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डेली न्यूज़

  • 01 Mar, 2021
  • 46 min read
अंतर्राष्ट्रीय संबंध

नियंत्रण रेखा पर युद्ध विराम

चर्चा में क्यों?

भारत और पाकिस्तान नियंत्रण रेखा (Line of Control- LoC) और अन्य सभी क्षेत्रों के संबंध में वर्ष 2003 के संघर्ष विराम समझौते का पालन करने के लिये सहमत हुए हैं।

  • यह समझौता जम्मू और कश्मीर में नियंत्रण रेखा (LoC) तथा अन्य क्षेत्रों में क्रॉस फायर वायलेशन की 5000 से अधिक घटनाओं को ध्यान में रखते हुए किया गया है, वर्ष 2020 में ऐसे 46 प्राणघातक हमले हुए। 
  • यह निर्णय दो ‘डायरेक्टर जनरल्स ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस’ (DGsMO) के बीच वार्ता के बाद लिया गया।

Gilgit-Baltistan

प्रमुख बिंदु:

2003 का सीज़फायर समझौता:

  • कारगिल युद्ध (1999) के चार वर्ष बाद नवंबर 2003 में मूल युद्ध विराम समझौता हुआ था।
  • वर्ष 2003 का युद्धविराम समझौता एक मील का पत्थर था क्योंकि इसने वर्ष 2006 तक नियंत्रण रेखा पर शांति कायम की। वर्ष 2003 और 2006 के बीच भारत और पाकिस्तान के जवानों द्वारा एक भी गोली नहीं चलाई गई थी।
  • लेकिन वर्ष 2006 के बाद से संघर्ष विराम के उल्लंघन की घटनाओं की आवृत्ति बढ़ी है।

बैक चैनल डिप्लोमेसी के माध्यम से वार्ता:

  • कई संकेतों से पता चलता है कि बैक चैनल डिप्लोमेसी के माध्यम से वार्ता को आगे बढ़ाया गया और इसने दोनों पक्षों के बीच संयुक्त बयान देने में सहायता की, इसकी शुरुआत फरवरी 2021 में पाकिस्तानी सेना प्रमुख द्वारा कश्मीर मुद्दे को "शांतिपूर्वक" हल करने के प्रस्ताव रखे जाने के साथ हुई।
  • पाकिस्तान ने कोविड -19 को नियंत्रित करने के लिये दक्षिण एशियाई स्तर पर सहयोग के लिये भारत के पाँच प्रस्तावों का समर्थन किया।
  • हाल ही में भारत ने पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान को श्रीलंका दौरे के लिये अपने हवाई क्षेत्र के उपयोग की अनुमति दी, जहाँ पाकिस्तानी प्रधानमंत्री ने श्रीलंका के लिये 50 मिलियन अमेरिकी डॉलर की नई क्रेडिट लाइन की घोषणा की है।
  • हालाँकि बैक चैनल वार्ताओं के इन स्पष्ट संकेतों के दौरान दोनों पक्षों ने कश्मीर मुद्दे पर अपनी स्थितियों को बनाए रखा है।
    • नवंबर 2020 में पाकिस्तान सरकार द्वारा गिलगित बाल्टिस्तान को अनंतिम प्रांतीय दर्जा प्रदान किये जाने के बाद भारत ने गिलगित बाल्टिस्तान को भारत का एक अभिन्न अंग बताया था।

वर्ष 2003 के समझौते के संबंध में नवीनतम पुनः प्रतिबद्धता का महत्त्व:

  • यह समझौता कश्मीर में ज़मीनी स्तर पर सुरक्षा स्थिति के सुधार में योगदान दे सकता है।
  • भारत प्रायः यह आरोप लगाता रहा है कि पाकिस्तान द्वारा कई बार संघर्ष विराम के उल्लंघन का उद्देश्य आतंकवादियों को घुसपैठ कराने के लिये कवर प्रदान करना होता था। अब घुसपैठ की कोशिशें कम हो सकती हैं तथा सीमा पार आतंकवाद को रोकने संबंधी भारत की प्रमुख मांग पर भी कोई रास्ता निकाला जा सकता है।

भारत-पाकिस्तान के बीच हालिया विकास के बिंदु:

  • दोनों पक्षों के संबंधों का चरम स्तर पिछली बार वर्ष 2015 में क्रिसमस के दिन देखा गया था, जब भारतीय प्रधानमंत्री एक अघोषित यात्रा के तहत पाकिस्तानी प्रधानमंत्री से मिलने लाहौर गए।
  • 2 जनवरी, 2016 को पठानकोट एयरबेस पर हमले के कारण दोनों पक्षों के बीच संवाद जल्द ही टूट गया, जिसके बाद उरी में एक चौकी पर हमला किया गया और भारत ने सर्जिकल स्ट्राइक के साथ प्रतिक्रिया दी।
  • 14 फरवरी, 2019 के पुलवामा आतंकी हमले और भारत द्वारा बालाकोट ऑपरेशन के कारण द्विपक्षीय संबंधों में लगातार गिरावट आती रही।

नियंत्रण रेखा:

( Line of Control):

  • संयुक्त राष्ट्र द्वारा कश्मीर युद्ध के बाद घोषित वर्ष 1948 की संघर्ष विराम रेखा ही बाद में नियंत्रण रेखा के रूप में सामने आई।
  • दोनों देशों के बीच वर्ष 1972 के शिमला समझौते के बाद इसे LoC के रूप में नामित किया गया।
  • LoC का सीमांकन दुनिया के सबसे ऊँचे युद्ध क्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर (प्वाइंट NJ9842) तक किया गया है।
  • LoC को दोनों सेनाओं के सैन्य संचालन महानिदेशक (DGMO) द्वारा हस्ताक्षरित एक नक्शे पर चित्रित किया गया है और यह एक अंतर्राष्ट्रीय मान्यता प्राप्त कानूनी समझौता है।

