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सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रिश्वतखोरी पर विधायी छूट के संबंध में पुनर्विचार

  • 25 Sep 2023
  • 9 min read

प्रिलिम्स के लिये:

अनुच्छेद 105(2), अनुच्छेद 194(2), संसदीय विशेषाधिकार

मेन्स के लिये:

संसद सदस्यों के विशेषाधिकार

स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस  

चर्चा में क्यों? 

भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने वर्ष 1998 के 5 न्यायाधीशों की संविधान पीठ वाले पी.वी. नरसिम्हा राव मामले को पुनर्विचार के लिये 7 न्यायाधीशों की पीठ को सौंप दिया है।

  • यह मामला संविधान के अनुच्छेद 105(2) और 194(2) की व्याख्या से संबंधित है, जो सदन में किसी भी भाषण या वोट के लिये रिश्वत के आरोप में आपराधिक मुकदमा चलाने के खिलाफ संसद तथा राज्य विधानमंडल के सदस्यों को संसदीय विशेषाधिकार एवं प्रतिरक्षा प्रदान करता है।
  • यह निर्णय एक विधायक के खिलाफ रिश्वतखोरी के आरोप से संबंधित अन्य मामले में लिया गया था, जिसने अनुच्छेद 194(2) के आधार पर आरोप पत्र और आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग की

पी.वी. नरसिम्हा राव बनाम राज्य (1998) मामला: 

  • मामला:
    • पी.वी. नरसिम्हा राव मामला 1993 के झारखंड मुक्ति मोर्चा (JMM) रिश्वतखोरी मामले को संदर्भित करता है। इस मामले में शिबू सोरेन और उनकी पार्टी के कुछ सांसदों पर तत्कालीन पी.वी. नरसिम्हा राव सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव के विरुद्ध वोट करने के लिये रिश्वत लेने का आरोप लगाया गया था
      • अविश्वास प्रस्ताव महत्त्वपूर्ण राजनीतिक घटनाएँ हैं जो आमतौर पर तब घटित होती हैं जब यह धारणा बनती है कि सरकार बहुमत का समर्थन खो रही है।
    • सर्वोच्च न्यायालय ने संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत छूट का हवाला देते हुए JMM सांसदों के खिलाफ मामले को रद्द कर दिया था।
  • संविधान के अनुच्छेद 105(2) और 194(2):
    • अनुच्छेद 105(2):
      • संसद का कोई भी सदस्य प्रतिनिधि सभा या उसकी किसी समिति में कही गई किसी भी बात या दिये गए मत के संबंध में किसी भी न्यायालय में किसी भी कार्यवाही के अधीन नहीं होगा और कोई भी व्यक्ति संसद के किसी भी सदन द्वारा या उसके अधिकार के तहत कोई रिपोर्ट, पेपर, वोट या कार्यवाही के प्रकाशन के संबंध में इस तरह के दायित्व के अधीन नहीं होगा। 
      •  अनुच्छेद 105(2) का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संसद के सदस्य, परिणामों के डर के बिना अपने कर्त्तव्यों का पालन कर सकें
    • अनुच्छेद 194(2):
      • किसी राज्य के विधानमंडल का कोई भी सदस्य विधानमंडल या उसकी किसी समिति में कही गई किसी बात या दिये गए वोट के संबंध में किसी भी न्यायालय में किसी भी कार्यवाही के लिये उत्तरदायी नहीं होगा और विधानमंडल के सदन के अधिकार के तहत कोई भी व्यक्ति किसी भी रिपोर्ट, पेपर, वोट या कार्यवाही के ऐसे प्रकाशन के संबंध में उत्तरदायी नहीं होगा।

सर्वोच्च न्यायालय द्वारा मामले को 7 न्यायाधीशों की पीठ को भेजने का कारण:

