व्हिसल ब्लोअर पोर्टल: IREDA
प्रिलिम्स के लिये:व्हिसल ब्लोअर पोर्टल मेन्स के लिये:व्हिसल ब्लोअर पोर्टल और शासन में पारदर्शिता |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (IREDA) ने 'सतर्कता जागरूकता सप्ताह 2021' के एक भाग के रूप में 'व्हिसल ब्लोअर पोर्टल' लॉन्च किया है।
- यह भ्रष्टाचार के प्रति IREDA की "ज़ीरो टॉलरेंस" का एक हिस्सा है। इस पोर्टल के माध्यम से IREDA के कर्मचारी धोखाधड़ी, भ्रष्टाचार, सत्ता के दुरुपयोग आदि से संबंधित चिंताओं को उठा सकते हैं।
- IREDA नवीन और नवीकरणीय ऊर्जा मंत्रालय (MNRE) के प्रशासनिक नियंत्रण के तहत भारत सरकार का एक मिनी रत्न (श्रेणी- I) उद्यम है।
प्रमुख बिंदु
- व्हिसलब्लोइंग (Whistleblowing):
- कंपनी अधिनियम 2013 के अनुसार, व्हिसलब्लोइंग एक ऐसी कार्रवाई है जिसका उद्देश्य किसी संगठन में अनैतिक प्रथाओं की ओर हितधारकों का ध्यान आकर्षित करना है।
- एक व्हिसल ब्लोअर कोई भी हो सकता है जो गलत प्रथाओं को उजागर करता है और आरोपों का समर्थन करने के लिये सबूत रखता है।
- वे या तो संगठन के भीतर या बाहर से हो सकते हैं, जैसे कि वर्तमान और पूर्व कर्मचारी, शेयरधारक, बाहरी लेखापरीक्षक एवं वकील।
- भारत में व्हिसल ब्लोअर्स को व्हिसल ब्लोअर्स प्रोटेक्शन एक्ट, 2014 द्वारा संरक्षित किया जाता है।
- जनवरी 2020 में भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने इनसाइडर ट्रेडिंग मामलों के बारे में जानकारी साझा करने के लिये व्हिसल ब्लोअर और अन्य मुखबिरों को पुरस्कृत करने हेतु एक नया तंत्र स्थापित किया।
- इनसाइडर ट्रेडिंग शेयर बाज़ार में एक अनुचित और अवैध प्रथा है, जिसमें किसी कंपनी के बारे में महत्त्वपूर्ण अंदरूनी गैर-सार्वजनिक जानकारी का खुलासा कर दिया जाता है जिसके कारण अन्य निवेशकों को काफी नुकसान होता है।
- सतर्कता जागरूकता सप्ताह:
- परिचय:
- यह प्रत्येक वर्ष सरदार वल्लभभाई पटेल के जन्मदिन सप्ताह के दौरान मनाया जाता है, जिन्हें अक्सर 'भारत का बिस्मार्क' कहा जाता है। यह केंद्रीय सतर्कता आयोग द्वारा मनाया जाता है।
- राष्ट्रीय एकता दिवस प्रत्येक वर्ष 31 अक्तूबर को सरदार वल्लभभाई पटेल की जयंती को चिह्नित करने के लिये मनाया जाता है।
- इस वर्ष 26 अक्तूबर से 1 नवंबर तक सतर्कता सप्ताह मनाया जा रहा है।
- यह प्रत्येक वर्ष सरदार वल्लभभाई पटेल के जन्मदिन सप्ताह के दौरान मनाया जाता है, जिन्हें अक्सर 'भारत का बिस्मार्क' कहा जाता है। यह केंद्रीय सतर्कता आयोग द्वारा मनाया जाता है।
- थीम:
- 'स्वतंत्र भारत @ 75: आत्मनिर्भरता और अखंडता'।
- उद्देश्य:
- सप्ताह के दौरान विभिन्न गतिविधियों की योजना बनाई जाती है, जिसका उद्देश्य भ्रष्टाचार की बुराई को पहचानना और व्यक्तिगत एवं प्रणालीगत स्तर पर इससे निपटने के तरीकों को बढ़ावा देना है।
- परिचय:
भारत में भ्रष्टाचार
- प्रसार:
- ग्लोबल करप्शन बैरोमीटर (GCB)- एशिया 2020 में पाया गया कि रिश्वत देने वालों में से लगभग 50 लोगों से ऐसा करने को कहा गया था, जबकि व्यक्तिगत कनेक्शन का इस्तेमाल करने वालों में से 32% ने कहा कि उन्हें यह सेवा बिना रिश्वत दिये नहीं मिल सकती थी।
- वर्ष 2020 तक भारत 180 देशों की सूची में ‘करप्शन परसेप्शन इंडेक्स’ में 86वें स्थान पर है। ज्ञात हो कि यह स्थिति वर्ष 2019 से भी बदतर है, जब भारत 80वें स्थान पर था।
- कारण:
- भारत में भ्रष्टाचार के प्रमुख कारणों में खराब नियामक ढाँचा, आधिकारिक गोपनीयता, निर्णयन प्रक्रिया में बहिष्करणवादी नीति; कठोर नौकरशाही संरचनाएँ और प्रक्रियाएँ तथा प्रभावी आंतरिक नियंत्रण तंत्र का अभाव आदि शामिल हैं।
- प्रभाव:
- यह संसाधनों के उपयोग में अक्षमताओं को बढ़ावा देता है, बाज़ारों को विकृत करता है, गुणवत्ता से समझौता करता है, पर्यावरण को नष्ट करता है और राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये एक गंभीर खतरा उत्पन्न करता है।
- संबंधित पहलें
स्रोत: पीआईबी
खासी उत्तराधिकार संपत्ति विधेयक, 2021
प्रिलिम्स के लिये:खासी उत्तराधिकार संपति विधेयक,2021,संविधान की 6वी अनुसूची,मेघालय की जनजातियाँ मेन्स के लिये:खासी उत्तराधिकार संपति विधेयक,2021 के उद्देश्य और महत्त्व |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मेघालय में खासी हिल्स ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (KHADC) ने घोषणा की है कि वह ‘खासी उत्तराधिकार संपत्ति विधेयक, 2021’ पेश करेगी। इस बिल का उद्देश्य खासी समुदाय में भाई-बहनों के बीच पैतृक संपत्ति का "समान वितरण" करना है।
- यदि प्रस्तावित विधेयक लागू होता है, तो यह मातृवंशीय खासी जनजाति की विरासत की सदियों पुरानी प्रथा को संशोधित करेगा।
नोट:
- खासी हिल्स ऑटोनॉमस डिस्ट्रिक्ट काउंसिल (KHADC) संविधान की छठी अनुसूची के तहत एक निकाय है।
- इसे कानून बनाने का अधिकार नहीं है।
- छठी अनुसूची का अनुच्छेद 12A राज्य विधानमंडल को कानून पारित करने का अंतिम अधिकार देता है।
- संविधान की छठी अनुसूची असम, मेघालय, त्रिपुरा और मिज़ोरम राज्यों में जनजातीय आबादी के अधिकारों की रक्षा के लिये आदिवासी क्षेत्रों के प्रशासन का प्रावधान करती है।
- यह विशेष प्रावधान संविधान के अनुच्छेद 244 (2) और अनुच्छेद 275 (1) के तहत किया गया है।
- यह स्वायत्त ज़िला परिषदों ((ADCs) के माध्यम से उन क्षेत्रों के प्रशासन को स्वायत्तता प्रदान करता है, जिन्हें अपने अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले क्षेत्रों के संबंध में कानून बनाने का अधिकार है।
प्रमुख बिंदु:
- विरासत की मातृवंशीय प्रणाली के बारे में:
- मेघालय की तीन जनजातियाँ- खासी, जयंतिया और गारो, विरासत की एक मातृवंशीय प्रणाली का अभ्यास करती हैं।
- इस प्रणाली में वंश और वंश का पता माता के वंश से चलता है।
- दूसरे शब्दों में बच्चे माँ का उपनाम लेते हैं, पति अपनी पत्नी के घर में चला जाता है और परिवार की सबसे छोटी बेटी (खतदुह) को पैतृक या कबीले की संपत्ति का पूरा हिस्सा सौंपा जाता है।