बैक चैनल डिप्लोमेसी:

  • ‘बैक चैनल डिप्लोमेसी’ आधिकारिक नौकरशाही संरचनाओं और प्रारूपों के बाहर अंतर्राष्ट्रीय विवादों को सुलझाने तथा विदेश नीति के उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये राज्यों द्वारा प्रयोग में लाई जाने वाली राजनयिक रणनीतियों में से एक है।
  • इसका एक अन्य उदेश्य सूचना की गोपनीयता सुनिश्चित करने और उन्हें लक्ष्य प्राप्त करने तक आधिकारिक स्रोतों और मीडिया की पहुँच से दूर रखना है।

आगे की राह:

  • विश्वास निर्माण उपायों (CBM) को ‘ट्रस्ट डेफिसिट’ कम करने के लिये उपयोग में लाया जाना चाहिये, लेकिन विवादों के समाधान के विकल्प के रूप में इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिये।
  • साझा हितों को विकसित करने के लिये आर्थिक सहयोग और व्यापार की सुविधा होनी चाहिये। आतंकवाद तथा गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं की समस्याओं को संस्थागत तंत्र के माध्यम से संयुक्त रूप से संबोधित किये जाने की आवश्यकता है।
  • यदि युद्धविराम को लेकर नया संकल्प लाया जाता है तो दोनों देशों के बीच माहौल और बेहतर बनेगा तथा कई अनसुलझे मुद्दों का समाधान किया जाएगा, जिसमें दोनों तरफ पूर्ण शक्ति प्राप्त राजनयिक मिशनों की बहाली भी शामिल है।

स्रोत- द हिंदू


सामाजिक न्याय

समलैंगिक विवाह

चर्चा में क्यों?

हाल ही में केंद्र सरकार ने दिल्ली उच्च न्यायालय में समलैंगिक विवाह (Same Sex Marriage) का विरोध करते हुए कहा कि भारत में विवाह को तभी मान्यता दी जा सकती है जब बच्चा पैदा करने में सक्षम "जैविक पुरुष" और "जैविक महिला" के बीच विवाह हुआ हो।

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि:

  • समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिये वर्ष 2020 में हिंदू विवाह अधिनियम (Hindu Marriage Act), 1955 और विशेष विवाह अधिनियम (Special Marriage Act), 1954 के तहत याचिकाएँ दायर की गई थीं।

केंद्र की प्रतिक्रिया/तर्क:

  • सर्वोच्च न्यायालय का आदेश:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code- IPC) की धारा 377 के प्रावधान के विश्लेषण के बाद केवल एक विशेष मानवीय व्यवहार को अपराध की श्रेणी से बाहर करने का आदेश दिया था। यह आदेश न तो समलैंगिक विवाह के उद्देश्य से और न ही इस आचरण को वैध बनाने के लिये दिया गया था।
  • सामाजिक नैतिकता:
    • विपरीत लिंग के व्यक्तियों के विवाह की मान्यता को सीमित करने में "वैध राज्य हित" (Legitimate State Interest) मौजूद है और यह विधानमंडल का काम है कि वह "सामाजिक नैतिकता" (Societal Morality) को ध्यान में रखते हुए ऐसे विवाह की वैधता पर विचार करे।
  • मौजूदा कानूनों के अनुरूप नहीं:
    • मौलिक अधिकार (fundamental Right) अनुच्छेद 21 के अंतर्गत कानून द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अधीन है और इसे समलैंगिक विवाह को मौलिक अधिकार बनाने के लिये विस्तारित नहीं किया जा सकता है।
      • संविधान का अनुच्छेद 21 जीवन के अधिकार की गारंटी देता है। यह अधिकार जो कि काफी हद तक निष्पक्ष, न्यायोचित और तर्कसंगत है, एक कानून के माध्यम से दूर नहीं किया जा सकता है।
    • देश में मौजूदा विवाह कानूनों में किसी भी तरह का हस्तक्षेप व्यक्तिगत कानूनों के बीच मौजूद नाज़ुक संतुलन को पूरी तरह से नष्ट कर देगा।
  • विवाह की पवित्रता:
    • भारतीय परिवार की अवधारणा एक पति, एक पत्नी और बच्चे पर आधारित है, जिसकी तुलना समलैंगिक परिवार के साथ नहीं की जा सकती है।

भारत में समलैंगिक विवाह की वैधता:

  • विवाह के अधिकार को भारतीय संविधान के अंतर्गत मौलिक या संवैधानिक अधिकार के रूप में स्पष्ट रूप से मान्यता प्राप्त नहीं है।
  • यद्यपि विवाह को विभिन्न वैधानिक अधिनियमों के माध्यम से विनियमित किया जाता है लेकिन मौलिक अधिकार के रूप में इसकी मान्यता केवल भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायिक निर्णयों के माध्यम से विकसित हुई है।
  • संविधान के अनुच्छेद 141 के अंतर्गत उच्चतम न्यायालय का निर्णय पूरे भारत में सभी अदालतों के लिये बाध्यकारी है।

सर्वोच्च न्यायालय के महत्त्वपूर्ण निर्णय:

  • मौलिक अधिकार के रूप में विवाह (शफीन जहान बनाम असोकन के.एम. और अन्य, 2018):
    • सर्वोच्च न्यायालय ने मानव अधिकार की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) के अनुच्छेद 16 और पुट्टस्वामी मामले का उल्लेख करते हुए कहा कि किसी भी व्यक्ति को अपनी पसंद के अनुसार विवाह करने का अधिकार संविधान के अनुच्छेद 21 का अभिन्न अंग है।
      • मानव अधिकार की सार्वभौमिक घोषणा (UDHR) के अनुच्छेद 16 (1) के अनुसार : बालिग स्त्री-पुरुषों को बिना किसी जाति, राष्ट्रीयता या धर्म की रुकावटों के आपस में विवाह करने और परिवार को स्थापन करने का अधिकार है। उन्हें विवाह के विषय में वैवाहिक जीवन तथा विवाह विच्छेद के विषय में समान अधिकार है।
      • UDHR के अनुच्छेद 16 (2) के अनुसार: विवाह का इरादा रखने वाले स्त्री-पुरुषों की स्वतंत्र सहमति पर ही विवाह हो सकेगा।
    • विवाह करने का अधिकार आंतरिक विषय है। इस अधिकार को संविधान में मौलिक अधिकारों के अंतर्गत सुरक्षा प्रदान की गई है। विश्वास और निष्ठा के मामले, जिसमें विश्वास करना भी शामिल है, संवैधानिक स्वतंत्रता के मूल में हैं।
  •  LGBTQ समुदाय सभी संवैधानिक अधिकारों (नवजेत सिंह जोहर और अन्य बनाम केंद्र सरकार, 2018) के हकदार हैं।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि LGBTQ समुदाय के सदस्य अन्य नागरिकों की तरह संविधान द्वारा प्रदान किये गए सभी संवैधानिक अधिकारों के हकदार हैं, जिसमें “समान नागरिकता” और "कानून का समान संरक्षण" भी शामिल है।

आगे की राह

  • LGTBQ समुदाय के लिये एक ऐसे भेदभाव-रोधी कानून की आवश्यकता है, जो उन्हें लैंगिक पहचान या यौन अभिविन्यास के बावजूद एक बेहतर जीवन और संबंधों का निर्माण करने में सहायता करे और जो व्यक्ति को बदलने के स्थान पर समाज में बदलाव लाने पर ज़ोर दे। 
  • LGBTQ समुदाय के सदस्यों को संपूर्ण संवैधानिक अधिकार दिये जाने के बाद यह भी आवश्यक है कि समलैंगिक विवाह के इच्छुक लोगों को भी अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करने का अधिकार दिया जाए। ज्ञात हो कि वर्तमान में विश्व के दो दर्जन से अधिक देशों ने समलैंगिक विवाह को स्वीकृति दी है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


जैव विविधता और पर्यावरण

प्रवासी पक्षी और चिल्का झील

चर्चा में क्यों?

ओडिशा में (चिल्का झील के निकट) तापमान बढ़ने के कारण चिलिका झील और भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान के आसपास से प्रवासी पक्षियों ने अन्य वर्षों की तुलना में पहले  (फरवरी में) ही इन स्थानों को छोड़ना शुरू कर दिया है।

  • इन क्षेत्रों में प्रवासी पक्षियों का आगमन सामान्यतः नवंबर माह में शुरू होता है और मार्च के मध्य या अप्रैल की शुरुआत में ये पक्षी तब वापस जाते हैं जब तापमान लगभग 39 डिग्री सेल्सियस तक बढ़ जाता है।

प्रमुख बिंदु:

  • प्रवासी प्रजातियाँ:  हर वर्ष सर्दी के मौसम में प्रवासी पक्षी एशिया के सबसे बड़े खारे पानी के लैगून चिल्का झील तथा भारत के दूसरे सबसे बड़े मैंग्रोव जंगल भितरकनिका( प्रथम सुंदरबन, पश्चिम बंगाल में स्थित ) में आते हैं।
    • पक्षियों की ये प्रजातियाँ साइबेरिया, अफगानिस्तान, ईरान, इराक, हिमालयी क्षेत्र और मध्य यूरोप से उड़ान भरकर भारत आते हैं।
  • समय-पूर्व प्रस्थान का कारण:
    • क्षेत्र का गर्म होना: वर्ष 2015 से वर्ष 2019 के दौरान फरवरी महीने में भुवनेश्वर (चिल्का झील से 35 किलोमीटर की दूरी पर) का औसत तापमान 34-35 डिग्री सेल्सियस दर्ज किया गया था। 
    • घटता जल स्तर: बढ़ रहे तापमान के साथ झील के जल स्तर में गिरावट के कारण भी पक्षियों द्वारा समय-पूर्व प्रस्थान किया गया है।
  • चिल्का झील:
    • चिल्का एशिया का सबसे बड़ा और विश्व का दूसरा सबसे बड़ा लैगून है।
    • शीतकाल के दौरान भारतीय उपमहाद्वीप में प्रवासी पक्षियों को आकर्षित करने वाला सबसे बड़ा मैदान होने के साथ ही यह पौधों और जानवरों की कई संकटग्रस्त प्रजातियों का निवास स्थान है।
    • वर्ष 1981 में चिल्का झील को रामसर कन्वेंशन के तहत अंतर्राष्ट्रीय महत्त्व का पहला भारतीय आर्द्रभूमि नामित किया गया था।
    • चिल्का में प्रमुख आकर्षण इरावदी डॉलफिन (Irrawaddy Dolphins) हैं जिन्हें अक्सर सातपाड़ा द्वीप के पास देखा जाता है।
    • लैगून क्षेत्र में लगभग 16 वर्ग किमी. में फैला नलबाना द्वीप (फारेस्ट ऑफ रीडस) को वर्ष 1987 में पक्षी अभयारण्य घोषित किया गया था।
    • कालिजई मंदिर- यह मंदिर चिल्का झील में एक द्वीप पर स्थित है।
  • भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान:
    • भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान ओडिशा के समृद्ध जैव विविधता स्थलों में से एक है जो  अपने मैंग्रोव, प्रवासी पक्षियों, कछुओं, एस्टुरीन मगरमच्छों और अनगिनत लताओं के लिये प्रसिद्ध है।
    • भितरकनिका में 3 संरक्षित क्षेत्र शामिल हैं जिनमें भितरकनिका राष्ट्रीय उद्यान (Bhitarkanika National Park), भितरकनिका वन्यजीव अभयारण्य (Bhitarkanika Wildlife Sanctuary) और गहिरमाथा समुद्री अभयारण्य (Gahirmatha Marine Sanctuary) शामिल हैं।
    • भितरकनिका ब्राह्मणी, बैतरणी, धामरा तथा महानदी नदी प्रणालियों के मुहाने पर स्थित है।
    • यह देश के 70% एस्टुरीन या खारे पानी के मगरमच्छों का निवास स्थान है जिसके संरक्षण का कार्य वर्ष 1975 में शुरू किया गया था।

