छोटी बचत योजनाएँ
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने सभी छोटी बचत योजनाओं (Small Savings Scheme/Instrument) पर दरों को कम करने का अपना आदेश वापस ले लिया है।
प्रमुख बिंदु
छोटी बचत योजना के विषय में:
- ये योजनाएँ व्यक्तियों को एक विशेष अवधि के दौरान अपने वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद करती हैं।
- ये भारत में घरेलू बचत के प्रमुख स्रोत हैं।
- इसमें 12 योजनाएँ शामिल हैं।
- ऐसी सभी योजनाओं के संग्रह को राष्ट्रीय लघु बचत कोष (National Small Savings Fund) में जमा किया जाता है।
वर्गीकरण: ऐसी योजनाओं को तीन प्रमुख प्रकारों में वर्गीकृत किया जा सकता है:
- डाक जमा (बचत खाता, आवर्ती जमा, अलग-अलग परिपक्वता की सावधि जमा राशि और मासिक आय योजना)।
- बचत प्रमाणपत्र: राष्ट्रीय लघु बचत प्रमाणपत्र (National Small Savings Certificate) और किसान विकास पत्र (Kisan Vikas Patra)।
- सामाजिक सुरक्षा योजनाएँ: सुकन्या समृद्धि योजना (Sukanya Samriddhi Scheme), सार्वजनिक भविष्य निधि (Public Provident Fund) और वरिष्ठ नागरिक बचत योजना (Senior Citizens‘ Savings Scheme)।
छोटी बचत योजनाओं की दरें:
- इन योजनाओं के लिये दरों की घोषणा प्रत्येक वर्ष के तिमाही में की जाती है।
- इन योजनाओं की दरों में परिवर्तन सरकारी प्रतिभूतियों की उत्पादकता पर निर्भर करता है। राजनीतिक कारक भी दर परिवर्तन को प्रभावित करते हैं।
- छोटी बचत योजना पर वर्ष 2010 में गठित श्यामला गोपीनाथ पैनल ने इनके लिये बाज़ार से जुड़ी ब्याज दर प्रणाली का सुझाव दिया था।
राष्ट्रीय लघु बचत कोष
स्थापना:
- इस कोष की स्थापना वर्ष 1999 में की गई थी।
प्रशासन:
- इस कोष को भारत सरकार, वित्त मंत्रालय (आर्थिक मामलों का विभाग) द्वारा राष्ट्रीय लघु बचत कोष (कस्टडी और निवेश) नियम, 2001 के तहत संविधान के अनुच्छेद 283 (1) के अनुसार राष्ट्रपति द्वारा प्रशासित किया जाता है।
- इसे वित्त मंत्रालय (आर्थिक मामलों का विभाग) राष्ट्रीय लघु बचत कोष (निगरानी और निवेश) नियम, 2001 के अंतर्गत प्रशासित करता है।
उद्देश्य:
- इस कोष का उद्देश्य भारत की संचित निधि (Consolidated Fund of India) से छोटी बचत लेन-देन को जोड़ना और पारदर्शी तथा आत्मनिर्भर तरीके से उनका संचालन सुनिश्चित करना है।
- राष्ट्रीय लघु बचत कोष सार्वजनिक खाते के रूप में संचालित होता है, इसलिये इसका लेन-देन सीधे केंद्र के वित्तीय घाटे को प्रभावित नहीं करता है।
स्रोत: द हिंदू
राज्य विधानसभाओं में महिलाओं एवं युवाओं की भागीदारी
चर्चा में क्यों?
तीन नई राज्य विधानसभाओं (पश्चिम बंगाल, केरल और तमिलनाडु) से संबंधित हालिया आँकड़े विधानसभा सदस्यों (MLAs) के बीच महिलाओं और युवाओं की कम संख्या को दर्शाते हैं।
- वर्ष 2019 के लोकसभा चुनावों के आंँकड़े भी महिलाओं की कम भागीदारी को दर्शाते हैं। वर्ष 2019 में अंतर-संसदीय संघ (Inter-Parliamentary Union) द्वारा संकलित सूची के अनुसार, निम्न सदन में महिलाओं के प्रतिशत के मामले में भारत विश्व में 190 देशों में से 153वें स्थान पर है।
- भारत युवाओं का देश है, परंतु देश में युवा नेताओं का अभाव है। भारत में औसत आयु लगभग 29 वर्ष है, जबकि देश में सांसदों की औसत आयु 55 वर्ष है।
प्रमुख बिंदु:
महिला विधायकों की कम संख्या के कारण:
- निरक्षरता- यह महिलाओं को राजनीतिक रूप से सशक्त बनाने में मुख्य बाधाओं में से एक है।
- कार्य और परिवार- पुरुषों और महिलाओं के बीच घरेलू काम का असमान वितरण भी इस संबंध में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करता है।
- राजनीतिक नेटवर्क का अभाव- राजनीतिक निर्णयन में खुलेपन तथा स्पष्टता का अभाव और अलोकतांत्रिक आंतरिक प्रक्रियाओं के कारण अक्सर नए लोगों के समक्ष चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं, लेकिन ये चुनौतियाँ विशेष रूप से महिलाओं के समक्ष अधिक समस्या उत्पन्न करती हैं, क्योंकि महिलाओं के पास राजनीति की गहरी समझ या राजनीतिक नेटवर्क की कमी अधिक देखी जाती है।
- संसाधनों की कमी- राजनीतिक दलों के आंतरिक ढाँचे में महिलाओं का कम अनुपात महिला प्रतिनिधियों के लिये अपने राजनीतिक निर्वाचन क्षेत्रों हेतु आवश्यक संसाधन जुटाना और समर्थन प्राप्त करना चुनौतीपूर्ण बना देता है।
