डेली न्यूज़ (04 Jan, 2024)



सावित्रीबाई फुले

Savitribai-Phule

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भारत का इस्पात क्षेत्र

प्रिलिम्स के लिये:

भारत का इस्पात क्षेत्र, मानसून, डीकार्बोनाइजेशन चुनौती, कार्बन टैक्स (कार्बन सीमा समायोजन तंत्र), राष्ट्रीय इस्पात नीति(NSP) 2017

मेन्स के लिये:

भारत का इस्पात क्षेत्र, सरकारी नीतियाँ और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप तथा उनके डिज़ाइन एवं कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे।

स्रोत: पी.आई.बी 

चर्चा में क्यों?

पिछले कुछ वर्षों में इस्पात क्षेत्र में ज़बरदस्त वृद्धि देखी गई है और भारत इस्पात उत्पादन में एक वैश्विक ताकत व चीन के बाद विश्व में इस्पात का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक बनकर उभरा है।

भारत में इस्पात क्षेत्र की स्थिति क्या है?

  • वर्तमान परिदृश्य:
    • वर्ष 2023 में भारत में इस्पात का कुल उत्पादन(कच्चा इस्पात) 125.32 मिलियन टन और संसाधित इस्पात (finished steel) का उत्पादन 121.29 मिलियन टन रहा है।
  • महत्त्व:
    • इस्पात विश्व में व्यापक रूप से उपयोग की जाने वाली सामग्रियों में से एक है। लोहा और इस्पात उद्योग अन्य उत्पादक उद्योगों का आधार (bottom line producer) हैं।
      • इस्पात उद्योग निर्माण, बुनियादी ढाँचे, ऑटोमोबाइल, इंजीनियरिंग और रक्षा जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में मुख्य भूमिका निभाता है।
    • इस्पात भारतीय अर्थव्यवस्था के लिये एक प्रमुख क्षेत्र है (वित्तीय वर्ष 21-22 में यह देश की जी.डी.पी. का 2% हिस्सा था)।
  • उत्पादक राज्य:
    • भारत के प्रमुख इस्पात उत्पादक राज्यों में ओडिशा अग्रणी है, इसके बाद झारखंड और छत्तीसगढ़ हैं। इसमें कर्नाटक, महाराष्ट्र, गुजरात और पश्चिम बंगाल भी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

इस्पात क्षेत्र के विकास के लिये सरकार की पहल क्या हैं?