- खतदुह भूमि की "संरक्षक" बन जाती है और भूमि से जुड़ी सभी ज़िम्मेदारी लेती है, जिसमें वृद्ध माता-पिता, अविवाहित या निराश्रित भाई-बहनों की देखभाल करना शामिल है।
- यह विरासत परंपरा केवल पैतृक या कबीले/सामुदायिक संपत्ति पर लागू होती है, जो वर्षों से परिवार के साथ हैं। इसके अलावा स्व-अर्जित संपत्ति भाई-बहनों के बीच समान रूप से वितरित की जा सकती है।
- इस पारंपरिक व्यवस्था में अगर किसी दंपति की कोई बेटी नहीं है, तो संपत्ति पत्नी की बड़ी बहन और उसकी बेटियों को सौंप दी जाती है।
- यदि पत्नी की बहन नहीं है, तो आमतौर पर कबीला संपत्ति पर कब्जा कर लेता है।
- मेघालय की तीन जनजातियाँ- खासी, जयंतिया और गारो, विरासत की एक मातृवंशीय प्रणाली का अभ्यास करती हैं।
- महिला सशक्तीकरण पर इस प्रणाली का प्रभाव: महिला कार्यकर्ताओं ने अक्सर बताया है कि मेघालय में मातृवंशीय व्यवस्था शायद ही कभी महिलाओं को सशक्त बनाती है।
- संरक्षकता संबंधी समस्या : संरक्षकता को अक्सर गलत समझा जाता है क्योंकि इसमें स्वामित्व केवल एक व्यक्ति में निहित होता है, जो कि सबसे छोटी बेटी होती है।
- यह संरक्षकता वृद्ध माता-पिता, अविवाहित या निराश्रित भाई-बहनों और कबीले के अन्य सदस्यों की देखभाल करने की ज़िम्मेदारी के साथ आती है।
- इसके अलावा संरक्षक अपने मामा की अनुमति के बिना ज़मीन खरीद या बेच नहीं सकती है।
- मातृसत्तात्मक: लोग अक्सर मातृसत्तात्मक शब्द यानी जहाँ महिलाएँ प्रमुख के रूप में कार्य करती हैं, को लेकर भ्रमित होते हैं।
- जहाँ महिलाएँ प्रमुख रूप से कार्य करती हैं, वहाँ महिलाओं को गतिशीलता की स्वतंत्रता और शिक्षा तक आसान पहुँच होती है, लेकिन मेघालय में महिलाएँ निर्णय लेने की भूमिका में नहीं हैं।
- राजनीति या प्रमुख संस्थानों जैसे सत्ता के पदों पर मुश्किल से कोई महिला है।
- संरक्षकता संबंधी समस्या : संरक्षकता को अक्सर गलत समझा जाता है क्योंकि इसमें स्वामित्व केवल एक व्यक्ति में निहित होता है, जो कि सबसे छोटी बेटी होती है।
- विधेयक के बारे में:
- प्रावधान:
- प्रस्तावित विधेयक में पुरुष और महिला दोनों भाई-बहनों के बीच पैतृक संपत्ति का ‘समान वितरण करने की परिकल्पना की गई है।
- विधेयक माता-पिता को यह तय करने का अधिकार देगा कि वे अपनी संपत्ति किसके नाम करना चाहते हैं।
- यह विधेयक एक गैर-खासी से शादी, जीवनसाथी के रीति-रिवाजों तथा संस्कृति को स्वीकार करने पर भाई-बहन को पैतृक संपत्ति प्राप्त करने से रोकता है।
- कानून का उद्देश्य संपत्ति के समान वितरण के सिद्धांत पर आधारित आर्थिक सशक्तीकरण है।
- विधेयक की आवश्यकता: कुछ समूहों ने वर्षों से लागू संपत्ति विरासत की व्यवस्था का विरोध करते हुए कहा है कि यह पुरुषों को ‘विघटित’ करती है और परिवार में सभी बच्चों के बीच समान संपत्ति वितरण के लिये दबाव डालती है।
- प्रभाव: यह मातृवंशीय खासी जनजाति की विरासत की सदियों पुरानी प्रथा को संशोधित करेगा।
