बिहार
विक्रमशिला विश्वविद्यालय
- 27 Mar 2025
- 7 min read
चर्चा में क्यों?
राजगीर में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना के एक दशक बाद, बिहार सरकार ने शिक्षा के एक अन्य प्राचीन केंद्र - विक्रमशिला विश्वविद्यालय का पुनरुद्धार करने के प्रयास तेज कर दिये हैं।
- दिसंबर 2024 से, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) विक्रमशिला स्थल को एक प्रमुख पर्यटन गंतव्य के रूप में विकसित करने के लिये कार्यरत है।
प्रमुख बिंदु
- परियोजना के बारे में:
- केंद्र सरकार ने वर्ष 2015 में विक्रमशिला विश्वविद्यालय परियोजना को स्वीकृति दी थी और इसके लिये 500 करोड़ रुपए की राशि स्वीकृत की थी, लेकिन बिहार सरकार द्वारा भूमि चिन्हित करने में विलंब के कारण प्रगति बाधित हो गई।
- 24 फरवरी 2025 को, प्रधानमंत्री ने विक्रमशिला का पुनरुद्धार करने की सरकार की प्रतिबद्धता दोहराई और इसे वैश्विक ज्ञान केंद्र के रूप में इसके ऐतिहासिक महत्त्व पर बल दिया।
- पुरातात्विक संरक्षण और परिरक्षण:
- विक्रमशिला महाविहार के खंडहरों में वनस्पति को साफ करने और वास्तुशिल्प विशेषताओं को प्रकाश में लाने का कार्य किया जा रहा है।
- ASI द्वारा व्यवस्थित संरक्षण प्रयासों के तहत स्थल को ग्रिडों में विभाजित किया गया है।
- विक्रमशिला का केंद्रबिंदु एक क्रूसिफ़ॉर्म (क्रॉस-आकार) ईंट स्तूप है, जो 208 मठ कक्षों से घिरा हुआ है, जहाँ कभी विद्यार्थी- तंत्रयान बौद्ध धर्म का अभ्यास करते थे।
- विक्रमशिला का ऐतिहासिक महत्व:
- विक्रमशिला की स्थापना पाल वंश के राजा धर्मपाल (8वीं शताब्दी के अंत–9वीं शताब्दी की शुरुआत) ने की थी और यह नालंदा विश्वविद्यालय के साथ फलता-फूलता रहा।
- जहाँ नालंदा अपने व्यापक शैक्षणिक विषयों के लिये प्रसिद्ध था, वहीं विक्रमशिला विशेष रूप से तांत्रिक और गूढ़ विद्याओं का केंद्र था।
- धर्मपाल के शासनकाल में, विक्रमशिला प्रमुख संस्थान था, जो नालंदा के कार्यों की भी देखरेख करता था।
- दोनों विश्वविद्यालयों के संरक्षक समान थे और आचार्य नामक विद्वानों का आपस में आदान-प्रदान किया जाता था।
- विक्रमशिला की स्थापना पाल वंश के राजा धर्मपाल (8वीं शताब्दी के अंत–9वीं शताब्दी की शुरुआत) ने की थी और यह नालंदा विश्वविद्यालय के साथ फलता-फूलता रहा।
- शैक्षणिक उत्कृष्टता और वैश्विक प्रभाव:
- विक्रमशिला में धर्मशास्त्र, दर्शन, व्याकरण, तत्वमीमांसा और तर्कशास्त्र सहित कई विषय पढ़ाये जाते थे, लेकिन इसका मुख्य ध्यान तंत्रयान बौद्ध धर्म पर था।
- विक्रमशिला के प्रसिद्ध विद्वानों में से एक अतीश दीपंकर ने तिब्बत में बौद्ध धर्म के प्रसार में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
- यह विश्वविद्यालय लगभग चार शताब्दियों तक फलता-फूलता रहा तथा 13वीं शताब्दी में हिंदू धर्म के पुनरुत्थान, बौद्ध धर्म के पतन और बख्तियार खिलजी के आक्रमणों के कारण इसका अवसान हो गया।
- आधुनिक पुनरुद्धार प्रयास:
- बिहार सरकार ने अंटिचक गाँव में, जो प्राचीन विक्रमशिला स्थल से 3 किमी दूर स्थित है, भूमि अधिग्रहण के लिये 87.99 करोड़ रुपए की मंजूरी दी है।
- भागलपुर जिला प्रशासन ने नये केंद्रीय विश्वविद्यालय के लिये 202.14 एकड़ भूमि चिन्हित की है, जिसमें से 27 एकड़ भूमि राज्य सरकार की है, लेकिन इस पर स्थानीय परिवारों का कब्ज़ा है।
नालंदा विश्वविद्यालय
- गुप्त वंश के सम्राट कुमारगुप्त (शक्रादित्य) ने 427 ईस्वी में बिहार में नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। यह 5वीं शताब्दी की शुरुआत में स्थापित हुआ और 12वीं शताब्दी तक 600 वर्षों तक समृद्ध रहा।
- हर्षवर्धन और पाल शासकों के शासनकाल में यह अत्यधिक प्रसिद्ध हुआ।
- सम्राट हर्षवर्धन (606-647 ईस्वी) के शासनकाल में, प्रसिद्ध चीनी विद्वान ह्वेनसांग या मोक्षदेव यहाँ अध्ययन करने आये और लगभग 5 वर्षों तक अध्ययन किया।
- ये नालंदा से कई धर्मग्रंथ भी अपने साथ ले गए, जिनका बाद में चीनी भाषा में अनुवाद किया गया।
- 670 ईस्वी में, एक अन्य चीनी यात्री इत्सिंग नालंदा आया। उसने उल्लेख किया कि नालंदा में 2,000 विद्यार्थी रहते थे और इसे 200 गाँवों की आय से सहायता मिलती थी।
- चीन, मंगोलिया, तिब्बत, कोरिया और अन्य एशियाई देशों से बड़ी संख्या में विद्यार्थी अध्ययन करने आए हैं ।
- पुरातात्विक साक्ष्य यह भी दर्शाते हैं कि नालंदा का संबंध इंडोनेशियाई शैलेन्द्र वंश से था, जिनके एक राजा ने यहाँ एक मठ का निर्माण कराया था।
- भगवान बुद्ध एवं भगवान महावीर ने इस क्षेत्र में ध्यान साधना की थी, जिससे इस स्थान की आध्यात्मिक महत्ता और बढ़ गई।
- महान विद्वानों जैसे नागार्जुन, आर्यभट्ट एवं धर्मकीर्ति ने प्राचीन नालंदा की विद्वत परंपराओं में योगदान दिया।
- 1193 ईस्वी में, तुर्क शासक कुतुबुद्दीन ऐबक के सेनापति बख्तियार खिलजी ने इस विश्वविद्यालय को नष्ट कर दिया।
- इसे वर्ष 1812 में स्कॉटिश सर्वेक्षक फ्रांसिस बुकानन-हैमिल्टन द्वारा पुनः खोजा गया और बाद में वर्ष 1861 में सर अलेक्ज़ेंडर कनिंघम ने इसे प्राचीन विश्वविद्यालय के रूप में पहचाना।