विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति (SOFI) 2023
प्रिलिम्स के लिये:संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO), ब्रिक्स राष्ट्र, PPP डॉलर, वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक 2022, मानव विकास रिपोर्ट 2021-22, वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) 2022, वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक 2022, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (NFSA) 2013, न्यूनतम समर्थन मूल्य, प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना (PMFBY), राष्ट्रीय बागवानी मिशन, राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन मेन्स के लिये:खाद्य सुरक्षा और राष्ट्रीय सुरक्षा, खाद्य सुरक्षा एवं संबंधित मुद्दे |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
संयुक्त राष्ट्र खाद्य एवं कृषि संगठन (Food and Agriculture Organization- FAO) की रिपोर्ट 'विश्व में खाद्य सुरक्षा और पोषण की स्थिति' (SOFI) 2023 ने भारत को लेकर एक चिंताजनक मुद्दे पर प्रकाश डाला है।
- यह रिपोर्ट पौष्टिक भोजन की लागत तथा भारतीय आबादी के एक बड़े हिस्से द्वारा सामना की जाने वाली आर्थिक स्थितियों के बीच बढ़ती असमानता को उजागर करती है।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:
- वैश्विक भुखमरी: वैश्विक भुखमरी की स्थिति वर्ष 2021 और वर्ष 2022 के बीच स्थिर बनी हुई है, महामारी, जलवायु परिवर्तन तथा यूक्रेन में युद्ध सहित संघर्षों के कारण वर्ष 2019 के बाद से पूरे विश्व में भुखमरी का सामना करने वाले लोगों की संख्या 122 मिलियन से अधिक बढ़ गई है।
- पौष्टिक भोजन तक पहुँच: वर्ष 2022 में लगभग 2.4 बिलियन व्यक्तियों, मुख्य रूप से महिलाओं और ग्रामीण क्षेत्रों के निवासियों की पौष्टिक, सुरक्षित एवं पर्याप्त भोजन तक पहुँच में लगातार कमी देखी गई है।
- बाल कुपोषण: बाल कुपोषण की स्थिति अभी भी चिंताजनक रूप से बनी हुई है। वर्ष 2021 में 22.3% (148.1 मिलियन) बच्चे अविकसित थे, 6.8% (45 मिलियन) कमज़ोर थे तथा 5.6% (37 मिलियन) अधिक वज़न वाले थे।
- शहरीकरण का आहार पर प्रभाव: जैसे-जैसे शहरीकरण में तेज़ी आती है, प्रसंस्कृत तथा सुविधाजनक खाद्य पदार्थों की खपत में उल्लेखनीय वृद्धि के साथ ही नगरीय, उप-नगरीय एवं ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक वज़न और मोटापे वाली जनसंख्या की दर में वृद्धि होती है।
- वैश्विक बाज़ारों पर ग्रामीण निर्भरता: विशेष रूप से अफ्रीका एवं एशिया में आत्मनिर्भर ग्रामीण क्षेत्र, अब तेज़ी से राष्ट्रीय और वैश्विक खाद्य बाज़ारों पर निर्भर होते जा रहे हैं।
- क्षेत्रीय रुझान: SOFI रिपोर्ट विभिन्न क्षेत्रों में स्वस्थ आहार की लागत और सामर्थ्य में बदलाव पर भी नज़र रखती है।
- वर्ष 2019 और 2021 के बीच एशिया में स्वस्थ आहार बनाए रखने की लागत में सबसे अधिक वृद्धि देखी गई, जो लगभग 9% बढ़ गई।
- पौष्टिक आहार लेने में असमर्थ लोगों की संख्या में वृद्धि एशिया और अफ्रीका में सबसे अधिक थी, दक्षिण एशिया तथा पूर्वी एवं पश्चिमी अफ्रीका को सबसे बड़ी चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
- दक्षिण एशिया का संघर्ष: 1.4 अरब लोगों के साथ दक्षिण एशिया में स्वस्थ आहार का खर्च उठाने में असमर्थ व्यक्तियों की संख्या सबसे अधिक (72%) दर्ज की गई।
- अफ्रीका की चुनौती: अफ्रीका में पूर्वी एवं पश्चिमी अफ्रीका विशेष रूप से प्रभावित हुए, जहाँ 85% आबादी स्वस्थ आहार लेने में असमर्थ थी। इन दो महाद्वीपों (एशिया और अफ्रीका) ने वैश्विक स्तर पर इस आँकड़े में वृद्धि में 92% योगदान दिया, जो अफ्रीकी महाद्वीप को लेकर मुद्दे की गंभीरता को रेखांकित करता है।
- भविष्य का दृष्टिकोण: यह अनुमान लगाया गया है कि वर्ष 2050 तक वैश्विक आबादी का 70% शहरों में निवास करेगा। इस महत्त्वपूर्ण जनसांख्यिकीय बदलाव हेतु इस नई शहरी आबादी को भुखमरी, खाद्य असुरक्षा एवं कुपोषण को पूर्ण रूप से खत्म करने के लिये खाद्य प्रणालियों की पुनर्रचना की आवश्यकता होगी।
भारत के संदर्भ में रिपोर्ट से संबंधित मुख्य बिंदु:
- भारत में स्वस्थ आहार की लागत: SOFI रिपोर्ट के अनुसार, BRICS देशों और उनके पड़ोसियों के मध्य स्वस्थ आहार की लागत भारत में सबसे कम है। वर्ष 2021 में भारत में स्वस्थ आहार की लागत प्रति व्यक्ति प्रतिदिन लगभग 3.066 डॉलर क्रय शक्ति समता (PPP) है, जो वास्तव में इसे वहन योग्य बनाती है।
- यदि आहार की लागत देश की औसत आय का 52% से अधिक हो तो इसे अप्राप्य माना जाता है। अन्य देशों की तुलना में भारत की औसत आय कम है।