  • PLI योजना में विशेष इस्पात (स्पेशलिटी स्टील) को शामिल करना:
    • सरकार ने निवेश आकर्षित करने वाले विशेष इस्पात के विनिर्माण और क्षेत्र में तकनीकी प्रगति को बढ़ावा देने के लिये 5 वर्ष की अवधि के लिये 6322 करोड़ रुपये के परिव्यय को मंज़ूरी दी।
  • हरित इस्पात (ग्रीन स्टील) निर्माण: 
    • इस्पात मंत्रालय ने इस्पात क्षेत्र के डीकार्बोनाइज़ेशन के विभिन्न स्तरों पर चर्चा, विचार-विमर्श और सिफारिश करने के लिये उद्योग, शिक्षा जगत, थिंक टैंक, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी निकायों, विभिन्न मंत्रालयों एवं अन्य हितधारकों की भागीदारी के साथ 13 टास्क फोर्स का गठन किया
    • नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (Ministry of New and Renewable Energy- MNRE) ने हरित हाइड्रोजन उत्पादन एवं प्रयोग के लिये एक राष्ट्रीय हरित मिशन (National Green Mission) की घोषणा की है। इस मिशन में इस्पात क्षेत्र को भी हितधारक बनाया गया है।
    • इस्पात क्षेत्र ने आधुनिकीकरण और विस्तार परियोजनाओं हेतु विश्व स्तर पर उपलब्ध सर्वोत्तम प्रौद्योगिकियों (Best Available Technologies- BAT) को अपनाया है।
  • PM गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान के साथ मंत्रालय की भागीदारी:
    • इस्पात मंत्रालय (Ministry of Steel) ने इस्पात उत्पादन सुविधाओं में अंतर्दृष्टि प्राप्त करने के लिये 2000 से अधिक इस्पात इकाइयों के जियो-लोकेशन को अपलोड करते हुए, PM गति शक्ति राष्ट्रीय मास्टर प्लान में BISAG-N की क्षमताओं को एकीकृत किया है।
    • यह जानकारी रेलवे लाइन विस्तार, अंतर्देशीय जलमार्ग, राजमार्ग, बंदरगाह और गैस पाइपलाइन कनेक्टिविटी की योजना बनाने में सहायता करेगी।
  • स्टील स्क्रैप पुनर्चक्रण नीति: 
    • स्टील स्क्रैप पुनर्चक्रण नीति (Steel Scrap Recycling Policy- SSRP) को वर्ष 2019 में अधिसूचित किया गया है जो जर्जर हो चुके वाहनों (End of Life Vehicles- ELV) सहित विभिन्न स्रोतों से उत्पन्न लौह स्क्रैप के वैज्ञानिक प्रसंस्करण और रीसाइक्लिंग के लिये देश में धातु स्क्रैपिंग केंद्रों की स्थापना को सुविधाजनक बनाने एवं बढ़ावा देने के लिये एक फ्रेमवर्क प्रदान करता है।
  • राष्ट्रीय इस्पात नीति, 2017:
    • भारत सरकार ने राष्ट्रीय इस्पात नीति, 2017 तैयार की, जो वर्ष 2030-31 तक मांग और आपूर्ति दोनों पक्षों पर भारतीय इस्पात उद्योग हेतु दीर्घकालिक विकास को प्रोत्साहित करने के लिये व्यापक रोडमैप प्रदान करती है।
      • गति-शक्ति मास्टर प्लान, विनिर्माण क्षेत्र के लिये 'मेक-इन-इंडिया' पहल और सरकार की अन्य प्रमुख योजनाओं के माध्यम से बुनियादी ढाँचे के विकास पर सरकार का ज़ोर देश में स्टील की मांग एवं खपत को बढ़ावा देगा।
  • इस्पात गुणवत्ता नियंत्रण आदेश:
    • इस्पात मंत्रालय ने इस्पात गुणवत्ता नियंत्रण आदेश पेश किया है, जिससे उद्योग, उपयोगकर्त्ताओं और जनता के लिये गुणवत्ता वाले इस्पात की बड़े पैमाने पर उपलब्धता सुनिश्चित करने के लिये उत्पादित एवं आयात दोनों प्रकार के इस्स्पात से निम्नस्तरीय/दोषपूर्ण इस्पात उत्पादों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है। आदेश के अनुसार, यह सुनिश्चित किया गया है कि उपयोगकर्त्ताओं को प्रासंगिक BIS मानकों के अनुरूप गुणवत्ता वाला स्टील/इस्पात ही उपलब्ध कराया जाए।
  • लौह एवं इस्पात क्षेत्र में सुरक्षा:
    • हितधारकों, शिक्षाविदों आदि के साथ व्यापक परामर्श के बाद, लौह और इस्पात क्षेत्र के लिये 25 सामान्य न्यूनतम सुरक्षा दिशानिर्देशों का एक सेट तैयार किया गया था।
    • ये सुरक्षा दिशा-निर्देश वैश्विक मानकों के अनुरूप हैं तथा लौह एवं इस्पात उद्योग में सुरक्षा पर ILO आचार कोड की अपेक्षाओं के अनुरूप हैं।
    • “सुरक्षा व स्वास्थ्य सिद्धांतों और परिभाषाओं” पर विश्व इस्पात संघ के मार्गदर्शन दस्तावेज़ से भी इनपुट प्राप्त किया गया है।
  • नेशनल मेटलर्जिस्ट अवॉर्ड:
    • यह पुरस्कार लौह तथा इस्पात क्षेत्र में धातुविज्ञानियों के उत्कृष्ट योगदान को मान्यता देने के लिये इस्पात मंत्रालय द्वारा दिया जाने वाला एक प्रतिष्ठित पुरस्कार है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित में से कौन-से कुछ महत्त्वपूर्ण प्रदूषक हैं, भारत में इस्पात उद्योग द्वारा मुक्त किये जाते हैं? (2014)

  1. सल्फर के ऑक्साइड
  2. नाइट्रोजन के ऑक्साइड
  3. कार्बन मोनोऑक्साइड
  4. कार्बन डाइऑक्साइड

नीचे दिये गए कूट का उपयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1, 3 और 4
(b) केवल 2 और 3
(c) केवल 1 और 4
(d) 1, 2, 3 और 4

उत्तर: (d)

व्याख्या:

