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डेली न्यूज़

  • 04 Oct, 2021
  • 46 min read
भारतीय इतिहास

गांधी जयंती

प्रिलिम्स के लिये:

महात्मा गांधी, लाल बहादुर शास्त्री, गांधी शांति पुरस्कार, प्रवासी भारतीय दिवस, रॉलेट एक्ट, पूना समझौता

मेन्स के लिये:

भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महात्मा गांधी का योगदान

चर्चा में क्यों?

2 अक्तूबर, 2021 को महात्मा गांधी की 152वीं जयंती मनाई गई।

प्रमुख बिंदु

  • जन्म: महात्मा गांधी का जन्म 2 अक्तूबर, 1869 को पोरबंदर (गुजरात) में हुआ था।
  • संक्षिप्त परिचय: वे एक प्रसिद्ध वकील, राजनेता, सामाजिक कार्यकर्त्ता और लेखक थे, जिन्होंने ब्रिटिश शासन के विरुद्ध भारत के राष्ट्रवादी आंदोलन में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
  • सत्याग्रह: दक्षिण अफ्रीका (1893-1915) में उन्होंने जन आंदोलन की एक नई पद्धति यानी ‘सत्याग्रह’ की स्थापना की और इसके साथ नस्लवादी शासन का सफलतापूर्वक मुकाबला किया।
    • ‘सत्याग्रह’ के विचार के तहत ‘सत्य की शक्ति’ और ‘अहिंसा के साथ सत्य की खोज’ की आवश्यकता पर बल दिया गया।
    • विश्व भर में गांधी जयंती के अवसर पर 02 अक्तूबर को ‘अंतर्राष्ट्रीय अहिंसा दिवस’ का आयोजन किया जाता है।
    • अहिंसा और अन्य गांधीवादी तरीकों के माध्यम से सामाजिक, आर्थिक और राजनीतिक परिवर्तन लाने के लिये प्रतिवर्ष ‘गांधी शांति पुरस्कार’ प्रदान किया जाता है।
  • भारत वापसी: वे 9 जनवरी, 1915 को दक्षिण अफ्रीका से भारत लौटे।
    • भारत के विकास में प्रवासी भारतीय समुदाय के योगदान को चिह्नित करने हेतु प्रतिवर्ष 09 जनवरी को ‘प्रवासी भारतीय दिवस’ का आयोजन किया जाता है।
  • भारत में सत्याग्रह आंदोलन: महात्मा गांधी का मानना था कि अहिंसा का धर्म सभी भारतीयों को एकजुट कर सकता है।
    • वर्ष 1917 में उन्होंने किसानों को नील की खेती की दमनकारी प्रणाली के खिलाफ संघर्ष करने के लिये प्रेरित करने हेतु बिहार के चंपारण की यात्रा की थी।
    • वर्ष 1917 में उन्होंने गुजरात के खेड़ा ज़िले के किसानों का समर्थन करने हेतु एक सत्याग्रह का आयोजन किया। फसल खराब होने और प्लेग की महामारी से प्रभावित खेड़ा के किसान राजस्व का भुगतान नहीं कर सके और राजस्व वसूली में कुछ छूट देने की मांग कर रहे थे।
    • वर्ष 1918 में कपास मिल श्रमिकों के बीच सत्याग्रह आंदोलन हेतु वे अहमदाबाद गए।
    • वर्ष 1919 में उन्होंने ‘प्रस्तावित रॉलेट एक्ट’ (1919) के विरुद्ध एक राष्ट्रव्यापी सत्याग्रह शुरू करने का फैसला किया।
      • इस अधिनियम के तहत सरकार को राजनीतिक गतिविधियों को दबाने के लिये उच्च शक्तियाँ और दो वर्ष तक बिना किसी मुकदमे के राजनीतिक कैदियों को हिरासत में रखने की अनुमति दी गई थी।
      • 13 अप्रैल, 1919 को कुख्यात जलियांवाला बाग की घटना हुई। हिंसा को फैलते देख महात्मा गांधी ने आंदोलन (18 अप्रैल, 1919) को बंद कर दिया।
  • असहयोग आंदोलन (1920-22): सितंबर 1920 में काॅन्ग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में उन्होंने अन्य नेताओं को खिलाफत और स्वराज के समर्थन में एक असहयोग आंदोलन शुरू करने की आवश्यकता के बारे में आश्वस्त किया।
