बॉक्साइट लीज़ रद्द करने की मांग
प्रिलिम्स के लिये:पर्यावरण प्रभाव आकलन, पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986, धातुकर्म प्रक्रिया और संबंधित चिंताएँ। मेन्स के लिये:बॉक्साइट और इसका वितरण, पर्यावरण प्रभाव आकलन। |
चर्चा में क्यों?
माली पर्वत बॉक्साइट खनन पट्टे की पर्यावरणीय मंज़ूरी पर ओडिशा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Odisha State Pollution Control Board’s- OSPCB) में सुनवाई से पहले पट्टे को स्थायी रूप से रद्द करने की मांग को लेकर स्थानीय लोगों ने विरोध शुरू कर दिया है।
संबंधित मुद्दा:
- पृष्ठभूमि:
- माली पर्वत में खनन गतिविधियों को लेकर वर्ष 2003 में पर्यावरणीय मंज़ूरी के लिये OSPCB द्वारा जन सुनवाई के समय से ही विरोध चला आ रहा है।
- वर्ष 2007 में हिंडाल्को को पट्टा/लीज़ दिये जाने के बाद ग्रामीणों ने आरोप लगाया था कि परियोजना को लेकर उनकी शिकायतों और आपत्तियों को नज़रअंदाज कर दिया गया।
- कार्यकर्त्ताओं के अनुसार, कंपनी की पर्यावरण प्रभाव आकलन रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि माली पर्वत में कोई जलाशय नहीं था।
- हालाँकि ग्रामीणों ने तर्क दिया था कि माली पर्वत से 36 बारहमासी नदियाँ बहती हैं, जो ग्रामीणों के लिये उनकी कृषि और पीने के उद्देश्यों के लिये जल का स्रोत हैं, अतः बॉक्साइट खनन परियोजना को रद्द कर दिया जाना चाहिये।
- वर्ष 2011 तक कंपनी खनन करने में विफल रही और बाद में इसकी पर्यावरणीय मंज़ूरी समाप्त हो गई लेकिन इसने वर्ष 2012-2014 में पर्यावरणीय मंज़ूरी के नवीनीकरण के बिना अवैध रूप से खनन शुरू कर दिया।
- उद्योग को 50 वर्ष के लिये नया पट्टा मिला है, जिसके लिये जन सुनवाई ज़रूरी थी।
- संबंधित चुनौतियाँ:
- आस-पास के गाँवों में रहने वाले आदिवासियों ने आरोप लगाया है कि माली पर्वत में खनन गतिविधियों से सोरीशपोदर, दलाईगुड़ा और पखाझोला पंचायतों के लगभग 42 गाँव प्रभावित होंगे।
- पर्यावरणविदों ने यह भी दावा किया है कि माली पर्वत की 32 बारहमासी धाराओं और चार नहरों में पानी की आपूर्ति के प्रभावित होने के कारण जनजातीय लोगों के जीवन पर इसका नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है।
- माली और इसके वन क्षेत्र के अंतर्गत कोंधा, परजा एवं गदाबा जनजातियाँ निवास करती हैं।
पर्यावरणीय प्रभाव आकलन:
- इसे पर्यावरण पर प्रस्तावित गतिविधि/परियोजना के प्रभाव की संभावनाओं के लिये अध्ययन के रूप में परिभाषित किया जा सकता है।
- यह कुछ परियोजनाओं के लिये पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत वैधानिक है।
- प्रक्रिया:
- निवेश के पैमाने, विकास के प्रकार और विकास के स्थान के आधार पर यह पता करने के लिये जाँच की जाती है कि किसी परियोजना को वैधानिक अधिसूचनाओं के अनुसार पर्यावरण मंज़ूरी की आवश्यकता है या नहीं।
- स्कोपिंग EIA की संदर्भ शर्तों (Terms of Reference -ToR) का विवरण देने की एक प्रक्रिया है, जो किसी परियोजना के विकास में मुख्य मुद्दे या समस्याएँ हैं।
- संभावित प्रभाव में परियोजना के महत्त्वपूर्ण पहलुओं और इसके विकल्पों के पर्यावरणीय परिणामों का मानचित्रण शामिल है।
- EIA रिपोर्ट के पूरा होने के बाद प्रस्तावित विकास पर जनता को अनिवार्य रूप से सूचित करने और परामर्श प्रदान करने की आवश्यकता होती है।
बॉक्साइट:
- परिचय:
- बॉक्साइट एल्यूमिनियम अयस्क है, एक ऐसा चट्टान जिसमें मुख्य रूप से हाइड्रेटेड एल्यूमीनियम ऑक्साइड होते हैं।
- गुजरात और गोवा के तटीय क्षेत्रों को छोड़कर बॉक्साइट भण्डार मुख्य रूप से लेटराइट्स से जुड़े हैं तथा पहाड़ियों एवं पठारों पर आच्छादन के रूप में पाए जाते हैं।
- बॉक्साइट का प्रयोग मुख्य रूप से बेयर प्रक्रिया (Bayer process) के माध्यम से एल्युमिना का उत्पादन करने के लिये किया जाता है।
- कई अन्य धातुओं की तरह विकसित हो रही एशियाई अर्थव्यवस्थाओं के विस्तार में पिछले कुछ वर्षों के दौरान एल्यूमीनियम और बॉक्साइट की वैश्विक मांग में काफी वृद्धि हुई है।
- वैश्विक वितरण:
- भंडार: वर्ष 2015 के आँकड़ों के अनुसार, संभावित विश्व बॉक्साइट भंडार 30 बिलियन टन है और यह मुख्य रूप से गिनी (25%), ऑस्ट्रेलिया (20%), वियतनाम (12%), ब्राज़ील (9%), जमैका (7%), इंडोनेशिया (4%) तथा चीन (3%) में पाया जाता है।
- इनमें से ऑस्ट्रेलिया प्रमुख उत्पादक है जिसका कुल उत्पादन में लगभग 29% हिस्सा रहा, इसके बाद चीन (19%), गिनी (18%), ब्राज़ील (10%) और भारत (7%) का स्थान है।
- भारत में वितरण:
- भण्डार: वर्ष 2019 के आँकड़ों के अनुसार, अकेले ओडिशा में देश के बॉक्साइट संसाधनों का 51% हिस्सा है, इसके बाद आंध्र प्रदेश (16%), गुजरात (9%), झारखंड (6%), महाराष्ट्र (5%) और मध्य प्रदेश एवं छत्तीसगढ़ (4%) का स्थान है। प्रमुख बॉक्साइट संसाधन ओडिशा तथा आंध्र प्रदेश के पूर्वी तट पर पाए जाते हैं।
- उत्पादन: वर्ष 2020 में कुल उत्पादन में ओडिशा का योगदान 71% और इस क्रम में गुजरात का 9% एवं झारखंड का 6% रहा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन सा खनिज छत्तीसगढ़ राज्य में प्राकृतिक रूप से पाया जाता है? (2008)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1, 2 और 3 उत्तर: (d) प्रश्न. निम्नलिखित खनिजों पर विचार कीजिये: (2020)
भारत में उपर्युक्त में से किसे आधिकारिक रूप से प्रमुख खनिजों के रूप में नामित किया गया है? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d)
अतः विकल्प (d) सही उत्तर है। |
स्रोत: द हिंदू
राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति 2022
प्रिलिम्स के लिये:भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी, सुदूर संवेदन/रिमोट सेंसिंग, SDG। मेन्स के लिये:राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति 2022, इसका महत्त्व और संबंधित चिंताएँ |
चर्चा में क्यों?
