डेली न्यूज़ (05 Sep, 2022)



विश्व में स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं की स्थिति

प्रिलिम्स के लिये:

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष (UNICEF), विश्व जल सप्ताह, विश्व स्वास्थ्य सभा, स्वच्छ भारत, राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल मिशन (NRDWM), सुनिधि शौचालय परियोजना।

मेन्स के लिये:

स्वास्थ्य सुविधाओं में स्वच्छता का महत्त्व।

चर्चा में क्यों?

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपातकालीन कोष (UNICEF/यूनिसेफ) की नवीनतम संयुक्त निगरानी कार्यक्रम (JMP) रिपोर्ट के अनुसार, विश्व की लगभग आधी स्वास्थ्य सुविधाओं में बुनियादी स्वच्छता सेवाओं का अभाव है, जिससे 3.85 बिलियन लोगों को संक्रमण का खतरा बढ़ गया है।

  • यह रिपोर्ट स्वीडन के स्टॉकहोम में आयोजित विश्व जल सप्ताह के दौरान जारी की गई।

प्रमुख बिंदु

  • बुनियादी स्वच्छता की कमी:
    • विश्व की लगभग आधी स्वास्थ्य सुविधाओं में बुनियादी स्वच्छता सेवाओं की कमी है, जिससे 3.85 बिलियन लोगों को संक्रमण का खतरा बढ़ गया है।
      • ये सुविधाएँ मरीजों को जल, साबुन या अल्कोहल-आधारित हाथ धोने की सुविधा उपलब्ध नहीं हैं।
      • केवल 51% स्वास्थ्य सुविधाओं ने बुनियादी स्वच्छता सेवाओं की आवश्यकताओं को पूरा किया।
      • उनमें से लगभग 68% लोगों के पास टॉयलेट में जल और साबुन से हाथ धोने की सुविधा उपलब्ध थी और 65% के पास देखभाल केंद्रों पर ऐसी सुविधाएँ थीं।
        • इसके अलावा विश्व भर में 11 चिकित्सा सुविधाओं में से सिर्फ एक में दोनों सुविधाएँ उपलब्ध हैं।
  • सुभेद्द्य जनसंख्या हेतु घातक:
    • सुरक्षित जल और बुनियादी स्वच्छता एवं स्वच्छता सेवाओं के बिना अस्पताल तथा क्लीनिक गर्भवती माताओं, नवजात शिशुओं और बच्चों के लिये संभावित मृत्यु का कारण हैं।
  • विभिन्न रोगों का उदय:
    • प्रत्येक वर्ष 670,000 नवजात शिशु रक्तपूतिता/घाव के सड़ने (Sepsis) के कारण अपनी जान गंँवा देते हैं।
      • रक्तपूतिता जीवन के लिये खतरनाक है जो तब होती है जब संक्रमण के कारण शरीर की प्रतिक्रिया अपने स्वयं के ऊतकों को नुकसान पहुँचाती है।
  • रोग संचरण में वृद्धि:
    • अस्वच्छ हाथ और पर्यावरण में रोग संचरण ने एंटीबायोटिक प्रतिरोध के उद्भव को महत्त्वपूर्ण रूप से प्रभावित किया हैं।
    • सबसे कम विकसित देशों में केवल 53% स्वास्थ्य संस्थानों के पास सुरक्षित जल आपूर्ति है।
      • पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशिया में सुरक्षित जल आपूर्ति का अनुपात 90% है, जिसमें अस्पताल स्वास्थ्य सुविधाओं में बेहतर प्रदर्शन कर रहे हैं।
        • लगभग 11% ग्रामीण और 3% शहरी स्वास्थ्य संस्थानों में जल की पहुँच नहीं है।

स्वच्छता सुविधाओं का महत्त्व:

  • स्वास्थ्य देखभाल स्थिति में स्वच्छता सुविधाएँ और तरीके गैर-परक्राम्य हैं।
  • महामारी से उबरने, रोकथाम और तैयारियों के लिये उनका सुधार आवश्यक है।
  • विशेष रूप से सुरक्षित प्रसव के लिये उच्च गुणवत्ता वाली स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने हेतु जल और साबुन तथा हाथ धोने की पहुँच को बढ़ावा देना आवश्यक है।

चुनौतियों से निपटना:

  • विभिन्न क्षेत्रों और आय समूहों में जल, साफ-सफाई और स्वच्छता (WASH) सुविधाओं का कवरेज़ अभी भी असमान है।
    • स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में जल, साफ-सफाई और स्वच्छता (WASH) सेवाओं को मज़बूत करने के लिये देशों को वर्ष 2019 विश्व स्वास्थ्य सभा की प्रतिबद्धता को लागू करने की आवश्यकता है।

जल, साफ-सफाई और स्वच्छता (WASH) से संबंधित भारत सरकार की पहलें:

  • वर्तमान स्थिति:
    • शहरी केंद्र:
      • राष्ट्रीय स्तर पर, 910 मिलियन नागरिकों के पास उचित स्वच्छता तक पहुँच नहीं है।
        • भारत की बहुसंख्यक जनसंख्या वाले शहरी केंद्रों के बावजूद, शहरी स्वच्छता की कमी है।
  • पहल:
    • स्वच्छ भारत की शौचालय पहुँच और रोज़गार सृजन:
      • इसका उद्देश्य भारत में खुले में शौच को कम करना है। वर्ष 2018 और वर्ष 2019 के मध्य, 93% घरों में शौचालय की सुविधा थी, जो पिछले वर्ष के 77% की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि को दर्शाता है।
      • स्वच्छता के बुनियादी ढांँचे के निर्माण के क्रम में 2 मिलियन से अधिक पूर्णकालिक श्रमिकों हेतु रोज़गार का सृजन हुआ है।
    • ग्रामीण समुदायों में जल:
      • वर्ष 2017 और 2018 के बीच, भारत के राष्ट्रीय जल मिशन को राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल मिशन (National Rural Drinking Water Mission-NRDWM) के तहत विस्तारित किया गया है।
        • जबकि अन्य कार्यक्रम और विभाग शहरी केंद्रों में स्वच्छता पर केंद्रित हैं, NRDWM भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में कार्य करता है।
        • इसका लक्ष्य ग्रामीण क्षेत्र के प्रत्येक घरों में पाइप से जल की आपूर्ति सुनिश्चित करना है।
    • आईजल (iJal) सेफ वाॅटर स्टेशन:
      • सेफ वाॅटर नेटवर्क, पॉल न्यूमैन द्वारा बनाया गया एक गैर-लाभकारी संगठन, अपने आईजल वाटर स्टेशनों के माध्यम से विभिन्न समुदायों तक स्वच्छ जल की उपलब्धता सुनिश्चित करता है।
        • स्थानीय स्वामित्त्व वाले स्टेशन उन समुदायों में स्वच्छ, गुणवत्तापूर्ण जल तक पहुँच प्रदान करते हैं; जहाँ जल सुरक्षा अत्यंत दुष्कर कार्य है।
    • वॉश (Water, Sanitation and Hygiene- WASH) सहयोगी:
      • अंतर्राष्ट्रीय विकास हेतु संयुक्त राज्य अमेरिका एजेंसी (United States Agency for International Development-USAID) और संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (The United Nations Children's Fund-UNICEF भारत सरकार के सहयोग से कार्य करते हैं।
        • USAID ने सितंबर 2020 से पूर्व उपलब्धियों की सूचना दी, जिसमें सुरक्षित पेयजल तक पहुँच में वृद्धि, घरेलू शौचालयों की संख्या में बढ़ोत्तरी और सार्वजनिक शौच की प्रवृति में कमी शामिल है।

