विविध
ट्रांसजेंडर होना मानसिक विकार नहीं
- 30 May 2019
- 7 min read
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organisation-WHO) ने स्वास्थ्य दिशा-निर्देशों में एक महत्त्वपूर्ण संशोधन हेतु एक प्रस्ताव पेश किया है। इसके बाद ट्रांसजेंडर होने को मानसिक विकार नहीं माना जाएगा।
ट्रांसजेंडर कौन होता है?
ट्रांसजेंडर वह व्यक्ति होता है, जो अपने जन्म से निर्धारित लिंग के विपरीत लिंगी की तरह जीवन बिताता है। जब किसी व्यक्ति के जननांगों और मस्तिष्क का विकास उसके जन्म से निर्धारित लिंग के अनुरूप नहीं होता है, महिला यह महसूस करने लगती है कि वह पुरुष है और पुरुष यह महसूस करने लगता है कि वह महिला है।
प्रमुख बिंदु
- वैश्विक स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, किसी ट्रांसजेंडर व्यक्ति को प्रकृति द्वारा प्रदत्त लैंगिकता से अलग अन्य लैंगिकता का एहसास होना कोई मानसिक बीमारी नहीं है।
- आईसीडी (इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन ऑफ डिज़ीज़) के तहत व्यक्ति की स्थिति को चिह्नित/कोडित किये जाने के बाद स्वास्थ्य संबंधी महत्त्वपूर्ण ज़रूरतें को पूरा किया जा सकता हैं। इसके अंतर्गत लिंग संबंधी विसंगतियों को यौन स्वास्थ्य स्थितियों के तहत सूचीबद्ध किया गया है।
- वैश्विक स्तर पर मानसिक विशेषज्ञों की कमी होने के कारण अक्सर ऐसा देखने को मिलता है कि अगर 10 लोग मानसिक बीमारी से ग्रसित हैं तो उनमें से 9 लोगों को आवश्यक चिकित्सीय सहायता प्राप्त नहीं हो पाती है। ऐसी स्थिति में यह एक महत्त्वपूर्ण कदम साबित होगा।
- आईसीडी-11 के मानसिक विकार खंड में एक महत्त्वपूर्ण बदलाव करते हुए मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञों के बजाय प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं द्वारा मानसिक स्वास्थ्य स्थितियों की कोडिंग के लिये कोड को जितना संभव हो सके उतना सरल बनाया जाना चाहिये।
- इस संबंध में ऐसी संभावना व्यक्त की जा रही है कि अगले तीन वर्षों में डब्ल्यूएचओ के 194 सदस्य राज्यों द्वारा ICD-11 को लागू किया जाएगा। डब्ल्यूएचओ द्वारा अपने डायग्नोस्टिक मैनुअल से ‘लिंग पहचान विकार’ को हटाने का दुनिया भर के ट्रांसजेंडर समुदाय पर एक बहुत महत्त्वपूर्ण प्रभाव होगा।
- भारत में मनोचिकित्सकों ने व्यक्तिगत स्तर पर ट्रांसजेंडर होने को मानसिक स्वास्थ्य स्थिति के रूप में मानना बंद कर दिया है। इस कदम के साथ भारत सरकार को भी चिकित्सा प्रणालियों और कानूनों में बदलाव करने की ज़रूरत है ताकि आधिकारिक तौर पर इसकी पुष्टि की जा सकें।
- भारत सरकार द्वारा यह सुनिश्चित किया जाना चाहिये कि ट्रांसजेंडरों से संबंधित कानून समग्र स्तर पर लागू हो। यह ट्रांसजेंडर समुदाय के विकास में एक मील का पत्थर साबित हो सकता है, लेकिन अभी भी इस दिशा में एक लंबा रास्ता तय करना होगा।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)
- संयुक्त राष्ट्र संघ की एक विशेष एजेंसी है, जिसका उद्देश्य अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य (Public Health) को बढ़ावा देना है।
- इसकी स्थापना 7 अप्रैल, 1948 को हुई थी। इसका मुख्यालय जिनेवा (स्विट्ज़रलैंड) में अवस्थित है।
- डब्ल्यू.एच.ओ. संयुक्त राष्ट्र विकास समूह (United Nations Development Group) का सदस्य है। इसकी पूर्ववर्ती संस्था ‘स्वास्थ्य संगठन’ लीग ऑफ नेशंस की एजेंसी थी।
- यह दुनिया में स्वास्थ्य संबंधी मामलों में नेतृत्व प्रदान करने, स्वास्थ्य अनुसंधान एजेंडा को आकार देने, नियम और मानक तय करने, प्रमाण आधारित नीतिगत विकल्प पेश करने, देशों को तकनीकी समर्थन प्रदान करने एवं स्वास्थ्य संबंधी रुझानों की निगरानी तथा आकलन करने के लिये ज़िम्मेदार है।
- यह आमतौर पर सदस्य देशों के साथ उनके स्वास्थ्य मंत्रालयों के ज़रिये जुड़कर काम करता है।
इंटरनेशनल क्लासिफिकेशन डिजीजेज (International Classification Diseases -ICD)
- ICD विश्व स्तर पर स्वास्थ्य रुझानों और आँकड़ों की पहचान करने; बीमारियों और स्वास्थ्य स्थितियों की रिपोर्टिंग के लिये अंतर्राष्ट्रीय मानकों का निर्धारण करता है।
- आसान डेटा संग्रहण, पुनर्प्राप्ति और साक्ष्य आधारित निर्णय लेने के लिये स्वास्थ्य जानकारियों का विश्लेषण करता है।
- अस्पतालों और स्वास्थ्य संबंधित संस्थाओं तथा देशों के बीच स्वास्थ्य जानकारियों को साझा करने और उनकी तुलना करने जैसे कार्यों का क्रियान्वयन करता है।
सामाजिक तौर पर बहिष्कृत
- भारत में ट्रांसजेंडरों को सामाजिक तौर पर बहिष्कृत कर दिया जाता है। इसका मुख्य कारण उन्हें न तो पुरुषों की श्रेणी में रखा जा सकता है और न ही महिलाओं में, जो लैंगिक आधार पर विभाजन की पुरातन व्यवस्था का अंग है।
- इसका नतीज़ा यह होता है कि वे शिक्षा हासिल नहीं कर पाते हैं, बेरोज़गार रहते हैं। सामान्य लोगों के लिये उपलब्ध चिकित्सा सुविधाओं का लाभ तक नहीं उठा पाते हैं। इसके अलावा वे अनेक सुविधाओं से भी वंचित रह जाते हैं।