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डेली न्यूज़

  • 06 Jul, 2023
  • 44 min read
शासन व्यवस्था

वैश्विक स्तर पर असुरक्षित पेयजल, साफ-सफाई और स्वच्छता का बढ़ता बोझ

प्रिलिम्स के लिये:

वॉश, विश्व स्वास्थ्य संगठन, सतत् विकास लक्ष्य 

मेन्स के लिये:

असुरक्षित वॉश प्रथाओं का प्रभाव, वॉश की अवधारणा और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिये इसका महत्त्व, सुरक्षित जल एवं स्वच्छता तक सार्वभौमिक पहुँच प्राप्त करने में चुनौतियाँ तथा अवसर

चर्चा में क्यों?  

विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक नई रिपोर्ट, “बर्डन ऑफ डिज़ीज़ एट्रीब्यूटेबल टू अनसेफ ड्रिंकिंग वाटर, सैनिटेशन एंड हाईजीन: 2019 अपडेट के अनुसार, असुरक्षित पेयजल, साफ-सफाई और स्वच्छता (WASH) प्रथाओं के गंभीर परिणाम देखने को मिले हैं जिसके परिणामस्वरूप जानमाल की भारी क्षति हुई है तथा बड़े पैमाने पर बीमारियों का बोझ भी बढ़ा है। 

असुरक्षित वॉश प्रथाओं का प्रभाव: 

  • मृत्यु दर: 
    • वर्ष 2019 में असुरक्षित WASH/वॉश प्रथाओं के कारण पाँच वर्ष से कम उम्र के कुल 3,95,000 बच्चों की मौत हुई।
    • मौतों का विवरण:
      • डायरिया के कारण हुई मौतों की संख्या 2,73,000 थी।
      • तीव्र श्वसन संक्रमण के कारण 1,12,000 मौतें हुईं।
      • WASH सेवाओं तक अपर्याप्त पहुँच के परिणामस्वरूप विश्व स्तर पर कम-से-कम 1.4 मिलियन मौतें हुईं। 
  • व्यापक रोग प्रभाव:  
    • डायरिया संबंधी रोगों के कारण दस लाख से अधिक मौतें हुईं और 55 मिलियन विकलांगता-समायोजित जीवन वर्ष (Disability-Adjusted Life Years- DALYs) दर्ज हुए।
      • DALY समय से पहले मृत्यु के कारण खोए हुए जीवन के वर्षों की संख्या और बीमारी या चोट के कारण विकलांगता के साथ रहने वाले वर्षों की एक भारित माप है।
    • एक अनुमान के अनुसार, वैश्विक स्तर पर 1.5 अरब लोग मृदा-संचारित हेल्मिंथियासिस (STH) से प्रभावित हैं, जो खराब स्वच्छता प्रथाओं के कारण फैलता है।
      • STH मानव मल में अंडों द्वारा फैलता है, जो बदले में उन क्षेत्रों में मृदा को दूषित करता है जहाँ स्वच्छता की स्थिति खराब है।
    • अपर्याप्त WASH कुपोषण से जुड़ी बीमारी के बोझ में 10% का योगदान देता है।
  • वॉश पहुँच में वैश्विक असमानताएँ:
    • वर्तमान में वैश्विक स्तर पर 771 मिलियन लोगों की पहुँच सुरक्षित पेयजल तक नहीं है। 
    • लगभग 1.7 बिलियन लोगों की उचित स्वच्छता सुविधाओं तक पहुँच नहीं है।
  • निम्न और उच्च आय वाले देशों पर प्रभाव: 
    • हाथों की अच्छी तरह से साफ-सफाई न होने या लापरवाही के कारण अफ्रीका और दक्षिण-पूर्व एशिया में सभी आयु समूहों में डायरिया से संबंधित लगभग 3,84,000 मौतें हुईं।
    • यहाँ तक कि संयुक्त राज्य अमेरिका जैसे उच्च आय वाले देशों ने भी जोखिमों का अनुभव किया, जिसमें वर्ष 2019 में 33,200 मौतें डायरिया रोग से और 3,17,921 मौतें तीव्र श्वसन संक्रमण के कारण हुईं।

असुरक्षित वॉश प्रथाएँ: 

  • प्रदूषित या अनुपचारित स्रोतों, जैसे- प्रदूषित नदियों या स्थिर तालाबों के जल का पेयजल के रूप में उपयोग।
  • शौचालयों, प्रसाधनों एवं सीवेज प्रणालियों की अनुपलब्धता अथवा अनुचित रख-रखाव के परिणामस्वरूप मानव अपशिष्ट का अनुचित निपटान।
  • साबुन से हाथ न धोना, अनुचित भोजन प्रबंधन और बुनियादी स्वच्छता के बारे में जागरूकता की कमी।
  • शौचालय अथवा प्रसाधन सामग्री का उपयोग किये बिना खुले में शौच करने की प्रथा के कारण पर्यावरण, जल स्रोतों और भोजन का प्रदूषित होना।
  • ठोस अपशिष्ट का अपर्याप्त निपटान और खतरनाक अपशिष्ट  का अनुचित प्रबंधन जल स्रोतों, मृदा को दूषित कर सकता है एवं रोग फैलाने वाले सदिशों  के लिये प्रजनन स्थल बनना