- इससे आबादी के एक बड़े हिस्से के लिये अनुशंसित आहार का खर्च उठाना मुश्किल हो जाता है।
- मुंबई केस स्टडी: यह रिपोर्ट मुंबई के मामले में एक विशिष्ट केस स्टडी पर भी प्रकाश डालती है, जहाँ मात्र पाँच वर्षों में भोजन की लागत 65% तक बढ़ गई है। इसके विपरीत इसी अवधि के दौरान वेतन और मज़दूरी में केवल 28%-37% की वृद्धि हुई है।
- निरंतर डेटा उपलब्धता हेतु चयनित मुंबई, भारत में शहरी आबादी के समक्ष आने वाली चुनौतियों का एक ज्वलंत उदाहरण है।
- वैश्विक तुलना/मिलान: इस रिपोर्ट में भारत की अन्य देशों से तुलना करने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि भारत में स्वस्थ आहार की लागत अपेक्षाकृत कम है लेकिन आय असमानताओं के कारण यह आबादी के एक बड़े हिस्से के लिये अप्राप्य है।
- वर्ष 2021 में 74% भारतीय स्वस्थ आहार का खर्च वहन करने में असमर्थ थे, जिससे भारत को अन्य देशों की तुलना में विश्व में चौथे स्थान पर रखा गया।
भारत के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने का महत्त्व:
- जनसंख्या की पोषण संबंधी आवश्यकताओं को पूरा करना:
- भारत में एक बड़ी आबादी कुपोषित अथवा अल्पपोषित है, जो उनके शारीरिक और मानसिक विकास को प्रभावित करती है।
- वैश्विक खाद्य सुरक्षा सूचकांक 2022 के अनुसार, भारत में अल्पपोषण की व्यापकता 16.3% है। इसके अलावा भारत में 30.9% बच्चे अविकसित हैं, 33.4% न्यून-भार वाले हैं तथा 3.8% मोटापे से ग्रस्त हैं।
- भारत में एक बड़ी आबादी कुपोषित अथवा अल्पपोषित है, जो उनके शारीरिक और मानसिक विकास को प्रभावित करती है।
- आर्थिक विकास को समर्थन:
- कृषि एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है जो भारत की अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय योगदान देता है। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सरकार किसानों का समर्थन कर सकती है और उनकी आय को बढ़ा सकती है, जिससे आर्थिक विकास को गति देने में मदद मिल सकती है।
- भारत की 70% से अधिक आबादी कृषि संबंधी गतिविधियों में संलग्न है, यह भारत की अर्थव्यवस्था की रीढ़ का निर्माण करती है।
- कृषि एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र है जो भारत की अर्थव्यवस्था में उल्लेखनीय योगदान देता है। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सरकार किसानों का समर्थन कर सकती है और उनकी आय को बढ़ा सकती है, जिससे आर्थिक विकास को गति देने में मदद मिल सकती है।
- निर्धनता कम करना:
- खाद्य सुरक्षा निर्धनता के स्तर को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। किफायती/वहनीय और पौष्टिक खाद्य तक पहुँच प्रदान करने से लोग अपने खर्चों का बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं, स्वास्थ्य देखभाल लागत को कम कर सकते हैं और अपने जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार ला सकते हैं।
- वैश्विक बहुआयामी गरीबी सूचकांक (Multidimensional Poverty Index- MPI) 2022 के अनुसार, भारत में गरीबों की सबसे बड़ी आबादी मौजूद है (22.8 करोड़), जिसके बाद दूसरा स्थान नाइजीरिया का है (9.6 करोड़)।
- खाद्य सुरक्षा निर्धनता के स्तर को कम करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। किफायती/वहनीय और पौष्टिक खाद्य तक पहुँच प्रदान करने से लोग अपने खर्चों का बेहतर प्रबंधन कर सकते हैं, स्वास्थ्य देखभाल लागत को कम कर सकते हैं और अपने जीवन की समग्र गुणवत्ता में सुधार ला सकते हैं।
- राष्ट्रीय सुरक्षा सुनिश्चित करना:
- भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खाद्य सुरक्षा भी आवश्यक है। स्थिर खाद्य आपूर्ति सामाजिक अशांति और राजनीतिक अस्थिरता पर अंकुश लगा सकती है, जिनसे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये खतरा उत्पन्न होता है।
- जलवायु परिवर्तन का मुकाबला:
- जलवायु परिवर्तन भारत की खाद्य सुरक्षा के लिये एक बड़ा खतरा है। सतत्/संवहनीय कृषि अभ्यासों को अपनाकर और जलवायु-प्रत्यास्थी फसलों में निवेश कर, भारत बदलती जलवायु के प्रति बेहतर अनुकूलन स्थिति प्राप्त कर सकता है तथा अपनी आबादी के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है।
- अंतर्राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा आकलन (International Food Security Assessment, 2022-2032) इंगित करता है कि भारत की विशाल आबादी का खाद्य असुरक्षा प्रवृत्तियों पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ता है। अनुमान है कि वर्ष 2022-23 के दौरान भारत में लगभग 333.5 मिलियन लोग प्रभावित होंगे।
