मौद्रिक नीति समिति
भारत कोविड -19 खरीद: चुनौतियाँ, नवाचार और सबक
प्रिलिम्स के लिये:विश्व बैंक, कोविड-19। मेन्स के लिये:महत्त्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय संस्थान, कोविड -19 का प्रबंधन। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में विश्व बैंक ने "भारत कोविड -19 खरीद: चुनौतियाँ, नवाचार और सबक (India Covid-19 Procurement: Challenges, Innovations, and Lessons )" शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है, जिसके अनुसार, भारत महामारी के प्रबंधन में विभिन्न चीजें हासिल करने में कामयाब रहा।
- यह रिपोर्ट कोविड महामारी के गंभीर प्रारंभिक चरण के दौरान आवश्यक चिकित्सा वस्तुओं की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिये भारत सरकार द्वारा की गई पहलों पर करीब से नज़र डालती है।
प्रमुख बिंदु
- वैश्विक:
- वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा सूचकांक में उच्च रेटिंग वाले देशों सहित अधिकांश देशों की स्वास्थ्य प्रणालियों को महामारी से निपटने में नई चुनौतियों का सामना करना पड़ा।
- असाधारण बाज़ार अनिश्चितताओं को दूर करने के लिये कई देशों ने आपातकालीन संदर्भ में प्रक्रियाओं को उत्तरदायी बनाने के लिये सार्वजनिक खरीद में नवाचारों की शुरुआत की।
- भारतीय पहल:
- भारत ने देश भर में चिकित्सा आपूर्ति के कुशल वितरण का प्रबंधन किया, शुरुआती प्रतिबंध लगाए और आपात स्थिति के दौरान त्वरित खरीद निर्णय हेतु सशक्त अंतर-मंत्रालयी समूह भी बनाए।
- भारत चार महीने की अवधि के भीतर तेज़ी से जो पहले केवल 18 थी से सीधे 2,500 से अधिक परीक्षण प्रयोगशालाओं की स्थापना करने में कामयाब रहा और वैश्विक आपूर्ति शृंखलाओं के लिये गंभीर चुनौतियों का सामना करने वाली भविष्य की महामारियों एवं स्वास्थ्य आपात स्थितियों का सामना करने हेतु तैयार हो गया।
- भारत ने स्वदेशी चिकित्सा उपकरण उद्योग के विकास के लिये अनुकूल वातावरण भी तैयार किया।
- कोविड -19 महामारी से पहले भारत ज़्यादातर वेंटिलेटर का आयात कर रहा था, हालाँकि कई नए लोगों सहित 25 निर्माता ‘सीमित वित्तीय और बुनियादी ढाँचा क्षमता वाले वेंटिलेटर’ का उत्पादन करने के लिये आगे आए।
- सरकार ने वेंटिलेटर बनाने के लिये कई ऑटोमोबाइल और इलेक्ट्रिकल निर्माण कंपनियों का उपयोग किया।
- भारत में प्रमुख नवाचार:
- स्थानीय उत्पादन को प्रोत्साहित करने के लिये पूरे सरकारी दृष्टिकोण को अपनाने से इकाई कीमतों और वैश्विक आपूर्ति पर निर्भरता को कम करने में मदद मिली।
- त्वरित निविदा प्रक्रिया और गुणवत्ता आश्वासन प्रोटोकॉल की शुरुआत हुई।
- कुशल आपूर्ति शृंखला प्रबंधन को कम्प्यूटरीकृत मॉडलिंग द्वारा संचालित किया गया जिसने महामारी विज्ञान के रुझानों के आधार पर राज्यों के बीच ऑक्सीजन और गहन देखभाल इकाई आवश्यकताओं को पूरा करने में मदद की।
- सरकार की ई-खरीद साइट पर गुणवत्ता आश्वासित कोविड वस्तुओं को तेज़ी से स्थानांतरित करना, जिसने राज्यों को निविदा प्रक्रिया से गुजरे बिना प्रतिस्पर्द्धी कीमतों पर इन उत्पादों तक पहुँच शुरू करने में सक्षम बनाया।
विश्व बैंक:
- परिचय:
- अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (IBRD) तथा अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की स्थापना एक साथ वर्ष 1944 में अमेरिका के न्यू हैम्पशायर में ब्रेटन वुड्स सम्मेलन के दौरान हुई थी। अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (IBRD) को ही विश्व बैंक के रूप में जाना जाता है।
- विश्व बैंक समूह विकासशील देशों में गरीबी को कम करने और साझा समृद्धि का निर्माण करने वाले स्थायी समाधानों के लिये काम कर रहे पाँच संस्थानों की एक अनूठी वैश्विक साझेदारी है।
- सदस्य:
- 189 देश इसके सदस्य हैं।
- भारत भी एक सदस्य देश है।
- प्रमुख रिपोर्ट:
- ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस (हाल ही में इसका प्रकाशन बंद कर दिया गया)
- ह्यूमन कैपिटल इंडेक्स
- वर्ल्ड डेवलपमेंट रिपोर्ट
- पाँच विकास संस्थान
- अंतर्राष्ट्रीय पुनर्निर्माण और विकास बैंक (IBRD)
- अंतर्राष्ट्रीय विकास संघ (IDA)
- अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (IFC)
- बहुपक्षीय निवेश गारंटी एजेंसी (MIGA)
- निवेश विवादों के निपटारे के लिये अंतर्राष्ट्रीय केंद्र (ICSID)
- भारत इसका सदस्य नहीं है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्ष के प्रश्न:प्रश्न 'विश्व आर्थिक संभावना (ग्लोबल इकनॉमिक प्रॉस्पेक्ट्रस)' रिपोर्ट आवधिक रूप से निम्नलिखित में से कौन जारी करता है? (a) एशिया विकास बैंक उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। प्रश्न. सार्वभौम अवसंरचना सुविधा (ग्लोबल इंफ्रास्ट्रक्चर फैसिलिटी) है: (2017) (a) एशिया में अवसंरचना उन्नयन के लिये ASEAN का उपक्रमण है, जो एशियाई विकास बैंक द्वारा दिये गए साख (क्रेडिट) से वित्तपोषित है। उत्तर: (b) प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में दिखने वाले 'आइएफसी-मसाला बॉन्ड (IFC Masals Bonds)' के संदर्भ में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 1. अंतर्राष्ट्रीय वित्त निगम (इंरनैशनल फाइनेंस कॉपरेशन), जो इन बॉन्डों को प्रस्तावित करता है, विश्व बैंक की एक शाखा है। नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये। (a) केवल 1 उत्तर: (c) प्रश्न. विश्व बैंक व अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, संयुक्त रूप से ब्रेटन वुड्स नाम से जानी जाने वाली संस्थाएँ, विश्व की आर्थिक व वित्तीय व्यवस्था की संरचना का संभरण करने वाले दो अंतर्सरकारी स्तम्भ हैं। पृष्ठीय रूप में विश्व बैंक व अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष दोनों की अनेक समान विशिष्टताएँ है, तथापि उनकी भूमिका, कार्य तथा अधिदेश स्पष्ट रूप से भिन्न हैं। व्याख्या कीजिये। (मेन्स-2013) |
स्रोत: द हिंदू
क्लाउड सीडिंग
प्रिलिम्स के लिये:क्लाउड सीडिंग और उसके प्रकार, कृत्रिम वर्षा, वर्षण, संघनन। मेन्स के लिये:क्लाउड सीडिंग का अनुप्रयोग और चिंताएँ। |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में संयुक्त अरब अमीरात (UAE) जो पृथ्वी पर सबसे गर्म और सबसे शुष्क क्षेत्रों में से एक में स्थित है, क्लाउड सीडिंग और वर्षण को बढ़ाने के प्रयास का नेतृत्व कर रहा है, जहाँ प्रतिवर्ष औसतन 100 मिलीमीटर से कम वर्षा होती है।
- संयुक्त अरब अमीरात ने एक नई तकनीक के अंतर्गत संघनन प्रक्रिया को प्रोत्साहित और तेज़ करने के लिये बादलों में नमक के नैनोकणों तथा जल को आकर्षित करने वाले ‘साल्ट फ्लेयर्स' को संयुक्त किया है। उम्मीद है कि यह तकनीक वर्षा के रूप में गिरने के लिये पर्याप्त बूँदों का उत्पादन करेगी।
