प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन में वृद्धि | हरियाणा | 13 May 2024
चर्चा में क्यों?
हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की वार्षिक रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2023 में प्लास्टिक अपशिष्ट उत्पादन में 1,79,406.5 टन की वृद्धि हुई है, जो वर्ष 2022 के 1,29,866.7 टन से 38% अधिक है। इस अपशिष्ट का लगभग 14% लैंडफिल में निपटान किया गया था।
मुख्य बिंदु:
- रिपोर्ट में राज्य में प्लास्टिक की खपत में वृद्धि पर प्रकाश डाला गया है, जिससे संभवतः अधिक प्लास्टिक अपशिष्ट का उत्पादन हो रहा है।
- यह विकास चिंताजनक है क्योंकि यह अपशिष्ट प्रबंधन के लिये बाधाएँ उत्पन्न करता है और इसके स्थायी पर्यावरणीय परिणाम हो सकते हैं।
- विशेषज्ञों का सुझाव है कि इस समस्या के समाधान में प्लास्टिक के उपयोग में कटौती करना और पर्यावरण-अनुकूल विकल्पों को अपनाने को प्रोत्साहित करना शामिल है।
- लैंडफिल में प्लास्टिक अपशिष्ट को जलाना एक पर्यावरणीय मुद्दा बन गया है क्योंकि खराब प्रबंधन वाली जगहों के कारण सामान्यतः आग लग सकती है और वहाँ ज़हरीले पार्टिकुलेट मैटर (PM) व गैसीय उत्सर्जन हो सकता है।
- इसलिये, निवारक उपाय के रूप में लैंडफिल में प्लास्टिक के निपटान को कम करने की सलाह दी जाती है।
- शहरी स्थानीय निकाय (ULB) विभाग ने प्लास्टिक अपशिष्ट के प्रबंधन के लिये एक रणनीति तैयार की है, जिसे केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) को सौंप दिया गया है।
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (Central Pollution Control Board- CPCB)
- केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का गठन एक सांविधिक संगठन के रूप में जल (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1974 के अंतर्गत सितंबर 1974 को किया गया।
- इसके पश्चात् केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को वायु (प्रदूषण निवारण एवं नियंत्रण) अधिनियम, 1981 के अंतर्गत शक्तियाँ व कार्य सौंपे गए।
- यह एक क्षेत्रीय गठन के रूप में कार्य करता है और पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के प्रावधानों के तहत पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को तकनीकी सेवाएँ भी प्रदान करता है।
हरियाणा राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड
- भारत सरकार के जल अधिनियम, 1974 के कानून के बाद जल की संपूर्णता को संरक्षित करने और जल प्रदूषण को रोकने के लिये वर्ष 1974 में हरियाणा सरकार द्वारा एक सांविधिक संगठन के रूप में इसका गठन किया गया था।
पार्टिकुलेट मैटर (PM)
- पार्टिकुलेट मैटर या PM, हवा में निलंबित बेहद छोटे कणों और तरल बूंदों के एक जटिल मिश्रण को संदर्भित करता है। ये कण कई आकारों में आते हैं और सैकड़ों विभिन्न यौगिकों से बने हो सकते हैं।
- PM 10 (मोटे कण) - 10 माइक्रोमीटर या उससे कम व्यास वाले कण।
- PM 2.5 (सूक्ष्म कण) - 2.5 माइक्रोमीटर या उससे कम व्यास वाले कण।
चीन सीमा पर सड़कों पर पैसा खर्च करेगी सरकार | उत्तराखंड | 13 May 2024
चर्चा में क्यों?
