प्रारंभिक परीक्षा
राष्ट्रीय खेल और साहसिक पुरस्कार 2022
हाल ही में टेबल टेनिस के दिग्गज अचंता शरथ कमल को राष्ट्रमंडल खेलों, 2022 में उनके उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिये राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय खेल और साहसिक पुरस्कार 2022 के हिस्से के रूप में मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया।
- अन्य पुरस्कारों में द्रोणाचार्य पुरस्कार, खेलों में लाइफटाइम अचीवमेंट के लिये ध्यानचंद पुरस्कार, राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन पुरस्कार, मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ट्रॉफी के साथ-साथ तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार शामिल हैं।
प्रमुख बिंदु
- मेजर ध्यानचंद खेल रत्न पुरस्कार:
- यह पूर्व में राजीव गांधी खेल रत्न के रूप में जाना जाता था। यह चार वर्ष की अवधि में एक खिलाड़ी द्वारा खेल के क्षेत्र में शानदार और सबसे उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिये युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय द्वारा दिया जाने वाला सर्वोच्च खेल पुरस्कार है।
- इसमें 25 लाख रुपए का नकद पुरस्कार, एक पदक और सम्मान पत्र दिया जाता है।
- खेल रत्न पुरस्कार वर्ष 1991-1992 में स्थापित किया गया था और इसके पहले प्राप्तकर्त्ता शतरंज के दिग्गज खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद थे।
- यह पूर्व में राजीव गांधी खेल रत्न के रूप में जाना जाता था। यह चार वर्ष की अवधि में एक खिलाड़ी द्वारा खेल के क्षेत्र में शानदार और सबसे उत्कृष्ट प्रदर्शन के लिये युवा कार्यक्रम और खेल मंत्रालय द्वारा दिया जाने वाला सर्वोच्च खेल पुरस्कार है।
- अर्जुन पुरस्कार:
- यह वर्ष 1961 में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय खेल आयोजनों में उत्कृष्ट उपलब्धि की पहचान करने के लिये स्थापित किया गया था।
- यह विगत चार वर्षों की अवधि में अच्छा प्रदर्शन और नेतृत्त्व करने, खेल कौशल और अनुशासन की भावना दर्शाने हेतु दिया जाता है।
- इस पुरस्कार के अंतर्गत 15 लाख रुपए का नकद पुरस्कार, अर्जुन की एक कांस्य प्रतिमा और एक सम्मान पत्र दिया जाता है।
- द्रोणाचार्य पुरस्कार:
- यह वर्ष 1985 में भारत सरकार द्वारा खेल संबंधी प्रशिक्षण में उत्कृष्टता को मान्यता देने के लिये स्थापित किया गया था।
- यह प्रशिक्षकों को निरंतर आधार पर उत्कृष्ट और मेधावी कार्य करने तथा खिलाड़ियों को अंतर्राष्ट्रीय प्रतियोगिताओं में उत्कृष्टता प्राप्त करने में सक्षम बनाने के लिये दिया जाता है।
- इसमें 15 लाख रुपए का नकद पुरस्कार, द्रोणाचार्य की एक कांस्य प्रतिमा और एक सम्मान पत्र दिया जाता है।
- ध्यानचंद पुरस्कार:
- यह वर्ष 2002 में स्थापित किया गया था और इसके अंतर्गत ध्यानचंद की एक प्रतिमा, 10 लाख रुपए का नकद पुरस्कार, एक प्रमाण पत्र और एक समारोहिक पोशाक शामिल है।
- यह खिलाड़ियों द्वारा अपने प्रदर्शन से खेलों में योगदान देने और सेवानिवृत्ति के बाद खेल आयोजनों को प्रोत्साहित करने वालों को सम्मानित करने के लिये दिया जाता है।
- मौलाना अबुल कलाम आज़ाद ट्रॉफी:
- यह वर्ष 1956-1957 में स्थापित की गई थी।
- यह विश्वविद्यालय स्तर के खेल प्रदर्शन के लिये है।
- यह विगत एक वर्ष की अवधि में "अंतर-विश्वविद्यालय टूर्नामेंट में शीर्ष प्रदर्शन" के लिये विश्वविद्यालय को दी जाती है।
- राष्ट्रीय खेल प्रोत्साहन पुरस्कार:
- यह पुरस्कार कॉर्पोरेट संस्थाओं (निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्रों में), खेल नियंत्रण बोर्डों, राज्य और राष्ट्रीय स्तर पर खेल निकायों सहित गैर सरकारी संगठनों को दिया जाता है जिन्होंने खेल को प्रोत्साहित करने और विकसित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
- तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार:
- यह पुरस्कार प्रतिवर्ष एडवेंचर के क्षेत्र में संबंधित व्यक्तियों की उल्लेखनीय उपलब्धियों को सराहने, युवाओं को चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में धीरज, जोखिम लेने, सहकारी टीम वर्क और तुरंत, सक्षम एवं प्रभावकारी कदम उठाने की भावना विकसित करने और युवा लोगों को साहसिक गतिविधियों या कार्यों में शामिल होने हेतु प्रोत्साहन प्रदान करने हेतु दिया जाता हैं।
स्रोत: पी.आई.बी.
