गांधी और न्यू इंडिया | 01 Jul 2020
न्यू इंडिया के निर्माण में महात्मा गांधी की भूमिका और उनका प्रभाव निर्विवाद है। वर्तमान इक्कीसवीं सदी में भी एक व्यक्ति और एक दार्शनिक के रूप में गांधीजी उतने ही प्रासंगिक है जितने कि वह पहले थे।
- उदाहरण के लिये गांधीजी द्वारा स्वीकृत 'सर्वधर्म समभाव' अर्थात् सभी धर्म समान है तथा 'सर्वधर्म सदभाव' अर्थात् सभी धर्मों के प्रति सद्भावना, इस वैश्विक एवं तकनीकी युग में सद्भाव और करुणा का वातावरण बनाए रखने और 'वसुधैव कुटुम्बकम' (विश्व एक परिवार है) के विचार को साकार करने के लिये आवश्यक है।
- सोशल मीडिया धीरे-धीरे चरमपंथी विचारों के प्रचार और प्रसार का मंच बनता जा रहा है तथा आम लोग गलत सूचनाओं एवं अतिवाद से पीड़ित हैं। ऐसी स्थिति में, यह आवश्यक है कि हम सर्वधर्म समभाव और सर्वधर्म सदभाव का पालन करें एवं चरमपंथ के प्रतिकार के लिये करुणा का उपयोग करते हुए गांधीजी की शिक्षा का अनुसरण करे।
- स्कॉटिश इतिहासकार थॉमस कार्लाइल ने उन्नीसवीं शताब्दी में अर्थशास्त्र के लिये एक दूसरा शब्द 'निराशाजनक विज्ञान’ का प्रयोग किया था। यह स्पष्ट रूप से अंग्रेज़ी विद्वान टी. आर. माल्थस की भविष्यवाणी से प्रेरित था कि आबादी, हमेशा खाद्य उत्पादन की तुलना में अधिक तेज़ी से बढ़ेगी, जो मानव जाति को असीम गरीबी और कठिनाइयों की तरफ ले जाएगी। इसे अर्थशास्त्र की केंद्रीय समस्या 'असीमित आवश्यकताओं और सीमित संसाधनों के बीच असंतुलन' के रूप में भी जाना जाता है। हालाँकि भारत में हमेशा ही असीमित उपभोग के बजाय तर्कसंगत उपभोग की परंपरा रही है और इसलिये, उपभोक्तावाद हमारे देश में आसानी से जड़ें नहीं जमा सका है।
- गांधीजी ने हमारे पारिस्थितिकीय तंत्रों को संरक्षित करने, जैविक और पर्यावरण हितैषी वस्तुओं का उपयोग करने तथा पर्यावरण पर किसी भी तरह का दबाव न पैदा करने के लिये संतुलित उपभोग पर बहुत ज़ोर दिया। इसके लिये उन्होंने अपनी खुद की उपभोग आवश्यकताओं को भी कम कर दिया था। दुर्भाग्य से, आज हम एक ऐसे चरण में पहुँच गए हैं जहाँ हम प्रकृति पर बोझ बन गए हैं और वसुधैव कुटुम्बकम के आदर्श की प्राप्ति असंभव हो चुकी है। इसलिये हमें भी गांधीजी का अनुकरण करते हुए अपनी ज़रूरतों को तर्कसंगत बनाने के तरीकों पर चर्चा करनी चाहिये और गांधीजी के विचारों और दर्शन को अपनी आर्थिक नीति और दैनिक जीवन का हिस्सा बनाने का प्रयास करना चाहिये।
“मैं तुम्हें एक जंतर देता हूं। जब भी तुम्हें संदेह हो या तुम्हारा अहम तुम पर हावी होने लगे तो यह कसौटी अपनाओ, जो सबसे गरीब और कमज़ोर आदमी तुमने देखा हो, उसकी शक्ल याद करो और अपने हृदय से पूछो कि जो कदम उठाने का तुम विचार कर रहे हो, वह उस आदमी के लिये कितना उपयोगी होगा, क्या उससे उसे कुछ लाभ पहुँचेगा? क्या उससे वह अपने ही जीवन और भाग्य पर काबू रख सकेगा? यानी क्या उससे उन करोड़ों लोगों को स्वराज मिल सकेगा, जिनके पेट भूखे हैं और आत्मा अतृप्त.. तब तुम देखोगे कि तुम्हारा संदेह मिट रहा है और अहम समाप्त होता जा रहा है…”