  • इस्पात उद्योग प्रदूषण उत्पन्न करता है क्योंकि यह कोयला और लौह अयस्क का उपयोग करता है जिनके दहन से विभिन्न पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन (PAH) यौगिक तथा ऑक्साइड हवा में उत्सर्जित होते हैं।
  • स्टील भट्ठी में लौह अयस्क के साथ कोक प्रतिक्रिया करता है, जिससे लौह का निर्माण होता है और प्रमुख पर्यावरण प्रदूषक उत्सर्जित होते हैं
  • इस्पात उत्पादक इकाइयों से निकलने वाले प्रदूषक हैं:
    • कार्बन मोनोऑक्साइड (CO); अतः 3 सही है।
    • कार्बन डाइऑक्साइड (CO2); अत 4 सही है।
    • सल्फर के ऑक्साइड (SOx); अत: 1 सही है।
    • नाइट्रोजन के आक्साइड (NOx); अत: 2 सही है।
    • PM 2.5;
    • अपशिष्ट जल;
    • हानिकारक अपविष्ट;
    • ठोस अपशिष्ट।
  • हालांँकि एयर फिल्टर, वॉटर फिल्टर और अन्य प्रकार से पानी की बचत, बिजली की बचत तथा बंद कंटेनर के रूप तकनीकी हस्तक्षेप उत्सर्जन को कम कर सकते हैं।

अतः विकल्प (D) सही है।


मेन्स:

प्रश्न. वर्तमान में लौह एवं इस्पात उद्योगों की कच्चे माल के स्रोत से दूर स्थिति का उदाहरणों सहित कारण बताइये। (2020)

प्रश्न. विश्व में लौह एवं इस्पात उद्योग के स्थानिक प्रतिरूप में परिवर्तन का विवरण प्रस्तुत कीजिये। (2014)


निष्क्रिय खातों और दावा न की गई जमाराशियों पर RBI के दिशा-निर्देश

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI), निष्क्रिय खाता, जमाकर्ता शिक्षण और जागरूकता (DEA) निधि, अपने ग्राहक को जानिये/नो योर कस्टमर

मेन्स के लिये:

उपभोक्ता हितों, बैंकिंग क्षेत्र की रक्षा में RBI के उपाय

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने हाल ही में वर्गीकरण तथा सक्रियण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित करने के उद्देश्य से निष्क्रिय खातों (Inoperative Account) तथा अदावी/दावा न किये गए जमा (Unclaimed Deposits) के संबंध में दिशा-निर्देशों को संशोधित किया है।

निष्क्रिय खाते और अदावी जमा क्या हैं?

  • निष्क्रिय खाता:
    • दो वर्षों से अधिक समय तक कोई 'ग्राहक-प्रेरित लेन-देन' नहीं करने वाला खाता निष्क्रिय माना जाता है।
      • ग्राहक-प्रेरित विनिमय, बैंक अथवा तीसरे पक्ष द्वारा खाताधारक के अनुरोध पर शुरू किया गया अथवा पूर्व में किया गया वित्तीय लेन-देन, एक गैर-वित्तीय लेन-देन अर्थात प्रत्यक्ष रूप से अथवा डिजिटल माध्यमों जैसे इंटरनेट बैंकिंग अथवा बैंक के मोबाइल बैंकिंग एप्लिकेशन अपने ग्राहक को जानिये (Know Your Customer- KYC) के माध्यम से अपडेट हो सकता है। 
    • निष्क्रिय बैंक खातों में लगभग ₹1-1.30 लाख करोड़ जमा होने का अनुमान है।
  • अदावी जमा:
    • 10 वर्षों से निष्क्रिय बचत/चालू खातों में जमा राशि अथवा परिपक्वता के 10 वर्षों के बाद दावा नहीं किये गए मीयादी जमा (Term Deposit) को अदावी निक्षेप माना जाता है।
    • मार्च 2023 तक बैंकों में लगभग ₹42,270 करोड़ अदावी थे।

  संशोधित RBI दिशानिर्देश क्या हैं?