भारत में प्रवासी प्रजातियाँ:

  • भारत कई प्रवासी जानवरों और पक्षियों का अस्थायी निवास स्थान है।
  • इनमें से अमूर फाल्कन्स (Amur Falcons), बार-हेडेड गीज़ (Bar-Headed Geese), ब्लैक-नेक्ड क्रेन (Black-Necked Cranes), मरीन टर्टल (Marine Turtles), डूगोंग (Dugongs), हंपबैक व्हेल (Humpback Whales) आदि शामिल हैं।
  • भारतीय उपमहाद्वीप प्रमुख पक्षी फ्लाईवे नेटवर्क का भी हिस्सा है, अर्थात मध्य एशियाई फ्लाईवे (Central Asian Flyway- CAF) आर्कटिक और भारतीय महासागरों के मध्य के क्षेत्रों को कवर करता है।
  • भारत ने मध्य एशियाई फ्लाईवे (Central Asian Flyway) के तहत प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण हेतु राष्ट्रीय कार्य योजना (National Action Plan) भी शुरू की है क्योंकि भारत प्रवासी प्रजातियों के संरक्षण पर अभिसमय’ (Convention on Migratory Species-CMS) का एक पक्षकार है।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


अंतर्राष्ट्रीय संबंध

भारत-चीन हॉटलाइन

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारत और चीन ने दोनों देशों के बीच एक हॉटलाइन स्थापित करने को लेकर बनी सहमति की घोषणा की है।

प्रमुख बिंदु

हॉटलाइन

  • दोनों देशों के बीच हॉटलाइन स्थापित करने का निर्णय भारत के विदेश मंत्री और चीन के विदेश मंत्री के बीच एक टेलीफोनिक वार्ता के दौरान लिया गया।
    • हॉटलाइन निरंतर परिचालन वाली एक प्रत्यक्ष टेलीफोन लाइन होती है, जो तत्काल संचार को सुविधाजनक बनाती है। 
  • हॉटलाइन दोनों देशों के बीच समय पर संचार और विचारों के आदान-प्रदान में सहायक होगी।

भारत का पक्ष

  • भारत ने दोनों देशों के संबंधों के दृष्टिकोण से परस्पर सम्मान, परस्पर संवेदनशीलता और परस्पर हित पर ज़ोर दिया।
  • हाल ही में दोनों देशों के बीच सीमा से सैन्य वापसी को लेकर समझौता किया गया है, जो कि वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर शांति को बढ़ावा देगा और अंततः दोनों देशों के संबंधों को सामान्य करेगा।

चीन का पक्ष

  • चीन के अनुसार, सीमा पर मौजूद स्थिति को दोनों देशों के संबंधों के केंद्र में नहीं लाया जाना चाहिये, बल्कि इसे दोनों देशों के समग्र संबंधों में सीमित स्थान दिया जाना चाहिये।
  • हॉटलाइन की स्थापना यह दर्शाती है कि दोनों देश अपने आपसी मुद्दों को हल करते हुए पुनः सामान्य गतिविधियों की स्थिति में लौट रहे हैं।

हालिया विकासक्रम

  • मई 2020: नाथू ला, सिक्किम (भारत) में चीनी और भारतीय सेनाओं के बीच झड़प हुई।
    • सिक्किम में झड़प के बाद दोनों देशों के बीच लद्दाख में तनाव बढ़ गया और सीमा क्षेत्र में कई स्थानों पर सैनिक टुकड़ियाँ एकत्रित हो गईं। 
  • जून 2020: भारत और चीन की सेनाएँ पैंगोंग त्सो, गलवान घाटी, डेमचोक और दौलत बेग ओल्डी आदि क्षेत्रों में आपसी गतिरोध का सामना कर रही थीं तथा ये क्षेत्र वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर तनाव का केंद्र बन गए थे। 
  • जून 2020: भारत द्वारा चीन के 59 एप्स पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
  • नवंबर 2020: भारत ने 43 एप्स पर प्रतिबंध लगाया, जिनमें से अधिकतर चीन से संबंधित थे।
    • ये प्रतिबंध सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 की धारा 69A के तहत लागू किये गए थे। 
  • फरवरी 2021: भारत और चीन ने अंततः पैंगोंग त्सो झील पर आंशिक सैन्य वापसी को लेकर सहमति व्यक्त की।