    • दिसंबर 1920 में नागपुर में काॅन्ग्रेस के अधिवेशन में असहयोग कार्यक्रम को अंगीकार किया गया।
    • फरवरी 1922 में चौरी-चौरा कांड के बाद महात्मा गांधी ने असहयोग आंदोलन को वापस लेने का फैसला किया।
  • नमक मार्च: वर्ष 1930 में गांधीजी ने घोषणा की कि वे नमक कानून को तोड़ने के लिये एक मार्च का नेतृत्व करेंगे।
    • उन्होंने साबरमती आश्रम से गुजरात के तटीय शहर दांडी तक मार्च किया, जहाँ उन्होंने समुद्र के किनारे पाए जाने वाले प्राकृतिक नमक को इकट्ठा करके और नमक पैदा करने के लिये समुद्र के पानी को उबालकर सरकारी कानून तोड़ा।
    • यह घटना सविनय अवज्ञा आंदोलन की शुरुआत को चिह्नित करती है।
  • सविनय अवज्ञा आंदोलन:
    • वर्ष 1931 में गांधीजी ने एक संघर्ष विराम (गांधी-इरविन संधि) को स्वीकार कर लिया और सविनय अवज्ञा को समाप्त कर दिया तथा भारतीय राष्ट्रीय काॅन्ग्रेस के एकमात्र प्रतिनिधि के रूप में लंदन में दूसरे ‘गोलमेज सम्मेलन’ में हिस्सा लेने के लिये सहमत हो गए।
    • लंदन से लौटने के बाद महात्मा गांधी ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को फिर से शुरू कर दिया। एक वर्ष से अधिक समय तक यह आंदोलन जारी रहा, किंतु वर्ष 1934 तक इसने अपनी शक्ति खो दी।
  • भारत छोड़ो आंदोलन:
    • द्वितीय विश्व युद्ध (1939-45) के प्रकोप के साथ भारत में राष्ट्रवादी संघर्ष अपने अंतिम महत्त्वपूर्ण चरण में प्रवेश कर गया।
    • ‘क्रिप्स’ मिशन (मार्च 1942) की विफलता, भारतीयों को सत्ता हस्तांतरित करने संबंधी ब्रिटिश अनिच्छा और उच्च ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा हिंदू एवं मुसलमानों के बीच कलह को बढ़ावा देने वाली रूढ़िवादी एवं सांप्रदायिक ताकतों को दिये गए प्रोत्साहन ने गांधीजी को वर्ष 1942 में तत्काल ब्रिटिश वापसी की मांग करने के लिये प्रोत्साहित किया, जिसे बाद में ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के रूप में जाना गया।
  • सामाजिक कार्य:
    • उन्होंने तथाकथित अछूतों के उत्थान के लिये भी महत्त्वपूर्ण कार्य किया और अछूतों को एक नया नाम दिया- 'हरिजन', जिसका अर्थ है ‘ईश्वर की संतान’।
      • सितंबर 1932 में ‘बी.आर. अंबेडकर’ ने महात्मा गांधी के साथ ‘पूना समझौते’ पर बातचीत की।
    • आत्मनिर्भरता का उनका प्रतीक- चरखा भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक लोकप्रिय चिह्न बन गया।
    • उन्होंने लोगों को शांत करने और हिंदू-मुस्लिम दंगों को रोकने में भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई, क्योंकि देश के विभाजन से पहले तथा उसके दौरान दोनों समुदायों के बीच तनाव काफी बढ़ गया था।
      • वर्ष 1942 में उन्होंने महाराष्ट्र के वर्द्धा में ‘हिंदुस्तानी प्रचार सभा’ की स्थापना की। इस संगठन का उद्देश्य हिंदी और उर्दू के बीच एक संपर्क भाषा हिंदुस्तानी को बढ़ावा देना था।
  • पुस्तकें: हिंद स्वराज, सत्य के साथ मेरे प्रयोग (आत्मकथा)।
  • मृत्यु: 30 जनवरी, 1948 को नाथूराम गोडसे ने गोली मारकर उनकी हत्या कर दी।
    • 30 जनवरी को देश भर में शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