  •  वार्षिक समीक्षा:
    • बैंकों को उन खातों की वार्षिक समीक्षा करनी चाहिये जिनमें एक वर्ष से अधिक समय से कोई ग्राहक-प्रेरित विनिमय नहीं हुआ है।
      • सावधिक जमा को नवीनीकृत करने के स्पष्ट आदेश के अभाव में बैंकों को ऐसे खातों की समीक्षा करनी चाहिये।
      • ऐसी जमा राशियों को अन्क्लेम्ड/दावा न किये जाने (Unclaimed) से बचाने के लिये, बैंकों को उन खातों की जाँच करनी चाहिये जहाँ उपभोक्ताओं ने परिपक्वता अवधि पूरी होने पर अपनी आय की निकासी नहीं की है या उसे अपने बचत या चालू खाते में स्थानांतरित नहीं किया है।
  • संचार प्रोटोकॉल:
    • बैंकों को निर्देश दिया गया है कि वे पिछले वर्ष में परिचालन की कमी के बारे में खाताधारकों को पत्र, ईमेल या SMS के माध्यम से सूचित करें।
    • यदि अगले वर्ष कोई परिचालन नहीं होता है तो अलर्ट संदेशों में खाते की आसन्न 'निष्क्रिय' स्थिति स्पष्ट रूप से बताई जानी चाहिये।
    • ऐसे मामलों में ग्राहकों को पुनः सक्रियण के लिये नए KYC दस्तावेज़ जमा करने होंगे।
  • निष्क्रिय खातों के लिये वर्गीकरण मानदंड:
    • वर्गीकरण के लिये केवल ग्राहक-प्रेरित विनिमय पर विचार किया जाता है, न कि बैंक-प्रेरित विनिमय पर।
      • स्थायी निर्देश या बिना किसी अन्य परिचालन के स्वत: नवीनीकरण जैसे अधिदेशों को भी ग्राहक-प्रेरित विनिमय माना जाता है।
      • बैंक-प्रेरित विनिमय में भुगतान शुल्क, शुल्क, ब्याज भुगतान, ज़ुर्माना और कर शामिल हैं।
    • किसी खाते का निष्क्रिय खाते के रूप में वर्गीकरण, ग्राहक के किसी विशेष खाते के संदर्भ में होगा न कि ग्राहक के।  
  • निष्क्रिय वर्गीकरण से छूट:
    • सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों और छात्रों के लिये खोले गए खातों (शून्य बैलेंस के साथ) को कोर बैंकिंग समाधान में पृथक किया जाना चाहिये।
      • यह सुनिश्चित करता है कि दो वर्ष से अधिक समय तक खाते का संचालन न होने के कारण 'निष्क्रिय' लेबल लागू नहीं किया जाएगा।
  • पुनर्सक्रियन प्रक्रिया:
    • निष्क्रिय खातों को पुनः सक्रिय करने के लिये KYC दस्तावेज़ जमा करना आवश्यक है। यह प्रक्रिया गैर-घरेलू शाखाओं सहित सभी शाखाओं पर लागू होती है।
      • खाताधारक द्वारा अनुरोध किये जाने पर वीडियो-ग्राहक पहचान प्रक्रिया (Video based Customer Identification Process - V-CIP) का उपयोग पुनः सक्रियण के लिये भी किया जा सकता है।
      • निष्क्रिय खातों को सक्रिय करने के लिये किसी शुल्क की अनुमति नहीं है।
  • दंड एवं ब्याज:
    • निष्क्रिय खाते के रूप में वर्गीकृत किसी भी खाते में न्यूनतम शेष राशि न बनाए रखने पर बैंक दंडात्मक शुल्क लगाने के लिये अधिकृत नहीं हैं।
    • सरकारी योजनाओं के लाभार्थियों और छात्रों के लिये खोले गए खातों (शून्य बैलेंस के साथ) को कोर बैंकिंग समाधान में अलग किया जाना चाहिये।
      • यह सुनिश्चित करता है कि दो साल से अधिक समय तक संचालन न होने के कारण 'निष्क्रिय' लेबल लागू नहीं किया जाता है।
    • बचत खातों पर ब्याज नियमित रूप से जमा किया जाना चाहिये, भले ही खाता चालू हो या नहीं।
  • जमाकर्त्ता शिक्षा और जागरूकता कोष: 
    • बैंकों में खोले गए किसी भी जमा खाते में क्रेडिट शेष, जो दस साल या उससे अधिक समय से संचालित नहीं है, को बैंकों द्वारा रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया द्वारा बनाए गए जमाकर्त्ता शिक्षा और जागरूकता (Depositor Education and Awareness- DEA) कोष में स्थानांतरित करना आवश्यक है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रिलिम्स: 

प्रश्न. यदि आर.बी.आई. प्रसारवादी मौद्रिक नीति का अनुसरण करने का निर्णय लेता है, तो वह निम्नलिखित में से क्या नहीं करेगा? (2020)

  1. वैधानिक तरलता को घटाकर उसे अनुकूलित करना
  2.  सीमांत स्थायी सुविधा दर को बढ़ाना
  3.  बैंक दर को घटाना तथा रेपो दर को भी घटाना

