इन्फोग्राफिक्स
भारतीय अर्थव्यवस्था
यूनेस्को की 50 प्रतिष्ठित वस्त्र शिल्पों की सूची
प्रिलिम्स के लिये:यूनेस्को, हैंडलूम, रेशम कीट पालन/सेरीकल्चर मेन्स के लिये:वृद्धि और विकास, समावेशी विकास |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में यूनेस्को ने देश के 50 विशिष्ट और प्रतिष्ठित विरासत वस्त्र शिल्पों की सूची जारी की है।
- दक्षिण एशिया में अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा के लिये प्रमुख चुनौतियों में से एक उचित सूची और प्रलेखन की कमी है।
कुछ महत्त्वपूर्ण सूचीबद्ध वस्त्र शिल्प:
- तमिलनाडु की टोडा कढ़ाई और सुंगुडी
- हैदराबाद की हिमरू बुनाई
- ओडिशा के संबलपुर की बंधा टाई और डाई बुनाई
- गोवा की कुनबी बुनाई
- गुजरात की मशरू बुनाई और पटोला
- महाराष्ट्र की हिमरू
- पश्चिम बंगाल की गरद-कोरियल
- कर्नाटक की इलकल और लंबाडी या बंजारा कढ़ाई
- तमिलनाडु की सिकलनायकनपेट कलमकारी
- हरियाणा की खेस
- हिमाचल प्रदेश के चंबा के रुमाल
- लद्दाख के थिग्मा या ऊन की टाई और डाई
- वाराणसी की अवध जामदानी
यूनेस्को
- परिचय:
- इसकी स्थापना वर्ष 1945 में स्थायी शांति के साधन के रूप में "मानव जाति की बौद्धिक और नैतिक एकजुटता" को विकसित करने के लिये की गई थी। यह पेरिस, फ्राँस में स्थित है।
- यूनेस्को की प्रमुख पहलें:
अमूर्त सांस्कृतिक विरासत:
- अमूर्त सांस्कृतिक विरासत वे प्रथाएँ, अभिव्यक्तियाँ, ज्ञान और कौशल हैं जिन्हें समुदाय, समूह तथा कभी-कभी व्यक्ति अपनी सांस्कृतिक विरासत के हिस्से के रूप में पहचानते हैं।
- इसे जीवित सांस्कृतिक विरासत भी कहा जाता है, इसे आमतौर पर निम्नलिखित रूपों में से एक में व्यक्त किया जाता है:
- मौखिक परंपराएँ
- कला प्रदर्शन
- सामाजिक प्रथाएँ
- अनुष्ठान और उत्सव कार्यक्रम
- प्रकृति और ब्रह्मांड से संबंधित ज्ञान एवं अभ्यास
- पारंपरिक शिल्प कौशल
- मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत की प्रतिष्ठित यूनेस्को प्रतिनिधि सूची में भारत के 14 अमूर्त सांस्कृतिक विरासत शमिल हैं।
यूनेस्को द्वारा मान्यता प्राप्त 14 अमूर्त सांस्कृतिक विरासतें |
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1. |
वैदिक जप की परंपरा, 2008 |
8. |
लद्दाख का बौद्ध जप: हिमालय के लद्दाख क्षेत्र, जम्मू और कश्मीर, भारत में पवित्र बौद्ध ग्रंथों का पाठ, 2012 |
2. |
रामलीला, रामायण का पारंपरिक प्रदर्शन, 2008 |
9. |
मणिपुर का संकीर्तन, अनुष्ठान, गायन, ढोलक बजाना और नृत्य करना, 2013 |
3. |
कुटियाट्टम, संस्कृत थिएटर, 2008 |
10. |
जंडियाला गुरु, पंजाब, भारत के ठठेरों के बीच पारंपरिक तौर पर पीतल और तांबे के बर्तन बनाने का शिल्प, 2014 |
4. |
रम्माण, गढ़वाल हिमालय (भारत) के धार्मिक उत्सव और परंपरा का मंचन, 2009 |
11. |
योग, 2016 |
5. |
मुदियेट्टू, अनुष्ठान थियेटर और केरल का नृत्य नाटक, 2010 |
12. |
नवरोज़, 2016 |
6. |
कालबेलिया राजस्थान का लोकगीत और नृत्य, 2010 |
13. |
कुंभ मेला, 2017 |
7. |
छऊ नृत्य, 2010 |
14. |
दुर्गा पूजा, 2021 |
भारत के वस्त्र क्षेत्र की स्थिति:
- परिचय:
- वस्त्र एवं परिधान उद्योग एक श्रम-प्रधान क्षेत्र है, जो भारत में 45 मिलियन लोगों को रोज़गार प्रदान करता है और रोज़गार के मामले में कृषि क्षेत्र के बाद दूसरा प्रमुख क्षेत्र है।
- वस्त्र क्षेत्र भारतीय अर्थव्यवस्था के सबसे पुराने उद्योगों में से एक है और पारंपरिक कौशल, विरासत एवं संस्कृति का निधान और वाहक है।
- इसे दो खंडों में विभाजित किया जा सकता है:
- असंगठित क्षेत्र छोटे पैमाने पर है और पारंपरिक उपकरणों एवं विधियों का उपयोग करता है। इसमें हथकरघा, हस्तशिल्प तथा रेशम उत्पादन (रेशम का उत्पादन) शामिल हैं।