- जलवायु परिवर्तन भारत की खाद्य सुरक्षा के लिये एक बड़ा खतरा है। सतत्/संवहनीय कृषि अभ्यासों को अपनाकर और जलवायु-प्रत्यास्थी फसलों में निवेश कर, भारत बदलती जलवायु के प्रति बेहतर अनुकूलन स्थिति प्राप्त कर सकता है तथा अपनी आबादी के लिये खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित कर सकता है।
संबंधित पहलें:
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (National Food Security Act- NFSA) 2013
- राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (National Food Security Mission)
- राष्ट्रीय कृषि बाज़ार (e-NAM) प्लेटफॉर्म
- राष्ट्रीय खाद्य प्रसंस्करण मिशन (National Food Processing Mission)
- अन्य नीतियाँ:
भारत में खाद्य सुरक्षा की चुनौतियाँ:
- अपर्याप्त बुनियादी ढाँचा:
- अपर्याप्त बुनियादी ढाँचे के कारण किसानों के लिये अपनी उपज को बाज़ार तक ले जाना और उसका उचित भंडारण करना मुश्किल हो जाता है। इससे अधिक क्षति होती है और किसानों को कम लाभ होता है।
- खराब कृषि पद्धतियाँ:
- कृषि भूमि तथा कीटनाशकों के अत्यधिक उपयोग एवं अनुचित सिंचाई तकनीकों जैसी खराब कृषि पद्धतियों के कारण मृदा की उर्वरता और फसल की पैदावार में कमी आई है।
- जटिल मौसम की स्थिति:
- अकुशल आपूर्ति शृंखला नेटवर्क:
- अपर्याप्त परिवहन, भंडारण और वितरण सुविधाओं सहित अकुशल आपूर्ति शृंखला नेटवर्क भी भारत में खाद्य असुरक्षा में योगदान करते हैं। इससे उपभोक्ताओं के लिये खाद्यान्न की कीमतें बढ़ जाती हैं और किसानों को कम लाभ प्राप्त होता है।
- खंडित भूमि जोत:
- खंडित भूमि जोत, जहाँ किसानों के पास ज़मीन के छोटे और बिखरे हुए भूखंड हैं, आधुनिक कृषि पद्धतियों एवं प्रौद्योगिकियों को अपनाना मुश्किल बनाते हैं। यह खाद्य उत्पादन और उपलब्धता को प्रभावित करता है।
आगे की राह
- कृषि उत्पादन प्रणालियों और अनुसंधान में निवेश:
- सरकार को कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिये आधुनिक कृषि अनुसंधान में निवेश करना चाहिये।
- भंडारण सुविधाओं और परिवहन नेटवर्क में सुधार:
- सरकार को फसल के बाद होने वाले नुकसान को रोकने के लिये पर्याप्त भंडारण सुविधाएँ विकसित करनी चाहिये और आपूर्ति-मांग संतुलन सुनिश्चित करने के लिये देश भर में खाद्य उत्पादों को वितरित करने हेतु मज़बूत परिवहन नेटवर्क विकसित करना चाहिये।
- सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देना:
- सरकार को कृषि उत्पादकता और खाद्यान्न उपलब्धता में सुधार के लिये सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्रों के बीच साझेदारी को बढ़ावा देना चाहिये।
- सतत् कृषि पद्धतियों को प्रोत्साहित करना:
- सरकार को सतत् कृषि प्रथाओं को बढ़ावा देना चाहिये जो मृदा की गुणवत्ता को संरक्षित करती हैं और हानिकारक कीटनाशकों एवं उर्वरकों के उपयोग की आवश्यकता को कम करती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. विवाद निपटान के लिये संदर्भ बिंदु के रूप में अंतर्राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मानकों के उपयोग के संबंध में WTO निम्नलिखित में से किसके साथ सहयोग करता है? (2010) (a) कोडेक्स एलिमेंटेरियस आयोग उत्तर: (a)
प्रश्न. FAO पारंपरिक कृषि प्रणालियों को 'सार्वभौमिक रूप से महत्त्वपूर्ण कृषि विरासत प्रणाली (Globally Important Agricultural Heritage Systems- GIAHS)' की हैसियत प्रदान करता है। इस पहल का संपूर्ण लक्ष्य क्या है? (2016) 1- अभिनिर्धारित GIAHS के स्थानीय समुदायों को आधुनिक प्रौद्योगिकी, आधुनिक कृषि प्रणाली का प्रशिक्षण एवं वित्तीय सहायता प्रदान करना जिससे उनकी कृषि उत्पादकता अत्यधिक बढ़ जाए। नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 3 मेन्स:प्रश्न.आप इस मत से कहाँ तक सहमत हैं कि भूख के मुख्य कारण के रूप में खाद्य की उपलब्धता में कमी पर फोकस, भारत में अप्रभावी मानव विकास नीतियों से ध्यान हटा देता है? (2018) |
प्रधानमंत्री जन धन योजना के नौ वर्ष
प्रिलिम्स के लिये:प्रधानमंत्री जन धन योजना, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT), प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY), प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY), अटल पेंशन योजना (APY), राष्ट्रीय वित्तीय शिक्षा केंद्र (NCFE), यूनाइटेड पेमेंट इंटरफेस, माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी (MUDRA), लघु वित्त बैंक (SFB) मेन्स के लिये:PMJDY की विशेषताएँ और महत्त्व |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों?
