खाद्य लेबल के लिये QR कोड
प्रिलिम्स के लिये:खाद्य लेबल, भारतीय खाद्य सुरक्षा एवं मानक प्राधिकरण, फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग (FOPL), त्वरित प्रतिक्रिया कोड, दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016, खाद्य सुरक्षा एवं मानक (लेबलिंग और प्रदर्शन) विनियम, 2020 मेन्स के लिये:भारत में खाद्य लेबल, खाद्य प्रसंस्करण एवं संबंधित उद्योगों के लिये QR कोड का दायरा और महत्त्व, समावेशी विकास एवं इससे उत्पन्न मुद्दे |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) ने दृष्टिबाधित व्यक्तियों की पहुँच के लिये खाद्य उत्पादों पर QR कोड शामिल करने की सिफारिश की है, जिसमें कहा गया है कि इससे सभी के लिये सुरक्षित भोजन तक पहुँच सुनिश्चित होगी।
- FSSAI ने वर्ष 2019 में फ्रंट-ऑफ-पैक लेबलिंग (FOPL) का प्रस्ताव रखा, जो उपभोक्ताओं को सूचित विकल्प चुनने के लिये सचेत और शिक्षित करने की एक प्रमुख रणनीति है।
QR कोड:
- त्वरित प्रतिक्रिया (Quick Response- QR) कोड एक प्रकार का द्वि-आयामी मैट्रिक्स बारकोड है जो विभिन्न प्रकार के डेटा को संग्रहीत कर सकता है, जैसे- अल्फान्यूमेरिक टेक्स्ट, वेबसाइट यूआरएल, संपर्क जानकारी आदि।
- इसका आविष्कार वर्ष 1994 में जापानी कंपनी डेंसो वेव द्वारा मुख्य रूप से ऑटोमोबाइल के हिस्सों को ट्रैक व लेबल करने के उद्देश्य से किया गया था।
- QR कोड की विशेषता उसके विशिष्ट चौकोर आकार और सफेद पृष्ठभूमि पर काले वर्गों का एक पैटर्न है, जिसे QR कोड रीडर या स्मार्टफोन कैमरे का उपयोग करके स्कैन एवं भाषांतरित/इंटरप्रेट किया जा सकता है।
FSSAI की प्रमुख सिफारिशें:
- FSSAI के खाद्य सुरक्षा और मानक (लेबलिंग और प्रदर्शन) विनियम, 2020:
- ये सिफारिशें FSSAI के खाद्य सुरक्षा और मानक (लेबलिंग और प्रदर्शन) विनियम, 2020 के अनुरूप हैं।
- यह सुनिश्चित करता है कि खाद्य निर्माता लेबलिंग आवश्यकताओं का पालन करें, जो खाद्य सुरक्षा और उपभोक्ता संरक्षण के लिये आवश्यक हैं।
- दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016:
- दृष्टिबाधित व्यक्तियों की पहुँच के लिये QR कोड को शामिल करने का यह कदम दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 के अनुरूप है।
- यह समावेशिता और आवश्यक जानकारी तक समान पहुँच को बढ़ावा देता है।
- QR कोड द्वारा प्रदत्त जानकारी:
- QR कोड में उत्पाद से संबंधित व्यापक विवरण शामिल होगा, जिसमें सामग्री, पोषण जानकारी, एलर्जी संबंधी चेतावनी, विनिर्माण तिथि, तिथि से पहले/समाप्ति/उपयोग की सर्वोत्तम तिथि और ग्राहक पूछताछ के लिये संपर्क जानकारी आदि, लेकिन यह इन्हीं तक सीमित नहीं है।
- जानकारी तक पहुँच के लिये QR कोड को शामिल करना, संबंधित नियमों द्वारा निर्धारित उत्पाद लेबल पर अनिवार्य जानकारी प्रदान करने की आवश्यकता को प्रतिस्थापित या अस्वीकार नहीं करता है।
सुरक्षित भोजन तक पहुँच से संबंधित वर्तमान चिंताएँ:
- भारत में मोटापा, मधुमेह और हृदय संबंधी बीमारियों जैसे- गैर-संचारी रोगों (NCD) में उल्लेखनीय वृद्धि देखी जा रही है।
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, पिछले दो दशकों में NCD में वैश्विक वृद्धि देखी गई है।
- इन बीमारियों को आंशिक और आक्रामक रूप से आसानी से उपलब्ध सस्ते और प्री-पैकेज्ड खाद्य पदार्थों की खपत एवं विपणन के लिये ज़िम्मेदार ठहराया जाता है, जो उपभोक्ताओं के बीच तेज़ी से लोकप्रिय हो रहे हैं।
इसका महत्त्व:
- दृष्टिबाधित व्यक्तियों के लिये पहुँच:
- इन कोड्स को स्कैन करने के लिये स्मार्टफोन के एप्लीकेशन का उपयोग किया जा सकता है और उपयोगकर्त्ता पढ़ी गई जानकारी को सुन सकता है।
- यह गारंटी के साथ सुरक्षित भोजन तक समावेशिता और न्यायसंगत पहुँच को बढ़ावा देता है तथा सामान्य ग्राहकों के समान ही दृष्टिबाधितों की पहुँच खाद्य उत्पादों के विषय में महत्त्वपूर्ण जानकारी तक सुनिश्चित करता है।
- विस्तृत जानकारी:
- QR कोड में प्रदान किये गए विवरण का स्तर सभी उपभोक्ताओं, जिनमें आहार संबंधी प्रतिबंध या एलर्जी वाले लोग भी शामिल हैं, को सूचित विकल्प चुनने का अधिकार देता है, ताकि प्रतिकूल प्रतिक्रियाओं या स्वास्थ्य समस्याओं के जोखिम को कम किया जा सके।
- सूचित निर्णय लेना:
- उपभोक्ता निर्माताओं द्वारा किये गए दावों को तुरंत सत्यापित कर सकते हैं और ऐसे विकल्प चुन सकते हैं जो उनके स्वास्थ्य तथा आहार संबंधी आवश्यकताओं का समर्थन करते हैं।
- प्री-पैकेज्ड खाद्य पदार्थों की पर्याप्तता वाले बाज़ारों में यह विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण है, क्योंकि उपभोक्ता स्वस्थ और कम स्वस्थ विकल्पों के बीच अंतर कर सकते हैं।
