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डेली न्यूज़

  • 02 Aug, 2021
  • 42 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत ने UNSC की अध्यक्षता ग्रहण की

प्रिलिम्स के लिये:

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद

मेन्स के लिये:

भारत द्वारा UNSC की अध्यक्षता ग्रहण करने के लाभ एवं वैशिक परिदृश्य में इसका महत्त्व

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत ने अगस्त 2021 के महीने के लिये संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की अध्यक्षता ग्रहण की।

  • सुरक्षा परिषद के अस्थायी सदस्य के रूप में वर्ष 2021-22 के कार्यकाल के दौरान यह की भारत की पहली अध्यक्षता होगी।
  • भारत ने जनवरी 2021 में UNSC के एक अस्थायी सदस्य के रूप में अपना दो वर्ष का कार्यकाल शुरू किया।
  • UNSC में यह भारत का आठवाँ कार्यकाल है।

प्रमुख बिंदु

भारत द्वारा UNSC की अध्यक्षता:

  • भारत इस महीने के लिये संयुक्त राष्ट्र निकाय का एजेंडा तय करेगा और कई मुद्दों पर महत्त्वपूर्ण बैठकों का समन्वय करेगा।
  • यह समुद्री सुरक्षा, शांति स्थापना और आतंकवाद विरोधी तीन प्रमुख क्षेत्रों में कार्यक्रम आयोजित करने जा रहा है।
    • सुरक्षा परिषद के एजेंडे के तहत सीरिया, इराक, सोमालिया, यमन और मध्य पूर्व सहित कई महत्त्वपूर्ण बैठकें होंगी।
    • सुरक्षा परिषद लेबनान में संयुक्त राष्ट्र अंतरिम बल सोमालिया, माली से संबंधित महत्त्वपूर्ण प्रस्तावों को भी अपनाएगी।
  • प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी UNSC की बैठक की अध्यक्षता करने वाले पहले भारतीय प्रधानमंत्री होंगे।
    • पिछली बार जब कोई भारतीय पीएम इस प्रयास में लगा था तो वे वर्ष 1992 में तत्कालीन PM पीवी नरसिम्हा राव थे, जब उन्होंने UNSC की बैठक में भाग लिया था।

फ्राँस और रूस का समर्थन:

  • फ्राँस ने कहा है कि वह समुद्री सुरक्षा, शांति स्थापना और आतंकवाद-निरोध जैसी सामरिक समस्याओं पर भारत के साथ सहयोग करने के लिये समर्पित है।
  • रूस ने UNSC की अध्यक्षता प्राप्त करने वाले देश का स्वागत करते हुए कहा कि वह भारत के एजेंडे से बहुत प्रभावित है, जो महत्त्वपूर्ण वैश्विक चिंताओं पर बात करता है।

UNSC में भारत के लिये चुनौतियाँ:

  • चीन की चुनौती:
    • भारत ऐसे समय में UNSC में प्रवेश कर रहा है जब बीजिंग वैश्विक मंच पर पहले से कहीं अधिक मज़बूती से अपना दावा पेश कर रहा है। यह कम-से-कम छह संयुक्त राष्ट्र संगठनों का प्रमुख है और इसने वैश्विक नियमों को चुनौती दी है।
    • भारत-प्रशांत के साथ-साथ भारत-चीन सीमा पर चीन का आक्रामक व्यवहार वर्ष 2020 के दौरान देखा गया।
    • चीन ने UNSC में कश्मीर का मुद्दा उठाने की कोशिश की है।
  • कोविड के बाद की वैश्विक व्यवस्था:
    • वैश्विक अर्थव्यवस्था मंदी और स्वास्थ्य आपात स्थितियों का सामना कर रहे विभिन्न देशों के साथ जर्जर स्थिति में है।
  • संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस व अस्थिर पश्चिम एशिया को संतुलित करना:
    • अमेरिका और रूस के बीच बिगड़ते हालात तथा अमेरिका एवं ईरान के बीच बढ़ते तनाव को देखते हुए भारत के लिये इसे संभालना मुश्किल हो जाएगा।
    • भारत को राष्ट्रीय हितों को सुनिश्चित करने वाले मानवाधिकारों के उचित सम्मान के साथ नियम आधारित विश्व व्यवस्था को बनाए रखने की आवश्यकता है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद

परिचय

  • संयुक्त राष्ट्र चार्टर ने UNSC सहित संयुक्त राष्ट्र के छह मुख्य अंगों की स्थापना की। संयुक्त राष्ट्र चार्टर का अनुच्छेद 23 ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ की संरचना से संबंधित है।
    • संयुक्त राष्ट्र के अन्य 5 अंगों में शामिल हैं- संयुक्त राष्ट्र महासभा, ट्रस्टीशिप परिषद, आर्थिक और सामाजिक परिषद, अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय एवं सचिवालय।
  • ‘संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद’ को अंतर्राष्ट्रीय शांति एवं सुरक्षा बनाए रखने की प्राथमिक ज़िम्मेदारी दी गई है और जब भी वैश्विक शांति पर कोई खतरा उत्पन्न होता है तब परिषद की बैठक आयोजित की जाती है।
  • यद्यपि संयुक्त राष्ट्र के अन्य अंग सदस्य राज्यों के लिये सिफारिशें करते हैं, किंतु सुरक्षा परिषद के पास सदस्य देशों के लिये निर्णय लेने और बाध्यकारी प्रस्ताव जारी करने की शक्ति होती है।

