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भारतीय राजनीति

‘व्हिसल-ब्लोअर’ से ‘व्हिसल’ छिनने की कवायद

  • 01 Aug 2017
  • 9 min read

संदर्भ

  • वर्ष 2003 में सत्येंद्र कुमार दूबे को दर्दनाक मौत मारा गया, श्री दुबे एक व्हिसल-ब्लोअर  थे। दरअसल, व्हिसल-ब्लोअर  वह होता है, जो भ्रष्टाचार तथा अन्य अनैतिक कार्यों का खुलासा करता है।
  • ‘भारतीय इंजीनियरिंग सेवा’ के अधिकारी सत्येंद्र दूबे ‘नेशनल हाईवेज़ अथॉरिटी ऑफ इंडिया” (एनएचएआई) में प्रोजेक्ट डायरेक्टर थे और उन्होंने एनएचएआई में होने वाले भ्रष्टाचार को उजागर करते हुए प्रधानमंत्री कार्यालय को एक पत्र लिखा था।
  • भ्रष्टाचार का खुलासा करने वालों की सुरक्षा के लिये संप्रग सरकार ने 2011 में व्हिसल-ब्लोअर  संरक्षण विधेयक पेश किया था जो लोकसभा ने तो उसी वर्ष पारित कर दिया था, लेकिन राज्यसभा ने काफी जद्दोजहद के बाद 2014 में पारित किया था।
  • राजग सरकार के सत्ता में आने के बाद 2015 में इस अधिनियम में संशोधन करने के लिये एक विधेयक लाया गया, जो लोकसभा में तो पारित हो गया, लेकिन राज्यसभा में अभी तक लंबित है।
  • विदित हो कि पिछले तीन वर्षों में 15 व्हिसल-ब्लोवर्स को मौत के घाट उतारा जा चुका है। ऐसे वक्त में व्हिसल-ब्लोअर  सरंक्षण अधिनियम को तत्काल लागू किया जाना चाहिये था, लेकिन इसमें लाए गए संशोधन चिंतित करने वाले हैं।

क्यों अवांछनीय है यह संशोधन ?

  • विदित हो कि इस अधिनियम में व्हिसल-ब्लोवर्स को ‘आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम’ के अंतर्गत अभियोजन से सुरक्षा का प्रावधान किया गया था, लेकिन प्रस्तावित संशोधन के माध्यम से व्हिसल-ब्लोवर्स को इससे वंचित कर दिया जाएगा।
  • यानी यदि कोई सरकारी अधिकारी अपने विभागीय भ्रष्टाचार को उजागर करता है तो हो सकता है कि उसे ‘आधिकारिक गोपनीयता अधिनियम’ के प्रावधानों के उल्लंघन के मामले में जेल की हवा खानी पड़े।
  • इस संशोधन के द्वारा सरकार राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दों को व्हिसिल ब्लोवर्स प्रोटेक्टशन एक्ट के दायरे से बाहर रखना चाहती है, जैसा कि आरटीआई एक्ट में किया गया है।
  • दरअसल, सरकार कानून में संशोधन कर देश की संप्रभुता और अखंडता से संबंधित जानकारियों को इसके दायरे से बाहर करना चाहती है। अब सवाल यह है कि आखिर भ्रष्टाचार के मामले उजागर होने से राष्ट्र की अखंडता और सुरक्षा को किस तरह से खतरा हो सकता है?
  • विदित हो कि संशोधन के माध्यम से एक ऐसी व्यवस्था के निर्माण का प्रयास किया जा रहा है, जिसमें व्हिसल-ब्लोअर यदि किसी अमुक विभाग से संबंधित भ्रष्टाचार को उजागर करना चाहता है तो उसे पहले आरटीआई के तहत उस विभाग से संबंधित जानकारियाँ जुटानी होंगी। इसका प्रभाव यह होगा कि दो भिन्न उद्देश्यों वाले कानून  अव्यवहारिक ढंग से एक-दूसरे से उलझ सकते हैं।