- QR कोड के माध्यम से पोषण जानकारी और एलर्जी संबंधी चेतावनियाँ प्राप्त कर उपभोक्ता स्वस्थ खाद्य पदार्थ का चयन कर सकते हैं।
- वैश्विक महत्त्व:
- खाद्य उत्पादों पर QR कोड का उपयोग केवल भारत ही नहीं करता है बल्कि अमेरिका, फ्राँस और ब्रिटेन जैसे देश भी खाद्य उत्पादों पर QR कोड के प्रमुख उपयोगकर्त्ता हैं।
- यह वैश्विक रुझानों के अनुरूप है, क्योंकि उपभोक्ता अपने द्वारा खरीदी गई वस्तुओं के विषय में जानकारी प्राप्त करने के लिये QR कोड का अधिक-से-अधिक उपयोग करते हैं।
निष्कर्ष:
- भारत में खाद्य उत्पादों पर QR कोड को शामिल करना सार्वजनिक स्वास्थ्य में सुधार, उपभोक्ता संरक्षण और समावेशिता को बढ़ावा देने की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। यह खाद्य लेबलिंग में वैश्विक रुझानों के अनुरूप है तथा उपभोक्ताओं को उनकी आहार संबंधी प्राथमिकताओं के विषय में सूचित विकल्प चुनने का अधिकार देता है।
- यह पहल प्री-पैकेज्ड खाद्य पदार्थों की बढ़ती खपत और NCD में वृद्धि से जुड़ी चुनौतियों का समाधान करने के लिये भारतीय अधिकारियों की प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2018)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (a) व्याख्या:
अतः विकल्प (a) सही उत्तर है। |
भारत में बहुभाषावाद
प्रिलिम्स के लिये:भारतीय भाषाएँ, बहुभाषावाद, आठवीं अनुसूची मेन्स के लिये:भारतीय भाषाओं का संरक्षण और संवर्द्धन, भारत की विविधता |
स्रोत:लाइव मिंट
चर्चा में क्यों?
वर्तमान में परस्पर जुड़े हुए वैश्विक परिवेश में बहुभाषावाद ने अपने बहुमुखी महत्त्व के लिये मान्यता प्राप्त की है। इसमें न केवल इसके संज्ञानात्मक लाभ बल्कि विविध संस्कृतियों को समृद्ध करने की क्षमता भी शामिल है।
- बहुभाषावाद को अपनाने के महत्त्व का एक प्रमुख उदाहरण भारत है, जहाँ भाषाओं और लिपियों की प्रचुरता है।
भारत का बहुभाषी परिदृश्य:
- बहुभाषी लैंडस्केप:
- भारत विश्व में सबसे अधिक भाषायी विविधता वाले देशों में से एक है, पूरे देश में 19,500 से अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं।
- यह विविधता भारतीयों को बहुभाषी होने का एक अनूठा अवसर प्रदान करती है, जिसका अर्थ है संचार में एक से अधिक भाषाओं का उपयोग करने में सक्षम होना।
- भारत की वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, 25% से अधिक जनसंख्या दो भाषाएँ बोलती है, जबकि लगभग 7% तीन भाषाएँ बोलते हैं।
- अध्ययनों में कहा गया है कि युवा भारतीय अपनी बुजुर्ग पीढ़ी की तुलना में अधिक बहुभाषी हैं, 15 से 49 वर्ष आयु की लगभग आधी शहरी आबादी दो भाषाएँ बोलती है।
- भारत विश्व में सबसे अधिक भाषायी विविधता वाले देशों में से एक है, पूरे देश में 19,500 से अधिक भाषाएँ बोली जाती हैं।
- भारत की विविधता में बहुभाषावाद का योगदान:
- भारत का बहुभाषावाद न केवल संख्या का मामला है, बल्कि संस्कृति, पहचान और इतिहास का भी मामला है।
- भारत की भाषाएँ इसके विविध और बहुलवादी समाज को दर्शाती हैं, जहाँ विभिन्न धर्मों, नस्लों, जातियों और वर्गों के लोग एक साथ रहते हैं और बातचीत करते हैं।
- भारत का बहुभाषावाद न केवल संख्या का मामला है, बल्कि संस्कृति, पहचान और इतिहास का भी मामला है।
- बहुभाषावाद के लाभ:
- बहुभाषावाद स्मृति, ध्यान, समस्या-समाधान और रचनात्मकता जैसी संज्ञानात्मक क्षमताओं को बढ़ा सकता है।
- शोध से पता चला है कि द्विभाषी और बहुभाषी लोगों के पास बेहतर कार्यकारी कार्यक्षमता होती है, वे मानसिक प्रक्रियाओं की योजना बनाने, उन्हें व्यवस्थित और नियंत्रित करने के लिये ज़िम्मेदार होते हैं। शोध के अनुसार, मानसिक प्रक्रियाएँ योजना निर्माण, व्यवस्था और प्रबंधन से संबंधित कार्यों का कार्यान्वयन क्षेत्र है, जिसमें द्विभाषी तथा बहुभाषी व्यक्ति बेहतर प्रगति कर सकते हैं।
- बहुभाषावाद सहानुभूति, परिप्रेक्ष्य और अंतर-सांस्कृतिक क्षमता जैसे सामाजिक एवं भावनात्मक कौशल में भी सुधार कर सकता है।
- विभिन्न भाषाएँ सीखकर लोग विभिन्न संस्कृतियों, मूल्यों और विश्व-दृष्टिकोण तक अभिगम कर सकते हैं, जो उन्हें विविधता को समझने तथा उसकी सराहना करने में मदद कर सकता है।
- बहुभाषावाद व्यावहारिक लाभ भी प्रदान कर सकता है, जैसे कि कॅरियर के अवसर, यात्रा अनुभव और सूचना एवं मनोरंजन तक अभिगम।
- एक से अधिक भाषाओं के ज्ञान से लोग अधिक लोगों के साथ संवाद कर सकते हैं, अधिक स्थानों का पता लगा सकते हैं और अधिक संसाधनों का आनंद ले सकते हैं।
- बहुभाषावाद स्मृति, ध्यान, समस्या-समाधान और रचनात्मकता जैसी संज्ञानात्मक क्षमताओं को बढ़ा सकता है।
भारत में भाषाओं से संबंधित संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 29:
- यह अल्पसंख्यकों के हितों की रक्षा करता है। यह सुनिश्चित करता है कि सभी नागरिकों को अपनी विशिष्ट भाषा, लिपि या संस्कृति को संरक्षित करने का अधिकार है।
- यह नस्ल, जाति, पंथ, धर्म या भाषा के आधार पर भेदभाव पर भी रोक लगाता है।
- आठवीं अनुसूची:
- यह भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषाओं को सूचीबद्ध करता है। भारतीय संविधान का भाग XVII अनुच्छेद 343 से 351 तक आधिकारिक भाषाओं से संबंधित है।
- भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची 22 आधिकारिक भाषाओं को मान्यता देती है:
- असमिया, बांग्ला, गुजराती, हिंदी, कन्नड़, कश्मीरी, कोंकणी, मलयालम, मणिपुरी, मराठी, नेपाली, उड़िया, पंजाबी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, तेलुगू, उर्दू, बोडो, संथाली, मैथिली और डोगरी।
- भारतीय संविधान की आठवीं अनुसूची 22 आधिकारिक भाषाओं को मान्यता देती है:
- सभी शास्त्रीय भाषाएँ संविधान की आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध हैं।
- भारत में वर्तमान में छह भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध 'शास्त्रीय' भाषा का दर्जा प्राप्त है।
- तमिल (वर्ष 2004 में घोषित), संस्कृत (वर्ष 2005), कन्नड़ (वर्ष 2008), तेलुगू (वर्ष 2008), मलयालम (वर्ष 2013), और उड़िया (वर्ष 2014)।
- भारत में वर्तमान में छह भाषाओं को संविधान की आठवीं अनुसूची में सूचीबद्ध 'शास्त्रीय' भाषा का दर्जा प्राप्त है।
- यह भारत गणराज्य की आधिकारिक भाषाओं को सूचीबद्ध करता है। भारतीय संविधान का भाग XVII अनुच्छेद 343 से 351 तक आधिकारिक भाषाओं से संबंधित है।
- अनुच्छेद 343:
- इसके अनुसार हिंदी हमारे देश की राजभाषा है। इस अनुच्छेद में यह व्यवस्था है कि संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिये प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।
- इस अनुच्छेद में यह भी कहा गया है कि संविधान के प्रारंभ से 15 वर्षों की कालावधि के लिये अंग्रेज़ी आधिकारिक भाषा के रूप में प्रयोग की जाती रहेगी।
- इसके अनुसार हिंदी हमारे देश की राजभाषा है। इस अनुच्छेद में यह व्यवस्था है कि संघ की राजभाषा हिंदी और लिपि देवनागरी होगी। संघ के शासकीय प्रयोजनों के लिये प्रयोग होने वाले अंकों का रूप भारतीय अंकों का अंतर्राष्ट्रीय रूप होगा।
- अनुच्छेद 345:
- किसी राज्य का विधानमंडल विधि द्वारा राज्य में उपयोग में आने वाली किसी एक अथवा अधिक भाषाओं अथवा हिंदी को उस राज्य के सभी अथवा किसी भी आधिकारिक उद्देश्यों के लिये उपयोग की जाने वाली भाषा अथवा भाषाओं के रूप में अंगीकार कर सकेगा।
- अनुच्छेद 346:
- यह आधिकारिक संचार में कई भाषाओं के उपयोग की अनुमति देकर भारत की भाषायी विविधता को मान्यता देता है। यह राज्यों के बीच तथा राज्य और संघ के बीच प्रभावी संचार सुनिश्चित करने के लिये एक तंत्र भी प्रदान करता है।
- अनुच्छेद 347:
- यह राष्ट्रपति को किसी भाषा को किसी राज्य की आधिकारिक भाषा के रूप में मान्यता देने की शक्ति देता है, बशर्ते कि राष्ट्रपति संतुष्ट हो कि उस राज्य का एक बड़ा भाग चाहता है कि उस भाषा को मान्यता दी जाए। ऐसी मान्यता राज्य के एक हिस्से अथवा संपूर्ण राज्य के लिये हो सकती है।
- अनुच्छेद 348(1):
- इसमें प्रावधान है कि उच्चतम न्यायालय और प्रत्येक उच्च न्यायालय में सभी कार्यवाही अंग्रेज़ी भाषा में होगी जब तक कि संसद विधि द्वारा अन्यथा प्रावधान न करे।
- अनुच्छेद 348(2):
- इसमें प्रावधान है कि अनुच्छेद 348(1) के प्रावधानों के बावजूद किसी राज्य का राज्यपाल, राष्ट्रपति की पूर्व सहमति से उच्च न्यायालय की कार्यवाहियों, जिसका मुख्य स्थान उस राज्य में है, में हिंदी भाषा या उस राज्य के शासकीय प्रयोजनों के लिए प्रयोग होने वाली किसी अन्य भाषा का प्रयोग प्राधिकृत कर सकेगा।
- अनुच्छेद 350:
- प्रत्येक व्यक्ति किसी भी शिकायत के निवारण के लिये संघ या राज्य के किसी भी अधिकारी या प्राधिकारी को संघ या राज्य में उपयोग की जाने वाली किसी भी भाषा में, जैसा भी मामला हो, प्रतिनिधित्व प्रस्तुत करने का हकदार होगा।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 350A में प्रावधान है कि प्रत्येक राज्य को प्राथमिक शिक्षा मातृभाषा में प्रदान करनी होगी।
- अनुच्छेद 350B भाषायी अल्पसंख्यकों के लिये "विशेष अधिकारी" की नियुक्ति का प्रावधान करता है।
- अनुच्छेद 351:
- यह केंद्र सरकार को हिंदी भाषा के विकास हेतु निर्देश जारी करने की शक्ति प्रदान करता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2021)