सूत्रों के मुताबिक, सरकार वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम (VVP) के तहत उत्तराखंड और सिक्किम में चीन सीमा पर बनने वाली प्रत्येक किलोमीटर सड़क के लिये 2 करोड़ रुपए से अधिक खर्च कर सकती है।
मुख्य बिंदु:
- केंद्रीय गृह मंत्रालय (MHA) ने चीन सीमा से लगे क्षेत्रों में कनेक्टिविटी में सुधार के लिये अरुणाचल प्रदेश, उत्तराखंड और सिक्किम में VVP के तहत 113 सड़कों को मंज़ूरी दी है।
- अरुणाचल प्रदेश में जहाँ 105 सड़कों को मंज़ूरी दी गई है, वहीं उत्तराखंड में पाँच और सिक्किम में तीन सड़कों को भी मंज़ूरी दी गई है।
- गृह मंत्रालय के मंज़ूरी-पत्र के अनुसार, उत्तराखंड के पिथौरागढ ज़िले में 119 करोड़ रुपए की लागत से 43.96 किमी. सड़कें बनाई जानी हैं।
- प्रत्येक किलोमीटर सड़क पर 2.7 करोड़ रुपए की लागत आने की उम्मीद है। एक बार निर्माण के बाद, "परिसंपत्ति" का रखरखाव राज्य सरकार को करना होगा।
- सिक्किम में, VVP के तहत उत्तरी सिक्किम में चुंगथांग और मंगन ब्लॉक में 96 करोड़ रुपए की लागत से लगभग 18.73 किलोमीटर लंबी सड़कों एवं 350 मीटर स्टील पुलों को मंज़ूरी दी गई है।
- प्रत्येक किलोमीटर सड़क निर्माण पर 2.4 करोड़ रुपए की लागत आएगी।
वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम
- यह एक केंद्रीय वित्तपोषित कार्यक्रम है जिसकी घोषणा केंद्रीय बजट वर्ष 2022-23 (2025-26 तक) में उत्तर में सीमावर्ती गाँवों को विकसित करने और ऐसे सीमावर्ती गाँवों के निवासियों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लक्ष्य के साथ की गई।
- इसमें हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, सिक्किम और लद्दाख के सीमावर्ती क्षेत्र शामिल होंगे।
- इसके तहत 2,963 गाँवों को कवर किया जाएगा, जिनमें से 663 को पहले चरण में कवर किये जाएंगे
- ग्राम पंचायतों की सहायता से ज़िला प्रशासन द्वारा वाइब्रेंट विलेज एक्शन प्लान बनाए जाएंगे
- वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम की वजह से ‘सीमा क्षेत्र विकास कार्यक्रम’ के साथ ओवरलैप की स्थिति उत्पन्न नहीं होगी।
स्थानांतरण के लिये सरकार को उत्तराखंड उच्च न्यायालय का निर्देश | उत्तराखंड | 13 May 2024
चर्चा में क्यों?
उत्तराखंड उच्च न्यायालय ने उत्तराखंड राज्य सरकार को एक महीने के भीतर अपने परिचालन को नैनीताल से बाहर ले जाने अर्थात् स्थानांतरण के लिये एक नई साइट का पता लगाने का निर्देश दिया है, यह कहते हुए कि यह कदम जनता के सर्वोत्तम हित में है।
मुख्य बिंदु:
- न्यायालय ने रजिस्ट्रार जनरल को इस मुद्दे पर अधिवक्ताओं और आम जनता से सुझाव लेने के लिये एक पोर्टल बनाने का भी निर्देश दिया।
- उच्च न्यायालय को हलद्वानी के गौलापार में स्थानांतरित करने के राज्य सरकार के पूर्व प्रस्ताव पर, उच्च न्यायालय ने कहा कि इस उद्देश्य के लिये निर्धारित भूमि में 75% वन क्षेत्र था और क्षेत्र में निर्माण से वनों की कटाई होगी।
- उच्च न्यायालय ने इसके स्थानांतरण और सुविधाओं के लिये आवश्यक भूमि के प्रकार हेतु कुछ सिफारिशें भी कीं, जिनमें न्यायाधीशों, न्यायिक अधिकारियों, कर्मचारियों तथा न्यायालय कक्षों के लिये उचित आवास शामिल हैं।
- परिसर को स्थानांतरित करने के उच्च न्यायालय के निर्णय का बार एसोसिएशन ने काफी विरोध किया है।
भारतीय विधिज्ञ
- परिचय
- भारतीय विधिज्ञ परिषद भारतीय बार को विनियमित करने और प्रतिनिधित्व करने के लिये अधिवक्ता अधिनियम, 1961 के तहत संसद द्वारा बनाई गई एक संविधिक निकाय है।
- विनियामक कार्य:
- अधिवक्ताओं के लिये पेशेवर आचरण और शिष्टाचार के मानक निर्धारित करना।
- अनुशासनात्मक कार्रवाइयों के लिये प्रक्रियाएँ स्थापित करना।
- भारत में विधिक शिक्षा के लिये मानक निर्धारित करना और योग्य कानून डिग्री को मान्यता अन्य दयित्व:
- अधिवक्ताओं के अधिकारों, विशेषाधिकारों और हितों की रक्षा करना।
- चितों के लिये कानूनी सहायता का आयोजन करना।
- विधिज्ञ परिषद के सदस्यों के लिये चुनाव आयोजित करना।
- किसी भी मामले से निपटना जो राज्य विधिज्ञ परिषद द्वारा उसे भेजा जा सकता है।
SAIL-भिलाई द्वारा छत्तीसगढ़ का पहला फ्लोटिंग सोलर प्लांट की स्थापना | छत्तीसगढ़ | 13 May 2024
चर्चा में क्यों?