प्रधानमंत्री जन धन योजना (PMJDY) ने सफलतापूर्वक कार्यान्वयन के नौ वर्ष पूरे कर लिये हैं।
- इसे 28 अगस्त, 2014 को लॉन्च किया गया था और यह कमज़ोर एवं आर्थिक रूप से वंचित वर्गों को सस्ती वित्तीय सेवाएँ प्रदान करने के लिये वित्त मंत्रालय के नेतृत्व में विश्व स्तर पर सबसे बड़ी वित्तीय समावेशन पहलों में से एक है।
प्रधानमंत्री जन धन योजना:
- परिचय:
- PMJDY प्रत्येक परिवार के लिये कम-से-कम एक बुनियादी बैंकिंग खाता, वित्तीय साक्षरता और ऋण, बीमा तथा पेंशन सुविधाओं तक पहुँच के साथ बैंकिंग सुविधाओं तक सार्वभौमिक पहुँच के लिये एक मंच प्रदान करता है।
- PMJDY की विशेषताएँ:
- इसका उद्देश्य शाखाओं और बैंकिंग संवाददाताओं (BC) के माध्यम से बैंकिंग सेवाओं का विस्तार करना है।
- इसमें शहरी और ग्रामीण दोनों क्षेत्र शामिल किये गए हैं तथा खाता खोलने वालों को स्वदेशी डेबिट कार्ड (RuPay कार्ड) प्रदान किया जाता है।
- PMJDY खातों में कोई न्यूनतम शेष राशि बनाए रखने की कोई आवश्यकता नहीं है।
- PMJDY, खाताधारकों को जारी किये गए RuPay कार्ड के साथ 1 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा कवर (28.8.2018 के बाद खोले गए नए PMJDY खातों के लिये 2 लाख रुपए तक बढ़ाया गया) उपलब्ध है।
- यह प्रत्येक पात्र वयस्क को 10,000 रुपएकी ओवरड्राफ्ट सुविधा प्रदान करता है।
- PMJDY खाताधारक, प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (DBT), प्रधानमंत्री जीवन ज्योति बीमा योजना (PMJJBY), प्रधानमंत्री सुरक्षा बीमा योजना (PMSBY) एवं अटल पेंशन योजना (APY) के लिये योग्य हैं।
- इसका उद्देश्य शाखाओं और बैंकिंग संवाददाताओं (BC) के माध्यम से बैंकिंग सेवाओं का विस्तार करना है।
नोट: ओवरड्राफ्ट व्यक्तियों को अपर्याप्त शेष होने पर भी अपने बैंक खाते से पैसे निकालने की सुविधा प्रदान करता है। ओवरड्राफ्ट का उपयोग मुख्य रूप से तत्काल, अल्पकालिक व्ययों को कवर करने के लिये किया जाता है।
- महत्त्व:
- समतामूलक विकास को बढ़ावा देना: PMJDY वित्तीय समावेशन (FI) को बढ़ावा देता है, जिससे कम आय वाले और आबादी के वंचित वर्गों को किफायती वित्तीय सेवाओं के प्रावधान के माध्यम से समावेशी विकास को बढ़ावा मिलता है।
- जन धन-आधार-मोबाइल (JAM) आर्किटेक्चर ने आम नागरिकों के खातों में सरकारी लाभों के निर्बाध अंतरण को सक्षम किया है।
- बचत को औपचारिक प्रणालियों में शामिल करना: PMJDY ने गरीबों की बचत को औपचारिक वित्तीय प्रणाली में समावेशित किया है जिससे उन्हें सूदखोर साहूकारों से छुटकारा मिला है।
- महिलाओं का सशक्तीकरण: लगभग 55.5% जन धन खाते महिलाओं के हैं जो वित्तीय सशक्तीकरण को बढ़ावा देते हैं।
- ओवरड्राफ्ट की सुविधा प्रति परिवार केवल एक खाते के लिये उपलब्ध है, जो अधिमानतः घर की महिला के लिये है।
- समतामूलक विकास को बढ़ावा देना: PMJDY वित्तीय समावेशन (FI) को बढ़ावा देता है, जिससे कम आय वाले और आबादी के वंचित वर्गों को किफायती वित्तीय सेवाओं के प्रावधान के माध्यम से समावेशी विकास को बढ़ावा मिलता है।
- उपलब्धियाँ:
- जन धन खातों के माध्यम से 50 करोड़ से अधिक लोगों को औपचारिक बैंकिंग प्रणाली में शामिल किया गया है।
- इनमें से लगभग 67% खाते ग्रामीण और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में खोले गए हैं।
- इन खातों के लिये लगभग 34 करोड़ RuPay कार्ड जारी किये गए हैं, जो 2 लाख रुपए का दुर्घटना बीमा कवर प्रदान करते हैं।
- गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स ने PMJDY की सफलता को स्वीकार करते हुए प्रमाणित किया है कि "वित्तीय समावेशन अभियान के हिस्से के रूप में एक सप्ताह में 18,096,130 बैंक खाते खोले गए हैं और यह सफलता भारत सरकार के वित्तीय सेवा विभाग द्वारा हासिल की गई।"
- जन धन खातों के माध्यम से 50 करोड़ से अधिक लोगों को औपचारिक बैंकिंग प्रणाली में शामिल किया गया है।
भारत में वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने हेतु अन्य सरकारी पहल:
- नेशनल सेंटर फॉर फाइनेंशियल एजुकेशन (NCFE)
- यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस
- माइक्रो यूनिट्स डेवलपमेंट एंड रिफाइनेंस एजेंसी (मुद्रा)
- लघु वित्त बैंक (SFB) और भुगतान बैंक
- जन धन दर्शक एप
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. 'प्रधानमंत्री जन धन योजना' निम्नलिखित में से किसके लिये प्रारंभ की गई है? (2015) (a) गरीब लोगों को अपेक्षाकृत कम ब्याज-दर पर आवास-ऋण प्रदान करने के लिये। उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. प्रधानमंत्री जन धन योजना (पी.एम.जे.डी.वाई.) बैंकरहितों को संस्थागत वित्त में लाने के लिये आवश्यक है। क्या आप सहमत हैं कि इससे भारतीय समाज के गरीब तबके का वित्तीय समावेश होगा? अपने मत की पुष्टि के लिये तर्क प्रस्तुत कीजिये। (2016) |
चावल के लिये न्यूनतम निर्यात मूल्य
प्रिलिम्स के लिये:चावल के लिये न्यूनतम निर्यात मूल्य, कृषि, निर्यात, खाद्य मुद्रास्फीति मेन्स के लिये:चावल के लिये न्यूनतम निर्यात मूल्य |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय के अनुसार, भारत में वर्ष 2022 में चावल और गेहूँ दोनों का उत्पादन अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया है, फिर भी कृषि क्षेत्र में निर्यात प्रतिबंधों तथा व्यापार नियंत्रण के रूप में सप्लाई साइड एक्शन (सरकार द्वारा वस्तुओं एवं सेवाओं की उपलब्धता या सामर्थ्य बढ़ाने के लिये किये गए उपाय) में वृद्धि का अनुभव किया गया है।
- सरकार ने घरेलू कीमतों पर अंकुश लगाने के उद्देश्य से बासमती चावल शिपमेंट पर 1,200 अमेरिकी डॉलर प्रति टन का न्यूनतम निर्यात मूल्य (Minimum Export Price- MEP) निर्धारित किया है।
चावल-गेहूँ के निर्यात पर अंकुश लगाने को सरकार द्वारा किये गए हालिया उपाय:
- मई 2022 में सरकार ने गेहूँ के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया।
- टूटे हुए चावल के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया तथा सितंबर 2022 में सभी सफेद (गैर-उबला हुआ) गैर-बासमती चावल के शिपमेंट पर 20% शुल्क लगाया।
- जुलाई 2023 में सरकार ने सफेद गैर-बासमती चावल के निर्यात पर प्रतिबंध लगा दिया, केवल उबले हुए गैर-बासमती तथा बासमती चावल के निर्यात की अनुमति दी।
- अगस्त 2023 में सभी उबले हुए गैर-बासमती चावल के निर्यात पर "तत्काल प्रभाव से" 20% शुल्क लगाया गया था। इस प्रकार के चावल के निर्यात पर अंकुश लगाने के लिये यह शुल्क लागू किया गया था।
- अगस्त 2023 में सरकार ने कृषि और प्रसंस्कृत खाद्य उत्पाद निर्यात विकास प्राधिकरण (Agricultural & Processed Food Products Exports Development Authority- APEDA) को 1200 अमेरिकी डॉलर प्रति टन तथा उससे अधिक मूल्य के बासमती चावल निर्यात के लिये अनुबंधों को पंजीकरण-सह-आवंटन प्रमाण पत्र (आरसीएसी) जारी करने का निर्देश दिया।
- यह MEP बासमती चावल के नाम पर सफेद गैर-बासमती चावल के संभावित अवैध निर्यात को रोकने के लिये लगाया गया था।
चावल और गेहूँ का उत्पादन:
- चावल उत्पादन:
- चावल का उत्पादन वर्ष 2020-21 के 124.37 मिलियन टन (mt) से बढ़कर वर्ष 2021-22 में 129.47 mt हो गया, जो वर्ष 2022-23 में 135.54 mt तक पहुँच गया।
- हालाँकि सरकार ने विपरीत प्रभाव के कारण चावल पर निर्यात प्रतिबंध लगा दिया।
- इन उपायों में टूटे हुए चावल के निर्यात पर प्रतिबंध तथा सफेद गैर-बासमती शिपमेंट पर 20% शुल्क लगाना शामिल है।
- विविध/वृहत्त गेहूँ उत्पादन:
- गेहूँ का उत्पादन शुरू में 109.59 मिलियन टन से गिरकर 107.74 मिलियन टन हो गया जो वर्ष 2022-23 में बढ़कर 112.74 मिलियन टन हो गया।
- सरकार ने गेहूँ के निर्यात पर भी प्रतिबंध लगा दिया, जो घरेलू मांग को प्रबंधित करने के उसके इरादे को दर्शाता है।
निर्यात प्रतिबंधों को प्रभावित करने वाले कारक:
- रिकॉर्ड उत्पादन के बावजूद खुदरा खाद्य मुद्रास्फीति तथा खुले बाज़ार की कीमतें बढ़ी हैं।