- वित्तीय सहायता का अभाव- महिलाओं को चुनाव लड़ने हेतु राजनीतिक दलों से पर्याप्त वित्तीय सहायता नहीं मिलती है।
- सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंड- महिलाओं पर लगाए गए सामाजिक और सांस्कृतिक मानदंड उन्हें राजनीति में प्रवेश करने से रोकते हैं।
- अनुकूल परिवेश का अभाव: कुल मिलाकर राजनीतिक दलों का वातावरण महिलाओं के अनुकूल नहीं है, उन्हें पार्टी में जगह बनाने हेतु कठिन संघर्ष करना पड़ता है और बहुआयामी मुद्दों का सामना करना पड़ता है।
युवा विधायकों की कम संख्या के कारण:
- गलत धारणा- राजनीतिक दलों के प्रतिनिधि और नीति निर्माता अक्सर यह मानते हैं कि चूँकि युवाओं ने जीवन को पर्याप्त रूप में नहीं देखा है, इसलिये वे शीर्ष राजनीति के लिये तैयार नहीं हैं।
- युवाओं को गंभीरता से नहीं लिया जाना- राजनीतिक दलों को इस बात का डर होता है कि पुराने नेताओं का सम्मान करने वाले भारतीय मतदाता युवा उम्मीदवारों को गंभीरता से नहीं लेंगे।
- दिग्गजों को नहीं छोड़ना- आमतौर पर पार्टी के प्रमुख निर्णय निर्माता, पार्टी के दिग्गजों को नज़रंदाज़ नहीं कर पाते हैं उन्हें इस बात की भय होता है कि इससे पार्टी के अंदर अंतरिक्ष कहल की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
- बल की राजनीति- राजनेताओं द्वारा राजनीति में अच्छे लोगों के प्रवेश को रोकने हेतु बल और धन शक्ति का उपयोग किया जाता है।
- सफलता की कम संभावना- युवाओं के प्रति असफलता की संभावना का भय अधिक रहता है।
- अच्छे लोग द्वारा राजनीति में आने से परहेज़ - एक राजनीतिज्ञ के बारे में आम आदमी की सामान्य धारणा है कि अधिकांश राजनीतिज्ञ धोखेबाज और भ्रष्ट होते हैं, इसलिये प्रायः ज़मीनी स्तर से जुड़े लोग स्वयं को राजनेताओं की श्रेणियों में सूचीबद्ध होने से बचाते हैं।
- अनैतिक आचरण- कई लोग गंदी राजनीति के कारण अपनी अच्छी छवि को नुकसान पहुँचने से बचाने हेतु राजनीति में प्रवेश करने से कतराते हैं। वस्तुतः भारतीय राजनीति में अनैतिक आचरण, एक आदर्श के रूप में स्थापित हो गया है।
- भाई-भतीजावाद- यह एक महत्त्वपूर्ण कारक है और इसी वजह से अक्सर यह देखा जाता है कि कई युवा जो सफल राजनीतिज्ञ बन जाते हैं वे प्रभावशाली राजनीतिक परिवारों से ही संबंध रखते हैं।
- अन्य कारण- नगरपालिका, पंचायत और महापौर चुनावों अभियान में बढ़ते खर्च और आरक्षण आदि कारणों ने भी युवा राजनेताओं की सफलता में चुनौतियाँ पैदा की हैं।
संबंधित पहल:
- महिला आरक्षण विधेयक, 2008:
- यह विधेयक भारतीय संसद के निचले सदन अर्थात् लोकसभा और सभी राज्यों की विधानसभाओं में महिलाओं हेतु 1/3 सीटें आरक्षित करने के लिये भारतीय संविधान में संशोधन करने का प्रस्ताव करता है।
- पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं के लिये आरक्षण:
- संविधान के अनुच्छेद 243D का खंड (3) पंचायत स्तर पर प्रत्यक्ष चुनाव से भरी जाने वाली सीटों और पंचायत अध्यक्षों के कार्यालयों में कम-से-कम एक-तिहाई सीटें महिलाओं के लिये आरक्षित करके पंचायती राज संस्थाओं में महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करता है।
- राष्ट्रीय युवा संसद महोत्सव:
- राष्ट्रीय सेवा योजना ( National Service Scheme- NSS) और नेहरू युवा केंद्र संगठन (Nehru Yuva Kendra Sangathan- NYKS) द्वारा युवा मामलों और खेल मंत्रालय के तत्त्वाधान में इस महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इसके उद्देश्यों में शामिल है:
- 18-25 आयु वर्ग के युवाओं के विचारों को जानना, जिन्हें वोट देने की अनुमति तो है, लेकिन वे चुनाव में नहीं लड़ सकते।
- युवाओं को सार्वजनिक मुद्दों से जुड़ने, आम आदमी की बात को समझने, अपनी राय बनाने और इन्हें एक स्पष्ट तरीके से व्यक्त करने के लिये प्रोत्साहित करना।
- राष्ट्रीय सेवा योजना ( National Service Scheme- NSS) और नेहरू युवा केंद्र संगठन (Nehru Yuva Kendra Sangathan- NYKS) द्वारा युवा मामलों और खेल मंत्रालय के तत्त्वाधान में इस महोत्सव का आयोजन किया जाता है। इसके उद्देश्यों में शामिल है:
- राष्ट्रीय युवा संसद योजना:
- संसदीय कार्य मंत्रालय द्वारा वर्ष 1966 से युवा संसद कार्यक्रम का क्रियान्वयन किया रहा है।
- इसका उद्देश्य लोकतंत्र की जड़ों को मज़बूत करना, अनुशासन की आदतों को अपनाने हेतु प्रोत्साहित करना, दूसरों के दृष्टिकोण को समझने में सहायता करना और छात्र समुदाय को संसद की प्रथाओं और प्रक्रियाओं के बारे में जानने में मदद करना है।
- संसदीय कार्य मंत्रालय द्वारा वर्ष 1966 से युवा संसद कार्यक्रम का क्रियान्वयन किया रहा है।
आगे की राह:
- भारत जैसे देश में यह आवश्यक है कि मुख्यधारा की राजनीतिक गतिविधि में समाज के सभी वर्गों की समान भागीदारी हो, अत: इस लक्ष्य को प्राप्त करने लिये आवश्यक कदम उठाए जाने चाहिये।
- संवैधानिक रूप से युवा और महिला कोटा को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक दलों को भी एक रोटेशन क्रम में युवाओं और महिलाओं हेतु आरक्षित सीटों पर विचार करना चाहिये।
- नगरपालिका और पंचायत चुनावों में उन नेताओं को मौका मिलना चाहिये देना चाहिये जिनके पास ज़मीनी स्तर पर अनुभव है। ऐसे नेताओं को कुछ और अनुभव के बाद, राज्य और अंततः केंद्रीय विधायी सीटों हेतु आगे आने का अवसर दिया जाना चाहिये।
- पार्टी में आंतरिक स्तर पर लोकतंत्र को बढ़ावा देना चाहिये, जहांँ एक लोकतांत्रिक राजनीतिक दल में अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष आदि जैसे विभिन्न पद चुनाव प्रक्रिया द्वारा भरे जाते हैं।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
P-8I पैट्रोल विमान
चर्चा में क्यों?
अमेरिकी राज्य विभाग ने भारत को छह P-8I पैट्रोल विमान और संबंधित उपकरणों की बिक्री को मंज़ूरी दी है।
- यह छह विमान एन्क्रिप्टेड सिस्टम (Encrypted Systems) से युक्त होकर भारत आएंगे, जैसा कि भारत ने अमेरिका के साथ संचार संगतता और सुरक्षा समझौते (COMCASA) पर हस्ताक्षर किया था।
- वर्ष 2019 में रक्षा अधिग्रहण परिषद ने विमान की खरीद को मंज़ूरी दी।
प्रमुख बिंदु
P-8I विमान के बारे में:
- यह एक लंबी दूरी का समुद्री गश्ती एवं पनडुब्बी रोधी युद्धक विमान है।
- यह P-8A पोसाइडन विमान का एक प्रकार है जिसे बोइंग कंपनी ने अमेरिकी नौसेना के पुराने P-3 बेड़े के प्रतिस्थापक के रूप में विकसित किया है।
- 907 किमी प्रति घंटे की अधिकतम गति और 1,200 समुद्री मील से अधिक की दूरी पर एक ऑपरेटिंग रेंज के साथ P-8I खतरों का पता लगाता है और आवश्यकता पड़ने पर भारतीय तटों के आसपास पहुँचने से पहले उन्हें अप्रभावी कर देता है।
- वर्ष 2009 में भारतीय नौसेना P-8I विमान के लिये पहला अंतर्राष्ट्रीय ग्राहक बनी।
भारत-अमेरिका रक्षा संबंध:
- यह प्रस्तावित बिक्री अमेरिका-भारत रणनीतिक संबंधों को मज़बूती प्रदान करने में मदद करता है।
- अमेरिका के लिये, हिंद-प्रशांत और दक्षिण एशियाई क्षेत्र में राजनीतिक स्थिरता, शांति एवं आर्थिक प्रगति की दिशा में भारत एक महत्वपूर्ण शक्ति बना हुआ है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका से रक्षा खरीद दोनों देशों के बीच बढ़ते संबंधों का एक अभिन्न अंग है।
- भारत-अमेरिका के बीच रक्षा व्यापार वर्ष 2008 में लगभग शून्य था जो वर्ष 2020 में लगभग 20 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया है, जिसने दोनों देशों के बीच प्रमुख नीति उन्नयन में मदद की।
- वर्ष 2016 में अमेरिका ने भारत को एक “मेजर डिफेंस पार्टनर” नामित किया था। वर्ष 2018 में अमेरिका ने सामरिक व्यापार प्राधिकरण-1 (STA-1) के तहत भारत को नाटो सहयोगी देश और ऑस्ट्रेलिया, जापान और दक्षिण कोरिया के समान रक्षा प्रौद्योगिकी तक पहुँच प्रदान की है।
संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (COMCASA):
-
संचार संगतता और सुरक्षा समझौता (COMCASA) अमेरिका और भारत के संचार सुरक्षा उपकरणों के हस्तांतरण के लिये एक कानूनी ढाँचा है जो उनकी सेनाओं के बीच " इंटरऑपरेबिलिटी या अंत:संचालन" की सुविधा और संभवतः डेटा लिंक सुरक्षा के लिये अन्य सेनाओं के साथ अमेरिका-आधारित तंत्र का उपयोग करेगा।
- यह उन चार मूलभूत समझौतों में से एक है जो अमेरिका के सहयोगी और करीबी पार्टनर देशों को उच्च क्षमता तकनीक एवं सेनाओं के बीच अंत:संचालन की सुविधा का संकेत देता है।