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये-

(a) केवल 1 और 2
(b) केवल 2
(c) केवल 1 और 3
(d) 1, 2 और 3

उत्तर: (b)


मेन्स:

प्रश्न. क्या आप इस मत से सहमत हैं कि सकल घरेलू उत्पाद की स्थायी संवृद्धि तथा निम्न मुद्रास्फीति के कारण भारतीय अर्थव्यवस्था अच्छी स्थिति में है? अपने तर्कों के समर्थन में कारण दीजिये। (2019)


भारतीय ज़िला न्यायालयों में स्वच्छता चुनौतियाँ

प्रिलिम्स के लिये:

सर्वोच्च न्यायालय, ज़िला न्यायालय स्वच्छता, स्वच्छ भारत मिशन, WHO की जल नीति, स्वच्छता और आरोग्य (WASH), कायाकल्प और शहरी परिवर्तन हेतु अटल मिशन (AMRUT)

मेन्स के लिये:

भारत में स्वच्छता और स्वास्थ्य, सरकारी नीतियाँ 

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों ? 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय के सेंटर फॉर रिसर्च एंड प्लानिंग द्वारा 'स्टेट ऑफ द ज्यूडिशियरी' शीर्षक से प्रकाशित एक हालिया रिपोर्ट ने देश भर के ज़िला न्यायालय परिसरों के भीतर लिंग-विशिष्ट सुविधाओं में असमानताओं की ओर ध्यान आकर्षित किया है। 

  • रिपोर्ट महिलाओं के लिये अलग शौचालयों के अपर्याप्त प्रावधान, सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीनों की कमी और ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिये शौचालयों की अनुपलब्धता पर प्रकाश डालती है।

रिपोर्ट के मुख्य निष्कर्ष क्या हैं?

  • अपर्याप्त महिला-अनुकूल सुविधाएँ:
    • कुल ज़िला न्यायालय परिसरों के लगभग पाँचवें हिस्से में महिलाओं के लिये पृथक शौचालयों का अभाव है।
    • केवल 6.7% महिला शौचालयों में सैनिटरी नैपकिन वेंडिंग मशीनें उपलब्ध हैं।
  • मौजूदा शौचालयों की चुनौतियाँ:
    • मौजूदा शौचालयों के दरवाज़े प्रायः टूटे हुए होते हैं तथा विद्यार्थियों को अनियमित जल आपूर्ति की समस्या का सामना करना पड़ता है।
    • पुरुष और महिला न्यायाधीश के लिये साझा शौचालय गोपनीयता एवं समानता को लेकर चिंता उत्पन्न करते हैं।
    • न्यायालय के शौचालयों में साफ-सफाई सुनिश्चित करने के लिये न्यायाधीश व्यक्तिगत रूप से सफाईकर्मियों और स्वच्छताकर्मियों को नियुक्त करते हैं।
      • उदाहरण के लिये नगालैंड के पेरेन ज़िले में शौचालयों को साफ करने के लिये कोई रखरखाव की सुविधा उपलब्ध नहीं थी। स्टाफ सदस्यों को स्वयं शौचालय का रखरखाव सुनिश्चित करना था।
  • समावेशी सुविधाओं का अभाव:
    • अधिकांश ज़िला न्यायालयों में ट्रांसजेंडर कर्मियों के लिये शौचालय नहीं हैं।
    • प्रत्येक न्यायालय परिसर में "लिंग-समावेशी शौचालय" की आवश्यकता है।
      • केरल में ट्रांसजेंडर कर्मियों के शौचालय दिव्यांग कर्मियों के साथ साझा किये जाते हैं।
      • उत्तराखंड में ट्रांसजेंडर कर्मियों के लिये राज्य भर में केवल चार शौचालय हैं।
      • तमिलनाडु के केवल दो ज़िलों, चेन्नई और कोयंबटूर में ऐसी सुविधाएँ प्रदान की जाती हैं।
    • ऐसे शौचालयों का उपयोग करना जो उनकी लिंग पहचान के अनुरूप न हों, ट्रांसजेंडर कर्मियों के लिये असुविधा और उत्पीड़न का कारण बन सकता है।

अपर्याप्त स्वच्छता सुविधाओं से उत्पन्न चुनौतियाँ क्या हैं?