सामाजिक न्याय
जनजातीय विकास रिपोर्ट 2022
प्रिलिम्स के लिये:जनजातीय विकास रिपोर्ट 2022, अनुसूचित जनजाति, एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालय, ट्राइफेड (TRIFED)। मेन्स के लिये:जनजातियों से संबंधित नवीनतम सरकारी पहल। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारत ग्रामीण आजीविका फाउंडेशन (Bharat Rural Livelihood Foundation- BRLF) द्वारा जनजातीय विकास रिपोर्ट 2022 जारी की गई, जिसके बारे में संगठन का दावा है कि यह वर्ष 1947 के बाद से अपनी तरह की पहली रिपोर्ट है।
- संघ और राज्य सरकारों के सहयोग से नागरिक समाज की कार्रवाई का विस्तार करने के लिये, केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वर्ष 2013 में केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय के तहत एक स्वायत्त समाज के रूप में BRLF की स्थापना की थी।
रिपोर्ट के प्रमुख बिंदु:
- जनजातीय आबादी:
- वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार भारत का जनजातीय समुदाय देश की जनसंख्या का 8.6% हैं। परंतु आज़ादी के 75 वर्ष बाद भी वे देश के विकास के पदानुक्रम में सबसे निचले पायदान पर हैं।
- देश के 80% जनजातीय समुदाय मध्य भारत में हैं।
- 257 अनुसूचित जनजातीय ज़िलों में से, 230 (90%) ज़िले या तो वनक्षेत्र या पहाड़ी अथवा रेगिस्तानी क्षेत्र में आते हैं।
- जनजातीय समुदाय सबसे ज़्यादा वंचित:
- बात चाहे स्वच्छता, शिक्षा, पोषण की हो या पीने के पानी तक पहुँच की, स्वतंत्रता के 70 वर्ष बाद भी आदिवासी सबसे ज़्यादा वंचित हैं।
- जनजातीय क्षेत्रों में अशांति और संघर्ष:
- जनजातीय क्षेत्रों में भी अशांति और संघर्ष की स्थिति बनी रहती है। यह एक कारण है कि कई सरकारी कल्याणकारी योजनानाएँ और नीतियाँ इन क्षेत्रों में शुरू नहीं हो पा रही हैं। इस क्षेत्र का संकट दोनों पक्षों को प्रभावित करता है।
- सबसे कठोर स्थानों परम विस्थापन :
- रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत के स्वदेशी समुदायों को जलोढ़ मैदानों और उपजाऊ नदी घाटियों से दूर पहाड़ियों, जंगलों और शुष्क भूमि जैसी देश की सबसे कठोर परिस्थितियों में विस्थापित कर दिया गया है
- 1980 में वन संरक्षण अधिनियम:
- 1980 में वन संरक्षण अधिनियम के लागू होने के बाद, संघर्ष को पर्यावरण संरक्षण और स्थानीय आदिवासी समुदायों की ज़रूरतों के बीच देखा जाने लगा, जिससे लोगों और जंगलों के बीच दूरियाँ बढ़ने लगी हैं।
- वर्ष 1988 की राष्ट्रीय वन नीति के अनुसार स्थानीय लोगों की घरेलू आवश्यकताओं को पहली बार स्पष्ट रूप से मान्यता दी गई थी।
- नीति में आदिवासियों के प्रथागत अधिकारों की रक्षा करने और वनों की सुरक्षा बढाने के लिये आदिवासियों को जोड़ने पर ज़ोर दिया है। लेकिन जनोन्मुखी दृष्टिकोण की ओर बढ़ रहा आंदोलन ज़मीनी हकीकत से मेल नहीं खा पाया है।
- सुझाव:
- जनजातीय समुदायों के लिये नीतियाँ बनाने के लिये उनकी विशेष विशेषताओं को समझना महत्त्वपूर्ण है।
- ऐसे कई आदिवासी समुदाय हैं जो अलगाव पसंद करते हैं। वे शर्मीले हैं और वे बाहरी दुनिया से संपर्क नही रखते हैं। देश के नीति निर्माताओं और नेताओं को इस विशेषता को समझने और फिर आदिवासियों के कल्याण की दिशा में काम करने की आवश्यकता है ताकि वे उनसे बेहतर तरीके से जुड़ सकें।
जनजातियों से संबंधित सरकारी पहल:
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न :प्रश्न: भारत के संविधान की किस अनुसूची के तहत आदिवासी भूमि का खनन के लिये निजी पक्षकारों को अंतरण अकृत और शून्य घोषित किया जा सकता है? (2019) (a) तीसरी अनुसूची उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही है। प्रश्न. आप उन आँकड़ों की व्याख्या कैसे करते हैं जो दिखाते हैं कि भारत में जनजातियों में लिंगानुपात अनुसूचित जातियों के लिंगानुपात की तुलना में महिलाओं के लिये अधिक अनुकूल है? (मुख्य परीक्षा, 2015) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
अंतर्राष्ट्रीय संबंध
UNSC में भारत की अध्यक्षता
प्रिलिम्स के लिये:UNSC संयुक्त राष्ट्र महासचिव, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय, COVID -19 महामारी, मेन्स के लिये:वार्ता और सहयोग के माध्यम से सामान्य सुरक्षा को बढ़ावा देना, UNSC की बैठक। |
चर्चा में क्यों ?
1 दिसंबर को, भारत ने वर्ष 2021-22 में परिषद के निर्वाचित सदस्य के रूप में अपने दो वर्ष के कार्यकाल में दूसरी बार संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की अध्यक्षता संभाली है।
- भारत ने इससे पहले अगस्त 2021 में UNSC की अध्यक्षता संभाली थी।
भारत की अध्यक्षता में आगे की राह:
- बहुपक्षवाद में सुधार:
- भारत सुरक्षा परिषद में "अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा हेतु: सुधारवादी बहुपक्षवाद (NORMS) हेतु नवीन अभिविन्यास (New Orientation for Reformed Multilateralism- NORMS)" पर "उच्च स्तरीय खुली चर्चा" आयोजित करेगा।
- मानदंडों में वर्तमान बहुपक्षीय संरचना में सुधारों की परिकल्पना की गई है, जिसके केंद्र में संयुक्त राष्ट्र है, ताकि इसे अधिक प्रतिनिधिक और उद्देश्य के लिये उपयुक्त बनाया जा सके।
- भारत सुरक्षा परिषद में "अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा हेतु: सुधारवादी बहुपक्षवाद (NORMS) हेतु नवीन अभिविन्यास (New Orientation for Reformed Multilateralism- NORMS)" पर "उच्च स्तरीय खुली चर्चा" आयोजित करेगा।
- आतंकवाद को रोकना:
- 'आतंकवादी कृत्यों के कारण अंतर्रारास्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिये खतरा: आतंकवाद का मुकाबला करने के लिये वैश्विक दृष्टिकोण- चुनौतियाँ और आगे की राह विषय पर उच्च स्तरीय ब्रीफिंग की योजना बनाई गई है।