क्लाउड सीडिंग:
- परिचय:
- क्लाउड सीडिंग, सूखी बर्फ या सामान्यतः सिल्वर आयोडाइड एरोसोल के बादलों के ऊपरी हिस्से में छिड़काव की प्रक्रिया है ताकि वर्षण की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करके वर्षा कराई जा सके।
- क्लाउड सीडिंग में छोटे कणों को विमानों का उपयोग कर बादलों के बहाव के साथ फैला दिया जाता है। छोटे-छोटे कण हवा से नमी सोखते हैं और संघनन से उसका द्रव्यमान बढ़ जाता है। इससे जल की भारी बूँदें बनकर वर्षा करती हैं।
- क्लाउड सीडिंग से वर्षा दर प्रतिवर्ष लगभग 10% से 30% तक बढ़ जाती है और क्लाउड सीडिंग के संचालन में विलवणीकरण प्रक्रिया की तुलना में बहुत कम लागत आती है।
- क्लाउड सीडिंग के तरीके:
- हाइग्रोस्कोपिक क्लाउड सीडिंग:
- बादलों के निचले हिस्से में ज्वालाओं या विस्फोटकों के माध्यम से नमक को फैलाया जाता है, और जैसे ही यह पानी के संपर्क में आता है नमक कणों का आकार बढ़ने लगता है।
- स्टेटिक क्लाउड सीडिंग:
- इसमें सिल्वर आयोडाइड जैसे रसायन को बादलों में फैलाया जाता है। सिल्वर आयोडाइड एक क्रिस्टल का उत्पादन करता है जिसके चारों ओर नमी संघनित हो जाती है।
- वातावरण में उपस्थित जलवाष्प को संघनित करने में सिल्वर आयोडाइड अधिक प्रभावी है।
- डायनेमिक क्लाउड सीडिंग:
- इसका उद्देश्य ऊर्ध्वाधर वायु राशियों को बढ़ावा देना है जो बादलों से गुजरने हेतु अधिक जल को प्रोत्साहित करता है, जिससे वर्षा की मात्रा बढ़ जाती है।
- प्रक्रिया को स्थिर ,क्लाउड सीडिंग, की तुलना में अधिक जटिल माना जाता है क्योंकि यह अनुकूल घटनाओं के अनुक्रम पर निर्भर करता है।
- हाइग्रोस्कोपिक क्लाउड सीडिंग:
- क्लाउड सीडिंग के अनुप्रयोग:
- कृषि:
- इसके द्वारा सूखाग्रस्त क्षेत्रों में कृत्रिम वर्षा के माध्यम से राहत प्रदान की जाती है।
- उदाहरण के लिये, वर्ष 2017 में कर्नाटक में 'वर्षाधारी परियोजना' के अंतर्गत कृत्रिम वर्षा कराई गई थी।
- इसके द्वारा सूखाग्रस्त क्षेत्रों में कृत्रिम वर्षा के माध्यम से राहत प्रदान की जाती है।
- विद्युत उत्पादन:
- क्लाउड सीडिंग के अनुप्रयोग द्वारा तस्मानिया (ऑस्ट्रेलिया) में पिछले 40 वर्षों के दौरान जल विद्युत उत्पादन में वृद्धि देखी गई है।
- जल प्रदूषण नियंत्रण:
- क्लाउड सीडिंग गर्मियों के दौरान नदियों के न्यूनतम प्रवाह को बनाए रखने में मदद कर सकती है और नगर पालिकाओं तथा उद्योगों से उपचारित अपशिष्ट जल के निर्वहन के प्रभाव को भी कम कर सकती है।
- कोहरा का प्रसार, ओला वर्षण और चक्रवात की स्थिति में परिवर्तन:
- सर्दियों के दौरान क्लाउड सीडिंग का उपयोग पर्वतों पर बर्फ की परत का क्षेत्रफल बढ़ाया जाता है, ताकि वसंत के मौसम में बर्फ के पिघलने के दौरान अतिरिक्त अपवाह प्राप्त हो सके।
- कोहरा के प्रसार, ओला वर्षण और चक्रवात की स्थिति में परिवर्तन के उद्देश्य से क्लाउड सीडिंग के माध्यम से मौसम में परिवर्तन के लिये वर्ष 1962 में अमेरिका में "प्रोजेक्ट स्काई वाटर" का परिचालन किया गया था।
- वायु प्रदूषण में कमी:
- वर्षा के माध्यम से ज़हरीले वायु प्रदूषकों को कम करने के लिये ‘क्लाउड सीडिंग’ का संभावित रूप से उपयोग किया जा सकता है।
