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भारतीय राजनीति

राज्यसभा चुनाव

  • 05 Mar 2024
  • 21 min read

प्रिलिम्स के लिये:

क्रॉस वोटिंग, संविधान का अनुच्छेद 80, विधानसभा, जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951

मेन्स के लिये:

राज्यसभा चुनाव, सरकारी नीतियाँ और विभिन्न क्षेत्रों में विकास के लिये हस्तक्षेप एवं उनके डिजाइन तथा कार्यान्वयन से उत्पन्न होने वाले मुद्दे

स्रोत: द हिंदू 

चर्चा में क्यों?

उत्तर प्रदेश, हिमाचल प्रदेश तथा कर्नाटक जैसे राज्यों में राज्यसभा चुनावों में विभिन्न दलों के विधायकों (विधानसभा सदस्य) द्वारा क्रॉस-वोटिंग की गई। इससे एक बार पुनः चुनाव प्रक्रिया की पवित्रता को लेकर चिंताएँ बढ़ गई हैं।

राज्यसभा चुनाव कैसे होते हैं?

  • पृष्ठभूमि:
    • संविधान के अनुच्छेद 80 के अनुसार, राज्यसभा के लिये प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों को उनकी विधानसभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा अप्रत्यक्ष रूप से चुना जाता है।
    • राज्यसभा हेतु मतदान की आवश्यकता तभी होगी, जब उम्मीदवारों की संख्या रिक्तियों की संख्या से अधिक हो।
    • वर्ष 1998 तक राज्यसभा चुनावों के परिणाम आमतौर पर पहले से तय होते थे, राज्य विधानसभा में बहुमत वाली पार्टियों के पास प्रतिस्पर्द्धा की कमी के चलते प्रायः उनके उम्मीदवार निर्विरोध विजयी होते थे।
      • जून, 1998 में महाराष्ट्र में राज्यसभा चुनाव में क्रॉस-वोटिंग हुई, जिसके परिणामस्वरूप कॉन्ग्रेस पार्टी के उम्मीदवार को हार का सामना करना पड़ा।
  • जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन:
    • विधायकों पर इस तरह की क्रॉस वोटिंग पर लगाम लगाने के लिये वर्ष 2003 में जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 में संशोधन किया गया।
      • अधिनियम की धारा 59 में यह प्रावधान करने के लिये संशोधन किया गया कि राज्यसभा के चुनाव में मतदान खुले मतपत्र के माध्यम से होगा।
    • मतपत्र को अधिकृत अभिकर्त्ता को न दिखाने या किसी अन्य को न दिखाने से वोट अयोग्य हो जाएगा।  
    • अधिकृत अभिकर्त्ता को या किसी अन्य को मतपत्र न दिखाने पर वोट को अयोग्य माना जाएगा।
    • निर्दलीय विधायकों को अपने मतपत्र किसी को दिखाने से रोका गया है।
  • राज्यसभा में चुनाव की प्रक्रिया:
    • सीट आवंटन: राज्यसभा में दिल्ली और पुदुचेरी समेत राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्यों की संख्या 250 है।
      • कुल सदस्यों में से 12 को कला, साहित्य, खेल, विज्ञान आदि क्षेत्रों से प्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति द्वारा नामांकित किया जाता है।
      • राज्यसभा सीटों का वितरण राज्यों में उनकी जनसंख्या के आधार पर किया जाता है। उदाहरण के लिये, उत्तर प्रदेश में 31 राज्यसभा सीटों का कोटा है जबकि गोवा में सिर्फ एक है।
    • अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली: राज्य विधानसभाओं के सदस्य एकल हस्तांतरणीय मत (STV) के माध्यम से आनुपातिक प्रतिनिधित्व की अप्रत्यक्ष चुनाव प्रणाली के माध्यम से राज्यसभा सदस्यों का चयन करते हैं।
      • इस प्रणाली में, प्रत्येक विधायक के मतदान का अधिकार उसके संबंधित निर्वाचन क्षेत्रों की जनसंख्या द्वारा निर्धारित किया जाता है।
    • कोटा: निर्वाचित होने के लिये एक उम्मीदवार को एक विशिष्ट संख्या में वोट प्राप्त करने होंगे जिन्हें कोटा कहा जाता है। कोटा का निर्धारण कुल वैध वोटों को उपलब्ध सीटों की संख्या प्लस एक से विभाजित करके किया जाता है।
      • कई सीटों वाले राज्यों में प्रारंभिक कोटा की गणना विधायकों की संख्या को 100 से गुणा करके की जाती है, क्योंकि प्रत्येक विधायक के वोट का मूल्य 100 होता है।
    • प्राथमिकताएँ एवं अधिशेष:विधायक मतपत्र पर अपना नाम लिखते समय प्रत्येक उम्मीदवार के खिलाफ अपनी प्राथमिकताएँ तय करते हैं। एक संख्या 1 शीर्ष वरीयता (पहला अधिमान्य वोट) को दर्शाती है, एक संख्या 2 अगले को दर्शाती है, इत्यादि।
      • यदि किसी उम्मीदवार को कोटा पूरा करने या उससे अधिक के लिये पर्याप्त प्रथम अधिमान्य वोट प्राप्त होते हैं, तो वे निर्वाचित होते हैं।
      • यदि किसी विजयी उम्मीदवार के पास अधिशेष वोट हैं, तो वे वोट उनकी दूसरी पसंद (नंबर 2 के रूप में चिह्नित) को स्थानांतरित कर दिये जाते हैं। यदि कई उम्मीदवारों के पास अधिशेष है, तो सबसे बड़ा अधिशेष पहले स्थानांतरित किया जाता है।
    • कम वोटों का हटाया जाना: बर्बाद वोटों को रोकने के लिये, यदि अधिशेष हस्तांतरण के बाद आवश्यक संख्या में उम्मीदवार निर्वाचित नहीं होते हैं, तो सबसे कम वोट वाले उम्मीदवार को हटा दिया जाता है और साथ ही उनके अप्रयुक्त मतपत्र शेष उम्मीदवारों के बीच पुनर्वितरित कर दिये जाते हैं।
      • एक "समाप्त कागज़" एक ऐसे मतपत्र को संदर्भित करता है जिसमें आगे बने रहने वाले उम्मीदवारों के लिये कोई अन्य प्राथमिकता दर्ज नहीं की जाती है।
      • अधिशेष वोट स्थानांतरण एवं उन्मूलन की यह प्रक्रिया तब तक जारी रहती है जब तक कि सभी उपलब्ध सीटों को भरने के लिये पर्याप्त उम्मीदवार कोटा तक नहीं पहुँच जाते।