भारत को वैश्विक भू-स्थानिक क्षेत्र में एक वैश्विक नेतृत्त्वकर्त्ता के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय ने राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति (NGP) 2022 की घोषणा की है।
- वर्ष 2025 तक 12.8% की विकास दर से भारत की भू-स्थानिक अर्थव्यवस्था के 63,000 करोड़ रुपए के आँकड़े को पार करने के साथ ही इसकी सहायता से 10 लाख से अधिक लोगों को रोज़गार प्रदान किये जाने की उम्मीद है।
पृष्ठभूमि:
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय द्वारा वर्ष 2021 में मानचित्र सहित भू-स्थानिक डेटा एकत्र करने और उनकी प्रस्तुति के संबंध में दिशा-निर्देश जारी किये गए थे।
- जबकि दिशा-निर्देशों ने भू-स्थानिक डेटा एकत्रीकरण/उत्पादन/पहुँच को उदार बनाकर भू-स्थानिक क्षेत्र को नियंत्रण मुक्त कर दिया है, नीति 2022 भू-स्थानिक पारितंत्र के व्यापक विकास के लिये एक व्यापक रूपरेखा स्थापित करने का लक्ष्य रखती है।
राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति 2022:
- परिचय:
- यह भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी पर आधारित एक नागरिक-केंद्रित नीति है, जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय विकास, आर्थिक समृद्धि और एक संपन्न सूचना अर्थव्यवस्था को संवर्द्धित करने के लिये भू-स्थानिक क्षेत्र को मज़बूत करना है।
- इस नीति का लक्ष्य वर्ष 2030 तक उच्च सटीकता वाले डिजिटल एलिवेशन मॉडल (DEM) के साथ उच्च रिज़ॉल्यूशन स्थलाकृतिक सर्वेक्षण और मानचित्रण सुनिश्चित करना है।
- लक्ष्य एवं उद्देश्य:
- यह उच्च स्तरीय नवाचार पारितंत्र के साथ भारत को एक वैश्विक भू-स्थानिक नेता के रूप में स्थापित करने का लक्ष्य रखता है।
- एक मज़बूत राष्ट्रीय ढाँचे का निर्माण करना, जिसका उपयोग देश डिजिटल अर्थव्यवस्था में आगे बढ़ने और सार्वजनिक सेवाओं के बेहतर वितरण के लिये कर सकता है।
- भू-स्थानिक अवसंरचना, भू-स्थानिक कौशल और ज्ञान, मानक, भू-स्थानिक व्यवसाय विकसित करना।
- भू-स्थानिक सूचना के सृजन और प्रबंधन हेतु नवाचार को बढ़ावा देना तथा राष्ट्रीय एवं उप-राष्ट्रीय व्यवस्था को मज़बूत करना।
- संस्थागत ढाँचा:
- राष्ट्रीय स्तर पर भू-स्थानिक डेटा संवर्द्धन और विकास समिति (Geospatial Data Promotion and Development Committee- GDPDC) भू-स्थानिक क्षेत्र को बढ़ावा देने से संबंधित रणनीतियों को तैयार करने एवं लागू करने हेतु शीर्ष निकाय होगी।
- वर्ष 2021 में गठित GDPDC वर्ष 2006 में गठित राष्ट्रीय स्थानिक डेटा समिति (National Spatial Data Committee- NSDC) को प्रतिस्थापित और इसके कार्यों एवं शक्तियों को समाहित करेगा।
- विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग सरकार का नोडल विभाग बना रहेगा तथा GDPDC भू-स्थानिक प्रशासन से संबंधित अपने कार्यों के निर्वहन में DST को उपयुक्त सिफारिशें करेगा।
- विज़न को साकार करने हेतु नीतिगत निर्णय:
- वर्ष 2025:
- भू-स्थानिक क्षेत्रों के उदारीकरण और मूल्यवर्द्धित सेवाओं के साथ संवर्द्धित व्यावसायीकरण के लिये डेटा के लोकतंत्रीकरण का समर्थन करने वाली एक सक्षम नीति एवं कानूनी ढाँचा तैयार किया जाए।
- वर्ष 2030:
- उच्च विभेदन स्थलाकृतिक सर्वेक्षण और मानचित्रण (शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों के लिये 5-10 सेमी. एवं जंगलों व बंजर भूमि हेतु 50-100 सेमी.)।
- वर्ष 2035:
- ब्लू इकॉनमी का समर्थन करने के लिये उच्च विभेदन/सटीकता युक्त अंतर्देशीय जल और उथले/गहरे समुद्र की सतह स्थलाकृति का बाथिमेट्रिक भू-स्थानिक डेटा।
- प्रमुख शहरों और कस्बों का नेशनल डिजिटल ट्विन (Twin)। डिजिटल ट्विन एक भौतिक संपत्ति, प्रक्रिया या सेवा की एक आभासी प्रतिकृति है जो नई डिजिटल क्रांति के केंद्र में है।
- नेशनल डिजिटल ट्विन (Twin) स्मार्ट, डायनेमिक, कनेक्टेड डिजिटल ट्विन्स का एक इकोसिस्टम होगा, जो बेहतर निर्णय लेने की सुविधा के लिये सुरक्षित और इंटरऑपरेबल (Interoperable) डेटा शेयरिंग द्वारा सक्षम होगा।
- वर्ष 2025:
- महत्त्व:
- भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी और डेटा सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) को प्राप्त करने के लिये परिवर्तन एजेंटों के रूप में कार्य कर सकते हैं।
- यह स्टार्टअप को बढ़ावा देने और बाह्य देशों पर निर्भरता को कम करने के लिये एक जीवंत पहल है।
- सैन्य संचालन, आपदा और आपातकालीन प्रबंधन, पर्यावरण निगरानी, भूमि एवं शहर के लिये योजना जैसे महत्त्वपूर्ण डेटा प्रबंधन अनुप्रयोगों हेतु भू-स्थानिक डेटा आवृत्तियों के व्यापक स्पेक्ट्रम में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