मुख्यालय

  • परिषद का मुख्यालय न्यूयॉर्क में स्थित है।

सदस्य

  •  UNSC का गठन 15 सदस्यों (5 स्थायी और 10 गैर-स्थायी) द्वारा किया जाता है।
    • पाँच स्थायी सदस्य: अमेरिका, ब्रिटेन, फ्राँस, रूस और चीन।
    • दस गैर-स्थायी सदस्य: इन्हें महासभा द्वारा दो वर्ष के कार्यकाल के लिये चुना जाता है।
  • प्रतिवर्ष संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा दो वर्षीय कार्यकाल के लिये पाँच अस्थायी सदस्यों (कुल दस में से) का चुनाव किया जाता है। दस अस्थायी सीटों का वितरण क्षेत्रीय आधार पर होता है।
  • परिषद की अध्यक्षता प्रतिमाह 15 सदस्यों के बीच रोटेट होती है।

UNSC में मतदान और चर्चा:

  • सुरक्षा परिषद के प्रत्येक सदस्य का एक मत होता है। सभी मामलों पर सुरक्षा परिषद के निर्णय स्थायी सदस्यों सहित नौ सदस्यों के सकारात्मक मत द्वारा किये जाते हैं, जिसमें सदस्यों की सहमति अनिवार्य है।
    • पाँच स्थायी सदस्यों में से यदि कोई एक भी प्रस्ताव के विपक्ष में वोट देता है तो वह प्रस्ताव पारित नहीं होता है।
  • संयुक्त राष्ट्र का कोई भी सदस्य जो सुरक्षा परिषद का सदस्य नहीं है, बिना वोट के सुरक्षा परिषद के समक्ष लाए गए किसी भी प्रश्न की चर्चा में भाग ले सकता है, यदि सुरक्षा परिषद को लगता है कि उस विशिष्ट मामले के कारण उस सदस्य के हित विशेष रूप से प्रभावित होते हैं।

भारत एक स्थायी सदस्य के रूप में:

  • भारत UNSC में अपनी स्थायी सीट का दावा प्रस्तुत करता रहा है।
  •  स्थायी सदस्य की सीट हेतु भारत के निम्नलिखित मानदंड हैं, जैसे जनसंख्या, क्षेत्रीय आकार, सकल घरेलू उत्पाद, आर्थिक क्षमता, सांस्कृतिक विरासत और विविधता, राजनीतिक व्यवस्था तथा संयुक्त राष्ट्र की गतिविधियों में विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में अतीत एवं वर्तमान में भारत का योगदान।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


भारतीय अर्थव्यवस्था

ई-रूपी: वाउचर आधारित डिजिटल भुगतान प्रणाली

प्रिलिम्स के लिये:

ई-रूपी, आभासी मुद्रा,  एकीकृत भुगतान इंटरफेस 

मेन्स के लिये:

ई-रूपी का उपयोग और महत्त्व 

चर्चा में क्यों ?  

भारत सरकार इलेक्ट्रॉनिक वाउचर आधारित डिजिटल भुगतान प्रणाली ई-रूपी (e-RUPI) लॉन्च करने जा रही है।

  • इस वाउचर सिस्टम का उपयोग पहले से ही कई दशों द्वारा किया जा रहा है, उदाहरण के लिये अमेरिका, कोलंबिया, चिली, स्वीडन, हॉन्गकॉन्ग आदि।

e-RUPI

e-Rupi

प्रमुख बिंदु: 

ई-रूपी:

  • डिजिटल पेमेंट हेतु यह एक कैशलेस और कॉन्टैक्टलेस तरीका है। यह एक त्वरित प्रतिक्रिया (QR) कोड या एसएमएस स्ट्रिंग-आधारित ई-वाउचर है, जो उपयोगकर्त्ताओं के मोबाइल पर भेजा जाता है।
  • उपयोगकर्त्ता कार्ड, डिजिटल भुगतान एप या इंटरनेट बैंकिंग एक्सेस की आवश्यकता के बिना इस वाउचर को भुनाने में सक्षम होंगे।
  • यह सेवाओं के प्रायोजकों को बिना किसी भौतिक इंटरफेस के डिजिटल मोड में लाभार्थियों और सेवा प्रदाताओं के साथ जोड़ता है।
  • तंत्र यह भी सुनिश्चित करता है कि लेन-देन पूरा होने के बाद ही सेवा प्रदाता को भुगतान किया जाए।
  • सिस्टम प्री-पेड प्रकृति का है और इसलिये किसी भी मध्यस्थ के बिना सेवा प्रदाता को समय पर भुगतान का आश्वासन देता है।

आभासी मुद्रा से भिन्न:

  • वास्तव में ई-रूपी अभी भी मौजूदा भारतीय रुपए द्वारा समर्थित है क्योंकि अंतर्निहित परिसंपत्ति और इसके उद्देश्य की विशिष्टता इसे एक आभासी मुद्रा से अलग बनाती है और इसे वाउचर-आधारित भुगतान प्रणाली के करीब रखती है।

