सामाजिक न्याय
मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता से संबंधित मुद्दे एवं निहितार्थ
- 30 May 2023
- 20 min read
यह एडिटोरियल 29/05/2023 को ‘द हिंदू’ में प्रकाशित ‘‘Menstrual health is a public health issue’’ लेख पर आधारित है। इसमें माहवारी स्वास्थ्य एवं स्वच्छता से जुड़ी रूढ़ियाँ और महिलाओं पर इसके प्रभाव के बारे में चर्चा की गई है।
प्रिलिम्स के लिये:NFHS-5, महिलाओं का मासिक धर्म अवकाश का अधिकार, मासिक धर्म स्वास्थ्य उत्पादों तक निःशुल्क पहुँच विधेयक, 2022 , एनीमिया मेन्स के लिये:मासिक धर्म स्वास्थ्य - चुनौतियाँ, परिणाम और आगे की राह |
हाल के एक घटनाक्रम में महाराष्ट्र के एक शहर में एक व्यक्ति ने कथित तौर पर अपनी 12 वर्षीय बहन की हत्या कर दी क्योंकि उसने उसके कपड़ों पर लगे माहवारी या मासिक धर्म के के दाग को उसके यौन संबंध का संकेत मान लिया था।
भारत में 350 मिलियन से अधिक महिलाएँ और बालिकाएँ रहती हैं जो हर माह मासिक धर्म के नैसर्गिक चक्र से गुज़रती हैं। उनमें से कई के लिये मासिक धर्म आज भी एक ‘टैबू’ या वर्जित विषय जो कि संकोच एवं भेदभाव का स्रोत बना हुआ है।
शहरी भारत में बालिकाएँ और महिलाएँ अपने जीवन का एक उल्लेखनीय भाग सार्वजनिक डोमेन में व्यतीत करती हैं। कोई युवा कामकाजी महिला सार्वजनिक परिवहन के माध्यम से घंटों तक यात्रा करती है, झुग्गी-झोपड़ियों में रहने कोई किशोरी संकरी गलियों से होकर स्कूल जाती है, कोई सफाई कर्मचारी सूर्योदय के पूर्व शहर की सफाई के साथ अपना कार्य शुरू करती है, कोई सब्जी विक्रेता महिला घंटों अपने स्टॉल पर बैठती है और कोई नर्स 12 घंटे की व्यस्त शिफ्ट में कार्य करती है। उन सबके जीवन बेहद भिन्न हैं, लेकिन वे सभी दैनिक रूप से सार्वजनिक स्थानों पर समय बिताती हैं और इस दौरान अपने जीवन के एक बेहद निजी पहलू, अपनी माहवारी का सामना करती हैं।
माहवारी एक सामान्य शारीरिक चक्र है, लेकिन आज भी संकोच, पूर्वाग्रह और भेदभाव से घिरी हुई है। नतीजतन, लोगों को माहवारी एवं संबंधित उत्पादों के बारे में सटीक जानकारी प्राप्त करने, शौचालय का उपयोग करने और आवश्यकता पड़ने पर मदद मांगने में बाधाओं का सामना करना पड़ता है।
मासिक धर्म स्वास्थ्य या माहवारी स्वास्थ्य (Menstrual health) न केवल व्यक्तिगत स्वच्छता का विषय है, बल्कि एक सार्वजनिक स्वास्थ्य संबंधी मुद्दा भी है जिस पर सरकारों, नागरिक समाज और व्यक्तियों की ओर से तत्काल ध्यान देने एवं कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
भारत में माहवारी स्वास्थ्य एवं स्वच्छता का मुद्दा कितना गंभीर है?
- राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS-5) के अनुसार, विगत वर्षों में भले ही उल्लेखनीय प्रगति हुई है, फिर भी लगभग 27% युवा ग्रामीण महिलाएँ अपने माहवारी चक्र के दौरान सुरक्षा के अस्वच्छ साधनों का सहारा लेती हैं।
- शहरी आबादी में, 10% युवा महिलाओं ने अस्वच्छ तरीकों का उपयोग करने की सूचना दी।
- रिपोर्ट के अनुसार, 16 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों में स्वच्छ माहवारी उत्पादों (hygienic menstrual products) के उपयोग की दर 90% से अधिक है। लेकिन भारत के कुछ निर्धनतम राज्यों का इस मामले में खराब रिकॉर्ड नज़र आता है। बिहार में स्वच्छ माहवारी उत्पादों का न्यूनतम उपयोग दर (59%) पाया गया है, जिसके बाद मध्य प्रदेश (61%) और मेघालय (65%) का स्थान है।
खराब माहवारी स्वच्छता के परिणाम
- स्वास्थ्य: खराब माहवारी स्वास्थ्य से संक्रमण, जलन, डर्मेटाइटिस, pH संतुलन में बदलाव और सर्वाइकल कैंसर का खतरा बढ़ सकता है। यह पूर्वाग्रह एवं संकोच के कारण तनाव, दुश्चिंता और स्वाभिमान में कमी उत्पन्न कर मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित कर सकता है।
- शिक्षा: खराब माहवारी स्वास्थ्य सुविधाओं, उत्पादों, सूचना और समर्थन की कमी के कारण बालिकाओं एवं ट्रांसजेंडर छात्राओं की स्कूल उपस्थिति, प्रदर्शन और स्कूल में बने रहने (प्रतिधारण) को प्रभावित कर सकता है। यह खेल और पाठ्येतर गतिविधियों में भाग लेने में भी बाधाएँ उत्पन्न कर सकता है।
- विवाह: खराब माहवारी स्वास्थ्य महिलाओं के यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य और अधिकारों को प्रभावित कर सकता है। स्कूल छोड़ देने वाली बालिकाएँ, जो बाल विवाह में धकेल दी जाती हैं, घरेलू हिंसा, संक्रमण, प्रजनन संबंधी बीमारियों, कुपोषण और खराब मानसिक स्वास्थ्य का अधिक सामना करने की संभावना रखती हैं।
- कार्य: खराब माहवारी स्वास्थ्य कार्य से अनुपस्थिति, असुविधा, भेदभाव और उत्पीड़न के कारण महिलाओं एवं ट्रांसजेंडर कामगारों की उत्पादकता, आय और करियर के अवसरों को प्रभावित कर सकता है। यह उपयुक्त कार्य अवसर और सामाजिक सुरक्षा तक उनकी पहुँच को भी सीमित कर सकता है।
माहवारी स्वच्छता की राह की बाधाएँ
- ‘पीरियड पॉवर्टी’ (Period Poverty): माहवारी स्वच्छता और संबंधित मुद्दों के बारे में जागरूकता की कमी भारत में एक महत्त्वपूर्ण बाधा है। कई बालिकाएँ और महिलाएँ, विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में, माहवारी स्वास्थ्य (उचित स्वच्छता अभ्यासों, सैनिटरी उत्पादों के उपयोग और माहवारी से जुड़ी असुविधा के प्रबंधन सहित) के बारे में सीमित ज्ञान ही रखती हैं।
- चाइल्ड राइट्स एंड यू (CRY) द्वारा किये गए एक सर्वेक्षण से पता चला कि बहुत-सी बालिकाओं की सैनिटरी पैड तक सीमित पहुँच ही थी, जहाँ 44.5% बालिकाओं ने घर के बने अवशोषक या कपड़े का उपयोग करने की बात स्वीकार की।
- रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि लगभग 11.3% लड़कियों को मासिक धर्म का सही कारण पता नहीं था और वे समझती थीं कि यह दैवी शाप या बीमारी का परिणाम है।
