विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी
पॉज़िट्रॉन: इलेक्ट्रॉन का प्रतिरूपी प्रतिद्रव्य
चर्चा में क्यों?
बंगलूरू स्थित रमन रिसर्च इंस्टीट्यूट (RRI) के शोधकर्त्ताओं ने इलेक्ट्रॉनों के प्रतिरूपी प्रतिद्रव्य ‘पॉज़िट्रॉन’ और ‘पॉज़िट्रॉन एक्सेशन फिनोमिना’ के रहस्य को सुलझाने में सफलता हासिल की है।
- RRI विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग की एक स्वायत्त संस्था है।
प्रतिद्रव्य:
- प्रतिद्रव्य, सामान्य पदार्थ के विपरीत होता है। प्रतिद्रव्य के उप-परमाणु कणों में सामान्य पदार्थ के विपरीत गुण होते हैं।
- पदार्थ परमाणुओं से बना होता है, जो कि हाइड्रोजन, हीलियम या ऑक्सीजन जैसे रासायनिक तत्त्वों की मूल इकाइयाँ हैं।
- परमाणु, पदार्थ की मूल इकाइयाँ और तत्त्वों की परिभाषित संरचना होती है। परमाणु तीन कणों से मिलकर बने होते हैं:
- प्रोटॉन, न्यूट्रॉन और इलेक्ट्रॉन।
पॉज़िट्रॉन:
- इसका द्रव्यमान इलेक्ट्रॉन के समान होता है, किंतु दोनो में अंतर यह है कि इलेक्ट्रॉन ऋण आवेश युक्त कण है तथा पॉजिट्रॉन धन आवेश युक्त कण है। पॉज़िट्रॉन की खोज वर्ष 1932 में हुई थी।
प्रमुख बिंदु:
पॉज़िट्रॉन की अधिकता:
- इलेक्ट्रॉनों के इस प्रतिरूपी प्रतिद्रव्य उच्च ऊर्जा कणों की अधिक संख्या, जिन्हें पॉज़िट्रॉन कहा जाता है, ने लंबे समय तक वैज्ञानिकों को भ्रमित किया है।
- पिछले कुछ वर्षों में खगोलविदों ने 10 गीगा-इलेक्ट्रॉन वोल्ट या 10 GeV से अधिक की ऊर्जा वाले पॉज़िट्रॉन का अवलोकन किया है।
- एक अनुमान के अनुसार, यह धनात्मक रूप से आवेशित 10,000,000,000 वोल्ट की बैटरी के बराबर इलेक्ट्रॉन की ऊर्जा है। हालाँकि, 300 से अधिक GeV ऊर्जा वाले पॉज़िट्रॉनों की संख्या खगोलविदों की अपेक्षा के विपरीत कम है।
- 10 और 300 GeV की ऊर्जा के बीच पॉज़िट्रॉन के इस व्यवहार को खगोलविद 'पॉज़िट्रॉन की अधिकता' कहते हैं।
RRI का अध्ययन:
- ‘मिल्की वे’ में आणविक हाइड्रोजन से निर्मित विशाल बादल होते हैं, जो कि नए तारों के गठन का स्थान होते हैं और सूर्य के द्रव्यमान से 10 मिलियन गुना तक बड़े हो सकते हैं।
- वे 600 प्रकाश-वर्ष तक अपना विस्तार कर सकते हैं।
- सुपरनोवा विस्फोटों में उत्पन्न होने वाली कॉस्मिक किरणें पृथ्वी तक पहुँचने से पहले इन बादलों के माध्यम से प्रसारित होती हैं। कॉस्मिक किरणें आणविक हाइड्रोजन के साथ क्रिया करती हैं और अन्य कॉस्मिक किरणें उत्पन्न कर सकती हैं।
- इन बादलों के माध्यम से प्रसारित होने के दौरान वे अपने मूल रूप से परिवर्तित होकर धीरे-धीरे इन बादलों को अपनी ऊर्जा प्रदान करके स्वयं की ऊर्जा खो देती हैं, हालाँकि ये दोबारा भी सक्रिय हो सकती हैं।
- RRI ने सार्वजनिक रूप से उपलब्ध कंप्यूटर कोड का उपयोग करते इन सभी खगोल भौतिकी प्रक्रियाओं का अध्ययन किया।
RRIs कोड:
- इस कोड के माध्यम से ‘मिल्की वे’ में उपस्थित 1638 आणविक हाइड्रोजन बादलों पर अनुसंधान किया गया, जिन्हें अन्य खगोलविदों द्वारा विद्युत चुंबकीय स्पेक्ट्रम के विभिन्न तरंगदैर्ध्य पर अवलोकित किया था।
- RRI ने एक व्यापक सूची का अनुसरण किया, जिसमें हमारे सूर्य के करीब स्थित दस आणविक बादल शामिल हैं।
- यह खगोलविदों को गीगा-इलेक्ट्रॉन वोल्ट कॉस्मिक किरणों की संख्या के रूप में एक महत्त्वपूर्ण सूचना प्रदान करता है।
- यह उन्हें पृथ्वी तक पहुँचने वाले पॉज़िट्रॉन की अधिक संख्या निर्धारित करने में मदद करते हैं।
- कंप्यूटर कोड गीगा-इलेक्ट्रॉन वोल्ट ऊर्जा पर पॉज़िट्रॉन की देखी गई संख्या को पुन: सफलतापूर्वक उत्पन्न करने में सक्षम था।
- यह कंप्यूटर कोड न केवल ‘पॉज़िट्रॉन की अधिकता’ बल्कि प्रोटॉन, एंटीप्रोटोन, बोरॉन, कार्बन और कॉस्मिक किरणों के अन्य सभी घटकों के स्पेक्ट्रा को सटीक ढंग से पुन: प्रस्तुत करता है।
RRI का प्रस्ताव:
- कॉस्मिक किरणें ‘मिल्की वे’ आकाशगंगा के माध्यम से प्रसार करते समय द्रव्यों से क्रिया करते हुए अन्य कॉस्मिक किरणों का उत्पादन करती हैं।
- सभी तंत्र, जिनके माध्यम से ब्रह्मांडीय किरणें आणविक बादलों के साथ क्रिया करती हैं, यह दर्शाते हैं कि आणविक बादल ‘पॉज़िट्रॉन एक्सेशन फिनोमिना’ के रहस्य को सुलझाने में योगदान दे सकते हैं।
कॉस्मिक किरणें:
- कॉस्मिक किरणें उच्च ऊर्जा वाले कण होते हैं, जो अंतरिक्ष के बाह्य भाग में उत्पन्न होती हैं। इनकी गति लगभग प्रकाश की गति के समान होती है और ये पृथ्वी के चारों तरफ पाई जाती हैं। इनकी खोज वर्ष 1912 में हुई थी।
प्रकाश वर्ष:
- प्रकाश-वर्ष खगोलीय दूरी को व्यक्त करने के लिये प्रयोग की जाने वाली लंबाई की एक इकाई है और लगभग 9.46 ट्रिलियन किलोमीटर के बराबर है।
- अंतर्राष्ट्रीय खगोलीय संघ की परिभाषित के अनुसार, एक प्रकाश-वर्ष वह दूरी है जो प्रकाश एक जूलियन वर्ष में पूरा कर लेता है।
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
वंदे भारत मिशन : एक शीर्ष नागरिक बचाव अभियान
चर्चा में क्यों?