- उदाहरण: हाल ही में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने अन्य शोधकर्त्ताओं के साथ दिल्ली में वायु प्रदूषण से निपटने के लिये क्लाउड सीडिंग के उपयोग पर विचार किया।
- पर्यटन:
- क्लाउड सीडिंग द्वारा शुष्क क्षेत्रों को अनुकूलित कर पर्यटन को बढ़ावा दिया जा सकता है।
- कृषि:
क्लाउड सीडिंग में विद्यमान चुनौतियाँ:
- संभावित दुष्प्रभाव:
- क्लाउड सीडिंग में इस्तेमाल होने वाले रसायन पौधों, जानवरों और लोगों या पर्यावरण के लिये संभावित रूप से हानिकारक हो सकते हैं।
- असामान्य मौसम प्रतिरूप:
- यह अंततः ग्रह पर जलवायु प्रतिरूप में बदलाव ला सकता है। वर्षा को प्रोत्साहित करने के लिये वातावरण में रसायनों को छिड़कने की कृत्रिम प्रक्रिया के कारण सामान्य रूप से वर्षा वाले प्राप्त स्थानों पर सूखे जैसी घटनाओं को बढ़ावा दे सकता है।
- तकनीकी रूप से महँगा:
- इसमें रसायनों को आकाश में छिड़कने और उन्हें फ्लेयर शॉट्स या हवाई जहाज़ द्वारा हवा में छोड़ने जैसी प्रक्रियाएँ शामिल हैं, जिसमें भारी लागत और लॉजिस्टिक शामिल है।
- प्रदूषण:
- कृत्रिम वर्षा के दौरान सिल्वर आयोडाइड, शुष्क बर्फ या लवण जैसे सीडिंग तत्त्व भी धरातल पर आएंगे। क्लाउड-सीडिंग परियोजनाओं के आस-पास के स्थानों में खोजे गए अवशिष्ट चाँदी को विषाक्त माना जाता है। शुष्क बर्फ के लिये यह ग्रीनहाउस गैस का एक स्रोत भी हो सकता है जो ग्लोबल वार्मिंग में योगदान देता है, क्योंकि यह मूल रूप से कार्बन डाइऑक्साइड होता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न (PYQs)प्रश्न: निम्नलिखित में से किसके संदर्भ में कुछ वैज्ञानिक पक्षाभ मेघ विरलन तकनीक तथा समतापमंडल में सल्पेट वायुविलय अंत:क्षेपण के उपयोग का सुझाव देते हैं? (2019) (a) कुछ क्षेत्रों में कृत्रिम वर्षा करवाने के लिये उत्तर: (d) व्याख्या:
अतः विकल्प (d) सही है। |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
मुस्लिम पर्सनल लॉ केस
प्रिलिम्स के लिये:सर्वोच्च न्यायालय, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (NHRC), राष्ट्रीय महिला आयोग (NCW), राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग मेन्स के लिये:भारत में पर्सनल लॉ और संबंधित मुद्दे, महिलाओं से संबंधित मुद्दे |
चर्चा में क्यों?
मुस्लिम पर्सनल लॉ द्वारा अनुमत बहु विवाह और निकाह हलाला की प्रथा की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं को सर्वोच्च न्यायालय में सूचीबद्ध किया गया है।
- पाँच न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (National Human Rights Commission-NHRC), राष्ट्रीय महिला आयोग (National Commission of Women-NCW) और राष्ट्रीय अल्पसंख्यक आयोग को नोटिस जारी की है।
याचिकाकर्त्ताओं के तर्क:
- याचिकाकर्त्ताओं ने बहुविवाह और निकाह-हलाला पर प्रतिबंध लगाने की मांग करते हुए कहा है कि यह मुस्लिम महिलाओं को असुरक्षित और कमज़ोर बनाता है एवं उनके मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करता है।
- उन्होंने मांग की कि मुसलिम पर्सनल लॉ (शरीयत) आवेदन अधिनियम की धारा 2 को असंवैधानिक घोषित किया जाए और संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार), 15 (धर्म के आधार पर भेदभाव का प्रतिषेध) और 21 (जीवन का अधिकार) के उल्लंघनकर्त्ता के रूप में घोषित किया जाए जो बहुविवाह और निकाह-हलाला की प्रथा को मान्यता प्रदान करता है।
