उत्तर प्रदेश
उच्च न्यायालय के न्यायधीश को हटाना
- 18 Feb 2025
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चर्चा में क्यों?
हाल ही में इलाहाबाद उच्च न्यायालय के न्यायाधीश के विवादित बयान के बाद उन्हे पद से हटाने के लिये 55 सदस्यों की ओर से हस्ताक्षरित महाभियोग प्रस्ताव राज्यसभा में पेश किया गया है।
मुख्य बिंदु
- मुद्दे के बारे में:
- न्यायाधीश ने विगत वर्ष दिसंबर में विश्व हिंदू परिषद के एक कार्यक्रम में कथित तौर पर कुछ सांप्रदायिक टिप्पणियाँ की थीं।
- राज्यसभा में विपक्ष के 55 सांसदों ने न्यायाधीश जाँच अधिनियम, 1968 के तहत न्यायाधीश को उनके कथित कदाचार के लिये न्यायाधीश के पद से हटाने के लिये प्रस्ताव पेश करने हेतु नोटिस दिया है।
- न्यायाधीशों को हटाने की प्रक्रिया:
- अनुच्छेद 124 और 218 के तहत, सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को राष्ट्रपति द्वारा “सिद्ध दुर्व्यवहार ” या “अक्षमता” के आधार पर हटाया जा सकता है।
- हटाने के लिये संसद के दोनों सदनों द्वारा प्रस्ताव पारित होना आवश्यक है:
- सदन की कुल सदस्यता का बहुमत।
- उसी सत्र में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों के कम से कम दो-तिहाई का विशेष बहुमत।
- संविधान में “सिद्ध कदाचार” और “अक्षमता” शब्दों को परिभाषित नहीं किया गया है।
- सर्वोच्च न्यायालय द्वारा व्याख्या के अनुसार दुर्व्यवहार में जानबूझकर किया गया कदाचार, भ्रष्टाचार, निष्ठा की कमी या नैतिक अधमता शामिल है।
- अक्षमता से तात्पर्य न्यायिक कार्यों में बाधा डालने वाली शारीरिक या मानसिक स्थिति से है।
- न्यायाधीश (जाँच) अधिनियम, 1968 के अंतर्गत प्रक्रिया:
- प्रस्ताव की सूचना:
- गठित जाँच समिति:
- यदि प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जाता है तो न्यायाधीशों और एक प्रतिष्ठित न्यायविद सहित तीन सदस्यीय समिति गठित की जाती है।
- समिति आरोपों की जाँच करती है:
- यदि न्यायाधीश को दोषमुक्त कर दिया जाता है, तो प्रस्ताव निरस्त हो जाता है।
- यदि दोषी पाया जाता है तो समिति की रिपोर्ट मतदान के लिये संसद में भेजी जाती है।
- संसदीय अनुमोदन:
- राष्ट्रपति द्वारा न्यायाधीश को हटाने के लिये दोनों सदनों को विशेष बहुमत से प्रस्ताव पारित करना होगा।