- यह संचार और सूचना पर सुरक्षा ज्ञापन समझौते (CISMOA) का एक भारत-विशिष्ट संस्करण है।
अमेरिका और उनके भागीदारों के बीच चार मूलभूत समझौते
- मिलिट्री इनफार्मेशन एग्रीमेंट ऑफ़ जनरल सिक्योरिटी (GSOMIA)
- यह सेनाओं को उनके द्वारा एकत्रित खुफिया जानकारी को साझा करने की अनुमति देता है।
- इस पर भारत ने वर्ष 2002 में हस्ताक्षर किया।
- लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरैंडम ऑफ एग्रीमेंट (LEMOA):
- यह समझौता दोनों देशों की सेनाओं की एक-दूसरे की सैन्य सुविधाओं तक पहुँच को आसान बनाता है। यह नौसेना का यू.एस.ए. के साथ समुद्र में ईंधन हस्तांतरण के लिये एक ईंधन विनिमय समझौता है।
- इस पर भारत ने वर्ष 2016 में हस्ताक्षर किये।
- संचार और सूचना पर सुरक्षा ज्ञापन समझौता (CISMOA)
- COMCASA समझौता, CISMOA का संचार और सूचना से संबंधित भारत-विशिष्ट संस्करण है।.
- इस पर भारत ने वर्ष 2018 में हस्ताक्षर किया।
- बुनियादी विनिमय और सहयोग समझौता (BECA)
- BECA भारत और अमेरिकी सैनिकों को एक दूसरे के साथ भू-स्थानिक जानकारी और उपग्रह डेटा साझा करने की अनुमति देगा।
- BECA पर भारत ने वर्ष 2020 में हस्ताक्षर किये।
रक्षा अधिग्रहण परिषद (DAC)
- रक्षा अधिग्रहण परिषद तीन सेवाओं (सेना, नौसेना और वायु सेना) और भारतीय तटरक्षक बल के लिये नई नीतियों व पूँजी अधिग्रहण संबंधी मामलों पर निर्णय लेने वाली रक्षा मंत्रालय की सर्वोच्च संस्था है।
- DAC की अध्यक्षता रक्षा मंत्री द्वारा की जाती है।
- कारगिल युद्ध (वर्ष 1999) के पश्चात् राष्ट्रीय सुरक्षा प्रणाली में सुधार पर मंत्रिमंडल की सिफारिशों के बाद वर्ष 2001 में रक्षा अधिग्रहण परिषद की स्थापना गई थी।
स्रोत: द हिंदू
UNHCR जा सकते हैं म्याँमार शरणार्थी: मणिपुर उच्च न्यायालय
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मणिपुर के उच्च न्यायालय (High Court) ने मणिपुर के एक सीमावर्ती शहर में फँसे म्याँमार के सात नागरिकों को नई दिल्ली स्थित संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायोग (United Nations High Commissioner for Refugees- UNHCR) के समक्ष जाने की अनुमति दी है।
- इन सभी सातों नागरिकों ने म्याँमार में सैन्य तख्तापलट के बाद भारत में प्रवेश किया था।
- इस तख्तापलट ने वर्ष 2011 (वर्ष 1962 से सत्ता में रही सेना ने संसदीय चुनाव और अन्य सुधारों को लागू किया था) में शुरू हुए अर्द्ध-लोकतंत्र को थोड़े समय बाद पुनः सैन्य शासन में बदल दिया।
प्रमुख बिंदु
मणिपुर उच्च न्यायालय की टिप्पणी:
- हालाँकि भारत के पास कोई शरणार्थी सुरक्षा नीति या ढाँचा नहीं है, लेकिन फिर भी यह पड़ोसी देशों से आए बड़ी संख्या में शरणार्थियों को शरण देता है।
- भारत आमतौर पर अफगानिस्तान और म्याँमार से आए शरणार्थियों की स्थिति पर UNHCR की मान्यता का सम्मान करता है।
- यद्यपि भारत संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी अभिसमयों का पक्षकार देश नहीं है, किंतु यह ‘मानव अधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा’ (Universal Declaration of Human Rights), 1948 तथा ‘अंतर्राष्ट्रीय नागरिक एवं राजनीतिक अधिकार नियम’ (International Covenant on Civil and Political Rights), 1966 का हस्ताक्षरकर्त्ता है।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद- 21 में शरणार्थियों को उनके मूल-देश में वापस नहीं भेजे जाने यानी ‘नॉन-रिफाउलमेंट’ (Non-Refoulement) का अधिकार शामिल है।
- नॉन-रिफाउलमेंट, अंतर्राष्ट्रीय कानून के अंतर्गत एक सिद्धांत है, जिसके अनुसार अपने देश से उत्पीड़न के कारण भागने वाले व्यक्ति को उसी देश में वापस जाने के लिये मज़बूर नहीं किया जाना चाहिये।
भारत-म्याँमार सीमा:
- सीमावर्ती राज्य: भारत और म्याँमार के बीच 1,643 किलोमीटर (मिज़ोरम 510 किलोमीटर, मणिपुर 398 किलोमीटर, अरुणाचल प्रदेश 520 किलोमीटर और नगालैंड 215 किलोमीटर) की सीमा है तथा दोनों तरफ के लोगों के बीच पारिवारिक संबंध है।
- मुक्त संचरण व्यवस्था:
- भारत और म्याँमार के बीच एक मुक्त संचरण व्यवस्था (Free Movement Regime) मौज़ूद है।