- प्रावधान:
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
वन्नियाकुला आरक्षण असंवैधानिक: मद्रास उच्च न्यायालय
प्रिलिम्स के लिये:आरक्षण, उच्च न्यायालय, आदर्श आचार संहिता, भारत का चुनाव आयोग मेन्स के लिये:शासन व्यवस्था में शक्ति पृथक्करण एवं संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में मद्रास उच्च न्यायालय ने तमिलनाडु विधानसभा द्वारा पारित आरक्षण विधेयक को असंवैधानिक घोषित किया है।
- इस विधेयक में शिक्षा और सार्वजनिक रोज़गार में सबसे पिछड़े वर्गों (MBC) के लिये निर्धारित 20% के भीतर वन्नियाकुला क्षत्रिय समुदाय को 10.5% आंतरिक आरक्षण प्रदान करने की परिकल्पना की गई थी।
प्रमुख बिंदु
- वन्नियाकुला क्षत्रिय आरक्षण के बारे में:
- यह आरक्षण राज्य के तहत अति पिछड़ा वर्ग और विमुक्त समुदाय अधिनियम, 2021 के लिये प्रदान किया गया था।
- इसमें वन्नियाकुला क्षत्रिय (वन्नियार, वनिया, वन्निया गौंडर, गौंडर या कंदर, पडायाची, पल्ली और अग्निकुल क्षत्रिय सहित) समुदाय को शामिल किया गया था।
- वर्ष 1983 में दूसरे तमिलनाडु पिछड़ा आयोग ने माना कि वन्नियाकुला क्षत्रियों की आबादी राज्य की कुल आबादी का 13.01% थी।
- इसलिये 13.01% की आबादी वाले समुदाय को 10.5% आरक्षण के प्रावधान को अनुपातहीन नहीं कहा जा सकता है।
- विधेयक को चुनौती देने के लिये आधार:
- फरवरी 2021 में राज्य में आदर्श आचार संहिता (MCC) लागू होने से कुछ घंटे पहले विधेयक पारित होने के कारण इसको चुनौती दी गई थी।
- इसके अलावा याचिकाकर्त्ता ने तर्क दिया कि अधिनियम राजनीति से प्रेरित था और कानून जल्दबाजी में पारित किया गया था।
- तमिलनाडु सरकार का तर्क:
- लोकतांत्रिक राजनीति में एक निर्वाचित सरकार को अपने कार्यकाल के दौरान किसी भी विधेयक को कानून बनाने की नीति बनाने की उसकी शक्ति के प्रयोग से नहीं रोका जा सकता है। राज्य सरकार के पास अंतिम समय तक जनता की राय को पूरा करने की शक्ति होती है।
- वर्ष 2020 में राज्य में जातियों, समुदायों और जनजातियों पर मात्रात्मक डेटा एकत्र करने के लिये छह महीने के भीतर सेवानिवृत्त उच्च न्यायालय के न्यायाधीश ए. कुलशेखरन की अध्यक्षता में एक आयोग की स्थापना की गई थी।
- तमिलनाडु सरकार ने माना कि आयोग ने अपने कार्यकाल की अवधि में कोई रिपोर्ट प्रस्तुत नहीं की।
- इसके अलावा राज्य सरकार ने वर्ष 2007 के एक अधिनियम का उल्लेख किया जिसके माध्यम से राज्य में पिछड़े वर्ग के मुसलमानों को अलग आरक्षण प्रदान किया गया, जिसके आधार पर भी राज्य सरकार को इस तरह के विधेयक को पारित करने का अधिकार था।
आदर्श आचार संहिता
- आदर्श आचार संहिता (MCC) निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव से पूर्व राजनीतिक दलों और उनके उम्मीदवारों के विनियमन तथा स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव सुनिश्चित करने हेतु जारी दिशा-निर्देशों का एक समूह है।