- संगठित क्षेत्र आधुनिक मशीनरी और तकनीकों का उपयोग करता है एवं इसमें कताई, परिधान और वस्त्र शामिल हैं।
- वस्त्र उद्योग का महत्त्व:
- यह भारतीय सकल घरेलू उत्पाद (GDP) में 2.3%, औद्योगिक उत्पादन का 7%, भारत की निर्यात आय में 12% और कुल रोज़गार में 21% से अधिक का योगदान देता है।
- भारत 6% वैश्विक हिस्सेदारी के साथ तकनीकी वस्त्रों (Technical Textile) का छठा (विश्व में कपास और जूट का सबसे बड़ा उत्पादक) बड़ा उत्पादक देश है।
- तकनीकी वस्त्र कार्यात्मक कपड़े होते हैं जो ऑटोमोबाइल, सिविल इंजीनियरिंग और निर्माण, कृषि, स्वास्थ्य देखभाल, औद्योगिक सुरक्षा, व्यक्तिगत सुरक्षा आदि सहित विभिन्न उद्योगों में अनुप्रयोग होते हैं।
- भारत विश्व में रेशम का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश भी है जिसकी विश्व में हाथ से बुने हुए कपड़े के मामले में 95% हिस्सेदारी है।
प्रमुख पहल:
- संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना (Amended Technology Upgradation Fund Scheme- ATUFS): वर्ष 2015 में सरकार ने कपड़ा उद्योग के प्रौद्योगिकी उन्नयन हेतु "संशोधित प्रौद्योगिकी उन्नयन कोष योजना (ATUFS) को मंज़ूरी दी।
- एकीकृत वस्त्र पार्क योजना (Scheme for Integrated Textile Parks- SITP): यह योजना कपड़ा इकाइयों की स्थापना के लिये विश्व स्तरीय बुनियादी सुविधाओं के निर्माण हेतु सहायता प्रदान करती है।
- पावर-टेक्स इंडिया: इसमें पावरलूम टेक्सटाइल में नए अनुसंधान और विकास, नए बाज़ार, ब्रांडिंग, सब्सिडी और श्रमिकों हेतु कल्याणकारी योजनाएंँ शामिल हैं।
- रेशम समग्र योजना: यह योजना घरेलू रेशम की गुणवत्ता और उत्पादकता में सुधार लाने पर ध्यान केंद्रित करती है ताकि आयातित रेशम पर देश की निर्भरता कम हो सके।
- जूट आईकेयर: वर्ष 2015 में शुरू की गई इस पायलट परियोजना का उद्देश्य जूट की खेती करने वालों को रियायती दरों पर प्रमाणित बीज प्रदान करना और सीमित पानी परिस्थितियों में कई नई विकसित रेटिंग प्रौद्योगिकियों को लोकप्रिय बनाने के मार्ग में आने वाली कठिनाइयों को दूर करना है।
- राष्ट्रीय तकनीकी वस्त्र मिशन: इसका उद्देश्य देश को तकनीकी वस्त्रों के क्षेत्र में वैश्विक नेता के रूप में स्थान प्रदान करना और घरेलू बाज़ार में तकनीकी वस्त्रों के उपयोग को बढ़ाना है। इसका लक्ष्य वर्ष 2024 तक घरेलू बाज़ार का आकार 40 बिलियन अमेरिकी डॉलर से 50 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक बढ़ाना है।
आगे की राह
- सदियों से, भारतीय कपड़ा शिल्प ने अपनी सुंदरता से विश्व में प्रमुख स्थान बनाया है।
- औद्योगिक स्तर पर बड़े पैमाने पर उत्पादन और नए देशों से प्रतिस्पर्द्धा के दबाव के बावजूद, यह आवश्यक है कि इन प्रतिष्ठित विरासत शिल्पों पर ध्यान देकर इन्हे प्रोत्साहन दिया जाए।
- वस्त्र क्षेत्र में काफी संभावनाएँ हैं और इसमें नवाचारों, नवीनतम प्रौद्योगिकी एवं सुविधाओं का उपयोग किया जाना चाहिये।
स्रोत: द हिंदू
भारतीय अर्थव्यवस्था
वैश्विक नवाचार सूचकांक, 2022
प्रिलिम्स के लिये:वैश्विक नवाचार सूचकांक, 2022, विश्व बौद्धिक संपदा संगठन मेन्स के लिये:संवृद्धि और विकास, वैश्विक नवाचार सूचकांक 2022 |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO) द्वारा जारी वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII), 2022 रैंकिंग में भारत 132 देशों में 40वें स्थान पर है।
- भारत 2021 में 46वें और 2015 में 81वें स्थान पर था।
रिपोर्ट की मुख्य विशेषताएँ:
- देशों की रैंकिंग:
- सबसे नवाचारी अर्थव्यवस्था:
- वर्ष 2022 में स्विट्ज़रलैंड दुनिया की सबसे नवाचारी अर्थव्यवस्था है- लगातार 12वें वर्ष- इसके बाद संयुक्त राज्य अमेरिका, स्वीडन, यूनाइटेड किंगडम व नीदरलैंड का स्थान है।