- इस व्यवस्था के अंतर्गत पहाड़ी जनजातियों के प्रत्येक सदस्य, जो भारत या म्याँमार के नागरिक हैं और भारत-म्याँमार सीमा (IMB) के दोनों ओर 16 किमी. के भीतर निवास करते हैं, एक सक्षम प्राधिकारी द्वारा जारी सीमा पास (एक वर्ष की वैधता) के साथ सीमा पार कर सकते हैं तथा प्रत्येक यात्रा के दौरान दो सप्ताह तक वहाँ रह सकते हैं।
- म्याँमार से भारत में हाल के पलायन:
- भारत में पहले से ही बहुत सारे रोहिंग्या, म्याँमार से पलायन करके आए हुए हैं।
- रोहिंग्या म्याँमार के जातीय मुस्लिम हैं, जो अराकान क्षेत्र में राखीन प्रांत में रहते हैं।
- म्याँमार में बौद्ध संप्रदाय के लोगों के साथ झड़प के बाद वर्ष 2012 से लगभग 1,68,000 रोहिंग्या भारत आ चुके हैं।
- म्याँमार सेना ने 1 फरवरी, 2021 को तख्तापलट के माध्यम से म्याँमार की सत्ता पर कब्ज़ा कर लिया था, तब से भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों में लोगों का अंतर्वाह शुरू हुआ है।
- इन शरणार्थियों में म्याँमार के चिन जनजातीय समूह के लोकतंत्र समर्थक कार्यकर्त्ताओं के साथ म्याँमार के कई पुलिसकर्मी भी शामिल हैं, जिन्होंने प्रदर्शनकारियों पर गोली चलाने के आदेशों को मानने से इंकार कर दिया था।
- भारत में पहले से ही बहुत सारे रोहिंग्या, म्याँमार से पलायन करके आए हुए हैं।
शरणार्थियों पर भारत का पक्ष:
- भारत बीते लंबे समय से शरणार्थियों को शरण देता रहा है। वर्तमान में भारत में लगभग 3,00,000 लोग शरणार्थी के रूप में रहते हैं, लेकिन यह वर्ष 1951 के शरणार्थी कन्वेंशन या वर्ष 1967 के इसके प्रोटोकॉल का हस्ताक्षरकर्त्ता नहीं है और न ही इसके पास कोई शरणार्थी नीति या शरणार्थी कानून है।
- इससे भारत के लिये शरणार्थियों के प्रहसन पर निर्णय लेने हेतु तमाम विकल्प खुले हैं। भारत सरकार शरणार्थियों के किसी भी समूह को अवैध आप्रवासी घोषित कर सकती है, उदाहरण के लिये UNHCR के सत्यापन के बावज़ूद भारत सरकार द्वारा रोहिंग्या शरणार्थियों से संबंधित मुद्दों से निपटने के लिये विदेशी अधिनियम (Foreigners Act) या भारतीय पासपोर्ट अधिनियम (Indian Passport Act) के प्रयोग का निर्णय लिया गया।
- हाल ही में भारत ने नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 के द्वारा अपनी एक शरणार्थी नीति स्पष्ट की है, जिसके अंतर्गत भारतीय नागरिकता प्रदान करने हेतु धर्म के आधार पर शरणार्थियों के बीच भेदभाव की नीति अपनाई गई है।
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी संधि, 1951
- यह संयुक्त राष्ट्र (United Nation) की एक बहुपक्षीय संधि है, जिसमें शरणार्थी की परिभाषा, उनके अधिकार तथा हस्ताक्षरकर्त्ता देश की शरणार्थियों के प्रति ज़िम्मेदारियों से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।
- यह संधि युद्ध अपराधियों, आतंकवाद से जुड़े व्यक्तियों को शरणार्थी के रूप में मान्यता नहीं देती है।
- यह संधि जाति, धर्म, राष्ट्रीयता, किसी विशेष सामाजिक समूह से संबद्धता या पृथक राजनीतिक विचारों के कारण उत्पीड़न तथा अपना देश छोड़ने को मज़बूर लोगों के अधिकारों को संरक्षण प्रदान करती है।
- यह संधि वर्ष 1948 की ‘मानवाधिकारों पर सार्वभौम घोषणा’ (UDHR) के अनुच्छेद-14 से प्रेरित है। UDHR किसी अन्य देश में पीड़ित व्यक्ति को शरण मांगने का अधिकार प्रदान करती है।
- वर्ष 1967 का प्रोटोकॉल सभी देशों के शरणार्थियों को शामिल करता है, इससे पूर्व वर्ष 1951 में की गई संधि सिर्फ यूरोप के शरणार्थियों को ही शामिल करती थी।
- भारत इस संधि/अभिसमय का पक्षकार नहीं है।
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त
- संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR) एक संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी और एक वैश्विक संगठन है जो शरणार्थियों के जीवन बचाने, उसके अधिकारों की रक्षा करने और उनके लिये बेहतर भविष्य के निर्माण के प्रति समर्पित है।
- संयुक्त राष्ट्र की इस एजेंसी की स्थापना वर्ष 1950 में की गई थी।
- इसका मुख्यालय जिनेवा, स्विट्ज़रलैंड में स्थित है।
स्रोत: द हिंदू
भारत में अग्निशमन सुरक्षा का अभाव
चर्चा में क्यों?
