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द्वितीय विश्व भू-स्थानिक सूचना कॉन्ग्रेस

  • 13 Oct 2022
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र विश्व भू-स्थानिक सूचना कॉन्ग्रेस

मेन्स के लिये:

भारत का भू-स्थानिक क्षेत्र- चुनौतियाँ और अवसर, सरकारी नीतियाँ और हस्तक्षेप

चर्चा में क्यों?

हाल ही में दूसरी संयुक्त राष्ट्र विश्व भू-स्थानिक सूचना कॉन्ग्रेस (United Nations World Geospatial Information Congress- UNWGIC) का उद्घाटन हैदराबाद में 'जियो-इनेबलिंग द ग्लोबल विलेज: नो वन शुड बी लेफ्ट बिहाइंड' (Geo-Enabling the Global Village: No one should be left behind) विषय के तहत किया गया।

  • भारत की भू-स्थानिक अर्थव्यवस्था के वर्ष 2025 तक 12.8% की वृद्धि दर के साथ 63,100 करोड़ रुपए से अधिक होने का अनुमान लगाया गया है।

संयुक्त राष्ट्र विश्व भू-स्थानिक सूचना कॉन्ग्रेस:

  • पहली UNWGIC वर्ष 2018 में चीन के झेजियांग प्रांत के डेकिंग में आयोजित की गई थी।
  • वैश्विक भू-स्थानिक सूचना प्रबंधन (UN-GGIM) पर विशेषज्ञों की संयुक्त राष्ट्र समिति प्रत्येक चार वर्ष में UNWGIC का आयोजन करती है।
  • इसका उद्देश्य भू-स्थानिक सूचना प्रबंधन और क्षमताओं में सदस्य देशों एवं प्रासंगिक हितधारकों के मध्य अंतर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाना है।

भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी:

  • परिचय:
    • भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी एक ऐसा शब्द है जिसका उपयोग पृथ्वी और मानव समाजों के भौगोलिक मानचित्रण एवं विश्लेषण में योगदान करने वाले आधुनिक उपकरणों की श्रेणी का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
      • 'भू-स्थानिक' शब्द उन प्रौद्योगिकियों के संग्रह को संदर्भित करता है जो भौगोलिक जानकारी को एकत्र करने, विश्लेषण करने, संगृहीत करने, प्रबंधित करने, वितरित करने, एकीकृत करने और प्रस्तुत करने में सहायता करते हैं।
    • इसमें निम्नलिखित प्रौद्योगिकियाँ शामिल हैं:
  • महत्त्व:
    • रोज़गार सृजन:
      • यह मुख्य रूप से भारत में भू-स्थानिक स्टार्टअप के माध्यम से 10 लाख से अधिक लोगों को रोज़गार प्रदान करेगा।
    • सामाजिक-आर्थिक विकास:
      • भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी उत्पादकता बढ़ाने, टिकाऊ बुनियादी ढाँचे की योजना सुनिश्चित करने, प्रभावी प्रशासन और कृषि क्षेत्र की सहायता कर सामाजिक-आर्थिक विकास के प्रमुख सहायकों में से एक बन गई है।
    • अन्य लाभ:
      • अन्य लाभों में स्थायी शहरी विकास, आपदाओं का प्रबंधन और शमन, जलवायु परिवर्तन के प्रभाव पर निगरानी, वन प्रबंधन, जल प्रबंधन, मरुस्थलीकरण की रोकथाम तथा खाद्य सुरक्षा शामिल हैं।
      • भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी का उपयोग करके उन्नत मानचित्र और मॉडल बनाए जा सकते हैं।
        • इसका उपयोग बड़ी मात्रा में डेटा में स्थानिक प्रतिरूप को प्रकट करने के लिये किया जा सकता है, जिसे मानचित्रण के माध्यम से सामूहिक रूप से एक्सेस करना जटिल है।
      • भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी स्वामित्त्व, प्रधानमंत्री गति शक्ति योजना, जन धन-आधार-मोबाइल (JAM) ट्रिनिटी आदि जैसी राष्ट्रीय विकास परियोजनाओं में समावेश और प्रगति को आगे बढ़ा रही है।

भारत में भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी से संबंधित चुनौतियाँ:

  • बड़े बाज़ार का अभाव:
    • सबसे प्रमुख बाधाओं में भारत में एक बड़े भू-स्थानिक बाज़ार का अभाव है।
    • भारत की क्षमता और आकार के पैमाने पर भू-स्थानिक सेवाओं एवं उत्पादों की मांग नहीं है।
      • मांग की यह कमी मुख्य रूप से सरकारी और निजी क्षेत्रों में संभावित उपयोगकर्त्ताओं के बीच जागरूकता की कमी का परिणाम है।
  • कुशल जनशक्ति की कमी:
    • दूसरी बाधा इस पूरे क्षेत्र में कुशल जनशक्ति की कमी रही है।
    • हालाँकि भारत में कई ऐसे क्षेत्र हैं जिन्हें भू-स्थानिक में प्रशिक्षित किया जाता है, यह ज़्यादातर या तो मास्टर स्तर के कार्यक्रम या नौकरी पर प्रशिक्षण के माध्यम से होता है।
      • पश्चिम के विपरीत भारत में मुख्य पेशेवरों की कमी है जो भू-स्थानिक तकनीक को पूर्णतः समझते हैं।
  • डेटा की अनुपलब्धता:
    • मूल डेटा की अनुपलब्धता (विशेष रूप से उच्च-रिज़ॉल्यूशन पर) भी एक बाधा है।
    • डेटा साझाकरण और सहयोग पर स्पष्टता की कमी सह-निर्माण एवं संपत्ति अर्जन से रोकती है।
  • समाधान का उपयोग करने हेतु तैयार नहीं:
    • इसके अतिरिक्त भारत की समस्याओं को हल करने के लिये विशेष रूप से तैयार समाधान (रेडी-टू-यूज़ सॉल्यूशन) अभी भी नहीं हैं।

संबंधित पहल

  • गूगल स्ट्रीट व्यू को राष्ट्रीय भू-स्थानिक नीति (NGP), 2021 के दिशा-निर्देशों के तहत भारत के दस शहरों में लॉन्च किया गया है।
  • सर्वे ऑफ इंडिया ने सारथी नामक एक वेब भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) विकसित की है। यह उपयोगकर्त्ताओं को बहुत सारे संसाधनों के बिना भू-स्थानिक डेटा विज़ुअलाइज़ेशन, हेरफेर और विश्लेषण के लिये एप्लीकेशन बनाने में मदद करेगा।
  • सर्वे ऑफ इंडिया के ऑनलाइन मैप्स पोर्टल में राष्ट्रीय, राज्य, ज़िला और तहसील स्तर के डेटा के साथ 4,000 से अधिक नक्शे हैं जिन्हें अंतिम उपयोगकर्त्ताओं के लिये अनुक्रमित किया गया है।
  • नेशनल एटलस एंड थीमैटिक मैपिंग ऑर्गनाइजेशन (NATMO) ने भारत के सांस्कृतिक मानचित्र, जलवायु मानचित्र, या आर्थिक मानचित्र जैसे विषयगत मानचित्र पोर्टल पर जारी किये हैं।
    • NATMO, विज्ञान और प्रौद्योगिकी विभाग, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के एक अधीनस्थ विभाग के रूप में कार्य कर रहा है, जिसका मुख्यालय कोलकाता में है।
  • भुवन, इसरो द्वारा विकसित और होस्ट किया गया राष्ट्रीय भू-पोर्टल है जिसमें भू-स्थानिक डेटा, सेवाएँ एवं विश्लेषण के लिये उपकरण शामिल हैं।
  • जियोस्पेशियल इंडस्ट्रीज़ एसोसिएशन ने "भारत में जल क्षेत्र के लिये भू-स्थानिक प्रौद्योगिकियों की क्षमता" शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है।

आगे की राह

  • भारत को तेज़ी से विकास के लिये अधिक प्रयास करने की ज़रूरत है, इस हेतु भू-स्थानिक जैसे क्षेत्र में विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • सभी सार्वजनिक-वित्तपोषित डेटा को सेवा मॉडल के रूप में बिना किसी शुल्क या नाममात्र के शुल्क के माध्यम से सुलभ बनाने के लिये एक भू-पोर्टल स्थापित करने की आवश्यकता है।
  • सॉल्यूशन डेवलपर्स और स्टार्टअप्स को विभागों में विभिन्न व्यावसायिक प्रक्रियाओं के लिये सॉल्यूशन टेम्प्लेट बनाने के लिये लगाया जाना चाहिये।

स्रोत: पी.आई.बी.

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