- यह ब्रीफिंग आतंकवाद के खतरे का मुकाबला करने के लिये सामूहिक और समन्वित प्रयासों की आवश्यकता को रेखांकित करने का इरादा रखती है। अंतर
- 'आतंकवादी कृत्यों के कारण अंतर्रारास्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिये खतरा: आतंकवाद का मुकाबला करने के लिये वैश्विक दृष्टिकोण- चुनौतियाँ और आगे की राह विषय पर उच्च स्तरीय ब्रीफिंग की योजना बनाई गई है।
UNSC:
- परिचय:
- सुरक्षा परिषद की स्थापना 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा की गई थी। यह संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक है।
- संयुक्त राष्ट्र के अन्य 5 अंग हैं - महासभा (UNGA), ट्रस्टीशिप काउंसिल, आर्थिक और सामाजिक परिषद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय और सचिवालय।
- संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, अंतर्रारास्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने के जनादेश के साथ, वैश्विक बहुपक्षवाद का केंद्र बिंदु है।
- महासचिव की नियुक्ति सुरक्षा परिषद की सिफारिश पर महासभा द्वारा की जाती है।
- UNSC और UNGA संयुक्त रूप से अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय के न्यायाधीशों का चुनाव करते हैं।
- सुरक्षा परिषद की स्थापना 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर द्वारा की गई थी। यह संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक है।
- संरचना:
- UNSC का गठन 15 सदस्यों (5 स्थायी और 10 गैर-स्थायी) द्वारा किया गया है।
- सुरक्षा परिषद के पाँच स्थायी सदस्य अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, रूस और चीन हैं।
- गौरतलब है कि इन स्थायी सदस्य देशों के अलावा 10 अन्य देशों को दो वर्ष की अवधि के लिये अस्थायी सदस्य के रूप में सुरक्षा परिषद में शामिल किया जाता है।
- पाँच सदस्य एशियाई या अफ्रीकी देशों से,
- दो दक्षिण अमेरिकी देशों से,
- एक पूर्वी यूरोप से और
- दो पश्चिमी यूरोप या अन्य
- भारत की सदस्यता:
- भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अस्थायी सदस्य के रूप में सात बार सेवा की है और जनवरी 2021 में भारत ने आठवीं बार UNSC की अस्थायी सदस्यता ग्रहण की है।
- भारत UNSC में एक स्थायी सीट की वकालत करता रहा है।
- मतदान की शक्तियाँ:
- सुरक्षा परिषद के प्रत्येक सदस्य का एक मत होता है। सभी मामलों पर सुरक्षा परिषद के निर्णय स्थायी सदस्यों सहित नौ सदस्यों के सकारात्मक मत द्वारा लिये जाते हैं, जिसमें सदस्यों की सहमति अनिवार्य है।
- पाँच स्थायी सदस्यों में से यदि कोई एक भी प्रस्ताव के विपक्ष में वोट देता है तो वह प्रस्ताव पारित नहीं होता है।
- कार्य:
- UNSC मध्यस्थता के माध्यम से पक्षकारों को एक समझौते तक पहुँचने, विशेष दूत नियुक्त करने, संयुक्त राष्ट्र मिशन भेजने या विवाद को सुलझाने के लिये संयुक्त राष्ट्र महासचिव से अनुरोध करने में मदद करके शांति प्रदान करता है।
- यह जनादेश के विस्तार, संशोधन या समाप्ति के लिये भी मतदान कर सकता है।
- सुरक्षा परिषद महासचिव और परिषद सत्रों की आवधिक रिपोर्ट के माध्यम से संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों के कार्य की देखरेख करती है। यह अकेले इन कार्यों के संबंध में निर्णय ले सकती है, जिसे लागू करने के लिये सदस्य राज्य बाध्य हैं।
UNSC से संबद्ध चुनौतियाँ:
- प्रासंगिकता में कमी:
- प्रासंगिकता और विश्वसनीयता खोने के लिये परिषद की आलोचना की जाती है।
- भारत के विदेश मंत्री के अनुसार, UNSC में संकीर्ण नेतृत्त्व है और एक नए दृष्टिकोण की आवश्यकता है, इसलिये "रिफ्रेश बटन" के लिये दबाव डालने का आह्वान किया गया है।
- प्रासंगिकता और विश्वसनीयता खोने के लिये परिषद की आलोचना की जाती है।
- बहुपक्षवाद की कमी:
- सीरियाई युद्ध संकट और कोविड -19 महामारी के मद्देनजर परिषद के बहुपक्षवाद की कमी की भी आलोचना की गई है।
- प्रतिनिधित्त्व में कमी:
- 54 देशों वाले महत्त्वपूर्ण महाद्वीप- अफ्रीका की अनुपस्थिति के कारण कई वक्ताओं का दावा है कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद कम प्रभावी है क्योंकि इसमें क्षेत्रीय प्रतिनिधित्त्व में कमी है।
- वीटो शक्ति का दुरुपयोग:
- कई विशेषज्ञों और अधिकांश राज्यों ने वीटो शक्ति की लगातार आलोचना की है, इसे "विशेषाधिकार प्राप्त लोगों का स्वयं-चुना हुआ क्लब" और अलोकतांत्रिक बताया गया है तथा कोई निर्णय P-5 में से किसी एक सदस्य देश के हित में न होने पर यह परिषद महत्त्वपूर्ण निर्णयों पर भी रोक लगाती है।
- P5 सदस्य देशों के रूप में वर्तमान वैश्विक व्यवस्था को देखे तो इनमे से तीन देश- संयुक्त राज्य अमेरिका, रूस और चीन ऐसे देश हैं जो कुछ वैश्विक भू-राजनीतिक मुद्दों के केंद्र बिंदु हैं जैसे- ताइवान मुद्दा और रूस-यूक्रेन युद्ध का मुद्दा।
- कई विशेषज्ञों और अधिकांश राज्यों ने वीटो शक्ति की लगातार आलोचना की है, इसे "विशेषाधिकार प्राप्त लोगों का स्वयं-चुना हुआ क्लब" और अलोकतांत्रिक बताया गया है तथा कोई निर्णय P-5 में से किसी एक सदस्य देश के हित में न होने पर यह परिषद महत्त्वपूर्ण निर्णयों पर भी रोक लगाती है।
आगे की राह:
- केवल P5 देशों के विशेषाधिकारों को संरक्षित करने की अपेक्षा वैश्विक स्तर के अनेक मुद्दे हैं जिन पर UNSC को ध्यान देना चाहिये।
- P5 देशों और शेष विश्व के बीच शक्ति असंतुलन संबंधी सुधार की आवश्यकता है।