आगे की राह

  • आवश्यक है कि दोनों देश इतनी चुनौतियों के बाद प्राप्त स्थिति को और मज़बूत करें तथा इस प्रगति को आगे बढ़ाने के लिये साथ काम करें, परामर्श प्रक्रिया को जारी रखें तथा सीमा प्रबंधन एवं नियंत्रण तंत्र में सुधार करें।
  • दो बड़ी उभरती अर्थव्यवस्थाओं के रूप में चीन और भारत को एक-दूसरे के साथ मिलकर पारस्परिक विकास को आगे बढ़ाने की ज़रूरत है, साथ ही एक-दूसरे के विकास में बाधा बनने के बजाय साझेदारी को बढ़ाना होगा।
  • भारत और चीन को सीमावर्ती क्षेत्रों में आपसी विश्वास बनाए रखने और शांति स्थापित करने के लिये सीमा वार्ता को आगे बढ़ाने की भी ज़रूरत है।

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस


कृषि

आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (Food Safety and Standards Authority of India- FSSAI) द्वारा जारी आदेश में भारत में आयातित खाद्य फसलों में आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों (Genetically Modified Organisms- GMO) की सीमा को 1% निर्धारित  कर दिया गया है।

  • इससे पहले अगस्त 2020 में FSSAI द्वारा जारी आदेश में देश में आयातित 24 खाद्य फसलों हेतु एक सक्षम प्राधिकारी (Competent Authority) द्वारा ‘गैर-जीएम सह जीएम मुक्त प्रमाण पत्र’ ( Non-GM-Origin-Cum-GM-free Certificate) की आवश्यकता पर बल दिया गया।

प्रमुख बिंदु:

आनुवंशिक रूप से संशोधित जीव (GMOs):

  • ये जीवित जीव होते हैं जिनमें विद्यमान आनुवंशिक पदार्थ को  प्रयोगशाला में कृत्रिम रूप से आनुवंशिक इंजीनियरिंग का प्रयोग करके परिवर्तित किया गया है।
  • इसमें पौधे, जानवर, बैक्टीरिया और वायरस के जीन का समुच्चय (Combinations) का निर्माण किया जाता है, यह कार्य पारंपरिक क्रॉसब्रीडिंग विधियों (Traditional Crossbreeding Methods) के माध्यम से नहीं होता है।

आनुवंशिक रूप से संशोधित फसलें:

GM-Crops-in-india

  • पारंपरिक पादप प्रजनन (Conventional Plant Breeding) में माता-पिता दोनों के वांछित लक्षणों (Desired Traits) के साथ संतति ( Offspring) हेतु एक ही जीन की प्रजातियों का संकरण (Crossing) कराया जाता है।
    • वंश/जींस संबंधित जातियों (स्पीशीज़) का एक समूह होता है। एक वंश में कई स्पीशीज़ हो सकते हैं जिनके लक्षण, गुण अथवा विशेषताएँ समान होती हैं
  • बीटी कपास (Bt Cotton) भारत में एकमात्र आनुवंशिक रूप से संशोधित (Genetically Modified-GM) फसल है। बेसिलस थुरिंगिनेसिस (Bacillus thuringiensis- Bt) जीवाणु मृदा में विद्यमान एक विदेशी जीन है जो बीटी कपास को सामान्य कीट गुलाबी बालवॉर्म (Pink Bollworm) से सुरक्षा प्रदान करने हेतु एक विषाक्त  प्रोटीन का स्राव करता है।
  • दूसरी ओर हर्बिसाइड टोलरेंट बीटी (एचटी बीटी) (Herbicide Tolerant -Ht Bt) को मृदा में पाए जाने वाले एक अन्य जीवाणु को प्रविष्ट करके प्राप्त किया जाता है, जो पौधे को सामान्य हर्बिसाइड ग्लाइफोसेट का विरोध करने में सक्षम बनाता है।
  • बीटी बैंगन में प्रविष्ट जीन पौधे के फल और शाखाओं को क्षति पहुँचाने वाले छेदक कीटों (Shoot Borers) के हमलों का विरोध करने में सक्षम बनता है।
  • DMH-11 सरसों में आनुवंशिक संशोधन,  स्वपरागण (Self-Pollinates) के स्थान पर परपरागण (Cross-Pollination) की अनुमति प्रदान करता है।

भारत में GM फसलों की कानूनी स्थिति: 

  • भारत में आनुवंशिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (Genetic Engineering Appraisal Committee- GEAC) शीर्ष निकाय है जो  GM फसलों के वाणिज्यिक उत्पादन की अनुमति प्रदान करती है।
  • पर्यावरण संरक्षण अधिनियम, 1986 के तहत बिना अनुमोदन के GM संस्करण ( GM Variant) का उपयोग करने पर 5 वर्ष की जेल तथा एक लाख रुपए तक का जुर्माना हो सकता है।

आयातित फसलों का विनियमन: 

  • आयातित उपभोग सामग्रियों में GMO के स्तर को विनियमित करने का कार्य शुरू में जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (Genetic Engineering Appraisal Committee- GEAC) द्वारा किया जाता था।
  • खाद्य सुरक्षा और मानक अधिनियम, 2006 के अधिनियमन के साथ ही इसकी भूमिका को कम कर दिया गया तथा  FSSAI को आयातित सामग्रियों को मंज़ूरी प्रदान करने के लिये कहा गया।

स्रोत: डाउन टू अर्थ


जैव विविधता और पर्यावरण

राष्ट्रीय नदी कायाकल्प तंत्र को लेकर NGT का सुझाव

चर्चा में क्यों?