आगे की राह

  • दरअसल, आरटीआई अधिनियम और व्हिसल-ब्लोअर एक्ट दोनों के ही अलग-अलग उद्देश्य हैं। आरटीआई का उद्देश्य जहाँ लोगों को जानकारियाँ उपलब्ध कराना है, वहीं व्हिसल-ब्लोअर सरंक्षण अधिनियम का उद्देश्य भ्रष्टाचार का खुलासा करना और खुलासा करने वालों को सुरक्षा प्रदान करना है।
  • हालाँकि दोनों की ही प्रशासन में पारदर्शिता सुनिश्चित करने में अहम भूमिका है। इन दोनों कानूनों को एक-दूसरे से उलझाना उचित नहीं होगा। 
  • यदि इस कानून में संशोधन करना ही है, तो होना यह चाहिये था कि इस कानून की संस्थागत संरचना पर विचार हो। यह सोचना चाहिये कि आरटीआई कानून के लिये तो केंद्रीय सूचना आयोग के साथ राज्य सूचना आयोग भी है।
  • उपभोक्ता अधिकारों की रक्षा के लिये तो ज़िला स्तर तक आयोग गठित किये गए हैं। फिर भ्रष्टाचार जैसी संवेदनशील समस्या से निपटने के लिये सिर्फ सीवीसी ही क्यों है?
  • यदि संशोधन का उद्देश्य यह है कि राष्ट्रीय सुरक्षा और अखंडता से संबंधित संवेदनशील जानकारियों को उजागर होने से बचाया जाए तो इसके लिये सुरक्षा के अन्य उपाय किये जा सकते थे जैसे कि संवेदनशील जानकारियों को सीलबंद लिफाफे में भेजना, इत्यादि।

निष्कर्ष

  • सत्येंद्र दूबे को बिहार में गया के एक सर्किट हाउस में गोली मार दी गई थी। उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को सीधे पत्र लिखकर एनएचएआई में भ्रष्टाचार के संबंध में जानकारी दी थी, कहा जाता है कि पीएमओ से ही इस शिकायत की जानकारी लीक की गई थी।
  • कुछ इसी तरह इंडियन ऑयल कॉरपोरेशन में व्याप्त भ्रष्टाचार को सामने लाने वाले आईओसी के अधिकारी मंजूनाथ की भी हत्या कर दी गई। मंजू आईआईएम लखनऊ के पूर्व छात्र थे।
  • ध्यातव्य है कि आरटीआई कानून 2005 में लागू हुआ था और तब से अब तक कई आरटीआई कार्यकर्त्ताओं की हत्या हो चुकी है। आज यह एक आम राय बन गई है कि जो भी भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज़ उठाएगा, उसे अपनी जान से हाथ धोना होगा।
  • व्हिसल-ब्लोअर एक्ट में सरकारी धन के दुरुपयोग और सरकारी संस्थाओं में हो रहे घोटालों की जानकारी देने वाले व्यक्ति यानी भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल बजाने वाले को व्हिसल-ब्लोअर  माना गया है।
  • इसमें में केंद्रीय सतर्कता आयोग (सीवीसी) को अतिरिक्त अधिकार दिये गए हैं। सीवीसी को दीवानी अदालत जैसी शक्तियाँ भी देने की बात कही गई है। सीवीसी भ्रष्टाचार के विरुद्ध आवाज़ उठाने वालों के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्रवाई रोक सकता है। इस विधेयक के दायरे में केंद्र सरकार, राज्य सरकार और सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारी भी शामिल हैं।
  • व्हिसल-ब्लोअर विधेयक पर राष्ट्रपति द्वारा 9 मई, 2014 को हस्ताक्षर किये जाने के बावजूद सरकार अब तक इसे क़ानून के तौर पर लागू नहीं कर पाई है।
  • सवाल है कि इतने साल बीतने के बाद भी इस बहुप्रतिक्षित कानून को (पारित किये जाने के बाद भी) लागू क्यों नहीं किया गया, जबकि पिछले कई सालों से पूरे देश के सामाजिक कार्यकर्त्ता सरकार से मांग करते रहे हैं कि भ्रष्टाचार के खिलाफ बिगुल बजाने वाले लोगों को सुरक्षा मुहैया कराई जाए।
  • इस कानून को लागू करने की बजाय मौजूदा केंद्र सरकार ने इसमें संशोधन किया और इसे आनन-फानन में लोकसभा से पारित भी करवा लिया, उल्लेखनीय है कि वर्तमान संसद सत्र में राज्यसभा इस विधेयक पर विचार करेगी।
  • उच्च सदन से यह उम्मीद की जानी चाहिये कि वह उपरोक्त चिंताओं का संज्ञान लेते हुए आवश्यक कदम उठाएगी अन्यथा व्हिसल-ब्लोवर्स से उसका व्हिसल ही छीन जाएगा।
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