आपदा प्रबंधन

भूस्खलन और बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणाली

प्रिलिम्स के लिये:

बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणाली 

मेन्स के लिये:

भारत में भूस्खलन और बाढ़ संबंधी मुद्दे

चर्चा में क्यों?

वैज्ञानिक और औद्योगिक अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय भूभौतिकीय अनुसंधान संस्थान (CSIR-NGRI) ने हिमालयी क्षेत्र के लिये 'भूस्खलन और बाढ़ पूर्व चेतावनी प्रणाली' विकसित करने हेतु एक 'पर्यावरण भूकंप विज्ञान' (Environmental Seismology’ Group) समूह की शुरुआत की है।

  • NGRI के वैज्ञानिकों ने GFZ, पॉट्सडैम में जर्मन वैज्ञानिकों के सहयोग से इस प्रणाली को लॉन्च किया है।

प्रमुख बिंदु

  • पूर्व चेतावनी प्रणाली के संदर्भ में:
    • यह प्रणाली उपग्रह डेटा, संख्यात्मक मॉडलिंग और भू-आकृति विश्लेषण सहित घने भूकंपीय नेटवर्क के साथ वास्तविक समय की निगरानी पर आधारित होगी।
    • ब्रॉडबैंड भूकंपीय नेटवर्क की सबसे बड़ी ताकत यह है कि यह ध्रुवीकरण और बैक-ट्रेसिंग दृष्टिकोण का उपयोग करके पूरे आपदा अनुक्रम की संपूर्ण स्थानिक ट्रैकिंग को सक्षम बनाता है।
    • प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ आपदा से होने वाले आर्थिक नुकसान को कम करने और चोटों या मौतों की संख्या को कम करने में मदद करती हैं, साथ ही ऐसी जानकारी प्रदान करके व्यक्तियों और समुदायों को जीवन तथा संपत्ति की रक्षा करने में सक्षम बनाती हैं।
  • भूस्खलन (Landslide): 
    • परिचय: भूस्खलन को सामान्य रूप से शैल, मलबा या ढाल से गिरने वाली मिट्टी के बृहत संचलन के रूप में परिभाषित किया जाता है।
      • यह एक प्रकार का वृहद् पैमाने पर अपक्षय है, जिससे गुरुत्वाकर्षण के प्रत्यक्ष प्रभाव में मिट्टी और चट्टान समूह खिसककर ढाल से नीचे गिरते हैं।
      • भूस्खलन शब्द में ढलान संचलन के पाँच तरीके शामिल हैं: गिरना (Fall), लटकना (Topple), फिसलना (Slide), फैलाव (Spread) और प्रवाह (Flow)।
    • कारक: ढलान संचलन तब होता है जब नीचे की ओर (मुख्य रूप से गुरुत्वाकर्षण के कारण) कार्य करने वाले बल ढलान निर्मित करने वाली पृथ्वी जनित सामग्री से अधिक शक्तिशाली हो जाते हैं।
      • भू-स्खलन तीन प्रमुख कारकों के कारण होता है: भू-विज्ञान, भू-आकृति विज्ञान और मानव गतिविधि।
    • भूस्खलन संभावित क्षेत्र: संपूर्ण हिमालय पथ, उत्तर-पूर्वी भारत के उप-हिमालयी क्षेत्रों में पहाड़ियाँ/पहाड़, पश्चिमी घाट, तमिलनाडु कोंकण क्षेत्र में नीलगिरि भूस्खलन-प्रवण क्षेत्र हैं।
    • उठाए गए कदम: भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण (GSI) ने देश के 042 मिलियन वर्ग किमी भूस्खलन प्रवण क्षेत्रों को कवर करने के उद्देश्य से भूस्खलन संवेदनशीलता मानचित्रण मैक्रो स्केल (1:50,000) पर एक राष्ट्रीय कार्यक्रम शुरू किया है।
  • बाढ़:
    • परिचय: यह एक प्रकार की बारंबार उत्पन्न होने वाली प्राकृतिक आपदा है, बाढ़ तब आती हैं जब पानी का एक अतिप्रवाह भूमि को जलमग्न कर देता है, यह भूमि आमतौर पर सूखी रहती है।
      • यह प्रायः भारी वर्षा, तेज़ी से हिमपात या तटीय क्षेत्रों में उष्णकटिबंधीय चक्रवात या सुनामी से तूफान के कारण होता है।
    • प्रकार: बाढ़ के 3 सामान्य प्रकार हैं:
      • फ्लैश फ्लड की स्थिति तेज़ी से और अत्यधिक वर्षा के कारण उत्पन्न होती है जिससे जल की ऊँचाई में तेज़ी से वृद्धि होती है और बाढ़ का पानी नदियों, नालों, चैनलों के ओवरफ्लो होने के कारण सड़कों पर बहने लगता है।
        • ये उच्च जल स्तर के साथ छोटी अवधि की अत्यधिक स्थानीयकृत घटनाएँ हैं और आमतौर पर वर्षा तथा चरम बाढ़ की घटना के बीच का समय छह घंटे से भी कम होता है।
      • नदी की बाढ़ की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब लगातार बारिश हो या बर्फ पिघलती है जिससे नदी अपनी क्षमता से ऊपर बहने लगती है।
      • तटीय बाढ़ की स्थिति उष्णकटिबंधीय चक्रवातों और सूनामी से जुड़े तूफानों के कारण उत्पन्न होती है।
    • सुभेद्यता: भारत में प्रमुख बाढ़ प्रवण क्षेत्र पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, उत्तरी बिहार और पश्चिम बंगाल, ब्रह्मपुत्र घाटी, तटीय आंध्र प्रदेश एवं ओडिशा और दक्षिणी गुजरात सहित गंगा के अधिकांश मैदान हैं।
      • वर्तमान केरल और तमिलनाडु में भी बाढ़ का कहर छाया हुआ है।
    • उठाए गए कदम:
      • भारत में फ्लड-प्लेन ज़ोनिंग शुरू की गई थी जो बाढ़ क्षेत्रों या मैदानों के सर्वेक्षण और सीमांकन के लिए शुरू की गई थी। यह ऐसे क्षेत्रों में अंधाधुंध विकास और मानव गतिविधियों को रोकती है।
      • राष्ट्रीय जल नीति परियोजना नियोजन, सतही और भूजल विकास, सिंचाई एवं बाढ़ नियंत्रण के प्रावधानों पर प्रकाश डालती है।
      • भारत में बाढ़ की भविष्यवाणी और चेतावनी का उत्तरदायित्व केंद्रीय जल आयोग (CWC) को सौंपा गया है।

आगे की राह:

  • चूँकि ग्लेशियर पिघलने और ग्लेशियर पीछे हटने की वजह से अचानक आई बाढ़ के कारण बर्फ के क्षरण में तेज़ी लाने में जलवायु परिवर्तन एक प्रमुख कारक है, इसलिये बहु-जोखिम प्रवण हिमालयी क्षेत्र में नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिये बड़े प्रयासों की आवश्यकता है।
  • सरकारों द्वारा निर्मित बाँधों, बिजली संयंत्रों और अन्य परियोजनाओं के बुनियादी ढाँचे के विकास की योजना पर भी इसका महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ेगा, जो कि देश के लिये रणनीतिक और सामाजिक महत्त्व के हैं।

स्रोत: द हिंदू


शासन व्यवस्था

जनहित याचिका

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, जनहित याचिका, रिट याचिका

मेन्स के लिये:

जनहित याचिका (PIL) का महत्त्व एवं दुरुपयोग

चर्चा में क्यों?

सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने एक याचिकाकर्त्ता को पर्याप्त शोध के बिना जनहित याचिका (PIL) दायर करने के लिये चेतावनी दी।

प्रमुख बिंदु

  • परिचय:
    • जनहित याचिका (PIL) मानव अधिकारों और समानता को आगे बढ़ाने या व्यापक सार्वजनिक चिंता के मुद्दों को उठाने के लिये कानून का उपयोग है।
    • ‘जनहित याचिका (Public Interest Litigation-PIL)’ की अवधारणा अमेरिकी न्यायशास्त्र से ली गई है।
    • भारतीय कानून में PIL का मतलब जनहित की सुरक्षा के लिये याचिका या मुकदमा दर्ज करना है। यह पीड़ित पक्ष द्वारा नहीं बल्कि स्वयं न्यायालय या किसी अन्य निजी पक्ष द्वारा विधिक अदालत में पेश किया गया मुकदमा है। 
      • यह न्यायिक सक्रियता के माध्यम से अदालतों द्वारा जनता को दी गई शक्ति है।
    • इसे केवल सर्वोच्च न्यायालय या उच्च न्यायालय में दायर किया जा सकता है।
    • यह रिट याचिका से अलग है, जो व्यक्तियों या संस्थानों द्वारा अपने लाभ के लिये दायर की जाती है, जबकि जनहित याचिका आम जनता के लाभ के लिये दायर की जाती है।
    • जनहित याचिका की अवधारणा भारत के संविधान के अनुच्छेद 39 A में निहित सिद्धांतों के अनुकूल है ताकि कानून की मदद से त्वरित सामाजिक न्याय की रक्षा और उसे विस्तारित किया जा सके।
    • वे क्षेत्र जहाँ जनहित याचिका दायर की जा सकती है: प्रदूषण, आतंकवाद, सड़क सुरक्षा, निर्माण संबंधी खतरे आदि। 
  • महत्त्व:
    • जनहित याचिका सामाजिक परिवर्तन और कानून के शासन को बनाए रखने तथा कानून एवं न्याय के बीच संतुलन को तीव्र गति देना का एक महत्त्वपूर्ण साधन है।
    • जनहित याचिकाओं का मूल उद्देश्य गरीबों और हाशिये के वर्ग के लोगों के लिये न्याय को सुलभ या न्याय संगत बनाना है। यह सभी के लिये न्याय की पहुँच का लोकतंत्रीकरण करता है।
    • यह राज्य संस्थानों जैसे- जेलों, आश्रयों, सुरक्षात्मक घरों आदि की न्यायिक निगरानी में मदद करता है।
    • न्यायिक समीक्षा की अवधारणा को लागू करने के लिये यह एक महत्त्वपूर्ण उपकरण है।
  • मुद्दे:
    • दुरुपयोग:
      • अदालतों में लंबित मामलों की संख्या पहले से ही अधिक है और जनहित याचिकाओं का दुरुपयोग बढ़ रहा है।
      • वर्ष 2010 में सर्वोच्च न्यायालय ने व्यक्तिगत या अप्रासंगिक मामलों से जुड़ी जनहित याचिकाओं पर काफी नाराज़गी व्यक्त की थी और जनहित याचिकाओं को स्वीकार करने के लिये अदालतों को कुछ दिशा-निर्देश जारी किये थे।
    • प्रतिस्पर्द्धी अधिकारों की समस्या:
      • जनहित याचिका की कार्रवाइयाँ कभी-कभी प्रतिस्पर्द्धी अधिकारों की समस्या को जन्म दे सकती है।
      • उदाहरण के लिये जब कोई न्यायालय प्रदूषण फैलाने वाले उद्योग को बंद करने का आदेश देती है तो कामगारों और उनकी आजीविका से वंचित उनके परिवारों के हितों को न्यायालय द्वारा ध्यान में नहीं रखा जा सकता है।
    • विलंब:
      • शोषित और वंचित समूहों से संबंधित जनहित याचिकाएँ कई वर्षों से लंबित हैं।
      • जनहित याचिका के मामलों के निपटान में अत्यधिक देरी से कई प्रमुख निर्णय अव्यवहारिक/अक्रियात्मक मूल्य (Academic Value) के हो सकते हैं।
  • न्यायिक अतिरेक:
    • जनहित याचिकाओं के माध्यम से सामाजिक-आर्थिक या पर्यावरणीय समस्याओं को हल करने की प्रक्रिया में न्यायपालिका द्वारा न्यायिक अतिक्रमण के मामले हो सकते हैं।

आगे की राह

पूर्व अटॉर्नी जनरल सोली सोराबजी की राय में जनहित याचिका के दुरुपयोग को नियंत्रित करने के लिये 3 बुनियादी नियम:

  • संदिग्ध जनहित याचिका को उपयुक्त मामलों में अनुकरणीय लागत के साथ अस्वीकार करना।
  • ऐसे मामलों में जहाँ महत्त्वपूर्ण परियोजना या सामाजिक आर्थिक नियमों में अधिक विलंब के बाद चुनौती दी जाती है, ऐसी याचिकाओं को निलंबित कर देना चाहिये। 
  • यदि जनहित याचिका को अंततः खारिज कर दिया जाता है, तो जनहित याचिका को सख्त शर्तों के तहत होना चाहिये जैसे कि याचिकाकर्त्ताओं को क्षतिपूर्ति प्रदान करना या हर्ज़ाने को कवर करना।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय राजनीति

चुनाव चिह्न

प्रिलिम्स के लिये:

भारत निर्वाचन आयोग, मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल, पंजीकृत लेकिन गैर-मान्यता प्राप्त दल

मेन्स के लिये:

चुनाव चिह्न आवंटित करने संबंधी प्रक्रिया और मुद्दे

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत निर्वाचन आयोग (Election Commission of India-ECI) ने एक राजनीतिक दल के चुनाव चिह्न को फ्रीज़ (Freeze) करने का फैसला लिया है।

  • चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 चुनाव आयोग को राजनीतिक दलों को मान्यता देने और चुनाव चिह्न आवंटित करने का अधिकार देता है।