- खुदरा चावल और गेहूँ की कीमतों में अत्यधिक वृद्धि हुई, जिससे सरकार को घरेलू कीमतों को स्थिर करने के लिये हस्तक्षेप करना पड़ा।
- सरकार के उपायों का उद्देश्य घरेलू अनाज की उपलब्धता बढ़ाने और बढ़ती खाद्य मुद्रास्फीति को कम करने के लिये निर्यात को कम करना अथवा रोकना है।
- बढ़ती मांग, थाईलैंड जैसे प्रमुख उत्पादकों के उत्पादन में व्यवधान और El Nino के संभावित प्रतिकूल प्रभावों की आशंकाओं के कारण अगस्त 2023 में एशियाई चावल की कीमतें लगभग 15 साल के उच्चतम स्तर पर पहुँच गईं।
निर्यात नियंत्रण की चुनौतियाँ एवं प्रभाव:
- चावल पर लगाए गए चयनात्मक नियंत्रण जैसे कि गलत वर्गीकरण के माध्यम से चोरी होने की संभावना है।
- उदाहरण हेतु सफेद गैर-बासमती चावल का निर्यात उबले हुए चावल और बासमती चावल के कोड के तहत किया जाता था।
- निर्यात प्रतिबंधों के बावजूद खुले बाज़ार में कीमतें ऊँची रहीं, जिससे पता चलता है कि इन उपायों से कीमतों में कोई अपेक्षित गिरावट नहीं आई।
निर्यात को सुव्यवस्थित और कीमतों को स्थिर करने हेतु उठाए जाने वाले कदम:
- विशेषज्ञ सभी प्रकार के चावल के लिये एक समान MEP लागू करने का सुझाव देते हैं, चाहे वह बासमती हो, आंशिक रूप से उबला हुआ (Parboiled) हो, अथवा गैर-बासमती हो। यह दृष्टिकोण निर्यात को सुव्यवस्थित करने तथा कीमतों को स्थिर करने में मदद कर सकता है।
- MEP कुछ निर्यात योग्य वस्तुओं अथवा उत्पादों पर सरकार द्वारा निर्धारित मूल्य सीमा या न्यूनतम मूल्य है। यह वह न्यूनतम कीमत है जिस पर इन वस्तुओं को देश से निर्यात किया जा सकता है।
- 800 अमेरिकी डॉलर प्रति टन जैसे उचित स्तर पर निर्धारित एक समान MEP, विभिन्न अधिमूल्य चावल किस्मों के निर्यात को प्रोत्साहित कर सकती है, जिससे उत्पादकों और घरेलू खाद्य सुरक्षा को बनाए रखने के सरकार के लक्ष्य दोनों को लाभ होगा।
चावल और गेहूँ संबंधी प्रमुख बिंदु:
- चावल:
- चावल भारत की अधिकांश आबादी का मुख्य भोजन है।
- यह एक खरीफ फसल है जिसके लिये उच्च तापमान (25°C से ऊपर) और उच्च आर्द्रता के साथ 100 cm से अधिक वार्षिक वर्षा की आवश्यकता होती है।
- कम वर्षा वाले क्षेत्रों में इसे सिंचाई की सहायता से उगाया जाता है।
- दक्षिणी राज्यों और पश्चिम बंगाल में जलवायु परिस्थितियों के कारण एक कृषि वर्ष में चावल की दो या तीन फसलें उगाई जाती हैं।
- पश्चिम बंगाल में किसान चावल की तीन फसलें उगाते हैं जिन्हें 'औस', 'अमन' और 'बोरो' कहा जाता है।
- भारत में कुल फसली क्षेत्र का लगभग एक-चौथाई क्षेत्र चावल की खेती में इस्तेमाल होता है।
- अग्रणी उत्पादक राज्य: पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और पंजाब।
- उच्च उपज वाले राज्य: पंजाब, तमिलनाडु, हरियाणा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, पश्चिम बंगाल और केरल।
- चीन के बाद भारत चावल का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
- गेहूँ:
- चावल के बाद यह भारत में दूसरी सबसे प्रमुख अनाज की फसल है।
- यह देश के उत्तर और उत्तर-पश्चिमी भाग में मुख्य खाद्य फसल है। गेहूँ एक रबी फसल है जिसे पकने के समय ठंडे मौसम तथा तेज़ धूप की आवश्यकता होती है।
- हरित क्रांति की सफलता ने रबी फसलों, विशेषकर गेहूँ की वृद्धि में योगदान दिया।
- मैक्रो मैनेजमेंट मोड ऑफ एग्रीकल्चर, राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन और राष्ट्रीय कृषि विकास योजना गेहूँ की खेती को समर्थन देने वाली कुछ सरकारी पहल हैं।
- तापमान: तेज़ धूप के साथ 10-15°C (बुवाई के समय) और 21-26°C (पकने और कटाई के समय) के बीच होना चाहिये। वर्षा: लगभग 75-100 cm होनी चाहिये।
- मृदा के प्रकार: अच्छी तरह से सूखी उपजाऊ दोमट और चिकनी दोमट (दक्कन के गंगा-सतलुज मैदान और काली मृदा क्षेत्र) मृदा।
- मुख्य गेहूँ उत्पादक राज्य: उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, बिहार, गुजरात।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-सा देश पिछले पाँच वर्षों के दौरान विश्व में चावल का सबसे बड़ा निर्यातक रहा है? (2019) (a) चीन उत्तर: (b) |