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (b) प्रश्न. भारत के संदर्भ में 'हल्बी, हो और कुई' शब्द पद किससे संबंधित हैं? (2021) (a) पश्चिमोत्तर भारत का नृत्यरूप उत्तर: (d) प्रश्न. हाल ही में निम्नलिखित में से किसे एक भाषा को शास्त्रीय भाषा (क्लासिकल लैंग्वेज) का दर्जा (स्टेटस) दिया गया है? (2015) (a) उड़िया उत्तर: (a) |
कार्बन नैनोफ्लोरेट्स
प्रिलिम्स के लिये:कार्बन नैनोफ्लोरेट्स, कार्बन फुटप्रिंट मेन्स के लिये:विज्ञान और प्रौद्योगिकी-विकास एवं उनके अनुप्रयोग तथा दैनिक जीवन में प्रभाव, विज्ञान और प्रौद्योगिकी में भारतीयों की उपलब्धियाँ |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
हाल ही में IIT बॉम्बे के शोधकर्त्ताओं ने बेजोड़ दक्षता के साथ सूर्य के प्रकाश को गर्मी में परिवर्तित करने में सक्षम कार्बन नैनोफ्लोरेट बनाया है।
- यह नवोन्मेषी विकास कार्बन फुटप्रिंट को कम करते हुए स्थायी ताप समाधानों में क्रांति लाने की क्षमता रखता है।
कार्बन नैनोफ्लोरेट्स:
- परिचय:
- IIT बॉम्बे के शोधकर्त्ताओं द्वारा विकसित कार्बन नैनोफ्लोरेट्स 87% की प्रभावशाली प्रकाश अवशोषण दक्षता प्रदर्शित करता है।
- वे पारंपरिक सौर-थर्मल सामग्रियों, जो कि आमतौर पर केवल दृश्य और पराबैंगनी प्रकाश को अवशोषित करते हैं, के बिल्कुल विपरीत अवरक्त, दृश्य प्रकाश तथा पराबैंगनी सहित सूर्य के प्रकाश की कई आवृत्तियों को अवशोषित कर सकते हैं।
- कार्बन नैनोफ्लोरेट्स की डिज़ाइनिंग प्रक्रिया:
- सिलिकॉन कण का एक विशेष रूप जिसे DFNS (डेंड्राइटिक फाइबरस नैनोसिलिका) कहा जाता है, भट्टी में गर्म किया जाता है।
- चैंबर में एसिटिलीन गैस का प्रयोग कार्बन जमाव को सुविधाजनक बनाता है, जिससे यह काला हो जाता है।
- उसके बाद काले पाउडर को एकत्र कर एक शक्तिशाली रसायन में मिश्रित किया जाता है जो DFNS को विघटित कर देता है, जिससे कार्बन कण शेष बचते हैं। इसके परिणामस्वरूप शंकु के आकार के गड्ढों वाले गोलाकार कार्बन कण बनते हैं, जो माइक्रोस्कोप से देखने पर गेंदे के फूल के समान कार्बन नैनोफ्लोरेट बनाते हैं।
- विशिष्ट संरचना की भूमिका:
- कार्बन शंकुओं से बनी नैनोफ्लोरेट्स की संरचना, प्रकाश प्रतिबिंब को कम करती है और अधिकतम आंतरिक अवशोषण सुनिश्चित करती है।
- यह विशिष्ट डिज़ाइन सूर्य के प्रकाश को अभिग्रहण कर इसे बनाए रखता है तथा इस सौर ऊर्जा को तापीय ऊर्जा में परिवर्तित करता है।
- न्यूनतम ताप अपव्यय:
- नैनोफ्लोरेट्स की संरचना में लंबी दूरी की अव्यवस्था के कारण पदार्थ में उत्पन्न उष्मा का स्थानांतरण अधिक दूरी तक नहीं हो पाता है।
- यह विशेषता पर्यावरण में ताप के अपव्यय को कम करती है, जिससे नैनोफ्लोरेट्स उत्पन्न तापीय ऊर्जा को प्रभावी ढंग से बनाए रखने एवं उपयोग करने की अनुमति देता है।
- नैनोफ्लोरेट्स की संरचना में लंबी दूरी की अव्यवस्था के कारण पदार्थ में उत्पन्न उष्मा का स्थानांतरण अधिक दूरी तक नहीं हो पाता है।
कार्बन नैनोफ्लोरेट्स के अनुप्रयोग और वाणिज्यिक क्षमताएँ:
- जल का पर्याप्त तापन:
- कार्बन नैनोफ्लोरेट्स की एक वर्ग मीटर की कोटिंग एक घंटे के भीतर लगभग 5 लीटर जल को वाष्पित कर सकती है, जो वाणिज्यिक सौर स्थिरांक के प्रदर्शन को पार कर जाती है।
- कार्बन नैनोफ्लोरेट जल तापन अनुप्रयोगों के लिये आदर्श हैं, जो एक संधारणीय और लागत प्रभावी समाधान प्रदान करते हैं तथा जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करता है।
- नैनोफ्लोरेट को कागज़, धातु और टेराकोटा मिट्टी जैसी विभिन्न सतहों पर लगाया जा सकता है, जो उन्हें विभिन्न अनुप्रयोगों के लिये सुग्राह्य बनाता है।
- कार्बन नैनोफ्लोरेट्स की एक वर्ग मीटर की कोटिंग एक घंटे के भीतर लगभग 5 लीटर जल को वाष्पित कर सकती है, जो वाणिज्यिक सौर स्थिरांक के प्रदर्शन को पार कर जाती है।
- पर्यावरण अनुकूल तापन:
- नैनोफ्लोरेट कोटिंग्स का उपयोग कर उपयोगकर्ता पर्यावरण के अनुकूल तरीके से अपने घरों को गर्म करने के लिये सौर ऊर्जा का उपयोग कर सकते हैं, जिससे उनके कार्बन पदचिह्न को कम किया जा सकता है।
- स्थिरता और दीर्घायु:
- कोटेड नैनोफ्लोरेट न्यूनतम आठ वर्षों के जीवनकाल के साथ असाधारण स्थिरता प्रदर्शित करते हैं।
- शोधकर्त्ता विभिन्न पर्यावरणीय परिस्थितियों में उनके स्थायित्व का निरंतर आकलन कर रहे हैं।
- कोटेड नैनोफ्लोरेट न्यूनतम आठ वर्षों के जीवनकाल के साथ असाधारण स्थिरता प्रदर्शित करते हैं।
गोवा समुद्री सम्मेलन 2023
प्रिलिम्स के लिये:गोवा समुद्री सम्मेलन 2023, हिंद महासागर के देश, हिंद महासागर क्षेत्र (IOR), सामान्य बहुपक्षीय समुद्री रणनीति, ‘बंदी की दुविधा’ अवधारणा मेन्स के लिये:गोवा समुद्री सम्मेलन 2023, भारत को शामिल और/अथवा भारत के हितों को प्रभावित करने वाले द्विपक्षीय, क्षेत्रीय और वैश्विक समूह एवं समझौते। |
स्रोत: पी.आई.बी.