हाल ही में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने जल शक्ति मंत्रालय को जल प्रदूषण पर लगाम लगाने और देश भर में सभी प्रदूषित नदियों के कायाकल्प के लिये उठाए गए कदमों की प्रभावी निगरानी के लिये एक उपयुक्त राष्ट्रीय नदी कायाकल्प तंत्र विकसित करने का निर्देश दिया है। 

प्रमुख बिंदु

पृष्ठभूमि

  • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) का आकलन
    • निष्कर्ष
      • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के वर्ष 2016-17 के आकलन के अनुसार, देश में प्रदूषित नदी क्षेत्रों की संख्या बढ़कर 351 हो गई है, जो कि दो वर्ष पूर्व 302 थी और इस दौरान गंभीर रूप से प्रदूषित क्षेत्रों (जहाँ जल की गुणवत्ता सबसे खराब है) की संख्या 34 से बढ़कर 45 हो गई है।
      • इसमें से तकरीबन 117 क्षेत्र अकेले असम, गुजरात और महाराष्ट्र में हैं।
    • CPCB मूल्यांकन का आधार:
      • 1990 के दशक के बाद से केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) मुख्य रूप से बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) के आधार पर नदियों की गुणवत्ता की निगरानी कर रहा है। BOD की मात्रा जितनी अधिक होती है नदी की गुणवत्ता उतनी ही खराब मानी जाती है।
        • ऑक्सीजन की वह मात्रा जो जल में कार्बनिक पदार्थों के जैव रासायनिक अपघटन के लिये आवश्यक होती है, BOD कहलाती है। 
      • केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) 3 मिलीग्राम/लीटर से कम बायोलॉजिकल ऑक्सीजन डिमांड (BOD) को स्वच्छ एवं स्वस्थ नदी का संकेतक मानता है।
    • संबंधित प्रयास
      • नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने देश भर में 350 से अधिक प्रदूषित क्षेत्रों को प्रदूषण मुक्त बनाने के लिये एक राष्ट्रीय योजना तैयार कर उसे लागू करने हेतु केंद्रीय निगरानी समिति का गठन किया था क्योंकि इसके कारण जल एवं पर्यावरण की सुरक्षा पर गंभीर खतरा उत्पन्न होता है।
  • नवीनतम दिशा 
    • अवलोकन
      • वर्ष 1974 में लागू किये गए जल अधिनियम के बावजूद नदियों के जल की गुणवत्ता में गिरावट दर्ज की गई है।
        • इस अधिनियम का उद्देश्य जल्द की गुणवत्ता में सुधार लाना था।
    • NRRM की स्थापना:
      • NGT द्वारा दिये गए सुझाव के मुताबिक, इस तंत्र को ‘राष्ट्रीय नदी कायाकल्प तंत्र’ (NRRM) कहा जा सकता है। NRRM एक प्रभावी निगरानी रणनीति के रूप में राष्ट्रीय, राज्य या ज़िला स्तर पर पर्यावरण डेटा ग्रिड स्थापित करने पर विचार कर सकता है।
    • NRRM के दायरे का विस्तार:
      • नदियों के कायाकल्प की प्रक्रिया को केवल 351 क्षेत्रों तक सीमित नहीं किया जाना चाहिये, बल्कि देश भर की सभी छोटी, मध्यम व बड़ी प्रदूषित नदियों के अलावा सूखी नदियों के मामले में भी इसे लागू किया जा सकता है।
    • कार्यान्वयन
      • सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों द्वारा प्रदूषण की समाप्ति और नदियों के कायाकल्प के लिये कार्य योजनाओं के प्रभावी उपाय किये जाने चाहिये।
      • सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों के मुख्य सचिवों को प्रत्येक माह कम-से-कम एक बार व्यक्तिगत रूप से प्रगति की निगरानी करनी होगी।
      • मुआवज़े के भुगतान से संबंधित दिशा-निर्देशों के पालन की विफलता की स्थिति में जवाबदेही संबंधित मुख्य सचिवों की होगी।
  • प्रदूषित नदी क्षेत्रों की वृद्धि का कारण
    • तीव्र शहरीकरण और कुशल अपशिष्ट निपटान प्रणालियों का अभाव।
    • नदियों के किनारे औद्योगिक शहरों की संख्या में बढ़ोतरी।
    • कृषि गतिविधियों आदि में कमी।
  • प्रदूषण का प्रभाव
    • विश्व बैंक का अनुमान है कि भारत में जल प्रदूषण की स्वास्थ्य लागत भारत की कुल GDP के तीन प्रतिशत के बराबर है।
      • भारत में सभी बीमारियों का 80 प्रतिशत और कुल मौतों के एक-तिहाई हिस्से के लिये जल-जनित बीमारियाँ उत्तरदायी हैं।
    • गंगा के प्रदूषित जल के कारण केवल इंसानों को ही नहीं, बल्कि जानवरों को भी खतरा है। प्रदूषण के कारण जिन प्रजातियों पर खतरा उत्पन्न हुआ है, उनमें 140 से अधिक मछली प्रजातियाँ, 90 उभयचर प्रजातियाँ, सरीसृप जैसे कि घड़ियाल, और स्तनधारी जैसे- दक्षिण एशियाई नदी डॉल्फिन आदि शामिल हैं।
  • संबंधित संवैधानिक प्रावधान
    • अनुच्छेद 21: स्वच्छ पर्यावरण और प्रदूषण मुक्त जल आदि को जीवन के अधिकार के व्यापक दायरे के तहत संरक्षण प्रदान किया गया है।
    • अनुच्छेद 51-A (G): वनों, झीलों, नदियों और वन्यजीवों सहित प्राकृतिक पर्यावरण की रक्षा करना व इसमें सुधार करना प्रत्येक नागरिक का कर्तव्य है।
  • जल प्रदूषण से निपटने संबंधी प्रयास
    • राष्ट्रीय जल नीति (2012)
      • इसका उद्देश्य मौजूदा स्थिति को ध्यान में रखते हुए राष्ट्रीय परिप्रेक्ष्य में एकीकृत कानूनों और संस्थानों की एक प्रणाली के निर्माण के लिये रूपरेखा और कार्य योजना पर निर्णय लेना है।
      • जल संसाधन मंत्रालय की यह नीति मानव अस्तित्व के साथ-साथ आर्थिक विकास संबंधी गतिविधियों के लिये जल के महत्त्व पर प्रकाश डालती है।
      • यह इष्टतम, किफायती, टिकाऊ और न्यायसंगत साधनों के माध्यम से जल संसाधनों के संरक्षण के लिये एक रूपरेखा प्रस्तुत करती है।
    • राष्ट्रीय जल मिशन (2010): यह जल के संरक्षण, कम अपव्यय और समान वितरण के लिये बेहतर जल संसाधन प्रबंधन सुनिश्चित करता है। 
    • राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन: यह मिशन गंगा नदी में पर्यावरण प्रदूषण की रोकथाम, नियंत्रण और न्यूनीकरन के लिये उपाय करने हेतु राष्ट्रीय, राज्य और ज़िला स्तर पर पाँच स्तरीय संरचना की परिकल्पना करता है।
      • इसका उद्देश्य गंगा नदी के कायाकल्प के लिये निरंतर पर्याप्त जल प्रवाह सुनिश्चित करना है।
    • नमामि गंगे परियोजना: यह गंगा नदी को व्यापक रूप से स्वच्छ एवं संरक्षित करने के प्रयासों को एकीकृत करती है।