 आगे की राह:

  • बुनियादी उपायों में निवेश बढ़ाए बिना स्वास्थ्य सुविधाओं में स्वच्छता को सुरक्षित नहीं किया जा सकता है, जिसमें सुरक्षित जल, स्वच्छ शौचालय और सुरक्षित रूप से प्रबंधित स्वास्थ्य देखभाल अपशिष्ट शामिल हैं।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न (PYQs):

प्रिलिम्स:

Q. भारतीय रेलवे द्वारा उपयोग किये जाने वाले जैव-शौचालय के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)

  1. जैव-शौचालय में मानव अपशिष्ट का अपघटन एक कवक इनोकुलम द्वारा शुरू किया जाता है।
  2. इस अपघटन में अमोनिया और जलवाष्प एकमात्र अंतिम उत्पाद हैं जो वायुमंडल में निर्मुक्त होते हैं।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: D

व्याख्या:

  • भारतीय रेलवे की जैव-शौचालय परियोजना प्रौद्योगिकी का एक अभिनव और स्वदेशी विकास है। यह अपनी तरह की पहली तकनीक है और मानव अपशिष्ट के त्वरित अपघटन के लिये विश्व में किसी भी रेलमार्ग में पहली बार इसका उपयोग किया जा रहा है।
  • इन जैव-शौचालयों को सामान्य शौचालयों के नीचे लगाया जाता है और उनमें छोड़े गए मानव अपशिष्ट पर एनारोबिक बैक्टीरिया द्वारा अपघटन कार्य किया जाता है जो मानव अपशिष्ट को मुख्य रूप से जल में परिवर्तित करता है और मीथेन, अमोनिया इत्यादि जैसी जैव-गैसों की अल्प मात्रा को वायुमंडल में निर्मुक्त करता है। अतः कथन 1 और 2 दोनों सही नहीं हैं।
  • ये गैसें वायुमंडल में चली जाती हैं और अपशिष्ट जल को क्लोरीनीकरण के बाद रेलवे मार्ग पर निष्कासित कर दिया जाता है।
  • इस प्रकार मानव अपशिष्ट, रेलवे की पटरियों पर नहीं गिरता है, जिससे प्लेटफार्मों पर साफ-सफाई और स्वच्छता में सुधार होता है और सफाई कर्मचारियों को अपना काम अधिक कुशलता से करने में सुविधा होती है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


भारत-दक्षिण अफ्रीका द्विपक्षीय बैठक

प्रिलिम्स के लिये:

यूपीएससी, आईएएस, भारत-दक्षिण अफ्रीका संबंध, कौशल विकास, राष्ट्रीय शिक्षा नीति, ब्रिक्स, IBSA, G20, हिंद महासागर रिम एसोसिएशन (IORA), विश्व व्यापार संगठन (WTO), मेक इन इंडिया, भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICCR), प्रवासी भारतीय दिवस (PBD), विश्व हिंदी सम्मेलन।

मेन्स के लिये:

भारत के हितों और भारत-दक्षिण अफ्रीका संबंधों पर देशों की नीतियों और राजनीति का प्रभाव एवं आगे की राह।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और दक्षिण अफ्रीका, उच्च शिक्षा संस्थानों (HEI) एवं कौशल संस्थानों के मध्य गठजोड़ के लिये संस्थागत तंत्र विकसित करने पर सहमत हुए।

बैठक के मुख्य बिंदु:

  • परिचय:
    • यह द्विपक्षीय बैठक इंडोनेशिया के बाली में संपन्न हुई।
    • इस दौरान शैक्षिक गठजोड़ के लिये संस्थागत तंत्र विकसित करने का निर्णय लिया गया
    • साथ ही, दोनों देशों के मध्य शिक्षा पर एक संयुक्त कार्यदल गठित करने पर भी सहमति बनी।
  • महत्त्व:
    • इससे उस सहयोग का और विस्तार होगा जो पहले से मौजूद है तथा शिक्षा के क्षेत्र में द्विपक्षीय सहयोग की पूरी क्षमता का दोहन किया जा सकेगा।
    • राष्ट्रीय शिक्षा नीति (National Education Policy-NEP) की शुरूआत ने पहले ही भारतीय शिक्षा के अंतर्राष्ट्रीयकरण का मार्ग प्रशस्त कर दिया है। भारत और दक्षिण अफ्रीका के संबंध घनिष्ठ तथा मैत्रीपूर्ण हैं और साझा मूल्यों और हितों में निहित हैं।
      • शैक्षिक गठजोड़ के लिये संस्थागत तंत्र अकादमिक और कौशल विकास साझेदारी और द्विपक्षीय शिक्षा सहयोग को मज़बूत करेगा।
      • इसके अलावा, यह कौशल विकास में कौशल योग्यता और क्षमता निर्माण की पारस्परिक मान्यता में सहायक होगा।

भारत-दक्षिण अफ्रीका संबंध:

  • पृष्ठभूमि:
    • दक्षिण अफ्रीका में स्वतंत्रता और न्याय के लिये संघर्ष के समय से भारत के संबंध उसके साथ हैं, जब महात्मा गांधी ने एक सदी पहले दक्षिण अफ्रीका में अपना सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया था।
    • भारत, दक्षिण अफ्रीका में हुए रंगभेद विरोधी आंदोलन के समर्थन में अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में सबसे आगे था। यह वहाँ की रंगभेदी सरकार के साथ व्यापार संबंधों को तोड़ने (वर्ष 1946 में) वाला पहला देश था और बाद में इसने इस सरकार पर पूर्ण राजनयिक, वाणिज्यिक, सांस्कृतिक तथा खेल प्रतिबंध भी लगाए।
    • दक्षिण अफ्रीका ने अपनी रंगभेद नीति को समाप्त करने के चार दशकों के बाद वर्ष 1993 में भारत से व्यापार और व्यावसायिक संबंधों को फिर से स्थापित किया।
      • दोनों देशों के मध्य नवंबर 1993 में राजनयिक और वाणिज्यिक संबंध बहाल हुए।
  • राजनीतिक संबंध:
    • वर्ष 1994 में दक्षिण अफ्रीका ने लोकतंत्र की प्राप्ति के बाद मार्च 1997 में भारत और दक्षिण अफ्रीका के मध्य सामरिक साझेदारी पर लाल किला घोषणा (Red Fort Declaration on Strategic Partnership) पर हस्ताक्षर किये, जिसने पुन: संबंध की स्थापना में नए मानदंड निर्धारित किये।
    • दोनों देशों के मध्य सामरिक साझेदारी की त्श्वाने घोषणा (Tshwane Declaration- अक्तूबर 2006) द्वारा पुनः पुष्टि की गई।
      • ये दोनों घोषणाएँ महत्त्वपूर्ण रही हैं जिन्होंने अतीत में दक्षिण अफ्रीका और भारत दोनों को अपने-अपने राष्ट्रीय उद्देश्यों को प्राप्त करने में योगदान दिया है।
    • भारत और दक्षिण अफ्रीका का वैश्विक शासन/बहुपक्षीय मंचों पर अपने विचारों तथा प्रयासों को समन्वित कर एक साथ काम करने का एक लंबा इतिहास रहा है।
  • आर्थिक 
    • भारत, दक्षिण अफ्रीका का पाँचवाँ सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है और चौथा सबसे बड़ा आयात मूल देश है तथा एशिया में दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है।
      • दोनों देश आने वाले वर्षों में व्यापार बढ़ाने के लिये काम कर रहे हैं। भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच द्विपक्षीय व्यापार वर्तमान में 10 अरब अमेरिकी डॉलर का है।
    • वर्ष 2016 में दोनों देश रक्षा क्षेत्र में विशेष रूप से 'मेक इन इंडिया' पहल, ऊर्जा क्षेत्र, कृषि-प्रसंस्करण, मानव संसाधन विकास और बुनियादी ढाँचे के विकास के तहत दक्षिण अफ्रीकी निजी क्षेत्र हेतु उपलब्ध अवसरों के संदर्भ में सहयोग के लिये सहमत हुए।
  • विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी:
    • दोनों देशों के विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग ने विशेष रूप से स्क्वायर किलोमीटर एरे (SKA) परियोजना में सहयोग किया है।
  • संस्कृति:
    • भारतीय सांस्कृतिक संबंध परिषद (ICAR) की मदद से पूरे दक्षिण अफ्रीका में सांस्कृतिक आदान-प्रदान का एक गहन कार्यक्रम आयोजित किया जाता है, जिसमें दक्षिण अफ्रीकी नागरिकों के लिये छात्रवृत्ति प्रदान करना भी शामिल है।
    • 9वाँ विश्व हिंदी सम्मेलन सितंबर 2012 में जोहान्सबर्ग में आयोजित किया गया था
    • रंगभेद विरोधी आंदोलन के समर्थन में भारत अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में अग्रणी था।
  • भारतीय समुदाय:
    • भारतीय मूल के समुदाय का बड़ा हिस्सा वर्ष 1860 के बाद से दक्षिण अफ्रीका में कृषि श्रमिकों के रूप में चीनी और अन्य कृषि बागानों में तथा मिल संचालकों के रूप में काम करने के लिये आया था।
    • अफ्रीकी महाद्वीप में दक्षिण अफ्रीका सर्वाधिक भारतीय डायस्पोरा का घर है, जिसकी कुल संख्या 1,218,000 है, जो दक्षिण अफ्रीका की कुल आबादी का 3% है।
    • वर्ष 2003 के बाद से भारत प्रत्येक वर्ष 9 जनवरी को प्रवासी भारतीय दिवस मनाता है (जिस दिन महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे थे)।

आगे की राह

  • संस्कृत भाषा, दर्शनशास्त्र, आयुर्वेद और योग के क्षेत्र में अकादमिक सहयोग तथा छात्र विनिमय कार्यक्रम शुरू किये जाने चाहिये।
  • यह हिंदू धर्म और साझा आध्यात्मिक, सांस्कृतिक एवं आर्थिक संबंधों की समझ को व्यापक बनाने का मार्ग प्रशस्त करेगा।
  • कौशल क्षेत्र में सहयोग की व्यवस्था की जानी चाहिये।
  • यह पर्यटन उद्यमिता को प्रोत्साहित करेगा, यात्रा, पर्यटन, आतिथ्य और व्यवसाय के उभरते क्षेत्रों में क्षमता निर्माण में मदद करेगा साथ ही लोगों से लोगों के बीच संबंधों को बढ़ावा देगा।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न:

प्रश्न. ब्रिक्स के नाम से जाने जाने वाले देशों के समूह के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2014)

  1. ब्रिक्स का पहला शिखर सम्मेलन वर्ष 2009 में रियो डी जनेरियो में आयोजित किया गया था।
  2. दक्षिण अफ्रीका ब्रिक्स समूह में शामिल होने वाला अंतिम देश था।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) दोनों 1 और 2
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (b)


प्रश्न: "यदि पिछले कुछ दशक एशिया की विकास गाथा के थे, तो अगले कुछ दशक अफ्रीका के होने की उम्मीद है।" इस कथन के आलोक में हाल के वर्षों में अफ्रीका में भारत के प्रभाव का परीक्षण कीजिये। (मुख्य परीक्षा, 2021)

स्रोत: पी.आई.बी.


भारत बना विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था

प्रिलिम्स के लिये:

सकल घरेलू उत्पाद (GDP), प्रति व्यक्ति GDP, सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) सूचकांक, मानव विकास सूचकांक।

मेन्स के लिये:

भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि और विकास।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत यूनाइटेड किंगडम को पछाड़कर विश्व की पाँचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है। अब संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन, जापान और जर्मनी की ही अर्थव्यवस्था भारत से बड़ी है।

  • अनिश्चितताओं से युक्त विश्व में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 6-6.5% की वृद्धि करते के साथ ही भारत वर्ष 2029 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने के लिये तैयार है।

Indian-Economy

प्रमुख बिंदु

  • नया मील का पत्थर:
    • दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में से एक को पीछे छोड़ना, विशेष रूप से दो शताब्दियों तक भारतीय उपमहाद्वीप पर शासन करने वाली अर्थव्यवस्था, वास्तव में मील का पत्थर है।
  • अर्थव्यवस्था का आकार:
    • मार्च, 2022 की तिमाही में 'सांकेतिक/नॉमिनल कैश टर्म' में भारतीय अर्थव्यवस्था का आकार 854.7 बिलियन अमेरिकी डॉलर था जबकि यूनाइटेड किंगडम की 816 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी।
  • यूनाइटेड किंगडम के साथ तुलना:
    • जनसंख्या का आकार:
      • वर्ष 2022 तक भारत की जनसंख्या 1.41 बिलियन है जबकि यूनाइटेड किंगडम की जनसंख्या 68.5 मिलियन है।
  • प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद:
    • प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद आय स्तरों की अधिक यथार्थवादी तुलना प्रदान करता है क्योंकि यह किसी देश के सकल घरेलू उत्पाद को उस देश की जनसंख्या से विभाजित करता है।
    • भारत में प्रति व्यक्ति आय बहुत कम बनी हुई है, वर्ष 2021 में प्रति व्यक्ति आय के मामले में भारत 190 देशों में से 122वें स्थान पर है।