  • सर्वोच्च न्यायालय ने इस मामले को 7 न्यायाधीशों की पीठ को भेज दिया क्योंकि इसे पी.वी. नरसिम्हा राव मामले में अपनी पिछली 1998 की संविधान पीठ के निर्णय की सत्यता की पुनः जाँच करने की आवश्यकता महसूस हुई।
    • अनुच्छेद 105(2) और 194(2) का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि संसद तथा राज्य विधानमंडल के सदस्य अपनी अभिव्यक्ति या वोट के परिणामों के डर के बिना, स्वतंत्र रूप से अपने कर्त्तव्यों का निर्वहन कर सकें
      • इसका उद्देश्य विधायकों को देश के सामान्य आपराधिक कानून से छूट के मामले में उच्च विशेषाधिकार नहीं देना है।

संसदीय विशेषाधिकार:

  • परिचय:
    • संसदीय विशेषाधिकार वे विशेष अधिकार, उन्मुक्तियाँ एवं छूट हैं जो संसद के दोनों सदनों, उनकी समितियों और उनके सदस्यों को प्राप्त हैं।
    • इन विशेषाधिकारों के तहत संसद सदस्यों को अपने कर्त्तव्यों के दौरान दिये गए किसी भी बयान या किये गए कार्य के लिये किसी भी नागरिक दायित्व (लेकिन आपराधिक दायित्व नहीं) से छूट दी गई है।
      • विशेषाधिकारों का दावा तभी किया जाता है जब व्यक्ति सदन का सदस्य हो।
      • सदस्यता समाप्त होने पर विशेषाधिकार भी समाप्त हो जाते हैं। 
  • विशेषाधिकार:
    • संसद में वाक्/ अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता:
      • स्वतंत्रता संसद के सदस्य को प्रदान की गई वाक् और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से अलग है।
        • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 105(1) के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी दी गई है। हालाँकि यह स्वतंत्रता संसद की कार्यवाही को नियंत्रित करने वाले कुछ नियमों और आदेशों के अधीन है।
      • सीमाएँ:
        • अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 118 के तहत वर्णित संवैधानिक प्रावधानों के अनुरूप और संसद के नियमों तथा प्रक्रियाओं के अधीन होनी चाहिये।
        • भारतीय संविधान के अनुच्छेद 121 में कहा गया है कि संसद के सदस्य अपने कर्त्तव्यों का पालन करते समय सर्वोच्च न्यायालय अथवा उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों के आचरण पर चर्चा नहीं कर सकते हैं।
          • न्यायाधीश को अपदस्थ करने का अनुरोध करते हेतु राष्ट्रपति के समक्ष प्रस्ताव रखना- एक अपवाद है।
    • गिरफ्तारी से स्वतंत्रता: 
      • संसद की सीमा के भीतर गिरफ्तारी के लिये सदन की अनुमति की आवश्यकता होती है।
      • संसद सदस्यों को सदन के स्थगन से 40 दिन पहले और बाद में या सत्र के दौरान किसी भी नागरिक मामले में गिरफ्तारी से छूट प्राप्त है।
        • यदि संसद के किसी भी सदस्य को हिरासत में लिया जाता है, तो संबंधित प्राधिकारी द्वारा सभापति अथवा अध्यक्ष को गिरफ्तारी के कारण की सूचना देना अनिवार्य है।
    • कार्यवाही के प्रकाशन पर रोक लगाने का अधिकार:
      • संविधान के अनुच्छेद 105(2) के तहत सदन के सदस्य के अधिकार के तहत किसी भी व्यक्ति को सदन की कोई रिपोर्ट, चर्चा आदि प्रकाशित करने के लिये उत्तरदायी नहीं ठहराया जाएगा।
        • राष्ट्रीय महत्त्व के लिये यह आवश्यक है कि संसद में जो घटित हो रहा है, अर्थात् इसकी कार्यवाहियों की जानकारी जनता को होनी चाहिये।
    • गैर-सदस्यों को बाहर रखने का अधिकार:
      • सदन के सदस्यों के पास मेहमानों और अन्य गैर-सदस्यों को कार्यवाही में भाग लेने से प्रतिबंधित करने की शक्ति तथा अधिकार दोनों हैं। सदन में स्वतंत्र और निष्पक्ष बहस सुनिश्चित करने के लिये यह अधिकार काफी महत्त्वपूर्ण है।
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