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हरियाणा स्टेट पी.सी.एस.

  • 24 Apr 2025
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हरियाणा में जीनोम-संपादन प्रयोगशाला

चर्चा में क्यों?

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री ने भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) - भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान (IIWBR), हरियाणा में जीनोम-संपादन प्रयोगशाला का उद्घाटन किया।

  • ICAR योजना के तहत वित्त पोषित इस प्रयोगशाला का उद्देश्य उन्नत फसल अनुकूलन और समृद्ध अनाज गुणवत्ता के लिये वांछनीय लक्षणों को बढ़ाने के लिये आधुनिक जीनोमिक उपकरणों का लाभ उठाना है।

मुख्य बिंदु 

  • जलवायु-अनुकूल किस्मों की सराहना:
    • किसानों ने जलवायु-प्रतिरोधी गेहूँ की किस्में उपलब्ध कराने के लिये वैज्ञानिकों की सराहना की, जो दिन के समय तापमान में उतार-चढ़ाव को सहन कर सकती हैं, विशेष रूप से फरवरी और मार्च में।
    • उन्होंने उत्पादन लागत में कमी पर संतोष व्यक्त किया क्योंकि रोग प्रतिरोधी किस्मों ने कवकनाशक स्प्रे की आवश्यकता को समाप्त कर दिया।
  • जौ की नई किस्मों में रुचि:
    • कुछ किसानों ने भूसी रहित जौ की किस्मों में रुचि दिखाई, विशेष रूप से DWRB-223, जो हाल ही में जारी की गई थी।
      • DWRB -223 42.9 क्विंटल/हेक्टेयर की उच्च उपज और 11.7% प्रोटीन प्रदान करती है। 
      • इसका भूसा-रहित अनाज इसे प्रत्यक्ष उपभोग और स्वास्थ्य खाद्य अनुप्रयोगों के लिये आदर्श बनाता है।
  • प्रयोगशाला से भूमि तक के दृष्टिकोण पर ज़ोर:
    • मंत्री ने 'प्रयोगशाला से भूमि' दृष्टिकोण के माध्यम से वैज्ञानिक अनुसंधान को ज़मीनी स्तर की खेती से जोड़ने के महत्त्व पर ज़ोर दिया।

जीनोम संपादन

  • जीन एडिटिंग (जिसे जीनोम एडिटिंग भी कहा जाता है) प्रौद्योगिकियों का एक समुच्चय है जो वैज्ञानिकों को एक जीव के डीएनए (DNA) को बदलने की क्षमता उपलब्ध कराता है। 
  • ये प्रौद्योगिकियाँ जीनोम में विशेष स्थानों पर आनुवंशिक सामग्री को जोड़ने, हटाने या बदलने में सहायक होती हैं।
  • उन्नत शोध ने वैज्ञानिकों को अत्यधिक प्रभावी क्लस्टर्ड रेगुलरली इंटरस्पेस्ड पैलिंड्रोमिक रिपीट (CRISPR) से जुड़े प्रोटीन आधारित सिस्टम विकसित करने में मदद की है। यह प्रणाली जीनोम अनुक्रम में लक्षित हस्तक्षेप को संभव बनाती है।
  • इस युक्ति ने पादप प्रजनन में विभिन्न संभावनाओं को उजागर किया है। इस प्रणाली की सहायता से कृषि वैज्ञानिक अब जीन अनुक्रम में विशिष्ट लक्षणों को समाविष्ट कराने हेतु जीनोम को एडिट/संपादित कर सकते हैं।

भारतीय गेहूँ एवं जौ अनुसंधान संस्थान (IIWBR) 

  • परिचय:
    • IIWBR की स्थापना वर्ष 2014 में गेहूँ अनुसंधान निदेशालय के उन्नयन के बाद की गई थी।
    • यह हरियाणा के करनाल में स्थित एक प्रमुख ICAR-संबद्ध संस्थान है।
    • यह गेहूँ और जौ में अनुसंधान और विकास के लिये एक राष्ट्रीय केंद्र के रूप में कार्य करता है।
  • मुख्य लक्ष्य:
    • IIWBR वैज्ञानिक नवाचार और क्षेत्र-स्तरीय हस्तक्षेप के माध्यम से गेहूँ और जौ की उत्पादकता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • संस्थान का उद्देश्य राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए भारत को गेहूँ उत्पादन में वैश्विक अग्रणी बनाना है।
  • प्रमुख गतिविधियाँ:
    • यह गेहूँ और जौ पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना का समन्वय करता है।
    • इसकी प्रमुख गतिविधियों में शामिल हैं:
      • प्रजनन और आनुवंशिकी के माध्यम से विविधता में सुधार।
      • दक्षता और स्थिरता बढ़ाने के लिये संसाधन प्रबंधन।
      • रोगों और कीटों से निपटने के लिये फसल सुरक्षा रणनीतियाँ।

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जटायु संरक्षण प्रजनन केंद्र

चर्चा में क्यों?