राज्य संचालित स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड (SAIL) की छत्तीसगढ़ स्थित शाखा, भिलाई स्टील प्लांट (BSP), कार्बन फुटप्रिंट में सुधार के लिये अपने मरोदा-1 जलाशय में राज्य की पहली 15-मेगावाट (MW) फ्लोटिंग सौर परियोजना स्थापित करेगी।
- इस्पात प्रमुख कंपनी कार्बन उत्सर्जन को कम करने, ऊर्जा संरक्षण और नवीकरणीय ऊर्जा को बढ़ावा देने के लिये विभिन्न परियोजनाएँ चला रही है।
मुख्य बिंदु:
- यह परियोजना NTPC-SAIL पावर सप्लाई कंपनी लिमिटेड (NSPCL) के माध्यम से कार्यान्वित की जा रही है, जो नेशनल थर्मल पावर कॉर्पोरेशन (NTPC) और SAIL की एक 50:50 साझेदारी वाली संयुक्त उद्यम कंपनी है। सोलर प्लांट दुर्ग ज़िले में स्थापित किया जाएगा।
- मरोदा जलाशय का क्षेत्रफल 2.1 वर्ग किलोमीटर है और इसकी जल भंडारण क्षमता 19 घन मिलीमीटर (MM3) है।
- मरोदा-I जलाशय में संग्रहीत जल न केवल संयंत्र को बल्कि टाउनशिप को भी जल आपूर्ति करता है।
- इस संयंत्र से अनुमानित कुल हरित विद्युत ऊर्जा उत्पादन लगभग 34.26 मिलियन यूनिट सालाना होने की संभावना है।
- इस परियोजना से BSP के CO2 उत्सर्जन में सालाना 28,330 टन की कमी आने की उम्मीद है।
कार्बन फुटप्रिंट
- विश्व स्वास्थ्य संगठन (World Health Organization- WHO) के अनुसार, कार्बन फुटप्रिंट जीवाश्म ईंधन के दहन से उत्पन्न कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) की मात्रा पर लोगों की गतिविधियों के प्रभाव का एक माप है और इसे कई टन में उत्पादित CO2 उत्सर्जन के भार के रूप में व्यक्त किया जाता है।
- इसे आमतौर पर प्रतिवर्ष उत्सर्जित होने वाले कई टन CO2 के रूप में एक संख्या में (जिसे मीथेन, नाइट्रस ऑक्साइड और अन्य ग्रीनहाउस गैसों सहित कई टन CO2-समतुल्य गैसों द्वारा पूरक किया जा सकता है) मापा जाता है।
- यह एक व्यापक उपाय हो सकता है या किसी व्यक्ति, परिवार, घटना, संगठन या यहाँ तक कि पूरे देश के कार्यों पर लागू किया जा सकता है।
केंद्र की स्वीकृति मिलते ही मध्य प्रदेश में CAA लागू | मध्य प्रदेश | 13 May 2024
चर्चा में क्यों?
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के अनुसार, केंद्र सरकार द्वारा स्वीकृति मिलते ही राज्य में नागरिकता संशोधन कानून (CAA), 2019 लागू किया जाएगा।
मुख्य बिंदु:
- मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि केंद्र और मध्य प्रदेश दोनों सरकारों की नीतियाँ पूर्णतः मेल खाती हैं। उन्होंने केंद्र के निर्देश मिलते ही CAA को लागू करने के लिये अपनी पूरी तत्परता पर ज़ोर दिया।
- मध्य प्रदेश लोकसभा चुनाव- 2024 में आठ सीटों के लिये चौथे चरण का मतदान 13 मई 2024 को होगा।
- मध्य प्रदेश में देवास, उज्जैन, मंदसौर, रतलाम, धार, इंदौर, खरगोन, खंडवा के लिये मतदान होगा।
नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA), 2019
- CAA पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से छह गैर-दस्तावेज़ गैर-मुस्लिम समुदायों (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई) को धर्म के आधार पर नागरिकता प्रदान करता है, जिन्होंने 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पूर्व भारत में प्रवेश किया था।
- यह छह समुदायों के सदस्यों को विदेशियों विषयक अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट अधिनियम, 1920 के तहत किसी भी आपराधिक मामले से छूट देता है।
- दोनों अधिनियम अवैध रूप से देश में प्रवेश करने और वीज़ा वैधता समाप्त होने व परमिट पर यहाँ रहने के लिये सज़ा निर्दिष्ट करते हैं।