वन पारिस्थितिकी तंत्र और ग्रीन GDP | 10 Jan 2025
चर्चा में क्यों?
हाल ही में छत्तीसगढ़ अपने वन पारिस्थितिकी तंत्र को हरित सकल घरेलू उत्पाद (ग्रीन GDP) से जोड़ने वाला भारत का पहला राज्य बन गया है।
यह दृष्टिकोण वनों के आर्थिक और पर्यावरणीय मूल्य पर प्रकाश डालता है तथा जैव विविधता संरक्षण और जलवायु परिवर्तन शमन पर ध्यान केंद्रित करता है।
मुख्य बिंद
- कार्य योजना के लक्ष्य और स्वरूप:
- यह योजना भावी पीढ़ियों के लिये पर्यावरण को संरक्षित करते हुए आर्थिक प्रगति सुनिश्चित करती है।
- जलवायु विनियमन, मृदा संवर्द्धन, जल शोधन और कार्बन अवशोषण जैसे प्रमुख लाभ अब राज्य की आर्थिक योजना में एकीकृत किये जाएँगे।
- छत्तीसगढ़ में वन संसाधनों का महत्त्व:
- छत्तीसगढ़ का 44% भूभाग वनों से आच्छादित है तथा यहाँ के प्राकृतिक संसाधन लाखों लोगों के लिये महत्त्वपूर्ण हैं।
- तेंदू पत्ते, लाख, शहद और औषधीय पौधे जैसे वन उत्पाद ग्रामीण अर्थव्यवस्था को महत्त्वपूर्ण रूप से बढ़ावा देते हैं।
- वन कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित करते हैं, जो जलवायु परिवर्तन से निपटने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- राष्ट्रीय दृष्टिकोण के साथ संरेखण:
- यह पहल प्रधानमंत्री के "विकसित भारत 2047" के दृष्टिकोण के अनुरूप है।
- यह योजना बजट नियोजन और नीति-निर्माण में वनों के आर्थिक और पर्यावरणीय लाभ दोनों पर ज़ोर देती है।
- ISFR रिपोर्ट के निष्कर्ष:
- भारत वन स्थिति रिपोर्ट (ISFR) में छत्तीसगढ़ में वन और वृक्ष आवरण में उल्लेखनीय वृद्धि पर प्रकाश डाला गया है, जिसका श्रेय जैव विविधता संरक्षण और संरक्षण प्रयासों को दिया जाता है।
- सांस्कृतिक और रोज़गार महत्त्व:
- छत्तीसगढ़ के वनों का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्त्व है, जो जनजातीय परंपराओं से गहराई से जुड़े हैं और स्थानीय समुदायों के लिये आध्यात्मिक सांत्वना का स्रोत हैं।
- वन, जंगल सफारी और राष्ट्रीय उद्यानों में कैम्पिंग जैसी पारिस्थितिकी-पर्यटन गतिविधियों के माध्यम से रोज़गार में योगदान करते हैं।
- पारिस्थितिकी तंत्र सेवा मूल्याँकन:
- वनों के आर्थिक मूल्य का आकलन करने के लिये वैज्ञानिक उनकी पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का मूल्यांकन करेंगे, जिनमें शामिल हैं:
- स्वच्छ पवन:
- वृक्षों द्वारा CO2 अवशोषण और उसके ऑक्सीजन में रूपांतरण का परिमाणन करना।
- इसका बाज़ार मूल्य ग्रीन GDP में जोड़ना।
- जल संरक्षण:
- नदियों और झरनों के माध्यम से वनों द्वारा उपलब्ध कराए गए जल के आर्थिक प्रभाव को मापना।
- जैव विविधता:
- पारिस्थितिक संतुलन बनाए रखने और कृषि में सहायता करने में वन जीवों की भूमिका को महत्त्व देना।
हरित सकल घरेलू उत्पाद (ग्रीन GDP)
- पारंपरिक GDP: किसी देश के भीतर उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं के वार्षिक मूल्य का माप, GDP 1944 से वैश्विक मानक रहा है।
- GDP बनाने वाले अर्थशास्त्री साइमन कुज़नेट्स ने कहा कि GDP किसी देश के वास्तविक कल्याण को प्रतिबिंबित नहीं करता है, क्योंकि यह पर्यावरणीय स्वास्थ्य और सामाजिक कल्याण जैसे कारकों की अनदेखी करता है।
- हरित GDP: यह पारंपरिक GDP का संशोधित संस्करण है जो आर्थिक गतिविधियों की पर्यावरणीय लागतों को ध्यान में रखता है।
- यह आर्थिक उत्पादन में प्राकृतिक संसाधनों की कमी, पर्यावरण क्षरण और प्रदूषण जैसे कारकों को शामिल करता है, जिससे किसी देश की वास्तविक संपदा का अधिक व्यापक चित्र प्रस्तुत होता है।
- ग्रीन GDP की आवश्यकता: पारंपरिक GDP स्थिरता, पर्यावरण क्षरण और सामाजिक कल्याण को नजरअंदाज करती है। यह पर्यावरण पर दीर्घकालिक परिणामों पर विचार किये बिना केवल आर्थिक उत्पादन पर ध्यान केंद्रित करती है।
- दूसरी ओर, हरित सकल घरेलू उत्पाद (GDP) यह सुनिश्चित करता है कि आर्थिक विकास सतत् प्रथाओं के अनुरूप हो तथा पर्यावरणीय क्षति और प्राकृतिक संसाधनों की कमी की वास्तविक लागत को प्रतिबिंबित करे।
- सूत्र:
- विश्व बैंक के अनुसार, ग्रीन GDP = NDP (शुद्ध घरेलू उत्पाद) - (प्राकृतिक संसाधन ह्रास की लागत + पारिस्थितिकी तंत्र क्षरण की लागत)।
- जहाँ NDP = GDP - उत्पादित परिसंपत्तियों का मूल्यह्रास।
- प्राकृतिक संसाधन ह्रास की लागत से तात्पर्य प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक उपयोग के कारण होने वाली मूल्य हानि से है।
- पारिस्थितिकी तंत्र क्षरण की लागत से तात्पर्य प्रदूषण और वनों की कटाई जैसी पर्यावरणीय क्षति से होने वाली हानि से है।