वॉश/Wash: 

  • परिचय: 
    • वॉश एक संक्षिप्त शब्द है जो जल, साफ-सफाई और स्वच्छता से संबंधित क्षेत्रों के लिये प्रयुक्त होता है।
    • WHO की वॉश रणनीति सदस्य राज्यों के संकल्प (WHA 64.4) और सतत् विकास के लिये वर्ष 2030 एजेंडा के प्रत्युत्तर में विकसित की गई है।
    • यह WHO की 13वीं सामान्य कार्ययोजना वर्ष 2019-2023 का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) के साथ एक अरब लोगों और उन्नत आपातकालीन योजना तथा प्रतिक्रिया जैसी बहुक्षेत्रीय गतिविधियों के माध्यम से तीन अरब लोगों के स्वास्थ्य में सुधार करना है।
    • यह जुलाई 2010 में संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा अपनाए गए सुरक्षित पेयजल एवं स्वच्छता के मानव अधिकारों की प्रगतिशील प्राप्ति की आवश्यकता को भी शामिल करता है।
  • सुरक्षित WASH का महत्त्व: 
    • स्वच्छ जल, उचित साफ-सफाई एवं स्वच्छता तक पहुँच बीमारी, कुपोषण और मृत्यु दर के जोखिम को कम करती है।
    • सुरक्षित WASH सुविधाएँ बच्चे और मातृ स्वास्थ्य में योगदान देती हैं, सुरक्षित प्रसव प्रथाओं को सुनिश्चित करती हैं तथा बच्चे की वृद्धि एवं विकास संबंधी समस्याओं को दूर करती हैं।
    • लैंगिक आधारित WASH सेवाएँ महिलाओं और बालिकाओं को सशक्त बनाती हैं। इसके साथ ही लैंगिक समानता एवं गरिमा को बढ़ावा देती हैं।
    • सतत् WASH प्रथाएँ जल संसाधनों की रक्षा, पर्यावरण का संरक्षण तथा जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करती हैं।
    • सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने तथा स्वस्थ व अधिक न्यायसंगत समुदायों के निर्माण हेतु सुरक्षित WASH अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
  • WHO की WASH रणनीति के सिद्धांत: 
    • WHO द्वारा प्रासंगिक क्षेत्रों में उच्च सार्वजनिक स्वास्थ्य लाभ वाले कार्यों को प्राथमिकता देना।
    • सुरक्षित WASH और प्रकोप प्रतिक्रिया के लिये स्वास्थ्य क्षेत्र की क्षमताओं को सुदृढ़ करना। 
    • WASH को स्वास्थ्य, जलवायु, पोषण और मानवाधिकारों पर SDG के साथ संरेखित करना।
    • उच्च गुणवत्ता वाले वैज्ञानिक एवं साक्ष्य आधारित WASH मानदंडों और प्रक्रियाओं का उपयोग करना।
    • राष्ट्रीय WASH मानकों और लक्ष्यों में वृद्धिशील सुधार को बढ़ावा देना।
    • मौजूदा क्षेत्रीय WASH नीतिगत ढाँचे और लक्ष्यों का लाभ उठाना। 
    • सरकारी संस्थानों के माध्यम से मज़बूत व स्थायी परिवर्तन को प्रोत्साहित करना। 
    • स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं सहित WASH क्षेत्र में स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं के समाधान के लिये भागीदारों को शामिल करना।
  • WASH को SDGs के साथ जोड़ना: 
    • लक्ष्य 3: अच्छा स्वास्थ्य और कल्याण- बीमारियों के प्रसार को रोकने तथा अच्छे स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिये WASH आवश्यक है। 
    • लक्ष्य 6: स्वच्छ जल और स्वच्छता- यह लक्ष्य विशेष रूप से स्वच्छ पेयजल तथा पर्याप्त स्वच्छता सुविधाओं तक पहुँच की आवश्यकता को संबोधित करता है।
    • लक्ष्य 12: उत्तरदायी उपभोग और उत्पादन- जल संसाधनों की उत्तरदायित्वपूर्ण खपत और उत्पादन सुनिश्चित करने के लिये WASH महत्त्वपूर्ण है।
    • लक्ष्य 13: जलवायु कार्रवाई- जलवायु परिवर्तन सुरक्षित पेयजल, साफ-सफाई और स्वच्छता तक पहुँच को प्रभावित कर सकता है, जिससे WASH जलवायु कार्रवाई का एक महत्त्वपूर्ण घटक बन गया है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. "जल, स्वच्छता और स्वच्छता आवश्यकताओं को संबोधित करने वाली नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये लाभार्थी वर्गों की पहचान को प्रत्याशित परिणामों के साथ समन्वित किया जाना है।" WASH योजना के संदर्भ में कथन की जाँच कीजिये।(2017) 

स्रोत: डाउन टू अर्थ


सामाजिक न्याय

मानव तस्करी के पीड़ितों के लिये पुनर्वास योजना

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो, भारत के संविधान के अनुच्छेद 23 और 24, अनैतिक व्यापार (रोकथाम) अधिनियम, 1956 (ITPA), बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006, अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन, यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (POCSO) अधिनियम, 2012 

मेन्स के लिये:

भारत में मानव तस्करी की स्थिति, मानव तस्करी के प्रमुख कारण और प्रभाव

चर्चा में क्यों?  

भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय ने एक योजना को मंज़ूरी दी है जिसका उद्देश्य राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों, विशेष रूप से अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं वाले राज्यों में मानव तस्करी के पीड़ितों के लिये संरक्षण और पुनर्वास गृह स्थापित करने हेतु वित्तीय सहायता प्रदान करना है।

योजना के प्रमुख प्रावधान: 

  • संरक्षण और पुनर्वास गृह के लिये वित्तीय सहायता: यह योजना वित्तीय सहायता के साथ ही  पुनर्वास गृह, आश्रय, भोजन, कपड़े, परामर्श, प्राथमिक स्वास्थ्य सुविधाएँ तथा अन्य आवश्यक दैनिक आवश्यकताओं जैसी पीड़ितों, विशेष रूप से नाबालिगों और युवा महिलाओं की विशिष्ट ज़रूरतों को पूरा करेगी।
  • मानव तस्करी विरोधी इकाइयों (AHTU) को सुदृढ़ करना: संरक्षण और पुनर्वास गृहों की स्थापना के अतिरिक्त सरकार ने सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों के प्रत्येक ज़िले में मानव तस्करी विरोधी इकाइयों को सुदृढ़ करने हेतु निर्भया फंड से धन आवंटित किया है।
    • BSF (सीमा सुरक्षा बल) और SSB (सशस्त्र सीमा बल) जैसे सीमा सुरक्षा बलों में कार्यात्मक AHTU सहित सभी राज्यों एवं केंद्रशासित प्रदेशों को यह फंड प्रदान किया गया है। 
    • वर्तमान में देश भर में सीमा सुरक्षा बल में 30 सहित कुल 788 कार्यात्मक मानव तस्करी विरोधी इकाइयाँ शामिल हैं

भारत में मानव तस्करी की स्थिति:  

  • परिचय:  
    • मानव तस्करी एक वैश्विक मुद्दा है जो कई देशों को प्रभावित करता है और भारत कोई अपवाद नहीं है।
    • बड़ी आबादी, आर्थिक असमानता और जटिल सामाजिक परिस्थितियों के कारण भारत विभिन्न प्रकार की मानव तस्करी का केंद्र बन गया है। 
  • आँकड़े:  
    • राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के आँकड़ों के अनुसार, वर्ष 2022 में मानव तस्करी के 2,189 मामले दर्ज किये गए, इनमें पीड़ितों की संख्या 6,533 थी।
      • पीड़ितों में 4,062 महिलाएँ और 2,471 पुरुष थे। इनमें नाबालिगों की संख्या 2,877 थी।
      • जबकि वर्ष 2021 में लड़कियों (1,307) की तुलना में अधिक कम उम्र के लड़कों (1,570) की तस्करी की गई, लेकिन इस पैटर्न में आगे बदलाव आया और पाया गया कि महिलाओं की संख्या पुरुषों की तुलना में बढ़ रही है।
    • AHTU द्वारा दर्शाए गए आँकड़ों के अनुसार, कुछ राज्यों में मानव तस्करी के अधिक मामले दर्ज किये गए हैं:
      • वर्ष 2021 में तेलंगाना, महाराष्ट्र और असम में संबंधित AHTU में सबसे अधिक मामले दर्ज किये गए।
      • अपनी भौगोलिक स्थिति और अन्य कारकों के कारण ये राज्य सीमा पार तस्करी के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील हैं, इन पर विशेष ध्यान देने तथा इन्हें पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।
      • भारत के पड़ोसी देश अक्सर उन तस्करों के लिये स्रोत के रूप में काम करते हैं जो रोज़गार अथवा बेहतर जीवन स्तर का झूठा वादा करके महिलाओं और लड़कियों का शोषण करते हैं। 
  • मानव तस्करी के विभिन्न रूप: 
    • जबरन श्रम: इसमें पीड़ितों को कृषि, निर्माण कार्य, घरेलू काम और विनिर्माण जैसे उद्योगों सहित शोषणकारी परिस्थितियों में काम करने के लिये मजबूर किया जाता है।
    • यौन शोषण: इसमें वेश्यावृत्ति और अश्लील साहित्य सहित व्यावसायिक यौन शोषण के लिये व्यक्तियों, विशेष रूप से महिलाओं एवं बच्चों की तस्करी की जाती है।
    • बाल तस्करी: इसमें बाल श्रम, जबरन भीख मंगवाना, बाल विवाह, गोद लेने में घोटाले और यौन शोषण सहित विभिन्न उद्देश्यों के लिये बच्चों की तस्करी शामिल है।
    • बंधुआ मज़दूरी: इसमें ऋण चक्र में फँसे लोगों को ऋण चुकाने के लिये काम करने के लिये मजबूर किया जाता है और यह शोषणकारी प्रथाओं के कारण बढ़ता रहता है।
    • मानव अंग तस्करी: अंगों की तस्करी में प्रत्यारोपण के लिये किडनी, लीवर और कॉर्निया जैसे अंगों का अवैध व्यापार शामिल है।
  • भारत में प्रासंगिक कानून और अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन:
    • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 23 और 24:
      • अनुच्छेद 23 मानव तस्करी और बेगारी (बिना भुगतान के जबरन श्रम) पर रोक लगाता है।
      • अनुच्छेद 24,14 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को कारखानों और खदानों जैसे  खतरनाक रोज़गार में नियोजित करने से रोकता है।
    • भारतीय दंड संहिता (IPC) धारा:
      • IPC की धारा 370 और 370A मानव तस्करी के खतरे का मुकाबला करने के लिये व्यापक उपाय प्रदान करती है, जिसमें शारीरिक शोषण या किसी भी प्रकार के यौन शोषण, दासता या अंगों को जबरन हटाने सहित किसी भी रूप में शोषण के लिये बच्चों की तस्करी शामिल है।
      • धारा 372 और 373 वेश्यावृत्ति के उद्देश्य से लड़कियों की खरीद-फरोख्त से संबंधित हैं।
    • अन्य कानून: 
    • अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन: 
      • अंतर्राष्ट्रीय संगठित अपराध पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCTOC) महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकने, शोषणकारियों और अपराधियों को दंडित करने के लिये एक प्रोटोकॉल है (भारत इसका हस्ताक्षरकर्ता है)।
      • वेश्यावृत्ति के लिये महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकने तथा मुकाबला करने पर SSARC अभिसमय  (भारत इसका हस्ताक्षरकर्ता है)।