GDP-per-capita

  • गरीबी:
    • कम प्रति व्यक्ति आय अक्सर गरीबी के उच्च स्तर की ओर संकेत करती है।
    • 19वीं सदी की शुरुआत में ब्रिटेन में चरम गरीबी की हिस्सेदारी भारत की तुलना में काफी अधिक थी।
      • हालाँकि भारत ने गरीबी पर अंकुश लगाने में काफी प्रगति की है, फिर भी सापेक्ष स्थिति उलट गई है।
  • स्वास्थ्य:
    • सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज (UHC) सूचकांक को प्रजनन, मातृ, नवजात शिशु और बाल स्वास्थ्य, संक्रामक रोगों, गैर-संचारी रोगों तथा सेवा क्षमता एवं पहुँच सहित आवश्यक सेवाओं के औसत कवरेज़ के आधार पर 0 (सबसे खराब) से 100 (सर्वश्रेष्ठ) के पैमाने पर मापा जाता है।
    • जबकि तेज़ आर्थिक विकास और वर्ष 2005 से स्वास्थ्य योजनाओं पर सरकार की नीति ने भारत के लिये एक अलग सुधार किया है, इसके बावजूद अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है।

Health-coverage-Index

  • मानव विकास सूचकांक (HDI):
    • उच्च सकल घरेलू उत्पाद और तेज़ आर्थिक विकास का अंतिम लक्ष्य बेहतर मानव विकास मानकों का होना है।
    • HDI (2019) के अनुसार यूके का स्कोर 0.932 और भारत का स्कोर 0.645 है जो तुलनात्मक रूप से यूके से काफी पीछे है।
      • अपने धर्मनिरपेक्ष सुधार के बावजूद भारत को अभी भी ब्रिटेन की वर्ष 1980 की स्थिति को प्राप्त करने में एक दशक लग सकता है।
  • वर्तमान परिदृश्य:
    • नाटकीय बदलाव पिछले 25 वर्षों में भारत की तीव्र आर्थिक वृद्धि के साथ-साथ पिछले 12 महीनों में पाउंड के मूल्य में गिरावट देखी गई है।
      • वैश्विक भू-राजनीति में सही नीतिगत परिप्रेक्ष्य और पुनर्संरेखण से भी भारत के अनुमानों में उर्ध्मुखी संशोधन (Upward Revision) हो सकता है।

भारतीय अर्थव्यवस्था से संबंधित मुद्दे:

  • निर्यात में कमी और आयात में वृद्धि:
    • विनिर्माण क्षेत्र की8% की अल्प वृद्धि चिंता का विषय है।
      • साथ ही आयात की तुलना में निर्यात से अधिक होना चिंता का विषय है।
  • अप्रत्याशित मौसम:
    • यह अप्रत्याशित मानसून कृषि विकास और ग्रामीण मांग पर दबाव डाल सकता है।
  • महँगाई में वृद्धि:
    • लगातार सात महीनों से मुद्रास्फीति में लगभग 6% की लगातार वृद्धि हो रही है।
      • भारतीय अर्थव्यवस्था को उच्च ऊर्जा और कमोडिटी की कीमतों से प्रतिकूल परिस्थितियों का सामना करना पड़ रहा है, जिसका उपभोक्ता मांग और कंपनियों की निवेश योजनाओं पर प्रभाव पड़ने की संभावना है।

सकल घरेलू उत्पाद (GDP):

  • सकल घरेलू उत्पाद (GDP) एक विशिष्ट समय अवधि में किसी देश की सीमाओं के भीतर उत्पादित सभी तैयार वस्तुओं और सेवाओं का कुल मौद्रिक या बाज़ार मूल्य है।
    • समग्र घरेलू उत्पादन के व्यापक रूप में, यह किसी देश के आर्थिक स्थिति के व्यापक मूल्यांकन का कार्य करता है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न(PYQs):

प्रिलिम्स:

Q. भारतीय अर्थव्यवस्था के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015)

  1. पिछले दशक में वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर में लगातार वृद्धि हुई है।
  2. बाज़ार मूल्य पर सकल घरेलू उत्पाद (रुपए में) पिछले एक दशक में लगातार वृद्धि हुई है।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: B

व्याख्या:

  • सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) किसी देश की सीमाओं के भीतर एक विशिष्ट समय अवधि, आम तौर पर 1 वर्ष में उत्पादित सभी अंतिम वस्तुओं और सेवाओं का मौद्रिक मूल्य है। यह एक राष्ट्र की समग्र आर्थिक गतिविधि का एक व्यापक माप है।
  • वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद एक मुद्रास्फीति-समायोजित उपाय है जो किसी दिये गए वर्ष में अर्थव्यवस्था द्वारा उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्य को आधार-वर्ष की कीमतों में व्यक्त करता है।
  • वास्तविक GDP की वृद्धि दर पिछले एक दशक में लगातार नहीं बढ़ी है। विभिन्न अंतर्राष्ट्रीय घरेलू आर्थिक दबावों के कारण इसमें उतार-चढ़ाव आया है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • भारत के बाज़ार मूल्यों पर सकल घरेलू उत्पाद पिछले एक दशक में वर्ष 2005 में लगभग 900 बिलियन अमेरीकी डॉलर से बढ़कर वर्ष 2015 में 2.1 ट्रिलियन अमेरीकी डॉलर हो गया है। वर्ष 2020 तक, भारत का सकल घरेलू उत्पाद 2.63 ट्रिलियन अमेरीकी डॉलर था। अत: कथन 2 सही है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


राजद्रोह कानून

प्रिलिम्स के लिये:

राजद्रोह कानून, धारा 124ए, भारतीय दंड संहिता।

मेन्स के लिये:

राजद्रोह कानून का महत्त्व और संबंधित मुद्दे।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) की एक रिपोर्ट के अनुसार, असम राज्य में  पिछले आठ वर्षों के दौरान देश में सबसे अधिक राजद्रोह (Sedition) के मामले दर्ज किये गए हैं।

प्रमुख बिंदु

 NCRB रिपोर्ट के महत्त्वपूर्ण बिंदु:

  • वर्ष 2014-2021 के मध्य देश में राजद्रोह के 475 मामलों में से असम में ही 69 मामले (14.52%) दर्ज हुए।
  • असम के बाद, इस तरह के सबसे अधिक मामले क्रमशः हरियाणा (42), झारखंड (40), कर्नाटक (38), आंध्र प्रदेश (32) तथा जम्मू और कश्मीर (29) में देखे गए हैं।
    • इन छह राज्यों में राजद्रोह के 250 मामले दर्ज किये गए तथा देश में दर्ज कुल राजद्रोह के मामलों की संख्या के आधे से अधिक पिछले आठ वर्षों की अवधि में दर्ज किये गए हैं।
  • वर्ष 2021 में देश भर में 76 राजद्रोह के मामले दर्ज किये गए, जो वर्ष 2020 में दर्ज 73 मामलों में मामूली वृद्धि को दर्शाते हैं।
  • मेघालय, मिज़ोरम, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह, चंडीगढ़, दादरा और नगर हवेली, दमन और दीव तथा पुडुचेरी में उस अवधि में एक भी राजद्रोह का मामला दर्ज नहीं करने वाले राज्य और केंद्रशासित प्रदेश हैं।

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राजद्रोह कानून:

  • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
    • राजद्रोह कानून को 17वीं शताब्दी में इंग्लैंड में अधिनियमित किया गया था, उस समय विधि निर्माताओं का मानना था कि सरकार के प्रति अच्छी राय रखने वाले विचारों को ही केवल अस्तित्व में या सार्वजनिक रूप से उपलब्ध होना चाहिये, क्योंकि गलत राय सरकार तथा राजशाही दोनों के लिये नकारात्मक प्रभाव उत्पन्न कर सकती थी।
    • इस कानून का मसौदा मूल रूप से वर्ष 1837 में ब्रिटिश इतिहासकार और राजनीतिज्ञ थॉमस मैकाले द्वारा तैयार किया गया था, लेकिन वर्ष 1860 में भारतीय दंड सहिता (IPC) लागू करने के दौरान इस कानून को IPC में शामिल नहीं किया गया।
    • धारा 124A को 1870 में जेम्स स्टीफन द्वारा पेश किये गए एक संशोधन द्वारा जोड़ा गया था जब इसने अपराध से निपटने के लिये एक विशिष्ट खंड की आवश्यकता महसूस की।
    • वर्तमान में भारतीय दंड संहिता (IPC) की धारा 124A के तहत राजद्रोह एक अपराध है।
  • वर्तमान में राजद्रोह कानून:
    • IPC की धारा 124A :
      • यह कानून राजद्रोह को एक ऐसे अपराध के रूप में परिभाषित करता है जिसमें ‘किसी व्यक्ति द्वारा भारत में कानूनी तौर पर स्थापित सरकार के प्रति मौखिक, लिखित (शब्दों द्वारा), संकेतों या दृश्य रूप में घृणा या अवमानना या उत्तेजना पैदा करने का प्रयत्न किया जाता है।
      • विद्रोह में वैमनस्य और शत्रुता की भावनाएँ शामिल होती हैं। हालाँकि इस धारा के तहत घृणा या अवमानना फैलाने की कोशिश किये बगैर की गई टिप्पणियों को अपराध की श्रेणी में शामिल नहीं किया जाता है।
    • राजद्रोह के अपराध हेतु दंड:
      • राजद्रोह गैर-जमानती अपराध है। राजद्रोह के अपराध में तीन वर्ष से लेकर उम्रकैद तक की सज़ा हो सकती है और इसके साथ ज़ुर्माना भी लगाया जा सकता है।
      • इस कानून के तहत आरोपित व्यक्ति को सरकारी नौकरी प्राप्त करने से रोका जा सकता है।
      • आरोपित व्यक्ति के पासपोर्ट को जब्त कर लिया जाता है, साथ ही आवश्यकता पड़ने पर उसे न्यायालय में पेश होना अनिवार्य होता है।

राजद्रोह कानून का महत्त्व और चुनौतियाँ:

  • महत्त्व:
    • उचित प्रतिबंध:
      • भारत का संविधान अनुच्छेद 19(2) के तहत उचित प्रतिबंध निर्धारित करता है जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को सुनिश्चित करता है, साथ ही यह भी सुनिश्चित करता है कि यह सभी नागरिकों के लिये यह समान रूप से उपलब्ध हो।
    • एकता और अखंडता:
      • राजद्रोह कानून सरकार को राष्ट्र-विरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्त्वों का सामना करने में सहायता करता है।
    • राज्य की स्थिरता को बनाए रखना:
      • यह निर्वाचित सरकार को हिंसा और अवैध तरीकों से सरकार को उखाड़ फेंकने के प्रयासों से बचाने में सहायता करता है। कानून द्वारा स्थापित सरकार का निरंतर अस्तित्त्व राज्य की स्थिरता के लिये एक अनिवार्य शर्त है।
  • चुनौतियाँ:
    • औपनिवेशिक युग का अवशेष:
      • औपनिवेशिक शासकों ने ब्रिटिश नीतियों की आलोचना करने वाले लोगों को रोकने हेतु राजद्रोह कानून का दुरूपयोग किया।
      • लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू, भगत सिंह आदि स्वतंत्रता आंदोलन के दिग्गजों को ब्रिटिश शासन के तहत उनके "राजद्रोही" भाषणों, लेखन और गतिविधियों के लिये दोषी ठहराया गया था।
      • इस प्रकार राजद्रोह कानून का व्यापक उपयोग औपनिवेशिक युग की याद दिलाता है।
    • संविधान सभा का पक्ष:
      • संविधान सभा, संविधान में राजद्रोह को शामिल करने के लिये सहमत नहीं थी। सदस्यों का तर्क था कि यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करेगा।
      • उन्होंने तर्क दिया कि लोगों के विरोध के वैध और संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकारों का दमन करने के लिये राजद्रोह कानून का एक हथियार के रूप में दुरूपयोग किया जा सकता है।
    • सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों की अवहेलना:
      • सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1962 में केदार नाथ सिंह बनाम बिहार राज्य मामले में धारा 124A की संवैधानिकता पर अपना निर्णय दिया। इसने देशद्रोह की संवैधानिकता को बरकरार रखा लेकिन इसे अव्यवस्था पैदा करने का इरादा, कानून एवं व्यवस्था की गड़बड़ी तथा हिंसा के लिये उकसाने की गतिविधियों तक सीमित कर दिया।
      • इस प्रकार शिक्षाविदों, वकीलों, सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्त्ताओं और छात्रों के खिलाफ देशद्रोह का आरोप लगाना सर्वोच्च न्यायालय के आदेश की अवहेलना है।
    • लोकतांत्रिक मूल्यों का दमन:
      • भारत मुख्य रूप से राजद्रोह कानून के कठोर और निरंतर उपयोग के कारण को तेज़ी से उभरते एक निर्वाचित निरंकुश राज्य के रूप में वर्णित किया जा रहा है।

आगे की राह:

  • IPC की धारा 124A की उपयोगिता राष्ट्रविरोधी, अलगाववादी और आतंकवादी तत्त्वों से निपटने में है। हालांँकि सरकार के निर्णयों से असहमति और आलोचना एक जीवंत लोकतंत्र में मज़बूत सार्वजनिक बहस के आवश्यक तत्त्व हैं। इन्हें देशद्रोह के रूप में नहीं देखा जाना चाहिये।
  • उच्च न्यायपालिका को अपनी पर्यवेक्षी शक्तियों का उपयोग मजिस्ट्रेट और पुलिस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की रक्षा करने वाले संवैधानिक प्रावधानों के प्रति संवेदनशील बनाने हेतु करना चाहिये
  • राजद्रोह की परिभाषा को केवल भारत की क्षेत्रीय अखंडता के साथ-साथ देश की संप्रभुता से संबंधित मुद्दों को शामिल करने के संदर्भ में संकुचित किया जाना चाहिये।
  • देशद्रोह कानून के मनमाने इस्तेमाल के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिये नागरिक समाज को पहल करनी चाहिये।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:

प्र. रौलट सत्याग्रह के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2015)

  1. रौलट अधिनियम, 'सेडिशन समिति ' की सिफारिश पर आधारित था।
  2. रौलट सत्याग्रह में, गांधीजी ने होमरूल लीग का उपयोग करने का प्रयास किया।
  3. साइमन कमीशन के आगमन के विरूद्ध हुए प्रदर्शन रौलट सत्याग्रह के साथ-साथ हुए।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 1 और 2
(c) केवल 2 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)

व्याख्या:

  • रॉलेट समिति, जिसे सेडिशन/राजद्रोह समिति के रूप में भी जाना जाता है, को वर्ष 1917 में ब्रिटिश भारत सरकार द्वारा नियुक्त किया गया था, जिसके अध्यक्ष एक अंग्रेजी न्यायाधीश सिडनी रॉलेट थे।
  • वर्ष 1919 का अराजक और क्रांतिकारी अपराध अधिनियम (रॉलेट एक्ट/ब्लैक एक्ट/काला कानून के रूप में जाना जाता है) राजद्रोह समिति की सिफारिशों पर आधारित था। अत: कथन 1 सही है
  • इस अधिनियम ने सरकार को आतंकवाद के संदेह वाले किसी भी व्यक्ति पर बिना किसी मुकदमे के अधिकतम दो साल की कैद की अनुमति दी।
  • इस अन्यायपूर्ण कानून के जवाब में गांधी ने रॉलेट एक्ट के खिलाफ देशव्यापी विरोध का आह्वान किया। 6 अप्रैल, 1919 को एक हड़ताल (या हड़ताल) शुरू की गई थी।
  • उन्होंने होमरूल लीग के सदस्यों से हड़ताल में भाग लेने का आह्वान किया। अत: कथन 2 सही है।रॉलेट सत्याग्रह वर्ष 1919 में हुआ था जबकि साइमन कमीशन 1927 में भारत आया था। अतः कथन 3 सही नहीं है।

महिलाओं के लिये जमानत संबंधी प्रावधान

प्रिलिम्स के लिये:

CRPC में जमानत का प्रावधान, जमानत के प्रकार।

मेन्स के लिये:

महिलाओं के मामले में गिरफ्तारी की प्रक्रिया, CRPC और इसके प्रावधान, जमानत के प्रकार।

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने कार्यकर्त्ता तीस्ता सीतलवाड़ को अंतरिम जमानत देते हुए कहा कि "अपीलकर्त्ता (तीस्ता) को इस तथ्य सहित कि अपीलकर्त्ता एक महिला है, असाधारण तथ्यों में अंतरिम जमानत की राहत दी जाती है"।

  • भारत के मुख्य न्यायाधीश ने दंड प्रक्रिया संहिता CRPC में जमानत प्रावधान का भी संदर्भ दिया, जिसमें कहा गया है कि "एक महिला होने के नाते जमानत देने का एक संभावित आधार है, भले ही अन्यथा इस पर विचार नहीं किया जा सकता है।"

महिलाओं के लिये जमानत संबंधी उपलब्ध प्रावधान:

  • आपराधिक प्रक्रिया संहिता:
    • CRPC की धारा 437 गैर-जमानती अपराधों के मामले में जमानत से संबंधित है। इसके अनुसार, व्यक्ति को जमानत पर रिहा नहीं किया जाएगा यदि:
      • यह मानने का उचित आधार है कि उसने मृत्यु या आजीवन कारावास से दंडनीय अपराध किया है; या
      • उसे पहले मौत, आजीवन कारावास, या सात वर्ष या उससे अधिक की अवधि के लिये दंडनीय अपराध के लिये दोषी ठहराया गया है; या
      • उसे दो या दो से अधिक अवसरों पर अन्य अपराधों में तीन से सात वर्ष के बीच की अवधि के साथ दोषी ठहराया गया है।
    • हालाँकि, CRPC की धारा 437 में अपवाद भी शामिल हैं जैसे कि न्यायालय इन मामलों में भी जमानत दे सकती है, अगर ऐसा व्यक्ति 16 वर्ष से कम उम्र का है या महिला है या बीमार या कमज़ोर है।
  • अन्य प्रावधान:
    • जब एक पुलिस अधिकारी को किसी ऐसे व्यक्ति की उपस्थिति की आवश्यकता होती है जिसे वह मानता है कि जाँच के तहत मामले से परिचित है, तो उस व्यक्ति को अधिकारी (धारा 160) के सामने पेश होना पड़ता है।
      • हालाँकि किसी भी महिला को अपने निवास स्थान के अलावा किसी अन्य स्थान पर ऐसा करने की आवश्यकता नहीं होगी।
      • वर्ष 1980 और 1989 में अपनी 84वीं और 135वीं रिपोर्ट में, विधि आयोग ने सुझाव दिया कि 'स्थान' शब्द अस्पष्ट है, और इसे 'निवास स्थान' में संशोधित करना बेहतर होगा।

महिलाओं की गिरफ्तारी पर CRPC के प्रावधान:

  • गिरफ्तारी की प्रक्रिया:
    • एक पुलिस अधिकारी किसी ऐसे व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है जिसने न्यायिक आदेश या वारंट के बिना संज्ञेय अपराध किया है। (धारा 41)
      • यदि व्यक्ति पुलिस की कहने या कार्रवाई के आधार पर वह गिरफ्तारी नहीं देता है, तो धारा 46 पुलिस अधिकारी को गिरफ्तारी को प्रभावी करने के लिये व्यक्ति को शारीरिक रूप से सीमित करने में सक्षम बनाती है।
        • वर्ष 2009 में CrPC में इस आशय से एक प्रावधान जोड़ा गया कि जब किसी महिला को गिरफ्तार किया जाना हो तो, केवल एक महिला पुलिस अधिकारी ही महिला को छू सकती है, जब तक कि ऐसी परिस्थितियाँ न हों।
    • वर्ष 2005 में एक संशोधन के माध्यम से, सूर्यास्त के बाद या सूर्योदय से पहले एक महिला की गिरफ्तारी पर रोक लगाने के लिये धारा 46 में एक उपधारा जोड़ी गई।
      • असाधारण परिस्थितियों में गिरफ्तारी के लिये एक महिला पुलिस अधिकारी न्यायिक मजिस्ट्रेट की पूर्व अनुमति प्राप्त कर सकती है।
  • गैर-उपस्थिति के मामलों में:
    • पुलिस ऐसे किसी भी परिसर में प्रवेश की मांग कर सकती है जहाँ संदेह हो कि जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाना है, वह वहाँ मौजूद है।
      • इस धारा में यह माना गया है कि पुलिस अधिकारी या कोई अन्य व्यक्ति, जो भी गिरफ्तारी वारंट निष्पादित कर रहा है, को पता चलता है कि जिस परिसर की तलाशी ली जानी है, वह महिलाओं का मूल निवास स्थान है, जो प्रथा के अनुसार सार्वजनिक रूप से पता नहीं होता है। तो ऐसा पुलिस अधिकारी या व्यक्ति तलाशी शुरू करने से पहले उस महिला को तलाशी रद्द करने के अधिकार के बारे में एक नोटिस जारी करेगा। (धारा 47 का प्रावधान)।
        • इसमें यह भी जोड़ा गया है कि वे परिसर में प्रवेश करने एवं उसे गिरफ्तार कर वापस लाने के दौरान उचित सुविधा प्रदान करेंगे।
    • एक अन्य अपवाद के तहत में एक महिला जो मानहानि का मामला दर्ज करने का इरादा रखती है, लेकिन वह सार्वजनिक रूप से उपस्थति नहीं होना चाहती है, वह अपनी ओर से किसी और को शिकायत दर्ज करने के लिये कह सकती है।

गिरफ्तारी से संरक्षण हेतु भारत में संवैधानिक प्रावधान

  • अनुच्छेद 22:
    • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 22 गिरफ्तार या हिरासत में लिये गए व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान करता है।
      • हिरासत दो प्रकार की होती है:
        • दंडात्मक निरोध।
        • निवारक निरोध।
    • दंडात्मक निरोध के तहत किसी व्यक्ति को उसके द्वारा किये गए अपराध के लिये न्यायालय में मुकदमे और दोषसिद्धि के बाद दंडित करना है।
    • दूसरी ओर, निवारक निरोध का अर्थ है किसी व्यक्ति को बिना किसी मुकदमे और न्यायालय द्वारा दोषसिद्धि के हिरासत में रखना।
    • अनुच्छेद 22 के दो भाग हैं- पहला भाग साधारण कानून के मामलों से संबंधित है और दूसरा भाग निवारक निरोध कानून के मामलों से संबंधित है।

दंडात्मक नजरबंदी के तहत प्रदान अधिकार

निवारक निरोध के तहत प्रदान अधिकार

  • गिरफ्तारी के आधार के विषय में सूचित करने का अधिकार।
  • किसी व्यक्ति की नजरबंदी तीन महीने से अधिक नहीं हो सकती जब तक कि एक सलाहकार बोर्ड विस्तारित नजरबंदी के लिये पर्याप्त कारण की रिपोर्ट नहीं करता है।
  • बोर्ड में एक उच्च न्यायालय के न्यायाधीश शामिल होते हैं।
  • विधि व्यवसायी से परामर्श करने और बचाव करने का अधिकार।
  • नजरबंदी के आधारों के विषय में नजरबंद व्यक्ति को सूचित किया जाना चाहिये।
  • तथापि, जनहित के विरुद्ध माने जाने वाले तथ्यों को प्रकट करने की आवश्यकता नहीं है।
  • यात्रा के समय को छोड़कर 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश होने का अधिकार।
  • हिरासत में लिये गए व्यक्ति को निरोध आदेश के खिलाफ अभ्यावेदन देने का अवसर प्रदान करना चाहिये।
  • 24 घंटे के बाद रिहा होने का अधिकार जब तक कि मजिस्ट्रेट, हिरासत को जारी रखने के लिये अधिकृत नहीं करता।
--------
  • ये सुरक्षा उपाय किसी विदेशी शत्रु के लिये उपलब्ध नहीं हैं।
  • यह सुरक्षा नागरिकों के साथ-साथ विदेशियों  के लिये भी उपलब्ध है।

जमानत और उसके प्रकार:

  • जमानत :
    • जमानत कानूनी हिरासत में रखे गए व्यक्ति की सशर्त/अनंतिम रिहाई है (ऐसे मामलों में जो अभी तक न्यायालय द्वारा घोषित किये जाने हैं) और जब भी आवश्यक हो,न्यायालय में पेश होने का वादा करके यह रिहाई हेतु न्यायालय के समक्ष जमा की गई सुरक्षा/संपार्श्विक (Collateral) का प्रतीक है।
  • जमानत के प्रकार:
    • नियमित जमानत:
      • यह न्यायालय (देश के भीतर किसी भी न्यायालय) द्वारा एक ऐसे व्यक्ति को रिहा करने का निर्देश है जो पहले से ही गिरफ्तार किया गया है और पुलिस हिरासत में रखा गया है।
        • ऐसी जमानत के लिये व्यक्ति CrPC की धारा 437 और 439 के तहत आवेदन कर सकता है।
    • अंतरिम जमानत:
      • न्यायालय द्वारा एक अस्थायी और अल्प अवधि के लिये ज़मानत दी जाती है जब तक कि अग्रिम जमानत या नियमित जमानत की मांग करने वाला आवेदन न्यायालय के समक्ष लंबित न हो।
    • अग्रिम जमानत:
      • किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किये जाने से पहले ही जमानत पर रिहा करने का निर्देश जारी किया जाता है।
        • ऐसे में गिरफ्तारी की आशंका बनी रहती है और जमानत मिलने से पूर्व व्यक्ति को गिरफ्तार नहीं किया जाता है।
        • ऐसी जमानत के लिये कोई व्यक्ति CrPC की धारा 438 के तहत आवेदन दाखिल कर सकता है।
        • यह केवल सत्र न्यायालय और उच्च न्यायालय द्वारा जारी किया जाता है।

स्रोत: द हिंदू


बच्चों की नैतिकता और मूल्यों पर इंटरनेट का प्रभाव

मेन्स के लिये:

बच्चों की नैतिकता और मूल्यों पर इंटरनेट का प्रभाव।

चर्चा में क्यों?

