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खेती हेतु गोबर आधारित सूत्रीकरण

  • 11 Mar 2023
  • 4 min read

हाल ही में नीति आयोग ने “गौशालाओं की आर्थिक व्यवहार्यता में सुधार पर विशेष ध्यान देने के साथ जैविक और जैव उर्वरकों का उत्पादन तथा संवर्द्धन” शीर्षक से एक रिपोर्ट जारी की है, जिसमें कृषि के लिये गोबर आधारित उर्वरकों को बढ़ावा देने हेतु गौशालाओं को पूंजीगत सहायता की सिफारिश की गई है, इस प्रकार प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दिया गया है।

रिपोर्ट के मुख्य बिंदु:

  • गोबर आधारित फार्मूलेशन को प्रोत्साहन की आवश्यकता:
    • भारत में कृषि जैविक उर्वरकों के एकीकृत दृष्टिकोण पर आधारित थी लेकिन हरित क्रांति के बाद भारत इस संतुलन को बनाए नहीं रख सका और रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से मिट्टी के पोषक तत्त्वों में असंतुलन देखा गया।
    • गौशालाएँ देश के कई हिस्सों में आवारा पशुओं की समस्या का समाधान कर सकती हैं जो फसलों को नुकसान पहुँचाते हैं।
      • यह प्रस्तावित किया गया था कि इस तरह के पशु धन की क्षमता को जैविक और टिकाऊ खेती को बढ़ावा देने के लिये इस्तेमाल किया जाना चाहिये क्योंकि आवारा और परित्यक्त मवेशियों की संख्या उनके रखरखाव तथा भरण-पोषण के लिये मौजूद गौशालाओं की अपेक्षा उपलब्ध संसाधनों से परे एक सीमा तक बढ़ गई थी।
  • सिफारिश:
    • सरकार, पूंजी सहायता के माध्यम से गौशालाओं की मदद कर सकती है ताकि वे कृषि में उपयोग के लिये गाय के गोबर और गोमूत्र-आधारित फॉर्मूलेशन का विपणन कर सकें।
    • प्राकृतिक खेती और जैविक खेती को बढ़ावा देने हेतु गौशालाएँ बहुत मददगार हो सकती हैं। इस प्रकार गौशालाओं एवं जैविक खेती को साथ में बढ़ावा दिया जा सकता है।
  • महत्त्व:
    • अनुच्छेद 48 के तहत राज्य मवेशियों की नस्लों के संरक्षण और सुधार हेतु उपाय करता है, साथ ही गायों तथा बछड़ों के सहित अन्य दुधारू व वाहक मवेशियों के वध को प्रतिबंधित करता है, अर्थात् इस संदर्भ में गाय के गोबर से बने जैविक उर्वरकों के उपयोग से बहुत सहायता प्राप्त होगी।

प्राकृतिक खेती:

  • प्राकृतिक खेती कृषि का एक तरीका है जो संतुलित और आत्मनिर्भर पारिस्थितिकी तंत्र बनाने की कोशिश करती है जिसमें कृत्रिम रसायनों या आनुवंशिक रूप से संशोधित जीवों के उपयोग के बिना फसलें संवर्द्धित हो सकती हैं।
    • कृत्रिम उर्वरकों और कीटनाशकों जैसे कृत्रिम आदानों पर निर्भर रहने के बजाय, प्राकृतिक खेती करने वाले किसान मृदा के स्वास्थ्य को बढ़ाने और फसल के विकास को संवर्द्धित करने के लिये फसल चक्र (Crop Rotation), अंतर-फसल (Intercropping) और कंपोस्टिंग (Composting) जैसी तकनीकों पर भरोसा करते हैं।
  • प्राकृतिक कृषि की विधियाँ प्रायः पारंपरिक ज्ञान एवं अभ्यासों पर आधारित होती हैं और इन्हें स्थानीय परिस्थितियों एवं संसाधनों के अनुकूल बनाया जा सकता है।
    • प्राकृतिक खेती का लक्ष्य स्वस्थ एवं पौष्टिक खाद्य का उत्पादन इस प्रकार से करना है जो संवहनीय और पर्यावरण के अनुकूल हो।

सतत् कृषि से संबंधित पहल क्या हैं?

  • पूर्वोत्तर क्षेत्र के लिये जैविक मूल्य शृंखला विकास मिशन (MOVCDNER)
  • राष्ट्रीय सतत् कृषि मिशन
  • परंपरागत कृषि विकास योजना (PKVY)
  • कृषि वानिकी पर उप-मिशन (SMAF)
  • राष्ट्रीय कृषि विकास योजना

स्रोत: द हिंदू

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