कोविड-19 महामारी के मद्देनज़र मई 2020 में लाॅकडाउन जैसी स्थिति के कारण विदेश में फँसे भारतीय नागरिकों को वापस लाने के लिये शुरू किया गया वंदे भारत मिशन (Vande Bharat Mission) किसी देश द्वारा अपने नागरिकों को वापस लाने की सबसे बड़ी पहलों में से एक बन गया है।
प्रमुख बिंदु:
वंदे भारत मिशन (VBM):
- कोरोना वायरस के कारण वैश्विक यात्रा पर प्रतिबंध होने से विदेश में फँसे भारतीय नागरिकों को वापस लाने हेतु यह अब तक का सबसे बड़ा नागरिक निकासी अभियान है।
- इस अभियान ने वर्ष 1990 में खाड़ी युद्ध के दौरान कुवैत से 1,77,000 लोगों को वापस भारत लाने के अभियान को भी पीछे छोड़ दिया है।
- यह मिशन अपने 10वें चरण से गुज़र रहा है और इसके तहत अब तक लगभग 32 लाख यात्रियों को सुरक्षित घर पहुँचाया गया है।
- राष्ट्रीय वाहक एयर इंडिया ने अपनी अनुषांगिक इकाई एयर इंडिया एक्सप्रेस के साथ मिलकर व्यापक तौर पर इस मिशन का समर्थन किया और नागरिकों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाया।
- एयर इंडिया एक्सप्रेस (AIE) ने पश्चिम एशियाई देशों, सिंगापुर और कुआलालंपुर (मलेशिया) के लिये कृषि उपज, मुख्य रूप से फलों और सब्जियों को लाने हेतु भी अपने बेड़े का उपयोग किया।
- इसके अतिरिक्त इस मिशन का उद्देश्य संकटग्रस्त ग्रामीण किसानों और अप्रवासी भारतीयों की मदद करना और आपूर्ति शृंखला को बरकरार रखना भी है।
- इस मिशन के तहत 93 से अधिक देशों के प्रवासी भारतीयों ने प्रत्यावर्तन की सुविधा प्राप्त की है, वहीं सरकार ने अब तक 18 विभिन्न देशों के साथ विशेष हवाई यात्रा की व्यवस्था भी की है, जिसे ‘परिवहन बबल्स’ (Bubbles) के नाम से जाना जाता है।
- परिवहन बबल्स ( bubbles) या हवाई यात्रा की व्यवस्था दो देशों के बीच अस्थायी व्यवस्था है, जिसका उद्देश्य वाणिज्यिक यात्री सेवाओं को फिर से शुरू करना है, विशेष तौर पर जब कोविड-19 महामारी के परिणामस्वरूप नियमित अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों को निलंबित कर दिया गया हो।
- यह दोनों देशों के वाहक या यात्री उड़ानों को बिना किसी प्रतिबंध के उड़ान की अनुमति देता है।
- पारस्परिक रूप से द्विपक्षीय समझौते का उद्देश्य दोनों देशों की एयरलाइनों को तेज़ी से प्रत्यावर्तन के साथ लाभांवित करना है।
- भारत समेत विभिन्न देशों में कोविड -19 के तात्कालिक बढ़ते मामलों के कारण कई वंदे भारत मिशन उड़ानों में देरी देखने को मिली है।
अन्य नागरिक बचाव मिशन:
- खाड़ी देशों से निकासी (1990-91):
- वंदे भारत मिशन से पूर्व वर्ष 1990 में खाड़ी युद्ध के दौरान कुवैत से भारतीय नागरिको को वापस लाना अब तक का सबसे बड़ा निकासी अभियान था।
- खाड़ी युद्ध के दौरान लगभग 1,77,000 भारतीय फँसे हुए थे। उस समय, एयर इंडिया ने दो महीनों में लगभग 500 उड़ानें संचालित की थीं।
- ऑपरेशन राहत:
- वर्ष 2015 के यमन संकट के दौरान भारतीय सशस्त्र बल द्वारा शुरू किये गए ऑपरेशन राहत के अंतर्गत यमन से 41 देशों के 960 विदेशी नागरिकों के साथ 4640 से अधिक भारतीय नागरिकों को निकाला गया था।
- यह अभियान वायु मार्ग और समुद्र मार्ग दोनों से संचालित किया गया था।
- ऑपरेशन मैत्री:
- वर्ष 2015 में नेपाल में आए भूकंप में बचाव और राहत अभियान के रूप में ऑपरेशन मैत्री का संचालन भारत सरकार और भारतीय सशस्त्र बलों द्वारा किया गया था।
- भारतीय सशस्त्र बलों ने लगभग 5,188 लोगों को निकाला था, जबकि लगभग 785 विदेशी पर्यटकों को पारगमन वीज़ा प्रदान किया गया था।
- ऑपरेशन सुरक्षित घर वापसी:
- इसे भारत सरकार ने 26 फरवरी, 2011 को लीबियाई गृहयुद्ध में फंसे भारतीय नागरिकों को निकालने के लिये शुरू किया था।
- भारतीय नौसेना और एयर इंडिया द्वारा वायु मार्ग और समुद्र मार्ग दोनों का संचालन किया गया था। ऑपरेशन में लगभग 15,000 नागरिकों को बचाया गया था।
- ऑपरेशन सुकून:
- यह अभियान भारतीय नौसेना द्वारा लेबनान युद्ध (2006) के दौरान लेबनान में फँसे भारत, श्रीलंका और नेपाल के नागरिकों की सुरक्षित वापसी के लिये चलाया गया था।
- यह भारतीय नौसेना द्वारा किये गए सबसे बड़े बचाव अभियानों में से एक था, जिसमें कुल 2,280 लोगों को बचाया गया था।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
दिल्ली में वायु प्रदूषण
चर्चा में क्यों?