- चीन शीर्ष 10 के करीब है, जबकि तुर्की और भारत पहली बार शीर्ष 40 में शामिल हुए हैं।
- भारत का प्रदर्शन:
- भारत निम्न मध्यम आय वर्ग में नवोन्मेषी नेतृत्त्वकर्ता है।
- यह ICT सेवाओं के निर्यात में दुनिया के नेतृत्त्वकर्ता के साथ अन्य संकेतकों में शीर्ष रैंकिंग में शामिल है, जिसमें उद्यम पूँजी प्राप्ति मूल्य, स्टार्टअप और स्केलअप के लिये वित्त, विज्ञान एवं इंजीनियरिंग में स्नातक, श्रम उत्पादकता वृद्धि तथा घरेलू उद्योग विविधीकरण शामिल हैं।
- सबसे नवाचारी अर्थव्यवस्था:
- अनुसंधान एवं विकास व्यय में वृद्धि:
- शीर्ष वैश्विक कॉर्पोरेट R&D पर खर्च करने वालों ने अपने R&D खर्च को वर्ष 2021 में लगभग 10% बढ़ाकर 900 बिलियन अमेरिकी डाॅलर से अधिक कर दिया है जो महामारी से पहले वर्ष 2019 की तुलना में अधिक है।
- वेंचर कैपिटल (VC) ग्रोथ:
- वर्ष 2021 में 46% के साथ इसमें बेहतरीन वृद्धि हुई है, वर्ष 1990 के दशक के बाद से यह रिकॉर्ड स्तर रहा है। लैटिन अमेरिका और कैरिबियन तथा अफ्रीकी क्षेत्रों में VC की सबसे अधिक वृद्धि देखी जा रही है।
वैश्विक नवाचार सूचकांक (GII):
- परिचय:
- ‘वैश्विक नवाचार सूचकांक’(GII) देशों की क्षमता और नवाचार में सफलता के आधार पर तैयार किया जाने वाला एक वार्षिक सूचकांक है।
- बड़ी संख्या में देश GII का उपयोग अपने नवाचार पारिस्थितिकी तंत्र का आकलन और सुधार करने के लिये करते हैं तथा GII को आर्थिक योजनाओं एवं/या नीतियों में संदर्भ के रूप में उपयोग करते हैं।
- सतत् विकास लक्ष्यों (SDGs) के संबंध में नवाचार को मापने के लिये GII को संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद द्वारा विज्ञान, प्रौद्योगिकी एवं विकास के लिये नवाचार पर 2019 के संकल्प में एक आधिकारिक बेंचमार्क के रूप में मान्यता दी गई है।
- सूचकांक के संकेतक:
- सूचकांक की गणना के मानकों में 'संस्थान', 'मानव पूंजी और अनुसंधान', 'आधारभूत ढाँचे', बाज़ार' संरचना', 'व्यापार संरचना', 'ज्ञान तथा प्रौद्योगिकी आउटपुट' शामिल हैं।
- 2022 की थीम: "नवाचार-संचालित विकास का भविष्य क्या है?"
- दो नवीन नवाचारों का प्रभाव: GII 2022 दो नवीन नवाचार के सकारात्मक प्रभावों को भी रेखांकित करता है, हालाँकि यह इस बात पर ज़ोर देता है कि इस तरह के प्रभावों को महसूस होने में कुछ समय लगेगा:
- सुपरकंप्यूटिंग, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और ऑटोमेशन पर निर्मित डिजिटल युग नवाचार।
- प्रभाव: वैज्ञानिक अनुसंधान के सभी क्षेत्रोंं में पर्याप्त उत्पादकता प्रभाव बनाना।
- जैव प्रौद्योगिकी, नैनो प्रौद्योगिकी, नई सामग्री, और अन्य प्रौद्योगिकी सफलताओं पर निर्मित एक गहन विज्ञान नवाचार।
- स्वास्थ्य, भोजन, पर्यावरण और गतिशीलता में क्रांतिकारी नवाचार (समाज के लिये महत्त्वपूर्ण चार क्षेत्र)।
विश्व बौद्धिक संपदा संगठन (WIPO):
- WIPO बौद्धिक संपदा (IP) सेवाओं, नीति, सूचना और सहयोग के लिये वैश्विक मंच है।
- यह 193 सदस्य देशों के साथ संयुक्त राष्ट्र की एक स्व-वित्तपोषित एजेंसी है।
- इसका उद्देश्य संतुलित और प्रभावी अंतर्राष्ट्रीय IP प्रणाली के विकास का नेतृत्व करना है जो सभी के लाभ के लिये नवाचार एवं रचनात्मकता को सक्षम बनाता है।
- इसका जनादेश, शासी निकाय और प्रक्रियाएँ WIPO कन्वेंशन में निर्धारित की गई हैं, जिसने वर्ष 1967 में WIPO की स्थापना की थी।
भारत की संबंधित पहलें:
- डिजिटल इंडिया:
- भारत ने वर्ष 2015 में 'डिजिटल इंडिया' यात्रा शुरू की और अगले कुछ वर्षों में एक ट्रिलियन-डॉलर की डिजिटल अर्थव्यवस्था का लक्ष्य निर्धारित किया है।