- संविधान व्यक्तिगत कानूनों के मामले में हस्तक्षेप नहीं करता है, इसलिये सर्वोच्च न्यायालय इन प्रथाओं की संवैधानिक वैधता के मुद्दे की जाँच नहीं कर सकता है।
- याचिकाकर्त्ताओं का तर्क है कि यहाँ तक कि शीर्ष न्यायालय और विभिन्न उच्च न्यायालयों ने भी अन्य अवसरों पर पर्सनल लॉ द्वारा स्वीकृत प्रथाओं के मामले में हस्तक्षेप करने से इनकार कर दिया है, याचिकाकर्त्ताओं द्वारा तीन तालक चुनौती मामले को सर्वोच्च न्यायालय पहले ही खारिज़ कर चुका है।
मुस्लिम पर्सनल लॉ:
- शरिया या मुस्लिम पर्सनल लॉ के अनुसार, पुरुषों को बहुविवाह करने की अनुमति दी गई है, जिसका अर्थ है वे एक ही समय में एक से अधिक पत्नियों के साथ रह सकते हैं, विवाह की अधिकतम संख्या 4 निर्धारित की गई है।
- 'निकाह हलाला' एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें एक मुस्लिम महिला को अपने तलाकशुदा पति से दोबारा शादी करने से पूर्व दूसरे व्यक्ति से शादी करनी होती है और फिर उससे तलाक लेना पड़ता है।
भारत में मुस्लिम कानून:
- मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) अनुप्रयोग अधिनियम (Shariat Application Act) वर्ष 1937 में भारतीय मुसलमानों के लिये इस्लामी कानून सहिंता तैयार करने के उद्देश्य से पारित किया गया था।
- ब्रिटिश जो उस समय भारत पर शासन कर रहे थे, यह सुनिश्चित करने की कोशिश कर रहे थे कि भारतीयों पर उनके अपने सांस्कृतिक मानदंडों के अनुसार शासन किया जाए।
- जब हिंदुओं और मुसलमानों के लिये बनाए गए कानूनों के बीच अंतर करने की बात आई, तो उन्होंने यह बयान दिया कि हिंदुओं के मामले में "उपयोग का स्पष्ट प्रमाण कानून की लिखित सहिंता से अधिक होगा"। दूसरी ओर मुसलमानों के लिये कुरान में लिखित सहिंता सबसे महत्त्वपूर्ण होगी।
- वर्ष 1937 के बाद से शरीयत अनुप्रयोग अधिनियम मुस्लिम सामाजिक जीवन के पहलुओं, जैसे शादी, तलाक, विरासत और पारिवारिक संबंधों को अनिवार्य करता है। अधिनियम के अनुसार, व्यक्तिगत विवाद के मामलों में राज्य हस्तक्षेप नहीं करेगा।
अन्य धर्मों के पर्सनल लॉ:
- हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 जो हिंदुओं, बौद्धों, जैनियों और सिखों के बीच संपत्ति विरासत के दिशा-निर्देश देता है।
- पारसी विवाह और तलाक अधिनियम, 1936 पारसियों द्वारा उनकी धार्मिक परंपराओं के अनुसार पालन किये जाने वाले नियमों को निर्धारित करता है।
- हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 ने हिंदुओं के बीच विवाह से संबंधित कानूनों को संहिताबद्ध किया था।
भारत में शरीयत अनुप्रयोग अधिनियम अपरिवर्तनीय:
- शरीयत अधिनियम की प्रयोज्यता वर्षों से विवादास्पद रही है। ऐसे उदाहरण पहले भी देखे गए हैं जब व्यापक मौलिक अधिकारों के भाग के रूप में महिलाओं के अधिकारों के संरक्षण का मुद्दा धार्मिक अधिकारों के साथ विवाद में आ गया।
- इनमें सबसे चर्चित शाह बानो मामला है।
- वर्ष 1985 में 62 वर्षीय शाह बानो ने अपने पूर्व पति से गुजारा भत्ता की मांग करते हुए मुकदमा दायर किया।
- सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले में उसके गुजारा भत्ता के अधिकार को बरकरार रखा लेकिन इस फैसले का इस्लामिक समुदाय ने कड़ा विरोध किया था, जो इसे कुरान में लिखित नियमों के खिलाफ मानते थे। इस मामले ने इस बात को लेकर विवाद पैदा कर दिया कि न्यायालय किस हद तक व्यक्तिगत/धार्मिक कानूनों में हस्तक्षेप कर सकते है।
- भारत में शरीयत अनुप्रयोग अधिनियम पर्सनल लाॅ संबंधों में इस्लामी कानूनों के अनुप्रयोग की रक्षा करता है, लेकिन यह अधिनियम कानूनों को परिभाषित नहीं करता है।
- पर्सनल लॉ संविधान के अनुच्छेद 13 के तहत 'कानून' की परिभाषा के अंतर्गत नहीं आता है। पर्सनल लॉ की वैधता को संविधान में निहित मौलिक अधिकारों के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती है।
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा विगत वर्षो के प्रश्न:प्रश्न. भारत के संविधान का कौन-सा अनुच्छेद अपनी पसंद के व्यक्ति से शादी करने के अधिकार की रक्षा करता है? (2019) (a) अनुच्छेद 19 उत्तर: (b) व्याख्या:
अतः विकल्प (b) सही उत्तर है। प्रश्न. रीति रिवाज और परंपराओं द्वारा तर्क को दबाने से प्रगतिविरोध उत्पन्न हुआ है । क्या आप इससे सहमत हैं? (मेन्स-2020) |
स्रोत: द हिंदू
एंटी रेडिएशन पिल्स
प्रिलिम्स के लिये:पोटेशियम आयोडाइड, थायराइड ग्रंथि, डब्ल्यूएचओ। मेन्स के लिये:एंटी-रेडिएशन पिल्स। |
चर्चा में क्यों?
यूक्रेन के ज़पोरिज्ज़िया बिजली संयंत्र में एक परमाणु आपदा की आशंका के कारण यूरोपीय संघ ने उसके आसपास के निवासियों के बीच वितरित करने के लिये 5.5 मिलियन एंटी-रेडिएशन गोलियों की आपूर्ति करने का फैसला किया है।
रेडिएशन इमरजेंसी:
- ये अनियोजित या आकस्मिक घटनाएँ हैं जो मनुष्यों और पर्यावरण के लिये रेडियो-परमाणु खतरा पैदा करती हैं।
- ऐसी स्थितियों में रेडियोधर्मी स्रोत से विकिरण जोखिम शामिल होता है और खतरे को कम करने के लिये तत्काल हस्तक्षेप की आवश्यकता होती है।
- ऐसी आपात स्थिति से निपटने में विकिरण रोधी गोलियों का उपयोग भी किया जाता है।
एंटी रेडिएशन पिल्स:
- पोटेशियम आयोडाइड (KI) की गोलियाँ या विकिरण रोधी गोलियाँ, विकिरण जोखिम के मामलों में कुछ सुरक्षा प्रदान करने के लिये जानी जाती हैं।
- इनमें गैर-रेडियोधर्मी आयोडीन होता है और यह थायरॉयड ग्रंथि में रेडियोधर्मी आयोडीन को और बाद में सांद्रता को अवरुद्ध करने में मदद कर सकता है।
पिल्स का कार्य:
- विकिरण रिसाव के बाद, रेडियोधर्मी आयोडीन वायु में फैल जाता है तथा भोजन, जल और मृदा को दूषित करता है।
- आंतरिक जोखिम या विकिरण तब होता है जब रेडियोधर्मी आयोडीन शरीर में प्रवेश करता है और थायरॉयड ग्रंथि में जमा हो जाता है।
- थायरॉयड ग्रंथि, शरीर के चयापचय को नियंत्रित करने के क्रम में हार्मोन का उत्पादन करने के लिये आयोडीन का उपयोग करती है, यह ग्रंथि गैर-रेडियोधर्मी और रेडियोधर्मी आयोडीन के मध्य विभेद करने में सक्षम नहीं होती है।
- पोटैशियम आयोडाइड (KI) की टैबलेट 'थायरॉयड ब्लॉकिंग' के लिये इसी पर निर्भर करती हैं।
- विकिरण के संपर्क में आने से कुछ घंटे पहले या उसके तुरंत बाद ली गई पोटैशियम आयोडाइड (KI) की टैबलेट यह सुनिश्चित करती हैं कि गैर-रेडियोधर्मी आयोडीन थायराइड ग्रंथि में पूरी तरह से अपना स्थान घेर ले।
- इससे थायराइड ग्रंथि पूर्णतः भर जाती है और अगले 24 घंटों के लिये किसी भी स्थिर या रेडियोधर्मी आयोडीन को अवशोषित नहीं कर सकती है।
