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डेली न्यूज़

  • 06 Jun, 2023
  • 75 min read
सामाजिक न्याय

भारत की एनीमिया नीति पर पुनर्विचार

प्रिलिम्स के लिये:

राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS), WHO, एनीमिया मुक्त भारत, प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA)

मेन्स के लिये:

महिलाओं, स्वास्थ्य एवं सरकारी नीतियों और हस्तक्षेपों से संबंधित मुद्दे

चर्चा में क्यों? 

एनीमिया नीति पर भारत पुनर्विचार कर रहा है तथा एनीमिया/रक्ताल्पता प्रसार के अनुमान को राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) से आहार और बायोमार्कर सर्वेक्षण (Diet and Biomarkers Survey- DABS-I) में स्थानांतरित कर रहा है।

  • देश में एनीमिया के बढ़ते खतरे को देखते हुए NFHS में हीमोग्लोबिन स्तर के आकलन की सटीकता के विषय में चिंता जताए जाने के बाद यह फैसला आया है।l

एनीमिया से संबंधित प्रमुख बिंदु: 

  • एनीमिक स्थिति
    • यह एक ऐसी स्थिति है जिसमें शारीरिक ज़रूरतों को पूरा करने के लिये लाल रक्त कोशिकाओं की संख्या या उनकी ऑक्सीजन-वहन क्षमता अपर्याप्त होती है, जो उम्र, लिंग, ऊँचाई, धूम्रपान और गर्भावस्था की स्थिति में भिन्न हो सकती है।
  • कारण:  
    • आयरन की कमी एनीमिया का सबसे आम कारण है। हालाँकि अन्य स्थितियाँ, जैसे- फोलेट, विटामिन B12 और विटामिन A की कमी, पुराना सूजन, परजीवी संक्रमण और आनुवंशिक विकार आदि एनीमिया का कारण हो सकते हैं।
      • इसकी गंभीरता थकान, कमज़ोरी, चक्कर आना और उनींदापन जैसी स्थिति उत्पन्न करती है। इसकी वजह से विशेष रूप से गर्भवती महिलाओं और बच्चों में अधिक कमज़ोरी देखी जाती है।
  • भारत में एनीमिया का बोझ:  
    • NFHS-5 (2019-21) ने भारत में एनीमिया के खतरे के विषय में उल्लेखनीय वृद्धि का खुलासा किया, जिसमें 57% महिलाएँ (15-49 आयु वर्ग) और 67% बच्चे (6-59 महीने) एनीमिया से पीड़ित हैं
  • परिवर्तन का कारण:  
    • शोधकर्त्ताओं ने भारत में एनीमिया के अति-निदान के प्रति आगाह किया है क्योंकि हीमोग्लोबिन के लिये WHO कट-ऑफ उपयुक्त नहीं हो सकता है।
      • क्योंकि हीमोग्लोबिन के लिये कट-ऑफ प्वाइंट उम्र, लिंग, शारीरिक स्थिति, ऊँचाई और अन्य कारकों पर निर्भर करता है।
    • NFHS और अनुशंसित शिरापरक रक्त नमूने के बीच रक्त नमूनाकरण विधियों में अंतर की पहचान की गई जो संभावित रूप से गलत जानकारी प्रदर्शित कर सकता है।
  • आहार और बायोमार्कर सर्वेक्षण (DABS-I):
    • DABS-I एक व्यापक राष्ट्रीय स्तर का आहार सर्वेक्षण है जिसका उद्देश्य विभिन्न आयु समूहों और क्षेत्रों में खाद्य पदार्थ एवं पोषक तत्त्वों की पर्याप्तता का निर्धारण करना है।
    • सर्वेक्षण व्यक्तिगत आहार सेवन डेटा एकत्र करता है और पके एवं बिना पके खाद्य पदार्थों में पोषक तत्त्वों की संरचना की जानकारी प्रदान करता है।
    • DABS-I से एनीमिया की व्यापकता के बेहतर अनुमानों की पेशकश करने और लक्षित हस्तक्षेपों को विकसित करने में सहायता की उम्मीद है।
  • एनीमिया डेटा का महत्त्व:
    • एनीमिया डेटा सार्वजनिक स्वास्थ्य के एक महत्त्वपूर्ण संकेतक के रूप में कार्य करता है, विशेष रूप से कमज़ोर आबादी जैसे कि गर्भवती महिलाओं और पाँच वर्ष से कम आयु के बच्चों के लिये।
    • एनीमिया प्रसार अध्ययन कार्य क्षमता, राष्ट्रीय विकास और प्रजनन स्वास्थ्य पर एनीमिया के प्रभावों के संदर्भ में जानकारी प्रदान करता है

सरकारी पहल:

  • एनीमिया मुक्त भारत (AMB): इसे वर्ष 2018 में गहन राष्ट्रीय आयरन प्लस पहल (NIPI) कार्यक्रम के हिस्से के रूप में एनीमिया की गिरावट की वार्षिक दर को एक से तीन प्रतिशत अंक तक बढ़ाने के लिये शुरू किया गया था।
    • AMB के लिये लक्ष्य समूह 6-59 महीने के बच्चे, 5-9 वर्ष, 10-19 वर्ष की किशोर लड़कियाँ और लड़के, प्रजनन आयु की महिलाएँ (15-49 वर्ष), गर्भवती महिलाएँ एवं स्तनपान कराने वाली माताएँ हैं।
  • साप्ताहिक लौह और फोलिक अम्ल अनुपूरण (WIFS):  
    • यह कार्यक्रम किशोर लड़कियों और लड़कों के बीच एनीमिया के उच्च प्रसार की चुनौती को रोकने के लिये लागू किया जा रहा है। 
    • WIFS के तहत हस्तक्षेप में आयरन फोलिक एसिड (IFA) टैबलेट का साप्ताहिक अंतर्ग्रहण शामिल है।
  • ब्लड बैंक का संचालन:
    • गंभीर एनीमिया की जटिलताओं से निपटने के लिये ज़िला अस्पतालों और उप-ज़िला सुविधाओं में रक्त भंडारण इकाई जैसे अनुमंडलीय अस्पताल/सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र की स्थापना हेतु कदम उठाए जा रहे हैं।
  • प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान (PMSMA):  
    • यह एनीमिया की जाँच और उपचार के लिये विशेष चिकित्सा अधिकारियों/OBGYN की मदद से प्रत्येक माह की 9 तारीख को आयोजित किया जाता है।
  • उठाए गए अन्य कदम:
    • कृमि संक्रमण को नियंत्रित करने के लिये एल्बेंडाज़ोल (Albendazole) के साथ द्विवार्षिक कृमिनाशक दवा दी जाती है।
    • एनीमिक और गंभीर रूप से एनीमिक गर्भवती महिलाओं के मामलों की रिपोर्टिंग एवं ट्रैकिंग के लिये स्वास्थ्य प्रबंधन सूचना प्रणाली तथा मदर चाइल्ड ट्रैकिंग सिस्टम लागू किया जा रहा है।
    • एनीमिया के लिये गर्भवती महिलाओं की सार्वभौमिक जाँच प्रसवपूर्व देखभाल का एक हिस्सा है और सभी गर्भवती महिलाओं को उप-केंद्रों एवं प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों तथा अन्य स्वास्थ्य सुविधाओं के मौजूदा नेटवर्क के साथ-साथ ग्राम स्वास्थ्य एवं पोषण दिवस (VHND) में आउटरीच गतिविधियों के माध्यम से प्रसव पूर्व अवधि के दौरान आयरन व फोलिक एसिड की गोलियाँ प्रदान की जाती हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न

प्रश्न. एनीमिया मुक्त भारत रणनीति के अंतर्गत की जा रही व्यवस्थाओं के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजियेः

  1. इसमें स्कूल जाने से पूर्व के (प्री-स्कूल) बच्चों, किशोरों और गर्भवती महिलाओं के लिये रोगनिरोधक कैल्सियम पूरकता प्रदान की जाती है।
  2. इसमें शिशु जन्म के समय देरी से रज्जु बंद करने के लिये अभियान चलाया जाता है।
  3. इसमें बच्चों और किशोरों की निर्धारित अवधियों पर कृमि-मुक्ति की जाती है।
  4. इसमें मलेरिया, हीमोग्लोबिनोपैथी और फ्रलुओरोसिस पर विशेष ध्यान देने के साथ स्थानिक बस्तियों में एनीमिया के गैर-पोषण कारणों की ओर ध्यान दिलाना शामिल है।

उपर्युक्त कथनों में से कितने सही हैं?