नोट: 

शैलेश मनुभाई परमार बनाम भारत निर्वाचन आयोग मामला, 2018:

  • सर्वोच्च न्यायालय द्वारा राज्यसभा चुनाव में मतदाताओं को उपरोक्त में से कोई नहीं विकल्प देने को अस्वीकृत कर दिया।
  • सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि राज्यसभा चुनाव में नोटा को लागू करना संविधान के अनुच्छेद 80(4) के विपरीत है।
    • अनुच्छेद 80(4) में कहा गया है कि राज्यों की परिषद में प्रत्येक राज्य के प्रतिनिधियों का चुनाव राज्य की विधान सभा के निर्वाचित सदस्यों द्वारा आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली के अनुसार एकल संक्रमणीय वोट के माध्यम से किया जाएगा।
जेएमएम रिश्वतखोरी मामला, 1998:
  • सर्वोच्च न्यायालय को संविधान के अनुच्छेद 105(2) के प्रावधानों की व्याख्या करनी थी, जो सांसदों को संसद या उसकी किसी समिति में अपने भाषण के साथ-साथ वोट के लिये छूट भी प्रदान करता है।
    • वर्ष 1998 के जेएमएम रिश्वत मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने निर्णय दिया कि रिश्वत लेने वाले राजनेताओं पर तब तक भ्रष्टाचार के लिये मुकदमा नहीं चलाया जाएगा जब तक वे नियमानुसार सदन में वोट देना या बोलना जारी रखते हैं।
  • मार्च 2024 में सात न्यायाधीशों की पीठ ने 25 वर्ष पुराने जेएमएम रिश्वत मामले में पाँच न्यायाधीशों की पीठ के फैसले को पलट दिया, जिसमें कहा गया कि संसदीय विशेषाधिकार या छूट उन विधायकों की रक्षा नहीं करेगी जो आपराधिक अभियोजन से संसद या राज्य विधानसभाओं में वोट देने अथवा बोलने के लिये भुगतान स्वीकार करते हैं।
    • विशेषाधिकार एवं उन्मुक्तियाँ देश के सामान्य कानून से छूट का दावा करने के प्रवेश द्वार नहीं हैं