- गांधीजी के इस विचार को विश्व बैंक और कई प्रसिद्ध अर्थशास्त्रियों ने प्रतिध्वनित किया है, जहाँ उन्होंने इस बात पर ज़ोर दिया है कि पिरामिड के आधार तक पहुँचना महत्त्वपूर्ण है। किसी देश के समृद्धि का आकलन उसकी जनसंख्या के अंतिम श्रेणी के जीवन स्तर को माप कर किया जा सकता है। यह 'अंत्योदय' की वही अवधारणा है, जिसे दीन दयाल उपाध्याय ने अपनाया था, जिसके केंद्र में समाज के सबसे कमज़ोर वर्ग की देखभाल करने का विचार है। सीढ़ी के निचले पायदान पर स्थित व्यक्ति को ऊपर उठाया जाता है, तभी देश का विकास हो सकता है।
- भारत में एक दोहरी सामाजिक और आर्थिक संरचना बन चुकी है। यहाँ 90% लोग अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत हैं और जनसंख्या का एक बड़ा भाग अभी भी गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन कर रहा है। शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों, अभिजात्य और आम नागरिकों एवं पाश्चात्य संस्कृति के समर्थकों और गैर-समर्थक के बीच एक अंतर विद्यमान है। यह दोहरी विविधता गांधीजी के दर्शन के बिलकुल विपरीत है और हमें इस अंतर को खत्म करने का प्रयास करना चाहिये।
- उल्लेखनीय है कि संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP) के हालिया अध्ययन के अनुसार, पिछले आठ वर्षों में भारत 20 करोड़ लोगों को गरीबी रेखा से ऊपर उठाने में सफल रहा है। यह एक बड़ी उपलब्धि है। हम सही रास्ते पर हैं और उम्मीद है कि हम गरीबी को समाप्त कर पाएंगे। लेकिन इसके लिये हमें गांधीजी के दर्शन की गहराई में उतरना होगा।
- एक छात्र, शिक्षक या अर्थशास्त्री के रूप में हमारे सभी निर्णय गरीबों के उत्थान और हमारे राष्ट्र के कल्याण के लक्ष्य से प्रेरित होने चाहिये। यदि एक राष्ट्र के रूप में हम इस लक्ष्य को आत्मसात करते हैं, तो वर्ष 2022 तक भारत को पाँच-ट्रिलियन-डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने में सहायता मिल सकती है। इस संबंध में, नीति आयोग द्वारा एक विज़न डॉक्यूमेंट तैयार किया जा रहा है, जिसके अनुसार हमें प्रत्येक पाँच वर्ष में अपनी प्रति व्यक्ति आय को दोगुना करने के प्रयास करने चाहिये। चीन ने सफलतापूर्वक ऐसा किया है और वर्ष 2003-11 की अवधि में भारत ने भी ऐसा किया है।
- इस आलेख में दस बिंदुओं का उल्लेख किया गया है जिन पर कार्य करके भारत गांधीजी के रास्ते पर आगे बढ़ सकता है, जो कि निम्नलिखित है-
1. 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास’
2. स्वच्छ भारत
3. स्वस्थ भारत
4. सक्षम भारत
5. समृद्ध देश
6. सशक्त नारी
7. सुराज अथवा सुशासन
8. स्वराज ग्राम
9. सतत् कृषि
10. सुरक्षित भारत
1. सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास
- उपर्युक्त सभी दस बिंदुओं में से सबसे महत्त्वपूर्ण और संवेदनशील बिंदु है- सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास।
- यह आवश्यक है कि विकास के लाभ अल्पसंख्यकों, दलितों, महिलाओं और आदिवासी समुदायों सहित समाज के सभी वर्गों को एक समान रूप से उपलब्ध हो और कोई भी इससे पीछे नहीं छूटना चाहिये। नीति आयोग इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये पूरी तरह से प्रतिबद्ध है।
- 'सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास' एक लक्ष्य है, जिसके लिये सरकार प्रयासरत है।
2. स्वच्छ भारत
- गांधीजी स्वच्छता को स्वतंत्रता से भी अधिक महत्त्वपूर्ण मानते थे। भारत में स्वच्छता एक बड़ा मुद्दा है जिसे केवल एक रेल यात्रा के दौरान स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है।
- देश में कई लोगों के लिये स्वच्छता एक दिवास्वप्न है और इनकी स्वच्छता में उनकी सहायता करने के लिये, सरकार ने पिछले पाँच वर्षों में 11 करोड़ से अधिक शौचालयों का निर्माण किया है और 2 अक्तूबर 2019 को ग्रामीण भारत को खुले में शौच से मुक्त घोषित किया है।
- हालाँकि उनमें से कई शौचालय कार्यरत अवस्था में नहीं हैं या उनमें जल की सुविधा नहीं है; किन्तु यहाँ इस बात पर विशेष बल दिया जाना चाहिये की इस प्रयास ने अभूतपूर्व जन जागरूकता का सृजन किया है।
- इससे इस देश के बच्चों और महिलाओं के स्वास्थ्य पर वृहत प्रभाव पड़ेगा। स्वच्छ भारत मिशन ने वास्तव में, पाँच वर्ष से कम उम्र के बच्चों, नवजात और जन्म के समय कम वज़न वाले बच्चो में डायरिया और मलेरिया को कम करने में सहायता की है।
- वर्तमान में भारत में 38% बच्चे कुपोषित हैं, जिसका एक बड़ा कारण डायरिया जैसे जलजनित रोग हैं। यद्यपि ऐसी समस्याओं से निपटने के लिये और हर घर को जल सुनिश्चित करने के लिये जल शक्ति मंत्रालय बनाया गया है।
3. स्वस्थ भारत
- स्वच्छ भारत स्वतः हमें स्वस्थ भारत की ओर प्रशस्त करेगा। गांधीजी का मानना था कि रोकथाम इलाज से बेहतर है।
- भारत सरकार की आयुष्मान भारत योजना गांधीजी के इस विचार के अनुरूप है जिसमें 50 करोड़ लोगों को यह आश्वासन दिया गया है कि उनके अस्पताल में भर्ती होने पर इसका खर्च सरकार द्वारा वहन किया जाएगा। इस योजना का एक बड़ा लाभ यह होगा कि इससे टियर- II और टियर- III शहरों में छोटे नर्सिंग होम और अस्पतालों के निर्माण एवं उनकी संख्या में वृद्धि की संभावना बढ़ जाएगी क्योंकि उन क्षेत्रों में लोग अब तक ऐसी स्वास्थ्य सेवाओं को वहन कर सकने में सक्षम नहीं थे। इससे महानगरीय शहरों के अस्पतालों पर बोझ को कम करने में भी सहायता मिलेगी।