- रूढ़ि और संकोच: मासिक धर्म अभी भी भारत के कई भागों में सामाजिक रूढ़ि और सांस्कृतिक वर्जनाओं से घिरा हुआ है। मासिक धर्म से गुज़रती महिलाओं को प्रायः भेदभाव, प्रतिबंध और अलगाव का सामना करना पड़ता है, जिससे उनमें अपमान और शर्मिंदगी की भावना पैदा होती है। यह रूढ़ि खुली चर्चाओं को रोक सकता है, सूचना एवं संसाधनों तक पहुँच को सीमित कर सकता है और माहवारी स्वच्छता के प्रति नकारात्मक दृष्टिकोण को कायम बनाए रख सकता है।
- CRY की रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि दुकानों से सैनिटरी पैड खरीदने में झिझक या लज्जा, पैड के निपटान में कठिनाई, उपलब्धता की कमी और पैड के बारे में जानकारी न होना सैनिटरी पैड का उपयोग नहीं करने के प्रमुख कारण थे।
- 61.4% बालिकाओं ने स्वीकार किया है कि माहवारी को लेकर समाज में शर्मिंदगी की भावना मौजूद है।
- CRY की रिपोर्ट में यह भी पाया गया कि दुकानों से सैनिटरी पैड खरीदने में झिझक या लज्जा, पैड के निपटान में कठिनाई, उपलब्धता की कमी और पैड के बारे में जानकारी न होना सैनिटरी पैड का उपयोग नहीं करने के प्रमुख कारण थे।
- सस्ते स्वच्छता उत्पादों तक पहुँच का अभाव: भारत में सस्ते और स्वच्छ माहवारी उत्पादों तक पहुँच एक बड़ी चुनौती है। कई महिलाएँ, विशेष रूप से निम्न आय पृष्ठभूमि की महिलाएँ, सैनिटरी पैड या टैम्पोन खरीदने में संघर्ष करती हैं। इसके परिणामस्वरूप कपड़े, चिथड़े या यहाँ तक कि राख जैसे अस्वच्छ विकल्पों के उपयोग की स्थिति बनती है, जो संक्रमण और अन्य स्वास्थ्य समस्याओं के जोखिम को बढ़ा सकता है।
- अपर्याप्त स्वच्छता सुविधाएँ: कई क्षेत्रों में उचित स्वच्छता सुविधाओं की कमी (जिसमें स्वच्छ शौचालय एवं जल आपूर्ति शामिल है) माहवारी स्वच्छता के लिये एक प्रमुख बाधा है। स्कूलों, सार्वजनिक स्थानों और घरों में अपर्याप्त आधारभूत संरचना महिलाओं एवं बालिकाओं के लिये अपने माहवारी को सुरक्षित और गरिमापूर्ण ढंग से प्रबंधित करना कठिन बना सकता है।
- अनौपचारिक कार्य (जैसे निर्माण कार्य, घरेलू कार्य आदि) से संलग्न महिलाओं के पास प्रायः वॉशरूम, नहाने के लिये साफ जल और लागत-प्रभावी स्वच्छता उत्पादों एवं उनके सुरक्षित निपटान तक पहुँच नहीं होती है। पैड आदि माहवारी उत्पादों को बदल सकने के लिये प्रायः उनके पास निजता की भी कमी होती है।
- सीमित स्वास्थ्य सेवा: ग्रामीण क्षेत्रों को प्रायः चिकित्सकों, नर्सों और दाइयों सहित विभिन्न स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं की कमी का सामना करना पड़ता है, जो मासिक धर्म संबंधी स्वास्थ्य समस्याओं को संबोधित करने के लिये विशेष रूप से प्रशिक्षित होते हैं। यह कमी जानकार स्वास्थ्य पेशेवरों तक महिलाओं की पहुँच को आगे और बाधित करती है। स्वास्थ्य देखभाल अवसंरचना की यह कमी मासिक धर्म के बारे में व्याप्त मिथकों एवं गलत धारणाओं के बने रहने में भी योगदान देती है।