संबंधित चिंताएँ:
- जटिल डेटा:
- भू-स्थानिक डेटा को जटिल संबंधों वाले डेटा विषय के रूप में उनके मध्य वर्णित किया जा सकता है।
- ऐसा डेटा जिसे अभी पूरी तरह से समझा और संबोधित किया जाना बाकी है, को सुरक्षित रखने में बड़ी चुनौतियाँ और अड़चनें आती हैं।
- सुरक्षा चिंताएँ:
- हालाँकि भू-स्थानिक डेटा तक पहुँच को प्रबंधित करने और साझा करने के लिये कई प्रकार के मॉडल एवं तकनीकें उपलब्ध हैं, लेकिन राष्ट्रीय सुरक्षा चिंताओं को दूर करने पर बहुत कम ध्यान दिया गया है, जैसे- पहुँच नियंत्रण (Access Control), प्रतिभूतियाँ तथा गोपनीय नीतियाँ एवं विशेष रूप से रक्षा क्षेत्र की त्रि-सेवाओं (Tri-Services) में सुरक्षित अंतर्संचालनीयता (Interoperable) GIS अनुप्रयोगों का विकास।
- डेटा का दुरुपयोग और गोपनीयता का उल्लंघन:
- यदि विभिन्न रिपॉजिटरी से डेटा को एकीकृत करके भू-स्थानिक डेटा को पूरे निकाय को उपलब्ध कराया जाएगा, तो संभावित डेटा के दुरुपयोग और गोपनीयता के उल्लंघन की गंभीर संभावनाएँ हैं।
- रक्षा अनुप्रयोगों के संदर्भ में एक प्रमुख चिंता का विषय यह है कि "स्वामित्त्व निर्माण जैसी संवेदनशील जानकारी भी प्रकट हो सकती है या महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचे के बारे में जानकारी सार्वजनिक रूप से सुलभ हो सकती है।
भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी:
- भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी में भौगोलिक मानचित्रण और विश्लेषण हेतु भौगोलिक सूचना प्रणाली (Geographic Information System- GIS), ग्लोबल पोज़िशनिंग सिस्टम (Global Positioning System- GPS) और रिमोट सेंसिंग जैसे उपकरणों का उपयोग किया जाता है।
- ये उपकरण वस्तुओं, घटनाओं और परिघटनाओं (पृथ्वी पर उनकी भौगोलिक स्थिति के अनुसार अनुक्रमित जियोटैग) के बारे में स्थानिक जानकारी प्रदान करते हैं। किसी स्थान का डेटा स्थिर (Static) या गतिशील (Dynamic) हो सकता है।
- किसी स्थान के स्थिर डेटा/स्टेटिक लोकेशन डेटा (Static Location Data) में सड़क की स्थिति, भूकंप की घटना या किसी विशेष क्षेत्र में बच्चों में कुपोषण की स्थिति के बारे में जानकारी शामिल होती है, जबकि किसी स्थान के गतिशील डेटा /डायनेमिक लोकेशन डेटा (Dynamic Location Data) में संचालित वाहन या पैदल यात्री, संक्रामक बीमारी के प्रसार आदि से संबंधित डेटा शामिल होता है।
- बड़ी मात्रा में डेटा में स्थानिक प्रतिरूप की पहचान के लिये इंटेलिजेंस मैप्स (Intelligent Maps) निर्मित करने हेतु प्रौद्योगिकी का उपयोग किया जा सकता है।
- यह प्रौद्योगिकी दुर्लभ संसाधनों के महत्त्व और उनकी प्राथमिकता के आधार पर निर्णय लेने में मददगार हो सकती है।
आगे की राह
- आपदा नियोजन परिदृश्य में भाग लेने वाले व्यक्तियों और संगठनों की संख्या को देखते हुए सुरक्षा उपायों को यह सुनिश्चित करने के लिये लागू किया जाना चाहिये कि उपयोगकर्त्ताओं एवं एप्स के पास केवल उसी डेटा तक पहुँच हो जिसकी उन्हें आवश्यकता है।
- राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति 2022 में देश के राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों हेतु सुरक्षित एक स्पष्ट रोडमैप और SOP तैयार किया जाना चाहिये, चाहे वह तीनों सैन्य सेवा, अर्द्धसैनिक या महत्त्वपूर्ण बुनियादी ढाँचा क्षेत्र हों।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा/से भारत सरकार के ‘डिजिटल इंडिया’ योजना का/के उद्देश्य है/हैं? (2018)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) |
स्रोत: फाइनेंसियल एक्सप्रेस
जल्लीकट्टू
प्रिलिम्स के लिये:जल्लीकट्टू, अनुच्छेद 29, भारतीय पशु कल्याण बोर्ड बनाम ए. नागराज मामला, पोंगल, कंबाला मेन्स के लिये:जल्लीकट्टू का पारंपरिक और सांस्कृतिक महत्त्व, जल्लीकट्टू से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय की एक संविधान पीठ ने जल्लीकट्टू की रक्षा करने वाले तमिलनाडु के कानून को रद्द करने की मांग करने वाली याचिकाओं के एक समूह के वाद को निर्णय के लिये आरक्षित कर लिया है, जिसमें दावा किया गया है कि साँडों को वश में करने का खेल राज्य की सांस्कृतिक विरासत है और संविधान के अनुच्छेद 29 (1) के तहत संरक्षित है।
- हालाँकि इन प्रथाओं की जड़ें कुछ समुदायों की संस्कृति और परंपराओं में गहराई से हो सकती हैं, ये प्रथाएँ अक्सर विवादास्पद होती हैं तथा पशु कल्याण समर्थकों द्वारा उनकी आलोचना की जाती है।
जल्लीकट्टू:
- जल्लीकट्टू एक पारंपरिक खेल है जो भारतीय राज्य तमिलनाडु में लोकप्रिय है।
