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जैव विविधता और पर्यावरण

बीटी बैंगन

  • 17 Oct 2018
  • 6 min read

संदर्भ

हाल ही में भारत के जैव प्रौद्योगिकी नियामक, जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेज़ल समिति (GEAC), ने बांग्लादेश से बीटी बैंगन (आनुवंशिक रूप से संशोधित फसल) के बारे में जानकारी की मांग की है। गौरतलब है कि बांग्लादेश के किसान 2013 से ही यह फसल उगा रहे हैं।

पृष्ठभूमि

  • बैसिलस थुरियनजीनिसस बैंगन, जिसे बीटी बैंगन के नाम से जाना जाता है, भारत में विवाद का केंद्र रहा है।
  • बीटी बैंगन उपज में सुधार और कृषि क्षेत्र की सहायता करने का दावा करता है। अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनी मोन्सेंटो की सहायता से भारत की बीज कंपनी महिको ने आनुवंशिक रूप से संशोधित बीटी बैंगन को निर्मित किया था।
  • इस ट्रांसजेनिक किस्म के बारे में दावा किया जाता है कि यह तना एवं फल छेदक कीड़े को रोक सकता है, जो कि बैंगन पर लगने वाले प्रमुख कीटों में से एक है।
  • हालाँकि, बीटी बैंगन से पैदा होने वाली असुरक्षा पर सरकार के लिये काम कर रहे वैज्ञानिकों, किसानों तथा पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं के अपने-अपने अलग विचार है।
  • पर्यावरण कार्यकर्त्ताओं का कहना है कि चूहों पर जीएम फसलों (आनुवंशिक रूप से संशोधित) का प्रभाव फेफड़ों और गुर्दे के लिये घातक साबित हुआ है। इन प्रयोगात्मक खाद्य पदार्थों को उचित अनुसंधान के बिना बाजार में पेश करना खतरनाक है।

क्या है जीएम तकनीक?

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के मुताबिक, जीएम वह तकनीक है जिसमें जंतुओं एवं पादपों (पौधे, जानवर, सुक्ष्मजीवियों) के डीएनए को अप्राकृतिक तरीके से बदला जाता है।

कैसे बनता है जीएम उत्पाद?

  • सरल भाषा में जीएम तकनीक के तहत एक प्राणी या वनस्पति के जीन को निकालकर दूसरे असंबंधित प्राणी/वनस्पति में डाला जाता है।
  • इसके तहत हाइब्रिड बनाने के लिये किसी जीव में नपुंसकता पैदा की जाती है, जैसे जीएम सरसों को प्रवर्धित करने के लिये सरसों के फूल में होने वाले स्व-परागण (सेल्फ पॉलिनेशन) को रोकने के लिये नर नपुंसकता पैदा की जाती है। फिर हवा, तितलियों, मधुमक्खियों और कीड़ों के ज़रिये परागण होने से एक हाइब्रिड तैयार होता है।
  • इसी तरह बीटी बैंगन में प्रतिरोधकता के लिये ज़हरीला जीन डाला जाता है, ताकि बैंगन पर हमला करने वाला कीड़ा मर सके।इसके अलावा, भारतीय किसानों को बीजों के लिये बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ेगा, जो भारतीय कृषि के लिये खतरनाक साबित हो सकता है।
  • इसके अलावा, भारतीय किसानों को बीजों के लिये बहुराष्ट्रीय कंपनियों पर निर्भर रहना पड़ेगा, जो भारतीय कृषि के लिये खतरनाक साबित हो सकता है।
  • 2009 में जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेज़ल समिति (GEAC) द्वारा व्यावसायीकरण के लिये बीटी बैंगन को मंज़ूरी दे दी गई थी। लेकिन पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने 2010 में इसके इस्तेमाल पर रोक लगा दी।
  • इसके इस्तेमाल पर तब तक के लिये रोक लगाई गई है जब तक कि वैज्ञानिक अध्ययनों द्वारा मानव स्वास्थ्य एवं पर्यावरण पर दीर्घकालिक संदर्भ में इसके अच्छे या बुरे प्रभावों को मूल्यांकित नहीं कर लिया जाता।
  • भारत ने अभी तक दिल्ली विश्वविद्यालय द्वारा विकसित जीएम सरसों सहित खाद्य फसलों में किसी भी जीएम प्रौद्योगिकी को मंज़ूरी नहीं दी है।
  • 2002 में, भारत ने बीटी कपास को मंज़ूरी दे दी थी, जो कि देश में उगाई जाने वाली एकमात्र गैर-खाद्य जीएम फसल है।

हाल के घटनाक्रम

  • GEAC ने पाया कि बांग्लादेश ने 2013 में महिको कंपनी के बीटी बैंगन प्रौद्योगिकी को मंज़ूरी दे दी थी और वर्तमान में वहाँ 50,000 किसान इस फसल की खेती कर रहे हैं।
  • बांग्लादेश में वाणिज्यिक उत्पादन के बाद सामने आये प्रभावों पर प्रासंगिक जानकारी और आँकड़ा प्राप्त करने के लिये भारतीय समिति ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) से सिफारिश की है।
  • जेनेटिक इंजीनियरिंग अप्रेज़ल समिति (GEAC) ने महिको (ट्रांसजेनिक बैंगन बनाने वाली कंपनी) द्वारा किये गए अनुरोध की सुनवाई के दौरान यह फैसला लिया।

क्या है जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति?

  • जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति (GEAC) को पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (MOEFCC) के अंतर्गत स्थापित किया गया है।
  • इसका कार्य अनुवांशिक रूप से संशोधित सूक्ष्म जीवों और उत्पादों के कृषि में उपयोग को स्वीकृति प्रदान करना है।
  • विदित हो कि जेनेटिक इंजीनियरिंग मूल्यांकन समिति आनुवंशिक रूप से संशोधित बीजों के लिये स्थापित किया गया भारत का सर्वोच्च नियामक है।

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