स्रोत: द हिंदू


भारतीय अर्थव्यवस्था

लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (FIT)

चर्चा में क्यों?

भारतीय रिज़र्व बैंक (Reserve Bank of India- RBI) ने अपनी मुद्रा और वित्त (RCF) संबंधी वर्ष 2020-21 की रिपोर्ट में कहा है कि मौजूदा मुद्रास्फीति लक्ष्य बैंड (4% +/- 2%) अगले 5 वर्षों के लिये उपयुक्त है।

प्रमुख बिंदु:

मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण:

  • मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण का अर्थ: 
    • यह केंद्रीय बैंकिंग की एक नीति है जो मुद्रास्फीति की एक निर्दिष्ट वार्षिक दर प्राप्त करने हेतु मौद्रिक नीति के संयोजन पर आधारित  है।
    • मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण का सिद्धांत इस बात पर आधारित है कि मूल्य स्थिरता को बनाए रखने हेतु दीर्घकालिक आर्थिक विकास सर्वाधिक उपयुक्त है और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करके मूल्य स्थिरता की स्थिति को प्राप्त किया जा सकता है।
  • कठोर मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (Strict Inflation Targeting) को तब अपनाया जाता है जब केंद्रीय बैंक केवल किसी दिये गए मुद्रास्फीति लक्ष्य के आस-पास मुद्रास्फीति को रखना चाहता है।
  • वहीं लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (Flexible Inflation Targeting) को  तब अपनाया जाता है जब केंद्रीय बैंक कुछ अन्य कारकों जैसे- ब्याज दरों की स्थिरता, विनिमय दर, उत्पादन और रोज़गार आदि को लेकर चिंतित होता है। 

भारत का लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण ढाँचा:

  • पृष्ठभूमि:
    • वर्ष 2015 में केंद्रीय बैंक अर्थात् रिज़र्व बैंक और सरकार के मध्य एक नीतिगत ढाँचे पर सहमति बनी जिसमें विकास को ध्यान में रखते हुए मूल्य स्थिरता सुनिश्चित करने हेतु प्राथमिक उद्देश्य निर्धारित किया गया। 
    • इसके पश्चात् लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण को वर्ष 2016 में अपनाया गया। इससे भारत लचीली मुद्रास्फीति नीति को अपनाने वाले देशों की सूची में शामिल हो गया। 
    • भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 में एक FIT ढाँचे को वैधानिक आधार प्रदान करने हेतु संशोधन किया गया 
    • संशोधित अधिनियम के तहत सरकार द्वारा RBI के परामर्श से प्रत्येक पाँच वर्ष में एक बार मुद्रास्फीति लक्ष्य निर्धारित किया जाता है।
  • लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण ढाँचा: 
    • भारत द्वारा 4 (+/- 2) प्रतिशत को लक्षित करते हुए एक लचीली मुद्रास्फीति नीति को अपनाया गया तथा उपभोक्ता मूल्य मुद्रास्फीति को एक प्रमुख संकेतक के रूप में चुना गया।
  • उद्देश्य: मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण को मौद्रिक नीति निर्धारण में अधिक स्थिरता, पूर्वानुमान लगाने और पारदर्शिता लाने हेतु जाना जाता है। 
    • यह इस तर्क पर आधारित है कि बढ़ती कीमतें अनिश्चितता की स्थिति उत्पन्न करती हैं और बचत एवं निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।
  • निश्चित जवाबदेही: यह ढाँचा मुद्रास्फीति के लक्ष्यों को पूरा करने में विफल रहने पर भारतीय रिज़र्व बैंक को और अधिक जवाबदेह बनाता है।
    • इसका दूसरा पहलू यह है कि इस तरह के लक्ष्य RBI को मौद्रिक नीति हेतु किसी भी प्रकार के कड़े कदम उठाने से रोकते हैं।