(a) केवल एक 
(b) केवल दो
(c) केवल तीन 
(d) सभी चार

उत्तर: (c)

व्याख्या:

  • इसमें रोगनिरोधी कैल्शियम पूरकता नहीं बल्कि प्रोफिलैक्टिक आयरन और फोलिक एसिड पूरकता बच्चों, किशोरों एवं प्रजनन आयु की महिलाओं तथा गर्भवती महिलाओं को एनीमिया के बावजूद प्रदान की जाती है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • शिशु और छोटे बच्चों का उपयुक्त आहार (Appropriate Infant and Young Child Feeding- IYCF) 6 महीने तथा उससे अधिक उम्र के बच्चों हेतु पर्याप्त एवं आयु-उपयुक्त पूरक खाद्य पदार्थ प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित किया जाता है।
  • अपने आहार में विविधता लाकर भोजन की मात्रा एवं आवृत्ति में वृद्धि करना, साथ ही खाद्य पदार्थों में आयरन युक्त, प्रोटीन युक्त तथा विटामिन C युक्त खाद्य पदार्थों का सेवन बढ़ाना।
  • सभी स्वास्थ्य सुविधाओं में विलंबित कॉर्ड क्लैम्पिंग (रक्त के प्रवाह को रोकना) (कम से कम 3 मिनट या रज्‍जु स्पंदन बंद होने तक) को बढ़ावा देना, इसके बाद प्रसव के 1 घंटे के भीतर प्रारंभिक स्तनपान कराने पर ज़ोर देना। अतः कथन 2 सही है।
  • राष्ट्रीय कृमि मुक्ति दिवस (National Deworming Day- NDD) के तहत प्रत्येक वर्ष 1-19 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चों हेतु द्वि-वार्षिक सामूहिक कृमि नियंत्रण कार्यक्रम आयोजित किया जाता है। अतः कथन 3 सही है।
  • NDD योजना के हिस्से के रूप में एनीमिया मुक्त भारत में गर्भवती महिलाओं और प्रजनन आयु की महिलाओं हेतु कृमिनाशक दवा भी शामिल है।
  • मलेरिया, हीमोग्लोबिनोपैथी और फ्लोरोसिस पर विशेष ध्यान देने के साथ स्थानिक क्षेत्रों में एनीमिया के गैर-पोषण संबंधी कारणों को उजागर करना। अतः कथन 4 सही है।

प्रश्न. सार्विक स्वास्थ्य संरक्षण प्रदान करने में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की अपनी परिसीमाएँ हैं। क्या आपके विचार में खाई को पाटने में निजी क्षेत्रक सहायक हो सकता है? आप अन्य कौन-से व्यवहार्य विकल्प सुझाएंगे?  (मुख्य परीक्षा, 2015) 

स्रोत: द हिंदू


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

एबॉसीन की AI-संचालित खोज: एक शक्तिशाली एंटीबायोटिक

प्रिलिम्स के लिये:

आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI), एंटीबायोटिक, सुपरबग, एसिनेटोबैक्टर बॉमनी, एबॉसीन

मेन्स के लिये:

वैश्विक स्वास्थ्य पर एंटीबायोटिक प्रतिरोध के प्रभाव, दवा की खोज में तेज़ी लाने में AI की भूमिका और सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियों को दूर करने में इसकी क्षमता

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में संयुक्त राज्य अमेरिका और कनाडा के वैज्ञानिकों ने एसिनेटोबैक्टर बॉमनी सुपरबग से लड़ने में सक्षम एबॉसीन नामक एक शक्तिशाली एंटीबायोटिक की खोज के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) का उपयोग करके चिकित्सा के क्षेत्र में उल्लेखनीय उपलब्धि हासिल की है।

  • इस सफलता से दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया के खिलाफ लड़ाई में अपार संभावनाएँ देखी जा रही हैं।

एसिनेटोबैक्टर बॉमनी:

  • यह विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) द्वारा पहचाना गया एक खतरनाक जीवाणु है जो एंटीबायोटिक दवाओं के लिये प्रतिरोधी है।
  • यह निमोनिया, मेनिन्जाइटिस और घाव संक्रमण जैसे गंभीर संक्रमण का कारण बन सकता है, जिससे मृत्यु हो सकती है।
  • आमतौर पर अस्पतालों में पाया जाने वाला एसिनेटोबैक्टर बॉमनी सतहों पर लंबे समय तक जीवित रह सकता है, जिससे इसे समाप्त करना मुश्किल हो जाता है।
  • वर्तमान में उपलब्ध सभी एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोध को विकसित करने की इसकी उल्लेखनीय क्षमता के कारण इसे "रेड अलर्ट" मानव रोगजनक के रूप में जाना जाता है। 

एंटीबायोटिक प्रतिरोध की प्रक्रिया:

  • एंटीबायोटिक प्रतिरोध तब होता है जब बैक्टीरिया अनुकूलन करते हैं और एंटीबायोटिक दवाओं के प्रभावों हेतु प्रतिरोधी बन जाते हैं, जिससे उपचार अप्रभावी हो जाता है।
    • एंटीबायोटिक्स जीवाणु संक्रमण को रोकने और इलाज हेतु उपयोग की जाने वाली दवाएँ हैं।
  • एंटीबायोटिक दवाओं के अति प्रयोग और दुरुपयोग ने दवा प्रतिरोधी बैक्टीरिया के विकास को बढ़ावा दिया है, जो वैश्विक स्वास्थ्य क्षेत्र में चिंता का विषय है।
  • विश्व स्वास्थ्य संगठन ने निमोनिया, तपेदिक और खाद्यजनित रोगों जैसे संक्रमणों को सूचीबद्ध किया है क्योंकि एंटी-बैक्टीरिया प्रतिरोध बढ़ने के कारण मौजूदा दवाओं के साथ इन बीमारियों का इलाज करना कठिन होता जा रहा है।

नोट: 

  • सुपरबग बैक्टीरिया होते हैं जो कई प्रकार के एंटीबायोटिक दवाओं के प्रतिरोधी होते हैं।
  • WHO की सुपरबग्स की सूची में बैक्टीरिया पर ज़ोर दिया गया है, जो आनुवंशिक पदार्थ उत्पन्न करने की क्षमता रखते हैं तथा अन्य जीवाणुओं को दवा प्रतिरोध विकसित करने और उपचार से बचने या विरोध करने हेतु स्वाभाविक रूप से नए तरीके खोजने में सक्षम बनाता हैवे कवक भी हो सकते हैं।

एबॉसीन:

  • परिचय: 
    • एबॉसीन (Abaucin) एक यौगिक है जो एक संकीर्ण-स्पेक्ट्रम एंटीबायोटिक के रूप में उपयोगी गतिविधि दिखाता है।
    • यह एसिनेटोबैक्टर बॉमनी (Acinetobacter Baumannii) के खिलाफ प्रभावी है। 
  • अन्वेषण: 
    • मशीन-लर्निंग मॉडल दृष्टिकोण का उपयोग करके AI की सहायता से एबॉसीन की खोज की गई थी।
    • एसिनेटोबैक्टर बॉमनी वृद्धि को रोकने के लिये जाँचे गए ~ 7,500 अणुओं के डेटासेट के साथ नेटवर्क को प्रशिक्षित किया गया था।
    • नेटवर्क ने संरचनात्मक रूप से विभिन्न अणुओं की भविष्यवाणी की जिसमें एबॉसीन सहित ए. बॉमनी के खिलाफ गतिविधि थी।
    • एबॉसीन को प्रायोगिक रूप से मान्य किया गया था और इसमें शक्तिशाली जीवाणुरोधी गतिविधि पाई गई थी।
  • कार्रवाई की प्रणाली:
    • एबॉसीन बैक्टीरिया में CCR2 प्रोटीन के सामान्य कार्य को बाधित करता है। 
    • यह व्यवधान बैक्टीरिया के अंदर कुछ अणुओं की गति को बाधित करता है, जिससे उन्हें बाहरी झिल्ली तक पहुँचने से रोका जा सकता है।
    • नतीजतन एसिनेटोबैक्टर बॉमनी की वृद्धि बाधित होती है, जिससे संक्रमण पैदा करने की क्षमता कम हो जाती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से, भारत में सूक्ष्मजैविक रोगजनकों में बहु-औषध प्रतिरोध के होने के कारण हैं?  (2019) 

  1. कुछ लोगों की आनुवंशिक प्रवृत्ति (जेनेटिक प्रीडिस्पोज़ीशन) 
  2. बीमारियों को ठीक करने के लिये एंटीबायोटिक दवाओं की गलत खुराक लेना
  3. पशुपालन में एंटीबायोटिक का प्रयोग
  4. कुछ लोगों में कई पुरानी बीमारियाँ

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: 

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1, 3 और 4
(d) केवल 2, 3 और 4 

उत्तर: (b) 


मेन्स:

प्रश्न. क्या एंटीबायोटिकों का अति-उपयोग और डॉक्टरी नुस्खे के बिना मुक्त उपलब्धता, भारत में औषधि-प्रतिरोधी रोगों के अविर्भाव के अंशदाता हो सकते हैं? अनुवीक्षण और नियंत्रण की क्या क्रियाविधियाँ उपलब्ध हैं? इस संबंध में विभिन्न मुद्दों पर समालोचनापूर्वक चर्चा कीजिये। (2014)