- लेकिन पोटेशियम आयोडाइड गोलियाँ केवल निवारक औषधि हैं जो विकिरण द्वारा थायरॉयड ग्रंथि को हुई किसी भी क्षति की क्षतिपूर्ति नहीं कर सकती हैं।
- एक बार जब थायरॉयड ग्रंथि रेडियोधर्मी आयोडीन को अवशोषित कर लेती है तो उस व्यक्ति में थायराइड कैंसर होने का खतरा अधिक होता है।
विधि पूर्णतः सुरक्षित:
- एंटी-रेडिएशन पिल्स 100% सुरक्षा प्रदान नहीं करती हैं।
- पोटेशियम आयोडाइड की प्रभावशीलता इस बात पर निर्भर करती है कि शरीर में कितना रेडियोधर्मी आयोडीन है और यह कितनी जल्दी शरीर में अवशोषित हो जाता है।
- साथ ही पिल्स हर उम्र के लोगों के लिये उपलब्ध नहीं हैं। इसे केवल 40 वर्ष से कम उम्र के लोगों के लिये अनुशंसित किया गया है।
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985
प्रिलिम्स के लिये:मारिज़ुआनाा/गांजा, स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ, भाँग, 'नशा मुक्त भारत' या ड्रग-मुक्त भारत अभियान मेन्स के लिये:स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 |
चर्चा में क्यों?
हाल ही में कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कहा कि स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम (NDPS) अधिनियम, 1985 के अनुसार भाँग को कहीं भी प्रतिबंधित पेय या निषिद्ध ड्रग्स के रूप में संदर्भित नहीं किया गया है।
- उच्च न्यायालय ने पूर्व के दो निर्णयों मधुकर बनाम महाराष्ट्र राज्य, 2002 और अर्जुन सिंह बनाम हरियाणा राज्य, 2004 का आधार लेते हुए कहा कि पूर्व निर्णयों में भी कहा गया है कि भाँग को गांजा/मारिजुआना की श्रेणी में नहीं रखा जा सकता है, अतः NDPS अधिनियम के प्रावधान इस पर लागू नहीं होते हैं।
- कुछ माह पूर्व ही थाईलैंड ने मारिज़ुआना/गांजे की खेती को वैध कर दिया है, हालाँकि इसके मनोरंजक उपयोग (जैसे धूम्रपान) पर अभी भी प्रतिबंध है।
भाँग:
- परिचय:
- इसका वैज्ञानिक नाम कैनबिस इंडिका (Cannabis Indica) है। यह एक प्रकार का पौधा होता है जिसकी पत्तियों को पीस कर भाँग तैयार की जाती है, जिसे अक्सर विभिन्न खाद्य पदार्थों के साथ ठंडाई और लस्सी जैसे पेय में मिलाया जाता है।
- भाँग का सेवन भारतीय उपमहाद्वीप में सदियों से किया जाता रहा है और होली एवं महाशिवरात्रि जैसे त्योहारों के अवसर पर इसका व्यापक रूप से सेवन किया जाता है।
- कानून:
- NDPS अधिनियम, 1985 में अधिनियमित मुख्य कानून है, जो ड्रग्स और उसकी तस्करी से संबंधित है।
स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 के प्रावधान:
- यह भाँग को एक मादक औषधि के रूप में परिभाषित करता है:
- एनडीपीएस अधिनियम भाँग (हेम्प) को पौधे को उन हिस्सों के आधार पर एक मादक दवा के रूप में परिभाषित करता है जो इसके दायरे में आते हैं। अधिनियम इन भागों को इस प्रकार सूचीबद्ध करता है:
- चरस: चरस कैनेबिस के पौधे से निकले रेजिन से तैयार होता है। यह रेजिन भी इस पौधे का हिस्सा है, रेजिन पेड़-पौधों से निकलने वाला चिपचिपा पदार्थ है। इसे ही चरस, हशीश और हैश कहा जाता है। भारत में स्वापक औषधि और मन:प्रभावी पदार्थ अधिनियम, 1985 के तहत कैनबिस के किसी भी तरह के सेवन पर प्रतिबंध है।
- गाँजा: भाँग और गांजा एक ही प्रजाति के पौधे से बनाए जाते हैं। भाँग के पौधे के फूल या फूलने वाले शीर्ष का उपयोग गांजा के रूप में किया जाता है।