- सांस्कृतिक और धार्मिक अभ्यास: कुछ सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताएँ एवं प्रथाएँ माहवारी स्वच्छता को बाधित कर सकती हैं। उदाहरण के लिये, कुछ समुदाय मासिक धर्म से गुज़रती महिलाओं को अपवित्र मानते हैं और धार्मिक गतिविधियों या सामाजिक समारोहों में उनकी भागीदारी को प्रतिबंधित करते हैं। इस तरह के अभ्यास रूढ़ि की धारणा को और प्रबल कर सकते हैं तथा उचित माहवारी स्वच्छता अभ्यासों में बाधा डाल सकते हैं।
- महाराष्ट्र में एक अध्ययन में पाया गया कि माहवारी से गुज़रती बालिकाओं एवं महिलाओं को स्वच्छता एवं अन्य बुनियादी सुविधाओं से रहित ‘कूर्मघर’ या ‘पीरियड हट्स’ (period huts) में अलग करने की प्रथा महिलाओं के बीच अनुकूल यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य परिणामों के लिये एक महत्त्वपूर्ण बाधा उत्पन्न करती है।
- नीतिगत उपायों की कमी: ‘महिलाओं को मासिक धर्म अवकाश का अधिकार और मासिक धर्म संबंधी स्वास्थ्य उत्पादों तक नि:शुल्क पहुँच विधेयक (Right of Women to Menstrual Leave and Free Access to Menstrual Health Products Bill), 2022’ में महिलाओं और ट्रांसवुमन के लिये उनकी माहवारी के दौरान तीन दिनों के सवेतन अवकाश की व्यवस्था की गई है तथा छात्राओं के लिये भी अतिरिक्त लाभ का उपबंध किया गया है, लेकिन अभी इसका अधिनियम बनना शेष है। केवल दो राज्यों, केरल और बिहार में महिलाओं के लिये माहवारी अवकाश नीतियाँ कार्यान्वित हैं।
आगे की राह
- समावेशी दृष्टिकोण अपनाना: दिव्यांग महिलाओं, ट्रांस-पुरुष/महिला और माहवारी से गुज़रने वाले अन्य लैंगिक पहचान वाले लोगों की माहवारी संबंधी आवश्यकताओं को भी संबोधित किया जाना चाहिये। जेंडर-नॉनकन्फर्मिंग व्यक्तियों (Gender-nonconforming persons) को सुरक्षा समस्याओं और माहवारी संबंधी आपूर्ति की कमी का सामना करना पड़ता है। हमें उनकी अनूठी आवश्यकताओं को भी तत्काल समझने की ज़रूरत है।
- सैनिटरी उत्पादों की गुणवत्ता में सुधार लाना: अधिकारियों ने विभिन्न सरकारी योजनाओं के तहत वितरित सैनिटरी नैपकिन के सस्ते और वहनीय होने के बावजूद इनमे गुणवत्ता संबंधी कुछ समस्याओं को चिह्नित किया है।
- बेहतर विकल्पों को बढ़ावा देना: मेंस्ट्रुअल कप (Menstrual cups) सैनिटरी नैपकिन का एक सस्ता, संवहनीय और इको-फ्रेंडली विकल्प है, लेकिन उन्हें अभी संदेह के साथ देखा जाता है।
- टेलीमेडिसिन और टेलीकंसल्टेशन सेवाएँ: टेलीमेडिसिन प्लेटफॉर्म का उपयोग मासिक धर्म स्वास्थ्य में विशेषज्ञता रखने वाले स्वास्थ्य पेशेवरों तक दूरस्थ पहुँच प्रदान कर सकता है। वीडियो परामर्श के माध्यम से दूरदराज के क्षेत्रों की महिलाएँ एवं बालिकाएँ माहवारी स्वच्छता पर व्यक्तिगत मार्गदर्शन, समर्थन एवं विशेषज्ञ सलाह प्राप्त कर सकती हैं। इससे भौगोलिक बाधाओं के बावजूद सटीक जानकारी की आसानी से उपलब्धता सुनिश्चित होगी।
- समुदाय-आधारित सहकर्मी शिक्षा कार्यक्रम: नवीन सहकर्मी शिक्षा कार्यक्रमों (innovative peer education programs) के माध्यम से स्थानीय समुदायों को शामिल करने से माहवारी के बारे में झिझक और रूढ़ि को दूर करने में मदद मिल सकती है। ये कार्यक्रम महिलाओं और बालिकाओं को माहवारी स्वच्छता दूत (menstrual hygiene ambassadors) बनने के लिये प्रशिक्षित एवं सशक्त कर सकते हैं।