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

भारत की G20 अध्यक्षता: स्वास्थ्य कार्य समूह की तीसरी बैठक

प्रिलिम्स के लिये:

G20, डिजिटल स्वास्थ्य, बौद्धिक संपदा अधिकार, आधार, CoWIN, आरोग्य सेतु, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), सतत् विकास लक्ष्य (SDGs), आयुष्मान भारत योजना, जलवायु परिवर्तन

मेन्स के लिये:

भारत की G20 अध्यक्षता एवं स्वास्थ्य पर प्राथमिकताएँ, विश्व स्तर पर स्वास्थ्य क्षेत्र हेतु जोखिम उत्पन्न करने वाली चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

भारत की G20 अध्यक्षता के तहत हैदराबाद, तेलंगाना में हाल ही में आयोजित स्वास्थ्य कार्य समूह की तीसरी बैठक में महामारी के खतरे और स्वास्थ्य क्षेत्र में वैश्विक सहयोग की तत्काल आवश्यकता पर ज़ोर दिया गया।

  • वैश्विक स्तर पर एकीकृत निगरानी प्रणाली, चिकित्सा प्रत्युपाय, डिजिटल स्वास्थ्य पहल और वैक्सीन अनुसंधान एवं विकास के महत्त्व पर ज़ोर देते हुए भारत द्वारा कई प्रमुख प्रस्ताव रखे गए।

स्वास्थ्य क्षेत्र में वैश्विक सहयोग हेतु भारत के प्रमुख प्रस्ताव:

  • भारत ने वैश्विक स्वास्थ्य क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के उपयोग संबंधी पहलों को एकीकृत करने हेतु WHO-प्रबंधित नेटवर्क, वैश्विक डिजिटल स्वास्थ्य पहल का प्रस्ताव रखा।
    • यह पहल राष्ट्रों के बीच डिजिटल विभाजन को समाप्त करने में सक्षम हो सकती है और यह सुनिश्चित कर सकती है कि प्रौद्योगिकी का लाभ विश्व के प्रत्येक नागरिक को उपलब्ध हो। 
  • एंड-टू-एंड ग्लोबल मेडिकल काउंटरमेज़र (MCM) इकोसिस्टम हेतु आम सहमति बनाना।
    • ग्लोबल मेडिकल काउंटरमेज़र (MCM) इकोसिस्टम हेतु अंतर-सरकारी वार्ता निकाय (Intergovernmental Negotiating Body- INB) प्रक्रिया द्वारा निर्देशित एक अंतरिम प्लेटफॉर्म का निर्माण करना।
    • बौद्धिक संपदा अधिकार बाधाओं का निदान करना जो संकट के समय में चिकित्सा प्रत्युपायों तक पहुँच में बाधा उत्पन्न करते हैं।
  • उभरते रोगजनकों हेतु वैक्सीन अनुसंधान और विकास (Research and Development- R&D) में तेज़ी लाना एवं महामारी रोकथाम तैयारी के प्रयासों को मज़बूत करना।
    • वैक्सीन के विकास में अंतराल को दूर करने, समन्वय बढ़ाने और वैक्सीन अनुसंधान एवं विकास हेतु सक्षम वातावरण को बढ़ावा देने के लिये वैश्विक वैक्सीन अनुसंधान सहयोग सुनिश्चित करना।
    • स्वास्थ्य आपात स्थितियों के दौरान निदान, दवाओं और वैक्सीन तक पहुँच में समानता पर ज़ोर देना।
  • त्वरित निर्णय लेने और संकट के दौरान योजना बनाने हेतु वैश्विक पहलों का मानचित्रण एवं एकीकरण करना। जानवरों से मनुष्यों में स्थानांतरित होने वाली बीमारियों के ज़ूनोटिक संक्रमण की चुनौतियों का समाधान करना।

स्वास्थ्य पर G20 अध्यक्षता हेतु भारत की प्राथमिकताएँ: 

  • परिचय:  
    • भारत को "फार्मेसी ऑफ दर वर्ल्ड" के रूप में मान्यता प्राप्त है, जो वैश्विक वैक्सीन उत्पादन में एक महत्त्वपूर्ण हिस्से का योगदान देता है।
    • अकेले हैदराबाद में जीनोम वैली दुनिया के वैक्सीन उत्पादन में 33% के करीब योगदान देती है। साथ ही भारत का आयुर्वेद और योग महत्त्वपूर्ण अभ्यास हैं जो समग्र कल्याण सुनिश्चित करते हैं।
  • प्राथमिकता:  
    • डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना: भारत का उद्देश्य सभी के लिये स्वास्थ्य सेवाओं की पहुँच, सामर्थ्य और गुणवत्ता बढ़ाने हेतु आधार, को-विन तथा आरोग्य सेतु जैसे डिजिटल प्लेटफॉर्म विकसित करने में अपने अनुभव का लाभ उठाना है।
      • भारत G20 के अन्य देशों के साथ अपनी सर्वोत्तम प्रथाओं और ज्ञान को साझा करने का भी इरादा रखता है तथा स्वास्थ्य के लिये अपने स्वयं के डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे के निर्माण में उनका समर्थन करता है।'
    • स्वास्थ्य सुरक्षा: भारत वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा ढाँचे को मज़बूत करने और भविष्य की महामारियों के लिये तैयारी सुनिश्चित करने हेतु अन्य G20 देशों के साथ काम करने की योजना बना रहा है।
      • भारत विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और अन्य बहुपक्षीय संस्थानों को अधिक उत्तरदायी, पारदर्शी तथा जवाबदेह बनाने के लिये सुधार का भी समर्थन करेगा।
    • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज: भारत वर्ष 2030 तक सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) प्राप्त करने के लक्ष्य को बढ़ावा देगा, जैसा कि सतत् विकास लक्ष्यों (SDG) द्वारा परिकल्पित है।
      • भारत आयुष्मान भारत योजना जैसी योजनाओं के माध्यम से स्वास्थ्य कवरेज के विस्तार में अपनी उपलब्धियों को भी प्रदर्शित करेगा और अन्य G20 देशों को ऐसी ही नीतियों को अपनाने के लिये प्रोत्साहित करेगा जो स्वास्थ्य परिणामों में सुधार कर सकती हैं तथा गरीबी को कम कर सकती हैं

विश्व स्तर पर स्वास्थ्य क्षेत्र हेतु जोखिम पैदा करने वाली चुनौतियाँ:

  • अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा और व्यवसायी: कई देशों में विशेष रूप से कम आय वाले क्षेत्रों में डॉक्टरों, अस्पतालों एवं नैदानिक सुविधाओं सहित पर्याप्त स्वास्थ्य सुविधाओं का अभाव है। 
    • यह आबादी को समय पर और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएँ प्रदान करने की उनकी क्षमता को सीमित करता है।
  • संक्रामक रोगों का प्रकोप: संक्रामक रोगों का बार-बार उभरना वैश्विक स्वास्थ्य के लिये एक गंभीर जोखिम पैदा करता है।
    • हाल के उदाहरणों में कोविड-19 महामारी और इबोला का प्रकोप शामिल हैं।
  • रोगाणुरोधी प्रतिरोध (AMR): रोगाणुरोधी प्रतिरोध दवाओं की प्रभावशीलता को कम कर रहा है, संक्रमण और बीमारियों के इलाज को मुश्किल या असंभव बना रहा है।
    • WHO ने घोषणा की है कि AMR मानवता के सामने शीर्ष 10 वैश्विक सार्वजनिक स्वास्थ्य खतरों में से एक है। 

नोट: AMR तब होता है जब जीवाणु, वायरस, परजीवी और कवक जैसे सूक्ष्मजीव विकसित होते हैं तथा इनका उपचार करने हेतु उपयोग की जाने वाली दवाओं के लिये प्रतिरोध विकसित करते हैं अर्थात इन्हें प्रतिरोध प्रदान करते हैं। यह स्वाभाविक रूप से समय के साथ हो सकता है लेकिन यह रोगाणुरोधी दवाओं के अति प्रयोग और दुरुपयोग से तेज़ हो जाता है।

  • जलवायु परिवर्तन का खतरा: जलवायु परिवर्तन अच्छे स्वास्थ्य के आवश्यक तत्त्वों जैसे- स्वच्छ हवा, सुरक्षित पेयजल, पौष्टिक भोजन की आपूर्ति और सुरक्षित आश्रय के लिये खतरा है।
    • जलवायु परिवर्तन सूखे और बाढ़ जैसी चरम मौसम की घटनाओं को बढ़ा देता है जो खाद्य असुरक्षा एवं कुपोषण दर को बढ़ाता है तथा साथ ही संक्रामक रोगों को फैलाने में सहायता करता है।
  • व्यावसायीकरण में वृद्धि: हालाँकि स्वास्थ्य सेवा का व्यावसायीकरण बेहतर बुनियादी ढाँचे, चिकित्सा सुविधाओं और तकनीकी उन्नति का वादा करता है लेकिन उच्च शुल्क के कारण गरीब तथा मध्यम वर्ग के लोग इसे वहन नहीं कर सकते है। यह एक बेहतर स्वास्थ्य सेवा प्रणाली के मूल उद्देश्य का खंडन करता है।
    • इसके अतिरिक्त डॉक्टर लाभ के उद्देश्य से ब्रांडेड दवाओं को लिखने के लिये दवा कंपनियों के साथ सहयोग करते हैं जो समान फॉर्मूले के बावजूद जेनेरिक संस्करणों की तुलना में अधिक महँगी होती हैं तथा समय पर स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच को बाधित करती हैं।