- इस खेल में लोगों की भीड़ में एक साँड को छोड़ दिया जाता है तथा प्रतिभागी साँड के कूबड़ को पकड़ने और यथासंभव लंबे समय तक सवारी करने या इसे नियंत्रण में लाने का प्रयास करते हैं।
- यह जनवरी के महीने में तमिल फसल उत्सव, पोंगल के दौरान मनाया जाता है।
संबद्ध चिंताएँ:
- इसमें शामिल प्राथमिक प्रश्न यह था कि क्या जल्लीकट्टू को अनुच्छेद 29 (1) के तहत सामूहिक सांस्कृतिक अधिकार के रूप में संवैधानिक संरक्षण दिया जाना चाहिये।
- अनुच्छेद 29 (1) नागरिकों के शैक्षिक और सांस्कृतिक अधिकारों की रक्षा के लिये संविधान के भाग III के तहत गारंटीकृत मौलिक अधिकार है।
- न्यायालय ने इस बात की जाँच की कि क्या कानून "पशुओं के प्रति क्रूरता को बनाए रखते हैं" या वास्तव में "बैलों की देशी नस्ल के अस्तित्व और कल्याण" को सुनिश्चित करने के लिये आवश्यक हैं।
- पाँच न्यायाधीशों की पीठ ने इस बात पर पक्षों को सुना कि क्या नए जल्लीकट्टू कानून संविधान के अनुच्छेद 48 के अनुरूप हैं, जिसमें राज्य से कृषि और पशुपालन को आधुनिक एवं वैज्ञानिक आधार पर संगठित करने का आग्रह किया गया है।
- संविधान पीठ ने इस बात पर भी गौर किया कि क्या कर्नाटक और महाराष्ट्र के जल्लीकट्टू और बैलगाड़ी दौड़ कानून वास्तव में पशु क्रूरता रोकथाम अधिनियम 1960 के तहत पशुओं के प्रति क्रूरता की रोकथाम के उद्देश्य को पूरा करेंगे।
संबद्ध कानूनी हस्तक्षेप:
- वर्ष 2011 में केंद्र सरकार द्वारा बैलों को उन जानवरों की सूची में शामिल किया गया जिनका प्रशिक्षण और प्रदर्शनी प्रतिबंधित है।
- वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय में वर्ष 2011 की अधिसूचना का हवाला देते हुए एक याचिका दायर की गई थी जिस पर फैसला सुनाते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने जल्लीकट्टू पर प्रतिबंध लगा दिया था।
- वर्ष 2018 में सर्वोच्च न्यायालय ने जल्लीकट्टू मामले को एक संविधान पीठ के पास भेज दिया, जहाँ यह मामला अब भी लंबित है।
- विवाद की जड़ पशु क्रूरता रोकथाम (तमिलनाडु संशोधन) अधिनियम 2017 और पशु क्रूरता रोकथाम (जल्लीकट्टू का संचालन) नियम 2017 है, जिसने सर्वोच्च न्यायालय के वर्ष 2014 के प्रतिबंध के बावजूद संस्कृति और परंपरा के नाम पर बैलों को काबू में करने वाले लोकप्रिय खेल के संचालन के लिये दरवाज़े फिर से खोल दिये थे।
जल्लीकट्टू के पक्ष और विपक्ष में तर्क:
- पक्ष में तर्क:
- तमिलनाडु में जल्लीकट्टू, राज्य के लोगों द्वारा मनाया जाने वाला धार्मिक और सांस्कृतिक उत्सव है, जिसका प्रभाव जाति और पंथ की सीमाओं से परे है।
- राज्य सरकार के अनुसार, "एक प्रथा जो सदियों पुरानी है और एक समुदाय की पहचान का प्रतीक है, को विनियमित एवं सुधारा जा सकता है जिस प्रकार मानव जाति पूरी तरह से समाप्त होने के बजाय विकसित होती है।"
- इसमें कहा गया है कि इस तरह के उत्सव पर किसी भी प्रतिबंध को "संस्कृति के प्रति शत्रुतापूर्ण और समुदाय की संवेदनशीलता के खिलाफ" के रूप में देखा जाएगा।
- जल्लीकट्टू को "पशुओं की कीमती स्थानीय नस्ल के संरक्षण के लिये एक उपकरण" के रूप में वर्णित करते हुए सरकार ने तर्क दिया कि पारंपरिक आयोजन करुणा और मानवता के सिद्धांतों का उल्लंघन नहीं करता है।
- उसने तर्क दिया कि उत्सव के पारंपरिक और सांस्कृतिक महत्त्व एवं सामाजिक-सांस्कृतिक परिवेश के साथ इसके अंतर्संबंध को हाईस्कूल के पाठ्यक्रम में पढ़ाया जा रहा है ताकि "आगामी पीढ़ियों तक इसका महत्त्व बनाए रखा जा सके।"
- विपक्ष में तर्क:
- याचिकाकर्त्ताओं का तर्क था कि जानवरों का मनुष्यों के जीवन से अटूट जुड़ाव रहा है। स्वतंत्रता "हर जीवित प्राणी में निहित है, चाहे वह जीवन के किसी भी रूप में हो," क्योंकि यह ऐसा पहलू है जिसे संविधान द्वारा मान्यता दी गई है।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जल्लीकट्टू पर लगाए गए प्रतिबंध के संदर्भ में तमिलनाडु सरकार द्वारा कानून बनाया गया था।
- जल्लीकट्टू के आयोजन के परिणामस्वरूप राज्य के कई ज़िलों में हुई मौतों और चोटिलों में मनुष्यों के साथ-साथ साँड भी शामिल थे।
- याचिकाकर्त्ताओं का मत था कि तमिलनाडु सरकार द्वारा बनाए गए कानून के बावजूद कुछ साँडों पर अत्याचार के मामले देखने को मिलते रहे हैं।
- उनके अनुसार, ये जानवर अत्यधिक क्रूरता के भी शिकार हुए हैं।
- जल्लीकट्टू को संस्कृति का एक हिस्सा मानने के संबंध में कोई साक्ष्य नहीं है।
- आलोचकों ने इस घटना की तुलना सती और दहेज जैसी प्रथाओं से की थी, जिन्हें एक समय संस्कृति के हिस्से के रूप में भी मान्यता दी गई थी और कानून द्वारा प्रतिबंधित कर दिया गया था।
अन्य राज्यों में समान प्रकार के खेलों की स्थिति:
- समान प्रवृत्ति के खेल कंबाला को जीवित रखने के लिये कर्नाटक द्वारा भी एक कानून पारित किया गया।
- तमिलनाडु और कर्नाटक को छोड़कर साँडों को पालतू बनाने और रेसिंग का आयोजन करने के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के 2014 के प्रतिबंध आदेश के कारण आंध्र प्रदेश, पंजाब तथा महाराष्ट्र सहित अन्य सभी राज्यों में इस प्रकार के खेलों पर प्रतिबंध लगाया गया है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न. धर्मनिरपेक्षता के नाम पर हमारी सांस्कृतिक प्रथाओं के सामने क्या-क्या चुनौतियाँ हैं? (2019) |
स्रोत: द हिंदू
सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 19 के दायरे का विस्तार किया
प्रिलिम्स के लिये:अनुच्छेद 19 का दायरा, सर्वोच्च न्यायालय, मौलिक अधिकार मेन्स के लिये:महत्त्वपूर्ण निर्णय, मौलिक अधिकार |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय सुनाया है कि अनुच्छेद 19/21 के अंतर्गत एक मौलिक अधिकार को राज्य या उसके साधनों के अलावा अन्य व्यक्तियों के खिलाफ भी लागू किया जा सकता है।
- न्यायालय ने फैसला सुनाते हुए कहा कि अनुच्छेद 19(1)(A) के तहत गारंटीकृत भाषण और अभिव्यक्ति के अधिकार को अनुच्छेद 19(2) में पहले से निर्धारित किये गए आधारों के अलावा किसी भी अतिरिक्त आधार पर प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है।
अनुच्छेद 19:
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 19 में वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रावधान है और आमतौर पर राज्य के खिलाफ लागू होता है।
- भारतीय संविधान, 1949 का अनुच्छेद 19 सभी नागरिकों को स्वतंत्रता के अधिकारों की गारंटी प्रदान करता है, जो इस प्रकार हैं:
- वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार।
- शांतिपूर्वक सम्मेलन में भाग लेने की स्वतंत्रता का अधिकार।
- संगम या संघ बनाने का अधिकार।
- भारत के संपूर्ण क्षेत्र में अबाध संचरण की स्वतंत्रता का अधिकार।
- भारत के किसी भी क्षेत्र में निवास का अधिकार।
- विलोपित
- व्यवसाय आदि की स्वतंत्रता का अधिकार।
- भारतीय संविधान, 1949 का अनुच्छेद 19(2):
- खंड (1) का उपखंड (a) किसी भी मौजूदा कानून के संचालन को प्रभावित नहीं करेगा या राज्य को कोई भी कानून बनाने से नहीं रोकेगा, हालाँकि उक्त उपखंड प्रदत्त अधिकार के प्रयोग पर भारत की संप्रभुता और अखंडता के संदर्भ में उचित प्रतिबंध लगाता है जैसे- राज्य की सुरक्षा, विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध, सार्वजनिक व्यवस्था, शालीनता या नैतिकता, या न्यायालय की अवमानना, मानहानि या हिंसा के लिये उकसाने के संबंध में।
- भारतीय संविधान, 1949 का अनुच्छेद 19 सभी नागरिकों को स्वतंत्रता के अधिकारों की गारंटी प्रदान करता है, जो इस प्रकार हैं:
- कुछ मौलिक अधिकार जैसे- अस्पृश्यता, तस्करी और बंधुआ मज़दूरी पर रोक लगाने वाले अधिकार स्पष्ट रूप से राज्य और अन्य व्यक्तियों दोनों के खिलाफ हैं।
सर्वोच्च न्यायालय के फैसले का संदर्भ:
- निजी संस्थाओं के खिलाफ अधिकार:
- यह व्याख्या राज्य पर यह सुनिश्चित करने का दायित्त्व डालती है कि निजी संस्थाएँ भी संवैधानिक मानदंडों का पालन करती हैं।
- यह कई संवैधानिक कानूनी संभावनाएँ प्रदान करता है, जैसे कि निजी डॉक्टर के खिलाफ गोपनीयता के अधिकार को लागू करना या निजी सोशल मीडिया फर्म के खिलाफ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार प्रदान करना।
- न्यायालय के पूर्व फैसलों का संदर्भ:
- न्यायालय ने पुट्टास्वामी मामले में वर्ष 2017 के फैसले का हवाला दिया, जिसमें नौ न्यायाधीशों की बेंच ने सर्वसम्मति से निजता को मौलिक अधिकार के रूप में बरकरार रखा था।
- सरकार ने तर्क दिया कि निजता एक ऐसा अधिकार है जिसे अन्य नागरिकों के खिलाफ लागू किया जा सकता है, इसलिये इसे राज्य के खिलाफ मौलिक अधिकार का दर्जा नहीं दिया जा सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय दृष्टिकोण:
- न्यायालय ने अन्य देशों की कानूनी प्रणालियों को देखते हुए यूरोपीय न्यायालयों के साथ अमेरिकी दृष्टिकोण की तुलना की।
- अमेरिकी कानून में "ऊर्ध्वाधर दृष्टिकोण" से "क्षैतिज दृष्टिकोण" में बदलाव का एक उदाहरण न्यूयॉर्क टाइम्स बनाम सुलिवन मामले में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय है, जिसमें पाया गया कि न्यूयॉर्क टाइम्स के खिलाफ मानहानि कानून संबंधी राज्य का आवेदन भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की संविधान की गारंटी के साथ असंगत था।
- जब अधिकारों को ऊर्ध्वाधर (Vertically) रूप से लागू किया जाता है, तो उनका उपयोग केवल सरकार के विरुद्ध ही किया जा सकता है; क्षैतिज (Horizontally) रूप से लागू होने पर उनका उपयोग अन्य नागरिकों के विरुद्ध भी किया जा सकता है।