  • स्वास्थ्य तथा स्वच्छता संबंधी जोखिम:
    • अपर्याप्त शौचालय सुविधाओं के परिणामस्वरूप अस्वच्छता की स्थिति उत्पन्न हो सकती है, जिससे महिलाओं को स्वास्थ्य जोखिम का सामना करना पड़ सकता है, जिसमें संक्रमण तथा हैजा, टाइफाइड एवं पेचिश जैसी बीमारियों के होने की संभावना शामिल है।
    • विशेषकर कम रोशनी वाले अथवा एकांत क्षेत्रों में पृथक शौचालयों की कमी,महिलाओं की  सुरक्षा संबंधी चिंताओं को बढ़ा सकती है जिससे उनके उत्पीड़न की संभावना बढ़ जाती है।
    • गर्भवती महिलाओं तथा वृद्ध व्यक्तियों को साझा शौचालय सुविधाओं तक पहुँचने में चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है, जिससे उनकी आवाजाही की सुगमता प्रभावित हो सकती है।
  • संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकारों का हनन:
    • संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकारों के उपबंधों के अनुसार स्वच्छता के अधिकार के तहत प्रत्येक व्यक्ति को जीवन के सभी क्षेत्रों में स्वच्छता तक प्रत्यक्ष तथा सरल पहुँच का अधिकार है, जो सुरक्षित, स्वच्छ, संरक्षित और सामाजिक व सांस्कृतिक रूप से स्वीकार्य है और साथ ही गोपनीयता प्रदान करता है एवं गरिमा सुनिश्चित करता है। 
  • मौलिक अधिकार का हनन:
    • वीरेंद्र गौड़ बनाम हरियाणा राज्य (1995) मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने इस बात पर प्रकाश डाला कि अनुच्छेद 21 जीवन के अधिकार की रक्षा करता है तथा उस अधिकार को गरिमापूर्ण जीवन जीने के लिये आवश्यक स्वच्छ स्थितियों तक विस्तारित करता है।

न्यायालयों में स्वच्छता सुविधाओं को कैसे बेहतर बनाया जा सकता है?

  • समर्पित संसाधनों का आवंटन: 
    • स्वच्छता रखरखाव के लिये पर्याप्त धनराशि का बजट तैयार करना तथा सफाई एवं रखरखाव के लिये ज़िम्मेदार कर्मचारियों का नियोजन करना। जागरूकता बढ़ाने व मानकों की निगरानी के लिये न्यायालय के अंतर्गत हाइजीन चैंपियन नियुक्त करने पर विचार करना।
      • न्यायालयों में स्वच्छता सुधार परियोजनाओं के लिये धन जुटाने हेतु एक केंद्रीय निकाय के रूप में एक समर्पित संस्थान, नेशनल ज्यूडिशियल इंफ्रास्ट्रक्चर अथॉरिटी ऑफ इंडिया (NJIAI) की स्थापना का सुझाव पूर्व CJI द्वारा दिया गया था।
  • मौजूदा सुविधाओं का उन्नयन:
    • दिव्यांगजनों के लिये स्वच्छता, व्यावहारिकता तथा पहुँच सुनिश्चित करने के लिये शौचालयों का नवीनीकरण करना। उचित वेंटिलेशन, प्रकाश एवं स्वच्छता संबंधी आवश्यकताएँ जैसे सैनिटरी डिब्बे, साबुन, कागज़ के तौलिये आदि की आपूर्ति सुनिश्चित करना।
  • स्वच्छता संबंधी दिशा-निर्देश जारी करना: 
    • विभिन्न राज्यों तथा न्यायालय स्तरों पर स्थिरता तथा गुणवत्ता सुनिश्चित करते हुए न्यायालयों में स्वच्छता सुविधाओं के लिये राष्ट्रीय मानक निर्धारित करना। इसमें मूल सुविधाओं, पहुँच  हेतु आवश्यकताओं तथा स्वच्छता प्रोटोकॉल के लिये दिशानिर्देश शामिल हो सकते हैं।
  • उपयोगकर्त्ता प्रतिक्रिया को प्रोत्साहन:
    • प्रदत्त स्वच्छता सुविधाओं पर प्रतिक्रिया प्राप्त करने, कमियों की पहचान करने तथा सुधार का प्रस्ताव देने के लिये न्यायालय में स्वच्छता सुविधाओं के उपयोगकर्त्ताओं के लिये तंत्र स्थापित करना। इसमें सुझाव बॉक्स, सर्वेक्षण अथवा सार्वजनिक बैठकें शामिल की सकती हैं।
      • सुझावों एवं शिकायतों पर त्वरित एवं समयबद्ध कार्यवाही सुनिश्चित करना।

भारत में शौचालय सुविधाओं की स्थिति क्या है?