चर्चा में क्यों
हाल ही में गोवा समुद्री सम्मेलन (GMC) 2023 का चौथा संस्करण भारतीय नौसेना द्वारा नेवल वॉर कॉलेज, गोवा के तत्त्वावधान में आयोजित किया गया।
- सम्मेलन में कोमोरोस, बांग्लादेश, इंडोनेशिया, मेडागास्कर, मलेशिया, मालदीव, मॉरीशस, म्याँमार, सेशेल्स, सिंगापुर, श्रीलंका और थाईलैंड सहित बारह हिंद महासागर देशों के प्रतिनिधियों ने भाग लिया।
- GMC के वर्ष 2023 के संस्करण का विषय “हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री सुरक्षा: सामान्य समुद्री प्राथमिकताओं को सहयोगात्मक शमन ढाँचे में परिवर्तित करना” है।
सम्मेलन की मुख्य विशेषताएँ:
- परिचय:
- GMC आम समुद्री चुनौतियों पर चर्चा करने और क्षेत्रीय सहयोग बढ़ाने के लिये हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) के विभिन्न देशों के नौसेना एवं रक्षा अधिकारियों की एक उच्च स्तरीय सभा है।
- यह सम्मेलन भारतीय नौसेना की आउटरीच पहल है। यह समुद्री सुरक्षा के संदर्भ में अभ्यासकर्त्ताओं और शिक्षाविदों के सामूहिक ज्ञान को परिणामोन्मुख समुद्री विचार प्राप्त करने तथा उसका उपयोग करने के लिये एक बहुराष्ट्रीय मंच प्रदान करता है।
- यह समसामयिक और भविष्य की समुद्री चुनौतियों से निपटने के लिये नौसेना प्रमुखों/समुद्री एजेंसियों के प्रमुखों के बीच विचारों के आदान-प्रदान के साथ-साथ सहकारी रणनीतियों को प्रस्तुत करने और साझेदार समुद्री एजेंसियों के बीच अंतर-संचालनता को बढ़ाने के लिये एक मंच उपलब्ध कराता है।
- रक्षा मंत्री का संबोधन:
- सम्मेलन के दौरान भारत के रक्षा मंत्री ने विभिन्न उद्देश्यों से कार्य करने के बजाय देशों को एक-दूसरे के साथ सहयोग करने की आवश्यकता को रेखांकित करने हेतु "बंदी की दुविधा" अवधारणा का उल्लेख किया।
- बंदी की दुविधा अवधारणा जब अंतर्राष्ट्रीय संबंधों के क्षेत्र में लागू की जाती है, तो विभिन्न स्थितियों की व्याख्या और विश्लेषण किया जा सकता है जहाँ देशों को रणनीतिक निर्णय लेने की चुनौतियों का सामना करना पड़ता है।
- उदाहरणतः जब दो या दो से अधिक देश हथियारों की होड़ में शामिल होते हैं, तो वे प्राय आपसी भय और अविश्वास के कारण ऐसा करते हैं।
- भारतीय रक्षा मंत्री ने आम समुद्री चुनौतियों से निपटने के लिये IOR में बहुराष्ट्रीय सहयोगात्मक शमन ढाँचे की आवश्यकता पर बल दिया।
- उन्होंने क्षेत्रीय सुरक्षा और समृद्धि को बढ़ाने के लिये रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
- साथ ही इस बात पर ज़ोर दिया कि एक स्वतंत्र, पारदर्शी और नियम-आधारित समुद्री व्यवस्था हम सभी के लिये प्राथमिकता है। ऐसी समुद्री व्यवस्था में 'संभवतः सही है' का कोई स्थान नहीं है।
- अंतर्राष्ट्रीय समुद्री कानूनों का पालन, जैसा कि समुद्री कानून पर संयुक्त राष्ट्र कन्वेंशन (UNCLOS) 1982 में प्रतिपादित किया गया है, हमारा आदर्श होना चाहिये।
- सम्मेलन के दौरान भारत के रक्षा मंत्री ने विभिन्न उद्देश्यों से कार्य करने के बजाय देशों को एक-दूसरे के साथ सहयोग करने की आवश्यकता को रेखांकित करने हेतु "बंदी की दुविधा" अवधारणा का उल्लेख किया।
बंदी की दुविधा अवधारणा:
- परिचय:
- बंदी की दुविधा गेम थ्योरी में एक मौलिक अवधारणा है, जो गणित और सामाजिक विज्ञान की एक शाखा है जो उन स्थितियों में रणनीतिक निर्णय लेने का विश्लेषण करती है जहाँ परिणाम कई प्रतिभागियों की पसंद पर निर्भर करता है।
- बंदी की दुविधा परिदृश्य:
- बंदी की दुविधा को प्रायः ऐसे परिदृश्य का उपयोग करके चित्रित किया जाता है जहाँ दो व्यक्तियों A और B को एक अपराध के लिये गिरफ्तार किया जाता है और उन्हें अलग-अलग पूछताछ कक्ष में रखा जाता है।
- पुलिस के पास ठोस सबूतों की कमी है, लेकिन वे प्रत्येक बंदी को एक विकल्प देते हैं:
- यदि दोनों बंदी चुप रहते हैं (सहयोग करते हैं), तो वे दोनों अपेक्षाकृत कम सज़ा पाते हैं, यदि दोनों अपराध कबूल करते हैं, तो उन दोनों को मामूली लंबी सज़ा मिलती है।
- दुविधा इस तथ्य से उत्पन्न होती है कि प्रत्येक बंदी को दूसरे की पसंद को जाने बिना निर्णय लेना होगा। प्रत्येक व्यक्ति के लिये तार्किक निर्णय, अपने स्वार्थ को ध्यान में रखते हुए कबूल करना है क्योंकि यह दूसरे की पसंद की परवाह किये बिना कम-से-कम गंभीर परिणाम सुनिश्चित करता है।
भारत के लिये सुरक्षित हिंद महासागर क्षेत्र का महत्त्व:
- समुद्री सुरक्षा:
- समुद्री सुरक्षा की कोई सार्वभौमिक परिभाषा नहीं है, लेकिन यह राष्ट्रीय सुरक्षा, समुद्री पर्यावरण, आर्थिक विकास एवं मानव सुरक्षा सहित समुद्री क्षेत्र के मुद्दों को वर्गीकृत करती है।
- विश्व के महासागरों के अलावा यह क्षेत्रीय समुद्रों, क्षेत्रीय जल, नदियों और बंदरगाहों से भी संबंधित है।
- भारत के लिये महत्त्व:
- राष्ट्रीय सुरक्षा:
- भारत के लिये समुद्री सुरक्षा, राष्ट्रीय सुरक्षा का एक महत्त्वपूर्ण पहलू है क्योंकि इसकी तटरेखा 7,000 किमी. से अधिक है।
- प्रौद्योगिकी में प्रगति के साथ समुद्री क्षेत्र में प्राकृतिक खतरों की अपेक्षा अब तकनीकी खतरों का प्रभाव देखा जा रहा है।
- व्यापारिक प्रयोजन के लिये:
- भारत का निर्यात और आयात अधिकतर हिंद महासागर के शिपिंग लेन पर निर्भर है।
- इसलिये 21वीं सदी में भारत के लिये संचार के समुद्री मार्गों की सुरक्षा (SLOC) एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है।
- चीन की बढ़ती शक्ति का मुकाबला:
- भारत ने हिंद महासागर क्षेत्र, विशेषकर श्रीलंका, पाकिस्तान और मालदीव जैसे देशों में चीन की बढ़ती उपस्थिति पर चिंता व्यक्त की है।
- इन क्षेत्रों में चीन-नियंत्रित बंदरगाहों और सैन्य सुविधाओं के विकास को भारत के रणनीतिक हितों एवं क्षेत्रीय सुरक्षा के लिये एक चुनौती के रूप में देखा गया है।
- राष्ट्रीय सुरक्षा:
- भारत में वर्तमान समुद्री सुरक्षा तंत्र:
- वर्तमान में भारत की तटीय सुरक्षा त्रि-स्तरीय संरचना द्वारा संचालित होती है।
- भारतीय नौसेना अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा (IMBL) पर गश्त करती है, जबकि भारतीय तटरक्षक बल (ICG) को 200 समुद्री मील (यानी विशेष आर्थिक क्षेत्र) तक गश्त और निगरानी करने का आदेश दिया गया है।
- इसके साथ ही राज्य तटीय/समुद्री पुलिस (SCP/SMP) उथले तटीय क्षेत्रों में नौका से गश्त करती है।
- SCP का क्षेत्राधिकार तट से 12 समुद्री मील तक है और ICG एवं भारतीय नौसेना का क्षेत्रीय जल (SMP के साथ) सहित पूरे समुद्री क्षेत्र (200 समुद्री मील तक) पर अधिकार क्षेत्र है।
- वर्तमान में भारत की तटीय सुरक्षा त्रि-स्तरीय संरचना द्वारा संचालित होती है।
- भारत की हालिया समुद्री गतिविधियाँ:
- समुद्री सुरक्षा पर साझा चिंताओं को दूर करने के लिये भारतीय नौसैनिक जहाज़ों ने वर्ष 2023 में मोज़ाम्बिक, सेशेल्स और मॉरीशस जैसे देशों के साथ समन्वित गश्त की।
- इन गश्तों का उद्देश्य हिंद महासागर क्षेत्र में समुद्री डकैती, तस्करी और अवैध तस्करी से निपटना था।
- भारत अफ्रीकी देशों को आत्मनिर्भरता प्राप्त करने और उनकी समुद्री क्षमताओं को बढ़ाने में सहायता करने के लिये क्षमता निर्माण गतिविधियों में सक्रिय रूप से शामिल रहा है।
- समुद्री सुरक्षा पर साझा चिंताओं को दूर करने के लिये भारतीय नौसैनिक जहाज़ों ने वर्ष 2023 में मोज़ाम्बिक, सेशेल्स और मॉरीशस जैसे देशों के साथ समन्वित गश्त की।
- सागर पहल:
- सागर पहल (Security and Growth for All in the Region- SAGAR) को वर्ष 2015 में शुरू किया गया था। यह हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) के लिये भारत की रणनीतिक पहल है।
- सागर पहल के माध्यम से भारत अपने समुद्री पड़ोसियों के साथ आर्थिक और सुरक्षा सहयोग को मज़बूत करने और उनकी समुद्री सुरक्षा क्षमताओं के निर्माण में सहायता करना चाहता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. 'क्षेत्रीय सहयोग के लिये इंडियन ओशन रिम एसोसिएशन फॉर रीजनल को-ऑपरेशन (IOR-ARC)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये:
उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? (a) केवल 1 उत्तर: (d) मेन्स:प्रश्न. दक्षिण चीन सागर के मामले में समुद्री भू-भागीय विवाद और बढ़ता हुआ तनाव समस्त क्षेत्र में नौपरिवहन की और ऊपरी उड़ान की स्वतंत्रता को सुनिश्चित करने के लिये समुद्री सुरक्षा की आवश्यकता की अभिपुष्टि करते हैं। इस संदर्भ में भारत और चीन के बीच द्विपक्षीय मुद्दों पर चर्चा कीजिये। (2014) |
न्यूनतम वेतन नीति और गिग श्रमिक
प्रिलिम्स के लिये:न्यूनतम वेतन, ई-कॉमर्स प्लेटफॉर्म, बिगबास्केट, फ्लिपकार्ट, शहरी कंपनी, उचित वेतन, उचित शर्तें, उचित अनुबंध, निष्पक्ष प्रबंधन, उचित प्रतिनिधित्व मेन्स के लिये:समावेशी वृद्धि एवं विकास को बढ़ावा देने में न्यूनतम मज़दूरी की आवश्यकता और महत्त्व |
स्रोत: द हिंदू
चर्चा में क्यों?