- 8 मार्च 2018 को पोषण (POSHAN) अभियान शुरू किया गया था। यह एक बहु-मंत्रालयी अभिसरण मिशन है, जो यह सुनिश्चित करेगा कि भारत वर्ष 2022 तक कुपोषण मुक्त हो जाए। हाल ही में जारी यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार, पिछले 5-6 वर्षों में भारत में कुपोषण 38% से कम होकर 34% हो गया है। लेकिन यह एक चुनौती है कि प्रत्येक तीन में से एक बच्चा अभी भी कुपोषित है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय महिलाओं में एनीमिया कम होकर 46% हो गया है लेकिन यह अभी भी एक भयावह आँकड़ा है। वस्तुत: देश के 200 से भी अधिक ज़िलों में, लगभग 65% महिलाएँ अभी भी एनीमिया से पीड़ित हैं। पोषण अभियान के तहत, कुपोषण को प्रतिवर्ष 2% कम करने के प्रयास किये जा रहे हैं।
- नीति आयोग द्वारा एकीकृत औषधीय पाठ्यक्रम की आवश्यकता पर ज़ोर दिया जा रहा है। हमें आयुर्वेद को निम्नस्तरीय स्वास्थ्य पद्धति समझना बंद कर देना चाहिये क्योंकि गांधीजी ने अपने जीवनकाल में इन औषधीय पद्धतियों का समर्थन किया था। भारत सरकार द्वारा आयुर्वेद में व्यापक शोध को बढ़ावा दिया जा रहा है और दुनिया की सबसे प्रसिद्ध और प्रतिष्ठित पत्रिकाओं में अपने शोधपत्र प्रकाशित करने के प्रयास किये रहे हैं। हमारा प्रयास आयुर्वेद की क्षमता और महत्त्व को पहचान दिलाना है, जैसा कि चीनियों ने अपनी पारंपरिक चिकित्सा के लिये किया है, जिसे अब अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (एफडीए) ने उनके देश में उपयोग के लिये मंज़ूरी दे दी है।
4. सक्षम भारत
- चौथा लक्ष्य भारत को सक्षम बनाना है। गांधीजी हमेशा चाहते थे कि भारत एक समृद्ध और सक्षम देश बने और इसे प्राप्त करने के लिये कई कदम उठाए गए हैं। प्रधानमंत्री जन-धन योजना नामक वित्तीय-समावेशन कार्यक्रम के तहत 37 करोड़ से भी अधिक बैंक खाते खोले गए हैं। इन खातों में एक लाख करोड़ रुपए से भी अधिक रुपए जमा किये गए हैं। इन खातों में प्रत्यक्ष लाभ हस्तांतरण के माध्यम से लगभग 370 योजनाएँ लागू की गई हैं। वर्तमान में उर्वरक सब्सिडी के हस्तांतरण हेतु पायलट प्रोजेक्ट चलाया जाए रहा है और भविष्य में खाद्य सब्सिडी के लिये भी ऐसा किया जा सकता हैं।
- स्किल इंडिया योजना के तहत एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी में नेशनल स्किल डेवलपमेंट कॉरपोरेशन इंडिया (NSDC) की स्थापना की गई है जिसे भारत में कौशल परिदृश्य को उत्प्रेरित करने का अधिदेश दिया गया है।
- देश के युवाओं को रोज़गारपरक कौशल प्रदान करने के लिये प्रधान मंत्री कौशल विकास योजना (PMKVY 1.0) वर्ष 2015 में शुरू की गई थी। PMKVY 1.0 के तहत कुल 19.85 लाख उम्मीदवारों को प्रशिक्षित किया गया है। PMKVY 1.0 की सफलता के कारण, अक्तूबर 2016 में इस योजना को फिर से शुरू किया गया, जिसे PMKVY 2.0 कहा गया। जून 2019 तक, कुल 52.12 लाख उम्मीदवारों को PMKVY 2.0 के तहत प्रशिक्षित किया गया था।
- भारत को अधिक सक्षम बनाने के लिये स्टार्ट-अप इंडिया नामक कार्यक्रम भी प्रारंभ किया गया है। भारत दुनिया में दूसरी सबसे बड़ी स्टार्ट-अप अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा हैं और उद्योग और आंतरिक व्यापार संवर्द्धन विभाग (DPIIT) के अनुसार, आज भारत में 24,000 से अधिक स्टार्ट-अप हैं। नीति आयोग के अटल इनोवेशन मिशन के माध्यम से, स्टार्ट-अप पारितंत्र को आगे बढ़ाने का प्रयास किया जा रहा हैं।