- डिजिटल प्रौद्योगिकियों का उपयोग कई क्षेत्रों में किया जाता है, जिसमें GIS प्रौद्योगिकी का उपयोग करके पूंजीगत संपत्तियों की मैपिंग और एकीकृत भुगतान इंटरफेस (UPI) के माध्यम से भुगतान में क्रांतिकारी बदलाव शामिल हैं।
- वास्तव में वर्ष 2021 में वैश्विक वास्तविक समय डिजिटल लेनदेन का 40% भारत में हुआ।
- राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020:
- नवाचार को और मज़बूत करने के लिये राष्ट्रीय शिक्षा नीति पेश की गई जिसने ऊष्मायन एवं प्रौद्योगिकी विकास केंद्रों की स्थापना करके जानकारी को बढ़ावा दिया।
- अटल टिंकरिंग लैब:
- 9000 से अधिक अटल टिंकरिंग लैब्स युवाओं को समाज की समस्याओं के समाधान विकसित करने के लिये प्रोत्साहित करती हैं।
- IPR में संरचनात्मक सुधार:
- भारत ने बौद्धिक संपदा अधिकार (IPR) व्यवस्था को मज़बूत करने के लिये संरचनात्मक सुधार किये हैं जिसमें IP कार्यालयों का आधुनिकीकरण, कानूनी अनुपालन को कम करना और स्टार्ट-अप, महिला उद्यमियों, छोटे उद्योगों एवं अन्य के लिये IP फाइलिंग की सुविधा शामिल है।
- पेटेंट की घरेलू फाइलिंग में पिछले 5 वर्षों में 46% की वृद्धि दर्ज की गई है।
स्रोत: पी.आई.बी.
शासन व्यवस्था
नए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS)
प्रिलिम्स के लिये:चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ, कारगिल रिव्यू कमेटी (1999) की रिपोर्ट, नरेश चंद्र कमेटी। मेन्स के लिये:चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ का महत्त्व। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्र सरकार ने पूर्वी कमान के पूर्व प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल अनिल चौहान (सेवानिवृत्त) को नए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) के रूप में नियुक्त किया।
चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS):
- पृष्ठभूमि: इसके निर्माण की सिफारिश वर्ष 2001 में मंत्रियों के एक समूह (GoM) द्वारा की गई थी जिसे कारगिल समीक्षा समिति (1999) की रिपोर्ट का अध्ययन करने का काम सौंपा गया था।
- GoM की सिफारिशों के बाद CDS के पद की स्थापना हेतु सरकार ने वर्ष 2002 में एकीकृत रक्षा स्टाफ बनाया, जिसे अंततः CDS के सचिवालय के रूप में काम करना था।
- वर्ष 2012 में नरेश चंद्र समिति ने CDS पर आशंकाओं को खत्म करने के लिये चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के स्थायी अध्यक्ष की नियुक्ति की सिफारिश की थी।
- अंत में CDS का पद वर्ष 2019 में लेफ्टिनेंट जनरल डी.बी. शेकातकर की अध्यक्षता में रक्षा विशेषज्ञों की समिति की सिफारिशों पर बनाया गया था।
- जनरल बिपिन रावत देश के पहले CDS थे और उन्हें 31 दिसंबर, 2019 को नियुक्त किया गया था।
- चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ की भूमिका एवं ज़िम्मेदारी:
- CDS ‘चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी’ के स्थायी अध्यक्ष के रूप में कार्य करता है जिसमें तीनों सेवाओं के प्रमुख भी सदस्य होंगे।
- उसका मुख्य कार्य भारतीय सेना की त्रि-सेवाओं के बीच अधिक-से-अधिक परिचालन तालमेल को बढ़ावा देना और अंतर-सेवा विरोधाभास को कम-से-कम करना है।
- वह रक्षा मंत्रालय में नवनिर्मित सैन्य मामलों के विभाग (DMA) का प्रमुख भी है।
- वह सेना के तीनों अंगों के मामले में रक्षा मंत्री के प्रमुख सैन्य सलाहकार के रूप में कार्य करेगा, लेकिन इसके साथ ही तीनों सेनाओं के अध्यक्ष रक्षा मंत्री को अपनी सेनाओं के संबंध में सलाह देना जारी रखेंगे।
- DMA के प्रमुख के तौर पर CDS को चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी के स्थायी अध्यक्ष के रूप में अंतर-सेवा खरीद निर्णयों को प्राथमिकता देने का अधिकार प्राप्त है।