- उदाहरण के लिये एक नागरिक किसी निजी कंपनी के खिलाफ जीवन के अधिकार के क्षैतिज (Horizontally) आवेदन के तहत प्रदूषण उत्पन्न करने के लिये मुकदमा दायर कर सकता है, जो कि स्वच्छ पर्यावरण के अधिकार का उल्लंघन होगा।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रिलिम्स:प्रश्न. भारत के संविधान के किस अनुच्छेद के तहत 'निजता का अधिकार' संरक्षित है? (2021) (a) अनुच्छेद 15 उत्तर: (c) प्रश्न. निजता के अधिकार को जीवन और व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार के आंतरिक भाग के रूप में संरक्षित किया गया है। भारत के संविधान में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा उपर्युक्त वाक्य को सही एवं उचित रूप से लागू करता है? (2018) (a) अनुच्छेद 14 और संविधान के 42वें संशोधन के तहत प्रावधान। उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. निजता के अधिकार पर सर्वोच्च न्यायालय के नवीनतम निर्णय के आलोक में मौलिक अधिकारों के दायरे की जाँच कीजिये। (2017) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन
प्रिलिम्स के लिये:हरित हाइड्रोजन, नवीकरणीय ऊर्जा। मेन्स के लिये:राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन और संबंधित चुनौतियाँ। |
चर्चा में क्यों?
केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन, जिसकी लागत 19,744 करोड़ रुपए है, को मंज़ूरी दी है इसका उद्देश्य भारत को हरित हाइड्रोजन के उपयोग, उत्पादन और निर्यात के लिये 'वैश्विक केंद्र' बनाना है।
राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन:
- परिचय:
- यह हरित हाइड्रोजन के व्यावसायिक उत्पादन को प्रोत्साहित करने और भारत को ईंधन का शुद्ध निर्यातक बनाने हेतु एक कार्यक्रम है।
- यह मिशन हरित हाइड्रोजन मांग में वृद्धि लाने के साथ-साथ इसके उत्पादन, उपयोग और निर्यात को बढ़ावा देगा।
- उप योजनाएँ:
- हरित हाइड्रोजन संक्रमण कार्यक्रम हेतु रणनीतिक हस्तक्षेप (Strategic Interventions for Green Hydrogen Transition Programme- SIGHT):
- यह इलेक्ट्रोलाइज़र के घरेलू निर्माण को निधि प्रदान करेगा और हरित हाइड्रोजन का उत्पादन करेगा।
- हरित हाइड्रोजन हब:
- बड़े पैमाने पर उत्पादन और/या हाइड्रोजन के उपयोग का समर्थन करने में सक्षम राज्यों एवं क्षेत्रों को हरित हाइड्रोजन हब के रूप में पहचाना तथा विकसित किया जाएगा।
- हरित हाइड्रोजन संक्रमण कार्यक्रम हेतु रणनीतिक हस्तक्षेप (Strategic Interventions for Green Hydrogen Transition Programme- SIGHT):
- उद्देश्य:
- वर्ष 2030 तक भारत में लगभग 125 GW (गीगावाट) की नवीकरणीय ऊर्जा क्षमता विकसित करने के साथ-साथ प्रतिवर्ष कम-से-कम 5 MMT (मिलियन मीट्रिक टन) की हरित हाइड्रोजन उत्पादन क्षमता का विकास करना।
- इसके तहत कुल 8 लाख करोड़ रुपए से अधिक का निवेश कर 6 लाख नौकरियाँ सृजित करना अपेक्षित है।
- इसके अतिरिक्त इसके परिणामस्वरूप जीवाश्म ईंधन के आयात में 1 लाख करोड़ रुपए से अधिक की शुद्ध कमी के साथ-साथ वार्षिक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लगभग 50 मीट्रिक टन की कमी आएगी।
- नोडल मंत्रालय:
- नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय।
- महत्त्व:
- औद्योगिक, परिवहन और ऊर्जा क्षेत्रों का डीकार्बोनाइज़ेशन आयातित जीवाश्म ईंधन एवं फीडस्टॉक पर निर्भरता कम करने, घरेलू विनिर्माण क्षमता बढ़ाने, रोज़गार की संभावनाएँ पैदा करने तथा नई प्रौद्योगिकियों को आगे बढ़ाने में योगदान देगा।
- क्षमता:
- भारत में हरित हाइड्रोजन के उत्पादन हेतु भौगोलिक स्थिति अनुकूल होने के साथ-साथ धूप और हवा की प्रचुर उपलब्धता है।
- हरित हाइड्रोजन प्रौद्योगिकियों को उन क्षेत्रों में प्रोत्साहित किया जा रहा है जिन क्षेत्रों में प्रत्यक्ष विद्युतीकरण संभव नहीं है।
- इनमें से कुछ उद्योग लंबी दूरी की परिवहन के साधन, कुछ औद्योगिक तथा विद्युत क्षेत्र में उच्च भंडारण क्षमता वाले उपकरण शामिल हैं।
- उच्च मूल्य वाले हरित उत्पादों और इंजीनियरिंग, क्रय एवं निर्माण सेवाओं के निर्यात के लिये क्षेत्रीय हब का विकास उद्योग के शुरुआती चरणों के कारण संभव है।
संबंधित चुनौतियाँ:
- विश्व स्तर पर नवीन साधन:
- विश्व स्तर पर हरित हाइड्रोजन का विकास अभी भी प्रारंभिक अवस्था में है, जबकि भारत एक प्रमुख उत्पादक होने का लक्ष्य निर्धारित कर सकता है, हालाँकि इन सभी मध्यस्थ कदमों को निष्पादित करने हेतु आवश्यक बुनियादी ढाँचा नहीं है।
- आर्थिक स्थिरता:
- हाइड्रोजन का व्यावसायिक रूप से उपयोग करने के लिये उद्योग द्वारा सामना की जाने वाली सबसे बड़ी चुनौतियों में से एक हरित हाइड्रोजन उत्पादन की आर्थिक स्थिरता है।
- परिवहन ईंधन शृंखला के लिये प्रति मील के आधार पर पारंपरिक ईंधन और प्रौद्योगिकियों के साथ हाइड्रोजन को लागत-प्रतिस्पर्द्धी होना चाहिये।
हरित हाइड्रोजन:
- परिचय:
- हाइड्रोजन प्रमुख औद्योगिक ईंधन है जिसके अमोनिया ( प्रमुख उर्वरक), स्टील, रिफाइनरियों और विद्युत उत्पादन सहित विभिन्न प्रकार के अनुप्रयोग हैं।
- हालाँकि इस प्रकार निर्मित सभी हाइड्रोजन को तथाकथित 'ब्लैक या ब्राउन' हाइड्रोजन कहा जाता है क्योंकि वे कोयले से उत्पन्न होते हैं।
- हाइड्रोजन ब्रह्मांड में सबसे प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है लेकिन शुद्ध हाइड्रोजन की मात्रा अत्यंत ही कम है। यह लगभग हमेशा ऑक्सीजन के साथ H2O, अन्य यौगिकों में मौजूद होता है।
- लेकिन जब विद्युत धारा जल से गुज़रती है, तो यह इलेक्ट्रोलिसिस के माध्यम से इसे मूल ऑक्सीजन और हाइड्रोजन में खंडित करती है। यदि इस प्रक्रिया के लिये उपयोग की जाने वाली विद्युत का स्रोत, पवन या सौर ऊर्जा जैसे नवीकरणीय स्रोत हैं तो इस प्रकार उत्पादित हाइड्रोजन को हरित हाइड्रोजन कहा जाता है।
- हाइड्रोजन से जुड़े रंग हाइड्रोजन अणु को प्राप्त करने के लिये प्रयुक्त बिजली के स्रोत को इंगित करते हैं। उदाहरण के लिये यदि कोयले का उपयोग किया जाता है, तो इसे ब्राउन हाइड्रोजन कहा जाता है।
- वर्तमान उत्पादन:
- ग्रीन हाइड्रोजन वर्तमान में वैश्विक हाइड्रोजन उत्पादन का 1% से भी कम उत्पादन होने के कारण उपभोग हेतु अत्यधिक महँगा है।
- एक किलोग्राम ब्लैक हाइड्रोजन का उत्पादन करने के लिये 0.9-1.5 अमेरिकी डॉलर खर्च होता है, जबकि ग्रे हाइड्रोजन की लागत 1.7-2.3 अमेरिकी डॉलर और ब्लू हाइड्रोजन की कीमत 1.3-3.6 अमेरिकी डालर तक हो सकती है। काउंसिल फॉर एनर्जी, एन्वायरनमेंट एंड वाटर 2020 के विश्लेषण के अनुसार, ग्रीन हाइड्रोजन की कीमत 3.5-5.5 डॉलर प्रति किलोग्राम है।
- हरित हाइड्रोजन के उत्पादन की आवश्यकता:
- प्रति यूनिट भार में उच्च ऊर्जा सामग्री के कारण हाइड्रोजन ऊर्जा का एक बड़ा स्रोत है, यही कारण है कि इसका उपयोग रॉकेट ईंधन के रूप में किया जाता है।
- ग्रीन हाइड्रोजन विशेष रूप से शून्य उत्सर्जन के साथ ऊर्जा के सबसे स्वच्छ स्रोतों में से एक है। इसका उपयोग कारों के लिये ईंधन सेल के रूप में या उर्वरक और इस्पात निर्माण जैसे अत्यधिक ऊर्जा खपत वाले उद्योगों में किया जा सकता है।
- दुनिया भर के देश हरित हाइड्रोजन क्षमता के निर्माण पर काम कर रहे हैं क्योंकि यह ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है और कार्बन उत्सर्जन को कम करने में भी मदद कर सकता है।
- हरित हाइड्रोजन वैश्विक चर्चा का विषय बन गया है, विशेष रूप से जब दुनिया अपने सबसे बड़े ऊर्जा संकट का सामना कर रही है और जलवायु परिवर्तन का खतरा वास्तविकता में बदल रहा है।
अक्षय ऊर्जा से संबंधित अन्य पहलें:
आगे की राह
- औद्योगिक हाइड्रोजन के अधिकतम उपभोगकर्त्ताओ को हरित हाइड्रोजन को अपनाने के लिये समझाने हेतु प्रोत्साहन की घोषणा करने की आवश्यकता है।
- भारत को पाइपलाइनों, टैंकरों, मध्यवर्ती भंडारण और अंतिम चरण वितरण नेटवर्क के रूप में आपूर्ति शृंखला विकसित करने के साथ-साथ एक प्रभावी कौशल विकास कार्यक्रम संचालित करने की आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि लाखों श्रमिकों को व्यवहार्य हरित हाइड्रोजन अर्थव्यवस्था के अनुकूल होने के लिये उपयुक्त रूप से प्रशिक्षित किया जा सके।
- भारत में कम लागत वाले नवीकरणीय उत्पादन संयंत्रों का उपयोग करके हरित हाइड्रोजन की लागत को कम करने की क्षमता तथा सौर एवं पवन रिवर्स नीलामी के माध्यम से प्राप्त लागत में कटौती की जा सकती है।
- युवा जनसांख्यिकी और संपन्न अर्थव्यवस्था के कारण विशाल बाज़ार क्षमता, हाइड्रोजन-आधारित प्रौद्योगिकियों के अनुप्रयोग को आगे बढ़ाते हुए सरकार के लिये दीर्घकालिक रूप से लाभप्रद होगी।
इन्फोग्राफिक: राष्ट्रीय हरित हाइड्रोजन मिशन
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. हाइड्रोजन ईंधन सेल वाहन "निकास" के रूप में निम्नलिखित में से एक का उत्पादन करते हैं: (2010) (a) NH3 उत्तर: c व्याख्या:
अतः विकल्प (c) सही है। |
स्रोत: द हिंदू
शहद मिशन और मीठी क्रांति
प्रिलिम्स के लिये:राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन, मधुमक्खी पालन, मीठी क्रांति मेन्स के लिये:किसानों की आय दोगुनी करना, मीठी क्रांति, मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देना |
चर्चा में क्यों?