जारीकर्त्ता संस्थाएंँ और लाभार्थी की पहचान:

  • वित्तीय सेवा विभाग, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय तथा राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्राधिकरण के सहयोग से भारतीय राष्ट्रीय भुगतान निगम द्वारा अपने एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) प्लेटफॉर्म पर एकमुश्त भुगतान तंत्र विकसित किया गया है।
  • यह बैंकों का एक बोर्ड होगा जो इसे जारी करने वाली संस्थाएंँ होंगी। किसी भी कॉरपोरेट या सरकारी एजेंसी को साझेदार बैंकों से संपर्क करना होगा, जो निजी और सार्वजनिक दोनों क्षेत्र में ऋण प्रदान करते हैं, विशिष्ट व्यक्तियों के विवरण तथा उस उद्देश्य हेतु जिसके लिये भुगतान किया जाना है।
  • लाभार्थियों की पहचान उनके मोबाइल नंबर का उपयोग करके की जाएगी तथा बैंक द्वारा किसी दिये गए व्यक्ति के नाम पर सेवा प्रदाता को आवंटित वाउचर केवल उस व्यक्ति को ही प्रदान किया जाएगा।

उपयोग:

  • सरकारी क्षेत्र:
    • इससे कल्याण सेवाओं की लीक-प्रूफ डिलीवरी (Leak-Proof Delivery) सुनिश्चित होने की उम्मीद है और इसका उपयोग आयुष्मान भारत प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना, उर्वरक सब्सिडी आदि योजनाओं के तहत मातृ एवं बाल कल्याण योजनाओं, दवाओं व निदान के तहत दवाएँ तथा पोषण सहायता प्रदान करने हेतु योजनाओं के तहत सेवाएँ देने के लिये भी किया जा सकता है।
  • निजी क्षेत्र:

महत्त्व:

  • सरकार पहले से ही एक केंद्रीय बैंक द्वारा नियंत्रित ‘डिजिटल मुद्रा’ विकसित करने की दिशा में कार्य कर रही है और ‘ई-रूपी’ का शुभारंभ संभावित रूप से डिजिटल भुगतान अवसंरचना में मौजूद अंतराल को उजागर कर भविष्य की डिजिटल मुद्रा की सफलता में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर सकता है।

भारत में डिजिटल मुद्रा का भविष्य:

  • भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के अनुसार, भारत में डिजिटल मुद्राओं के बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद है, जिसके निम्नलिखित चार कारण हो सकते हैं:
  • डिजिटल भुगतान की पहुँच में बढ़ोतरी: देश में डिजिटल भुगतान में बढ़ोतरी हो रही है, साथ ही नकदी का उपयोग, विशेष रूप से छोटे मूल्य के लेन-देन के लिये अभी भी महत्त्वपूर्ण रूप से बरकार है।
  • उच्च करेंसी-जीडीपी अनुपात: भारत का उच्च करेंसी-जीडीपी अनुपात देश की ‘केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा’ की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है।
    • नकद-जीडीपी अनुपात या उच्च करेंसी-जीडीपी अनुपात, सकल घरेलू उत्पाद के अनुपात के रूप में प्रचलन में नकदी के मूल्य को दर्शाता है।
  • वर्चुअल करेंसी का प्रसार: बिटकॉइन और एथेरियम जैसी निजी वर्चुअल मुद्राओं का प्रसार ‘केंद्रीय बैंक डिजिटल मुद्रा’ की प्रसिद्धि का एक अन्य कारण हो सकता है।
  • आम जनता के लिये महत्त्वपूर्ण: केंद्रीय बैंक की डिजिटल मुद्रा, अस्थिर निजी वर्चुअल मुद्राओं के विरुद्ध आम जनता के लिये काफी महत्त्वपूर्ण होगी।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


शासन व्यवस्था

राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र का 112वांँ वार्षिक दिवस

प्रिलिम्स के लिये:

रोगाणुरोधी प्रतिरोध, वायु गुणवत्ता सूचकांक

मेन्स के लिये: 

NPCCHH के तहत अनुकूलन योजनाएँ, NPCCHH का उद्देश्य 

चर्चा में क्यों? 

हाल ही में केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्री ने राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र ( National Centre for Disease Control- NCDC) के 112वें वार्षिक दिवस समारोह की अध्यक्षता की।

प्रमुख बिंदु 

कार्यक्रम में शुरू की गई पहल:

  • जीनोम लैब:
    • रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance- AMR) के लिये संपूर्ण जीनोम अनुक्रमण (WGS) राष्ट्रीय प्रयोगशाला का उद्घाटन किया गया।
    • WGS संपूर्ण जीनोम के विश्लेषण हेतु एक व्यापक विधि है। यह आनुवंशिक जानकारी हेतु वंशानुगत विकारों की पहचान करने, कैंसर को बढ़ावा देने वाले उत्परिवर्तनों को चिह्नित करने और रोग के प्रकोप पर नज़र रखने में सहायक रही है।
      • तेज़ीसे घटती अनुक्रमण लागत और आज के अनुक्रम्रक/सीक्वेंसर के साथ बड़ी मात्रा में डेटा का उत्पादन करने की क्षमता संपूर्ण-जीनोम अनुक्रमण को जीनोमिक्स अनुसंधान हेतु एक शक्तिशाली उपकरण बनाती है।
    • रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Antimicrobial Resistance-AMR) का तात्पर्य किसी भी सूक्ष्मजीव (बैक्टीरिया, वायरस, कवक, परजीवी आदि) द्वारा एंटीमाइक्रोबियल दवाओं (जैसे एंटीबायोटिक्स, एंटीफंगल, एंटीवायरल, एंटीमाइरियल और एंटीहेलमिंटिक्स) जिनका उपयोग संक्रमण के इलाज के लिये किया जाता है, के खिलाफ प्रतिरोध हासिल करने से है। 
    • वैश्विक निगरानी के लिये WGS का अनुप्रयोग AMR के प्रारंभिक उद्भव और प्रसार के बारे में जानकारी प्रदान कर सकता है तथा AMR नियंत्रण हेतु समय पर नीतिगत्त विकास को सूचित कर सकता है।
  • NPCCHH के तहत अनुकूलन योजनाएँ:
    • ‘राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन एवं मानव स्वास्थ्य कार्यक्रम’ (NPCCHH) के तहत ‘वायु प्रदूषण पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य अनुकूलन योजना’ और ‘हीट संबंधी बीमारी पर राष्ट्रीय स्वास्थ्य अनुकूलन योजना’ शुरू की गई थी।
    • यह योजना अस्पताल में वायु प्रदूषण एवं स्वास्थ्य पर एक समिति गठित करने का सुझाव देती है, जिसमें आपातकालीन और नर्सिंग विभाग सहित चिकित्सा, श्वसन, चिकित्सा, बाल रोग, कार्डियोलॉजी, न्यूरोलॉजी, एंडोक्रिनोलॉजी आदि विभागों के स्वास्थ्य अधिकारियों को शामिल किया जाएगा।
    • यह योजना रसद, दवाओं और उपकरणों को लेकर आवश्यक तैयारी के महत्त्व पर भी प्रकाश डालती है, जो ऐसी स्वास्थ्य समस्याओं, विशेष रूप से श्वसन एवं हृदय संबंधी आपात स्थितियों को दूर करने के लिये आवश्यक हो सकते हैं।
    • यह संवेदनशील क्षेत्रों की पहचान, वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) के स्तर के अनुसार वायु प्रदूषण हॉटस्पॉट का चयन और पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों, किशोरों, गर्भवती महिलाओं एवं बुजुर्गों जैसे संवेदनशील वर्गों की पहचान की आवश्यकता पर भी प्रकाश डालती है।
  • सूचना, शिक्षा और संचार (IEC) मैटेरियल:
    • ‘राष्ट्रीय जूनोज़ रोकथाम और नियंत्रण स्वास्थ्य कार्यक्रम’ के तहत 7 प्राथमिकता वाले जूनोटिक रोगों पर सूचना, शिक्षा और संचार (IEC) मैटेरियल तैयार किया गत्या है, अर्थात्:
      • इसमें रेबीज़, स्क्रब टाइफस, ब्रुसेलोसिस, एंथ्रेक्स, क्रीमियन-कांगो रक्तस्रावी बुखार (CCHF), निपाह, क्यासानूर वन रोग शामिल हैं।

NPCCHH  के उद्देश्य

  • मानव स्वास्थ्य पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के संबंध में सामान्य जनसंख्या (कमज़ोर समुदाय), स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं और नीति निर्माताओं के बीच जागरूकता पैदा करना।
  • जलवायु में परिवर्तनशीलता के कारण बीमारियों / बीमारियों को कम करने के लिये स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की क्षमता को मज़बूत करना।
  •  राष्ट्रीय/राज्य/ज़िला/ज़िलों के निचले स्तर पर मौजूदा स्थिति का प्रदर्शन करके स्वास्थ्य की तैयारी और प्रतिक्रिया को मज़बूत करना।
  • साझेदारी विकसित करने और अन्य मिशनों के साथ सिंक्रनाइज़ / सिनर्जी बनाने तथा यह सुनिश्चित करने हेतु कि देश में जलवायु परिवर्तन एजेंडा में स्वास्थ्य का पर्याप्त रूप से प्रतिनिधित्व किया जाता है।
  • मानव स्वास्थ्य पर  पड़ने वाले जलवायु परिवर्तन के प्रत्यक्ष प्रभाव के परिणामी-अंतराल को भरने के लिये अनुसंधान क्षमता को मज़बूत करना।

राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र:

  • परिचय:
    • राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र (National Centre for Disease Control- NCDC) को पूर्व में राष्ट्रीय संचारी रोग संस्थान (National Institute of Communicable Diseases- NICD) के रूप में जाना जाता था। इसकी स्थापना वर्ष 1909 में हिमाचल प्रदेश के कसौली (Kasauli) में केंद्रीय मलेरिया ब्यूरो (Central Malaria Bureau) के रूप में की गई थी। 
    • NICD को वर्ष 2009 में पनप चुके एवं फिर से पनप रहे रोगों को नियंत्रित करने के लिये राष्ट्रीय रोग नियंत्रण केंद्र में तब्दील कर दिया गया था।
    • यह देश में रोगों की निगरानी के लिये नोडल एजेंसी के रूप में कार्य करता है जिससे संचारी रोगों की रोकथाम और नियंत्रण में सुविधा होती है।
    • यह सार्वजनिक स्वास्थ्य, प्रयोगशाला विज्ञान एंटोमोलॉजिकल (Entomological) सेवाओं हेतु विशेष कार्यबल के प्रशिक्षण के लिये राष्ट्रीय स्तर का संस्थान है और विभिन्न अनुसंधान गतिविधियों में शामिल है।
  • नियंत्रण और मुख्यालय:
    • NCDC भारत सरकार के स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के अधीन स्वास्थ्य सेवाओं के महानिदेशक (Director General of Health Services) के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है।  
    • इसका मुख्यालय दिल्ली में है।
  • कार्य:
    • यह पूरे देश में किसी भी रोग के प्रकोप की जाँच करता है।
    • व्यक्तियों, समुदायों, मेडिकल कॉलेजों, अनुसंधान संस्थानों एवं राज्य स्वास्थ्य निदेशालयों को परामर्श व नैदानिक ​​सेवाएँ प्रदान करता है।
    • महामारी विज्ञान, निगरानी और प्रयोगशालाओं आदि जैसे विभिन्न क्षेत्रों में ज्ञान के सृजन एवं प्रसार करना।
    • संचारी रोगों के विभिन्न पहलुओं के साथ-साथ गैर-संचारी रोगों के कुछ पहलुओं में एकीकृत अनुसंधान को बढ़ावा देना।

स्रोत: पीआईबी


जैव विविधता और पर्यावरण

ओज़ोन का स्तर अनुमत स्तरों से अधिक

प्रिलिम्स के लिये:

विज्ञान और पर्यावरण केंद्र, ओज़ोन, वायु गुणवत्ता सूचकांक

मेन्स के लिये:

ओज़ोन का स्तर अनुमत स्तरों से अधिक होने के  प्रभाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में विज्ञान और पर्यावरण केंद्र (CSE) के एक अध्ययन में पाया गया है कि ओज़ोन का स्तर दिल्ली-एनसीआर में सर्दियों के दौरान भी अनुमत स्तरों से अधिक है, जिससे स्मॉग/धुंध अधिक "विषाक्त" होता है।

  • महामारी और लॉकडाउन के बावजूद अधिक दिनों तथा स्थानों में ओज़ोन स्तर की उच्च एवं लंबी अवधि देखी गई।
  • CSE नई दिल्ली में स्थित एक सार्वजनिक ब्याज अनुसंधान और सलाहकारी संगठन है।

ओज़ोन

  • ओज़ोन (ऑक्सीजन के तीन परमाणुओं से बनी) एक गैस है जो पृथ्वी के ऊपरी वायुमंडल और ज़मीनी स्तर दोनों में होती है। ओज़ोन स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिये "अच्छा" या "बुरा" हो सकती है, जो वायुमंडल में इसकी स्थिति पर निर्भर करती है।
  • पृथ्वी के समताप मंडल की परत में मौजूद 'अच्छी' ओज़ोन मानव को हानिकारक पराबैंगनी (UV) विकिरण से बचाती है, जबकि ज़मीनी स्तर का ओज़ोन अत्यधिक प्रतिक्रियाशील है और मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है।
    • ज़मीनी स्तर की ओज़ोन श्वसन और अस्थमा से पीड़ित लोगों के लिये खतरनाक है।

स्मॉग

  • स्मॉग वायु प्रदूषण है जो दृश्यता को कम करता है।
  • धुंध और कोहरे के मिश्रण का वर्णन करने के लिये "स्मॉग" शब्द का इस्तेमाल पहली बार 1900 के दशक की शुरुआत में किया गया था।
  • धुआँ सामान्यत: जलते कोयले से निकलता है। औद्योगिक क्षेत्रों में स्मॉग एक सामान्य घटना है जो आज भी शहरों में देखा जाती है।  वर्तमान स्मॉग में से अधिकांश में  फोटोकैमिकल स्मॉग है।
    • फोटोकैमिकल स्मॉग तब उत्पन्न होता है जब सूर्य का प्रकाश वातावरण में नाइट्रोजन ऑक्साइड (NOx) और कम-से-कम एक वाष्पशील कार्बनिक यौगिक (VOC) के साथ प्रतिक्रिया करता है।
    • नाइट्रोजन ऑक्साइड का उत्सर्जन कार के धुएँ, कोयला बिजली संयंत्रों तथा कारखाने से होता है। VOCs गैसोलीन, पेंट और कई सफाई सॉल्वैंट्स से जारी किये जाते हैं। जब सूरज की रोशनी इन रसायनों से टकराती है, तो वे हवा के कणों और निचले स्तर पर ओज़ोन या स्मॉग का निर्माण करते हैं।

प्रमुख बिंदु

अब वर्ष भर खतरा:

  • इस धारणा के विपरीत कि ओज़ोन केवल गर्मी के मौसम में होने वाली घटना है, यह पाया गया है कि सर्दियों के दौरान भी यह गैस एक विकराल चिंता के रूप में उभरी है।

समसामयिक अधिकता:

  • शहर-व्यापी औसत काफी हद तक मानक के भीतर रहता है, जिसमें कभी-कभार ही अधिकता होती है। लेकिन वर्ष 2020 में 'अच्छे' श्रेणी के दिन कम होकर 115 रह गए हैं, जो दिल्ली में 2019 की तुलना में 24 दिन कम है।
  • स्थान-वार विश्लेषण से पता चलता है कि यह शहर में आठ घंटे के औसत मानक से अधिक व्यापक रूप से वितरित होती है।
  • उत्तर प्रदेश के बुलंदशहर और हरियाणा के भिवानी सहित NCR के छोटे शहर भी ओज़ोन प्रभावित शहरों की शीर्ष 20 सूची में शामिल हैं। दक्षिण दिल्ली के चार स्थान शीर्ष 10 की सूची में हैं।

सलाह:

  • अध्ययन से पता चलता है कि परिवहन क्षेत्र NOx और VOCs में सर्वाधिक योगदानकर्त्ता है, इसलिये वाहनों तथा अन्य उद्योगों सहित एनओएक्स एवं वीओसी के इन उच्च उत्सर्जकों पर कड़ी कार्रवाई करने की आवश्यकता है।
  • ओज़ोन का स्तर सर्दियों के दौरान भी 100 μg/m3 के निशान से अधिक पाया जाता है और सौर विकिरण के प्रति अत्यधिक संवेदनशील होता है। गैसों को कम करने से इन गैसों से बनने वाले द्वितीयक कण भी कम हो जाएंगे।
  • ओज़ोन वर्तमान समय की समस्या है और यह स्थिति वाहनों, उद्योग और अपशिष्ट जलाने पर मज़बूत कार्रवाई के साथ ओज़ोन शमन हेतु रणनीतियों को जोड़ने के लिये स्वच्छ वायु कार्ययोजना के संशोधन की मांग करती है।
  • दिन के सबसे प्रदूषित आठ घंटे के औसत की रिपोर्ट करने के लिये AQI (वायु गुणवत्ता सूचकांक) को जाँचना महत्त्वपूर्ण है। केवल शहर के औसत की मौजूदा प्रथा को बदलने की ज़रूरत है ताकि सबसे बुरी तरह प्रभावित क्षेत्र के आधार पर अलर्ट जारी किया जा सके।

सरकारी प्रयास:

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के तत्त्वावधान में सार्वजनिक सूचना हेतु राष्ट्रीय AQI का विकास किया गया है। AQI को आठ प्रदूषकों की मात्रा के मापन हेतु विकसित किया गया है, इनमें PM2.5, PM10, अमोनिया, लेड, नाइट्रोजन ऑक्साइड, सल्फर डाइऑक्साइड, ओज़ोन और कार्बन मोनोऑक्साइड शामिल हैं।
  • बीएस-VI वाहनों की शुरुआत, इलेक्ट्रिक वाहनों (EVs) के प्रयोग को बढ़ावा, एक आपातकालीन उपाय के रूप में ऑड-ईवन और वाहनों के प्रदूषण को कम करने के लिये पूर्वी व पश्चिमी पेरिफेरल एक्सप्रेसवे का निर्माण।
  • राजधानी में बढ़ते प्रदूषण से निपटने हेतु ग्रेडेड रिस्पांस एक्शन प्लान ((GRAP) का क्रियान्वयन। इसमें तापविद्युत संयंत्रों को बंद करने और निर्माण गतिविधियों पर प्रतिबंध जैसे उपाय शामिल हैं।
  • राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) का शुभारंभ: राष्ट्रीय स्तर पर वायु प्रदूषण के मुद्दे से व्यापक तरीके से निपटने हेतु सरकार औसत परिवेशी वायु के लक्ष्य को पूरा करने के साथ ही देश के सभी स्थानों पर गुणवत्ता मानक राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) लेकर आई है। 

स्रोत: द हिंदू 


विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी

कोविड -19 से रिकवरी में 'अश्वगंधा' का महत्त्व

प्रिलिम्स के लिये 

 कोविड-19, अश्वगंधा, यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण

मेन्स के लिये

'अश्वगंधा' से कोविड-19 की रिकवरी को बढ़ावा देना तथा  इसमें नैदानिक परीक्षण का महत्त्व 

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और यूके ने कोविड-19 से रिकवरी के मामले को बढ़ावा देने हेतु 'अश्वगंधा (AG)' पर एक अध्ययन का आयोजन करने में सहयोग किया है।

  • परीक्षण की सफलता के पश्चात् 'अश्वगंधा' कोरोना संक्रमण को रोकने हेतु एक सिद्ध औषधीय उपचार होगा तथा वैश्विक स्तर पर वैज्ञानिक समुदाय द्वारा पहचाना जाएगा।
  • यह पहली बार है जब आयुष मंत्रालय ने किसी विदेशी संस्थान के साथ मिलकर कोविड-19 रोगियों पर इसकी प्रभावशीलता का परीक्षण किया।

