‘ऑटो अपील सॉफ्टवेयर’ का कॉपीराइट | हरियाणा | 28 Mar 2024
चर्चा में क्यों?
हरियाणा सेवा का अधिकार आयोग ने 'ऑटो अपील सॉफ्टवेयर' के लिये "कॉपीराइट" के अधिकार को हासिल कर लिया है।
- हरियाणा आरटीएस आयोग ने वर्ष 2022 में कॉपीराइट के लिये आवेदन किया था, जिसे 20 मार्च, 2024 को प्रदान किया गया।
मुख्य बिंदु:
- AAS (वर्ष 2021 में लॉन्च) भारत में अपनी तरह का पहला सॉफ्टवेयर है, जिसके कारण शिकायतकर्त्ता को अपील दायर करने के लिये कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है।
- AAS के माध्यम से 27 मार्च 2024 तक कुल 11,70,766 अपीलें दर्ज की गईं, जिनमें से 11,56,595 अपीलों का निपटारा भी कर दिया गया है।
- AAS में अपीलों की निपटान दर 98.8% है।
- हरियाणा अपने नागरिकों को यह सुविधा प्रदान करने वाला देश का पहला राज्य है।
- कॉपीराइट एक प्रकार की बौद्धिक संपदा है जो किसी मूल कार्य के निर्माता या किसी अन्य अधिकार धारक को कार्य की प्रतिलिपि बनाने, वितरित करने, अनुकूलित करने, प्रदर्शित करने और प्रदर्शन करने हेतु विशेष तथा कानूनी रूप से संरक्षित अधिकार प्रदान करता है।
कॉपीराइट
- कॉपीराइट का तात्पर्य साहित्यिक, नाटकीय, संगीतमय और कलात्मक कार्यों के रचनाकारों के साथ-साथ सिनेमैटोग्राफ फिल्मों तथा ध्वनि रिकॉर्डिंग के निर्माताओं को प्रदान की गई कानूनी सुरक्षा से है।
- वर्ष 1957 के कॉपीराइट अधिनियम का उद्देश्य इन रचनात्मक कार्यों को उनके रचनाकारों की बौद्धिक संपदा के रूप में सुरक्षित रखना है।
- पेटेंट के मामले के विपरीत, यह विचारों के बजाय विचारों की अभिव्यक्ति को सुरक्षा प्रदान करता है।
- कॉपीराइट (संशोधन) नियम 2021 को कॉपीराइट के अन्य प्रासंगिक कानूनों के अनुरूप लाने के लिये कार्यान्वित किया गया था।
- कॉपीराइट मालिकों को उल्लंघनकर्त्ताओं के खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने का अधिकार है, जिसमें निषेधाज्ञा, क्षति जैसे उपाय शामिल हैं।
हरियाणा सेवा का अधिकार आयोग
- इसका गठन राज्य सरकार द्वारा 31 जुलाई 2014 को जारी एक अधिसूचना के माध्यम से किया गया था।
- यह हरियाणा सेवा का अधिकार अधिनियम, 2014 की धारा 12(1) और (2) के तहत गठित एक वैधानिक निकाय है।
- आयोग में एक मुख्य आयुक्त और अधिकतम चार आयुक्त होते हैं, जो हरियाणा सेवा का अधिकार अधिनियम, 2014 के प्रभावी कार्यान्वयन की निगरानी करते है।
- HRTS अधिनियम, 2014 लोगों को एक प्रभावी सेवा वितरण तंत्र के माध्यम से परेशानी मुक्त, पारदर्शी और समयबद्ध तरीके से अधिकांश सेवाओं का लाभ उठाने का अधिकार प्रदान करता है।
अडानी ग्रीन ने राजस्थान में 180 मेगावाट का सौर संयंत्र शुरू किया | राजस्थान | 28 Mar 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में अडानी ग्रीन एनर्जी ने राजस्थान के जैसलमेर के देवीकोट में 180 मेगावाट का सौर ऊर्जा संयंत्र की शुरुआत की गई।
मुख्य बिंदु:
- संयंत्र का सोलर एनर्जी कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया (SECI), भारत की सबसे बड़ी नवीकरणीय ऊर्जा कंपनी अडानी ग्रीन एनर्जी लिमिटेड (AGEL) के साथ 25 साल का पावर परचेज़ एग्रीमेंट है।
- यह सालाना लगभग 540 मिलियन विद्युत् इकाइयों का उत्पादन करेगा तथा 1.1 लाख से अधिक घरों को बिजली प्रदान कर लगभग 0.39 मिलियन टन CO2 उत्सर्जन को कम करेगा।