मानव तस्करी के प्रमुख कारण और प्रभाव: 

  • कारण:  
    • सामाजिक आर्थिक कारक: गरीबी, बेरोज़गारी और आर्थिक अवसरों की कमी असुरक्षा पैदा करती है, जो व्यक्तियों को निराशाजनक स्थितियों में धकेल देती है जिसके कारण उनकी तस्करी होने की अधिक संभावना होती है।
    • लैंगिक असमानता और भेदभाव: महिलाओं और लड़कियों के खिलाफ हिंसा, लैंगिक असमानता एवं भेदभाव के कारण तस्करी के लिये उनकी भेद्यता बढ़ जाती है।
      • इसमें दहेज से संबंधित हिंसा, बाल विवाह और शिक्षा तक पहुँच की कमी जैसे मुद्दे शामिल हैं। 
    • राजनीतिक अस्थिरता और संघर्ष: राजनीतिक अस्थिरता, सैन्य संघर्ष और बड़े पैमाने पर प्रवासन आदि सभी ऐसा वातावरण बनाते हैं जो मानव तस्करी के लिये अनुकूल होता है क्योंकि ऐसी घटनाओं के पीड़ितों की स्थिति असहाय और असुरक्षित हो जाती है।
    • भ्रष्टाचार और संगठित अपराध: कानून प्रवर्तन, आव्रजन और न्यायिक प्रणालियों में व्यापक भ्रष्टाचार के कारण तस्कर बिना किसी डर के कार्य करते हैं, जिससे मामलों का पता लगाना, जाँच करना और प्रभावी ढंग से मुकदमा चलाना मुश्किल हो जाता है।
  • प्रभाव:  
    • शारीरिक और मनोवैज्ञानिक आघात: तस्करी पीड़ित लोग शारीरिक और मनोवैज्ञानिक दुर्व्यवहार, हिंसा और आघात सहन करते हैं ।  
      • वे अक्सर चोटों, यौन संचारित संक्रमणों, कुपोषण और शारीरिक थकावट का सामना करते हैं। 
      • इसके अलावा मनोवैज्ञानिक प्रभाव में दुश्चिंता, अवसाद, उत्तर-अभिघातजन्य तनाव विकार (Post Traumatic Stress Disorder- PTSD) और दूसरों पर विश्वास की हानि शामिल है।
    • मानवाधिकारों का उल्लंघन: मानव तस्करी मूलतः पीड़ितों के मानवाधिकारों का उल्लंघन करती है। यह उन्हें उनकी स्वतंत्रता, सम्मान और सुरक्षा से वंचित करता है।
    • आर्थिक शोषण: जिन लोगों की तस्करी की जाती है उन्हें कठिन श्रम परिस्थितियों में लंबे घंटों तक कार्य करवाया जाता है और बहुत कम या बिल्कुल भी वेतन नहीं दिया जाता है।
      • पीड़ितों के लिये शोषण से बचना बेहद मुश्किल हो सकता है क्योंकि वे कर्ज के जाल में फँस जाते हैं, जहाँ उन्हें लगातार बढ़ते कर्ज को चुकाने के लिये कार्य करना पड़ता है।
    • सामाजिक ताने-बाने का विघटन: मानव तस्करी समुदायों और परिवारों के सामाजिक ताने-बाने को बाधित करती है।
      • यह परिवारों को तोड़ देती है क्योंकि व्यक्तियों को अपने प्रियजनों से जबरन अलग कर दिया जाता है। इस उथल-पुथल के कारण समुदायों के अंतर्गत रिश्ते तनावपूर्ण हो जाते हैं और सामाजिक समर्थन का अभाव देखा जाता है।