- आदर्श आचार संहिता (MCC) भारतीय संविधान के अनुच्छेद 324 के अनुरूप है, जिसके तहत निर्वाचन आयोग (EC) को संसद तथा राज्य विधानसभाओं में स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनावों की निगरानी और संचालन करने की शक्ति दी गई है।
- नियमों के मुताबिक, आदर्श आचार संहिता उस तारीख से लागू हो जाती है जब निर्वाचन आयोग द्वारा चुनाव की घोषणा की जाती है और यह चुनाव परिणाम घोषित होने की तारीख तक लागू रहती है।
- विकास:
- आदर्श आचार संहिता की शुरुआत सर्वप्रथम वर्ष 1960 में केरल विधानसभा चुनाव के दौरान हुई थी, जब राज्य प्रशासन ने राजनीतिक भागीदारों के लिये एक ‘आचार संहिता' तैयार की थी।
- इसके पश्चात् वर्ष 1962 के लोकसभा चुनाव में निर्वाचन आयोग (EC) ने सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों और राज्य सरकारों को फीडबैक के लिये आचार संहिता का एक प्रारूप भेजा, जिसके बाद से देश भर के सभी राजनीतिक दलों द्वारा इसका पालन किया जा रहा है।
चुनाव के लिये संवैधानिक प्रावधान
- भारतीय संविधान का भाग XV चुनावों से संबंधित है और इन मामलों के लिये एक आयोग की स्थापना करता है।
- चुनाव आयोग की स्थापना संविधान के अनुसार 25 जनवरी, 1950 को हुई थी।
- संविधान का अनुच्छेद 324 से 329 आयोग और सदस्यों की शक्तियों, कार्य, कार्यकाल, पात्रता आदि से संबंधित है।
चुनाव से संबंधित अनुच्छेद |
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324 |
चुनाव का अधीक्षण, निर्देशन और नियंत्रण चुनाव आयोग में निहित होना। |
325 |
किसी भी व्यक्ति द्वारा धर्म, मूलवंश, जाति या लिंग के आधार पर किसी विशेष मतदाता सूची में शामिल होने या शामिल होने का दावा करना। |
326 |
लोकसभा और राज्यों की विधानसभाओं के चुनाव वयस्क मताधिकार के आधार पर होंगे। |
327 |
विधानमंडलों के चुनावों के संबंध में प्रावधान करने की संसद की शक्ति। |
328 |
ऐसे विधानमंडल के चुनावों के संबंध में प्रावधान करने के लिये राज्य के विधानमंडल की शक्ति। |
329 |
चुनावी मामलों में न्यायालयों के हस्तक्षेप पर रोक। |
स्रोत: द हिंदू
प्रोजेक्ट-15बी श्रेणी विध्वंसक युद्धपोत : विशाखापत्तनम
प्रिलिम्स के लिये:ब्रह्मोस, प्रोजेक्ट-15 बी, एक्सक्लूसिव इकोनॉमिक ज़ोन मेन्स के लिये:भारत का विध्वंसक/डेस्ट्रॉयर निर्माण कार्यक्रम |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में प्रोजेक्ट-15बी के चार अत्याधुनिक स्टील्थ गाइडेड मिसाइल विध्वंसक यानी 'Y12704 (विशाखापत्तनम)' का पहला युद्धपोत नौसेना को सौंप दिया गया।
- इस युद्धपोत का निर्माण स्वदेशी स्टील DMR 249A का उपयोग करके किया गया है और यह भारत में निर्मित सबसे बड़े विध्वंसकों में से एक है।
प्रमुख बिंदु
- भारत का विध्वंसक/डेस्ट्रॉयर निर्माण कार्यक्रम:
- भारत का स्वदेशी विध्वंसक निर्माण कार्यक्रम वर्ष 1990 के दशक के अंत में तीन दिल्ली श्रेणी (P-15 वर्ग) के युद्धपोतों के साथ शुरू हुआ और इसके बाद एक दशक बाद तीन कोलकाता श्रेणी (P-15A) विध्वंसक इसमें शामिल किये गए।