  • स्वच्छता राज्य के अंतर्गत एक विषय है और इसलिये शौचालय उपलब्ध कराने, व्यवहार परिवर्तन गतिविधियाँ शुरू करने, ठोस तथा तरल अपशिष्ट प्रबंधन प्रदान करने एवं विभिन्न गतिविधियों को बनाए रखने का कार्य राज्यों का है।
  • राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण ( National Family Health Survey- NFHS) के अनुसार, 69.3% घरों में बेहतर शौचालय सुविधाएँ हैं, जो साझा नहीं की जाती हैं।
    • 8.4% परिवारों के पास साझा शौचालय सुविधाओं तक पहुँच है और 2.9% के पास अविकसित शौचालय सुविधाओं तक पहुँच है।
  • NFHS की रिपोर्ट से पता चला है कि 80.7% शहरी परिवारों और 63.6% ग्रामीण परिवारों के पास बेहतर शौचालय सुविधाओं तक पहुँच है।
    • वर्ष 2019-2021 में कुल 19.4% भारतीय परिवारों ने किसी भी शौचालय सुविधा का उपयोग नहीं किया।
      • शहरी क्षेत्रों में सभी घरों में से 6.1% घरों में खुले में शौच किया जाता है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह संख्या 25.9% तक पहुँच जाती है।
  • राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में शौचालय की सुविधा तक पहुँच बिहार (केवल 61.2% घरों में उपलब्ध है) में सबसे कम है। बिहार के बाद झारखंड (69.6%) और ओडिशा (71.3%) का स्थान है।
    • लक्षद्वीप में शत-प्रतिशत घरों में शौचालय की सुविधा उपलब्ध है।

स्वच्छता से संबंधित पहल:

  सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

मेन्स:

प्रश्न. "जल, सफाई और स्वच्छता आवश्यकता को लक्षित करने वाली नीतियों के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये लाभार्थी वर्गों की पहचान को प्रत्याशित परिणामों के साथ जोड़ना होगा।" ‘वाश’ योजना के संदर्भ में इस कथन का परीक्षण कीजिये। (2017)


भारतमाला चरण-1: समय सीमा बढ़ाई गई

प्रिलिम्स के लिये:

भारतमाला, आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (CCEA), सार्वजनिक निवेश बोर्ड, पूंजीगत व्यय, वस्तु और सेवा कर

मेन्स के लिये:

भारतमाला परियोजना और भारत के बुनियादी ढाँचे के विकास में इसका योगदान। 

स्रोत: फाइनेंसियल एक्सप्रेस  

चर्चा में क्यों?

हाल ही में सरकार ने प्रमुख राजमार्ग विकास परियोजना भारतमाला परियोजना चरण- I को पूरा करने की समय सीमा सत्र 2027-28 तक बढ़ा दी है।

  • यह कदम मेगा परियोजना की अनुमानित लागत में 100% से अधिक की वृद्धि के बाद उठाया गया है और यह कार्यान्वयन की धीमी गति एवं वित्तीय बाधाओं को दर्शाता है।

भारतमाला परियोजना क्या है?