प्रमुख बिंदु

  • संदर्भ:
    • एक चुनावी/चुनाव चिन्ह किसी राजनीतिक दल को आवंटित एक मानकीकृत प्रतीक है।
    • उनका उपयोग पार्टियों द्वारा अपने प्रचार अभियान के दौरान किया जाता है और इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन (EVMs) पर दर्शाया जाता है, जिससे मतदाता संबंधित पार्टी के लिये चिन्ह का चुनाव कर मतदान कर सकता है।
    • इन्हें निरक्षर लोगों के लिये मतदान की सुविधा हेतु प्रस्तुत किया गया था, जो मतदान करते समय पार्टी का नाम नहीं पढ़ पाते।
    • 1960 के दशक में यह प्रस्तावित किया गया था कि चुनावी प्रतीकों का विनियमन, आरक्षण और आवंटन संसद के एक कानून यानी प्रतीक आदेश के माध्यम से किया जाना चाहिये।
    • इस प्रस्ताव के जवाब में निर्वाचन आयोग ने कहा कि राजनीतिक दलों की मान्यता की निगरानी चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968 के प्रावधानों द्वारा की जाती है और इसी के अनुसार चिह्नों का आवंटन भी होगा।
      • निर्वाचन आयोग, चुनाव के उद्देश्य से राजनीतिक दलों को पंजीकृत करता है और उनके चुनावी प्रदर्शन के आधार पर उन्हें राष्ट्रीय या राज्य पार्टियों के रूप में मान्यता देता है। अन्य पार्टियों को केवल पंजीकृत गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियों के रूप में घोषित किया जाता है।
      • राष्ट्रीय या राज्य पार्टियों के रूप में मान्यता कुछ विशेषाधिकारों को पार्टियों के  अधिकार के रूप में निर्धारित करती है जैसे- पार्टी प्रतीकों का आवंटन, टेलीविज़न और रेडियो स्टेशनों पर राजनीतिक प्रसारण के लिये समय का प्रावधान तथा मतदाता सूची तक पहुँच।
      • प्रत्येक राष्ट्रीय दल और राज्य स्तरीय पार्टी को क्रमशः पूरे देश तथा राज्यों में उपयोग के लिये विशेष रूप से आरक्षित एक प्रतीक चिह्न आवंटित किया जाता है।
  • चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन) आदेश, 1968:
    • आदेश के पैरा 15 के तहत चुनाव आयोग प्रतिद्वंद्वी समूहों या किसी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दल के वर्गों के बीच विवादों का फैसला कर सकता है और इसके नाम तथा चुनाव चिह्न पर दावा कर सकता है।
      • आदेश के तहत विवाद या विलय के मुद्दों का फैसला करने के लिये निर्वाचन आयोग एकमात्र प्राधिकरण है। सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने वर्ष 1971 में सादिक अली और एक अन्य बनाम ECI में इसकी वैधता को बरकरार रखा।
    • यह मान्यता प्राप्त राष्ट्रीय और राज्य पार्टियों के विवादों पर लागू होता है।
    • पंजीकृत लेकिन गैर-मान्यता प्राप्त पार्टियों में विभाजन के मामलों में चुनाव आयोग आमतौर पर विवाद में शामिल गुटों को अपने मतभेदों को आंतरिक रूप से हल करने या अदालत जाने की सलाह देता है।
    • चुनाव आयोग द्वारा अब तक लगभग सभी विवादों में पार्टी के प्रतिनिधियों/ पदाधिकारियों, सांसदों और विधायकों के स्पष्ट बहुमत ने एक गुट का समर्थन किया है।
    • वर्ष 1968 से पहले चुनाव आयोग ने चुनाव नियम, 1961 के संचालन के तहत अधिसूचना और कार्यकारी आदेश जारी किये।
    • जिस दल को पार्टी का चिह्न मिला था, उसके अलावा पार्टी के अलग हुए समूह को खुद को एक अलग पार्टी के रूप में पंजीकृत कराना पड़ा।
      • वे पंजीकरण के बाद राज्य या केंद्रीय चुनावों में अपने प्रदर्शन के आधार पर ही राष्ट्रीय या राज्य पार्टी की स्थिति का दावा कर सकते थे।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


सामाजिक न्याय

मलेरिया-रोधी दवा प्रतिरोध

प्रिलिम्स के लिये:

मलेरिया, एचआईवी, उत्परिवर्तन, विश्व स्वास्थ्य संगठन

मेन्स के लिये:

मलेरिया दवा प्रतिरोध संबंधित खतरे एवं मलेरिया से संबंधित कार्यक्रम 

चर्चा में क्यों?

हाल के वर्षों में मलेरिया के खिलाफ उपयोग की जाने वाली मलेरिया-रोधी दवाओं के प्रतिरोध (AMR) या  एंटीमाइक्रोबियल प्रतिरोध के परिणामों में वृद्धि देखी गई है।

  • यह प्रतिरोध दवा (आर्टीमिसिनिन या क्लोरोक्वीन,Artemisinin or Chloroquine) के अकेले या अन्य दवाओं के साथ इलाज के दौरान परिलक्षित हुई है।

