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राजस्थान में सहकारी समितियाँ
चर्चा में क्यों?
जाम्बिया के चार सदस्यीय प्रतिनिधिमंडल ने राजस्थान में सहकारी बैंकों और समितियों की कार्यप्रणाली का अवलोकन किया।
मुख्य बिंदु
- अंतरराष्ट्रीय सहकारिता वर्ष-2025 के तहत, विभिन्न देशों के प्रतिनिधिमंडल अन्य देशों का दौरा कर उनकी सहकारी व्यवस्थाओं का अध्ययन कर रहे हैं।
- प्रतिनिधिमंडल ने जयपुर केंद्रीय सहकारी बैंक, अपेक्स बैंक, बीलवा ग्राम सेवा सहकारी समिति एवं बड़ का बालाजी प्राथमिक दुग्ध उत्पादक सहकारी समिति का दौरा कर सहकारी योजनाओं को सफल बनाने के लिये किये गए प्रयासों को समझा।
- प्रतिनिधिमंडल को सहकारी आंदोलन की प्रभावशीलता और राज्य में सहकारी संस्थाओं की भूमिका के बारे में जानकारी दी गई।
- राजस्थान के प्राथमिक सहकारी भूमि विकास बैंक द्वारा चलाए जा रहे गैर-कृषि क्षेत्र के बकाया ऋणों की वसूली अभियान पर भी चर्चा हुई।
- इस अवसर पर जाम्बिया के प्रतिनिधियों ने भी अपने देश की सहकारी नीतियों और कार्यक्रमों की जानकारी साझा की, जिससे दोनों देशों के बीच सहकारी क्षेत्र में अनुभवों का आदान-प्रदान संभव हुआ।
सहकारी समितियांँ:
- परिचय:
- सहकारिताएंँ जन-केंद्रित उद्यम हैं जिनका स्वामित्व, नियंत्रण और संचालन उनके सदस्यों द्वारा उनकी सामान्य आर्थिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक आवश्यकताओं तथा आकांक्षाओं को पूरा करने के लिये किया जाता है।
- सहकारी संस्थाएँ लोगों को लोकतांत्रिक और समान तरीके से एक साथ लाती है। सदस्य चाहे ग्राहक हों, कर्मचारी हों, उपयोगकर्त्ता हों या निवासी हों, सहकारी समितियों का प्रबंधन लोकतांत्रिक तरीके से 'एक सदस्य, एक वोट' नियम द्वारा किया जाता है।
- उद्यम में किये गए पूंजी निवेश की परवाह किये बिना सदस्यों को समान मतदान अधिकार प्राप्त है।
- भारतीय परिप्रेक्ष्य:
- वर्तमान में भारत में 90 प्रतिशत गांँवों को कवर करने वाली 8.5 लाख से ज़्यादा सहकारी समितियों के नेटवर्क के साथ ये ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में समावेशी विकास के उद्देश्य से सामाजिक-आर्थिक क्षेत्र के विकास के लिये महत्त्वपूर्ण संस्थान हैं।
- संवैधानिक प्रावधान:
- 97वें संविधान संशोधन अधिनियम, 2011 के द्वारा सहकारी समितियों को संवैधानिक दर्जा दिया गया

