प्रधानमंत्री ने झारखंड में विकास परियोजनाओं का अनावरण किया | झारखंड | 01 Mar 2024
चर्चा में क्यों ?
हाल ही में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने झारखंड में 35,700 करोड़ रुपए की विकास परियोजनाओं का अनावरण किया।
मुख्य बिंदु:
- प्रधानमंत्री ने झारखंड के धनबाद ज़िले के सिंदरी में उर्वरक, रेल, विद्युत और कोयला क्षेत्रों पर केंद्रित कई विकास पहलों की शुरुआत की, जिनकी कुल लागत 35,700 करोड़ रुपए है।
- 8900 करोड़ रुपए की लागत से विकसित हिंदुस्तान उर्वरक एवं रसायन लिमिटेड (HURL) सिंदरी उर्वरक संयंत्र का लक्ष्य स्वदेशी यूरिया उत्पादन को बढ़ावा देना है, जिससे देश भर के किसानों को लाभ होगा।
- गोरखपुर और रामागुंडम में इसी तरह के प्रयासों के बाद यह भारत में पुनसंचालित होने वाला तीसरा उर्वरक संयंत्र है।
- चतरा में करीब 7500 करोड़ रुपए की लागत से विकसित नॉर्थ कर्णपुरा सुपर थर्मल पावर प्रोजेक्ट (STPP) की यूनिट 1 का भी उद्घाटन किया जा रहा है।
- इस परियोजना से राज्य में विद्युत आपूर्ति बढ़ने, रोज़गार उत्पन्न होने और विकास को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
- झारखंड में 17,600 करोड़ रुपए से अधिक की कई रेलवे परियोजनाओं का उद्घाटन किया गया, जिसमें रेलवे लाइनों का विस्तार और सोन नगर-अंडाल लाइन तथा मोहनपुर-हंसडीहा लाइन जैसे नए मार्ग शामिल हैं।
- इन परियोजनाओं से क्षेत्र में रेल सेवाओं में वृद्धि और सामाजिक-आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
- कार्यक्रम के दौरान तीन ट्रेनों को हरी झंडी दिखाई जानी है, जिनमें देवघर-डिब्रूगढ़ ट्रेन सेवा, टाटानगर और बादामपहाड़ के बीच मेमू (मेनलाइन इलेक्ट्रिक मल्टीपल यूनिट) ट्रेन सेवा (दैनिक) एवं शिवपुर स्टेशन से लंबी दूरी की मालगाड़ी शामिल है।
उत्तर प्रदेश: तहसील स्तर पर अग्निशमन केंद्र रखने वाला पहला राज्य | उत्तर प्रदेश | 01 Mar 2024
चर्चा में क्यों?
एक कार्यक्रम में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने घोषणा की कि उत्तर प्रदेश जल्द ही तहसील स्तर पर फायर स्टेशन बनाने वाला देश का पहला राज्य बन जाएगा।
मुख्य बिंदु:
- इस कार्यक्रम के दौरान CM ने वर्चुअली 38 फायर स्टेशनों का उद्घाटन और शिलान्यास किया।
- राज्य में यूपी फायर एंड इमरजेंसी सर्विसेज की स्थापना वर्ष 1944 में हुई थी।
- वर्ष 2017 तक राज्य में केवल 288 फायर स्टेशन स्थापित थे, जबकि पिछले 7 वर्षों में 70 से अधिक नए फायर स्टेशन स्थापित किये गए हैं।
- CM ने 35 अग्निशमन वाहनों को भी हरी झंडी दिखाई।
- उन्होंने जान-माल की हानि को कम करने हेतु फायर टेंडरों के लिये प्रतिक्रिया समय को कम करने को प्राथमिकता देने की आवश्यकता पर ज़ोर दिया।
- सरकार ने राज्य में राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF) की भी स्थापना की।
राज्य आपदा प्रतिक्रिया बल (SDRF)
- यह आपदा प्रबंधन अधिनियम, 2005 की धारा 48 (1) (A) के तहत गठित, अधिसूचित आपदाओं की प्रतिक्रिया के लिये राज्य सरकारों के पास उपलब्ध प्राथमिक निधि है।
- केंद्र सरकार सामान्य श्रेणी के राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों के लिये SDRF आवंटन का 75% और विशेष श्रेणी के राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों (पूर्वोत्तर राज्यों, सिक्किम, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, जम्मू और कश्मीर) के लिये 90% का योगदान करती है।
- वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार वार्षिक केंद्रीय योगदान दो समान किश्तों में जारी किया जाता है।
- SDRF का उपयोग केवल पीड़ितों को तत्काल राहत प्रदान करने के व्यय को पूरा करने के लिये किया जाएगा।
- SDRF, उत्तर प्रदेश का मुख्यालय लखनऊ में स्थित है।
सर्वोच्च न्यायालय ने सरकारी पदों के लिये राजस्थान के 2 संतान के नियम को बनाये रखा | राजस्थान | 01 Mar 2024
चर्चा में क्यों?