प्रमुख बिंदु

  • दवा प्रतिरोधक क्षमता:
    • इसे केवल रोग पैदा करने वाले रोगाणुओं (जैसे- बैक्टीरिया या वायरस) की क्षमता के रूप में परिभाषित किया जाता है, जो आमतौर पर उन्हें नष्ट करने वाली दवाओं की उपस्थिति के बावजूद वृद्धि जारी रखते हैं।
    • दवा प्रतिरोध का आशय किसी बीमारी या स्थिति को ठीक करने के लिये ली जाने वाली दवा की प्रभावशीलता में कमी करने से है। 
      • उदाहरण: एचआईवी (Human Immunodeficiency Virus) के साथ, दवा प्रतिरोध वायरस की आनुवंशिक संरचना में उत्परिवर्तन के कारण होता है। इस उत्परिवर्तन से कुछ एचआईवी प्रोटीन और एंजाइम (जैसे, प्रोटीन एंजाइम) में परिवर्तन होता है जो एचआईवी को दोहराने में मदद करता है।
  •   AMR के कारक:
    • उत्परिवर्तन (Mutation):
      • मलेरिया परजीवी में उत्परिवर्तन आर्टीमिसिनिन के आंशिक प्रतिरोध के लिये ज़िम्मेदार हैं।
      • 2010-2019 तक वैश्विक स्तर पर किये गए 1,044 अध्ययनों ने PfK13 उत्परिवर्तन की पुष्टि की।
    • अपर्याप्त कवरेज:
      • मलेरिया-रोधी दवाओं की अपूर्ण कवरेज, अनुचित निदान, दवाओं का दुरुपयोग और मच्छर नियंत्रण कार्यक्रमों की विफलता की रिपोर्ट आदि को इन दवाओं के खिलाफ प्रतिरोध पैदा करने वाले प्रमुख योगदान कारकों के रूप में उद्धृत किया गया था।
      • इन विफलताओं से मलेरिया परजीवियों का दवाओं के प्रति जोखिम बढ़ जाता है, जिससे दवा प्रतिरोध के खतरे में वृद्धि होती है।
  • चिंताएँ:
    • क्लोरोक्वीन (CQ) पी विवैक्स परजीवी के कारण होने वाले मलेरिया में सबसे अधिक दी जाने वाली दवा है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की एक रिपोर्ट के अनुसार, सभी WHO में शामिल देश से क्लोरोक्वीन के लिये पी विवैक्स प्रतिरोध की सूचना प्राप्त हुई थी।
      • भारत सहित 28 देशों में CQ प्रतिरोध के मामले देखे गए हैं। 
    • व्यापक स्तर पर प्रतिरोध के कारण 22 मिलियन उपचार विफल हो सकते हैं, साथ ही 116,000  लोगों की मृत्यु हो सकती है तथा उपचार नीति में बदलाव लाने के लिये अनुमानतः 130 मिलियन अमेरिकी डॉलर की अतिरिक्त लागत वहन करनी पड़ सकती है।

मलेरिया

  • परिचय:
    • मलेरिया एक मच्छर जनित रक्त रोग (Mosquito Borne Blood Disease) है जो प्लास्मोडियम परजीवी (Plasmodium Parasites) के कारण होता है। यह मुख्य रूप से अफ्रीका, दक्षिण अमेरिका और एशिया के उष्णकटिबंधीय एवं उपोष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में पाया जाता है।
      • इस परजीवी का प्रसार संक्रमित मादा एनाफिलीज़ मच्छरों (Female Anopheles Mosquitoes) के काटने से होता है।
      • मानव शरीर में प्रवेश करने के बाद परजीवी शुरू में यकृत कोशिकाओं के भीतर वृद्धि करते हैं, उसके बाद लाल रक्त कोशिकाओं (Red Blood Cells- RBC) को नष्ट करते हैं जिसके परिणामस्वरूप RBCs की क्षति होती है।

Malaria

  • लक्षण:
    • पसीना आना, सिरदर्द, मतली, उल्टी और पेट में दर्द आदि इसके लक्षण बताए गए हैं।
  • प्रकार:
    • चार प्रकार के परजीवी प्लास्मोडियम विवैक्स, पी. ओवेल, पी. मलेरिया और पी.फाल्सीपेरम मनुष्यों को संक्रमित कर सकते हैं:।
  • भारतीय परिदृश्य:
    • वैश्विक स्तर पर मलेरिया के 2% मामले भारत में पाए जाते हैं और मलेरिया के कारण विश्व भर में होने वाली मौतों में से 2% मौतें भी भारत में ही होती हैं।
      • दक्षिण पूर्व एशिया के संदर्भ में मलेरिया के 85.2% मामले भारत में पाए जाते हैं।
    • भारत वैश्विक पी विवैक्स मलेरिया रोग भार का 47% वहन करता है (विशेष रूप से दक्षिण-पूर्व एशियाई क्षेत्र में), जिसके चलते वैश्विक मलेरिया उन्मूलन के लिये भारत रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण हो जाता है, दूसरी ओर भारत एकमात्र उच्च स्थानिक देश है जिसने वर्ष 2018 के मुकाबले वर्ष 2019 में मलेरिया के मामलों में 17.6% की गिरावट दर्ज की है। 
  • संबंधित पहलें:

आगे की राह

  • मलेरिया के कारण वर्ष 2018 में 4,05,000 लोगों की मृत्यु हुई और इसने 21.8 करोड़ लोगों को प्रभावित किया। मलेरिया की दवाओं के खिलाफ बढ़ते प्रतिरोध के कारण इस जानलेवा रोग के विरुद्ध लड़ाई मुश्किल होती जा रही है।
  • रोगियों को प्रभावी उपचार प्राप्त हो यह सुनिश्चित करने के लिये अनुशंसित उपचारों की प्रभावशीलता पर अद्यतन तथा गुणवत्तापूर्ण डेटा उपलब्ध कराने की आवश्यकता है।
  • दवा प्रतिरोधी रूपों का पता लगाने के लिये आणविक स्तर पर मलेरिया की निगरानी (Molecular Malaria Surveillance) करने का समय आ गया है ताकि किसी भी परिणाम को रोकने के लिये समय पर सुधारात्मक उपाय किया जा सके।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