रिज़र्व बैंक का रुख (RCF रिपोर्ट के मुख्य बिंदु)

  • मुद्रास्फीति FIT के पूर्व 9 प्रतिशत से कम होकर FIT के दौरान 3.8 से 4.3 प्रतिशत की सीमा के बीच रही, जो यह दर्शाता है कि भारत के लिये 4 प्रतिशत का मुद्रास्फीति लक्ष्य उपयुक्त है।
  • अधिकतम मुद्रास्फीति जिसके ऊपर वृद्धि सुस्पष्ट रूप से रुक जाती है, भारत में उसकी रेंज 5 से 6 प्रतिशत के बीच है, यह दर्शाता है कि 6% की मुद्रास्फीति दर, मुद्रास्फीति लक्ष्य के लिये उपयुक्त ऊपरी सहनशीलता सीमा है। दूसरी ओर 2 प्रतिशत से अधिक की न्यून सीमा से सहिष्णुता बैंड के नीचे की वास्तविक मुद्रास्फीति हो सकती है, जोकि 2 प्रतिशत से नीचे की न्यूनतम सीमा वृद्धि को बाधित करेगा, यह दर्शाता है कि 2 प्रतिशत की मुद्रास्फीति दर उपयुक्त न्यूनतम सहिष्णुता सीमा है।
    • FIT अवधि के दौरान मुद्रा बाज़ार में मौद्रिक संचरण पूर्ण और यथोचित रूप से तेज़ रहा है, लेकिन  बॉण्ड बाज़ारों में पूर्ण से कम रहा, जबकि बैंकों के ऋण और जमा दरों के मामले में संचरण में सुधार हुआ है, ऋण एवं जमा की सभी श्रेणियों में बाह्य बेंचमार्क आगे संचरण में सुधार कर सकते हैं।

मौद्रिक नीति:

  • यह केंद्रीय बैंक द्वारा निर्धारित व्यापक आर्थिक नीति है। इसमें मुद्रा आपूर्ति और ब्याज दर का प्रबंधन शामिल है, यह मुद्रास्फीति, खपत, वृद्धि और तरलता जैसे व्यापक आर्थिक उद्देश्यों को प्राप्त करने के लिये इस्तेमाल की जाने वाली मांग पक्ष आधारित आर्थिक नीति है।
  • भारतीय रिज़र्व बैंक की मौद्रिक नीति का उद्देश्य अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों की आवश्यकताओं को पूरा करने और आर्थिक विकास की गति बढ़ाने के लिये धन की मात्रा का प्रबंधन करना है।
  • RBI खुले बाज़ार की क्रियाओं, बैंक दर नीति, आरक्षित प्रणाली, ऋण नियंत्रण नीति, नैतिक प्रभाव और कई अन्य उपकरणों के माध्यम से मौद्रिक नीति को लागू करता है।

समायोजित और सख्त मौद्रिक नीति

  • मुद्रास्फीति से बचने के लिये अधिकांश केंद्रीय बैंक उदार मौद्रिक नीति और सख्त मौद्रिक नीति के बीच वैकल्पिक मार्ग अपनाते हैं जो मुद्रास्फीति को नियंत्रण में रखते हुए विकास को प्रोत्साहित करने के लिये भिन्न-भिन्न मात्राओं में होते हैं।
    • जब केंद्रीय बैंक अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने के लिये मुद्रा आपूर्ति का विस्तार करता है, तब समायोजित मौद्रिक नीति को अपनाया जाता है।
      • ये उपाय ऋण को कम लागतजन्य बनाने और खर्च को अधिक प्रोत्साहित करने के लिये किये जाते हैं।
    • अनुबंधित आर्थिक विकास के लिये एक सख्त मौद्रिक नीति लागू की जाती है।
      • समायोजित मौद्रिक नीति के विपरीत एक सख्त मौद्रिक नीति में उधार लेने के लिये ब्याज दरों में वृद्धि और बचत को प्रोत्साहित करना शामिल है।

मौद्रिक नीति समिति

  • RBI की ‘मौद्रिक नीति समिति’ ‘भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934’ के तहत स्थापित एक संविधिक निकाय है। यह आर्थिक विकास के लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए मुद्रा स्थिरता को बनाए रखने हेतु कार्य करती है।
    • रिज़र्व बैंक का गवर्नर इस समिति का पदेन अध्यक्ष होता है।
  • यह मुद्रास्फीति दर, 4% के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये ब्याज दर (रेपो रेट) के निर्धारण का कार्य करती है।
    • वर्ष 2014 में तत्कालीन डिप्टी गवर्नर उर्जित पटेल की अध्यक्षता वाली रिज़र्व बैंक की समिति ने मौद्रिक नीति समिति की स्थापना की सिफारिश की थी।

आगे की राह

  • एक मुक्त अर्थव्यवस्था में मौद्रिक नीति का संचालन, विदेशी मुद्रा भंडार और संबंधित चलनिधि प्रबंधन काफी प्रमुख होते हैं; इसलिये पूंजी प्रवाह में वृद्धि की स्थिति से निपटने के लिये रिज़र्व बैंक की वंध्यीकरण क्षमता को बढ़ाने की आवश्यकता है।
  • मूल्य स्थिरता पर लचीली मुद्रास्फीति लक्ष्यीकरण (FIT) का प्राथमिक ध्यान पूंजी खाते के अधिक उदारीकरण और भारतीय रुपए के संभव अंतर्राष्ट्रीयकरण के लिये बेहतर है।

स्रोत: द हिंदू


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