आगे की राह   

  • वैश्विक सहयोग और जानकारी साझा करना: स्वास्थ्य पेशेवरों, शोधकर्त्ताओं तथा संस्थानों के बीच अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और जानकारी साझा करने को प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।
    • यह सर्वोत्तम प्रथाओं के प्रसार की सुविधा प्रदान कर सकता है, नवाचार को प्रोत्साहित कर सकता है और नए उपचारों एवं चिकित्सा सेवाओं के विकास को गति दे सकता है।
  • जेनेटिक सर्विलांस: जेनेटिक सर्विलांस विश्व भर में विभिन्न रोग वाहकों, विशेष रूप से वायरस के विकास को समझने का एक तरीका हो सकता है। 
    • रोगजनकों का जेनेटिक सर्विलांस विश्व भर में रोगजनकों के संचरण को समझने और कांटेक्ट ट्रेसिंग हेतु एक आणविक दृष्टिकोण का पालन करके अंतर्दृष्टि प्रदान करती है।
  • रोगी सशक्तीकरण और जुड़ाव: व्यक्तियों को अपने स्वास्थ्य के प्रबंधन में सक्रिय भूमिका निभाने के लिये रोगी-केंद्रित देखभाल को प्राथमिकता देने की आवश्यकता है।
    • वह उपकरण और संसाधन प्रदान करने चाहिये जो स्वास्थ्य साक्षरता को बढ़ावा देते हों, स्व-निगरानी को सक्षम करते हों और बेहतर उपचार एवं परिणामों के लिये रोगी-प्रदाता संचार की सुविधा प्रदान करते हों।
  • वैश्विक महामारी संधि की ओर: स्वास्थ्य क्षेत्र में अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को और मज़बूत करने की आवश्यकता को स्वीकार करते हुए WHO ने अब भविष्य की महामारियों के लिये बेहतर तैयारी एवं समान प्रतिक्रिया सुनिश्चित करने के उद्देश्य से एक नई अंतर्राष्ट्रीय संधि के विकास व  अपनाने की प्रक्रिया शुरू की है तथा सभी के लिये समानता, एकजुटता और स्वास्थ्य के सिद्धांतों को आगे बढ़ाना।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. G-20 के बारे में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023)  

  1. G-20 समूह की मूल रूप से स्थापना वित्त मंत्रियों और केंद्रीय बैंक के गवर्नरों द्वारा अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक एवं वित्तीय मुद्दों पर चर्चा के मंच के रूप में की गई थी।
  2. डिजिटल सार्वजनिक बुनियादी ढाँचा भारत की G-20 प्राथमिकताओं में से एक है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1    
(b) केवल 2   
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: C


प्रश्न. ‘Doctors Without Borders’ (Medecins Sans Frontieres), जो प्रायः समाचारों में आया है, है: (2016) 

(a) विश्व स्वास्थ्य संगठन का एक प्रभाग 
(b) एक गैर-सरकारी अंतर्राष्ट्रीय संगठन
(c) यूरोपीय संघ द्वारा प्रायोजित एक अंत: सरकारी एजेंसी
(d) संयुक्त राष्ट्र की एक विशिष्ट एजेंसी

उत्तर: (b) 


मेन्स:

प्रश्न. भारत में 'सभी के लिये स्वास्थ्य' प्राप्त करने हेतु समुचित स्थानीय सामुदायिक स्तरीय स्वास्थ्य देखभाल का मध्यक्षेप एक पूर्वापेक्षा है। व्याख्या कीजिये। (2018) 

प्रश्न. सार्विक स्वास्थ्य संरक्षण प्रदान करने में सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली की अपनी परिसीमाएँ हैं। क्या आपके विचार में खाई को पाटने में निजी क्षेत्रक सहायक हो सकता है? आप अन्य कौन-से व्यवहार्य विकल्प सुझाएंगे? (2015) 

स्रोत: पी.आई.बी. 


सामाजिक न्याय

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत ST महिलाएँ संपत्ति के अधिकार से वंचित

प्रिलिम्स के लिये:

अनुसूचित जनजाति, हिंदू उत्तराधिकार संशोधन अधिनियम, 2005, संविधान का अनुच्छेद 14, हिंदू कानून का मिताक्षरा स्कूल, भारत में विरासत अधिकार

मेन्स के लिये:

भारत में महिलाओं से संबंधित मुद्द

चर्चा में क्यों? 

केंद्र सरकार इस बात की जाँच कर रही है कि हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत अधिसूचना जारी की जाए या नहीं, ताकि अनुसूचित जनजाति (ST) की महिलाओं के लिये लाभकारी प्रावधान लागू किया जा सके, जो हिंदू धर्म को मानती हैं, ताकि उन्हें पिता/हिंदू अविभाजित परिवार (Hindu Undivided Family- HUF) की संपत्तियों में समान हिस्सा प्राप्त करने में सक्षम बनाया जा सके।

उत्तराधिकार अधिकारों से संबंधित प्रमुख मुद्दे:

  • अधिनियम से बहिष्करण:
    • हिंदू धर्म को मानने वाली अनुसूचित जनजाति की महिलाओं को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के लाभकारी प्रावधानों से बाहर रखा गया है।
    • यह बहिष्करण उन्हें अन्य हिंदू समुदायों की महिलाओं की तुलना में पैतृक संपत्ति के उत्तराधिकार के समान अधिकारों से वंचित करता है। 
  • समान विरासत अधिकारों से इनकार:
    • बहिष्करण के कारण ST महिलाएँ अपने पिता या हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) की संपत्ति में समान हिस्से की हकदार नहीं हैं।
    • विरासत के अधिकारों में यह असमानता लैंगिक असमानताओं को कायम रखती है और ST महिलाओं के वित्तीय सशक्तीकरण को बाधित करती है।
  • जनजातीय पहचान के आधार पर भेदभाव:
    • हिंदू धर्म को मानने वाली ST महिलाओं को समान विरासत के अधिकार से वंचित करना उनकी आदिवासी पहचान के आधार पर भेदभाव का एक रूप है।
    • यह भारतीय संविधान में प्रतिष्ठापित समानता और गैर-भेदभाव के सिद्धांतों का खंडन करता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कमला नेती बनाम विशेष भूमि अधिग्रहण अधिकारी और अन्य के मामले में केंद्र सरकार को यह जाँच करने का निर्देश दिया कि क्या हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम के तहत अनुसूचित जनजातियों के प्रावधानों की प्रयोज्यता के संबंध में प्रदान की गई छूट को वापस लेने के लिये संशोधन आवश्यक है।

हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956: 

  • परिचय: 
    • हिंदू कानून के मिताक्षरा स्कूल को हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 के रूप में संहिताबद्ध किया गया था। यह कानून उत्तराधिकार और संपत्ति के उत्तराधिकार को नियंत्रित करता था लेकिन कानूनी उत्तराधिकारी के रूप में केवल पुरुषों को ही मान्यता दी जाती थी।
  • प्रयोज्यता: 
    • यह उन सभी पर लागू होता है जो धर्म से मुस्लिम, ईसाई, पारसी या यहूदी नहीं हैं।
    • इस कानून के लिये बौद्ध, सिख, जैन और आर्य समाज, ब्रह्म समाज के अनुयायी भी हिंदू माने जाते हैं।
    • परंपरागत रूप से सामान्य पूर्वजों में केवल पुरुष वंशजों के साथ-साथ उनकी माताओं, पत्नियों और अविवाहित बेटियों को एक संयुक्त हिंदू परिवार माना जाता है। कानूनी उत्तराधिकारी संयुक्त रूप से पारिवारिक संपत्ति रखते हैं।
  • हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005:
    • वर्ष 1956 के अधिनियम को सितंबर 2005 में संशोधित किया गया था और महिलाओं को वर्ष 2005 से संपत्ति के विभाजन के लिये सहदायिक के रूप में मान्यता दी गई थी।
    • इस अधिनियम की धारा 6 में संशोधन किया गया था ताकि एक सहदायिक की पुत्री को "उसके अपने अधिकार में पुत्र के रूप में" भी जन्म से सहदायिक बनाया जा सके।
    • इसने पुत्री को "सहदायिकी संपत्ति में" समान अधिकार और देनदारियाँ भी दीं क्योंकि यदि वह पुत्र होता तो उसे मिलता।
    • यह कानून पैतृक संपत्ति पर लागू होता है और उत्तराधिकार को व्यक्तिगत संपत्ति की वसीयत से बाहर करता है क्योंकि इसमें उत्तराधिकार कानून के अनुसार होगा, न कि वसीयत के माध्यम से।
  • क्लास I वारिस: 
    • यह अधिनियम रिश्तेदारों को उत्तराधिकारियों के विभिन्न वर्गों में वर्गीकृत करता है।
    • क्लास I के वारिसों में मृतक के बच्चे, पोते और उनकी माताएँ शामिल हैं।
    • क्लास I के वारिसों की अनुपस्थिति में संपत्ति क्लास II के वारिसों को दी जाती है जिसमें पिता, पुत्र की पुत्री का पुत्र, भाई, बहन, पिता की विधवा; भाई की विधवा आदि।
  • वसीयतनामा उत्तराधिकार: 
    • यह अधिनियम वसीयत के उत्तराधिकार को भी मान्यता देता है, जहाँ एक व्यक्ति अपनी संपत्ति को एक वैध वसीयत के माध्यम से बेच या स्थानांतरित कर सकता है।
    • कुछ प्रतिबंधों और कानूनी आवश्यकताओं को छोड़कर, व्यक्ति को अपनी इच्छा के अनुसार संपत्ति वितरित करने की स्वतंत्रता है।
  • विधवाओं के अधिकार:
    • अधिनियम विधवाओं के अधिकारों को उनके मृत पतियों से संपत्ति प्राप्त करने के लिये मान्यता देता है।
    • एक विधवा का अपने पति द्वारा छोड़ी गई संपत्ति में अन्य कानूनी उत्तराधिकारियों के साथ हिस्सा होता है।

