इंदौर शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 11 नवंबर से शुरू   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

मेन्स प्रैक्टिस प्रश्न

  • प्रश्न :

    ग्लोबल पोजिशनिंग या जी.पी.एस. युग में ‘मानक स्थिति-निर्धारण प्रणालियों’ (SPS) और ‘परिशुद्ध स्थिति-निर्धारण प्रणालियों’ (SPS) से आप क्या समझते हैं?’ केवल सात उपग्रहों का इस्तेमाल करते हुए भारत किस प्रकार अपने महत्त्वाकांक्षी आई.आर.एन.एस.एस. (IRNSS) कार्यक्रम का लाभ उठा सकेगा, चर्चा कीजिये।

    22 Dec, 2018 सामान्य अध्ययन पेपर 3 विज्ञान-प्रौद्योगिकी

    उत्तर :

    भूमिका में:


    वैश्विक स्थिति निर्धारण प्रणाली के बारे में चर्चा करते हुए उत्तर प्रारंभ करेंगे-

    वैश्विक स्थिति निर्धारण प्रणाली (GPS), उपग्रह आधारित नौवहन प्रणाली है जो मुख्यत: तीन प्रकार की सेवाएँ प्रदान करती है- अवस्थिति, नेविगेशन एवं समय संबंधी सेवाएँ। ये सेवाएँ पृथ्वी की कक्षा में परिव्रमण करते उपग्रहों की सहायता से प्राप्त की जाती हैं।

    विषय-वस्तु में:


    विषय-वस्तु के पहले भाग में हम ‘मानक स्थिति-निर्धारण प्रणाली’ एवं ‘परिशुद्ध स्थिति-निर्धारण प्रणाली’ पर चर्चा करेंगे-

    उपर्युक्त सेवाओं की वैश्विक पहुँच एवं सटीकता को सुनिश्चित करने के लिये 20 से ज़्यादा उपग्रहों की आवश्यकता होती है। अमेरिका द्वारा विकसित ऐसी प्रणाली ‘जीपीएस’ में 25 से भी ज़्यादा उपग्रह हैं। इस प्रकार की उपग्रह आधारित नौवहन प्रणालियाँ अन्य देशों द्वारा भी संचालित की जाती हैं, जैसे-रूस का ग्लोनास, यूरोपियन यूनियन का गैलीलियो, चीन का बेईदू इत्यादि।

    सामान्य उद्देश्य के लिये प्रयोग में आने वाले वैश्विक नौवहन प्रणाली का उपयोग साधारण स्थिति निर्धारण, नौवहन या अन्य प्रकार के कार्यों में किया जाता है। परंतु इनसे प्राप्त होने वाले संकेतों (सिग्नल) में कुछ त्रुटियाँ मौजूद होती हैं, जिससे परिशुद्धता में कमी आती है। इस प्रकार की साधारण सेवाएँ ‘मानक स्थिति-निर्धारण प्रणाली’ के अंतर्गत आती हैं।

    परंतु कुछ विशेष कार्यों जैसे- सैन्य उपयोग, अनुसंधान संबंधी कार्यों इत्यादि में ज़्यादा सटीक संकेतों की आवश्यकता होती है। उपग्रह नौवहन प्रणाली की ऐसी सेवाएँ जो ज़्यादा शुद्धता से संकेत एवं सूचनाएँ प्रदान करती हैं, ‘परिशुद्ध स्थिति-निर्धारण प्रणाली’ कहलाती है। ऐसी सेवाओं का उपयोग प्राय: सैन्य विभागों द्वारा किया जाता है।

    विषय-वस्तु के दूसरे भाग में हम भारत द्वारा उपग्रह नेविगेशन प्रणाली से उठाए जाने वाले लाभों को विस्तार में बताएंगे-

    उपग्रह नेविगेशन प्रणाली की महत्ता को स्वीकार करते हुए भारत ने भी इस दिशा में आत्मनिर्भरता हेतु आई.आर.एन.एस.एस. प्रणाली का विकास किया है। महज़ सात उपग्रहों पर आधारित यह एक क्षेत्रीय मार्ग निर्देशन तंत्र (रीज़नल नेविगेशन प्रणाली) है, जिसका विस्तार न सिर्फ भारत बल्कि भारत की स्थल सीमा के बाहर 1500 कि.मी. के दायरे में होगा। आईआरएनएसएस द्वारा दो प्रकार की सेवाएँ दी जाएंगी- प्रथम, मानक स्थिति निर्धारण सेवा (SPS) जो कि सभी उपयेागकर्त्ताओं को उपलब्ध होगी तथा दूसरी, प्रतिबंधित सेवा (RS) जो कि केवल अधिकृत उपयोगकर्त्ता को उपलब्ध होगी। इसके पूरी तरह से क्रियान्वित होने पर निम्नलिखित लाभ मिल सकते हैं-

    • स्थलीय, हवाई, महासागरीय दिशा-निर्देशन।
    • वाहन ट्रैकिंग तथा बेड़ा प्रबंधन।
    • आपदा प्रबंधन।
    • सैन्य क्षेत्रों, युद्ध, सीमा प्रबंधन, आतंकी घुसपैठों पर निगरानी।
    • पद यात्रियों तथा पर्यटकों के लिये स्थलीय नेविगेशन की सुविधा।
    • चालकों के लिये दृश्य एवं श्रव्य दिशा-निर्देशन की सुविधा।
    • सटीक समय की गणना।
    • मानचित्रण एवं भूगणितीय डेटा का संकलन।
    • मोबाइल फोन के साथ एकीकरण।

    निष्कर्ष


    अंत में संतुलित, सारगर्भित एवं संक्षिप्त निष्कर्ष लिखें-

    सिर्फ सात उपग्रहों पर आधारित आई.आर.एन.एस.एस., भारतीय आवश्यकताओं के अनुरूप है। यह एक वैश्विक प्रणाली नहीं है। इसका मुख्य उद्देश्य उपग्रह नौवहन प्रणाली के लिये अन्य देशों पर निर्भरता को कम करना है। इस प्रकार यह आत्मनिर्भरता की दिशा में उठाया गया एक महत्त्वपूर्ण कदम है।

    To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

    Print
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2