क्या दल-बदल विरोधी कानून राज्यसभा चुनावों पर लागू होता है?

  • दसवीं अनुसूची और "दल-बदल विरोधी" कानून:
    • 52वें संवैधानिक संशोधन अधिनियम, 1985 द्वारा संविधान में दसवीं अनुसूची शामिल की गई जिसमें "दल-बदल विरोधी" कानून से संबंधित प्रावधान शामिल हैं।
    • इसके अनुसार संसद अथवा राज्य विधानमंडल का कोई सदस्य जो स्वेच्छा से अपने राजनीतिक दल की सदस्यता का त्याग कर देता है अथवा अपनी पार्टी के निर्देशों के विरुद्ध मतदान करता है, वह सदन का सदस्य होने के अयोग्य करार दिया जाएगा।
    • मतदान के संबंध में यह निर्देश आमतौर पर पार्टी व्हिप द्वारा जारी किया जाता है।
  • दसवीं अनुसूची की प्रयोज्यता:
    • निर्वाचन आयोग ने जुलाई 2017 में स्पष्ट किया कि दल-बदल विरोधी कानून सहित दसवीं अनुसूची के प्रावधान राज्यसभा चुनावों पर लागू नहीं होते हैं।
    • अतः राजनीतिक दल राज्यसभा चुनाव के लिये अपने सदस्यों को कोई व्हिप जारी नहीं कर सकते हैं और सदस्य संबद्ध चुनावों में पार्टी के निर्देशों का अनुपालन करने हेतु बाध्य नहीं हैं।

क्रॉस वोटिंग क्या है?

  • पृष्ठभूमि:
    • राजेंद्र प्रसाद जैन ने कॉन्ग्रेस विधायकों द्वारा क्रॉस-वोटिंग (रिश्वत के बदले) के माध्यम से बिहार में एक सीट पर जीत दर्ज की किंतु बाद में वर्ष 1967 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा जैन के निर्वाचन को रद्द घोषित कर दिया गया।
  • परिचय:
    • क्रॉस वोटिंग का आशय एक राजनीतिक दल से संबंधित किसी विधायी निकाय के सदस्य, जैसे कि संसद सदस्य अथवा विधानसभा का सदस्य द्वारा निर्वाचन के दौरान अथवा कोई अन्य मतदान प्रक्रिया में अपने दल के उम्मीदवार के अतिरिक्त किसी अन्य उम्मीदवार अथवा पार्टी को मत देने से है।
    • भारत में राज्यसभा चुनावों के संदर्भ में, क्रॉस वोटिंग तब हो सकती है जब किसी राजनीतिक दल के सदस्य अपनी पार्टी द्वारा नामित उम्मीदवारों के स्थान पर अन्य दलों के उम्मीदवारों के लिये वोट करते हैं।
    • पार्टी के उम्मीदवार चयन पर असहमति, अन्य दलों से प्रलोभन अथवा दबाव तथा अन्य दलों के उम्मीदवारों के साथ व्यक्तिगत संबंध अथवा वैचारिक मतभेद जैसे कारणों से क्रॉस वोटिंग की संभावना उत्पन्न होती है।

क्रॉस वोटिंग से संबंधित क्या प्रभाव हैं?