- CDS को तीनों प्रमुखों को निर्देश देने का अधिकार भी दिया गया है।
- हालाँकि उसे सेना के किसी भी कमांड का अधिकार प्राप्त नहीं है।
- CDS का पद समकक्षों में प्रथम है, उसे DoD (रक्षा विभाग) के भीतर सचिव का पद प्राप्त है और उसकी शक्तियांँ केवल राजस्व बजट तक ही सीमित रहेंगी।
- वह परमाणु कमान प्राधिकरण (NCA) में सलाहकार की भूमिका भी निभाएगा।
- CDS ‘चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी’ के स्थायी अध्यक्ष के रूप में कार्य करता है जिसमें तीनों सेवाओं के प्रमुख भी सदस्य होंगे।
- महत्त्व:
- सशस्त्र बलों और सरकार के बीच तालमेल: CDS की भूमिका केवल त्रि-सेवा सहयोग ही नहीं है, बल्कि रक्षा मंत्रालय, नौकरशाही और सशस्त्र सेवाओं के बीच बेहतर सहयोग को बढ़ावा देना भी है।
- वर्ष 1947 से रक्षा विभाग (DoD) के "संलग्न कार्यालय" के रूप में नामित त्रि-सेवा मुख्यालय (SHQ) हैं। इसके कारण SHQ और DoD के बीच संचार मुख्य रूप से फाइलों के माध्यम से होता है।
- रक्षा मंत्री के प्रधान सैन्य सलाहकार (PMA) के रूप में CDS की नियुक्ति से निर्णय लेने की प्रक्रिया में तेज़ी आएगी।
- संचालन में संलग्नता: चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी (CDS की पूर्ववर्ती), निष्क्रिय रहेगी, क्योंकि इसकी अध्यक्षता तीन प्रमुखों में से एक द्वारा अंशकालिक रोटेशन के आधार पर की जाती है।
- ऐतिहासिक रूप से COSC के अध्यक्ष के पास अधिकार के साथ-साथ तीनों सेवाओं की भूमिका से संबंधित विवादों को निपटाने की क्षमता का अभाव था।
- CDS को अब "COSC के स्थायी अध्यक्ष" के रूप में नामित किया गया है, वह त्रि-सेवा संगठनों के प्रशासन पर समान रूप से ध्यान देने में सक्षम होगा।
- थियेटर कमांड का संचालन:
- यद्यपि अंडमान और निकोबार कमान में संयुक्त संचालन के लिये एक सफल ढाँचा बनाया गया था, राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी और COSC की उदासीनता के कारण यह संयुक्त कमान निष्क्रिय बना हुआ है।
- थियेटर कमांड को थल सेना, नौसेना और वायु सेना को तैनात करने के लिये जानकारी एवं अनुभवी कर्मचारियों की आवश्यकता होगी। इन्हें CDS द्वारा सर्वोत्तम रूप से लागू किया जाएगा।
- CDS परमाणु कमांड शृंखला में एक प्रमुख अधिकारी के रूप में सामरिक बल कमांड को भी प्रशासित करेगा।
- यह उपाय भारत के परमाणु निवारक विश्वसनीयता को बढ़ाने के क्रम में एक लंबा मार्ग तय करेगा।
- CDS भारत की परमाणु नीति की समीक्षा भी करेगा।
- घटते रक्षा बजट के कारण आने वाले समय में CDS का एक महत्त्वपूर्ण कार्य व्यक्तिगत सेवाओं के पूंजी अधिग्रहण प्रस्तावों को "प्राथमिकता" देना होगा।
- सशस्त्र बलों और सरकार के बीच तालमेल: CDS की भूमिका केवल त्रि-सेवा सहयोग ही नहीं है, बल्कि रक्षा मंत्रालय, नौकरशाही और सशस्त्र सेवाओं के बीच बेहतर सहयोग को बढ़ावा देना भी है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
जैव विविधता और पर्यावरण
वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा: GMCCA फोरम
प्रिलिम्स के लिये:जलवायु और स्वच्छ वायु गठबंधन, वैश्विक मीथेन पहल, मीथेन, ग्रीनहाउस गैसें, भारत ग्रीनहाउस गैस कार्यक्रम। मेन्स के लिये:वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा और मीथेन से संबंधित चिंता। |
चर्चा में क्यों?
ग्लोबल मीथेन, क्लाइमेट एंड क्लीन एयर (GMCCA) फोरम 2022 का आयोजन वाशिंगटन, डीसी, यूएसए में किया जा रहा है ताकि ग्लोबल मीथेन प्लेज का पालन करके मीथेन पर विशेष ध्यान देने के साथ जलवायु की रक्षा और वायु गुणवत्ता में सुधार के अवसरों पर चर्चा की जा सके।
फोरम का एजेंडा क्या है?