पैतृक संपत्ति को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला
प्रिलिम्स के लिये:पैतृक संपत्ति को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला, मिताक्षरा कानून, शून्य विवाह, हिंदू विवाह अधिनियम, 1955, हिंदू अविभाजित परिवार, दायभाग कानून मेन्स के लिये:पैतृक संपत्ति को लेकर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया है कि शून्य अथवा अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चे मिताक्षरा कानून के तहत संयुक्त हिंदू परिवार की संपत्ति में अपने माता-पिता का हिस्सा प्राप्त कर सकते हैं।
- हालाँकि इसमें इस बात पर ज़ोर दिया गया कि ये बच्चे परिवार में किसी अन्य व्यक्ति की संपत्ति में अथवा उसके अधिकार के हकदार नहीं होंगे।
नोट:
- शून्य विवाह: यह ऐसा विवाह है जो शुरू में वैध होता है लेकिन यदि कोई पक्ष इसे रद्द करना चाहे तो इसमें व्याप्त कुछ दोष अथवा शर्तों के तहत इसे रद्द कर सकता/सकती है।
- अमान्य विवाह: यह वह विवाह है जिसे शुरू से ही अमान्य माना जाता है जैसे कि यह कानून की नज़र में कभी अस्तित्व में ही नहीं था।
पृष्ठभूमि:
- रेवनासिद्दप्पा बनाम मल्लिकार्जुन, 2011 वाद में यह फैसला दो-न्यायाधीशों की पीठ के फैसले के संदर्भ में दिया गया था, जिसमें कहा गया था कि अमान्य/शून्य विवाह से पैदा हुए बच्चे अपने माता-पिता की संपत्ति को प्राप्त करने के हकदार हैं, चाहे वह संपत्ति स्व-अर्जित हो अथवा पैतृक।
- यह मामला हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 16(3) में संशोधित प्रावधान से संबंधित था।
- इस फैसले ने ऐसे बच्चों के विरासत/पैतृक संपत्ति संबंधी अधिकारों को मान्यता देने की नींव रखी।
सर्वोच्च न्यायालय का फैसला:
- विरासत हिस्सेदारी का निर्धारण:
- शून्य अथवा अमान्य विवाह से किसी बच्चे के लिये विरासत में हिस्सा प्रदान करने की दिशा में पहला कदम पैतृक संपत्ति में उनके माता-पिता की सटीक हिस्सेदारी का पता लगाना है।
- इस निर्धारण में पैतृक संपत्ति का "काल्पनिक विभाजन (Notional Partition)" करना शामिल है ताकि उस हिस्से की गणना की जा सके जो माता-पिता को उनकी मृत्यु से ठीक पहले प्राप्त हुआ होगा।
- विरासत का कानूनी आधार:
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 16 शून्य या अमान्य विवाह से पैदा हुए बच्चों को वैधता प्रदान करने में अहम भूमिका निभाती है, यह ऐसे बच्चों की अपने माता-पिता की संपत्ति पर अधिकार निर्धारित करती है।
- समान विरासत अधिकार:
- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 जो पैतृक संपत्ति को विनियमित करता है, के तहत शून्य या अमान्य विवाह से हुए बच्चों को "वैध परिजन" माना जाता है।
- जब पारिवारिक संपत्ति विरासत में मिलने की बात आती है तो उन्हें नाजायज़ नहीं माना जा सकता।
- हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 का प्रभाव:
- न्यायालय ने कहा कि वर्ष 2005 में हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम के लागू होने के बाद मिताक्षरा कानून द्वारा शासित संयुक्त हिंदू परिवार में एक मृत व्यक्ति का हिस्सा वसीयत अथवा बिना वसीयत के उत्तराधिकार द्वारा प्राप्त किया जा सकता है।
- इस संशोधन ने उत्तरजीविता से परे विरासत के दायरे का विस्तार किया और महिलाओं तथा पुरुषों को समान उत्तराधिकार अधिकार प्रदान किया।
नोट: जून 2022 में कट्टुकंडी एडाथिल कृष्णन तथा अन्य बनाम कट्टुकंडी एडाथिल वाल्सन और अन्य में सर्वोच्च न्यायालय ने फैसला सुनाया कि लिव-इन रिलेशनशिप में पार्टनर से पैदा हुए बच्चों को वैध माना जा सकता है। यह एक तरह से सशर्त है कि संबंध दीर्घकालिक होना चाहिये, न कि 'आकस्मिक' प्रकृति का।
बेटी की विरासत के संबंध में सर्वोच्च न्यायालय के फैसले:
- अरुणाचल गौंडर बनाम पोन्नुसामी, 2022:
- सर्वोच्च न्यायालय ने माना कि बिना वसीयत के मरने वाले हिंदू पुरुष की स्व-अर्जित संपत्ति, विरासत द्वारा हस्तांतरित होगी, न कि उत्तराधिकार द्वारा।
- इसके अलावा न्यायालय ने कहा कि ऐसी संपत्ति बेटी को विरासत में मिलेगी, जो कि बँटवारे के माध्यम से प्राप्त सहदायिक संपत्ति के अलावा होगी।
- विनीता शर्मा बनाम राकेश शर्मा, 2020
- सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि एक महिला/बेटी को भी बेटे के समान संयुक्त कानूनी उत्तराधिकारी माना जाएगा और वह पैतृक संपत्ति को पुरुष उत्तराधिकारी के समान ही प्राप्त कर सकती है, भले ही हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम, 2005 के प्रभाव में आने से पहले पिता जीवित नहीं था।
मिताक्षरा कानून:
- परिचय:
- मिताक्षरा कानून एक कानूनी और पारंपरिक हिंदू कानून प्रणाली है जो मुख्य रूप से हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) के सदस्यों के बीच विरासत और संपत्ति के अधिकारों के नियमों को नियंत्रित करती है।
- यह हिंदू कानून के दो प्रमुख स्कूलों में से एक है, दूसरा दायभाग स्कूल है।
- उत्तराधिकार का मिताक्षरा कानून पश्चिम बंगाल और असम को छोड़कर पूरे देश में लागू होता है।
- मिताक्षरा कानून एक कानूनी और पारंपरिक हिंदू कानून प्रणाली है जो मुख्य रूप से हिंदू अविभाजित परिवार (HUF) के सदस्यों के बीच विरासत और संपत्ति के अधिकारों के नियमों को नियंत्रित करती है।
हिंदू विधियों के प्रकार |
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मिताक्षरा कानून |
दायभाग कानून |
मिताक्षरा शब्द याज्ञवल्क्य स्मृति पर विज्ञानेश्वर द्वारा लिखी गई एक टिप्पणी के नाम से लिया गया है। |
एक पत्नी बंँटवारे की मांग नहीं कर सकती है लेकिन उसे अपने पति और बेटों के बीच किसी भी बंँटवारे में हिस्सेदारी का अधिकार है। |
इसका अनुसरण भारत के सभी भागों में किया जाता है तथा बनारस, मिथिला, महाराष्ट्र और द्रविड़ स्कूलों में विभाजित है । |
इसका अनुसरण बंगाल और असम में किया जाता है। |
एक सहदायिक का हिस्सा परिभाषित नहीं है और इसका निपटान नहीं किया जा सकता है। |
एक पुत्र के पास जन्म से स्वत: स्वामित्व का कोई अधिकार नहीं होता है, लेकिन वह इसे अपने पिता की मृत्यु पर प्राप्त करता है। |
सभी सदस्य पिता के जीवनकाल के दौरान सहदायिकी अधिकार प्राप्त करते हैं । |
पिता के जीवित रहने पर पुत्रों को सहदायिकी अधिकार प्राप्त नहीं होते हैं। |
एक सहदायिक का हिस्सा परिभाषित नहीं है और इसका निपटान नहीं किया जा सकता है। |
प्रत्येक सहदायिक का हिस्सा परिभाषित किया गया है और उसका निपटान किया जा सकता है। |
एक पत्नी बंँटवारे की मांग नहीं कर सकती है लेकिन उसे अपने पति और बेटों के बीच किसी भी बंँटवारे में हिस्सेदारी का अधिकार है। |
यहाँ महिलाओं के लिये समान अधिकार मौजूद नहीं है क्योंकि बेटे विभाजन की मांग नहीं कर सकते क्योंकि पिता पूर्ण मालिक है। |
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. प्राचीन भारत के इतिहास के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2021)
नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये- (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (b) व्याख्या: विज्ञानेश्वर द्वारा याज्ञवल्क्य स्मृति पर लिखी गई टीका मिताक्षरा पूरे देश में (बंगाल, असम तथा उड़ीसा एवं बिहार के कुछ भागों को छोड़कर जहाँ दायभाग व्यवस्था लागू थी) संपत्ति के अधिकार के लिये कानून की सर्वमान्य पुस्तक थी। मिताक्षरा और दायभाग जाति भेद नहीं करती थी, यानी ऊँची या नीची जाति के लिये नहीं लिखी गई थी। अत: कथन 1 सही नहीं है। मिताक्षरा व्यवस्था में पिता के जीवित रहते पुत्र, पिता की संपत्ति में अधिकार का दावा कर सकता था जबकि दायभाग पिता की मृत्यु के पश्चात् ऐसे किसी दावे पर विचार करती थी। अत: कथन 2 सही है। मिताक्षरा और दायभाग स्त्री-पुरुष दोनों के संपत्ति संबंधी मामलों पर विचार व्यक्त करते हैं। अत: कथन 3 सही नहीं है। अत: विकल्प (b) सही है। |