- संयुक्त राष्ट्र के सिद्धांतों में, इसके चार्टर में और वैश्विक लक्ष्यों को प्राप्त करने के साधन के रूप में सुधारित बहुपक्षवाद में विश्वास बनाए रखने के लिये UNSC में मूलभूत चुनौतियों का सख्ती से विश्लेषण किया जाना चाहिये तथा अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से निपटान किया जाना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्सप्रश्न. UN की सुरक्षा परिषद में 5 स्थायी सदस्य होते हैं और शेष 10 सदस्यों का चुनाव कितनी अवधि के लिये महासभा द्वारा किया जाता है? (2009) (a) 1 वर्ष उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न. संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट प्राप्त करने में भारत के सामने आने वाली बाधाओं पर चर्चा कीजिये। (2015) |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
प्रारंभिक परीक्षा
नगालैंड राज्य दिवस
हाल ही में नगालैंड ने 1 दिसंबर, 2022 को अपना 60वाँ स्थापना दिवस मनाया है।
- नगालैंड राज्य दिवस भी नगालैंड में हॉर्नबिल उत्सव की शुरुआत का प्रतीक है।
नगालैंड:
- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:
- वर्ष 1947 में भारत की स्वतंत्रता के बाद ‘नगा’ क्षेत्र प्रारंभ में असम का हिस्सा बना रहा। हालाँकि मज़बूत राष्ट्रवादी आंदोलन ने नगा जनजातियों के राजनीतिक संघ की मांग को बढ़ावा दिया और कुछ चरमपंथियों ने भारतीय संघ से पूरी तरह से अलग होने की मांग की।
- वर्ष 1957 में असम के ‘नगा हिल्स क्षेत्र’ और उत्तर-पूर्व में ‘तुएनसांग फ्रंटियर’ डिवीज़न को भारत सरकार द्वारा सीधे प्रशासित एक इकाई के तहत एक साथ लाया गया था।
- वर्ष 1960 में यह तय किया गया कि नगालैंड को भारतीय संघ का एक घटक राज्य बनना चाहिये। नगालैंड ने वर्ष 1963 में राज्य का दर्जा हासिल किया और वर्ष 1964 में लोकतांत्रिक रूप से चुनी गई सरकार ने इसकी सत्ता संभाली।
- भौगोलिक अवस्थिति:
- यह पूर्वोत्तर में अरुणाचल प्रदेश, दक्षिण में मणिपुर एवं पश्चिम तथा उत्तर-पश्चिम में असम और पूर्व में म्याँमार (बर्मा) से घिरा है। राज्य की राजधानी ‘कोहिमा’ है, जो नगालैंड के दक्षिणी भाग में स्थित है।
- नगालैंड की जलवायु ‘मानसूनी’ (आर्द्र और शुष्क) है। यहाँ वार्षिक वर्षा का औसत 70 से 100 इंच के बीच है और यह दक्षिण-पश्चिम मानसून (मई से सितंबर) के महीनों में होती है।
- जैव विविधता:
- वनस्पति: नगालैंड के लगभग एक-छठे हिस्से में वन हैं। 4,000 फीट से नीचे उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय सदाबहार वन मौजूद हैं, जिनमें ताड़, रतन और बाँस के साथ-साथ मूल्यवान लकड़ियों की प्रजातियाँ शामिल हैं। शंकुधारी वन अधिक ऊँचाई पर पाए जाते हैं। ‘झूम’ खेती (स्थानांतरण खेती) हेतु साफ किये गए क्षेत्रों में घास, नरकट और झाड़ीदार जंगल भी पाए जाते हैं।
- जीव: हाथी, बाघ, तेंदुए, भालू, कई प्रकार के बंदर, सांभर, हिरण, भैंस, जंगली बैल और गैंडा निचली पहाड़ियों में पाए जाते हैं। राज्य में साही, पैंगोलिन, जंगली कुत्ते, लोमड़ी, सिवेट बिल्लियाँ और नेवले भी पाए जाते हैं।
- मिथुन (ग्याल) नगालैंड और अरुणाचल प्रदेश का राज्य पशु है।
- ‘ब्लीथ ट्रैगोपन’ नगालैंड का राज्य पक्षी है।
- जनजाति:
- ‘कोन्याक’ यहाँ सबसे बड़ी जनजाति हैं, इसके बाद आओस, तांगखुल, सेमास और अंगमी आते हैं।
- अन्य जनजातियों में लोथा, संगतम, फॉम, चांग, खिम हंगामा, यिमचुंगर, ज़ेलिआंग, चाखेसांग (चोकरी) और रेंगमा शामिल हैं।
- अर्थव्यवस्था:
- कृषि क्षेत्र, राज्य की आबादी के लगभग नौवें-दसवें हिस्से को रोज़गार प्रदान करता है। चावल, मक्का, छोटी बाजरा, दालें (फलियाँ), तिलहन, फाइबर, गन्ना, आलू और तंबाकू प्रमुख फसलें हैं।
- हालाँकि नगालैंड को अभी भी पड़ोसी राज्यों से भोजन के आयात पर निर्भर रहना पड़ता है।
- नगालैंड में संरक्षित क्षेत्र:
- इन्तानकी राष्ट्रीय उद्यान
- सिंगफन वन्य जीव अभ्यारण
- पुली बडज़े वन्यजीव अभयारण्य
- फकीम वन्यजीव अभयारण्य
- प्रमुख महोत्सव:
- ‘हॉर्नबिल महोत्सव’ प्रतिवर्ष 1 से 10 दिसंबर तक नगालैंड में आयोजित होने वाला उत्सव है।
- इस त्योहार का नाम हॉर्नबिल पक्षी के नाम पर रखा गया है जो नगाओं के लिये सबसे पूजनीय और प्रिय पक्षी है।
- इस त्योहार का महत्त्व इस तथ्य में निहित है कि यह एक प्राचीन त्योहार नहीं है और इसे वर्ष 2000 में नगालैंड को पर्यटकों के बीच लोकप्रिय बनाने हेतु शुरू किया गया था।
हॉर्नबिल
- परिचय: हॉर्नबिल (बुसेरोटिडे परिवार) उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय अफ्रीका तथा एशिया में पाए जाने वाले पक्षियों का एक परिवार है।
- भारत में: भारत में हॉर्नबिल की नौ प्रजातियाँ पाई जाती हैं।
- पूर्वोत्तर क्षेत्र में भारत के भीतर हॉर्नबिल प्रजातियों की विविधता सबसे अधिक है।
- वे पूर्वोत्तर में कुछ जातीय समुदायों के विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश के ‘न्याशी’ समुदाय का सांस्कृतिक प्रतीक हैं।
- नगालैंड में मनाए जाने वाले ‘हॉर्नबिल उत्सव’ का नाम ‘हॉर्नबिल’ पक्षी के नाम पर रखा गया है। यह नगाओं के लिये सबसे सम्मानित और प्रशंसित पक्षी है।
- खतरे
- हॉर्नबिल का शिकार उनके ‘कास्क’ (ऊपरी चोंच) और उनके पंखों के लिये किया जाता है। उनके माँस और उनके शरीर के अंगों के औषधीय महत्त्व के चलते भी उनका अवैध शिकार किया जाता है।
- असली ‘हॉर्नबिल कास्क’ के बजाय हेडगियर के लिये फाइबर-ग्लास चोंच के उपयोग को बढ़ावा देने वाले एक संरक्षण कार्यक्रम ने इस खतरे को कम करने में मदद की है।
- ऐसे वृक्षों, जहाँ हॉर्नबिल पक्षी घोंसला बनाते हैं, की अवैध कटाई से उनके प्राकृतिक आवास नष्ट हो जाते हैं।
- हॉर्नबिल का शिकार उनके ‘कास्क’ (ऊपरी चोंच) और उनके पंखों के लिये किया जाता है। उनके माँस और उनके शरीर के अंगों के औषधीय महत्त्व के चलते भी उनका अवैध शिकार किया जाता है।
भारत में हॉर्नबिल की 9 प्रजातियाँ |
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द ग्रेट हॉर्नबिल
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रफस-नेक्ड हॉर्नबिल
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रेथ्ड हॉर्नबिल
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नारकोंडम हॉर्नबिल