- यह फोरम ग्लोबल मीथेन इनिशिएटिव (GMI) तथा यूएनईपी-आयोजित जलवायु और स्वच्छ वायु गठबंधन (CCAC) द्वारा प्रायोजित एक संयुक्त कार्यक्रम है।
- GMI एक अंतर्राष्ट्रीय सार्वजनिक-निजी भागीदारी है जो स्वच्छ ऊर्जा स्रोत के रूप में मीथेन के उपयोग के समक्ष उत्पन्न बाधाओं को कम करने पर बल देता है। यह विश्व में मीथेन-से-ऊर्जा परियोजनाओं को शुरु करने के लिये तकनीकी सहायता प्रदान करता है जो भागीदार देशों को मीथेन परियोजनाओं का उपयोग करने में सक्षम बनाता है।
- भारत GMI का भागीदार देश है।
- मीथेन और अन्य अल्पकालिक जलवायु प्रदूषकों को कम करने के वैश्विक प्रयासों पर उच्च स्तरीय सत्र आयोजित किये जाएंगे।
- यह फोरम मीथेन को कम करने की दिशा में वैश्विक स्तर पर अनुकूल नीति के साथ राजनीतिक और वैज्ञानिक तर्कों की रूपरेखा तैयार करेगा। इसका लक्ष्य आगे के मार्ग को परिभाषित करना भी है।
वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा क्या है?
- परिचय:
- मीथेन उत्सर्जन में कमी हेतु कार्रवाई को उत्प्रेरित करने के लिये नवंबर 2021 में COP (पार्टियों का सम्मेलन) 26 में वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा शुरू की गई थी।
- इसका नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका और यूरोपीय संघ ने किया था।
- इसमें 111 देश प्रतिभागी हैं जो मानव-जनित वैश्विक मीथेन उत्सर्जन के 45% हिस्से के लिये ज़िम्मेदार हैं।
- भारत, वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा का हिस्सा नहीं है लेकिन विश्व स्तर पर शीर्ष पाँच मीथेन उत्सर्जकों में से एक है। इसका अधिकांश उत्सर्जन कृषि क्षेत्र में देखा जा सकता है।
- इस प्रतिज्ञा में शामिल होकर देश वर्ष 2030 तक 2020 के स्तर से कम-से-कम 30% मीथेन उत्सर्जन को सामूहिक रूप से कम करने के लिये मिलकर काम करने के लिये प्रतिबद्ध हैं।
- चिंताएँ:
- मीथेन ने वर्तमान में मानवजनित ग्रीनहाउस गैस चालित वार्मिंग के लगभग एक-तिहाई में योगदान दिया है।
- मीथेन, वातावरण में तेल और गैस उद्योगों में रिसाव, पशुपालन एवं लैंडफिल में कचरे के अपघटन के कारण प्रवेश करती है।
- वर्तमान में वैश्विक जलवायु वित्त का केवल 2% मीथेन क्षेत्र में जाता है।
- यदि वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा का पालन नहीं किया जाता है, तो वर्ष 2030 तक मीथेन उत्सर्जन में 13% की वृद्धि होने की संभावना है।
- क्षेत्रवार मीथेन के शीर्ष बारह उत्सर्जक (2021 में):
मीथेन:
- परिचय:
- मीथेन गैस पृथ्वी के वायुमंडल में कम मात्रा में पाई जाती है। यह सबसे सरल हाइड्रोकार्बन है, जिसमें एक कार्बन परमाणु और चार हाइड्रोजन परमाणु (CH4) शामिल होते हैं। मीथेन एक शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस (Greenhouse Gas) है। यह एक ज्वलनशील गैस है जिसे पूरे विश्व में ईंधन के रूप में उपयोग किया जाता है।
- इसका निर्माण कार्बनिक पदार्थ के टूटने या क्षय होने से होता है। यह आर्द्रभूमियों, मवेशियों, धान के खेत जैसे प्राकृतिक एवं कृत्रिम माध्यमों द्वारा वातावरण में उत्सर्जित होती है।
- मीथेन का प्रभाव:
- मीथेन कार्बन की तुलना में 84 गुना अधिक शक्तिशाली गैस है और यह वायुमंडल में लंबे समय तक नहीं रहती है। इसके उत्सर्जन को अन्य ग्रीनहाउस गैसों की तुलना में कम करके ग्लोबल वार्मिंग में और अधिक कमी की जा सकती है।
- यह ज़मीनी स्तर के ओज़ोन (Ozone) को खतरनाक वायु प्रदूषक बनाने के लिये ज़िम्मेदार है।
वायु प्रदूषण से निपटने के लिये भारत की पहल:
आगे की राह
- डीकार्बोनाइजेशन लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये मीथेन और अन्य अल्पकालिक जलवायु प्रदूषकों को कम करना आवश्यक है।
- राष्ट्रीय कार्ययोजनाओं या रणनीतियों का विकास करना जो उत्सर्जन में कमी को प्रोत्साहित करने, समयसीमा को परिभाषित करने व आवश्यक संसाधनों का आकलन करने के लिये विशिष्ट कार्यों की पहचान करते हैं।