सर्वोच्च न्यायालय ने सार्वजनिक रोज़गार पाने के लिये राजस्थान सरकार के दो संतान की पात्रता मानदंड को बरकरार रखा है तथा निर्णय सुनाया है कि यह भेदभावपूर्ण नहीं है और ना ही संविधान का उल्लंघन नहीं करता है।
मुख्य बिंदु:
- राजस्थान विभिन्न सेवा (संशोधन) नियम, 2001 उन उम्मीदवारों को सरकारी पद पाने से रोकता है जिनकी दो से अधिक संतान हैं।
- शीर्ष न्यायालय ने दो-संतान के मानदंड को बरकरार रखते हुए पूर्व सैनिक रामजी लाल जाट द्वारा दायर अपील को खारिज कर दिया, जिन्होंने वर्ष 2017 में सेना से सेवानिवृत्ति के बाद 25 मई, 2018 को राजस्थान पुलिस में कांस्टेबल के पद के लिये आवेदन किया था।
- पीठ ने कहा कि राजस्थान पुलिस अधीनस्थ सेवा नियम, 1989 के नियम 24(4), जो कहता है कि “कोई भी उम्मीदवार सेवा में नियुक्ति के लिये पात्र नहीं होगा, जिसके 1 जून 2002 को या उसके बाद दो से अधिक संतान हैं, यह भेदभावपूर्ण नहीं है और संविधान का उल्लंघन नहीं करता।
- न्यायालय ने माना कि वर्गीकरण, जो दो से अधिक जीवित संतान होने पर उम्मीदवारों को अयोग्य घोषित करता है, गैर-भेदभावपूर्ण और संविधान के दायरे से बाहर है, क्योंकि प्रावधान के पीछे का उद्देश्य परिवार नियोजन को बढ़ावा देना था।
उत्तराखंड में मानव-वन्यजीव संघर्ष | उत्तराखंड | 01 Mar 2024
चर्चा में क्यों?
राज्य के वन मंत्री सुबोध उनियाल के अनुसार, वर्ष 2017 से अब तक हिमालयी राज्य में 444 लोग मानव-वन्यजीव संघर्ष में अपनी जान गंवा चुके हैं।
मुख्य बिंदु:
- पीड़ितों को मारने वाले जानवरों में तेंदुए, बाघ, भालू, साँप, हाथियों और तेंदुए शामिल थे।
- पीड़ितों के परिवार के सदस्यों को कुल 21.3 करोड़ रुपए वितरित किये गए हैं।
- पीड़ितों के लिये मुआवज़ा राशि बढ़ाने के अलावा, यह पहली बार है कि राज्य ने मधुमक्खी, हॉर्नेट (तेज़ डंक मारने वाला भिंड), बंदर और लंगूर द्वारा हमला किये गए लोगों को अनुग्रह राशि देने का प्रावधान किया है।
- अनुग्रह भुगतान वह धनराशि है जो नैतिक दायित्व के कारण भुगतान किया जाता है न कि कानूनी दायित्व के कारण।
तेंदुओं की संख्या में वृद्धि | मध्य प्रदेश | 01 Mar 2024
चर्चा में क्यों?
पर्यावरण मंत्रालय द्वारा सार्वजनिक की गई एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में तेंदुओं की संख्या वर्ष 2018 में 12,852 से 8% बढ़कर वर्ष 2022 में 13,874 हो गई।
मुख्य बिंदु:
- तेंदुओं की सबसे अधिक संख्या मध्य प्रदेश (3,907) में दर्ज की गई, केवल तीन अन्य राज्यों महाराष्ट्र (1,985), कर्नाटक (1,879) और तमिलनाडु (1,070) में 1,000 से अधिक जानवरों की सूचना दी गई।
- अवैध शिकार और मानव-पशु संघर्ष के कारण उत्तराखंड में बड़ी बिल्लियों की संख्या में 22% की गिरावट दर्ज की गई।
- अरुणाचल प्रदेश, असम और पश्चिम बंगाल में सामूहिक रूप से 150% की वृद्धि के साथ 349 पशु हो गए।
- भारतीय वन्यजीव संस्थान द्वारा समन्वित विश्लेषण में शिवालिक पहाड़ियों और गंगा के मैदानों में 3.4% की वार्षिक गिरावट दर्ज की गई, जबकि मध्य भारत एवं पूर्वी घाट, पश्चिमी घाट तथा उत्तर पूर्व की पहाड़ियाँ व ब्रह्मपुत्र बाढ़ के मैदानों में क्रमशः 1.5%, 1% और 1.3% प्रति वर्ष की वृद्धि दर्ज की गई।
- रामनगर वन प्रभाग (उत्तराखंड) में तेंदुओं की संख्या में गिरावट आई है, जहाँ पिछले चार वर्षों में बाघों की संख्या में बहुत तेज़ी से वृद्धि देखी गई है।
- पूर्वोत्तर राज्यों में तेंदुए की आबादी में उल्लेखनीय वृद्धि एक "नमूना विरूपण साक्ष्य" के कारण हुई, जो दर्शाता है कि पिछले वर्षों में कुछ व्यवस्थित सर्वेक्षण और कम कैमरे लगाए गए थे।
भारतीय वन्यजीव संस्थान
- भारतीय वन्यजीव संस्थान, केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वतंत्र निकाय है।
- इसका गठन वर्ष 1982 में किया गया था
- यह देहरादून, उत्तराखंड में स्थित है।
- यह वन्यजीव अनुसंधान और प्रबंधन में प्रशिक्षण कार्यक्रम, शैक्षणिक पाठ्यक्रम तथा सलाह प्रदान करता है।