- मॉड्यूल की बेहतर दक्षता के साथ पूरे दिन सूर्य पर नज़र बनाए रखने के माध्यम से उत्पादन को अधिकतम करने के लिये नेक्स्ट जनरेशन बिफेशियल सोलर फोटोवोल्टिक मॉड्यूल और हॉरिजोंटल सिंगल एक्सिस सोलर ट्रैकर्स (HSAT ) को तैनात किया गया है।
- ट्रैकिंग सिस्टम द्वारा सूर्य के प्रकाश की उत्पादन क्षमता को बढ़ाने के लिये HSAT का उपयोग किया जाता है।
- यह संयंत्र जलरहित रोबोटिक मॉड्यूल सफाई प्रणालियों से सुसज्जित है, जो जैसलमेर के बंजर क्षेत्र में जल संरक्षण को सक्षम बनाता है।
पावर परचेज़ एग्रीमेंट (PPA)
- यह आमतौर पर एक विद्युत उत्पादक, सरकार या कंपनी के मध्य एक दीर्घकालिक अनुबंध होता है।
- PPA आमतौर पर 5 से 20 वर्ष के मध्य रहता है, इस दौरान विद्युत् खरीदार पूर्व-बातचीत कीमत पर ऊर्जा खरीदता है।
- इस तरह के समझौते स्वतंत्र रूप से स्वामित्व वाले (यानी, उपयोगिता के स्वामित्व वाले नहीं) विद्युत् उत्पादक विशेष रूप से सौर फार्म या पवन फार्म जैसे नवीकरणीय ऊर्जा के उत्पादकों के वित्तपोषण में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र महामारी के बाद भारत के विकास में अग्रणी: SBI रिपोर्ट | उत्तर प्रदेश | 28 Mar 2024
चर्चा में क्यों?
भारतीय स्टेट बैंक अनुसंधान के नवीनतम निष्कर्षों के अनुसार, 235 आधार बिंदु (bp) वृद्धि में से, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश 56 तथा 40 bp का योगदान देकर अग्रणी बनकर उभरे, जबकि शेष 90 bp अन्य राज्यों से प्राप्त हुए।
मुख्य बिंदु
- भारतीय अर्थव्यवस्था ने कोविड-19 महामारी के मद्देनज़र लचीलेपन का प्रदर्शन किया है, औसत वास्तविक सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि 8.1% तक बढ़ गई है, जो महामारी से पहले की अवधि में देखी गई 5.7% की वृद्धि से काफी अधिक है।
- रिपोर्ट के अनुसार:
- सकल राज्य घरेलू उत्पाद (GSDP) के मोर्चे पर, गुजरात ने अपने आर्थिक उत्पादन को उल्लेखनीय रूप से दोगुना कर दिया है, जो पिछले दशक में 2.2 गुना वृद्धि दर्शाता है।
- इसके बाद कर्नाटक, असम, आंध्र प्रदेश, ओडिशा, तेलंगाना, सिक्किम और मध्य प्रदेश जैसे राज्य महत्त्वपूर्ण आर्थिक गति तथा विकास प्रदर्शित कर रहे हैं।
- जबकि उत्तर प्रदेश, छत्तीसगढ़, बिहार और मध्य प्रदेश जैसे कुछ राज्यों ने प्रति व्यक्ति आय वृद्धि प्रक्षेप पथ को स्थिर बनाए रखा है, वहीं झारखंड, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, महाराष्ट्र, पंजाब, दिल्ली तथा गोवा जैसे अन्य राज्यों ने इस पहलू में कमी दर्ज की है।
- रिपोर्ट में कोविड-19 महामारी के बाद प्रति व्यक्ति शुद्ध राज्य घरेलू उत्पाद (NSDP) के संदर्भ में राज्य-व्यापी असमानता में उल्लेखनीय कमी पर प्रकाश डाला गया है।
- SBI रिसर्च टीम ने सभी राज्यों में आर्थिक विकास की गति को बनाए रखने और बढ़ाने के लिये निरंतर नीति समर्थन तथा लक्षित हस्तक्षेप के महत्त्व पर ज़ोर दिया।
- यह नीति निर्माताओं, अर्थशास्त्रियों और हितधारकों के लिये एक संसाधन के रूप में कार्य करता है, जो भारतीय अर्थव्यवस्था की उभरती गतिशीलता में अंतर्दृष्टि प्रदान करता है तथा भविष्य की विकास पहलों का मार्गदर्शन करता है।
आधार बिंदु
- ये माप की एक इकाई है जिसका उपयोग वित्तीय साधनों के मूल्य में प्रतिशत परिवर्तन या किसी सूचकांक या अन्य बेंचमार्क में दर परिवर्तन का वर्णन करने के लिये किया जाता है।