आगे की राह 

  • विधि और कानून प्रवर्तन को मज़बूत करना: तस्करी विरोधी मज़बूत कानून बनाने और लागू करने की आवश्यकता है जो मानव तस्करी के सभी रूपों को अपराध घोषित करे तथा अपराधियों के लिये पर्याप्त दंड का प्रावधान करे।
    • साथ ही तस्करी के मामलों की पहचान करने तथा प्रभावी ढंग से प्रतिक्रिया व्यक्त करने के लिये कानून प्रवर्तन एजेंसियों, न्यायपालिका और सीमा नियंत्रण अधिकारियों के लिये प्रशिक्षण कार्यक्रमों को बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • तकनीकी समाधान: बड़े डेटा सेट का विश्लेषण, तस्करी के रुझानों की पहचान और संभावित हॉटस्पॉट की भविष्यवाणी करने के लिये उन्नत डेटा एनालिटिक्स टूल के साथ कृत्रिम बुद्धिमत्ता एल्गोरिदम विकसित करने की आवश्यकता है।
    • ब्लॉकचेन प्रौद्योगिकी का उपयोग आपूर्ति शृंखलाओं में पारदर्शिता बढ़ाने के साथ कृषि और परिधान विनिर्माण जैसे तस्करी के खतरे वाले उद्योगों में बलपूर्वक श्रम के उपयोग को रोकने के लिये भी किया जा सकता है। 
  • अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भारत, मानव तस्करी से निपटने में नवीन दृष्टिकोण, सर्वोत्तम प्रथाओं और सफलता की कहानियों को साझा करने के लिये अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के साथ ज्ञान विनिमय प्लेटफाॅर्मों की सुविधा प्रदान कर सकता है।
    • नवोन्मेषी समाधानों को संयुक्त रूप से विकसित करने और लागू करने के लिये देशों, गैर-सरकारी संगठनों, शिक्षाविदों के साथ निजी क्षेत्रों के बीच साझेदारी को बढ़ावा देने की भी आवश्यकता है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. विश्व के दो सबसे बड़े अवैध अफीम उत्पादक राज्यों से भारत की निकटता ने उसकी आंतरिक सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है। मादक पदार्थों की तस्करी और अन्य अवैध गतिविधियों जैसे- अवैध हथियार, मनी लॉन्ड्रिंग और मानव तस्करी के बीच संबंधों की व्याख्या कीजिये। इसे रोकने के लिये क्या प्रति-उपाय किये जाने चाहिये? (2018) 

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

एनीमिया और मातृ स्वास्थ्य

प्रिलिम्स के लिये:

एनीमिया और मातृ स्वास्थ्य, एनीमिया, PPH, एनीमिया मुक्त भारत

मेन्स के लिये:

एनीमिया और मातृ स्वास्थ्य

चर्चा में क्यों?  

हाल ही में द लांसेट जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन, जिसका शीर्षक है- मातृ एनीमिया और प्रसवोत्तर रक्तस्राव का जोखिम: WOMAN-2 परीक्षणों के डेटा के एक समूह विश्लेषण में पाया गया है कि एनीमिया और प्रसवोत्तर रक्तस्राव (PPH) के बीच एक मज़बूत संबंध है।

  • इसमें वर्ल्ड मैटरनल एंटीफाइब्रिनोलिटिक-2 (WOMAN-2) परीक्षण के डेटा का इस्तेमाल किया। इस परीक्षण में पाकिस्तान, नाइजीरिया, तंज़ानिया और ज़ाम्बिया के अस्पतालों में सामान्य प्रसव के माध्यम से शिशु को जन्म देने वाली मध्यम या गंभीर एनीमिया से पीड़ित महिलाओं को नामांकित किया गया।

प्रसवोत्तर रक्तस्राव (PPH): 

  • PPH प्रसवोत्तर गंभीर रक्तस्राव है।
  • WHO के अनुसार, प्रसवोत्तर रक्तस्राव दो प्रकार के हैं, एक सामान्य रक्तस्राव (कम-से-कम 500 मिली. का अनुमानित रक्तस्राव) और परिकलित/कैलकुलेटेड प्रसवोत्तर रक्तस्राव (1,000 मिली. या उससे अधिक रक्तस्राव)।
  • यह एक गंभीर स्थिति है जिससे मृत्यु हो सकती है। प्रसवोत्तर रक्तस्राव के अन्य लक्षण हैं चक्कर आना, बेहोशी महसूस होना और धुँधली दृष्टि। 

अध्ययन के निष्कर्ष:

  • एनीमिया और PPH: 
    • मध्यम एनीमिया वाली महिलाओं के लिये औसत अनुमानित रक्त हानि 301 मिली. और गंभीर एनीमिया वाली महिलाओं के लिये 340 मिली. थी।
    • 7.0% महिलाओं में नैदानिक प्रसवोत्तर रक्तस्राव हुआ। मध्यम एनीमिया वाली महिलाओं में नैदानिक प्रसवोत्तर रक्तस्राव का जोखिम 6.2% और गंभीर एनीमिया वाली महिलाओं में 11.2% था।
    • यह डेटा 10,620 महिलाओं के परीक्षण पर आधारित है।
    • मध्यम एनीमिया की तुलना में गंभीर एनीमिया के कारण मृत्यु या लगभग इसके घटित होने की संभावना सात गुना अधिक होती है।
  • एनीमिया और गर्भावस्था: 
    • विश्व में प्रजनन आयु की आधे अरब से अधिक महिलाएँ एनीमिया से पीड़ित हैं।
    • प्रत्येक वर्ष लगभग 70,000 प्रसवोत्तर मृत्यु होती है, जो मुख्यतः निम्न और मध्यम आय वाले देशों में होती हैं।
  • रक्त की हानि और सदमा: 
    • कम हीमोग्लोबिन मान रक्त हानि और नैदानिक PPH में वृद्धि के साथ संबद्ध है।
    • एनीमिया से पीड़ित महिलाओं में ऑक्सीजन लेने की क्षमता कम हो जाती है, साथ ही उन्हें सदमा लगने की संभावना अधिक होती है।
    • प्रसवोत्तर रक्तस्राव का नैदानिक निदान खराब मातृ कार्यप्रणाली से संबद्ध है।

PPH को कम करने के लिये WHO की सिफारिशें:

  • PPH को रोकने के लिये कुछ दवाओं जैसे- ऑक्सीटोसिन, ओरल मिसोप्रोस्टोल दवा आदि का उपयोग करने का सुझाव दिया जाता है।
    • ऑक्सीटोसिन गर्भाशय के संकुचन को उत्तेजित करने और अत्यधिक रक्तस्राव के जोखिम को कम करने के लिये आमतौर पर अनुशंसित दवा है। 
  • एक साथ आवश्यक देखभाल प्रारंभ करते समय सभी नवजात जन्मों के लिये लेट कॉर्ड क्लैम्पिंग (जन्म के 1 से 3 मिनट बाद की जाने वाली) की सिफारिश की जाती है।
    • जब तक नवजात शिशु की साँस न रुक जाए (बच्चे के मस्तिष्क और अन्य अंगों को पर्याप्त ऑक्सीजन एवं पोषक तत्त्व न मिलने की स्थिति में) तब तक प्रारंभिक कॉर्ड क्लैम्पिंग (<जन्म के 1 मिनट बाद) की अनुशंसा नहीं की जाती है।

एनीमिया: 

  • एनीमिया की स्थिति: 
    • यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या या उनकी ऑक्सीजन ले जाने की क्षमता शारीरिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अपर्याप्त है जो उम्र, लिंग, ऊँचाई, धूम्रपान और गर्भावस्था की स्थिति के अनुसार भिन्न होती है। 
  • कारण: 
    • आयरन की कमी एनीमिया का सबसे आम कारण है। हालाँकि अन्य स्थितियाँ जैसे फोलेट, विटामिन B12 और विटामिन A की कमी, पुरानी सूजन, परजीवी संक्रमण तथा वंशानुगत विकार आदि सभी एनीमिया का कारण बन सकते हैं।
  • भारत में स्थिति: 
    • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण 5 (वर्ष 2019-21) के अनुसार, एनीमिया की व्यापकता छह समूहों- पुरुषों (15-49 वर्ष) में 25.0% और महिलाओं (15-49 वर्ष) में 57.0%, किशोर लड़कों में 31.1% (15-19 वर्ष), किशोर लड़कियों में 59.1%, गर्भवती महिलाओं (15-49 वर्ष) में 52.2% तथा बच्चों (6-59 महीने) में 67.1% है।

एनीमिया से निपटने हेतु सरकारी पहल: 

  • एनीमिया मुक्त भारत (AMB): इसे वर्ष 2018 में एनीमिया की गिरावट की वार्षिक दर को एक से तीन प्रतिशत अंक तक बढ़ाने हेतु राष्ट्रीय आयरन प्लस पहल (NIPI) कार्यक्रम के सघन हिस्से के रूप में आरंभ किया गया था। 
    • AMB के लिये लक्षित समूह के अंतर्गत 6-59 महीने के बच्चे, 5-9 वर्ष के बच्चे, 10-19 वर्ष की किशोर लड़कियाँ और लड़के, प्रजनन आयु (15-49 वर्ष) की महिलाएँ, गर्भवती महिलाएँ और स्तनपान कराने वाली माताएँ आती हैं।
  • साप्ताहिक आयरन और फोलिक एसिड अनुपूरण (Weekly Iron and Folic Acid Supplementation- WIFS): 
    • इस कार्यक्रम का क्रियान्वयन किशोरों और किशोरियों में एनीमिया की उच्च व्यापकता की चुनौती से निपटने के लिये किया जा रहा है।
    • WIFS हस्तक्षेप के हिस्से के रूप में आयरन फोलिक एसिड (IFA) टैबलेट सप्ताह में एक बार होने वाले पर्यवेक्षण के तहत वितरित किये जाते हैं। 
  • ब्लड बैंक का संचालन:
    • गंभीर एनीमिया के कारण होने वाली जटिलताओं से निपटने के लिये ज़िला अस्पतालों और उप-मंडलीय अस्पतालों/सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों जैसे उप-ज़िला केंद्रों में रक्त भंडारण इकाइयों की मदद ली जाती है।
  • प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA): 
    • इस योजना को एनीमिया के मामलों का पता लगाने और इलाज करने के लिये चिकित्सा अधिकारियों/OBGYN की मदद से प्रति महीने की 9 तारीख को विशेष ANC जाँच शिविर का आयोजन करने पर ध्यान केंद्रित करने के लिये शुरू किया गया है।
  • अन्य कदम: 
    • कृमि संक्रमण को नियंत्रित करने के लिये वर्ष में दो बार एल्बेंडाज़ोल की खुराक दी जाती है।
    • एनीमिया और गंभीर रूप से एनीमिया से पीड़ित गर्भवती महिलाओं के मामलों की रिपोर्टिंग तथा ट्रैकिंग के लिये स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली और मातृ शिशु ट्रैकिंग प्रणाली का क्रियान्वयन किया जा रहा है।
    • एनीमिया के लिये गर्भवती महिलाओं की सार्वभौमिक जाँच प्रसवपूर्व देखभाल का एक हिस्सा है और सभी गर्भवती महिलाओं को उप-केंद्रों तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों एवं अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं के मौजूदा नेटवर्क के माध्यम से उनको प्रसवपूर्व अवधि के दौरान आयरन व फोलिक एसिड की गोलियाँ प्रदान की जाती हैं। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रारंभिक परीक्षा:  