संपत्ति विरासत के बारे में हिंदू कानून के स्कूल क्या कहते हैं?

हिंदू विधियों के प्रकार

मिताक्षरा कानून

दायभाग कानून

मिताक्षरा शब्द याज्ञवल्क्य स्मृति पर विज्ञानेश्वर द्वारा लिखी गई एक टिप्पणी के नाम से लिया गया है।

दायभाग शब्द जिमुतवाहन द्वारा लिखित इसी तरह के नाम वाले पाठ से लिया गया है। 

इसका अनुसरण भारत के सभी भागों में किया जाता है और बनारस, मिथिला, महाराष्ट्र और द्रविड़ स्कूलों में विभाजित है ।

इसका अनुसरण  बंगाल और असम में किया जाता है।

एक पुत्र जन्म से ही संयुक्त परिवार की पैतृक संपत्ति में हित प्राप्त कर लेता है ।

एक पुत्र के पास जन्म से स्वत: स्वामित्व का कोई अधिकार नहीं होता है, लेकिन वह इसे अपने पिता की मृत्यु पर प्राप्त करता है।

एक सहदायिक का हिस्सा परिभाषित नहीं है और इसका निपटान नहीं किया जा सकता है।

प्रत्येक सहदायिक का हिस्सा परिभाषित किया गया है और उसका निपटान किया जा सकता है।

एक पत्नी बंँटवारे की मांग नहीं कर सकती है लेकिन उसे अपने पति और बेटों के बीच किसी भी बंँटवारे में हिस्सेदारी का अधिकार है।

यहाँ महिलाओं के लिये समान अधिकार मौजूद नहीं है क्योंकि बेटे विभाजन की मांग नहीं कर सकते क्योंकि पिता पूर्ण मालिक है।

सभी सदस्य पिता के जीवनकाल के दौरान सहदायिकी अधिकार प्राप्त करते हैं ।

पिता के जीवित रहने पर पुत्रों को सहदायिकी अधिकार प्राप्त नहीं होते हैं।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. प्राचीन भारत के इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2021)

  1. मिताक्षरा ऊँची जाति की सिविल विधि थी और दायभाग निम्न जाति की सिविल विधि थी।
  2. मिताक्षरा व्यवस्था में पुत्र अपने पिता के जीवनकाल में संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकते थे, जबकि दायभाग व्यवस्था में पिता की मृत्यु के उपरांत ही पुत्र संपत्ति पर अधिकार का दावा कर सकते थे।
  3. मिताक्षरा व्यवस्था किसी परिवार के केवल पुरुष सदस्यों की संपत्ति से संबंधित मामलों पर विचार करती है, जबकि दायभाग व्यवस्था किसी परिवार के पुरुष एवं महिला सदस्यों, दोनों के संपत्ति संबंधी मामलों पर विचार करती है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) केवल 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • क्षेत्रों को निरूपित करने हेतु मिताक्षरा और दायभाग शब्दों का प्रयोग किया जाता था। यह जाति व्यवस्था से संबंधित नहीं है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • दायभाग और मिताक्षरा के बीच का अंतर उनके मूल विचार में है। दायभाग किसी को अपने पूर्वजों की मृत्यु से पहले संपत्ति का अधिकार नहीं देता है, जबकि मिताक्षरा किसी को भी उनके जन्म के तुरंत बाद संपत्ति का अधिकार देता है। अतः कथन 2 सही है।
  • दायभाग व्यवस्था पश्चिम बंगाल में प्रचलित है और परिवार के पुरुष और महिला दोनों सदस्यों को सहदायिक होने की अनुमति देती है। दूसरी ओर मिताक्षरा व्यवस्था, पश्चिम बंगाल को छोड़कर पूरे भारत में प्रचलित है एवं केवल पुरुष सदस्यों को सहदायिक होने की अनुमति देती है। अतः कथन 3 सही नहीं है।
  • अतः विकल्प (b) सही है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

कोसोवो-सर्बिया संघर्ष

प्रिलिम्स के लिये:

कोसोवो-सर्बिया संघर्ष, NATO, अल्बानिया, द्वितीय विश्व युद्ध, सोवियत संघ

मेन्स के लिये:

कोसोवो-सर्बिया संघर्ष 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में सर्बियाई प्रदर्शनकारियों और NATO (उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन) शांति सैनिकों के बीच कोसोवो में संघर्ष हुआ जिसमें 60 से अधिक लोग घायल हो गए। पिछले एक दशक में इस क्षेत्र में यह सबसे गंभीर हिंसक घटना है।

वर्तमान तनाव का कारण: 

  • उत्तरी कोसोवो सर्ब समुदाय और अल्बानियाई लोगों के बीच बड़े जातीय एवं राजनीतिक विभाजन से उत्पन्न तनाव का अनुभव करता है।
  • उत्तरी कोसोवो में बहुमत बनाने हेतु सर्ब समुदाय ने अल्बानियाई महापौरों को स्थानीय परिषदों में प्रभार लेने से रोकने का प्रयास किया।
  • सर्ब समुदाय ने अप्रैल 2023 में स्थानीय चुनावों का बहिष्कार किया जिसके परिणामस्वरूप 3.5% से कम मतदान हुआ। सर्ब समुदाय ने चुनाव परिणामों को नाजायज के रूप में खारिज कर दिया था।

कोसोवो-सर्बिया संघर्ष के विषय में:

  • भूगोल: 
    • सर्बिया: सर्बिया पूर्वी यूरोप में एक लैंडलॉक देश है जो हंगरी, रोमानिया और बुल्गारिया के साथ सीमा साझा करता है।
    • कोसोवो: कोसोवो एक छोटा लैंडलॉक क्षेत्र है जो सर्बिया के दक्षिण-पश्चिम में स्थित है जो उत्तरी मैसेडोनिया, अल्बानिया और मोंटेनेग्रो के साथ सीमा साझा करता है। सर्ब समुदाय के अनेक लोग कोसोवो को अपने राष्ट्र का जन्मस्थान मानते हैं।
      • कोसोवो ने वर्ष 2008 में सर्बिया से स्वतंत्रता की घोषणा की थी लेकिन सर्बिया कोसोवो को राज्य के दर्जे को मान्यता नहीं देता है।