सफर (SAFAR- System of Air Quality and Weather Forecasting and Research) प्रणाली के अनुसार, हाल ही में दिल्ली की वायु गुणवत्ता 'मध्यम' से 'खराब' और 'बहुत खराब' स्तर पर पहुँच गई है।
प्रमुख बिंदु
खराब होते वायु गुणवत्ता के कारण:
- दिल्ली की हवा आमतौर पर अक्तूबर-नवंबर माह में प्रदूषित और मार्च-अप्रैल माह तक साफ हो जाती है। वर्तमान मौसम की स्थिति सर्दियों के विपरीत प्रतिकूल नहीं है।
- सर्दियों के दौरान ठंडा और स्थिर मौसम विशेष रूप से इंडो-गंगा के मैदान में स्थित उत्तर भारतीय शहरों में दैनिक प्रदूषण फैलता है।
- स्थानीय उत्सर्जन के अलावा हवा की गुणवत्ता में गिरावट का प्रमुख कारण उत्तर भारत में पराली जलाने की घटनाओं में वृद्धि को भी माना जा रहा है।
- दिल्ली में वायु प्रदूषण के प्रमुख कारण:
- शहर की लैंडलॉक भौगोलिक स्थिति।
- पड़ोसी राज्यों (पंजाब, हरियाणा और राजस्थान) में पराली जलाने की घटनाएँ।
- वाहन उत्सर्जन।
- औद्योगिक प्रदूषण।
- बड़े पैमाने पर निर्माण गतिविधियाँ।
चिंताएँ:
- कोविड-19 के मामलों और इससे होने वाली मौतों की बढ़ती संख्या के बीच हवा की गुणवत्ता का खराब होना चिंताजनक है।
- दिल्ली को विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट (World Air Quality report), 2020 में 10वें सबसे प्रदूषित शहर और विश्व के शीर्ष प्रदूषित राजधानी शहर के रूप में सूचीबद्ध किया गया है।
- हालाँकि, दिल्ली की वायु गुणवत्ता में वर्ष 2019 से वर्ष 2020 के बीच लगभग 15% का सुधार दर्ज किया गया है।
- ग्रीनपीस (गैर-सरकारी संगठन) ने जुलाई, 2020 में किये गए अपने एक अध्ययन में पाया था कि दिल्ली को सख्त लॉकडाउन के बावजूद 28 वैश्विक शहरों में वायु प्रदूषण से सबसे अधिक आर्थिक नुकसान हुआ था और वर्ष 2020 की पहली छमाही में इसके कारण 24,000 लोगों की मृत्यु हुई थी।
- ग्लोबल स्टेट ऑफ ग्लोबल एयर, 2020 के मुताबिक, भारत में वर्ष 2019 में बाह्य और घरेलू (इनडोर) वायु प्रदूषण के कारण स्ट्रोक, दिल का दौरा, मधुमेह, फेफड़ों के कैंसर, फेफड़ों के पुराने रोगों और नवजात रोगों से 1.67 मिलियन से अधिक लोगों की मृत्यु हुई थी।
उठाये गए प्रमुख कदम:
- सरकार टर्बो हैप्पी सीडर (Turbo Happy Seeder-THS) खरीदने के लिये किसानों को सब्सिडी दे रही है, यह ट्रैक्टर के साथ लगाई जाने वाली एक प्रकार की मशीन होती है, जो पेड़ों की ठूँठ को उखाड़ फेंकती है।
- BS-VI वाहनों की शुरूआत, इलेक्ट्रिक वाहनों (EV) के लिये प्रोत्साहन, एक आपातकालीन उपाय के रूप में ऑड-ईवन और वाहनों को प्रदूषण कम करने के लिये पूर्वी और पश्चिमी परिधीय एक्सप्रेसवे का निर्माण।
- ग्रेडेड रेस्पांस एक्शन प्लान (Graded Response Action Plan) का कार्यान्वयन। इस आपातकालीन योजना के तहत शहर की वायु गुणवत्ता के आधार पर कड़े कदम उठाए जाते हैं।
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board) के तत्वावधान में सार्वजनिक सूचना के लिये राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता सूचकांक (National Air Quality Index) का विकास।
‘वायु गुणवत्ता और मौसम पूर्वानुमान तथा अनुसंधान प्रणाली’- सफर
- यह पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय (Ministry of Earth Science) द्वारा महानगरों के किसी स्थान-विशिष्ट के समग्र प्रदूषण स्तर और वायु गुणवत्ता को मापने के लिये शुरू की गई एक राष्ट्रीय पहल है।
- यह भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान (Indian Institute of Tropical Meteorology- IITM) पुणे द्वारा निर्मित एक स्वदेशी प्रणाली है, जिसका संचालन भारत मौसम विभाग (India Meteorological Department-IMD) द्वारा किया जाता है।