शहद मिशन के तहत खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) द्वारा देश भर में 17,500 लाभार्थियों को मधुमक्खी पालन का प्रशिक्षण देने के बाद से अब तक 1,75000 मधुमक्खी पेटियों का वितरण किया जा चुका है।
- राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (NHB) के अनुसार, उत्तर प्रदेश, पश्चिम बंगाल, पंजाब, बिहार, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश, हरियाणा, उत्तराखंड, मध्य प्रदेश और कर्नाटक 2021-22 में शीर्ष दस शहद उत्पादक राज्य थे।
शहद मिशन:
- इसे वर्ष 2017 में 'मीठी क्रांति' के अनुरूप लॉन्च किया गया था।
- मिशन के अंतर्गत सूक्ष्म, लघु एवं मध्यम उद्यम मंत्रालय के तहत KVIC किसानों या मधुमक्खी पालकों को प्रदान करता है:
- मधुमक्खी कालोनियों की निगरानी के बारे में व्यावहारिक प्रशिक्षण।
- सभी मौसमों में मधुमक्खी कालोनियों के प्रबंधन के साथ-साथ मधुमक्खी के शत्रुओं और रोगों की पहचान और प्रबंधन।
- मधुमक्खी पालन उपकरण से परिचित कराना।
- शहद निष्कर्षण एवं मोम शोधन।
मीठी क्रांति
- परिचय:
- यह मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार की एक महत्त्वाकांक्षी पहल है, जिसे 'मधुमक्खी पालन' के नाम से जाना जाता है।
- मीठी क्रांति बूस्टर शॉट प्रदान करने के लिये सरकार ने 2020 में राष्ट्रीय मधुमक्खी पालन और शहद मिशन (कृषि व किसान कल्याण मंत्रालय के तहत एक केंद्रीय क्षेत्र की योजना) को आत्मनिर्भर भारत योजना के हिस्से के रूप में लॉन्च किया।
- यह मधुमक्खी पालन को बढ़ावा देने के लिये भारत सरकार की एक महत्त्वाकांक्षी पहल है, जिसे 'मधुमक्खी पालन' के नाम से जाना जाता है।
- उद्देश्य:
- इसका उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण शहद और अन्य संबंधित उत्पादों के उत्पादन में तेज़ी लाना है।
- अच्छी गुणवत्ता वाले शहद की मांग पिछले कुछ वर्षों में बढ़ी है क्योंकि इसे प्राकृतिक रूप से पौष्टिक उत्पाद माना जाता है।
- अन्य मधुमक्खी पालन उत्पादों जैसे- रॉयल जेली, मोम, पराग, आदि का भी विभिन्न क्षेत्रों जैसे- फार्मास्यूटिकल्स, भोजन, पेय, सौंदर्य और अन्य में बड़े पैमाने पर उपयोग किया जाता है।
- इसका उद्देश्य गुणवत्तापूर्ण शहद और अन्य संबंधित उत्पादों के उत्पादन में तेज़ी लाना है।
- महत्त्व:
- इस मिशन के माध्यम से प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप मधुमक्खी संरक्षण सुनिश्चित करेगा, बीमारियों को रोकेगा या मधुमक्खी कालोनियों के नुकसान को रोकेगा तथा मधुमक्खी पालन उत्पादों की गुणवत्ता के साथ अधिक मात्रा प्रदान करेगा।
- खेती के तरीकों से घरेलू और अंतर्राष्ट्रीय बाज़ार के लिये बेहतर गुणवत्ता वाला शहद व अन्य उत्पाद प्राप्त होंगे।
- मधुमक्खी पालन एक कम निवेश और अत्यधिक कुशल उद्यम मॉडल है, जो प्रौद्योगिकी अनुप्रयोग सामाजिक-आर्थिक विकास के लिये एक बड़े कारक के रूप में उभरा है।
- मधुमक्खी पालन को बढ़ाने से किसानों की आय दोगुनी होगी, रोज़गार पैदा होगा, खाद्य सुरक्षा और मधुमक्खी संरक्षण सुनिश्चित होगा तथा फसल उत्पादकता में वृद्धि होगी।
- इस मिशन के माध्यम से प्रौद्योगिकी हस्तक्षेप मधुमक्खी संरक्षण सुनिश्चित करेगा, बीमारियों को रोकेगा या मधुमक्खी कालोनियों के नुकसान को रोकेगा तथा मधुमक्खी पालन उत्पादों की गुणवत्ता के साथ अधिक मात्रा प्रदान करेगा।
खादी और ग्रामोद्योग आयोग:
- खादी और ग्रामोद्योग आयोग 'खादी एवं ग्रामोद्योग आयोग अधिनियम,1956' के तहत एक सांविधिक निकाय (Statutory Body) है।
- इसका मुख्य उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ भी आवश्यक हो अन्य एजेंसियों के साथ मिलकर खादी एवं ग्रामोद्योगों की स्थापना तथा विकास के लिये योजनाएँ बनाना, उनका प्रचार-प्रसार करना तथा सुविधाएँ एवं सहायता प्रदान करना है।
- यह भारत सरकार के सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय (Ministry of MSME) के अंतर्गत आने वाली एक मुख्य संस्था है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न
प्रश्न. बागवानी फार्मों के उत्पादन, उत्पादकता और आय को बढ़ाने में राष्ट्रीय बागवानी मिशन (National Horticulture Mission- NHM) की भूमिका का आकलन कीजिये। किसानों की आय बढ़ाने में यह कहाँ तक सफल हुआ है? (मुख्य परीक्षा, 2018) |