फेयरवर्क इंडिया द्वारा 12 ई-कॉमर्स प्लेटफाॅर्मों पर आयोजित 5वाँ वार्षिक अध्ययन भारत के गिग श्रमिकों के कार्य करने की स्थिति की गंभीर स्थिति को दर्शाता है।
- फेयरवर्क, अंतर्राष्ट्रीय सूचना प्रौद्योगिकी संस्थान, बैंगलोर के IT और सार्वजनिक नीति केंद्र के शोधकर्त्ताओं की एक टीम है।
- अध्ययन में उचित वेतन, उचित शर्तें, उचित अनुबंध, निष्पक्ष प्रबंधन और उचित प्रतिनिधित्व जैसे पाँच फेयरवर्क सिद्धांतों की जाँच की गई।
अध्ययन के मुख्य तथ्य:
- न्यूनतम वेतन और श्रमिक अलगाव:
- अध्ययन इस बात पर प्रकाश डालता है कि बिगबास्केट, फ्लिपकार्ट और अर्बन कंपनी सहित केवल तीन प्लेटफाॅर्मों के पास न्यूनतम वेतन नीतियाँ हैं जो यह सुनिश्चित करती हैं कि श्रमिक स्थानीय न्यूनतम वेतन अर्जित सकें।
- हालाँकि कोई भी मंच इस बात की गारंटी नहीं देता है कि श्रमिक जीवनयापन योग्य वेतन अर्जित कर सकें। इस वर्ष का अध्ययन यह जानने में मदद करता है कि काम करने की स्थितियाँ अलगाव में किस प्रकार योगदान करती हैं, जो प्रायः जाति, वर्ग, लिंग और धर्म जैसे कारकों के आधार पर भेदभाव से संबद्ध होता है।
- सुरक्षा, अनुबंध स्पष्टता और कर्मचारी सुरक्षा:
- कुछ प्लेटफॉर्म दुर्घटना बीमा कवरेज और दुर्घटनाओं या चिकित्सा कारणों से आय हानि के लिये मुआवज़े की पेशकश भी करते हैं।
- इसके अतिरिक्त कंपनियों ने अनुबंध की स्पष्टता, डेटा सुरक्षा और कर्मचारी मुद्दों से निपटने की प्रक्रियाओं जैसे अनुशासनात्मक कार्रवाइयों के खिलाफ अपील करने के लिये उपाय सुनिश्चित किये हैं।
- दुर्भाग्यवश, किसी भी मंच को निष्पक्ष प्रतिनिधित्व के लिये अंक नहीं मिले, जो हाल के वर्षों में श्रमिक सामूहिकता में वृद्धि के बावजूद सामूहिक कार्यकर्त्ता निकायों के लिये मान्यता की कमी को दर्शाता है।
- कुछ प्लेटफॉर्म दुर्घटना बीमा कवरेज और दुर्घटनाओं या चिकित्सा कारणों से आय हानि के लिये मुआवज़े की पेशकश भी करते हैं।
भारत में गिग अर्थव्यवस्था परिदृश्य:
- परिभाषा:
- गिग अर्थव्यवस्था एक श्रम बाज़ार को संदर्भित करती है जो स्थायी रोज़गार के विपरीत अल्पकालिक अनुबंधों, फ्रीलांस कार्यों और अस्थायी पदों की व्यापकता की विशेषता है।
- गिग अर्थव्यवस्था में व्यक्ति प्राय एक ही कंपनी के पारंपरिक पूर्णकालिक कर्मचारी होने के बजाय विभिन्न "गिग्स" या कार्यों को लेकर प्रोजेक्ट-दर-प्रोजेक्ट आधार पर कार्य करते हैं।
- विकास परिदृश्य:
- आर्थिक सर्वेक्षण 2020-21 के अनुसार, भारत फ्लेक्सी स्टाफिंग या गिग वर्कर्स के लिये विश्व के सबसे बड़े देशों में से एक बनकर उभरा है।
- नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, गिग अर्थव्यवस्था में लगभग 7.7 मिलियन कर्मचारी कार्यरत हैं, जिनकी संख्या वर्ष 2029-30 तक बढ़कर 23.5 मिलियन होने की उम्मीद है, जो देश में कुल आजीविका का लगभग 4% हिस्सा है।
- वर्तमान में कुल गिग कार्यों का लगभग 31% न्यून कुशलता वाले रोज़गार जैसे- कैब ड्राइविंग और खाद्य वितरण के क्षेत्र में, 47% मध्यम-कुशलता वाले रोज़गार जैसे- प्लंबिंग तथा सौंदर्य सेवाओं में और 22% उच्च कुशलता रोज़गार जैसे ग्राफिक डिज़ाइनिंग एवं ट्यूशन में हैं।
- गिग श्रमिकों के समक्ष प्रमुख मुद्दे:
- गिग श्रमिकों को अक्सर उनकी अस्पष्ट रोज़गार स्थिति के कारण सामाजिक सुरक्षा और श्रम कानून से बाहर रखा जाता है।
- सामाजिक सुरक्षा और अन्य बुनियादी श्रम अधिकार जैसे न्यूनतम वेतन, कार्य के घंटों की सीमा आदि "कर्मचारी" की स्थिति पर निर्भर करते हैं, गिग श्रमिकों के लिये स्वतंत्र ठेकेदारी स्थिति उन्हें ऐसे लाभ एवं कानूनी सुरक्षा प्राप्त करने से बाहर रखती है।
- दिव्यांगता या श्रमिक की मृत्यु की स्थिति में सामाजिक सुरक्षा पात्र व्यक्तियों और उनके परिवारों को लाभ प्रदान करती है। गिग श्रमिकों के मामले में इन लाभों का कम कवरेज हो सकता है, जो चुनौतीपूर्ण परिस्थितियों में उनकी वित्तीय सुरक्षा को प्रभावित कर सकता है।
- सरकार की पहल:
- सामाजिक सुरक्षा संहिता (2020) में 'गिग अर्थव्यवस्था' पर एक अलग खंड शामिल है और गिग नियोक्ताओं को सरकार के नेतृत्व वाले बोर्ड द्वारा संभाले जाने वाले सामाजिक सुरक्षा कोष में योगदान करने का दायित्व दिया गया है।
- वेतन संहिता, 2019 गिग श्रमिकों सहित संगठित एवं असंगठित क्षेत्रों में सार्वभौमिक न्यूनतम वेतन और फ्लोर वेज का प्रावधान करती है।
भारत की न्यूनतम वेतन नीति:
- वेतन संहिता अधिनियम 2019:
- संहिता का उद्देश्य पुराने और अप्रचलित श्रम कानूनों को अधिक जवाबदेह और पारदर्शी कानूनों में बदलना तथा देश में न्यूनतम मज़दूरी एवं श्रम सुधारों की शुरुआत के लिये मार्ग प्रशस्त करना है।
- वेतन संहिता सभी कर्मचारियों के लिये न्यूनतम वेतन और वेतन के समय पर भुगतान के प्रावधानों को सार्वभौमिक बनाती है तथा प्रत्येक कर्मचारी के लिये "निर्वाह का अधिकार" सुनिश्चित करने का प्रयास करती है, साथ ही न्यूनतम मज़दूरी के विधायी संरक्षण को भी मज़बूत करती है।
- केंद्र सरकार को श्रमिकों के जीवन स्तर को ध्यान में रखते हुए फ्लोर वेज (Floor Wage) निर्धारित करने का अधिकार है। यह विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के लिये अलग-अलग फ्लोर वेज निर्धारित कर सकती है।
- केंद्र या राज्य सरकारों द्वारा श्रमिकों को दी जाने वाली न्यूनतम मज़दूरी, निर्धारित फ्लोर वेज से अधिक होनी चाहिये।
- फ्लोर वेज का निर्धारण:
- वेतन नियम संहिता, 2020 में फ्लोर वेज की अवधारणा का उल्लेख किया गया है, जो केंद्र सरकार को श्रमिकों के न्यूनतम जीवन स्तर को ध्यान में रखते हुए फ्लोर वेज निर्धारित करने का अधिकार देती है।
- फ्लोर वेज एक बेसलाइन वेज है जिसके नीचे राज्य सरकारें न्यूनतम मज़दूरी तय नहीं कर सकती हैं।
- वेतन संहिता विभिन्न भौगोलिक क्षेत्रों के लिये अलग-अलग फ्लोर वेज निर्धारण की अनुमति देती है। हालाँकि इससे उन क्षेत्रों से पूंजी के पलायन का भय उत्पन्न हो गया है जहाँ मज़दूरी अधिक है और उन क्षेत्रों की ओर जहाँ मज़दूरी कम है।
- वेतन नियम संहिता, 2020 में फ्लोर वेज की अवधारणा का उल्लेख किया गया है, जो केंद्र सरकार को श्रमिकों के न्यूनतम जीवन स्तर को ध्यान में रखते हुए फ्लोर वेज निर्धारित करने का अधिकार देती है।
आगे की राह
- श्रमिक वर्गीकरण: गिग श्रमिकों (जैसे, स्वतंत्र ठेकेदार तथा कर्मचारी) के वर्गीकरण के लिये स्पष्ट दिशानिर्देश परिभाषित करना ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उन्हें उचित कानूनी सुरक्षा और लाभ प्राप्त हों। इस मुद्दे को हल करने के लिये भारत के श्रम कानून विकसित हो रहे हैं और गिग श्रमिकों तथा सामान्य कर्मचारियों के बीच अंतर एक महत्त्वपूर्ण विचार है।
- सामाजिक सुरक्षा और लाभ: संभावित विभिन्न सामाजिक सुरक्षा लाभ प्रणाली के माध्यम से गिग श्रमिकों को सेवानिवृत्ति बचत, स्वास्थ्य बीमा और बेरोज़गारी मुआवज़ा तथा सामाजिक सुरक्षा लाभों तक पहुँच प्रदान करने के विकल्पों का पता लगाने की आवश्यकता है।
- पारिश्रमिक सुरक्षा: गिग श्रमिकों को उचित मुआवज़ा प्रदान करने की गारंटी सुनिश्चित करने हेतु एक सुव्यवस्थित तंत्र लागू करना चाहिये तथा उनके शोषण को रोकने के लिये विशेष कार्यों के लिये न्यूनतम वेतन मानक या फ्लोर वेज निर्धारित करने पर विचार किया जाना चाहिये।
- कौशल विकास: गिग श्रमिकों की रोज़गार क्षमता और आय की क्षमता को बढ़ाने के लिये निरंतर कौशल विकास एवं प्रशिक्षण को प्रोत्साहित किया जाना चाहिये। सरकार और उद्योग की भागीदारी गिग इकॉनमी की ज़रूरतों के अनुरूप प्रशिक्षण कार्यक्रम प्रदान करने में मदद कर सकती है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न. भारत में निम्नलिखित में कौन एक, उन फैक्ट्रियों में जिनके कामगार नियुक्त हैं, औद्योगिक विवादों, समापनों, छँटनी और कामबंदी के विषय में सूचनाओं को संकलित करता है। (2022) (a) केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय उत्तर: (c) मेन्स:प्रश्न. भारत में महिलाओं के सशक्तीकरण की प्रक्रिया में 'गिग इकोनॉमी' की भूमिका का परीक्षण कीजिये। (2021) |