Ashwagandha

प्रमुख बिंदु 

अश्वगंधा के बारे में:

  • अश्वगंधा (विथानिया सोम्निफेरा/Withania Somnifera) एक औषधीय जड़ी बूटी है। इसे इम्युनिटी बढ़ाने के लिये जाना जाता है।
  •  इसे "एडाप्टोजेन" के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिसका अर्थ है कि यह आपके शरीर को तनाव का प्रबंधन करने में मदद कर सकती है।
  • अश्वगंधा मस्तिष्क की स्मृति और संज्ञानात्मक कार्यों को बढ़ाने के साथ-साथ रक्त शर्करा को कम करती है तथा चिंता एवं अवसाद के लक्षणों से लड़ने में मदद करती है।
  • अश्वगंधा ने तीव्र और पुरानी संधिशोथ/गठिया दोनों के नैदानिक इलाज में ​​सफलता प्राप्त की है।
    • रुमेटाइड आर्थराइटिस यानी गठिया (Rheumatoid Arthritis ) एक ऐसी बीमारी है, जो व्यक्ति के जोड़ों में विकृति व विकलांगता पैदा कर सकती है। 
    • ऑटोइम्यून बीमारी एक ऐसी स्थिति है जिसमें आपकी प्रतिरक्षा प्रणाली अचेतन अवस्था में आपके शरीर को प्रभावित करती है।

अश्वगंधा की क्षमता:

  • अध्ययन से पता चलता है कि अश्वगंधा कोविड-19 के दीर्घकालिक लक्षणों को कम करने के लिये एक संभावित चिकित्सीय औषधि के रूप में है।
  • हाल ही में भारत में मनुष्यों में AG के कई यादृच्छिक प्लेसबो (Randomized Placebo) नियंत्रित परीक्षणों ने चिंता और तनाव को कम करने, मांसपेशियों की ताकत में सुधार करने तथा पुरानी स्थितियों के इलाज वाले रोगियों में थकान के लक्षणों को कम करने में इसकी प्रभावकारिता का प्रदर्शन किया है।
    • यादृच्छिक नियंत्रित परीक्षण (RCT) एक संभावित, तुलनात्मक, मात्रात्मक अध्ययन / प्रयोग है जो नियंत्रित परिस्थितियों में तुलनात्मक समूहों को हस्तक्षेपों के यादृच्छिक आवंटन के साथ किया जाता है।

नैदानिक परीक्षण:

  • मनुष्यों में नैदानिक ​​परीक्षणों को तीन चरणों में वर्गीकृत किया जाता है: चरण I, चरण II एवं चरण III और कुछ देशों में इनमें से किसी भी अध्ययन को करने के लिये औपचारिक नियामक अनुमोदन की आवश्यकता होती है।
    • चरण-I के नैदानिक ​​अध्ययन में स्वस्थ वयस्कों की कम संख्या (जैसे 20) में टीके का प्रारंभिक परीक्षण किया जाता है, ताकि टीके के गुणों, इसकी सहनशीलता और यदि उपयुक्त हो तो नैदानिक ​​प्रयोगशाला एवं औषधीय मापदंडों का परीक्षण किया जा सके। प्रथम चरण के अध्ययन मुख्य रूप से सुरक्षा से संबंधित हैं।
    • चरण-II के अध्ययन में बड़ी संख्या में विषय शामिल हैं और इसका उद्देश्य लक्षित आबादी तथा इसकी सामान्य सुरक्षा में वांछित प्रभाव (आमतौर पर इम्यूनोजेनेसिटी) उत्पन्न करने के लिये एक टीके की क्षमता के बारे में प्रारंभिक जानकारी प्रदान करना है।
    • टीके की सुरक्षात्मक प्रभावकारिता और सुरक्षा का पूरी तरह से आकलन करने के लिये व्यापक चरण-III के परीक्षणों की आवश्यकता होती है। चरण III नैदानिक ​​परीक्षण एक महत्त्वपूर्ण अध्ययन है जिस पर यह निर्णय लिया जाता है कि क्या लाइसेंस प्रदान करना है और यह प्रदर्शित करने लिये पर्याप्त डेटा प्राप्त करना है कि एक नया उत्पाद सुरक्षित और इच्छित उद्देश्य हेतु प्रभावी है या नहीं।

स्रोत-द हिंदू


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

‘गिलगित-बाल्टिस्तान’ को प्रांतीय दर्जा

प्रिलिम्स के लिये

गिलगित-बाल्टिस्तान की भौगौलिक अवस्थिति

मेन्स के लिये

गिलगित-बाल्टिस्तान विवाद और प्रांतीय दर्जे के निहितार्थ

चर्चा में क्यों?