  • नकारात्मक प्रभाव:
    • प्रतिनिधित्व को कमज़ोर करना: क्रॉस-वोटिंग मतदाताओं के प्रतिनिधित्व को कमज़ोर कर सकती है।
      • विधायकों से यह अपेक्षा की जाती है कि वे पार्टी के हितों अथवा अपने निर्वाचन क्षेत्र की इच्छाओं के अनुरूप मतदान करें किंतु ऐसा नहीं करने की दशा में ऐसे उम्मीदवारों के चयन की संभावना है जिनके पास बहुमत का समर्थन नहीं है।
    • भ्रष्टाचार: अमूमन रिश्वतखोरी अथवा अन्य भ्रष्ट आचरण के कारण क्रॉस वोटिंग होती है, जैसा कि राजेंद्र प्रसाद जैन के निर्वाचन के उदाहरण में प्रदर्शित होता है। यह निर्वाचन प्रक्रिया की अखंडता को कमज़ोर करता है और लोकतंत्र में जनता के विश्वास को कम करता है।
      • जैन ने कॉन्ग्रेस विधायकों द्वारा क्रॉस-वोटिंग (रिश्वत के बदले) के माध्यम से बिहार में एक सीट पर जीत दर्ज की जिसे बाद में वर्ष 1967 में सर्वोच्च न्यायालय ने रद्द घोषित कर दिया।
    • पार्टी अनुशासन: क्रॉस वोटिंग पार्टी अनुशासन की कमी को दर्शाती है, जो राजनीतिक दलों के भीतर आंतरिक विभाजन का संकेत देती है। यह पार्टी की एकजुटता और स्थिरता को प्रभावित करता है जिससे पार्टियों के लिये सुसंगत नीति एजेंडा को आगे बढ़ाना मुश्किल हो जाता है।
    • लोकतांत्रिक मूल्य: क्रॉस-वोटिंग दायित्व के लोकतांत्रिक सिद्धांत के विरुद्ध है, जहाँ प्रतिनिधियों से अपने मतदाताओं के हितों और व्यापक जनता की भलाई को बनाए रखने की अपेक्षा की जाती है। यह लोकतांत्रिक सिद्धांतों पर व्यक्तिगत लाभ या दलगत राजनीति को प्राथमिकता देता है।
  • संभावित सकारात्मक प्रभाव:
    • स्वतंत्रता: क्रॉस-वोटिंग निर्वाचित प्रतिनिधियों के बीच स्वतंत्रता के स्तर का संकेत दे सकती है, जिससे उन्हें सख्त पार्टी लाइनों के बदले अपने विवेक या अपने घटकों के हितों के अनुसार मतदान करने की अनुमति मिलती है। जब निर्वाचित प्रतिनिधि पार्टी लाइनों के खिलाफ मतदान करते हैं और इसके बदले अपने विवेक या मतदाताओं के हितों का पालन करते हैं, तो इसे उनकी बढ़ती स्वतंत्रता के स्तर का संकेत कहा जा सकता है।
      • इससे अधिक सूक्ष्म निर्णय लेने और प्रतिनिधित्व को बढ़ावा मिल सकता है।
    • नियंत्रण और संतुलन: क्रॉस-वोटिंग, यदि राय या विचारधारा में वास्तविक मतभेदों से प्रेरित हो तो यह विधायी निकाय के भीतर किसी एक पार्टी या गुट के प्रभुत्व पर नियंत्रण के रूप में कार्य कर सकती है।  
      • यह शक्ति के संकेंद्रण को रोक सकता है और दृष्टिकोण के अधिक संतुलन एवं विविधता को बढ़ावा दे सकता है।
    • दायित्व: कुछ मामलों में, क्रॉस-वोटिंग पार्टी नेतृत्व या नीतियों के प्रति असंतोष को दर्शा सकती है, जिससे पार्टियों को आत्मनिरीक्षण करने और आंतरिक शिकायतों का समाधान करने के लिये बाध्य होना पड़ता है। इससे अंततः मतदाताओं के प्रति अधिक जवाबदेही और उत्तरदायित्व उत्पन्न हो सकता है।

दसवीं अनुसूची और राज्यसभा चुनाव से संबंधित सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय क्या हैं?