- इस परियोजना का अंतिम उद्देश्य आम जनता के बीच अपने शहर में वायु गुणवत्ता के बारे में जागरूकता बढ़ाना है, ताकि उचित शमन उपाय और व्यवस्थित कार्रवाई की जा सके।
- सफर, दिल्ली में भारत की पहली वायु गुणवत्ता आरंभिक चेतावनी प्रणाली (Air Quality Early Warning System) का एक अभिन्न अंग है।
- यह मौसम के सभी मापदंडों जैसे- तापमान, वर्षा, आर्द्रता, हवा की गति एवं दिशा, पराबैंगनी किरणों और सौर विकिरण आदि की निगरानी करता है।
- निगरानी किये जाने वाले प्रदूषक: पीएम2.5, पीएम10, ओज़ोन, कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx), सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), बेंज़ीन, टोल्यूनि, ज़ाइलीन और मरकरी।
आगे की राह
- धान के विपरीत गेहूँ के पराली को कम जलाया जाता है, क्योंकि इसके ठूँठ का प्रबंधन तुलनात्मक रूप से आसान है और इसके भूसे का किसानों द्वारा पशु आहार के रूप में इस्तेमाल कर लिया जाता है।
- अतः दिल्ली को वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिये पराली जलाने की घटनाओं पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय स्थानीय उत्सर्जन को देखना चाहिये।
- स्वच्छ वायु में साँस लेना प्रत्येक भारतीय नागरिक का मौलिक अधिकार है। इसलिये वायु प्रदूषण से निपटने के लिये मानव स्वास्थ्य को प्राथमिकता देनी चाहिये।
स्रोत: डाउन टू अर्थ
सामाजिक न्याय
अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस
चर्चा में क्यों?
प्रत्येक वर्ष विश्व के कई हिस्सों में 1 मई को ‘मई दिवस’ (May Day) अथवा ‘अंतर्राष्ट्रीय श्रमिक दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
- यह दिवस नए समाज के निर्माण में श्रमिक और श्रमिकों के योगदान के रूप में मनाया जाता है।
- अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) संयुक्त राष्ट्र की एक एजेंसी है जो अंतर्राष्ट्रीय श्रम मानकों को स्थापित करने की दिशा में काम करती है।
प्रमुख बिंदु
इतिहास और महत्त्व:
- संयुक्त राज्य अमेरिका:
- 19वीं शताब्दी में अमेरिका के ऐतिहासिक श्रमिक संघ आंदोलन में श्रमिक दिवस को मान्यता मिली।
- हालाँकि अमेरिका और कनाडा में श्रमिक दिवस प्रत्येक वर्ष सितंबर माह के पहले सोमवार को मनाया जाता है।
- सर्वप्रथम वर्ष 1889 में समाजवादी समूहों और ट्रेड यूनियनों के एक अंतर्राष्ट्रीय महासंघ ने शिकागो में हुई ‘हे मार्केट’ (Haymarket, 1886) घटना को याद करते हुए श्रमिकों के समर्थन में 1 मई को ‘मई दिवस’ के रूप में नामित किया था।
- हे मार्केट घटना श्रमिकों के समर्थन में एक शांतिपूर्ण रैली थी जिसमें पुलिस के साथ हिंसक झड़प हुई, जिसमें कई लोगों की मृत्यु हुई और कुछ लोग गंभीर रुप से घायल हुए। जिन लोगों की इस झड़प में मृत्यु हुई उन्हें "हे मार्केट शहीदों" के रूप में सम्मानित किया गया।
- कई आंदोलनकारी, जो श्रमिकों के अधिकारों के उल्लंघन का विरोध कर रहे थे तथा काम के घंटे कम करने एवं अधिक मज़दूरी की मांग कर रहे थे उन्हें गिरफ्तार किया गया और आजीवन कारावास अथवा मौत की सजा दी गई।
- 19वीं शताब्दी में अमेरिका के ऐतिहासिक श्रमिक संघ आंदोलन में श्रमिक दिवस को मान्यता मिली।
- यूरोप:
- जुलाई 1889 में यूरोप में पहली ‘इंटरनेशनल कॉन्ग्रेस ऑफ़ सोशलिस्ट पार्टीज़’ द्वारा एक प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें यह ऐलान किया गया कि 1 मई को अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस/मई दिवस के रूप मनाया जाएगा। इसके बाद 1 मई, 1890 को पहला मई दिवस मनाया गया था।
- यूएसएसआर (USSR):
- रूसी क्रांति, 1917 के पश्चात् सोवियत संघ और पूर्वी ब्लॉक राष्ट्रों ने मज़दूर दिवस मनाना शुरू किया।