‘जल जीवन मिशन’ एप्लीकेशन

प्रिलिम्स के लिये:

गांधी जयंती, 15वाँ वित्त आयोग, जल जीवन मिशन

मेन्स के लिये:

जल जीवन मिशन की आवश्यकता और जल संसाधन संबंधी चुनौतियाँ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में प्रधानमंत्री ने ‘गांधी जयंती’ (2 अक्तूबर) के अवसर पर ‘जल जीवन मिशन’ (JJM) मोबाइल एप्लीकेशन लॉन्च किया है।

  • प्रधानमंत्री ने ‘जल जीवन मिशन’ की प्रगति रिपोर्ट और ग्रामीण स्थानीय निकायों के लिये 15वें वित्त आयोग के अनुदान के उपयोग संबंधी एक मैनुअल भी जारी किया है।

प्रमुख बिंदु

  • पृष्ठभूमि:
    • यह मोबाइल एप्लीकेशन जल संबंधी बुनियादी अवसंरचना का विवरण, लाभार्थियों के आधार-सत्यापित डेटा सेट और प्रत्येक गाँव हेतु पानी की गुणवत्ता और प्रदूषण से संबंधित जानकारी प्रदान करेगा।
    • इस मोबाइल एप्लीकेशन का उद्देश्य जल जीवन मिशन के तहत हितधारकों के बीच जागरूकता और अधिक पारदर्शिता सुनिश्चित करना तथा योजनाओं की जवाबदेही में सुधार करना है।
    • ‘जल शक्ति मंत्रालय’ द्वारा राज्यों में नल के पानी के कनेक्शन के कवरेज को प्रदर्शित करने के लिये ‘जल जीवन मिशन’ डैशबोर्ड बनाया गया है।
      • जल गुणवत्ता प्रबंधन सूचना प्रणाली प्रयोगशालाओं और राज्यों में प्राप्त एवं परीक्षण किये गए पानी के नमूनों का विवरण प्रदान करती है। मोबाइल एप के माध्यम से यह सारा डेटा एक स्थान पर उपलब्ध होगा।
  • जल जीवन मिशन
    • परिचय:
      • वर्ष 2019 में शुरू किया गया यह मिशन वर्ष 2024 तक ‘कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन’ (FHTC) के माध्यम से प्रत्येक ग्रामीण परिवार को प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 55 लीटर जल की आपूर्ति की परिकल्पना करता है।
      • जल जीवन मिशन का उद्देश्य जल को आंदोलन के रूप में विकसित करना है, जिससे इसे लोगों की प्राथमिकता बनाया जा सके।
      • यह मिशन ‘जल शक्ति मंत्रालय’ के अंतर्गत आता है।
    • लक्ष्य:
      • यह मिशन मौजूदा जल आपूर्ति प्रणालियों और पानी के कनेक्शन की कार्यक्षमता सुनिश्चित करता है; पानी की गुणवत्ता की निगरानी और परीक्षण के साथ-साथ सतत् कृषि को भी बढ़ावा देता है।
      • यह संरक्षित जल के संयुक्त उपयोग; पेयजल स्रोत में वृद्धि, पेयजल आपूर्ति प्रणाली, धूसर जल उपचार और इसके पुन: उपयोग को भी सुनिश्चित करता है।
    • विशेषताएँ:
      • जल जीवन मिशन (JJM) स्थानीय स्तर पर पानी की एकीकृत मांग और आपूर्ति पक्ष प्रबंधन पर केंद्रित है।
      • वर्षा जल संचयन, भूजल पुनर्भरण और पुन: उपयोग के लिये घरेलू अपशिष्ट जल के प्रबंधन जैसे अनिवार्य तत्त्वों के रूप में स्रोत स्थिरता उपायों हेतु स्थानीय बुनियादी ढाँचे का निर्माण अन्य सरकारी कार्यक्रमों/योजनाओं के साथ अभिसरण में किया जाता है।
      • यह मिशन जल के सामुदायिक दृष्टिकोण पर आधारित है तथा मिशन के प्रमुख घटक के रूप में व्यापक सूचना, शिक्षा और संचार शामिल हैं।
    • कार्यान्वयन:
      • ‘पानी समितियाँ’, ग्राम जल आपूर्ति प्रणालियों के नियोजन, कार्यान्वयन, प्रबंधन, संचालन और रखरखाव हेतु उत्तरदायी हैं।
      • समितियाँ सभी उपलब्ध ग्राम संसाधनों को मिलाकर एक एकल ग्राम कार्य योजना तैयार करती हैं। योजना को लागू करने से पहले ग्राम सभा में अनुमोदित किया जाता है।
    • वित्तीयन पैटर्न: 
      • केंद्र और राज्यों के बीच वित्त साझाकरण पैटर्न हिमालय और उत्तर-पूर्वी राज्यों के लिये 90:10, अन्य राज्यों के लिये 50:50 और केंद्रशासित प्रदेशों के लिये 100% है।
    • अब तक हुई प्रगति:
      • जब यह मिशन शुरू किया गया था उस समय देश के कुल ग्रामीण परिवारों में से केवल 17% (32.3 मिलियन) तक ही नल के पानी की आपूर्ति हो पाती थी।
      • वर्तमान में लगभग 7.80 करोड़ (41.14%) घरों में नल के पानी की आपूर्ति है। गोवा, तेलंगाना, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह तथा पुद्दुचेरी ने ग्रामीण क्षेत्रों में 100% घरेलू कनेक्शन का लक्ष्य हासिल कर लिया है तथा 'हर घर जल' सुनिश्चित करने वाले राज्य बन गए हैं।
        • जल जीवन मिशन (ग्रामीण) के पूरक के रूप में जल जीवन मिशन (शहरी) की घोषणा बजट 2021-22 में की गई थी।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