हाल ही में पिछले एक वर्ष में अस्पताल की इमारतों में घातक आग लगने की घटनाएँ देखी गई हैं, इनमें वो अस्पताल भी शामिल हैं जिसमें कोविड -19 रोगियों का इलाज किया गया है।
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau- NCRB) के अनुसार, वर्ष 2019 में आग लगने से वाणिज्यिक भवनों में 330 एवं आवासीय भवनों में 6,329 लोगों की मौत हुई थी।
प्रमुख बिंदु:
आग लगने के प्रमुख कारण:
- इलेक्ट्रिकल फॉल्ट्स (Electrical faults) को आग के प्रमुख कारण के रूप में उद्धृत किया जाता है, लेकिन राज्य सरकारों को व्यापक रूप से सुरक्षा कानूनों में शिथिलता बरतने और सार्वजनिक भवनों को आधुनिक तकनीक से लैस करने में विफल होने के कारण आलोचना का सामना करना पड़ता है।
- अस्पताल के आईसीयू (इंटेंस केयर यूनिट्स) में आग लगने का उच्च जोखिम विद्यमान होता है क्योंकि आईसीयू में ऑक्सीजन की उपलब्धता होती है, अत: ऐसी स्थिति में उच्च मानकों को पूरा करने की आवश्यकता है।
भारत में अग्नि सुरक्षा से संबंधित प्रावधान:
- संवैधानिक प्रावधान:
- अग्निशमन सेवा राज्य सूची का विषय है, इसे अनुच्छेद 243 (W) के तहत भारतीय संविधान की बारहवीं अनुसूची में नगरपालिका के कार्यों की सूची में शामिल किया गया है।
- भारतीय भवन निर्माण संहिता (NBC) 2016:
- NBC के भाग-4 में अग्नि एवं जीवन सुरक्षा (Fire and Life Safety) से संबंधित प्रावधान है।
- NBC, भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा प्रकाशित, एक "सिफारिश संबंधी दस्तावेज़"(Recommendatory Document) है, जिसमें राज्यों को NBC से संबंधित दस्तावेज़ के उपबंधों को स्थानीय भवन उपनियम (Local Building Bylaws) में शामिल करने हेतु अनिवार्य सिफारिशें की गई हैं।
- सभी मौजूदा और नई इमारतों को उनके उपयोग के आधार पर आवासीय, शैक्षिक, संस्थागत, असेंबली (जैसे सिनेमा और ऑडिटोरियम), व्यवसाय, व्यापारिक, औद्योगिक और भंडारण इमारतों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- भवन निर्माण संहिता के प्रमुख प्रावधान:
- आग से बचाव: इसमें इमारतों के डिज़ाइन और निर्माण से संबंधित आग की रोकथाम के पहलुओं को शामिल किया गया है। इसमें विभिन्न प्रकार की इमारतों की निर्माण सामग्री और उनकी फायर रेटिंग का भी वर्णन किया गया है।
- जीवन सुरक्षा: इसमें आग और इसी तरह की आपात स्थिति में जीवन सुरक्षा प्रावधानों को कवर करने के साथ ही निर्माण और निवास सुविधाओं के बारे में जानकारी है जो आग, धुएँ, लपटों या आग से जीवन को होने वाले खतरे को कम करने के लिये आवश्यक हैं।
- NBC के भाग-4 में अग्नि एवं जीवन सुरक्षा (Fire and Life Safety) से संबंधित प्रावधान है।
- मॉडल बिल्डिंग बाय लॉज़, 2016 (Model Building Bye-laws, 2016):
- शहरी विकास मंत्रालय द्वारा "मॉडल बिल्डिंग बाय लॉज़ 2016" नामक एक परिपत्र तैयार किया गया है जो भारत में किसी भी निर्माण परियोजना को शुरू करने से पहले नियामक तंत्र और इंजीनियरिंग मापदंडों के बारे में बताता है।
- अग्नि-संबंधित किसी भी प्रकार की स्वीकृति के लिये बिंदुवार ज़िम्मेदारी मुख्य अग्निशमन अधिकारी (Chief Fire Officer) को दी गई है।
- भवनों के संबंध में स्वीकृति प्राप्त करने के लिये संबंधित विकास प्राधिकरण भवन/इमारत योजनाओं को मुख्य अग्निशमन अधिकारी के पास भेजेगा।
- राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (NDMA) द्वारा जारी दिशा-निर्देश:
- NDMA द्वारा न्यूनतम खुले सुरक्षित स्थान, संरक्षित निकास तंत्र और आपदा के समय खाली करने हेतु ड्रिल एक्सरसाइज़ हेतु दिशा-निर्देशों के अलावा सार्वजनिक भवनों एवं अस्पतालों में अग्नि से सुरक्षा हेतु आवश्यक मानदंडों को निर्धारित किया गया है।
- केंद्र सरकार द्वारा ‘मॉडल बिल ऑन मेंटेनेंस ऑफ फायर एंड इमरजेंसी सर्विस, 2019 (Model Bill on Maintenance of Fire & Emergency Services 2019) लाया गया।