- सुदृढ़ अपशिष्ट निपटान: सैनिटरी नैपकिन का सुरक्षित निपटान और इससे जुड़ी कठिनाइयों एवं भ्रांतियों को दूर करना।
- माहवारी अपशिष्ट का पता लगाने और स्वचालित रूप से उचित निपटान तंत्र शुरू करने हेतु सेंसरयुक्त स्मार्ट शौचालयों को विकसित करने के लिये IoT तकनीक को नियोजित किया जा सकता है।
- स्मार्ट शौचालयों का निर्माण: ये शौचालय स्वच्छता अभ्यासों पर वास्तविक समय प्रतिक्रिया प्रदान कर सकते हैं, माहवारी उत्पादों की आपूर्ति के स्तर की निगरानी कर सकते हैं और रखरखाव एवं री-स्टॉकिंग के लिये अलर्ट भेज सकते हैं।
- जागरूकता बढ़ाना: माहवारी स्वास्थ्य एवं स्वच्छता पर आसानी से सुलभ और सांस्कृतिक रूप से उपयुक्त जानकारी प्रदान करने के लिये मोबाइल एप्लीकेशन, इंटरैक्टिव वेबसाइटों और वौइस-बेस्ड सूचना प्रणाली के उपयोग जैसी पहल के माध्यम से महिलाओं के बीच जागरूकता बढ़ाई जानी चाहिये।
- संवर्द्धित वास्तविकता (Augmented Reality- AR) और आभासी वास्तविकता (Virtual Reality- VR) प्रौद्योगिकियाँ माहवारी स्वास्थ्य शिक्षा के लिये ‘इमर्सिव’ और ‘इंटरैक्टिव’ लर्निंग अनुभवों का सृजन कर सकती हैं।
- वर्चुअल सिमुलेशन और सिनेरियो का उपयोग उपयुक्त स्वच्छता अभ्यासों को सिखाने, शामिल जैविक प्रक्रियाओं को प्रदर्शित करने और मिथकों एवं गलत धारणाओं को दूर करने के लिये किया जा सकता है।
- नीतिगत उपाय: टैक्स में कटौती, सैनिटरी उत्पादों के लिये मानक तय करने और महिला-अनुकूल अवसंरचना निर्माण जैसी नीतियों को लागू किया जाना चाहिये। इसके साथ ही, ‘महिलाओं को मासिक धर्म अवकाश का अधिकार और मासिक धर्म संबंधी स्वास्थ्य उत्पादों तक मुफ्त पहुँच विधेयक’ को अधिनियम का रूप दिया जाना चाहिये और इसे अक्षरशः लागू किया जाना चाहिये।
निष्कर्ष
अपर्याप्त माहवारी स्वच्छता महिलाओं एवं बालिकाओं को शारीरिक, मानसिक एवं सामाजिक रूप से हानि पहुँचा सकती है, जहाँ वे संक्रमण, एनीमिया, बांझपन, स्कूल ड्रॉपआउट, हिंसा एवं भेदभाव का शिकार हो सकती हैं। यह केवल व्यक्तिगत स्वच्छता का मामला नहीं है बल्कि एक सार्वजनिक स्वास्थ्य चिंता भी है जो सरकारों, नागरिक समाज और व्यक्तियों की ओर से तत्काल कार्रवाई की मांग करती है। इन चुनौतियों से निपटने के लिये हमें शिक्षा, जागरूकता अभियान, नीतिगत सुधार, अवसंरचना सुधार और बेहतर स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है। माहवारी को रूढ़ि-मुक्त करके, सस्ते सैनिटरी उत्पादों को सुनिश्चित करके और व्यापक माहवारी स्वास्थ्य शिक्षा प्रदान करके हम भारत में माहवारी स्वच्छता को बेहतर बना सकते हैं।
अभ्यास प्रश्न: उपयुक्त माहवारी स्वास्थ्य देखभाल तक पहुँच में महिलाओं के समक्ष विद्यमान बाधाओं एवं चुनौतियों पर विचार करें और समावेशी एवं व्यापक माहवारी स्वास्थ्य प्रबंधन सुनिश्चित करने हेतु उपाय सुझाएँ।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न(PYQ)मुख्य परीक्षाप्रश्न . भारत में महिलाओं के समक्ष समय और स्थान से संबंधित निरंतर चुनौतियाँ क्या-क्या हैं? (2019) |