- एक समर्थ या सक्षम भारत का अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति को स्वयं को इस तरह सक्षम होना चाहिये कि वे अपनी आजीविका सुनिश्चित कर सकें। नागरिकों को अधिक सक्षम बनाने के लिये, सरकार ने प्रधानमंत्री मुद्रा योजना भी शुरू की है, जिसके तहत 20 करोड़ से अधिक ऋण दिये गए हैं और स्वीकृत राशि 9.8 लाख करोड़ रुपए है। इन योजनाओं से पिरामिड के निचले वर्ग की स्थिति में सुधार होगा जो कि गांधीजी के जंतर के अनुरूप है।
5. समृद्ध भारत
- अटल इनोवेशन मिशन आने वाले वर्षों में भारत के नवाचार और उद्यमशीलता की ज़रूरतों पर एक विस्तृत अध्ययन और विचार-विमर्श के आधार पर, देश भर में नवाचार और उद्यमशीलता को बढ़ावा देने के लिये नीति आयोग द्वारा स्थापित एक प्रमुख पहल है।
- सभी मंत्रालय और राज्य सरकारें वर्ष 2030 तक सतत् विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिये योजनाओं की रूपरेखा और कार्यान्वयन कर रही हैं।
- मिशन चंद्रयान-2, चंद्रयान-1 के बाद भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा विकसित दूसरा चंद्र अन्वेषण मिशन है। इसका वैज्ञानिक उद्देश्य चंद्रमा की सतह की संरचना में रूपांतरण का मानचित्रण साथ ही साथ चंद्रमा पर जल की अवस्थिति और प्रचुरता का अध्ययन करना भी था।
- निजी क्षेत्र नवीनीकरण और उद्यमशीलता को बढ़ावा देने और अर्थव्यवस्था की प्रगति सुनिश्चित करने हेतु एक अभिन्न है। निजी क्षेत्र का निवेश आवश्यक बुनियादी ढाँचा उपलब्ध कराता हैं जो टिकाऊ और विश्वसनीय होता हैं। यह नए उत्पादों और सेवाओं के निर्माण में आधुनिक तकनीक को बढ़ावा देता है। सार्वजनिक-निजी भागीदारी को बढ़ावा देने के लिये विकास के महत्त्वपूर्ण क्षेत्रों में निजी क्षेत्र के निवेश को आकर्षित करने की आवश्यकता है। भारत सरकार ने निजी निवेश को आकर्षित करने के लिये विभिन्न प्रारूप पेश किये हैं, विशेषकर सड़कों और राजमार्गों, हवाई अड्डों, औद्योगिक पार्कों और उच्च शिक्षा और कौशल क्षेत्र में।
- भारत को अधिक समृद्ध बनाने के लिये और वर्ष 2025–28 तक पाँच ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था के लक्ष्य तक पहुँचने तथा हर पाँच वर्ष में व्यक्तिगत आय और प्रति व्यक्ति आय को दोगुना करने के लिये, हमें बहुत प्रयास करने होंगे। लेकिन यह इस शर्त पर आधारित है कि देश के सक्षम पुरुष और महिलाओं को रोज़गार मिले।
- यदि देश में बेरोज़गारी व्याप्त है और युवा घर पर बेरोज़गार बैठे हैं, तो हम अपने किसी भी लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर पाएंगे।