- एक आधार बिंदु 0.01% (प्रतिशत का 1/100वाँ हिस्सा) या दशमलव रूप में 0.0001 के बराबर है।
मसान होली | उत्तर प्रदेश | 28 Mar 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में वाराणसी में दो दिवसीय विशेष कार्यक्रम मसान होली मनायी गई। इस दौरान भक्त एक-दूसरे पर अंतिम संस्कार की अग्नि की राख और गुलाबी पाउडर (गुलाल) डालते हैं। इस आयोजन को मृत्यु का जश्न मनाने के तौर पर भी देखा जाता है।
मुख्य बिंदु
- ऐसा माना जाता है कि वाराणसी में मसान होली की रस्म होलिका-प्रहलाद की पौराणिक घटना को चिता की राख के साथ मनाई जाती है।
- वाराणसी की मसान होली में चिता की राख का उपयोग जीवन की अल्पता और इस भौतिकवादी विश्व में व्यक्ति के अस्तित्त्व की चक्रीय प्रकृति का प्रतीक है।
- ऐसा माना जाता है कि मसान होली में उपयोग की जाने वाली राख में शुद्धिकरण गुण होते हैं जो शरीर, मन और आत्मा की अशुद्धियों को साफ करते हैं।
- होली के दौरान एक-दूसरे को राख लगाकर, लोग आध्यात्मिक कायाकल्प और आंतरिक शुद्धि चाहते हैं।
गुलाल गोटा | राजस्थान | 28 Mar 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में राजस्थान के जयपुर में लगभग 400 साल पुरानी एक अनोखी परंपरा गुलाल गोटा मनाई गई।
मुख्य बिंदु:
- गुलाल गोटा लाख से बनी एक छोटी गेंद होती है, जिसमें सूखा गुलाल भरा जाता है जिसके बाद इसका वज़न लगभग 20 ग्राम होता है।
- गुलाल गोटा के लिये प्राथमिक कच्चा माल लाख, छत्तीसगढ़ और झारखंड से प्राप्त किया जाता है।
- गुलाल गोटा बनाने की प्रक्रिया में लाख को पानी में उबालकर उसे लचीला बनाना, आकार देना, रंग मिलाना, गर्म करना और फिर "फूँकनी" नामक ब्लोअर की मदद से इसे गोलाकार आकार में तैयार करना शामिल है।
- गुलाल गोटा जयपुर में मुस्लिम लाख निर्माताओं द्वारा तैयार किया जाता है, जिन्हें मनिहारों के नाम से जाना जाता है, जिन्होंने जयपुर के पास एक शहर बगरू में हिंदू लाख निर्माताओं से लाख बनाना सीखा था।
- भारत सरकार द्वारा लाख की चूड़ी और गुलाल गोटा निर्माताओं को "कारीगर कार्ड" प्रदान किये गए हैं, जिससे वे सरकारी योजनाओं का लाभ उठा सकते हैं।
- परंपरा को बचाने के लिए, कुछ गुलाल गोटा निर्माताओं ने भौगोलिक संकेत (GI) टैग की मांग की है।
लाख
- यह एक रालयुक्त पदार्थ है जो कुछ कीड़ों द्वारा स्रावित होता है। मादा स्केल कीट लाख के स्रोतों में से एक है।
- 1 किलोग्राम लाख राल का उत्पादन करने के लिए, लगभग 300,000 कीड़े मारे जाते हैं। लाख के कीड़े राल, लाख डाई और लाख मोम भी पैदा करते हैं।
- इसका उपयोग लाख की चूड़ियों के उत्पादन सहित विभिन्न अनुप्रयोगों में किया जाता है।
भौगोलिक संकेत (GI) टैग
- GI टैग एक ऐसा नाम या चिह्न है जिसका उपयोग कुछ उत्पादों पर किया जाता है जो किसी विशिष्ट भौगोलिक स्थान या मूल से मेल खाते हैं।
- GI टैग यह सुनिश्चित करता है कि केवल अधिकृत उपयोगकर्ताओं या भौगोलिक क्षेत्र में रहने वाले लोगों को ही लोकप्रिय उत्पाद नाम का उपयोग करने की अनुमति है।
- यह उत्पाद को दूसरों द्वारा कॉपी या नकल किये जाने से भी बचाता है।
- एक पंजीकृत GI, 10 वर्षों के लिए वैध है।
- GI पंजीकरण की देखरेख वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय के अधीन उद्योग एवं आंतरिक व्यापार संवर्धन विभाग द्वारा की जाती है।
उत्तराखंड की उच्च जोखिम वाली हिमनद झीलों का आकलन | उत्तराखंड | 28 Mar 2024
चर्चा में क्यों?