- भाँग के उपरोक्त रूपों में से किसी के भी या उससे तैयार किसी भी पेय या उससे निर्मित मिश्रण।
- अधिनियम अपनी परिभाषा में शीर्ष पर न होने के कारण बीज और पत्तियों को शामिल नहीं करता है।
- NDPS अधिनियम में भाँग का जिक्र नहीं है।
- एनडीपीएस अधिनियम भाँग (हेम्प) को पौधे को उन हिस्सों के आधार पर एक मादक दवा के रूप में परिभाषित करता है जो इसके दायरे में आते हैं। अधिनियम इन भागों को इस प्रकार सूचीबद्ध करता है:
- सजा:
- NDPS अधिनियम की धारा 20 अधिनियम में परिभाषित भाँग के उत्पादन, निर्माण, बिक्री, खरीद, आयात और अंतर-राज्यीय निर्यात के लिये दंड का प्रावधान करती है। निर्धारित सजा ज़ब्त की गई दवाओं की मात्रा पर आधारित है।
- यह कुछ मामलों में मौत की सजा का भी प्रावधान करता है जहाँ एक व्यक्ति बार-बार अपराधी हो।
NDPS अधिनियम के तहत अपराध की स्थिति:
- राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के वर्ष 2021 के हालिया आँकड़ों के अनुसार, पंजाब अपराध दर की सूची में सबसे शीर्ष पर है।
- पंजाब में वर्ष 2021 में 32.8% अपराध दर दर्ज की गई, जो देश में सबसे ज़्यादा थी।
- हिमाचल प्रदेश 20.8% की अपराध दर के साथ दूसरे स्थान पर रहा, उसके बाद अरुणाचल प्रदेश ने NDPS अधिनियम की अपराध दर 17.2% दर्ज की, उसके बाद केरल (16%) का स्थान रहा।
- वर्ष 2021 में NDPS अधिनियम के तहत सबसे कम अपराध दर केंद्रशासित प्रदेश दादर और नगर हवेली एवं दमन और दीव (0.5%) में दर्ज की गई, इसके बाद गुजरात (0.7%) और बिहार (1.2%) राज्यों का स्थान है।
नशीली दवाओं की लत से निपटने के लिये पहल:
- नार्को-समन्वय केंद्र: नार्को-समन्वय केंद्र (NCORD) का गठन नवंबर 2016 में किया गया था और "नारकोटिक्स नियंत्रण के लिये राज्यों को वित्तीय सहायता" योजना को पुनर्जीवित किया गया था।
- ज़ब्ती सूचना प्रबंधन प्रणाली: नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो को एक नया सॉफ्टवेयर यानी ज़ब्ती सूचना प्रबंधन प्रणाली (SIMS) विकसित करने के लिये धन उपलब्ध कराया गया है जो नशीली दवाओं से संबंधित अपराध और अपराधियों का एक पूरा ऑनलाइन डेटाबेस तैयार करेगा।
- नेशनल ड्रग एब्यूज़ सर्वे: सरकार एम्स के नेशनल ड्रग डिपेंडेंस ट्रीटमेंट सेंटर की मदद से सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के माध्यम से भारत में नशीली दवाओं के दुरुपयोग के रुझानों को मापने हेतु राष्ट्रीय नशीली दवाओं के दुरुपयोग संबंधी सर्वेक्षण भी कर रही है।
- प्रोजेक्ट सनराइज़: इसे स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय द्वारा वर्ष 2016 में भारत में उत्तर-पूर्वी राज्यों में बढ़ते एचआईवी प्रसार से निपटने के लिये शुरू किया गया था (खासकर ड्रग्स का इंजेक्शन लगाने वाले लोगों के बीच)।
- 'नशा मुक्त भारत' या ड्रग मुक्त भारत अभियान
यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रश्न. संसार के दो सबसे बड़े अवैध अफीम उत्पादक राज्यों से भारत की निकटता ने भारत की आंतरिक सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा दिया है. नशीली दवाओं के अवैध व्यापार एवं बंदूक बेचने, मनी लॉन्ड्रिंग और मानव तस्करी जैसी अवैध गतिविधियों के बीच कड़ियों को स्पष्ट कीजिये। इन गतिविधियों क रोकने के लिये क्या-क्या प्रतिरोधी उपाय किये जाने चाहिये? (मेन्स-2018) |