चिंताएँ:
- अग्निशमन से संबंधित आवश्यक दिशा-निर्देश हेतु कुछ राज्यों में एकीकृत अग्निशमन सेवाओं ( Unified Fire Services) का अभाव पाया जाता है।
- भारत में अधिकांश अग्निशमन विभागों में कर्मियों की उचित संगठनात्मक संरचना, प्रशिक्षण और करियर में पदोन्नति का अभाव है।
- अपर्याप्त आधुनिक उपकरण और उनकी स्केलिंग, प्राधिकरण और मानकीकरण का अभाव है।
- उचित और पर्याप्त धन का अभाव, जो अग्निशमन की तकनीकी प्रगति को रोकता है।
- ढांँचागत सुविधाओं का अभाव जिनमें फायर स्टेशन और कर्मियों का आवास आदि शामिल हैं।
- ज्यादातर आग लगने के कारणों का विश्लेषण नहीं किया जाता है।
- सार्वजनिक जागरूकता का अभाव तथा नियमित रूप से ‘मॉक ड्रिल’ और निकासी अभ्यास (Evacuation Drills) आयोजित नहीं किये जाते हैं।
- एक समान अग्नि सुरक्षा कानून का अभाव।
- हाल ही में कुछ राज्यों जैसे महाराष्ट्र, तमिलनाडु और केरल में NBC का उल्लंघन देखने को मिला।
आगे की राह:
- हालांँकि दिसंबर 2020 में सर्वोच्च न्यायालय (Supreme Court) ने सभी राज्यों में स्थित कोविड -19 समर्पित अस्पतालों में अग्नि सुरक्षा ऑडिट (Fire Safety Audits ) करने हेतु निर्देश दिये थे। इससे यह स्पष्ट हो गया है कि NCB सहित राज्य बलों के पास सुरक्षा कोडों का निरीक्षण करने और उन्हें सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक मानव शक्ति की कमी है, जहांँ इनकी अनिवार्यता है।
- इसका एक विकल्प यह हो सकता है कि बड़े स्तर पर सभी सार्वजनिक भवनों का अनिवार्य अग्नि देयता बीमा (Fire Liability Insurance ) किया जाए जो उनमें रहने वालों और आने वाले लोगों को सुरक्षा प्रदान करेगा और बाहरी स्तर ( इमारत की सुरक्षा) पर भी सुरक्षा का निरीक्षण करेगा।
स्रोत: द हिंदू
वित्तीय क्षेत्र और जलवायु परिवर्तन
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ‘नेटवर्क फॉर ग्रीनिंग द फाइनेंशियल सिस्टम’ (NGFS) में शामिल हुआ है।
- RBI को NGFS की सदस्यता से लाभ मिलने की उम्मीद है, क्योंकि इससे रिज़र्व बैंक को सीखने और हरित या जलवायु वित्त संबंधी वैश्विक प्रयासों में योगदान देने का अवसर प्राप्त होगा। ज्ञात हो कि बीते कुछ समय में जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में हरित वित्त की महत्ता बढ़ी है।
नेटवर्क फॉर ग्रीनिंग द फाइनेंशियल सिस्टम (NGFS)
- यह केंद्रीय बैंकों और पर्यवेक्षक प्राधिकारियों का एक वैश्विक समूह है, जो अधिक सतत् वित्तीय व्यवस्था का समर्थन करता है।
- इसका उद्देश्य वित्तीय प्रणाली के लिये जलवायु परिवर्तन के परिणामों का विश्लेषण करना और निम्न-कार्बन आर्थिक विकास को सक्षम करने के लिये वैश्विक वित्तीय प्रवाह को पुनर्निर्देशित करना है।
- इसे दिसंबर 2017 में पेरिस में आयोजित ‘वन प्लैनेट समिट’ (One Planet Summit) के दौरान बनाया गया और इसका सचिवालय बैंक्य डी फ्राँस (Banque de France) द्वारा संचालित है।
जलवायु वित्त
- जलवायु वित्त ऐसे स्थानीय, राष्ट्रीय या अंतर्राष्ट्रीय वित्तपोषण को संदर्भित करता है, जो कि सार्वजनिक, निजी और वैकल्पिक वित्तपोषण स्रोतों से प्राप्त किया गया हो।
- यह ऐसे शमन और अनुकूलन संबंधी कार्यों का समर्थन करता है जो जलवायु परिवर्तन संबंधी समस्याओं का निराकरण करेंगे।
प्रमुख बिंदु
जलवायु परिवर्तन से वित्तीय स्थिरता को जोखिम:
- जलवायु परिवर्तन से वित्तीय स्थिरता में उत्पन्न जोखिम इस प्रकार है:
- भौतिक जोखिम: चरम और धीमी मौसम की घटनाओं के कारण उत्पन्न जोखिम।
- ट्रांजीशन जोखिम : निम्न-कार्बन अर्थव्यवस्था में परिवर्तन करते हुए नीति, कानूनी और नियामक ढाँचे, उपभोक्ता वरीयताओं और तकनीकी विकास में बदलाव के कारण उत्पन्न जोखिम।
- उदाहरण:
- कई जलवायु अनुमानों के तहत जलवायु परिवर्तन से समुद्र स्तर में बढ़ोतरी और तूफान की तीव्रता में वृद्धि हो सकती है।