हाल ही में पाकिस्तानी अधिकारियों ने रणनीतिक रूप से महत्त्वपूर्ण ‘गिलगित-बाल्टिस्तान’ को अनंतिम प्रांतीय दर्जा देने के लिये एक कानून (26वें संविधान संशोधन विधेयक) को अंतिम रूप दिया है।

Gilgit-Baltistan

प्रमुख बिंदु

गिलगित-बाल्टिस्तान के विषय में

  • गिलगित-बाल्टिस्तान भारत के विवादित क्षेत्रों में से एक है।
  • यह केंद्रशासित प्रदेश लद्दाख के उत्तर-पश्चिम में स्थित अत्यधिक ऊँचाई वाला एक पहाड़ी क्षेत्र है।
  • पाकिस्तान, अफगानिस्तान और चीन के साथ सीमा साझा करने के कारण इसे रणनीतिक रूप से काफी महत्त्वपूर्ण माना जाता है।

गिलगित-बाल्टिस्तान विवाद की पृष्ठभूमि:

  • इस क्षेत्र पर भारत द्वारा जम्मू-कश्मीर की पूर्ववर्ती रियासत के हिस्से के रूप में दावा किया जाता है, क्योंकि यह वर्ष 1947 में जम्मू-कश्मीर के भारत में प्रवेश के समय अस्तित्व में था
    • जम्मू-कश्मीर के अंतिम डोगरा शासक महाराजा हरि सिंह ने 26 अक्तूबर, 1947 को भारत के साथ ‘इंस्ट्रूमेंट ऑफ एक्सेशन’ पर हस्ताक्षर किये थे।
  • हालाँकि 04 नवंबर, 1947 को कबायली हमलावरों और पाकिस्तानी सेना द्वारा कश्मीर पर किये गए आक्रमण के बाद से यह क्षेत्र पाकिस्तान के नियंत्रण में है।
  • इसके पश्चात् भारत ने 01 जनवरी, 1948 को पाकिस्तानी आक्रमण के मुद्दे को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के समक्ष उठाया।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें पाकिस्तान से जम्मू-कश्मीर से बाहर जाने और भारत से अपनी सेना को न्यूनतम स्तर तक कम करने का आह्वान किया गया, इसके पश्चात् लोगों का मत जानने के लिये जनमत संग्रह का प्रावधान किया गया था। 
  • हालाँकि दोनों ही देशों द्वारा वापसी नहीं की गई, जो कि दोनों देशों के बीच विवाद का विषय बना हुआ है।

वर्तमान स्थिति: 

  • गिलगित-बाल्टिस्तान अब एक स्वायत्त क्षेत्र है और विधेयक पारित होने के बाद यह देश का 5वाँ प्रांत बन जाएगा।
    • वर्तमान समय में पाकिस्तान में चार प्रांत हैं, बलूचिस्तान, खैबर पख्तूनख्वा, पंजाब और सिंध।
  • वर्तमान में यह अधिकांशतः कार्यकारी आदेशों द्वारा शासित है।
  • वर्ष 2009 तक इस क्षेत्र को केवल उत्तरी क्षेत्र कहा जाता था।
  • इसे वर्तमान नाम गिलगित-बाल्टिस्तान (सशक्तीकरण और स्व-शासन) आदेश, 2009 के लागू होने के साथ मिला, जिसने उत्तरी क्षेत्र विधानपरिषद (Northern Areas Legislative Council) को विधानसभा (Legislative Assembly) में बदल दिया।

गिलगित-बाल्टिस्तान को प्रांत बनाने का कारण:

  • गिलगित-बाल्टिस्तान पाकिस्तान द्वारा प्रशासित सबसे उत्तरी क्षेत्र है। यह पाकिस्तान की एकमात्र प्रादेशिक सीमा है तथा चीन के साथ एक स्थल मार्ग है।
    • गिलगित-बाल्टिस्तान क्षेत्र 65 अरब अमेरिकी डॉलर की चीन-पाक आर्थिक गलियारा (CPEC) अवसंरचना विकास योजना का केंद्रबिंदु है।
    • CPEC ने इस क्षेत्र को दोनों देशों के लिये महत्त्वपूर्ण  बना दिया है। CPEC जो पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित ग्वादर पोर्ट को चीन के झिंजियांग प्रांत से जोड़ता है, चीन की महत्त्वाकांक्षी बहु-अरब डॉलर की बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) की प्रमुख परियोजना है।
  • भारत-पाकिस्तान संबंधों को लेकर कुछ विशेषज्ञ यह दावा भी प्रस्तुत करते हैं कि पाकिस्तान का यह निर्णय 5 अगस्त, 2019 को किये गये जम्मू-कश्मीर के पुनर्गठन के बाद भारत द्वारा अपना दावा प्रस्तुत करने के कारण भी हो सकता है।

भारत का रुख:

  • भारत का कहना है कि पाकिस्तान की सरकार या उसकी न्यायपालिका का अवैध रूप से उसके द्वारा जबरन कब्ज़ा किये गए क्षेत्रों पर कोई अधिकार नहीं है।
    • भारत ने पाकिस्तान को स्पष्ट रूप से बता दिया है कि जम्मू और कश्मीर तथा लद्दाख केंद्रशासित प्रदेश, जिसमें गिलगित और बाल्टिस्तान के क्षेत्र भी शामिल हैं, पूरी तरह से कानूनी व अपरिवर्तनीय परिग्रहण के आधार पर भारत का अभिन्न अंग हैं।
    • CPEC को लेकर भारत ने चीन के सामने विरोध जताया है क्योंकि यह पाकिस्तान के कब्ज़े वाले कश्मीर से गुज़रता है।

स्रोत: द हिंदू 


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