- हमारी शिक्षा प्रणाली ऐसी होनी चाहिये कि यह रोज़गार देने वाले लोगों का निर्माण करें। लेकिन इस समय उच्च शिक्षा के मामले में हमारी स्थिति बहुत अच्छी नहीं है। इसे बेहतर बनाने हेतु प्रयास किये जा रहे हैं।
6. सशक्त नारी
- गांधीजी महिला सशक्तीकरण के सबसे बड़े पैरोकार थे। उन्होंने खुले तौर पर महिलाओं को शिक्षा, विधवा पुनर्विवाह और पर्दा व्यवस्था को समाप्त करने का समर्थन किया। उन्होंने महिलाओं को उनके घरों से निकलकर मुख्यधारा में शामिल होने का अवसर उपलब्ध कराया।
- कहा जाता है कि 'यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता:' जिसका अर्थ है कि जहाँ महिलाओं की पूजा की जाती है, वहाँ देवता निवास करते हैं। शक्ति के बिना शिव भी जड़ हैं। लैंगिक संदर्भ में हमें अपनी आर्थिक नीतियों और देश को जितना संभव हो, गैर-भेदभावपूर्ण बनाना चाहिये।
- इस दिशा में सरकार ने बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ योजना शुरू की है। प्रधान मंत्री उज्ज्वला योजना के तहत 8 करोड़ महिलाओं को गैस कनेक्शन दिये गए है।
- महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये भारत सरकार द्वारा निर्भया फंड भी स्थापित किया गया है। लेकिन महिला सशक्तीकरण का सबसे महत्त्वपूर्ण उपकरण शिक्षा है। हमें अपनी लड़कियों को शिक्षित करना चाहिये और इसके लिये लड़कियों के माता-पिता को प्रोत्साहन राशि प्रदान कराई जानी चाहिये ताकि वे काम करने या शादी के लिये स्कूल न छोड़ें।
7. सुराज
- गांधीजी ने ऐसे रामराज्य का स्वप्न देखा था, जहाँ पूर्ण सुशासन और पारदर्शिता हो। उन्होंने यंग इंडिया (19 सितंबर 1929) में लिखा, रामराज्य से मेरा मतलब हिंदू राज नहीं है। मेरे रामराज्य का अर्थ है- ईश्वर का राज्य। मेरे लिये, राम और रहीम एक ही हैं; मैं सत्य और धार्मिकता के ईश्वर के अलावा किसी और ईश्वर को स्वीकार नहीं करता। चाहे मेरी कल्पना के राम कभी इस धरती पर रहे हो या न रहे हो, रामायण का प्राचीन आदर्श निस्संदेह सच्चे लोकतंत्र में से एक है, जिसमें एक बहुत बुरा नागरिक भी एक जटिल और महंगी प्रक्रिया के बिना त्वरित न्याय को लेकर आश्वस्त हो।
- 2 अगस्त 1934 को अमृत बाज़ार पत्रिका में उन्होंने कहा, 'मेरे सपनों की रामायण, राजा और निर्धन दोनों के लिये समान अधिकार सुनिश्चित करती है।' फिर 2 जनवरी 1937 को हरिजन में उन्होंने लिखा, 'मैंने रामराज्य का वर्णन किया है, जो नैतिक अधिकार के आधार पर लोगों की संप्रभुता है।’
- सुशासन की दिशा में सभी मंत्रालयों द्वारा सभी नियमित जानकारी और डेटा का सक्रिय प्रकाशन ऑनलाइन उपलब्ध कराया जा रहा है। सरकारी अधिकारियों और राजनीतिक कार्यपालिका की भूमिका और उत्तरदायित्व बहुत स्पष्ट रूप से परिभाषित किये गए है।
- प्रत्येक सरकारी कार्यालय में अब एक डिजिटल बायोमेट्रिक अटेंडेंस प्रणाली है।