विश्व पृथ्वी दिवस पर, अधिकारियों ने पिंजौर (हरियाणा) में जटायु संरक्षण प्रजनन केंद्र (JCBC) से 34 गंभीर रूप से लुप्तप्राय गिद्धों (20 लंबी-चोंच वाले और 14 सफेद-पूंछ वाले) को सफलतापूर्वक महाराष्ट्र में स्थानांतरित करके गिद्ध संरक्षण को एक बड़ा बढ़ावा दिया।

मुख्य बिंदु 

  • वन्य पुनरुत्पादन के लिये स्थल:
  • BNHS और सहयोग की भूमिका:

    • बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) ने हरियाणा और महाराष्ट्र के वन विभागों के सहयोग से इस स्थानांतरण का समन्वय किया।
      • अखिल भारतीय वन्यजीव अनुसंधान संगठन BNHS वर्ष 1883 से प्रकृति संरक्षण को बढ़ावा दे रहा है।
      • इसका मिशन अनुसंधान, शिक्षा और सार्वजनिक जागरूकता पर आधारित कार्रवाई के माध्यम से प्रकृति, मुख्य रूप से जैवविविधता का संरक्षण करना है।
      • इसका लक्ष्य एक व्यापक आधार वाला स्वतंत्र वैज्ञानिक संगठन बनना है, जो संकटग्रस्त प्रजातियों और आवासों के संरक्षण में उत्कृष्टता हासिल कर सके।
  • संरक्षण प्रजनन केंद्रों का राष्ट्रीय नेटवर्क:
    • BNHS ने पूरे भारत में चार जटायु संरक्षण प्रजनन केंद्र स्थापित किये हैं:
      • पिंजौर (हरियाणा)
      • भोपाल (मध्य प्रदेश)

      • राजाभटखावा (पश्चिम बंगाल)

      • रानी, ​​गुवाहाटी (असम)

विश्व पृथ्वी दिवस 

  • यह प्रत्येक वर्ष 22 अप्रैल को विश्व भर में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने, शिक्षित और सक्रिय करने के उद्देश्य के साथ मनाया जाता है।
  • वर्ष 2025 की थीम: "हमारी शक्ति, हमारा ग्रह (Our Power, Our Planet)" - यह सभी से नवीकरणीय ऊर्जा के लिये एकजुट होने और वर्ष 2030 तक स्वच्छ ऊर्जा क्षमता को तीन गुना करने की दिशा में कार्य करने का आह्वान करता है।
  • पृथ्वी दिवस पहली बार कैलिफोर्निया में तेल रिसाव के विनाशकारी परिणामों के बारे में सीनेटर गेलोर्ड नेल्सन के अवलोकन के बाद, वर्ष 1970 में मनाया गया।
  • नेल्सन ने एक आंदोलन शुरू किया जिसमे पर्यावरण सुधारों के लिये 20 मिलियन से अधिक अमेरिकन लोग शामिल हुये। 
  • इस निर्णायक दिन के कारण अमेरिका में महत्त्वपूर्ण पर्यावरण संबंधी कानून पारित हुए, जिनमें पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (EPA) का गठन भी शामिल था।
  • वर्ष 1990 में पृथ्वी दिवस में 141 देशों के लगभग 200 मिलियन लोगों ने भाग लिया, जिससे यह एक विश्वव्यापी आयोजन बन गया।
  • महत्त्व: यह विश्व भर में हरित पहलों का जश्न मनाने और पर्यावरण संरक्षण की दिशा में चल रहे प्रयासों को उजागर करने का अवसर भी प्रदान करता है।

जटायु संरक्षण प्रजनन केंद्र

  • परिचय:
    • यह हरियाणा वन विभाग और बॉम्बे नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी (BNHS) की संयुक्त परियोजना है।
    • इसका उद्देश्य तीन गंभीर रूप से लुप्तप्राय गिद्ध प्रजातियों - सफेद पीठ वाले, लंबी चोंच वाले और पतली चोंच वाले - को बचाना है।
    • इस केंद्र की स्थापना सितंबर 2001 में गिद्ध देखभाल केंद्र (VCC) के रूप में की गई थी।
    • VCC को VCBC (बाद में जटायु संरक्षण प्रजनन केंद्र- JCBC) में उन्नत किया गया।
  • स्थिति:
    • JCBC हरियाणा के पिंजौर से लगभग 8 किमी दूर, बीर शिकारगाह वन्यजीव अभयारण्य के पास जोधपुर गाँव में स्थित है।
    • यह हरियाणा वन विभाग द्वारा उपलब्ध कराई गई 5 एकड़ भूमि पर फैला हुआ है।
    • JCBC में वर्तमान में 160 गिद्ध हैं, जिनमें शामिल हैं:
    • यह विश्व स्तर पर एक स्थान पर इन तीन जिप्स प्रजातियों का सबसे बड़ा संग्रह है।


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