- वर्तमान में P-15B (विशाखापत्तनम श्रेणी) के तहत कुल चार युद्धपोतों (विशाखापत्तनम, मोरमुगाओ, इंफाल, सूरत) की योजना बनाई गई है।
- ईनकी पहुँच और क्षमता के मामले में विध्वंसक का क्रम केवल एक विमान वाहक (आईएनएस विक्रमादित्य) के बाद आता है।
- प्रोजेक्ट-15बी:
- मेसर्स मझगाँव डॉक शिपबिल्डर्स लिमिटेड, मुंबई में प्रोजेक्ट 15बी (P 15B) के चार गाइडेड मिसाइल डेस्ट्रॉयर निर्माणाधीन हैं। इन चार जहाज़ों के निर्माण का अनुबंध वर्ष 2011 में हुआ था।
- ये जहाज़ अत्याधुनिक हथियार/सेंसर पैकेज, उन्नत स्टील्थ सुविधाओं और उच्च स्तर के स्वचालन के साथ दुनिया के अधिक तकनीकी रूप से विकसित स्टेल्थ गाइडेड मिसाइल डेस्ट्रॉयर हैं।
- P-15B युद्धपोतों की विशेषताएँ:
- ये जहाज़ ब्रह्मोस सुपरसोनिक क्रूज़ मिसाइलों और लंबी दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल (SAM) से लैस हैं।
- जहाज़ में मध्यम दूरी की सतह से हवा में मार करने वाली मिसाइल (SAM), स्वदेशी टारपीडो ट्यूब लॉन्चर, पनडुब्बी रोधी स्वदेशी रॉकेट लॉन्चर और 76 मिमी सुपर रैपिड गन माउंट जैसी कई स्वदेशी हथियार प्रणालियाँ हैं।
- ‘प्रोजेक्ट-15B’ के अन्य तीन पोत:
- ‘प्रोजेक्ट 15B’ का दूसरा जहाज़- ‘मुरगाँव’ को वर्ष 2016 में लॉन्च किया गया था और इसे बंदरगाह परीक्षणों के लिये तैयार किया जा रहा है।
- इसके तहत तीसरा जहाज़ (इंफाल) वर्ष 2019 में लॉन्च हुआ था और यह अपने निर्माण के एडवांस चरण में है।
- चौथा जहाज़ (सूरत) ब्लॉक इरेक्शन प्रक्रिया के तहत है और इसे मौजूदा वित्तीय वर्ष (2022) के भीतर लॉन्च किया जाएगा।
- ‘प्रोजेक्ट-15B’ की भूमिका:
- वर्तमान भू-राजनीतिक परिदृश्य में 2.01 मिलियन वर्ग किलोमीटर ‘विशिष्ट आर्थिक क्षेत्र’ (EEZ) के साथ 7516 किलोमीटर लंबी तटरेखा और लगभग 1100 अपतटीय द्वीपों की सुरक्षा के लिये भारतीय नौसेना काफी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा रही है।
- ‘P-15B’ श्रेणी जैसे विध्वंसक जहाज़ हिंद-प्रशांत के बड़े महासागरों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जिससे भारतीय नौसेना को एक महत्त्वपूर्ण शक्ति बनने में मदद मिलेगी।
- इसमें हवा, सतह या जल के नीचे मौजूद किसी भी प्रकार के खतरे से नौसेना के बेड़े की रक्षा के लिये गाइडेड मिसाइल डिस्ट्रॉयर्स की भी तैनाती की गई है।
- अन्य हालिया परियोजनाएँ:
- प्रोजेक्ट-75 (I): इसमें अत्याधुनिक एयर इंडिपेंडेंट प्रोपल्शन सिस्टम से लैस पनडुब्बियों के स्वदेशी निर्माण की परिकल्पना की गई है, जिसकी अनुमानित लागत 43,000 करोड़ रुपए है।
- प्रोजेक्ट-75: यह भारतीय नौसेना का एक कार्यक्रम है जिसमें छह स्कॉर्पीन-क्लास अटैक पनडुब्बियों का निर्माण शामिल है। यह कार्यक्रम मझगाँव डॉक लिमिटेड (MDL) में फ्राँसीसी कंपनी ‘नेवल ग्रुप’ (जिसे पहले DCNS के नाम से जाना जाता था) से प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण के साथ शुरू किया गया है।