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उत्तर प्रदेश में गौ-आधारित नेचुरल फार्मिंग
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री ने कहा कि गौ-आधारित नेचुरल फार्मिंग से प्रति एकड़ 10,000 से 12,000 रुपए की बचत होकर किसानों की आय बढ़ सकती है।
- उन्होंने इस बात पर प्रकाश डाला कि यदि राज्य के अधिकांश किसान इस पद्धति को अपनाएँ तो काफी सामूहिक बचत संभव है।
मुख्य बिंदु
- गौ-आधारित खेती के लाभ:
- इससे कृषि लागत कम होती है और पशुधन का संरक्षण होता है।
- दीर्घकाल में मृदा, जल और मानव स्वास्थ्य को बेहतर बनाता है।
- इनपुट पर वर्तमान निर्भरता:
- बीज:
- उत्तर प्रदेश अपनी आवश्यकता का केवल आधा बीज ही उत्पादित करता है तथा शेष बीज को अन्य राज्यों, विशेषकर दक्षिणी भारत से ऊंची लागत पर आयात करता है।
- उर्वरक:
- गौ-आधारित नेचुरल फार्मिंग की संभावनाएँ:
- विशेषज्ञ उर्वरक आयात पर खर्च होने वाली विदेशी मुद्रा को बचाने की इसकी क्षमता पर प्रकाश डालते हैं।
- उत्तर प्रदेश में 2.78 करोड़ किसान और लगभग 2 करोड़ मवेशी हैं, जो गौ-आधारित खेती के लिये एक मज़बूत आधार प्रदान करते हैं।
- एक गाय के गोबर और मूत्र से लगभग चार एकड़ भूमि पर खेती की जा सकती है।
- सरकारी पहल:
- आत्मनिर्भर गौशालाएँ: गौशालाओं को गौ-आधारित नेचुरल फार्मिंग के प्रशिक्षण केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है।
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समर्पित विश्वविद्यालय: पारंपरिक तरीकों को आधुनिक प्रौद्योगिकी के साथ एकीकृत करने के लिये नेचुरल फार्मिंग (Natural Farming) विश्वविद्यालय स्थापित करने की योजना।
वित्तीय सहयता: किसानों को तीन वर्षों में वित्तीय सहायता मिलती है, पहले वर्ष 4,800 रुपए, दूसरे वर्ष 4,000 रुपए और तीसरे वर्ष 3,600 रुपए।
- पशु शेड और बायोगैस संयंत्र के लिये भी अनुदान उपलब्ध है।
- उत्पाद विपणन: प्राकृतिक कृषि उत्पादों को बढ़ावा देने के लिये संभागीय मुख्यालयों पर समर्पित आउटलेट स्थापित किये गए हैं।
- सरकार उपभोक्ता विश्वास और बाज़ार विश्वसनीयता बढ़ाने के लिये उत्पाद प्रमाणन को प्राथमिकता दे रही है।
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जैविक उत्पादों की बढ़ती मांग:
- कोविड के बाद, जैविक, क्षेत्रीय स्तर पर उत्पादित उत्पादों की मांग अधिक है।
- शोध संस्थान क्षेत्रीय स्वाद वाले स्वास्थ्यवर्द्धक खाद्य विकल्पों के प्रति बढ़ती प्राथमिकता पर प्रकाश डालते हैं।
नेचुरल फार्मिंग (Natural Farming)
- यह कृषि की एक ऐसी पद्धति है जो एक संतुलित और आत्मनिर्भर पारिस्थितिकी तंत्र बनाने का प्रयास करती है जिसमें सिंथेटिक रसायनों या आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों के उपयोग के बिना फसलें उगाई जा सकें।
- प्राकृतिक कृषि पद्धतियां प्रायः पारंपरिक ज्ञान और प्रथाओं पर आधारित होती हैं तथा इन्हें स्थानीय परिस्थितियों और संसाधनों के अनुरूप अनुकूलित किया जा सकता है।
- नेचुरल फार्मिंग का लक्ष्य स्वस्थ, पौष्टिक भोजन का उत्पादन करना है जो सतत् और पर्यावरण के अनुकूल हो।
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महाकुंभ 2025 में ड्रोन शो
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश सरकार महाकुंभ 2025 के दौरान एक ड्रोन शो आयोजित करने की योजना बना रही है, जिसमें महाकुंभ और प्रयागराज से संबंधित पौराणिक कथाओं को दर्शाया जाएगा।
मुख्य बिंदु
- ड्रोन शो की मुख्य विशेषताएँ:
- 2,000 प्रकाशित ड्रोनों का एक बेड़ा 'प्रयाग महात्म्यम' और महाकुंभ की पौराणिक कथाओं का वर्णन करेगा।
- पौराणिक समुद्र मंथन (Ocean Churning) और अमृत कलश (Nectar Pot) के उद्भव जैसी ऐतिहासिक घटनाओं को दृश्यात्मक रूप से पुनः प्रस्तुत किया जाएगा।
- उद्देश्य:
- इस शो का उद्देश्य प्रयागराज के धार्मिक और आध्यात्मिक महत्त्व को उजागर करना है तथा तीर्थयात्रियों और स्थानीय लोगों को एक अनूठा अनुभव प्रदान करना है।
- महाकुंभ की तैयारियाँ:
- प्रत्येक बारह वर्ष में आयोजित होने वाला यह महाकुंभ 13 जनवरी से 26 फरवरी 2025 तक चलेगा।
- राज्य सरकार प्रयागराज में मंदिरों, गंगा घाटों, पार्कों, सड़कों और फ्लाईओवरों के विकास और सौंदर्यीकरण पर ध्यान केंद्रित कर रही है।
- मुख्यमंत्री ने तैयारियों की प्रगति का निरीक्षण करने के लिये प्रयागराज का कई बार दौरा किया है।
कुंभ मेला
- यह धरती पर तीर्थयात्रियों का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण समागम है, जिसके दौरान प्रतिभागी पवित्र नदी में स्नान या डुबकी लगाते हैं। यह समागम 4 अलग-अलग जगहों पर होता है अर्थात्-
- हरिद्वार में, गंगा के तट पर।
- उज्जैन में, शिप्रा के तट पर।
- नासिक में, गोदावरी (दक्षिण गंगा) के तट पर।
- प्रयागराज में, गंगा, यमुना और पौराणिक अदृश्य सरस्वती के संगम पर।
- कुंभ के विभिन्न प्रकार:
- कुंभ मेला 12 वर्षों में 4 बार मनाया जाता है।
- हरिद्वार और प्रयागराज में, अर्द्ध-कुंभ मेला हर 6 वें वर्ष आयोजित किया जाता है।
- महाकुंभ मेला 144 वर्षों (12 'पूर्ण कुंभ मेलों' के बाद) के बाद प्रयाग में मनाया जाता है।
- प्रयागराज में हर साल माघ (जनवरी-फरवरी) महीने में माघ कुंभ मनाया जाता है।
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