  • कुलदीप नैयर बनाम भारत संघ, 2006:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने राज्यसभा चुनाव के लिये प्रत्यक्ष मतदान की व्यवस्था को बरकरार रखा।
    • इसने तर्क दिया कि यदि गोपनीयता भ्रष्टाचार का स्रोत बन जाती है, तो पारदर्शिता उसे दूर करने की क्षमता रखती है। 
    • हालाँकि उसी मामले में न्यायालय ने माना कि किसी राजनीतिक दल के निर्वाचित विधायक को अपनी पार्टी के उम्मीदवार के विरुद्ध मतदान करने पर दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता का सामना नहीं करना पड़ेगा।
    • वह अधिक-से-अधिक अपने राजनीतिक दल की ओर से अनुशासनात्मक कार्रवाई की मांग कर सकता है। 
  • रवि एस. नाइक और संजय बांदेकर बनाम भारत संघ, 1994:
    • सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि दसवीं अनुसूची के तहत स्वेच्छा से सदस्यता छोड़ना उस पार्टी से औपचारिक रूप से इस्तीफा देने का पर्याय नहीं है, जिसका वह सदस्य है।
    • सदन के अंदर और बाहर किसी सदस्य के आचरण को देखकर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि क्या वह स्वेच्छा से सदस्यता छोड़ने के योग्य है।

आगे की राह 

  • रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार सहित चुनावी कदाचार से निपटने के लिये सख्त कानून तथा नियम लागू करने की आवश्यकता है।
    • इसमें अपराधियों के लिये दंड बढ़ाना, अभियान के वित्तपोषण में पारदर्शिता बढ़ाना और अनुपालन लागू करने के लिये स्वतंत्र चुनावी निकायों को सशक्त बनाना शामिल हो सकता है।
  • राजनीतिक दलों को अपने सदस्यों के बीच अनुशासन और जवाबदेही को बढ़ावा देने के लिये आंतरिक तंत्र अपनाने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिये।
    • इसमें पार्टी नेतृत्व को मज़बूत करना, अंतर-पार्टी लोकतंत्र को बढ़ावा देना और नैतिक आचरण की संस्कृति को बढ़ावा देना शामिल हो सकता है।
  • चुनावी अखंडता के महत्त्व और क्रॉस-वोटिंग के परिणामों के बारे में मतदाताओं तथा हितधारकों के बीच जागरूकता बढ़ाने की आवश्यकता है। इसमें सार्वजनिक शिक्षा अभियान, चुनावी मुद्दों की मीडिया कवरेज और नागरिकों को अपने प्रतिनिधियों को जवाबदेह ठहराने के लिये सशक्त बनाने की दिशा में नागरिक भागीदारी पहल शामिल हो सकती है।

  UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्न   

प्रश्न. राज्यसभा की लोकसभा के समान शक्तियाँ किस क्षेत्र में हैं: (2020)

नई अखिल भारतीय सेवाएँ गठित करने के विषय में
B. संविधान में संशोधन करने के विषय में
C. सरकार को हटाने के विषय में
D. कटौती प्रस्ताव प्रस्तुत करने के विषय में

उत्तर: (B)


Q. निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा/से कथन सही है/हैं? (2016)

  1. लोकसभा में लंबित कोई विधेयक उसके सत्रावसान पर व्यपगत (लैप्स) हो जाता है।
  2. राज्यसभा में लंबित कोई विधेयक, जिसे लोकसभा ने पारित नहीं किया है, लोकसभा के विघटन पर व्यपगत नहीं होगा।

नीचे दिये गए कूट का प्रयोग कर सही उत्तर चुनिये:

A. केवल 1
B. केवल 2
C. 1 और 2 दोनों
D.न तो 1, न ही 2

उत्तर: (B)


Q. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2015) 

  1. राज्य सभा में धन विधेयक को या तो अस्वीकार करने या संशोधित करने की कोई शक्ति निहित नहीं है।
  2. राज्य सभा अनुदानों की मांगों पर मतदान नहीं कर सकती है।
  3. राज्यसभा में वार्षिक वित्तीय विवरण पर चर्चा नहीं हो सकती।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं?

A. केवल 1
B. केवल 1 और 2
C. केवल 2 और 3
D. 1, 2 और 3

उत्तर: (B)

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