  • पृष्ठभूमि: 
    • कोसोवो एक ऐसा क्षेत्र है जहाँ विभिन्न जातीय और धार्मिक पृष्ठभूमि का प्रतिनिधित्व करने वाले सर्ब समुदाय के लोग और अल्बानियाई सदियों से रह रहे हैं।
      • कोसोवो में रहने वाले 1.8 मिलियन लोगों में से  92% अल्बानियाई और केवल 6% सर्बियाई हैं। बाकी बोस्नियाक्स, गोरान, तुर्क तथा रोमा हैं।
    • सर्ब मुख्य रूप से पूर्वी रूढ़िवादी ईसाई हैं, जबकि कोसोवो में अल्बानियाई मुख्य रूप से मुस्लिम हैं। अन्य अल्पसंख्यक समूहों में बोस्नियाई और तुर्क शामिल हैं। सर्ब सर्बिया में बहुसंख्यक हैं, जबकि कोसोवो में अल्बानियाई बहुसंख्यक हैं।
  • कोसोवो की लड़ाई:
    • सर्बियाई राष्ट्रवादी अपने राष्ट्रीय संघर्ष में एक निर्णायक क्षण के रूप में सर्बियाई राजकुमार लज़ार हरेबेलजानोविक और ओटोमन सुल्तान मुराद हुडवेंडिगर के बीच कोसोवो की वर्ष 1389 की लड़ाई को देखते हैं।
    • दूसरी ओर, कोसोवो के बहुसंख्यक जातीय अल्बानियाई कोसोवो को अपना मानते हैं और सर्बिया पर कब्ज़े एवं दमन का आरोप लगाते हैं।
  • यूगोस्लाविया का विघटन: 
    • वर्ष 1945 से द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद 1992 तक बाल्कन में वर्तमान बोस्निया और हर्ज़ेगोविना, क्रोएशिया, मैसेडोनिया, मोंटेनेग्रो, सर्बिया व स्लोवेनिया का क्षेत्र एक देश था, जिसे आधिकारिक तौर पर यूगोस्लाविया के समाजवादी संघीय गणराज्य (SFRY) के रूप में जाना जाता है, जिसकी राजधानी बेलग्रेड है। सर्बिया में कोसोवो और वोज्वोडिना के स्वायत्त प्रांत शामिल थे।
    • सोवियत संघ के पतन के बाद यूगोस्लाविया बिखर गया, प्रत्येक गणराज्य एक स्वतंत्र देश बन गया।
      • स्लोवेनिया सबसे पहले वर्ष 1991 में अलग हुआ था।
    • 1980 के दशक के अंत और 1990 के दशक की शुरुआत में यूगोस्लाविया में केंद्र सरकार के कमज़ोर होने के साथ-साथ पुनरुत्थानवादी राष्ट्रवाद भी था।  
      • राजनेताओं ने राष्ट्रवादी बयानबाज़ी का फायदा उठाया, आम यूगोस्लाव पहचान को मिटा दिया और जातीय समूहों के बीच भय एवं अविश्वास  पैदा किया।
    • वर्ष 1998 में जातीय अल्बानियाई विद्रोहियों ने सर्बियाई शासन को चुनौती देने के लिये कोसोवो लिबरेशन आर्मी (KLA) का गठन किया।
  • नाटो का हस्तक्षेप: 
    • नाटो ने वर्ष 1999 में सर्बिया की क्रूर प्रतिक्रिया के बाद हस्तक्षेप किया, जिससे कोसोवो और सर्बिया के खिलाफ 78 दिनों का हवाई अभियान चलाया गया।
    • सर्बिया ने कोसोवो से अपने सैनिकों को वापस बुलाने का फैसला किया, जिसके कारण अल्बानियाई शरणार्थियों का प्रत्यावर्तन हुआ और कई सर्बों को बेदखल कर दिया गया, जिन्हें प्रतिशोध की आशंका थी।
    • जून 1999 में कोसोवो अंतर्राष्ट्रीय प्रशासन के अधीन आ गया, हालाँकि इसकी अंतिम स्थिति अनसुलझी रही। राष्ट्रपति मिलोसेविक सहित कई सर्बियाई नेताओं को संयुक्त राष्ट्र के न्यायाधिकरण द्वारा युद्ध अपराधों हेतु आरोपित किया गया था। 

कोसोवो की वर्तमान स्थिति:

  • कोसोवो ने वर्ष 2008 में स्वतंत्रता की घोषणा की, जबकि सर्बिया अभी भी इसे सर्बियाई क्षेत्र का एक अभिन्न अंग मानता है।
  • भारत, चीन और रूस जैसे देश कोसोवो को एक अलग देश के रूप में मान्यता नहीं देते हैं, जबकि अमेरिका, यूरोपीय संघ के अधिकांश देश, जापान और ऑस्ट्रेलिया इसे अलग देश के रूप में मान्यता देते हैं।
    • संयुक्त राष्ट्र (United Nations- UN) के 193 देशों में से कुल 99 अब कोसोवो की स्वतंत्रता को मान्यता देते हैं।

कोसोवो की स्थिति पर भारत का रुख: 

  • भारत का दावा है कि कोसोवो मान्यता हेतु आवश्यक तीन सिद्धांतों को पूरा नहीं करता है: एक परिभाषित क्षेत्र, लोगों द्वारा स्वीकृत विधिवत गठित सरकार और शासन पर प्रभावी नियंत्रण।
  • भारत ने अंतर्राष्ट्रीय निकायों जैसे- यूनेस्को, एपोस्टिल कन्वेंशन, अंतर्राष्ट्रीय विवादों के निपटान हेतु प्रशांत कन्वेंशन और एग्मोंट ग्रुप ऑफ फाइनेंशियल इंटेलिजेंस यूनिट्स में कोसोवो की सदस्यता का विरोध किया है।
  • भारत द्वारा कोसोवो को मान्यता नहीं देने का कारण यह है कि उसका सर्बिया के साथ दीर्घकालिक संबंध है और वह उसकी संप्रभुता एवं क्षेत्रीय अखंडता का समर्थन करता है।  

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित युग्मों पर विचार कीजिये: (2023) 

प्रायः समाचारों में उल्लिखित होने वाले क्षेत्र              समाचारों में होने का कारण 

  1. उत्तरी किवू और इटुरी                               : आर्मीनिया और अज़रबैजान के बीच युद्ध
  2. नागोर्नो-काराबाख                                    : मोज़ाम्बीक में विद्रोह
  3. खेरसॉन और ज़ापोरिज़िया                           : इज़रायल और लेबनान के बीच विवाद

उपर्युक्त में से कितने युग्म सही सुमेलित हैं?

(a) केवल एक
(b) केवल दो 
(c) सभी तीन
(d) कोई भी नहीं

उत्तर: (d) 

व्याख्या: 

  • किवू और इटुरी कांगो गणराज्य से संबंधित हैं। कांगो गणराज्य और रवांडा के बीच युद्ध 1994 में 800,000 रवांडन तुत्सी और हुतस के नरसंहार के साथ शुरू हुआ। अतः युग्म 1 सही सुमेलित नहीं है।
  • नागोर्नो-काराबाख दक्षिण-पश्चिमी अज़रबैजान का एक क्षेत्र है। इसका उपयोग पूर्व अज़रबैजान सोवियत सोशलिस्ट रिपब्लिक (S.S.R.) के एक स्वायत्त ओब्लास्ट (प्रांत) और स्व-घोषित देश नागोर्नो-काराबाख गणराज्य के लिये किया जाता है, जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता प्राप्त नहीं है। पुराने स्वायत्त क्षेत्र ने लगभग 1,700 वर्ग मील (4,400 वर्ग किमी.) के क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लिया था, जबकि नागोर्नो-काराबाख के स्व-घोषित गणराज्य की सेना वर्तमान में लगभग 2,700 वर्ग मील (7,000 वर्ग किमी) पर कब्ज़ा कर चुकी है। अतः युग्म 2 सही सुमेलित नहीं है।
  • खेरसॉन और ज़ापोरिज़िया यूक्रेन से संबंधित हैं और वे यूक्रेन और रूस के बीच विवाद से संबंधित हैं। अतः युग्म 3 सही सुमेलित नहीं है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

ग्लोबल ट्रेड मोमेंटम एंड आउटलुक फॉर इंडिया

प्रिलिम्स के लिये:

वाणिज्यिक निर्यात, मुद्रास्फीति, मौद्रिक नीति, रूस-यूक्रेन, PMI

मेन्स के लिये:

ग्लोबल ट्रेड मोमेंटम एंड आउटलुक फॉर इंडिया

चर्चा में क्यों?

अप्रैल 2023 में भारत का वाणिज्यिक निर्यात पिछले वर्ष की तुलना में 12.7% कम होकर 34.66 बिलियन अमेरिकी डॉलर के साथ छह महीने के निचले स्तर पर पहुँच गया। इसी तरह इसी अवधि के दौरान आयात में भी 14% की तीव्र गिरावट आई, जो 49.90 बिलियन अमेरिकी डॉलर था।

  • आयात और निर्यात में ये कमी जो धीमी वैश्विक मांग की बड़ी प्रवृत्ति का संकेत है, भारत के साथ- साथ शेष विश्व भी इससे प्रभावित है।

वैश्विक व्यापार में वर्तमान प्रवृत्ति:

  • कमज़ोर आर्थिक गतिविधियाँ:  
    • विश्व स्तर पर आर्थिक विकास में मंदी आई है, जिसका अंतर्राष्ट्रीय व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
    • विभिन्न देशों में कमज़ोर आर्थिक स्थितियों ने उपभोक्ता खर्च और निवेश को कम कर दिया है, जिससे व्यापार की मात्रा प्रभावित हुई है।
  • मुद्रास्फीति और सख्त मौद्रिक नीतियाँ:  
    • कई देश बढ़ती मुद्रास्फीति का सामना कर रहे हैं, जिसने केंद्रीय बैंकों को सख्त मौद्रिक नीतियों को लागू करने हेतु प्रेरित किया है।
    • उच्च ब्याज दरें और सख्त ऋण शर्तें उपभोक्ता क्रय शक्ति को कम करके तथा व्यवसायों हेतु सख्त लागत को बढ़ाकर व्यापार को प्रभावित कर सकती हैं।
  • रूस-यूक्रेन संघर्ष के कारण आपूर्ति शृंखला में बाधा :  
    • रूस-यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष ने विशेष रूप से यूरोप में आपूर्ति शृंखलाओं को बाधित कर दिया है।
    • इस संघर्ष ने उच्च ऊर्जा और कमोडिटी की कीमतों को बढ़ावा दिया है, व्यापार प्रवाह को प्रभावित किया है एवं व्यवसायों हेतु लागत में वृद्धि कर दी है।
  • वित्तीय अस्थिरता:  
    • क्रिप्टो एक्सचेंज FTX और अमेरिका में कई बैंकों जैसे वित्तीय संस्थानों के पतन ने वित्तीय अस्थिरता उत्पन्न कर दी है।
    • वित्तीय क्षेत्र मेंआत्मविश्वास की कमी संभावित संक्रमण के बारे में चिंता पैदा करता है और वैश्विक व्यापार पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकता है। 

भारत, यूरोप और अमेरिका में व्यापार की स्थिति: 

  • यूरोपीय संघ (EU): 
    • फरवरी 2023 में यूरोपीय आर्थिक पूर्वानुमान था कि यह क्षेत्र सितंबर 2022 के आसपास विकसित होने वाली मंदी में प्रवेश करने से बच जाएगा।
      • यूरो क्षेत्र में मुद्रास्फीति के संदर्भ में मई 2022 में भोजन, शराब और तंबाकू की कीमतों में वृद्धि की उच्चतम वार्षिक दर थी। इसके बाद गैर-ऊर्जा औद्योगिक वस्तुओं, सेवाओं और ऊर्जा का स्थान था।
  • अमेरिका: 
    • संयुक्त राज्य अमेरिका में मई 2023 में फेडरल रिज़र्व के अनुसार, पिछले वर्ष के मध्य की तुलना में मुद्रास्फीति में सुधार हुआ था। हालाँकि मुद्रास्फीति का दबाव उच्च बना हुआ है और मुद्रास्फीति को 2% के वांछित लक्ष्य तक कम करने में काफी समय लगने की संभावना है।
      • जेपी मॉर्गन ग्लोबल मैन्युफैक्चरिंग परचेज़िग मैनेजर्स इंडेक्स (PMI) मई में लगातार तीसरे महीने 49.6 पर रहा, जो कारोबारी स्थितियों में मामूली गिरावट का संकेत है।  उत्पादन ने चार महीनों के लिये वृद्धि दिखाई, लेकिन मुख्य रूप से नए के बजाय मौजूदा आदेशों को पूरा करने के कारण।
  • भारत के लिये आउटलुक: 
    • अमेरिका और चीन के बाद यूरोपीय संघ भारत का तीसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है।
    • यूरोपीय संघ और अमेरिका जैसे बाज़ारों से वैश्विक मांग अनुकूल नहीं है और अगले कुछ महीनों के लिये मांग परिदृश्य आशावादी नहीं है।
    • भारत वैश्विक मंदी के संभावित प्रभाव का सामना कर सकता है, विशेष रूप से अमेरिका में, जो भारत के लिये एक प्रमुख व्यापारिक भागीदार है।
    • मंदी भारत के व्यापारिक निर्यात की मांग को प्रभावित कर सकती है, हालाँकि सेवाओं के निर्यात के मज़बूत रहने की उम्मीद है।
    • यदि आयात का स्तर कम रहता है तो वस्तुओं की कीमतें स्थिर हो जाती हैं और भारतीय रुपए का मूल्य अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार में स्थिर रहता है। हालाँकि तेज़ी से सुधार आयात मांग पर दबाव डाल सकता है। 
    • औसत वृद्धि की लंबी अवधि को पार करते हुए कुछ गैर-कच्ची वस्तुओं और गैर-आभूषण खंडों ने पिछले वित्त वर्ष 2022-23 में 15% की वृद्धि दिखाई है।
      • इससे संकेत मिलता है कि भारत में घरेलू मांग सुदृढ़ बनी हुई है
      • आयात में कमी का श्रेय तेल की स्थिर कीमतों को दिया जा सकता है, जिसने भारत के आयात बिलों को कम कर दिया है।

आर्थिक मंदी का अंतर्राष्ट्रीय व्यापार और व्यक्ति की क्रय शक्ति पर प्रभाव:

  • आर्थिक मंदी के दौरान वस्तुओं और सेवाओं की समग्र मांग में कमी के कारण निर्यात और आयात दोनों सहित अंतर्राष्ट्रीय व्यापार में काफी गिरावट आई है
  • लोग विवेकाधीन खर्च से बचने की प्रवृत्ति रखते हैं जो विशेष रूप से कुछ आयातों और स्थगित खर्चों को प्रभावित करता है।
    • इसके परिणामस्वरूप इंजीनियरिंग सामान, रत्न एवं आभूषण, रसायन, रेडीमेड वस्त्र, प्लास्टिक और पेट्रोलियम उत्पादों का निर्यात वर्ष 2023 में धीमी गति से कम हुआ या बढ़ा है।
  • मुद्रास्फीति, कीमतों में असमान वृद्धि, विशेष रूप से भोजन और ऊर्जा जैसी आवश्यक वस्तुओं में व्यक्तियों की क्रय शक्ति को नष्ट कर देती है। हालाँकि यदि आयातित उत्पाद घरेलू विकल्पों की तुलना में सस्ते हैं, तो लोग आयातित वस्तु का विकल्प चुन सकते हैं।
  • मुद्राओं के बीच विनिमय दर भी किसी व्यक्ति की क्रय शक्ति का निर्धारण करने में एक अहम भूमिका निभाती है। इसके अतिरिक्त मुद्रास्फीति विकासशील देशों में पूंजी के प्रवाह को प्रभावित करती है।

आगे की राह

  • सरकार को इस स्थिति के उत्तर में निर्यात गति में विविधता लाने और बनाए रखने के तरीकों का पता लगाने के लिये विभिन्न मंत्रालयों के साथ चर्चा करनी चाहिये।
  • कम आयात के बारे में चिंताओं को दूर करने के लिये यह पहचान करना महत्त्वपूर्ण है कि कुछ गैर-कच्ची वस्तुओं और गैर-आभूषण खंडों ने मज़बूत घरेलू मांग का संकेत देते हुए सुदृढ़ वृद्धि दिखाई है। यह भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये एक सकारात्मक दृष्टिकोण प्रदान करता है। वस्तुओं की कीमतों में स्थिरता और भारतीय रुपए का मूल्य कम आयात स्तर बनाए रखने में सहायता कर सकता है।
  • वैश्विक आर्थिक स्थितियों की निगरानी करना, उभरते बाज़ारों को लक्षित करने के लिये निर्यात रणनीतियों को अपनाना और आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिये घरेलू मांग को बढ़ावा देना महत्त्वपूर्ण है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2023) 

  1. कथन-I: कोविड विश्वमारी के बाद के हाल के विगत काल में पूरे विश्व में अनेक केंद्रीय बैंकों ने ब्याज दरें बढ़ा दी थीं।
  2. कथन-II: आमतौर पर केंद्रीय बैंक मानते हैं कि उनके पास बढ़ती हुई उपभोक्ता कीमतों का, मौद्रिक नीति के उपायों से प्रतिकार करने की सामर्थ्य है।

उपर्युक्त कथनों के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा एक सही है?

(a) कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं तथा कथन-II, कथन-1 की सही व्याख्या है
(b) कथन-I और कथन-II दोनों सही हैं और कथन-II, कथन-1 की सही व्याख्या नहीं है 
(c) कथन-I सही है किंतु कथन-II गलत है
(d) कथन-I गलत है किंतु कथन-II सही है

उत्तर: (a) 

व्याख्या: 

  • कोविड विश्वमारी/महामारी के बाद के हाल के विगत काल में विश्व भर में अनेकों केंद्रीय बैंकों ने महामारी के उपरांत की मुद्रास्फीति को रोकने के लिये ब्याज दरों में बढ़ोतरी की थी। उदाहरण के लिये RBI की मौद्रिक नीति समिति मई 2022 से कई बार दरों में बढ़ोतरी कर चुकी है। अतः कथन 1 सही है।
  • केंद्रीय बैंकों को आमतौर पर वस्तुओं की बढ़ती कीमतों को नियंत्रित करने का कार्य सौंपा जाता है। केंद्रीय बैंक द्वारा आर्थिक उतार-चढ़ाव का प्रबंधन करने तथा मूल्य स्थिरता प्राप्त करने के लिये मौद्रिक नीति का उपयोग किया जाता है। अतः कथन 2 सही है।

स्रोत: द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

रूस-यूक्रेन संघर्ष को समाप्त करने हेतु इंडोनेशिया की शांति योजना

प्रिलिम्स के लिये:

रूस और यूक्रेन युद्ध, यूरोपीय संघ, शंगरी-ला डायलॉग (SLD), संयुक्त राष्ट्र शांति सेना, यूरोपीय संघ  

मेन्स के लिये:

शंगरी-ला डायलॉग रक्षा शिखर सम्मेलन, रूस और यूक्रेन के बीच मुद्दा

चर्चा में क्यों? 