- मार्क्सवाद और समाजवाद जैसी नई विचारधाराओं ने कई समाजवादी और कम्युनिस्ट समूहों को प्रेरित किया और किसानों, श्रमिकों से संबंधित मुद्दों की तरफ ध्यान आकर्षित किया और उन्हें राष्ट्रीय आंदोलन का एक अभिन्न अंग बनाया।
- रूसी क्रांति, 1917 के पश्चात् सोवियत संघ और पूर्वी ब्लॉक राष्ट्रों ने मज़दूर दिवस मनाना शुरू किया।
भारत:
- भारत में 1 मई, 1923 को पहली बार चेन्नई (तत्कालीन मद्रास) में मज़दूर दिवस का आयोजन किया गया। यह पहल सर्वप्रथम हिंदुस्तान की ‘लेबर किसान पार्टी’ के प्रमुख सिंगारावेलु द्वारा की गई थी।
- लेबर किसान पार्टी के प्रमुख मलयपुरम सिंगारावेलु चेट्टियार ने इस अवसर पर दो बैठकों का आयोजन किया।
- इन बैठकों में सिंगारावेलु ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें कहा गया था कि ब्रिटिश सरकार को भारत में मई दिवस या मज़दूर दिवस पर राष्ट्रीय अवकाश की घोषणा करनी चाहिये।
- मज़दूर दिवस या मई दिवस को भारत में 'कामगार दिन’, कामगार दिवस और अंतर्राष्ट्रीय मज़दूर दिवस के रूप में भी जाना जाता है।
श्रम से संबंधित संवैधानिक प्रावधान
भारतीय संविधान श्रम अधिकारों की सुरक्षा के लिये कई सुरक्षा उपाय प्रदान करता है। ये सुरक्षा उपाय मौलिक अधिकारों और राज्य की नीति के निदेशक सिद्धांत के रूप में हैं।
अनुच्छेद 14 के अंतर्गत विधि के समक्ष समता एवं विधियों के समान संरक्षण का उपबंध किया गया है। संविधान का यह अनुच्छेद भारत के राज्यक्षेत्र के भीतर भारतीय नागरिकों एवं विदेशी दोनों के लिये समान व्यवहार का उपबंध करता है।
अनुच्छेद 19(1) (ग) नागरिकों को संघ या सहकारी समिति बनाने का अधिकार देता है।
अनुच्छेद 21 प्राण और दैहिक स्वतंत्रता का संरक्षण प्रदान करता है।
अनुच्छेद 23 मानव के दुर्व्यापार और बलात श्रम का प्रतिषेध।
अनुच्छेद 24 कारखानों आदि में बालकों के नियोजन का प्रतिषेध अर्थात् चौदह वर्ष से कम आयु के बालकों के किसी कारखाने, खान या किसी अन्य जोखिमयुक्त व्यवसाय में कार्य करने पर रोक लगाता है।
अनुच्छेद 39 (क) राज्य अपने नागरिकों को आजीविका के पर्याप्त साधनों हेतु समान कार्य के लिये समान वेतन का प्रावधान करता है।
अनुच्छेद 41 के अनुसार, राज्य अपनी आर्थिक सामर्थ्य और विकास की सीमाओं के भीतर, काम पाने, शिक्षा प्राप्त करने और बेकारी, बुढ़ापा, बीमारी एवं नि:शक्तता तथा अन्य प्रकार के अभाव की दशाओं में लोक सहायता पाने के अधिकार को प्राप्त कराने का प्रभावी उपबंध करेगा।
अनुच्छेद 42 के अनुसार, राज्य काम की न्यायसंगत और मानवोचित दशाओं को सुनिश्चित करने के लिये तथा प्रसूति सहायता के लिये उपबंध करेगा।
अनुच्छेद 43 राज्य उपयुक्त विधान या आर्थिक संगठन द्वारा या किसी अन्य रीति से कृषि, उद्योग या अन्य प्रकार के सभी कर्मकारों को काम, निर्वाह मज़दूरी, शिष्ट जीवन स्तर और अवकाश का संपूर्ण उपभोग सुनिश्चित करने वाली काम की दशाएँ तथा सामाजिक एवं सांस्कृतिक अवसर प्राप्त कराने का प्रयास करेगा और विशिष्टतया ग्रामों में कुटीर उद्योगों को वैयक्तिक और सहकारी आधार पर बढ़ाने का प्रयास करेगा।
अनुच्छेद 43 क राज्य को उद्योगों के प्रबंधन में श्रमिकों की भागीदारी सुनिश्चित करने की दिशा में काम करने के अधिकार देता है।
क़ानूनी प्रावधान :
- भारत की संसद ने देश के 50 करोड़ से अधिक संगठित और असंगठित श्रमिकों को समाविष्ट करते हुए श्रम कल्याण सुधार के उद्देश्य से 3 श्रम संहिता विधेयक पारित किये हैं।
- तीन श्रम संहिता विधेयक इस प्रकार हैं-
स्रोत: हिंदुस्तान टाइम्स
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
किर्गिज़स्तान-ताज़िकिस्तान सीमा तनाव
चर्चा में क्यों?