जैव विविधता और पर्यावरण

हरा भरा: एरियल सीडिंग अभियान

प्रिलिम्स के लिये:

हरा भरा: एरियल सीडिंग अभियान, राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम, कैम्पा फण्ड

मेन्स के लिये:

एरियल सीडिंग के लाभ और संबंधित चुनौतियाँ, सरकार द्वारा इस संबंध में किये गए प्रयास

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सीडकॉप्टर ड्रोन का उपयोग करते हुए तेलंगाना में भारत का पहला हरा भरा: एरियल सीडिंग अभियान (Hara Bhara: Aerial Seeding Campaign) शुरू किया गया था।

  • इससे पहले अगस्त 2015 में आंध्र प्रदेश सरकार ने भारतीय नौसेना के हेलीकॉप्टरों का उपयोग करके एरियल सीडिंग कार्यक्रम शुरू किया था।

प्रमुख बिंदु

  • हरा भरा अभियान:
    • इस अभियान का उद्देश्य देश में वर्ष 2030 तक ड्रोन का उपयोग करके एक अरब पेड़ लगाकर वनीकरण के मिशन में तेज़ी लाना है।
    • इस परियोजना में क्षेत्र को हरा भरा बनाने का लिये संकीर्ण, बंजर और खाली वन भूमि पर ड्रोन का उपयोग करके सीड बाॅल्स का छिड़काव किया जाता है।
    • 'सीडकॉप्टर' मारुत ड्रोन (Marut Drones) द्वारा विकसित एक ड्रोन है, जो तेज़ी से और स्केलेबल वनीकरण के लिये एक एरियल सीडिंग समाधान है।
  • एरियल सीडिंग:
    • एरियल सीडिंग, रोपण की एक तकनीक है जिसमें बीजों को मिट्टी, खाद, चारकोल और अन्य घटकों के मिश्रण में लपेटकर एक गेंद का आकार दिया जाता है, इसके बाद हवाई उपकरणों जैसे- विमानों, हेलीकाप्टरों या ड्रोन आदि का उपयोग करके इन गेंदों को लक्षित क्षेत्रों में फेंका जाता है/छिड़काव किया जाता है।
    • इसका एक अन्य लाभ है कि जल और मिट्टी में घुलनशील इन पदार्थों के मिश्रण से पक्षी या वन्य जीव इन बीजों को क्षति नहीं पहुँचाते हैं, जिससे इनके लाभाकारी परिणाम प्राप्त होने की उम्मीदें भी बढ़ जाती है।
    • बीजों से युक्त इन गेंदों को निचली उड़ान भरने में सक्षम ड्रोनों द्वारा एक लक्षित क्षेत्र में फैलाया जाता है, इससे बीज हवा में तैरने की बजाय लेपन युक्त मिश्रण के वज़न से एक पूर्व निर्धारित स्थान पर जा गिरते हैं।
    • पर्याप्त बारिश होने पर ये बीज अंकुरित होते हैं, इनमें मौजूद पोषक तत्त्व इनकी प्रारंभिक वृद्धि में मदद करते हैं।
  • एरियल सीडिंग के लाभ:
    • दुर्गम क्षेत्रों तक पहुँच:
      • इस विधि के माध्यम से ऐसे दुर्गम क्षेत्र, जहां खड़ी ढलान या कोई वन मार्ग न होने के कारण पहुँचना बहुत कठिन है, उन्हें आसानी से लक्षित किया जा सकता है।
    • अतिरिक्त ध्यान देने की आवश्यकता नहीं:
      • बीज के अंकुरण और वृद्धि की प्रक्रिया ऐसी है कि क्षेत्रों में इसके छिड़काव के बाद इस पर कोई विशेष ध्यान देने की आवश्यकता नहीं होती है और इस तरह बीजों को छिड़ककर भूल जाने के तरीके के रूप में इसका इस्तेमाल किया जाता है।
    • जुताई की आवश्यकता नहीं होती:
      • न इन्हें जुताई की आवश्यकता होती हैं और न ही रोपण की, क्योंकि वे पहले से ही मिट्टी, पोषक तत्त्वों और सूक्ष्मजीवों से युक्त होते हैं।
      • मिट्टी का खोल उन्हें पक्षियों, चींटियों और चूहों जैसे कीटों से भी बचाता है।
    • मृदा अपवाह को रोकना:
      • एरियल अनुप्रयोग से मिट्टी का संघनन नहीं होता है, इसलिये यह मिट्टी के अपवाह को रोकता है।
        • इस प्रकार की सीडिंग तकनीक उष्णकटिबंधीय वनों के लिये सबसे उपयोगी है क्योंकि वे अन्य वन प्रकारों की तुलना में कार्बन को बहुत तेज़ी से अवशोषित करते हैं और बहुत अधिक जैव विविधता का समर्थन करते हैं।
  • चुनौतियाँ
    • यद्यपि ड्रोन के कारण लागत कम हो सकती है, किंतु इसके प्रयोग से गलत स्थान पर बीज गिरने की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता है।
    • जब बीज ज़मीन पर पहुँचते हैं तो मिट्टी की संरचना, जानवर और खरपतवार जैसे कई कारक रोपाई में बाधा डाल सकते हैं।
  • संबंधित भारतीय पहलें:

स्रोत: द हिंदू


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