प्रश्न .एनीमिया मुक्त भारत रणनीति के अंतर्गत की जा रही व्यवस्थाओं के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः

1-  इसमें स्कूल जाने से पूर्व के (प्री-स्कूल) बच्चों, किशोरों और गर्भवती महिलाओं के लिये रोगनिरोधक कैल्सियम पूरकता प्रदान की जाती है।
2-  इसमें शिशु जन्म के समय देरी से रज्जु बंद करने के लिये अभियान चलाया जाता है।
3-  इसमें बच्चों और किशोरों की निर्धारित अवधियों पर कृमि-मुक्ति की जाती है।
4- इसमें मलेरिया, हीमोग्लोबिनोपैथी और फ्रलुओरोसिस पर विशेष ध्यान देने के साथ स्थानिक बस्तियों में एनीमिया के गैर-पोषण कारणों की ओर ध्यान दिलाना शामिल है।

उपर्युक्त कथनों में से कितने सही हैं?

(a) केवल एक
(b)  केवल दो
(c) केवल तीन
(d) सभी चार

उत्तर -C

स्रोत : द हिंदु


भारतीय राजव्यवस्था

मंत्री को बर्खास्त करने की राज्यपाल की शक्तियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

मंत्री को बर्खास्त करने की राज्यपाल की शक्तियाँ, अनुच्छेद 164, भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 51(1) और 51(5), प्लेजर डॉक्ट्रिन

मेन्स के लिये:

मंत्री को बर्खास्त करने की राज्यपाल की शक्तियाँ

चर्चा में क्यों? 

तमिलनाडु में राज्यपाल द्वारा एक मंत्री को बर्खास्त तथा निलंबित किये जाने के हालिया निर्णय ने संवैधानिक विवाद को जन्म दिया है। हालाँकि बाद में राज्यपाल ने अपना निर्णय बदल दिया और बर्खास्तगी आदेश को निलंबित कर दिया।

मंत्रियों को बर्खास्त करने की राज्यपाल की शक्तियाँ:

  • अनुच्छेद 164: 
    • संविधान के अनुच्छेद 164 के तहत मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा की जाती है। अन्य मंत्रियों की नियुक्ति राज्यपाल द्वारा मुख्यमंत्री की सलाह पर की जाएगी।
    • इस अनुच्छेद का तात्पर्य यह है कि राज्यपाल अपने विवेक के अनुसार किसी मंत्री को नियुक्त नहीं कर सकता है। इसलिये राज्यपाल केवल मुख्यमंत्री की सलाह पर ही किसी मंत्री को बर्खास्त कर सकता है।
  • भारत सरकार अधिनियम, 1935 का संदर्भ: 
    • भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 51(1) और 51(5) के तहत राज्यपाल के पास औपनिवेशिक शासन को संचालित करने वाले मंत्रियों को चुनने और बर्खास्त करने का पूर्ण विवेक था।  
    • हालाँकि भारत को स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद राज्यपाल की भूमिका एक संवैधानिक प्रमुख के रूप में बदल गई, जिसका काम पूरी तरह से मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद की सहायता और सलाह पर कार्य करना था। 
  • राज्यपाल के विवेक पर संवैधानिक सीमाएँ: 
    • किसी मंत्री को चुनने अथवा बर्खास्त करने की शक्ति मुख्यमंत्री के पास होती है। 
      • संविधान सभा की बहस के दौरान बी.आर. अंबेडकर ने स्पष्ट रूप से कहा कि संविधान के तहत राज्यपाल के पास कोई स्वतंत्र कार्यकारी कार्य नहीं है।
    • संविधान के अनुच्छेद 164 में "राज्यपाल की प्रसादपर्यंतता" का समावेश केवल मुख्यमंत्री की सलाह पर बर्खास्तगी आदेश जारी करने के औपचारिक कार्य को संदर्भित करता है।