हाल ही में किर्गिज़स्तान-ताज़िकिस्तान सीमा पर हुई हिंसक झड़प के बाद दोनों देशों द्वारा युद्ध विराम को लेकर सहमति व्यक्त की गई है ज्ञात हो कि इस हिंसक झड़प के दौरान तकरीबन 40 लोगों की मृत्यु हुई है, जबकि 175 लोग लगभग घायल हुए हैं।
- किर्गिज़स्तान और ताज़िकिस्तान मध्य एशिया क्षेत्र में शामिल देश हैं। इस क्षेत्र के अन्य देश कज़ाखस्तान, तुर्कमेनिस्तान और उज़्बेकिस्तान हैं।
प्रमुख बिंदु:
पृष्ठभूमि:
- दोनों राष्ट्रों द्वारा ‘कोक-तश’ (Kok-Tash) के आस-पास के क्षेत्र पर अपना-अपना दावा प्रस्तुत किया जाता है, यह एक जल आपूर्ति उपलब्ध कराने वाला क्षेत्र है तथा यह विवाद दोनों देशों के बीच तब से चला आ रहा है, जब से यह क्षेत्र दशकों पूर्व सोवियत संघ का हिस्सा था।
- वर्ष 1991 के उत्तरार्ध में रूसी सोवियत संघीय समाजवादी गणतंत्र (Union of Soviet Socialist Republics- USSR) के पतन के साथ ही किर्गिज़-ताजिक सीमा विवाद की वर्तमान रूपरेखा निर्मित हो गई थी।
- ताज़िकिस्तान और किर्गिज़स्तान के मध्य सीमा विशेष रूप से तनावपूर्ण है, क्योंकि दोनों देशों के मध्य निर्मित 1,000 किलोमीटर लंबी सीमा में से एक तिहाई से अधिक विवादित है। जिन समुदायों की भूमि और जल तक पहुँच सुनिश्चित नहीं है, अतीत में अक्सर उन समुदायों के मध्य घातक संघर्ष होते रहे हैं।
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया:
- रूस और यूरोपीय संघ (European Union- EU) ने युद्ध विराम समझौते का स्वागत किया तथा दोनों देशों के मध्य एक स्थायी और शांतिपूर्ण समाधान की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
भारत के लिये मध्य एशिया का महत्त्व:
- राजनीतिक:
- सुरक्षा, ऊर्जा, आर्थिक अवसरों आदि क्षेत्रों में भारत के मध्य एशिया में व्यापक हित निहित हैं।
- भारत में शांति और आर्थिक विकास हेतु मध्य एशिया में सुरक्षा, स्थिरता और समृद्धि अनिवार्य है।
- मध्य एशिया, एशिया और यूरोप के मध्य एक भू-सेतु के रूप में कार्य करता है, जो कि इसे भारत के लिये भू-राजनीतिक धुरी के रूप से स्थापित करता है।
- भारत और मध्य एशियाई गणराज्य (Central Asian Republics-CARs) दोनों ही विभिन्न क्षेत्रीय और विश्व मुद्दों पर कई समान धारणाओं को साझा करते हैं, जो क्षेत्रीय स्थिरता प्रदान करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- आर्थिक:
- यह क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों जैसे- पेट्रोलियम, प्राकृतिक गैस, एंटीमनी, एल्यूमीनियम, सोना, चांदी, कोयला और यूरेनियम से समृद्ध है, जिसका उपयोग भारत अपनी ऊर्जा आवश्यकताओं के अनुसार सबसे बेहतर तरीके से कर सकता है।
- मध्य एशिया में विशाल कृषि योग्य क्षेत्र बिना किसी उत्पादकता के बंजर पड़ा हुआ है, इस क्षेत्र का दालों की खेती हेतु उचित उपयोग किया जा सकता है।
- मध्य एशियाई गणराज्य तेज़ी से उत्पादन, कच्चे माल और सेवाओं की आपूर्ति हेतु वैश्विक बाज़ार से जुड़ रहे हैं। वे पूर्व-पश्चिम ट्रांस-यूरेशियन ट्रांजीशन आर्थिक गलियारों के साथ तेज़ीसे एकीकृत हो रहे हैं।
- भारतीय पहल:
- भारत की योजना अंतर्राष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे (expansion of International North South Transport Corridor- INSTC) का अफगानिस्तान और उज़्बेकिस्तान तक विस्तार करने की है।
- यह यूरेशियन बाज़ारों तक पहुँचने और इसके उपयोग को बेहतर ढंग से संचालित करने हेतु एक महत्त्वपूर्ण प्रवेश द्वार के रूप में कार्य करेगा और इसके तहत मध्य एशियाई देशों का प्रत्यक्ष हितधारक के रूप में शामिल होना अनिवार्य है।
- भारत-मध्य एशिया वार्ता:
- भारत और मध्य एशियाई देशों के बीच विकास साझेदारी को आगे बढ़ाने हेतु भारत द्वारा 'भारत-मध्य एशिया विकास समूह' की स्थापना का प्रस्ताव रखा गया है।
- यह समूह भारत को चीन द्वारा बड़े पैमाने पर संसाधन संपन्न क्षेत्र में किये गए अतिक्रमण तथा अफगानिस्तान में प्रभावी ढंग से आतंक से खिलाफ लड़ने हेतु अपना विस्तार करने में मदद करेगा।
भारत-किर्गिज़स्तान
राजनीतिक:
- वर्ष 1991 से भारत और किर्गिज़स्तान के मध्य मज़बूत द्विपक्षीय संबंध स्थापित हैं।
- वर्ष 1992 में भारत, किर्गिज़स्तान के साथ राजनयिक संबंध स्थापित करने वाला पहला देश था।
संस्कृति और आर्थिक:
- वर्ष 1992 से दोनों देशों के मध्य कई समझौते हुए हैं, जिनमें संस्कृति, व्यापार और आर्थिक सहयोग, नागरिक उड्डयन, निवेश प्रोत्साहन और संरक्षण, दोहरे कराधान से बचाव, काउंसलर कन्वेंशन आदि शामिल हैं।
सैन्य:
- वर्ष 2011 में भारत और किर्गिज़स्तान के मध्य संयुक्त 'खंजर' (Khanjar) अभ्यास शृंखला की शुरुआत की गई।
भारतीय प्रवासी:
- किर्गिज़स्तान में लगभग 9,000 भारतीय छात्र विभिन्न चिकित्सा संस्थानों में अध्ययन कर रहे हैं। इसके अलावा, किर्गिज़स्तान में रहने वाले कई भारतीय व्यापारी हैं, जो व्यापार और कई अन्य सेवाओं में संलग्न हैं।
रणनीतिक:
- किर्गिज़ नेताओं द्वारा काफी हद तक कश्मीर पर भारत के रुख का समर्थन किया जाता रहा है।
- किर्गिज़स्तान द्वारा संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (United Nations Security Council- UNSC) में स्थायी सीट हेतु भारत का समर्थन किया गया हैं।
भारत-ताज़िकिस्तान:
राजनीतिक:
- वर्ष 2012 में भारत और ताज़िकिस्तान द्वारा अपने द्विपक्षीय संबंधों को रणनीतिक साझेदारी के स्तर तक बढ़ाया गया था।
- ताज़िकिस्तान ने शंघाई सहयोग संगठन ( Shanghai Cooperation Organization- SCO) तथा विस्तारित यूएनएससी की स्थायी सदस्यता हेतु भारत का समर्थन किया।
- वर्ष 2013 में भारत द्वारा विश्व व्यापार संगठन (World Trade Organization) में तज़ाकिस्तान को शामिल किये जाने का समर्थन किया गया।
सांस्कृतिक और आर्थिक:
- आवागमन में लगने वाले अधिक समय और सुलभ व्यापार मार्गों की कमी के कारण दोनों देशों के प्रयासों के बावजूद दोनों पक्षों के मध्य व्यापार अपेक्षाओं के अनुरूप नहीं रहा है।
- इन सीमाओं के बावज़ूद, खाद्य प्रसंस्करण, खनन, फार्मास्यूटिकल्स, वस्त्र, कौशल विकास, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी, सूचना प्रौद्योगिकी, संस्कृति और पर्यटन आदि क्षेत्र में दोनों देशों के मध्य व्यापार जारी है।
भारत द्वारा मदद:
- वर्ष 2001-02 में भारत द्वारा ताज़िकिस्तान को प्रमुख खाद्य सहायता उपलब्ध कराई गई। जनवरी-फरवरी 2008 में अत्यधिक सर्दी से उत्पन्न संकट को दूर करने हेतु भारत द्वारा 2 मिलियन अमेरिकी डॉलर (नकद सहायता के रूप में 1 मिलियन अमरीकी डॉलर तथा पावर केबल, जनरेटर और पंप सेट हेतु 1 मिलियन अमरीकी डॉलर) की मदद की गई।
- नवंबर 2010 में भारत द्वारा संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (United Nations Children’s Fund- UNICEF) के माध्यम से ओरल पोलियो वैक्सीन की 2 मिलियन खुराक उपलब्ध की गईं।
- मार्च 2018 में भारत द्वारा रूस में निर्मित 10 एम्बुलेंस ताज़िकिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों में उपहार स्वरूप दी गई, इससे भारत को काफी अधिक मीडिया कवरेज प्राप्त हुई थी और उच्च अधिकारियों द्वारा भारत की प्रशंसा की गई थी।
भारतीय प्रवासी:
- ताज़िकिस्तान में भारतीयों की कुल संख्या लगभग 1550 है, जिनमें से 1250 से अधिक छात्र हैं।
आगे की राह:
- भौगोलिक रूप में शताब्दियों से राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तनों के गठजोड़ में मध्य एशिया का महत्त्वपूर्ण स्थान रहा है। बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव, भारत की कनेक्ट सेंट्रल एशिया नीति और यूरोपीय संघ की नई मध्य एशिया रणनीति के साकार होने के साथ, ही 21वीं सदी संभवतः इस क्षेत्र के लिये सबसे निर्णायक अवधि हो सकती है।
- अपने ऐतिहासिक सांस्कृतिक और आर्थिक संबंधों के चलते भारत अब इस क्षेत्र के विकास में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने हेतु तैयार है। SCO जैसे बहुपक्षीय मंचों पर भारत की बढ़ती वैश्विक भागीदारी और महत्त्वपूर्ण भूमिका ने भारत को इस क्षेत्र में एक पर्यवेक्षक के रूप में स्थापित किया है।
- मध्य एशिया भारत को अपनी सीमाओं से परे, यूरेशिया में अग्रणी भूमिका निभाने हेतु राजनीतिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संबंधों का लाभ उठाने हुए एक मज़बूत मंच प्रदान करता है।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय इतिहास
गुरु तेग बहादुर की 400वीं जयंती
चर्चा में क्यों?
हाल ही में नौवें सिख गुरु, गुरु तेग बहादुर (Guru Tegh Bahadur) के 400वें प्रकाश पर्व (जन्म शताब्दी) को चिह्नित करने के लिये उनके जन्म स्थान गुरुद्वारा गुरु के महल (Gurdwara Guru Ke Mahal) में श्री अखंड पाठ (Sri Akhand Path) का उद्घाटन किया गया।
प्रमुख बिंदु
गुरु तेग बहादुर (1621-1675):
- गुरु तेग बहादुर नौवें सिख गुरु थे, जिन्हें अक्सर सिखों द्वारा ‘मानवता के रक्षक’ (श्रीष्ट-दी-चादर) के रूप में याद किया जाता था।
- गुरु तेग बहादुर एक महान शिक्षक के अलावा एक उत्कृष्ट योद्धा, विचारक और कवि भी थे, जिन्होंने आध्यात्मिक, ईश्वर, मन और शरीर की प्रकृति के विषय में विस्तृत वर्णन किया।
- उनके लेखन को पवित्र ग्रंथ ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ (Guru Granth Sahib) में 116 काव्यात्मक भजनों के रूप में रखा गया है।
