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उत्तर प्रदेश

इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाया गया

  • 18 Dec 2024
  • 4 min read

चर्चा में क्यों?

हाल ही में राज्यसभा के 55 सांसदों ने इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव को हटाने के लिये राज्यसभा के सभापति को एक प्रस्ताव सौंपा है।

मुख्य बिंदु

  • न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया:
    • अनुच्छेद 124 और 218 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को राष्ट्रपति द्वारा “सिद्ध दुर्व्यवहार ” या “अक्षमता” के आधार पर हटाया जा सकता है।
    • हटाने के लिये संसद के दोनों सदनों द्वारा प्रस्ताव पारित होना आवश्यक है:
      • सदन की कुल सदस्यता का बहुमत।
      • उसी सत्र में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई का विशेष बहुमत
    • संविधान में “सिद्ध कदाचार” और “अक्षमता” शब्दों को परिभाषित नहीं किया गया है।
      • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा व्याख्या के अनुसार दुर्व्यवहार में जानबूझकर किया गया कदाचार, भ्रष्टाचार, निष्ठा की कमी या नैतिक अधमता शामिल है।
      • अक्षमता से तात्पर्य न्यायिक कार्यों में बाधा डालने वाली शारीरिक या मानसिक स्थिति से है।
  • न्यायाधीश (जाँच) अधिनियम, 1968 के अंतर्गत प्रक्रिया:
  • प्रस्ताव की सूचना:
    • इसके लिये कम से कम 50 राज्यसभा सदस्यों या 100 लोकसभा सदस्यों के हस्ताक्षर आवश्यक हैं।
    • परामर्श के बाद अध्यक्ष या स्पीकर यह निर्णय लेते हैं कि प्रस्ताव को स्वीकार किया जाए या नहीं।
  • गठित जाँच समिति:
    • यदि प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है तो न्यायाधीशों और एक प्रतिष्ठित न्यायविद सहित तीन सदस्यीय समिति गठित की जाती है।
    • समिति आरोपों की जाँच करती है:
      • यदि न्यायाधीश को दोषमुक्त कर दिया जाता है, तो प्रस्ताव निरस्त हो जाता है।
      • यदि दोषी पाया जाता है तो समिति की रिपोर्ट मतदान के लिये संसद में भेजी जाती है।
  • संसदीय अनुमोदन:
    • राष्ट्रपति द्वारा न्यायाधीश को हटाने के लिये दोनों सदनों को विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित करना होगा।
  • वर्तमान मुद्दा:
    • न्यायमूर्ति यादव ने विश्व हिंदू परिषद द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में सांप्रदायिक टिप्पणी करते हुए कहा कि देश को बहुसंख्यकों की इच्छा से चलाया जाना चाहिए।
    • न्यायिक जीवन के मूल्यों की पुनर्स्थापना (1997) में न्यायाधीशों से निष्पक्षता बनाए रखने और अपने पद के अनुरूप कार्य न करने की अपेक्षा की गई है।
    • यद्यपि न्यायाधीश (जाँच) विधेयक, 2006 (जो पारित नहीं हुआ) में कदाचार की परिभाषा में आचार संहिता के उल्लंघन को भी शामिल किया गया था, तथापि इसमें छोटे कदाचार के लिये चेतावनी या निन्दा जैसे छोटे अनुशासनात्मक उपायों का भी प्रस्ताव किया गया था।
  • कठोर निष्कासन प्रक्रिया:
    • यह प्रक्रिया न्यायिक स्वतंत्रता सुनिश्चित करती है, लेकिन अक्सर दोषी होने पर भी न्यायाधीशों के विरुद्ध कोई कार्रवाई नहीं होती।
    • ब्लैकस्टोन का अनुपात सिद्धांत यह है कि निर्दोष को दंडित करने की अपेक्षा दोषी को छोड़ देना बेहतर है तथा यह स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिये न्यायाधीशों को हटाने पर भी लागू होता है।



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