संवैधानिक अधिकारों के संबंध में अनजान है।
    ► गौरतलब है कि ऑनर किलिंग भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15 (1), 1 9, 21 और 39 (एफ) को नकारात्मक ढंग से प्रभावित करता है।
    ► अनुच्छेद 14, 15 (1), 1 9,  और 21 मूल अधिकारों से संबंधित हैं, जबकि अनुच्छेद 39 राज्य के नीति निर्देशक तत्त्वों से संबंधित है।
    ► उल्लेखनीय है कि मूल अधिकार और निर्देशक तत्व संविधान की आत्मा और दर्शन के तौर पर जाने जाते हैं।

ऑनर किलिंग का प्रभाव

  • ऑनर किलिंग मानवाधिकारों के उल्लंघन के साथ-साथ अनुच्छेद 21 के अनुसार गरिमा के साथ जीने के अधिकार का उल्लंघन भी है।
  • यह देश में सहानुभूति, प्रेम, करुणा, सहनशीलता जैसे गुणों के अभाव को और बढ़ाने का कार्य करता है।
  • विभिन्न समुदायों के बीच राष्ट्रीय एकता, सहयोग आदि की धारणा को बढ़ावा देने के लिये एक बाधक का कार्य करता है।

इस संबंध में वैधानिक प्रयास:

Crime

  • प्रिवेंशन ऑफ क्राइम इन द नेम ऑफ ऑनर बिल, 2010:
    ► सर्वोच्च न्यायालय ने अपने हालिया निर्णय में कहा है कि माता-पिता या खाप पंचायतों द्वारा वयस्क व्यक्तियों द्वारा विवाह के संबंध में लिये गए उनके निर्णयों का विरोध करना अवैध है।
    ► गौरतलब है कि इस मामले से पहले भी सर्वोच्च न्यायालय सरकार को ऑनर किलिंग के संबंध में कठोर कदम उठाने के आदेश दे चुकी है।
    ► यही कारण है कि विधायिका प्रिवेंशन ऑफ क्राइम इन द नेम ऑफ ऑनर बिल, 2010 (Prevention of Crimes in the Name of ‘Honour’ and Tradition Bill, 2010) लेकर आई थी।
  • बिल के महत्त्वपूर्ण पक्ष:
    ► इस बिल में किन्हीं दंपती के विवाह को अस्वीकार करने के उद्देश्य से किसी भी समुदाय या गाँव की सभा जैसे कि खाप पंचायत के आयोजन पर प्रतिबंध लगाने की बात शामिल है।साथ ही इसमें नवविवाहित जोड़ों के बहिष्कार पर प्रतिबंध तथा उनकी ► सामाजिक-आर्थिक सुरक्षा सुनिश्चित करना भी शामिल है और स्वयं को निर्दोष साबित करने का दायित्व आरोपी का होगा, इसकी भी व्यवस्था की गई है।
  • बिल का महत्त्व:
    ► अनुच्छेद 19 और 21 के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और व्यक्तिगत पसंद की स्वतंत्रता का सुदृढ़ीकरण सुनिश्चित हुआ।
    ► यह निश्चित रूप से देश के सामाजिक-आर्थिक विकास में महिलाओं की समान भागीदारी सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण साबित हुआ है।

निष्कर्ष:

  • मीडिया को समाज को जागरूक बनाने में अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभानी होगी, साथ ही लोगों को अधिक-से-अधिक साक्षर बनाने पर ज़ोर देना होगा।
  • दरअसल, देश में ऑनर किलिंग पर अंकुश लगाने के मामले में अदालतों ने महत्त्वपूर्ण कार्य किया है, जहाँ अपराधियों को मौत की सज़ा के साथ-साथ खाप पंचायतों को अवैध घोषित किया गया है।
  • हालाँकि इस तरह के अपराधों को पूरी तरह से रोकने के लिये सभी हितधारकों द्वारा सामूहिक प्रयास करने की आवश्यकता है। हमें ध्यान रखना होगा कि “सम्मान के लिये किसी की जान लेने में कोई सम्मान नहीं है”।
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