- सरकार ने देश में आकांक्षापूर्ण ज़िलों (Aspirational Districts) की पहचान की है और नीति आयोग 39 संकेतकों पर इनकी निगरानी करता है। इस पहल का उद्देश्य है कि इन ज़िलों को अन्य ज़िलों के बराबर या बेहतर स्थिति में लाया जाए। यह पहल गांधीजी की समाज के पिछले वर्ग के लोगो के उत्थान के प्रयासों के अनुरूप हैं।
- नीति आयोग प्रतिस्पर्द्धी संघवाद की भावना पर आधारित है। राज्यों के बीच स्वस्थ प्रतिस्पर्द्धा सुनिश्चित करने हेतु नीति आयोग द्वारा शिक्षा, जल संरक्षण और बचत, स्वास्थ्य और पोषण और नवाचार में उनके प्रदर्शन का आकलन करने के लिये कई प्रकार की रैंकिंग प्रणालियों की शुरुआत की गई हैं।
- एक अच्छा प्रतिस्पर्द्धी प्रशासन, प्रतिस्पर्द्धी लोकलुभावनवाद को प्रतिस्थापित कर सकता है जिसमें हम कई वर्षों से अटके हुए है।
8. स्वराज ग्राम
“भारत की स्वतंत्रता का मतलब पूरे भारत की स्वतंत्रता होना चाहिये; स्वतंत्रता की शुरुआत नीचे से होनी चाहिये। तभी प्रत्येक गाँव एक गणतंत्र बनेगा;अतः इसके अनुसार प्रत्येक गाँव को आत्मनिर्भर और अपने मामलों का प्रबंधन करने में सक्षम होना चाहिये। समाज एक ऐसा पिरामिड होगा जिसका शीर्ष, आधार पर निर्भर होगा।”
- गांधीजी के इस सपने को साकार करने के लिये, ग्राम पंचायतों और ग्राम सभाओं को स्थानीय विकास प्रशासन का केंद्र बिंदु बनाया गया है। ग्राम स्वराज को मज़बूत और सशक्त बनाने के लिये, वित्त आयोग द्वारा पंचायतों को आवंटन का 100% ग्राम पंचायतों को दिया जा रहा है। विशेष रूप से आकांक्षी ज़िलों में, जहाँ ग्राम पंचायतों और शहरी स्थानीय निकायों के विकास के लिये यह कोष महत्त्वपूर्ण है।
- चौदहवें वित्त आयोग के तहत राज्यों को पाँच वर्ष के लिये विधिवत रूप से चयनित ग्राम पंचायतों और नगर निकायों को मज़बूत करने के लिये 2.88 लाख करोड़ रुपए का अनुदान दिया गया।
9. सतत् कृषि
- महात्मा गांधी मानव और प्रकृति के बीच सौहार्दपूर्ण संबंध मानते थे। वह आत्मनिर्भर कृषि में विश्वास करते थे। लेकिन आज हमारा कृषि क्षेत्र संकट में है। हमारे पास 70 मिलियन टन खाद्यान्न का भंडार है, लेकिन कीमत इतनी अधिक है कि हम इसका निर्यात नहीं कर सकते।
- इस तथ्य के बावजूद कि हमारे देश में बहुत सारे कुपोषित लोग हैं, हम लागत बढ़ाने और न्यूनतम समर्थन मूल्य बढ़ाने के लिये बाध्य हैं। भारत में कम-से-कम 43 से 45 फीसदी कामकाजी आबादी कृषि में संलग्न है और इस क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान 14-16% है। अत: भारतीय कृषि निम्न उत्पादकता से ग्रस्त है।
- हमारा उद्देश्य है कि किसानों की आय दोगुनी हो, लेकिन कृषि उत्पादन में कोई वृद्धि न हो। हमें सभी फसलों में अपनी श्रम उत्पादकता और पैदावार में सुधार करना होगा और किसानों की क्षमता निर्माण पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