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मालाबार पाइड हॉर्नबिल
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ओरिएंटल पाइड हॉर्नबिल
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ऑस्टेंस ब्राउन हॉर्नबिल
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मालाबार ग्रे हॉर्नबिल
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इंडियन ग्रे हॉर्नबिल
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UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQ)प्रश्न. भारत के निम्नलिखित क्षेत्रों में से 'ग्रेट इंडियन हॉर्नबिल' के अपने प्राकृतिक आवास में पाए जाने की सबसे अधिक संभावना कहाँ है? (a) उत्तर-पश्चिमी भारत के रेतीले मरूस्थल (b) जम्मूू-कश्मीर के उच्चतर हिमालय क्षेत्र (c) पश्चिमी गुजरात के लवण कच्छ क्षेत्र (d) पश्चिमी घाट उत्तर: D व्याख्या:
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स्रोत: पी.आई.बी
प्रारंभिक परीक्षा
एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर (ALH) MK-III स्क्वाड्रन
हाल ही में भारतीय तटरक्षक बल द्वारा एक एडवांस्ड लाइट हेलीकॉप्टर MK-III स्क्वाड्रन को चेन्नई में कमीशन किया गया है।
ALH स्क्वाड्रन:
- परिचय:
- हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) द्वारा स्वदेश निर्मित ALH MK-III हेलीकॉप्टरों में अत्त्याधुनिक उपकरण शामिल हैं।
- इसमें उन्नत रडार के साथ-साथ इलेक्ट्रो-ऑप्टिकल सेंसर, शक्ति इंजन, पूर्ण ग्लास कॉकपिट, उच्च तीव्रता वाली सर्चलाइट, उन्नत संचार प्रणाली, स्वचालित पहचान प्रणाली के साथ-साथ खोज और बचाव होमर शामिल हैं।
- यह सुविधा हेलीकॉप्टर को समुद्री टोह लेने के साथ-साथ दिन और रात दोनों जहाज़ों के विस्तारित रेंज के माध्यम से खोज और बचाव करने में सक्षम है।
- भूमिका:
- विमान में गंभीर रूप से बीमार रोगियों के स्थानांतरण की सुविधा के लिये एक चिकित्सा गहन देखभाल इकाई ले जाने वाले एक सॉफ्ट उपकरण के साथ ही एक आक्रामक भूमिका में बदलने की क्षमता है।
- स्क्वाड्रन तमिलनाडु और आंध्र क्षेत्र के सुरक्षा संवेदनशील जल क्षेत्र में भारतीय तटरक्षक बल की क्षमताओं को एक बड़ा प्रोत्साहन देगा।
स्रोत: द हिंदू
शासन व्यवस्था
अद्यतन भूमि अभिलेख
प्रिलिम्स के लिये:वन अधिकार अधिनियम 2006, डिजिटल भूमि अभिलेख, सरकार की पहल मेन्स के लिये:वन अधिकार अधिनियम की विशेषताएँ, डिजिटल भूमि अभिलेख, भौगोलिक सूचना प्रणाली, संबंधित पहल |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने देश के सभी राज्यों को तीन महीने के भीतर राजस्व और वन अभिलेखों में बंदोबस्त अधिकार दर्ज़ करने का निर्देश दिया है।
- पत्र में कहा गया है कि राजस्व और वन विभागों को वन अधिकार अधिनियम (FRA), 2006 के तहत समुदायों को दी गई वन भूमि का अंतिम नक्शा तैयार करना चाहिये।
अधिसूचना के मुख्य बिंदु:
- परिचय:
- अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 या वन अधिकार अधिनियम (FRA) के तहत अधिकारों के रिकॉर्ड पर डिजिटल जानकारी (RoR) को (एक कानूनी दस्तावेज जो भूमि और उसके मालिक के बारे में विवरण देता है) परिवेश (PARIVESH) पोर्टल और केंद्रीय तथा राज्य सरकार के विभागों के अन्य वेब भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) प्लेटफार्मों में एकीकृत किया जाएगा।
- यह अधिकारों के निपटान और मालिकाना हक जारी करने की प्रक्रिया पूरी होने के बाद किया जाएगा। मानचित्र को संबंधित राज्य कानूनों के तहत भूमि अभिलेखों में शामिल किया जाना चाहिये।
- मंत्रालय ने राज्यों को प्रत्येक भूमि पैच का भौगोलिक सूचना प्रणाली (GlS) सर्वेक्षण करने और बहुभुजों की भू-संदर्भित डिजिटल वेक्टर सीमाओं को बनाए रखने का भी निर्देश दिया है।
- अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 या वन अधिकार अधिनियम (FRA) के तहत अधिकारों के रिकॉर्ड पर डिजिटल जानकारी (RoR) को (एक कानूनी दस्तावेज जो भूमि और उसके मालिक के बारे में विवरण देता है) परिवेश (PARIVESH) पोर्टल और केंद्रीय तथा राज्य सरकार के विभागों के अन्य वेब भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) प्लेटफार्मों में एकीकृत किया जाएगा।
- लाभ:
- FRA के डेटा के अनुसार भूमि रिकॉर्ड आदिवासियों और अधिकारियों के बीच संघर्ष को समाप्त करता है।
- कभी-कभी FRA के तहत आवंटित भूमि का टुकड़ा वनीकरण के लिये उपयोग किया जाता है जिससे दोनों पक्षों के लिये बहुत सारी समस्याएँ उत्पन्न होती हैं।
- FRA के तहत RoR का भू-संदर्भ राज्यों के लोगों के लिये फायदेमंद होगा क्योंकि वन और आदिवासी कल्याण विभाग FRA शीर्षक धारकों की आजीविका में सुधार के लिये विशिष्ट परियोजनाओं और योजनाओं को शुरू करने में सक्षम होंगे।
- FRA के डेटा के अनुसार भूमि रिकॉर्ड आदिवासियों और अधिकारियों के बीच संघर्ष को समाप्त करता है।
वन अधिकार अधिनियम, 2006:
- यह अधिनियम पीढ़ियों से वन में निवास करने वाली अनुसूचित जनजातियों (FDST) और अन्य पारंपरिक वनवासियों (OTFD) को वन भूमि पर उनके वन अधिकारों को मान्यता देता है।
- किसी भी ऐसे सदस्य या समुदाय द्वारा वन अधिकारों का दावा किया जा सकता है, जो दिसंबर 2005 के 13वें दिन से पहले कम-से-कम तीन पीढ़ियों अथवा 75 वर्ष से वन भूमि में वास्तविक आजीविका की ज़रूरतों हेतु निवास करता है।
- यह FDST और OTFD की आजीविका तथा खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए वनों के संरक्षण की व्यवस्था को मज़बूती प्रदान करता है।
- ग्राम सभा को व्यक्तिगत वन अधिकार (IFR) या सामुदायिक वन अधिकार (CFR) या दोनों जो कि FDST और OTFD को दिये जा सकते हैं, की प्रकृति एवं सीमा निर्धारित करने हेतु प्रक्रिया शुरू करने का अधिकार है।
- इस अधिनियम के तहत चार प्रकार के अधिकार हैं:
- स्वामित्त्व अधिकार: यह FDST और OTFD को अधिकतम 4 हेक्टेयर भू-क्षेत्र पर आदिवासियों या वनवासियों द्वारा खेती की जाने वाली भूमि पर स्वामित्व का अधिकार देता है। यह स्वामित्व केवल उस भूमि के लिये है जिस पर वास्तव में संबंधित परिवार द्वारा खेती की जा रही है, इसके अलावा कोई और नई भूमि प्रदान नहीं की जाएगी।
- उपयोग करने का अधिकार: वन निवासियों के अधिकारों का विस्तार लघु वनोत्पाद, चराई क्षेत्रों आदि तक है।
- राहत और विकास से संबंधित अधिकार: वन संरक्षण के लिये प्रतिबंधों के अधीन अवैध बेदखली या जबरन विस्थापन और बुनियादी सुविधाओं के मामले में पुनर्वास का अधिकार शामिल है।
- वन प्रबंधन अधिकार: इसमें किसी भी सामुदायिक वन संसाधन की रक्षा, पुनः उत्थान या संरक्षण या प्रबंधन का अधिकार शामिल है, जिसे वन निवासियों द्वारा स्थायी उपयोग के लिये पारंपरिक रूप से संरक्षित एवं सुरक्षित किया जाता है।
डिजिटल भूमि रिकॉर्ड हेतु भारत की पहलें:
- स्वामित्व (SVAMITVA):
- स्वामित्व ड्रोन तकनीक और कंटीन्यूअसली ऑपरेटिंग रेफरेंस स्टेशन (CORS) का उपयोग करके ग्रामीण आबादी वाले क्षेत्रों में भूमि मानचित्रण की एक योजना है।
- वर्ष 2020 से 2024 तक चार वर्षों की अवधि में चरणबद्ध तरीके से देश भर में मानचित्रण किया जाएगा।
- परिवेश (PARIVESH) पोर्टल:
- परिवेश एक वेब-आधारित एप्लिकेशन है जिसे केंद्र, राज्य और ज़िला स्तर के अधिकारियों से पर्यावरण, वन, वन्यजीव और तटीय विनियमन क्षेत्र (Coastal Regulation Zones- CRZ) की मंज़ूरी प्राप्त करने के लिये प्रस्तावकों द्वारा दिये गए प्रस्तावों की ऑनलाइन प्रस्तुति और निगरानी हेतु विकसित किया गया है।
- भूमि संवाद:
- भूमि संवाद डिजिटल इंडिया लैंड रिकॉर्ड आधुनिकीकरण कार्यक्रम (National Workshop on Digital India Land Record Modernisation Programme- DILRMP) पर एक राष्ट्रीय कार्यशाला है।
- यह देश भर में एक उपयुक्त एकीकृत भूमि सूचना प्रबंधन प्रणाली (Integrated Land Information Management System- ILIMS) विकसित करने के लिये विभिन्न राज्यों में भूमि अभिलेखों के क्षेत्र में मौजूद समानताओं को स्थापित करने का प्रयास करता है, जिस पर विभिन्न राज्य राज्य-विशिष्ट आवश्यकताओं को भी जोड़ सकते हैं जैसा कि वे प्रासंगिक और उपयुक्त समझ सकते हैं।
- राष्ट्रीय सामान्य दस्तावेज़ पंजीकरण प्रणाली:
- यह मौजूदा मैनुअल पंजीकरण प्रणाली से बिक्री-खरीद और भूमि के हस्तांतरण में सभी लेन-देन के ऑनलाइन पंजीकरण की ओर एक बड़ा बदलाव है।
- यह राष्ट्रीय एकता की दिशा में एक बड़ा कदम है और 'वन नेशन वन सॉफ्टवेयर' को भी बढ़ावा देगा।
- विशिष्ट भूखंड पहचान संख्या
- ULPIN को ‘भूमि की आधार संख्या’ के रूप में वर्णित किया जाता है। यह एक ऐसी संख्या है जो भूमि के उस प्रत्येक खंड की पहचान करेगी जिसका सर्वेक्षण हो चुका है, विशेष रूप से ग्रामीण भारत में, जहाँ सामान्यतः भूमि-अभिलेख काफी पुराने एवं विवादित होते हैं। इससे भूमि संबंधी धोखाधड़ी पर रोक लगेगी।
भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS):
- वेब आधारित भौगोलिक सूचना तंत्र (GIS) में वेब तथा अन्य परिसंचालनों का उपयोग कर स्थानिक जानकारी का अनुप्रयोग, सूचनाओं को संसाधित एवं प्रसारित किया जाता है।
- यह उपयोगकर्त्ताओं के आँकड़ों के एकत्रीकरण, विश्लेषण एवं परिणामों को अधिक-से-अधिक व्यक्तियों तक प्रसारित करने में मदद करता है तथा नीति निर्माताओं के लिये उपयुक्त आँकड़ों को उपलब्ध कराने में मदद करता है।
- GIS ऐसी किसी भी जानकारी का उपयोग कर सकता है जिसमें स्थान शामिल है। स्थान को कई अलग-अलग तरीकों से व्यक्त किया जा सकता है, जैसे- अक्षांश और देशांतर, पता या ज़िप कोड।
- GIS में लोगों से संबंधित आँकड़े जैसे- जनसंख्या, आय या शिक्षा का स्तर आदि डेटााशामिल हो सकता है।
- इसमें कारखानों, खेतों, स्कूलों, तूफानों, सड़कों और विद्युत लाइनों आदि के संबंध में जानकारी भी शामिल हो सकती है।
UPSC सिविल सेवा विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न. राष्ट्रीय स्तर पर अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006 के प्रभावी कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये कौन सा मंत्रालय नोडल एजेंसी है? (a) पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: A व्याख्या:
अतः विकल्प A सही है। |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
भारतीय अर्थव्यवस्था
वैश्विक छंँटनी का प्रभाव
प्रिलिम्स के लिये:वैश्विक छंँटनी, आर्थिक मंदी, GDP, रोज़गार, रूस-यूक्रेन संघर्ष, कोविड-19। मेन्स के लिये:भारत पर वैश्विक छंँटनी का प्रभाव। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कई अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने बड़े पैमाने पर छंँटनी की घोषणा की है, जो पहले ही सितंबर और अक्तूबर 2022 में 60,000 को पार कर चुकी है।
- छंँटनी, नियोक्ता द्वारा कर्मचारी के प्रदर्शन से असंबंधित कारणों से रोज़गार की अस्थायी या स्थायी समाप्ति है।
छंँटनी के कारण:
- लागत में कटौती:
- वैश्विक मंदी की चर्चा के साथ तकनीकी कंपनियाँ, जिन्हें आमतौर पर बड़े खर्च करने वाली के रूप में देखा जाता है, अब लागत में कटौती का सहारा ले रही हैं।
- लागत में कटौती छंँटनी के मुख्य कारणों में से एक है क्योंकि कंपनियाँ अपने खर्चों को कवर करने के लिये पर्याप्त लाभ नहीं कमा रही हैं या उन्हें ऋण चुकाने के लिये पर्याप्त अतिरिक्त नकदी की आवश्यकता है।
- भारतीय स्टार्टअप्स को भी इस परेशानी का सामना मीडिया रिपोर्ट्स से करना पड़ा है, जिसमें कहा गया है कि वर्ष 2022 में मुख्य रूप से एडटेक और ई-कॉमर्स क्षेत्रों में स्टार्टअप्स द्वारा दस हज़ार से अधिक कर्मचारियों की छंँटनी की गई है।
- आर्थिक मंदी का डर:
- ये कंपनियाँ संभावित आर्थिक मंदी से आशंकित हैं, दुनिया के अधिकांश हिस्सों में मुद्रास्फीति बढ़ रही है।
- अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (International Monetary Fund- IMF) ने महामारी और चल रहे रूस-यूक्रेन संघर्ष को देखते हुए वर्ष 2022 तथा 2023 दोनों में वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) वृद्धि के पूर्वानुमान को निराशाजनक बताया है।
- ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर निर्भरता का कम होना:
- महामारी के दौरान, मांग में वृद्धि आई क्योंकि लोग लॉकडाउन में थे और वे इंटरनेट पर बहुत समय बिता रहे थे। समग्र खपत में वृद्धि देखी गई जिसके बाद कंपनियों ने बाज़ार की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिये अपने उत्पादन में वृद्धि की।
- मांगों को पूरा करने के लिये कई तकनीकी कंपनियों ने महामारी के बाद भी उछाल जारी रहने की उम्मीद में कंपनी में भर्ती की होड़ शुरू कर दी।
- हालाँकि जैसे-जैसे प्रतिबंधों में ढील दी गई और लोगों ने अपने घरों से बाहर निकलना शुरू किया, खपत में कमी आई, जिसके परिणामस्वरूप इन बड़ी टेक कंपनियों को भारी नुकसान हुआ। मांग में अचानक उछाल के कारण इनमें से कुछ संसाधनों को उच्च लागत पर काम पर रखा गया था।
भारतीय व्यवसायों का भविष्य:
- भारतीय सूचना प्रौद्योगिकी सेवा कंपनियाँ संगठित क्षेत्र में सबसे बड़े नियोक्ताओं में से हैं और किसी भी वैश्विक आर्थिक प्रवृत्ति का उनके विकास संबंधी अनुमानों पर प्रभाव पड़ना तय है।
- क्योंकि वे निवेशकों के प्रति उत्तरदायी होते हैं, प्रबंधन खर्च को कम करने और लाभ मार्जिन बनाए रखने की कोशिश करते समय कर्मचारियों के स्तर पर सावधानीपूर्वक विचार करता है।
- हालाँकि अभी तक इससे संबंधित कोई स्पष्ट रुझान नहीं है, फिर भी कुछ संकेत हैं जो बता सकते हैं कि अगले कुछ महीनों में क्या होने की आशा है?
- विप्रो को छोड़कर, सभी प्रमुख व्यवसायों के राजस्व और शुद्ध लाभ में वृद्धि हुई। सितंबर तिमाही के लिये, विप्रो का शुद्ध लाभ पिछले वर्ष की इसी अवधि की तुलना में 9% कम रहा।
- शीर्ष दो फर्मों, TCS और इन्फोसिस प्रति 100 कर्मचारियों की संख्या, यह दर्शाती है कि ये दरें अभी भी उच्च हैं, जिसका अर्थ है कि प्रतिस्पर्धियों के कर्मचारियों को आकर्षित करने के लिये इस क्षेत्र के लिये पर्याप्त व्यवसाय है।
- भारतीय स्टार्ट-अप फ्रंट में छंँटनी की खबरें मुख्य रूप से एडटेक या एजुकेशनल टेक्नोलॉजी फ्रंट में हैं।
छंँटनी का प्रभाव
- श्रमिकों के लिये नुकसान:
- छंँटनी मनोवैज्ञानिक रूप से और साथ ही वित्तीय रूप से प्रभावित श्रमिकों के साथ-साथ उनके परिवारों, समुदायों, सहयोगियों और अन्य व्यवसायों के लिये हानिकारक हो सकती है।
- संभावनाओं का नुकसान:
- जिन भारतीय श्रमिकों को नौकरी से निकाला गया है, उनकी चिंता बहुत बड़ी है। यदि वे 60 दिनों के भीतर एक नया नियोक्ता खोजने में असमर्थ हैं, तो उन्हें अमेरिका छोड़ने और बाद में फिर से प्रवेश करने की संभावना का सामना करना पड़ता है।
- मामलों को बदतर बनाने के लिये, इन भारतीय श्रमिकों की घर वापसी की संभावनाएंँ भी कमज़ोर हैं।
- अधिकांश भारतीय आईटी कंपनियों ने नियुक्तियों को फ्रीज या धीमा कर दिया है क्योंकि अमेरिका में मंदी की आशंका और यूरोप में उच्च मुद्रास्फीति ने मांग को कम रखा है।
- ग्राहकों की संभाव्यता में कमी:
- जब कोई कंपनी अपने कर्मचारियों छंँटनी करती है तो इससे ग्राहकों में यह संदेश जाता है कि वह किसी प्रकार से संकटग्रस्त है।
- भावनात्मक संकट:
- यद्यपि जिस व्यक्ति को नौकरी से निकाल दिया जाता है,वह सबसे अधिक संकट में होता है लेकिन शेष कर्मचारी भी भावनात्मक रूप से भी पीड़ित होते हैं। भय के साथ काम करने वाले कर्मचारियों का उत्पादकता स्तर कम होने की संभावना होती है।
पूर्ववर्ती वैश्विक मंदी के दौरान भारत की स्थिति:
- पूर्ववर्ती वैश्विक मंदी के दौरान यद्यपि कंपनियों ने शायद ही कभी सार्वजनिक रूप से छंँटनी की घोषणा की थी लेकिन वे सभी उन कर्मचारियों को निकालना चाहते थे जिनका प्रदर्शन स्तर काफी नीचे था।
- जो कंपनियाँ विशेष रूप से खराब दौर से गुज़र रही थीं उन्होंने बेंच स्ट्रेंथ (समूह के प्रतिभाशाली लोगों की संख्या) में कटौती की। इसके बाद यदि कोई व्यक्ति समूह में केवल एक महीने पुराना था (यानी, उनके पास कोई परियोजना नहीं थीा), तो उसे कुछ प्रशिक्षण कार्यों आदि के लिये साइन अप करने के लिये कहा जा सकता था।
- यदि किसी पेशेवर ने बेंच/समूह में तीन महीने से अधिक समय लगाया और एक भी परियोजना पूरी नहीं की थी, तो सिस्टम स्वयं उसे बाहर निकाल देता था।।
- 2008 की मंदी का परिणाम यह हुआ कि कंपनियों ने कर्मचारियों की संख्या में वृद्धि को धीमा करना शुरू कर दिया।
- कैंपस से किये जाने वाले नियोजित परिवर्द्धन में कमी की गई अथवा नियोजन का प्रस्ताव तो दिया जाता था लेकिन चयनित व्यक्ति को कंपनी के साथ जुड़ने में 9-12 महीने का समय लगता था।
आगे की राह
- भारतीय स्टार्टअप अपने पड़ोसी क्षेत्रों की तुलना में तेज़ गति से आगे बढ़े हैं। लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि यदि एक स्टार्टअप ने विकास के क्रम में आसमान छू लिया है तो उसके कर्मचारियों की नौकरियाँ भी सुरक्षित होंगी।
- स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति कार्यक्रम व्यक्तियों को सुचारू रूप से सेवानिवृत्ति की ओर बढ़ने में सक्षम बना सकते हैं।
स्रोत: द हिंदू
जैव विविधता और पर्यावरण
भारत में वर्ष 2040 तक नवोन्मेषी कूलिंग प्रौद्योगिकी
प्रिलिम्स के लिये:वर्ष 2040 तक भारत में ग्रीन कूलिंग सॉल्यूशंस, विश्व बैंक, ICAP, ग्रीन हाउस गैस, PMAY, थर्मल कम्फर्ट। मेन्स के लिये:सतत् विकास हेतु ग्रीन कूलिंग से संबंधित रणनीतियाँ। |
चर्चा में क्यों?