इंडोनेशिया के रक्षा मंत्री ने 3 जून को सिंगापुर में शंगरी-ला वार्ता रक्षा शिखर सम्मेलन के दौरान एक शांति योजना पेश की जिसका उद्देश्य रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष को हल करना था।  

शंगरी-ला वार्ता रक्षा शिखर सम्मेलन की प्रमुख विशेषताएँ:  

  • इंडोनेशिया का शांति प्रस्ताव: 
    • शत्रुता की तत्काल समाप्ति: वर्तमान में रूस और यूक्रेन दोनों में चल रही शत्रुता को रोकने का आह्वान करते हुए गंभीर आर्थिक एवं खाद्य आपूर्ति के मुद्दों ने एशियाई देशों को प्रभावित किया है।
    • वर्तमान स्थितियों में युद्धविराम: इस योजना में वर्तमान मोर्चे पर युद्धविराम का सुझाव दिया गया है जिसका उद्देश्य लड़ाई को समाप्त करना और भविष्य में हताहतों की संख्या को कम करना है।
    • विसैन्यीकृत क्षेत्रों की स्थापना: विसैन्यीकृत क्षेत्रों के निर्माण का प्रस्ताव दिया जो अंतर्राष्ट्रीय पर्यवेक्षकों और संयुक्त राष्ट्र शांति सेना बलों द्वारा गारंटीकृत होंगे।
    • संयुक्त राष्ट्र-संगठित जनमत संग्रह: यह योजना प्रभावित आबादी की आकांक्षाओं को निर्धारित करने हेतु संयुक्त राष्ट्र द्वारा आयोजित और निगरानी वाले विवादित क्षेत्रों में एक जनमत संग्रह कराने का सुझाव देती है।
  • अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य:
    • चीन की शांति योजना: चीन के विदेश मंत्रालय ने रूस और यूक्रेन के बीच शत्रुता को समाप्त करने के लिए चीन द्वारा प्रस्तावित 12 सूत्री शांति योजना जारी की।
      • इस योजना में रूस की सुरक्षा चिंताओं पर विचार करते हुए युद्धविराम की मांग करना, यूक्रेन को मानवीय सहायता प्रदान करना, कैदियों की अदला-बदली को सुविधाजनक बनाना और एकतरफा प्रतिबंधों को हटाना शामिल है।
    • यूक्रेन को पश्चिमी सहयोगियों की मदद: चीन के विपरीत संयुक्त राज्य अमेरिका और पश्चिमी सहयोगियों ने रूस के आक्रमण के बाद से यूक्रेन को महत्त्वपूर्ण सैन्य सहायता प्रदान की है।

शांगरी ला डायलॉग 

  • शांगरी ला डायलॉग (SLD) सिंगापुर में एक स्वतंत्र थिंक टैंक, इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर स्ट्रैटेजिक स्टडीज़ (IISS) द्वारा आयोजित एक वार्षिक अंतर-सरकारी सुरक्षा सम्मेलन है।
    • डायलॉग में रक्षा मंत्रियों, मंत्रालयों के स्थायी प्रमुखों और ज़्यादातर एशिया-प्रशांत राज्यों के सैन्य प्रमुखों के साथ-साथ विधायकों, अकादमिक विशेषज्ञों, पत्रकारों एवं व्यापारिक प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
    • संवाद का नाम सिंगापुर में शांगरी-ला होटल के नाम पर रखा गया है, जहाँ यह वर्ष 2002 से आयोजित किया जा रहा है।
  • फोरम का उद्देश्य क्षेत्र में रक्षा और सुरक्षा समुदाय में सबसे महत्त्वपूर्ण नीति निर्माताओं के बीच समुदाय की भावना पैदा करना एवं व्यावहारिक सुरक्षा सहयोग को बढ़ावा देना है।

रूस और यूक्रेन के बीच मुद्दा: 

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
    • सोवियत संघ के हिस्से के रूप में रूस के बाद यूक्रेन दूसरा सबसे शक्तिशाली सोवियत गणराज्य था और रणनीतिक, आर्थिक एवं  सांस्कृतिक रूप से महत्त्वपूर्ण था।
    • जब से यूक्रेन सोवियत संघ से अलग हुआ, रूस और पश्चिम देशों, दोनों ने क्षेत्र में शक्ति संतुलन को अपने पक्ष में बनाए रखने हेतु देश पर अधिक प्रभाव को लेकर  होड़ देखी गई है।
  • संघर्ष की शुरुआत:  
    • यह फरवरी 2014 में शुरू हुआ जब रूस ने बड़े पैमाने पर रूसी आबादी और रणनीतिक नौसैनिक अड्डे के साथ यूक्रेनी स्वायत्त गणराज्य क्रीमिया पर गुप्त रूप से आक्रमण किया एवं कब्ज़ा कर लिया।
    • रूस ने रूसी समर्थक अलगाववादियों का भी समर्थन किया जिन्होंने डोनेट्स्क और लुहांस्क के पूर्वी क्षेत्रों में यूक्रेनी सरकार के खिलाफ हथियार उठाए, जिन्हें सामूहिक रूप से डोनबास के रूप में जाना जाता है।
      • संघर्ष में नौसैनिक घटनाएँ, साइबर हमले, प्रचार अभियान और राजनीतिक हत्याएँ भी शामिल हैं।
    • इसने रूस और पश्चिम के बीच भी तनावपूर्ण संबंध बनाए हैं, जिन्होंने एक-दूसरे पर प्रतिबंध लगाए हैं एवं एक-दूसरे पर हस्तक्षेप तथा आक्रामकता का आरोप लगाया है।
  • रूस-यूक्रेन युद्ध 2022:  
    • वर्ष 2022 में रूस ने यूक्रेन पर पूर्ण रूप से आक्रमण किया, जिसमे मिसाइल हमलों के साथ देश भर के शहरों को लक्षित किया और अपने सैनिकों एवं प्रॉक्सी को कई मोर्चों पर आगे बढ़ाया। आक्रमण ने एक वैश्विक संकट तथा मानवीय आपदा को जन्म दिया।
    • संघर्ष के मुख्य कारण ऐतिहासिक, भू-राजनीतिक और वैचारिक हैं।
      • रूस, यूक्रेन को अपने प्रभाव क्षेत्र के हिस्से के रूप में देखता है और नाटो एवं यूरोपीय संघ में शामिल होने हेतु अपने समर्थक पश्चिमी अभिविन्यास तथा आकांक्षाओं का विरोध करता है। 
      • यूक्रेन, रूस को एक आक्रामक एवं अपनी संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता हेतु खतरे के रूप में देखता है।
    • संघर्ष के मुख्य लक्ष्य विवादित हैं। रूस यूक्रेन में जातीय रूसी और रूसी बोलने वालों के अधिकारों एवं हितों की रक्षा करने, ऐतिहासिक न्याय बहाल करने तथा पश्चिमी अतिक्रमण का मुकाबला करने का दावा करता है।
      • यूक्रेन अपनी स्वतंत्रता, लोकतंत्र और यूरोपीय एकीकरण की रक्षा करने का दावा करता है।  
    • आशय:  
      • संघर्ष के गहरे और दूरगामी निहितार्थ हैं। वे दुनिया की सुरक्षा, स्थिरता और समृद्धि को प्रभावित करते हैं, दुनिया में शक्ति और व्यवस्था के संतुलन को प्रभावित करते हैं, अंतर्राष्ट्रीय कानून तथा मानवाधिकारों के मानदंड एवं मूल्य, क्षेत्र में लोकतंत्र व विकास की संभावनाएँ और लाखों लोगों के जीवन तथा भविष्य को प्रभावित करते हैं। 

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रश्न. निम्नलिखित देशों पर विचार कीजिये: (2023)   

  1. बुल्गारिया
  2. चेक रिपब्लिक
  3. हंगरी
  4. लातविया
  5. लिथुआनिया
  6. रोमानिया

उपर्युक्त में से कितने देश यूक्रेन के साथ भूमि सीमा साझा करते हैं?

(a) केवल दो
(b) केवल तीन
(c) केवल चार
(d) केवल पाँच

 उत्तर: (a)

व्याख्या: 

  • दिये गए मानचित्र के अनुसार, हंगरी और रोमानिया यूक्रेन के साथ अपनी भूमि सीमाएँ साझा करते हैं।

अतः विकल्प A सही है।

स्रोत: द हिंदू


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