- इन प्रभावों के परिणामस्वरूप तटीय भूमि पर बाढ़ में वृद्धि हो सकती है, जो या तो इस क्षेत्रों पर मौज़ूदा संरचनाओं को नुकसान पहुँचाएगा या इनकी निरंतर उत्पादक उपयोग के लिये निवेश और अनुकूलन की आवश्यकता को बढ़ाएगा।
- जैसे-जैसे यह बाढ़ आती है, तटीय अचल संपत्ति के अपेक्षित मूल्य में कमी हो सकती है - जिसके कारण अचल संपत्ति ऋणों, बंधक-समर्थित प्रतिभूतियों, उस संपत्ति का उपयोग करने वाली फर्मों की लाभप्रदता पर जोखिम उत्पन्न होता है और साथ ही राज्य तथा स्थानीय सरकारों के कर राजस्व में गिरावट होती है और उपचारात्मक लागतों में वृद्धि होती है।
- विश्व आर्थिक मंच (WEF) की वैश्विक जोखिम रिपोर्ट, 2021 में जलवायु कार्यवाही की विफलता तथा संक्रामक रोगों को सबसे गंभीर दीर्घकालिक जोखिम के रूप में पहचाना गया है।
भारत की स्थिति:
- विश्व बैंक की एक रिपोर्ट का अनुमान है कि जलवायु परिवर्तन के कारण वर्ष 2050 तक भारत के सकल घरेलू उत्पाद में कुल 1,178 बिलियन अमेरिकी डॉलर का नुकसान हो सकता है।
- RBI ने जलवायु परिवर्तन से निपटने और सतत् व निम्न कार्बन विकास की दिशा में परिवर्तन लाने हेतु अधिक मात्रा में निवेश करने के लिये आवश्यक जलवायु-संबंधी वित्तीय प्रकटीकरण और निजी हरित वित्त के महत्त्व को इंगित किया है।
- ‘शक्ति फाउंडेशन’ नामक गैर-लाभकारी संस्था द्वारा बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज (BSE) में सूचीबद्ध 100 कंपनियों के एक अध्ययन में पाया गया कि उनमें से अधिकांश भारतीय कंपनियाँ प्रासंगिक विशेषज्ञता की कमी, आवश्यक उपकरणों तथा विधियों तक सीमित पहुँच और सीमित विषय विशेषज्ञता के कारण जलवायु परिवर्तन प्रकटीकरण के मामले में काफी पीछे हैं।
संबंधित पहले:
- जलवायु-संबंधी वित्तीय प्रकटीकरण पर कार्य बल (TFCD):
- जलवायु-संबंधी वित्तीय प्रकटीकरण पर कार्य बल (TFCD) को वित्तीय स्थिरता बोर्ड (FSB) द्वारा वर्ष 2015 में जलवायु संबंधी वित्तीय जोखिम की प्रकटीकरण निरंतरता को विकसित करने के लिये बनाया गया था। यह कंपनियों, बैंकों और निवेशकों द्वारा हितधारकों को जानकारी प्रदान करता है।
- TFCD ने निजी क्षेत्र को जलवायु सकारात्मक कार्रवाई में योगदान देने के लिये प्रेरित करने और उन्हें जलवायु जोखिमों के प्रति लचीला बनाए जाने की सिफारिश की है।
- इसकी सिफारिशों को अब व्यापक रूप से वैश्विक व्यापार स्थिरता रिपोर्ट फ्रेमवर्क के लिये एक मानक के रूप में मान्यता प्राप्त है, जो कॉर्पोरेट जलवायु प्रकटीकरण के लिये मानकीकृत और विस्तृत दिशा-निर्देश प्रदान करता है।
- TFCD के लिये लगभग 32 भारतीय संगठनों ने हस्ताक्षर किये हैं, जिसमें महिंद्रा ग्रुप, विप्रो आदि शामिल हैं।
- हाल ही में न्यूज़ीलैंड जलवायु परिवर्तन के संबंध में कानून बनाने वाला पहला देश बन गया है। न्यूज़ीलैंड का यह कानून वित्तीय कंपनियों के लिये जलवायु-संबंधी जोखिमों की रिपोर्ट करना अनिवार्य बनाता है।
आगे की राह
- आर्थिक वसूली के साथ जलवायु-संरेखित संरचनात्मक परिवर्तन को पूरी तरह से एकीकृत करना एकमात्र तरीका है, जिसमें निजी वित्त में भारी वृद्धि के साथ पूरे वित्त प्रणाली में एक बुनियादी परिवर्तन की आवश्यकता है।
- भारत सरकार को सभी वित्तीय वक्तव्यों में जलवायु-संबंधी प्रकटीकरण को मानकीकृत और अनिवार्य करने के लिये दिशा-निर्देशों और नियमों को लागू करने की आवश्यकता है और निजी कंपनियों और वित्तीय संस्थानों को अपने घोषणापत्र और संचालन में जलवायु जोखिमों के संभावित खतरों को प्रबंधित करने के लिये आगे आना चाहिये।
- इससे न केवल जलवायु परिवर्तन के भौतिक व ट्रांजीशन संबंधी जोखिमों का सामना करने के लिये भारतीय कंपनियों को लचीलापन बढ़ाने में मदद मिलेगी, बल्कि 'ग्रीनवाशिंग' को कम करते हुए अधिक-से-अधिक जलवायु वित्त प्रवाह को सुविधाजनक बनाने में भी मदद मिलेगी।