- विश्व बैंक समूह द्वारा जारी रिपोर्ट 'भारत के कूलिंग क्षेत्रों में जलवायु निवेश के अवसर' के अनुसार निम्न कार्बन-गहन प्रौद्योगिकियों के माध्यम से भारत के कूलिंग क्षेत्र में निवेश के अवसर 1.6 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ सकते हैं।
रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ:
- रिपोर्ट में वर्ष 2019 में शुरू किये गए इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान (ICAP) का विश्लेषण किया गया है और कूलिंग संबंधित क्षेत्रों में सरकार के निवेश के अवसरों को प्राथमिकता देने हेतु सुझाव दिये गए हैं।
- रिपोर्ट एयर कंडीशनिंग के प्रयोग पर ध्यान केंद्रित नहीं करती है क्योंकि वर्ष 2040 तक केवल 40% भारतीयों के पास एयर कंडीशनर होगा जो वर्तमान में लगभग 8% भारतीयों के पास है तथा इसके अलावा माँग की पूर्ति के लिये निष्क्रिय कूलिंग प्रौद्योगिकियों पर ध्यान केंद्रित किया जाना चाहिये।
- तीन अलग-अलग क्षेत्रों- विनिर्माण, कोल्ड चेन और रेफ्रिजरेंट में निवेश के अवसर, ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में कमी लाने तथा लगभग 3.7 मिलियन रोज़गार सृजित करने की क्षमता है।
- हीट स्ट्रेस और उससे होने वाले उत्पादकता में गिरावट के कारण देश में लगभग 34 मिलियन लोग अपनी नौकरी खो सकते हैं।
- वर्ष 2022 में भारत में अनुभव किये गए हीटवेव की ही तरह आने वाले समय में विश्व में इस प्रकार के अनेकों हीटवेव की संभावनाएँ हैं।
- तापमान में दो-तीन डिग्री की वृद्धि की संभावनाओं को देखते हुए विश्व में हीट स्ट्रेस में भारी वृद्धि होना तय है।
सिफारिशें:
- सतत् अंतरिक्ष कूलिंग:
- सतत् अंतरिक्ष कूलिंग समाधान वर्ष 2040 तक वार्षिक GHG उत्सर्जन को 213 मीट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड के बराबर कम कर सकता है।
- यह कूलिंग प्रौद्योगिकियों एयर कंडीशनर, सीलिंग फैन और चिलर की दक्षता में वृद्धि करके हासिल किया जा सकता है जो वर्ष 2037-38 तक 30% ऊर्जा बचा सकता है।
- निष्क्रिय कूलिंग रणनीतियाँ:
- शहरों में इमारतों के लिये निष्क्रिय कूलिंग रणनीतियाँ वर्ष 2038 तक ऊर्जा के उपयोग को 20-30% तक कम कर सकती हैं।
- किसी इमारत के तापमान में एक डिग्री सेल्सियस की गिरावट से कूलिंग के लिये विद्युत की मांग में दो-चार प्रतिशत की कमी आ सकती है।
- ताप अनुकूलता:
- सरकार को अपने किफायती आवास कार्यक्रम ‘प्रधानमंत्री आवास योजना’ (PMAY) में एक ताप अनुकूलता कार्यक्रम शामिल करना चाहिये।
- इन घरों में निष्क्रिय कूलिंग प्रौद्योगिकियों के माध्यम से ताप अनुकूलता, सरकार के लक्ष्य 11 मिलियन से अधिक शहरी परिवारों और ग्रामीण क्षेत्रों में 29 मिलियन परिवारों को लाभान्वित कर सकता है।
- यह भी सुनिश्चित होगा कि बढ़ते तापमान से सबसे अधिक प्रभावित लोग असमान रूप से प्रभावित न हों।
- ज़िला कूलिंग प्रणाली (DCS):
- DCS अलग-अलग इमारतों के बज़ाय इमारतों के समूहों के लिये केंद्रीकृत कूलिंग तकनीक हैं जो कहीं अधिक दक्ष है।
- उच्च घनत्व वाले रियल एस्टेट परिसरों के लिये ज़िला कूलिंग अनिवार्य किया जाना चाहिये।
- DCS एक केंद्रीय संयंत्र में शीतल जल उत्पन्न करता है जिसे भूमिगत इन्सुलेटेड पाइपों के माध्यम से कई इमारतों में वितरित किया जा सकता है।
- शीत शृंखला और प्रशीतन:
- शीत शृंखला वितरण नेटवर्क में अंतराल को भरने के लिये रणनीतियों में निवेश हेतु विश्व बैंक जैसे बहुपक्षीय विकास बैंकों से रियायती वित्त का उपयोग करने का सुझाव दिया गया है।
- इस तरह के निवेश से खाद्य क्षति को लगभग 76% तक कम करने और कार्बन उत्सर्जन को 16% तक कम करने में मदद मिल सकती है।
इंडिया कूलिंग एक्शन प्लान (ICAP)
- यह राष्ट्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी कार्यक्रम के तहत अनुसंधान के एक महत्त्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में "कूलिंग और संबंधित क्षेत्रों" को पहचानने का प्रयास करता है।
- यह कूलिंग के लिये भारत की राष्ट्रीय रणनीति का हिस्सा है, जिसका उद्देश्य वर्ष 2037-2038 तक देश भर में कूलिंग की मांग को 25% तक कम करना है।
- इसका उद्देश्य वर्ष 2037-38 तक कूलिंग ऊर्जा आवश्यकताओं को 25% से 40% तक कम करना है।
- स्किल इंडिया मिशन के समन्वय से वर्ष 2022-23 तक 1,00,000 सर्विसिंग सेक्टर तकनीशियनों का प्रशिक्षण और प्रमाणन।
- यह आर्थिक रूप से कमज़ोर वर्ग (Economically Weaker Section- EWS) और निम्न-आय वर्ग (Low-Income Group- LIG) आवास के लिये कूलिंग का भी प्रावधान करता है।
- मॉन्ट्रियल प्रोटोकॉल के अनुरूप, योजना में उन तत्त्वों को कम करने पर ज़ोर दिया गया है जो ओज़ोन परत को क्षति पहुँचाते हैं।
- इसका लक्ष्य समाज के लिये पर्यावरणीय और सामाजिक-आर्थिक लाभों को सुरक्षित करते हुए सभी के लिये स्थायी कूलिंग और तापीय संतुलन प्रदान करना है।