- मीथेन उत्सर्जन के उद्देश्य से नई नीतियों या विनियमों का प्रस्ताव, जिसमें रिसाव का पता लगाने और मरम्मत कार्य, प्रौद्योगिकी एवं उपकरण मानकों, फ्लेयरिंग और वेंटिंग पर सीमा, मापन तथा रिपोर्टिंग आवश्यकताओं जैसे उपाय शामिल हों।
- राजनीतिक प्रतिबद्धता स्थापित करने, अपेक्षाओं को चिंह्णित करने और बेहतर योजना बनाने के लिये राष्ट्रीय न्यूनीकरण लक्ष्यों को अपनाना, चाहे वह अर्थव्यवस्था-व्यापक हो या क्षेत्रीय।
- सैटेलाइट डिटेक्शन पर आधारित सुपर-एमिटर रैपिड रिस्पांस सिस्टम में भाग लेना, जो बड़े उत्सर्जन की घटनाओं को उचित समय पर संबोधित करने के लिये संचार चैनल स्थापित करेगा।
- अनुदान, लक्षित वित्त या अन्य प्रोत्साहनों के माध्यम से उपशमन और मानक प्रौद्योगिकियों पर अनुसंधान एवं विकास की दिशा में वित्तपोषण तथा सत्यापन योग्य शमन परियोजनाओं का समर्थन करना।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. ‘मीथेन हाइड्रेट’ के निक्षेपों के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-से सही हैं? भूमंडलीय तापन के कारण इन निक्षेपों से मीथेन गैस का निर्मुक्त होना प्रेरित हो सकता है। नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये: (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। प्रश्न: निम्नलिखित पर विचार कीजिये: (2019)
फसल/बायोमास अवशेषों के जलने से उपर्युक्त में से कौन-से वातावरण में उत्सर्जित होटे है? (a) केवल 1 और 2 उत्तर: (d) |
स्रोत: डाउन टू अर्थ
आंतरिक सुरक्षा
सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम (AFSPA)
प्रिलिम्स के लिये:सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम (AFSPA) मेन्स के लिये:सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम (AFSPA) और संबंधित मुद्दे, विभिन्न सुरक्षा बल और एजेंसियाँ और उनका जनादेश, आंतरिक और सीमावर्ती क्षेत्रों में आतंकवाद |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में गृह मंत्रालय (MHA) ने अरुणाचल प्रदेश तथा नगालैंड के कुछ हिस्सों में सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम (AFSPA) को और छह महीने के लिये बढ़ा दिया है।
सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम (AFSPA):
- पृष्ठभूमि:
- भारत छोड़ो आंदोलन के दौरान विरोध प्रदर्शनों को दबाने के लिये बनाए गए ब्रिटिश-काल के कानून का पुनर्गठन, AFSPA 1947 में चार अध्यादेशों के माध्यम से जारी किया गया था।
- अध्यादेशों को वर्ष 1948 में एक अधिनियम द्वारा प्रतिस्थापित किया गया था और पूर्वोत्तर में प्रभावी वर्तमान कानून को वर्ष 1958 में तत्कालीन गृह मंत्री जीबी पंत द्वारा संसद में पेश किया गया था।
- इसे शुरू में सशस्त्र बल (असम और मणिपुर) विशेष अधिकार अधिनियम, 1958 के रूप में जाना जाता था।
- अरुणाचल प्रदेश, मेघालय, मिज़ोरम और नगालैंड राज्यों के अस्तित्व में आने के बाद अधिनियम को इन राज्यों पर भी लागू करने के लिये अनुकूलित किया गया था।
- परिचय:
- AFSPA सशस्त्र बलों और "अशांत क्षेत्रों" में तैनात केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बलों को कानून का उल्लंघन करने वाले किसी भी व्यक्ति को मारने तथा बिना वारंट के किसी भी परिसर की तलाशी लेने एवं अभियोजन तथा कानूनी मुकदमों से सुरक्षा के साथ निरंकुश अधिकार देता है।
- नगाओं के विद्रोह से निपटने के लिये यह कानून पहली बार वर्ष 1958 में लागू हुआ था।
- अधिनियम को वर्ष 1972 में संशोधित किया गया था और किसी क्षेत्र को "अशांत" घोषित करने की शक्तियाँ राज्यों के साथ-साथ केंद्र सरकार को भी प्रदान की गई थीं।
- त्रिपुरा ने वर्ष 2015 में अधिनियम को निरस्त कर दिया तथा मेघालय 27 वर्षों के लिये AFSPA के अधीन था, जब तक कि इसे 1 अप्रैल, 2018 से MHA द्वारा निरस्त नहीं कर दिया गया।
- वर्तमान में AFSFA असम, नगालैंड, मणिपुर और अरुणाचल प्रदेश के कुछ हिस्सों में लागू है।