- ये एक उत्साही यात्री भी थे और उन्होंने पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में उपदेश केंद्र स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- इन्होंने ऐसे ही एक मिशन के दौरान पंजाब में चाक-नानकी शहर की स्थापना की, जो बाद में पंजाब के आनंदपुर साहिब का हिस्सा बन गया।
- गुरु तेग बहादुर को वर्ष 1675 में दिल्ली में मुगल सम्राट औरंगज़ेब के आदेश के बाद मार दिया गया।
- पंजाबी भाषा में 'सिख' शब्द का अर्थ है 'शिष्य'। सिख भगवान के शिष्य हैं, जो दस सिख गुरुओं के लेखन और शिक्षाओं का पालन करते हैं।
- सिख एक ईश्वर (एक ओंकार) में विश्वास करते हैं। इनका मानना है कि उन्हें अपने प्रत्येक काम में भगवान को याद करना चाहिये। इसे सिमरन कहा जाता है।
- सिख अपने पंथ को गुरुमत (गुरु का मार्ग- The Way of the Guru) कहते हैं। सिख परंपरा के अनुसार, सिख धर्म की स्थापना गुरु नानक (1469-1539) द्वारा की गई थी और बाद में नौ अन्य गुरुओं ने इसका नेतृत्व किया।
- सिख धर्म का विकास भक्ति आंदोलन और वैष्णव हिंदू धर्म से प्रभावित था।
- खालसा (Khalsa) प्रतिबद्धता, समर्पण और एक सामाजिक विवेक के सर्वोच्च सिख गुणों को उजागर करता है।
- खालसा ऐसे पुरुष और महिलाएँ हैं, जिन्होंने सिख बपतिस्मा समारोह में भाग लिया हो और जो सिख आचार संहिता एवं परंपराओं का सख्ती से पालन करते हैं तथा पंथ की पाँच निर्धारित भौतिक वस्तुओं – केश, कंघा, कड़ा, कच्छा और कृपाण को धारण करते हैं।
- सिख धर्म व्रत, तीर्थ स्थानों पर जाना, अंधविश्वास, मृतकों की पूजा, मूर्ति पूजा आदि अनुष्ठानों की निंदा करता है।
- यह उपदेश देता है कि विभिन्न नस्ल, धर्म या लिंग के लोग भगवान की नज़र में समान हैं।
- सिख साहित्य:
- आदि ग्रंथ को सिखों द्वारा शाश्वत गुरु का दर्जा दिया गया है और इसी कारण इसे ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ के नाम से जाना जाता है।
- दशम ग्रंथ के साहित्यिक कार्य और रचनाओं को लेकर सिख धर्म के अंदर कुछ संदेह और विवाद है।
- शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक समिति:
- यह समिति पूरे विश्व में रहने वाले सिखों का एक सर्वोच्च लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित निकाय है, जिसे धार्मिक मामलों और सांस्कृतिक तथा ऐतिहासिक स्मारकों की देखभाल के लिये वर्ष 1925 में संसद के एक विशेष अधिनियम के तहत स्थापित किया गया था।
सिख धर्म के दस गुरु
गुरु नानक देव (1469-1539)
- ये सिखों के पहले गुरु और सिख धर्म के संस्थापक थे।
- इन्होंने ‘गुरु का लंगर’ की शुरुआत की।
- वह बाबर के समकालीन थे।
- गुरु नानक देव की 550वीं जयंती पर करतारपुर कॉरिडोर को शुरू किया गया था।
गुरु अंगद (1504-1552)
- इन्होंने गुरु-मुखी नामक नई लिपि का आविष्कार किया और ‘गुरु का लंगर’ प्रथा को लोकप्रिय किया।
गुरु अमर दास (1479-1574)
- इन्होंने आनंद कारज विवाह (Anand Karaj Marriage) समारोह की शुरुआत की।
- इन्होंने सिखों के बीच सती और पर्दा व्यवस्था जैसी प्रथाओं को समाप्त कर दिया।
- ये अकबर के समकालीन थे।
गुरु राम दास (1534-1581)
- इन्होंने वर्ष 1577 में अकबर द्वारा दी गई ज़मीन पर अमृतसर की स्थापना की।
- इन्होंने अमृतसर में स्वर्ण मंदिर (Golden Temple) का निर्माण शुरू किया।
गुरु अर्जुन देव (1563-1606)
- इन्होंने वर्ष 1604 में आदि ग्रंथ की रचना की।
- इन्होंने स्वर्ण मंदिर का निर्माण पूरा किया।
- वे शाहिदीन-दे-सरताज (Shaheeden-de-Sartaj) के रूप में प्रचलित थे।
- इन्हें जहाँगीर ने राजकुमार खुसरो की मदद करने के आरोप में मार दिया।
गुरु हरगोबिंद (1594-1644)
- इन्होंने सिख समुदाय को एक सैन्य समुदाय में बदल दिया। इन्हें "सैनिक संत" (Soldier Saint) के रूप में जाना जाता है।
- इन्होंने अकाल तख्त की स्थापना की और अमृतसर शहर को मज़बूत किया।
- इन्होंने जहाँगीर और शाहजहाँ के खिलाफ युद्ध छेड़ा।
गुरु हर राय (1630-1661)
- ये शांतिप्रिय व्यक्ति थे और इन्होंने अपना अधिकांश जीवन औरंगजेब के साथ शांति बनाए रखने तथा मिशनरी काम करने में समर्पित कर दिया।
गुरु हरकिशन (1656-1664)
- ये अन्य सभी गुरुओं में सबसे छोटे गुरु थे और इन्हें 5 वर्ष की आयु में गुरु की उपाधि दी गई थी।
- इनके खिलाफ औरंगज़ेब द्वारा इस्लाम विरोधी कार्य के लिये सम्मन जारी किया गया था।
गुरु तेग बहादुर (1621-1675)
- इन्होंने आनंदपुर साहिब की स्थापना की।
गुरु गोबिंद सिंह (1666-1708)
- इन्होंने वर्ष 1699 में ‘खालसा’ नामक योद्धा समुदाय की स्थापना की।
- इन्होंने एक नया संस्कार "पाहुल" (Pahul) शुरू किया।
- ये मानव रूप में अंतिम सिख गुरु थे और उन्होंने ‘गुरु ग्रंथ साहिब’ को सिखों के गुरु के रूप में नामित किया।