- विदर्भ के अमरावती ज़िले के सुभाष पालेकर के दिमाग की उपज, ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग पर नीति आयोग द्वारा बहुत ध्यान केंद्रित किया जा रहा है। ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग (ZBNF) हमारी खाद्य आवश्यकताओं को पूरा करने और एक स्वस्थ और समृद्ध भारत सुनिश्चित करने में सक्षम है। पारंपरिक भारतीय कृषि प्रणाली में रासायनिक आगतों का कम-से-कम प्रयोग किया जाता है।
- यह महत्त्वपूर्ण है कि अधिक-से-अधिक किसानों को कीटनाशकों और रासायनिक उर्वरकों के उपयोग को कम करने और ज़ीरो बजट नेचुरल फार्मिंग को अपनाने हेतु प्रेरित किया जाए।
- आज दुनिया में कृषि-पारिस्थितिकी पर बहुत ज़ोर दिया जा रहा है। जहाँ एक ओर फ्राँस द्वारा अगले चार वर्षों में कीटनाशकों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने की बात कही जा रही है, वही दूसरी तरफ, भारत में भटिंडा से बीकानेर तक चलने वाली एक 'कैंसर ट्रेन' है जिसमें पंजाब में अत्यधिक कीटनाशक प्रयोग के कारण कैंसर से पीड़ित दर्जनों लोग यात्रा करते हैं।
- जैविक खेती ही कृषि कार्यों में रसायनों के अत्यधिक उपयोग की समस्या का समाधान है। यह मिट्टी में जैविक पदार्थ को दोगुना करता है, कार्बन तत्त्वों को कम करता है और जल उपयोग को भी कम कर देता है, क्योंकि वायुमंडलीय जल वाष्प को अवशोषित करने की मिट्टी की क्षमता बढ़ जाती है और इसे अलग से जल देने की आवश्यकता नहीं होती। यह हरियाणा के हिसार में कृषि विश्वविद्यालय द्वारा अध्ययन के बाद सिद्ध किया गया है।
10. सुरक्षित भारत
- दसवां और अंतिम लक्ष्य हमारे देश को अधिक सुरक्षित बनाना है। हाल ही में भारत द्वारा अपने हवाई बेड़े में तेजस और आकाश और शस्त्रागार में ब्रह्मोस एवं अन्य मिसाइलों को शामिल किया है। सरकार रक्षा आयात में भारी कटौती करना चाहती है और इसके लिये एक सरकारी नीति बनाई गई है।
- हालाँकि आंतरिक सुरक्षा अधिक महत्त्वपूर्ण है और इसके लिये हमें समुदायों के सामंजस्यपूर्ण सह-अस्तित्व की आवश्यकता है। हमें आदिवासी, नक्सल-प्रभावित या सीमा के आस-पास के अगम्य और पिछड़े क्षेत्रों तक पहुँचने का प्रयास करना चाहिये। कुमाऊँ और गढ़वाल की पहाड़ियों में 200 से अधिक गाँवों में सुविधाओं की कमी और बेहतर अवसरों की तलाश में सामूहिक प्रवास देखा गया है। परित्यक्त गाँव बिना किसी भेदभाव के क्षेत्रीय संतुलन को प्राप्त करने लिये कार्रवाई करने का स्पष्ट आह्वान है।
- महात्मा गांधी के विचारों का अनुकरण करते हुए, हम एक ऐसी आर्थिक प्रणाली बनाने के लिये प्रयासरत हैं, जहाँ न ही कोई दबाव हो और न ही सरकार की अनुपस्थिति जैसी स्थिति हो और जहाँ न्यू इंडिया को विकास और रोज़गार, समावेशिता, स्वच्छता और पारदर्शिता के स्तंभों का समर्थन प्राप्त होता हो।
- इन सभी प्रयासों में कॉर्पोरेट भारत को भी शामिल करना चाहिये। एडम स्मिथ का अधिकतम लाभ आधारित पूंजीवाद अब व्यावहारिक नहीं है। यह ट्रिपल-बॉटम-लाइन फ्रेमवर्क का युग है, जहाँ कंपनियों को लाभार्जन के साथ ही सामाजिक और पर्यावरणीय चिंताओं पर भी ध्यान देना होगा।