कंप्यूटर और ज्ञान के इस युग में, नैतिक और सामाजिक मूल्यों का लोगों पर तथा समाज में शिक्षा प्रक्रिया पर अपरिहार्य प्रभाव पड़ता है।

 बच्चों पर इंटरनेट के सकारात्मक और नकारात्मक प्रभाव:

  • सकारात्मक प्रभाव:
    • शिक्षण क्षेत्र में आगे बढ़ाने की प्रेरणा:
      • मीडिया ने बच्चों को शिक्षा और खेल में आगे बढ़ाने के लिये प्रेरित किया है।
        • इसके अतिरिक्त अनेक ऐसे उदाहरण हैं कि जहाँ युवाओं ने इंटरनेट के सहयोग से अकादमिक कॅरियर में महत्त्वपूर्ण लक्ष्य हासिल किये हैं और साथ ही साथ इसकी सहायता से युवाओं ने खेल के क्षेत्र में असाधारण कीर्तिमान स्थापित किये हैं।
    • सामाजिक कौशल को बढ़ावा देने में मदद करना:
      • यह पाया गया है कि मीडिया प्रौद्योगिकी के उपयोग और प्रभाव ने युवाओं में सामाजिक कौशल को बढ़ावा दिया है जिसका वे अपने भविष्य निर्माण के क्रम में उपयोग करने में सक्षम हैं।
        • उदाहरण के लिये, यह देखा गया है कि कंप्यूटर और वीडियो गेम खेलकर बच्चे स्वतंत्र तथा रचनात्मक रूप से अपने लिये सोचने की क्षमता सीख रहे हैं।
    • अन्तर-क्रियाशीलता में वृद्धि:
      • इंटरनेट की बढ़ी हुई अन्तर-क्रियाशीलता से भी बच्चे लाभान्वित होते हैं।
        • यह तर्क दिया जा सकता है कि यह युवाओं के लिये इंटरनेट के सबसे बड़े लाभों में से एक है कि यह सूचना, ज्ञान और विचारों के आदान-प्रदान की अनुमति देता है जो कि सीखने के अनुकूल वातावरण के लिये अति आवश्यक हैं।
    • नैतिक योग्यता के गुण को बढ़ावा:
      • इंटरनेट पर सकारात्मक जानकारी का प्रसार, पहुच तथा सकारात्मक व्यक्तित्वों के साथ बातचीत सहानुभूति, करुणा और नैतिक योग्यता के गुणों को आत्मसात करने में सहायक है।
  • नकारात्मक प्रभाव:
    • दवाब और साइबरबुलिंग के बढ़ते उदाहरण:
      • साइबरबुलिंग और सुरक्षा जोखिम बच्चों द्वारा इंटरनेट के बढ़ते उपयोग से जुड़े हैं, जो नैतिक और मूल्य-केंद्रित विकास को कम करता है।
        • साइबरबुली वे व्यक्ति हैं जो छोटे बच्चों या युवा वयस्कों को विभिन्न माध्यमों जैसे त्वरित संदेश और ईमेल के माध्यम से लक्षित करते हैं।
          • अधिकांश मामलों में एक अपराधी द्वारा इंटरनेट का उपयोग करके दूसरे को धमकाना या धमकाना शामिल है।
    • मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव:
      • एक सामान्य प्रभाव यह है कि यह व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को नकारात्मक रूप से प्रभावित कर सकता है।
      • कुछ मामलों में, यह अवसाद और आत्मघाती विचारों को जन्म दे सकता है।
      • साथ ही, इससे रिश्तों में अंतरंगता की कमी हो सकती है और यह सामाजिक समूहों तथा गतिविधियों से पीछे हटने का कारण भी बन सकता है।
    • आलोचनात्मक सोच के दायरे को सीमित करता है:
      • इंटरनेट पर रेडीमेड जानकारी का उपयोग करने से बच्चों की गंभीर रूप से सीखने की क्षमता सीमित हो जाती है, जिससे उनका संज्ञानात्मक विकास प्रभावित होता है।
    • समाज से अलगाव:
      • इंटरनेट बच्चों को सामाजिक वास्तविकता से अलग करता है, जो उनमें सामाजिक उदासीनता पैदा कर सकता है, जिसके परिणामस्वरूप अंततः हमारे नैतिक और सांस्कृतिक मूल्यों का ह्रास होता है।
      • इसके अलावा, सामाजिक अलगाव उनके निर्णय लेने और नेतृत्व कौशल को नकारात्मक रूप से प्रभावित करते हैं।

आगे की राह

  • संतुलित दृष्टिकोण अपनाना:
    • इंटरनेट के सकारात्मक पहलुओं को नजरअंदाज़ करना मुश्किल है, लेकिन यह सुनिश्चित करने के लिये उचित इंटरनेट सुरक्षा उपाय करना महत्त्वपूर्ण है कि आप नकारात्मक रूप से प्रभावित हुए बिना प्रौद्योगिकी का लाभ उठाएंँ।
    • बच्चों द्वारा इंटरनेट के उपयोग पर प्रतिबंध को विभिन्न क्षेत्रों में नवीनतम विकास के साथ तालमेल रखने के लिये इंटरनेट का उपयोग करने की उनकी आवश्यकता के साथ संतुलित किया जाना चाहिये।
  • संचार कुंजी होता है:
    • बच्चों और माता-पिता, शिक्षकों आदि के बीच संचार की खाई इस मुद्दे की गंभीरता को बढ़ाती है।
    • संचार के माध्यम से जागरूकता बढ़ाने और इंटरनेट की सभी अच्छी तथा बुरी विशेषताओं के बारे में स्पष्टीकरण बच्चों पर प्रौद्योगिकी के नकारात्मक भावनात्मक प्रभाव को कम करेगा।
  • वास्तविक जीवन संचार में संलग्न होने के लिये प्रोत्साहित करना:
    • अपने बच्चों को ऑनलाइन नेटवर्किंग के बजाय लोगों के साथ अधिक वास्तविक जीवन संचार में संलग्न होने के लिये प्रोत्साहित करें।
    • उन्हें वास्तविक जीवन में मित्रता और संबंधित गतिविधियों में अधिक समय बिताने का महत्त्व सिखाया जाना चाहिये।
    • बच्चों पर सोशल मीडिया के बुरे प्रभाव के बारे में उन्हें लगातार व्याख्यान देने के बजाय, उनके अन्य हितों को प्रोत्साहित करें, जो शौक, खेल, सामाजिक कार्य या कुछ भी हो तथा जो आभासी नहीं हो।
  • रचनात्मक रूप से इंटरनेट का उपयोग करना:
    • बच्चों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर रचनात्मक रूप से उनके सीखने को बढ़ाने के लिये, या समान रुचियों वाले अन्य लोगों के साथ सहयोग करने का सुझाव दिया जाना चाहिये।
    • उन्हें यह सिखाना भी महत्त्वपूर्ण है कि किस चीज में सार है और किस पर समय बिताने लायक नहीं है।

UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्षों के प्रश्न:

Q. 'वर्तमान इंटरनेट विस्तार ने सांस्कृतिक मूल्यों का एक अलग समूह स्थापित किया है जो अक्सर पारंपरिक मूल्यों के साथ संघर्ष में होते हैं।' चर्चा कीजिये। (2020)