- अधिनियम को लेकर विवाद:
- मानवाधिकारों का उल्लंघन:
- कानून गैर-कमीशन अधिकारियों तक, सुरक्षाकर्मियों को बल का उपयोग करने और "मृत्यु होने तक" गोली मारने का अधिकार देता है, यदि वे आश्वस्त हैं कि "सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने" के लिये ऐसा करना आवश्यक है।
- यह सैनिकों को बिना वारंट के परिसर में प्रवेश करने, तलाशी लेने और गिरफ्तारी करने की कार्यकारी शक्तियाँ भी देता है।
- सशस्त्र बलों द्वारा इन असाधारण शक्तियों के प्रयोग से अक्सर अशांत क्षेत्रों में सुरक्षा बलों पर फर्जी मुठभेड़ों और अन्य मानवाधिकारों के उल्लंघन के आरोप लगते रहे हैं, जबकि नगालैंड एवं जम्मू-कश्मीर जैसे कुछ राज्यों में AFSPA के अनिश्चितकालीन लागू होने पर सवाल उठाया गया है।
- जीवन रेड्डी समिति की सिफारिशें:
- नवंबर 2004 में केंद्र सरकार ने पूर्वोत्तर राज्यों में अधिनियम के प्रावधानों की समीक्षा के लिये न्यायमूर्ति बी पी जीवन रेड्डी की अध्यक्षता में पाँच सदस्यीय समिति गठित की।
- समिति की मुख्य सिफारिशें इस प्रकार थीं:
- AFSPA को निरस्त किया जाना चाहिये और गैर-कानूनी गतिविधियाँ (रोकथाम) अधिनियम, 1967 में उचित प्रावधान शामिल किये जाने चाहिये।
- सशस्त्र बलों और अर्द्धसैनिक बलों की शक्तियों को स्पष्ट रूप से निर्दिष्ट करने हेतु गैरकानूनी गतिविधि अधिनियम को संशोधित किया जाना चाहिये तथा प्रत्येक ज़िले में जहांँ सशस्त्र बल तैनात हैं, शिकायत प्रकोष्ठ स्थापित किये जाने चाहिये।
- दूसरी ARC की सिफारिशें: सार्वजनिक व्यवस्था पर दूसरे प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) की 5वीं रिपोर्ट में भी AFSPA को निरस्त करने की सिफारिश की गई है। हालांँकि इन सिफारिशों को लागू नहीं किया गया है।
- मानवाधिकारों का उल्लंघन:
अधिनियम पर सर्वोच्च न्यायालय के विचार:
- वर्ष 1998 में सर्वोच्च न्यायालय ने अपने एक निर्णय (नगा पीपुल्स मूवमेंट ऑफ ह्यूमन राइट्स बनाम यूनियन ऑफ इंडिया) में AFSPA की संवैधानिकता को बरकरार रखा है।
- इस निर्णय में सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि-
- केंद्र सरकार द्वारा स्व-प्रेरणा से घोषणा की जा सकती है, हालांकि यह वांछनीय है कि घोषणा करने से पहले राज्य सरकार को केंद्र सरकार से परामर्श लेना चाहिये।
- घोषणा एक सीमित अवधि के लिये होनी चाहिये और घोषणा की समय-समय पर समीक्षा हेतु 6 महीने की अवधि समाप्त हो गई है।
- AFSPA द्वारा प्रदत्त शक्तियों का प्रयोग करते समय प्राधिकृत अधिकारी को प्रभावी कार्रवाई हेतु आवश्यक न्यूनतम बल का प्रयोग करना चाहिये।
आगे की राह
- वर्षों से कई मानवाधिकार उल्लंघन की घटनाओं के कारण अधिनियम की यथास्थिति अब स्वीकार्य समाधान नहीं है। AFSPA उन क्षेत्रों में उत्पीड़न का प्रतीक बन गया है जहांँ इसे लागू किया गया है, इसलिये सरकार को प्रभावित लोगों को संबोधित करने और उन्हें अनुकूल कार्रवाई के लिये आश्वस्त करने की आवश्यकता है।
- सरकार को मामले-दर-मामले आधार पर AFSPA को लागू करने और हटाने पर विचार करना चाहिये तथा पूरे राज्य में इसे लागू करने के बजाय केवल कुछ सवेदनशील ज़िलों तक सीमित करना चाहिये।
- सरकार और सुरक्षा बलों को सर्वोच्च न्यायालय, जीवन रेड्डी आयोग और राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC) द्वारा निर्धारित दिशा-निर्देशों का भी पालन करना चाहिये।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. मानवाधिकार सक्रियतावादी लगातार इस विचार को उज़ागर करते हैं कि सशस्त्र बल (विशेष शक्तियाँ) अधिनियम, 1958 (AFSP) एक क्रूर अधिनियम है, जिससे सुरक्षा बलों द्वारा मानवाधिकार के दुरुपयोगों के मामले उत्पन्न होते हैं। इस अधिनियम की कौन-सी धाराओं का सक्रियतावादी विरोध करते हैं? उच्चतम न्यायालय द्वारा व्यक्त विचार के संदर्भ में इसकी आवश्यकता का समालोचनात्मक मूल्यांकन कीजिये। (2015) |