नोट: प्रसादपर्यंत के सिद्धांत को भारत सरकार अधिनियम, 1935 द्वारा भारतीय संविधान में शामिल किया गया है। भारत सरकार अधिनियम, 1935 की धारा 51 राज्यपाल को मंत्रियों का चयन करने के साथ-साथ बर्खास्त करने का विवेकाधिकार प्रदान करती है। लेकिन संविधान के अनुच्छेद 164 का मसौदा तैयार किये जाने के बाद "चयनित", "बर्खास्तगी" और "विवेक" शब्द हटा दिये गए। यह एक अहम कदम था जिसने यह स्पष्ट किया कि संविधान राज्यपाल को किसी मंत्री को चुनने अथवा बर्खास्त करने का कोई विवेकाधिकार नहीं देता है। 

राज्यपाल की शक्तियों का न्यायिक स्पष्टीकरण:  

  • शमशेर सिंह और अन्य बनाम पंजाब राज्य (वर्ष 1974):
    • उच्चतम न्यायालय ने घोषणा की कि राष्ट्रपति और राज्यपाल, जिनके पास संविधान के अंतर्गत कार्यकारी शक्तियाँ हैं, को कुछ असाधारण स्थितियों को छोड़कर अपनी औपचारिक संवैधानिक शक्तियों का प्रयोग केवल अपने मंत्रियों की सलाह से करना चाहिये।
  • नबाम रेबिया बनाम डिप्टी स्पीकर (वर्ष 2015):
    • उच्चतम न्यायालय  ने फैसला सुनाया है कि राज्यपाल चुनी हुई सरकारों के पतन का कारण नहीं बन सकते। इसने शमशेर सिंह मामले में पिछले फैसले की पुष्टि की और इस बात पर ज़ोर दिया कि राज्यपाल की विवेकाधीन शक्तियाँ अनुच्छेद 163(1) के प्रावधानों तक सीमित हैं
      • अनुच्छेद 163(1) के अनुसार, राज्यपाल को अपने कर्तव्यों के पालन में मुख्यमंत्री की अध्यक्षता वाली मंत्रिपरिषद द्वारा सहायता और सलाह दी जाएगी, सिवाय इसके कि वह इस संविधान के अनुसार अपने कर्तव्यों या उनमें से किसी का पालन करने के लिये बाध्य है।

किसी मंत्री की बर्खास्तगी के मुद्दे से संबंधित चिंताएँ: 

  • संवैधानिक दुस्साहस: 
    • किसी मंत्री को हटाना नैतिक निर्णय का मामला है, कानूनी आवश्यकता का नहीं। मुख्यमंत्री की अनुशंसा के बिना किसी मंत्री को बर्खास्त करने का राज्यपाल का निर्णय एक संवैधानिक दुस्साहस है।
  • गलत मिसाल कायम करता है: 
    •  राज्य के मुख्यमंत्री की सिफारिश के बिना किसी सरकार के मंत्री को बर्खास्त करने का यह अभूतपूर्व और जान-बूझकर उकसाने वाला कृत्य एक मिसाल कायम कर सकता है, साथ ही यह संघीय व्यवस्था को खतरे में डालकर राज्य सरकारों को अस्थिर करने की क्षमता रखता है।
  • संवैधानिक व्यवस्था का पतन: 
    • यदि राज्यपालों को मुख्यमंत्री की जानकारी और अनुशंसा के बिना व्यक्तिगत तौर पर मंत्रियों को बर्खास्त करने की शक्ति का प्रयोग करने की अनुमति दी जाती है, तब पूरी संवैधानिक व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी।

निष्कर्ष:

  • एक विधानमंडल को राज्यपाल द्वारा शक्तियों के प्रयोग के लिये स्पष्ट दिशा-निर्देश स्थापित करने चाहिये।
  • भारत में संसदीय लोकतंत्र के रूप में संसद के अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिये, लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित राज्य विधानमंडल की भी समान भूमिका और महत्त्व होना चाहिये।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रारंभिक परीक्षा:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सी किसी राज्य के राज्यपाल को दी गई विवेकाधीन शक्तियाँ हैं? (2014)

  1. भारत के राष्ट्रपति को राष्ट्रपति शासन अधिरोपित करने के लिये रिपोर्ट भेजना
  2. मंत्रियों की नियुक्ति करना 
  3. राज्य विधानमंडल द्वारा पारित कतिपय विधेयकों को भारत के राष्ट्रपति के विचार के लिये  आरक्षित करना
  4. राज्य सरकार के कार्य संचालन के लिये नियम बनाना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 1 और 3 
(c) केवल 2, 3 और 4 
(d) 1, 2, 3 और 4 

उत्तर: (b) 


मेन्स: 

प्रश्न. क्या उच्चतम न्यायालय का निर्णय (जुलाई 2018) दिल्ली के उपराज्यपाल और निर्वाचित सरकार के बीच राजनैतिक कशमकश को निपटा सकता है? परीक्षण कीजिये। (2018)

प्रश्न. राज्यपाल द्वारा विधायी शक्तियों के प्रयोग की आवश्यक शर्तों का विवेचन कीजिये। विधायिका के समक्ष रखे बिना राज्यपाल द्वारा अध्यादेशों के पुनः प्रख्यापन की वैधता की विवेचना कीजिये। (2022)

स्रोत: द हिंदू 


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