  • परिचय:
    • भारतमाला परियोजना सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road Transport and Highways) के तहत शुरू किया गया एक व्यापक कार्यक्रम है।
    • भारतमाला के प्रथम चरण की घोषणा वर्ष 2017 में की गई थी और इसे वर्ष 2022 तक पूरा किया जाना था।
  • प्रमुख विशेषताएँ:
    • भारतमाला पहले से निर्मित बुनियादी ढाँचे की बढ़ी हुई प्रभावशीलता, बहुविध एकीकरण, निर्बाध आवागमन के लिये बुनियादी ढाँचे की कमियों को दूर करने एवं राष्ट्रीय व आर्थिक कॉरिडोर को एकीकृत करने पर केंद्रित है। 
    • उक्त कार्यक्रम के छह प्रमुख घटक हैं:
      • आर्थिक कॉरिडोर: आर्थिक कॉरिडोर को एकीकृत करने से आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण उत्पादन तथा उपभोग केंद्रों के बीच विस्तृत जुड़ाव/कनेक्टिविटी की सुविधा मिलती है।
      • इंटर-कॉरिडोर और फीडर मार्ग: यह प्रथम मील से अंतिम मील तक की कनेक्टिविटी सुनिश्चित करेगा।
      • राष्ट्रीय कॉरिडोर दक्षता में सुधार: इसके माध्यम से मौजूदा राष्ट्रीय कॉरिडोर की क्षमता बढ़ाने और ट्रैफिक जाम को कम करने का लक्ष्य रखा गया है।
      • सीमा और अंतर्राष्ट्रीय संपर्क सड़कें: बेहतर सीमा सड़क बुनियादी ढाँचे से अधिक गतिशीलता सुनिश्चित होगी और साथ ही पड़ोसी देशों के साथ व्यापार को भी बढ़ावा मिलेगा।
      • तटीय व पोर्ट कनेक्टिविटी हेतु सड़कें: तटीय क्षेत्रों में कनेक्टिविटी के माध्यम से बंदरगाह आधारित आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलता है, जिससे पर्यटन एवं औद्योगिक विकास दोनों बेहतर होते हैं।
      • ग्रीन-फील्ड एक्सप्रेसवे: उच्च यातायात सघनता और अधिक जाम वाले स्थान की उपस्थिति वाले एक्सप्रेसवे ग्रीन-फील्ड एक्सप्रेसवे से लाभान्वित होंगे।
  • स्थिति:
    • नवंबर 2023 तक 15,045 किमी यानी 42% प्रोजेक्ट पूरा हो चुका है।
  • चुनौतियाँ:
    • कच्चे माल की लागत, भूमि अधिग्रहण लागत में वृद्धि, हाई-स्पीड कॉरिडोर का निर्माण और वस्तु एवं सेवा कर दरों में वृद्धि।

आगे की राह

  • प्रतिस्पर्धी कीमतों पर कच्चा माल प्राप्त करने के लिये रणनीतिक खरीद विधियों की जाँच करना। अनुकूल दरें सुनिश्चित करने के लिये, विशेषकर बाज़ार में उतार-चढ़ाव के दौरान, आपूर्तिकर्त्ताओं के साथ बातचीत में भाग लेना।
  • मुआवज़ा संबंधी विवादों को कम करने के लिये कुशल और पारदर्शी भूमि अधिग्रहण प्रक्रियाओं को लागू करना। इस प्रक्रिया को कारगर बनाने के लिये भूमि अधिग्रहण और सामुदायिक सहभागिता जैसे विकल्पों का पता लगाना।
  • हाई-स्पीड कॉरिडोर को शामिल करने से पहले संपूर्ण व्यवहार्यता अध्ययन करना। लागत-प्रभावशीलता के साथ कार्यक्षमता को संतुलित करने के लिये गलियारे के डिज़ाइन को अनुकूलित करना।
  • अनिश्चितताओं को कम करने के लिये स्थिर और पूर्वानुमानित GST नीतियों की वकालत करना। कर दर में बदलाव के प्रभाव पर उद्योग को अंतर्दृष्टि प्रदान करने के लिये सरकारी अधिकारियों के साथ सामंजस्य स्थापित करना।

  सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न 1. 'राष्ट्रीय निवेश और बुनियादी ढाँचा कोष' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (2017)

  1. यह नीति आयोग का अंग है। 
  2. वर्तमान में इसके पास 4,00,000 करोड़ रुपए का कोष है।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

(a) केवल 1
(b) केवल 2
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही 2

उत्तर: (d)

  • राष्ट्रीय निवेश और बुनियादी ढाँचा कोष (National Investment and Infrastructure Fund- NIIF) का नियमन वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग के निवेश प्रभाग द्वारा किया जाता  है। अतः कथन 1 सही नहीं है।
  • NIIF वर्तमान में तीन फंडों का प्रबंधन कर रहा है जो सेबी विनियमों के तहत वैकल्पिक निवेश कोष (Alternative Investment Funds- AIF) के रूप में पंजीकृत हैं। वे तीन फंड- मास्टर फंड, स्ट्रैटेजिक फंड और फंड ऑफ फंड्स हैं, साथ ही NIIF का प्रस्तावित कोष 40,000 करोड़ रुपए है, न कि 4,00,000 करोड़ रुपए। अतः कथन 2 सही नहीं है।

अतः विकल्प (d) सही है।


मेन्स:

प्रश्न. अधिक तीव्र और समावेशी आर्थिक विकास के लिये बुनियादी अवसंरचना में निवेश आवश्यक है।” भारत के अनुभव के आलोक में चर्चा कीजिये। (वर्ष 2021)