हाल ही में उत्तराखंड सरकार ने राज्य में पाँच हिमनद झीलों का जोखिम मूल्यांकन एवं सर्वेक्षण करने के लिए विशेषज्ञों की दो टीमों का गठन किया है, जो "बाढ़ के प्रकोप" के प्रति अत्यधिक संवेदनशील हैं।
प्रमुख बिंदु
- यह प्रस्तावित किया गया है कि टीमें, मई-जून 2024 में इन झीलों पर अपना काम शुरू कर देंगी।
- हिमालयी राज्यों की 188 हिमनद झीलों में से 13 उत्तराखंड में स्थित हैं।
- फरवरी 2021 में उत्तराखंड में चमोली ज़िले में एक हिमनद झील का विस्फोट हुआ, जिससे ऋषिगंगा पर एक छोटी जल विद्युत परियोजना बह गई तथा अचानक बाढ़ आ गई, जिससे कई लोगों की मौत हो गई।
- उत्तराखंड की 13 हिमनद झीलों को 'ए', 'बी' एवं 'सी' के रूप में वर्गीकृत किया गया है, जिनमें 'ए' अत्यधिक संवेदनशील है।
- उत्तराखंड में 13 हिमनद झीलों में से श्रेणी 'ए' में पाँच (अत्यधिक संवेदनशील), श्रेणी 'बी' में चार, (संवेदनशील) और श्रेणी 'सी' में चार (अपेक्षाकृत कम संवेदनशील) आती हैं।
- पाँच अति संवेदनशील झीलों में से चार पिथौरागढ ज़िले में और एक चमोली में है तथा चार संवेदनशील झीलों में से दो पिथौरागढ में एवं एक-एक चमोली व टिहरी में है।
- पहली टीम में दो हिमनदी झीलों की संवेदनशीलता का आकलन राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान, रूड़की के विशेषज्ञ शामिल थे, भारतीय भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण, लखनऊ, भारतीय रिमोट सेंसिंग संस्थान, देहरादून, उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण तथा उत्तराखंड भूस्खलन शमन एवं प्रबंधन केंद्र करेगा।
- पहले चरण के कार्य में उपग्रह डेटा अध्ययन एवं डेटा संग्रह, बैथिमेट्री और क्षेत्र सर्वेक्षण सम्मिलित होगा।
- दूसरी टीम का नेतृत्व, सेंटर फॉर डेवलपमेंट ऑफ एडवांस्ड कंप्यूटिंग (C-DAC), पुणे, प्रमुख तकनीकी एजेंसी के रूप में कर रही है तथा इसमें देहरादून स्थित भारतीय रिमोट सेंसिंग संस्थान सम्मिलित है | वाडिया हिमालय भूविज्ञान संस्थान, उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण तथा उत्तराखंड भूस्खलन शमन एवं प्रबंधन केंद्र 'ए' श्रेणी में आने वाली अन्य तीन हिमनद झीलों का अध्ययन व सर्वेक्षण करेगा।
भारतीय रिमोट सेंसिंग संस्थान
- यह प्राकृतिक संसाधनों, पर्यावरण एवं आपदा प्रबंधन के लिए रिमोट सेंसिंग, जियोइन्फॉर्मेटिक्स और जीपीएस तकनीक के क्षेत्र में अनुसंधान, उच्च शिक्षा एवं प्रशिक्षण के लिए एक संस्थान है।
- इस संस्थान की स्थापना वर्ष 1966 में भारतीय अंतरिक्ष विभाग के तहत की गई थी।
- यह देहरादून, उत्तराखंड में स्थित है।
हिमनद झील विस्फोट बाढ़ (GLOF)
- यह एक प्रकार की विनाशकारी बाढ़ है, जो हिमनद झील वाला बाँध के टूट जाने से आती है जिससे अत्यधिक मात्रा में पानी निकलता है।
- इस प्रकार की बाढ़ सामान्यतः ग्लेशियरों के तेज़ी से पिघलने या भारी वर्षा या पिघले पानी के प्रवाह के कारण झील में पानी के संचय के कारण होती है।
- फरवरी 2021 में, उत्तराखंड के चमोली ज़िले में अचानक बाढ़ देखी गई, जिसके बारे में संदेह है कि यह GLOF के कारण हुई थी।
कारण:
- ये बाढ़ कई कारकों से उत्पन्न हो सकती है, जिनमें ग्लेशियर की मात्रा में परिवर्तन, झील के जल स्तर में परिवर्तन एवं भूकंप शामिल हैं।
- NDMA (राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण) के अनुसार, हिंदू कुश हिमालय के अधिकांश हिस्सों में होने वाले जलवायु परिवर्तन के कारण हिमनदों के पीछे हटने से कई नए हिमनद झीलों का निर्माण हुआ है, जो GLOF का प्रमुख कारण हैं।