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उत्तराखंड

फिशिंग कैट कॉलरिंग परियोजना

  • 30 Dec 2024
  • 6 min read

चर्चा में क्यों?

भारतीय वन्यजीव संस्थान-देहरादून, कोरिंगा वन्यजीव अभयारण्य में भारत की पहली फिशिंग कैट कॉलरिंग परियोजना शुरू करने के लिये तैयार है।

मुख्य बिंदु

  • कोरिंगा वन्यजीव अभयारण्य:
    • 235 वर्ग किलोमीटर में विस्तृत कोरिंगा वन्यजीव अभयारण्य (CWS) भारत का दूसरा सबसे बड़ा मैंग्रोव आवास है।
    • यह लुप्तप्राय फिशिंग कैट का आवास है।
    • गोदावरी नदी के मुहाने पर स्थित यह अभयारण्य आंध्र प्रदेश के काकीनाडा में कोरिंगा नदी और बंगाल की खाड़ी के संगम पर स्थित है।
    • कृष्णा नदी के मुहाने पर स्थित वन क्षेत्र में कृष्णा वन्यजीव अभयारण्य फिशिंग कैट का एक अन्य निवास स्थान है।
  • फिशिंग कैट की जनसंख्या का रुझान:
    • वर्ष 2018 में पहले फिशिंग कैट सर्वेक्षण में 115 व्यक्तियों की आबादी दर्ज की गई थी।
    • पिछले पाँच वर्षों में इनकी संख्या में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है, जो अभयारण्य में तथा इसके आसपास जनसंख्या वृद्धि का संकेत देती है।
  • मैंग्रोव संरक्षण और सामुदायिक भूमिका:
    • स्थानीय समुदाय, पर्यावरण विकास समितियों (EDC) के माध्यम से, मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र का सक्रिय रूप से संरक्षण करते हैं।
    • कुल 420 स्थानीय लोग EDC का हिस्सा हैं, जो वैकल्पिक आजीविका के लिये समुदाय-आधारित पारिस्थितिकी पर्यटन (CBET) का प्रबंधन भी करते हैं।
  • भारत की पहली फिशिंग कैट कॉलरिंग परियोजना:
    • भारतीय वन्यजीव संस्थान, देहरादून, दूसरी फिशिंग कैट जनगणना के भाग के रूप में भारत की पहली फिशिंग कैट कॉलरिंग परियोजना का क्रियान्वयन कर रहा है।
    • इस तीन वर्षीय परियोजना का उद्देश्य प्रजातियों के निवास क्षेत्र, व्यवहार, आवास पारिस्थितिकी, भोजन की आदतों और स्थान उपयोग का अध्ययन करना है।
    • परियोजना में 10 फिशिंग कैट्स को हल्के GIS-सुसज्जित उपकरणों से लैस करने की योजना है।
    • कॉलरिंग का कार्य मार्च या अप्रैल 2025 तक पूरा होने की आशा है।
  • रामसर कन्वेंशन स्थल प्रस्ताव:
    • आंध्र प्रदेश वन विभाग कोरिंगा वन्यजीव अभयारण्य को इसकी समृद्ध जैव विविधता और पारिस्थितिक महत्त्व के कारण रामसर कन्वेंशन साइट का दर्जा दिलाने के लिये प्रयासरत है।

भारतीय वन्यजीव संस्थान

  • यह पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय के अंतर्गत एक स्वायत्त संस्था है।
  • इसकी स्थापना वर्ष 1982 में हुई थी।
  • इसका मुख्यालय देहरादून, उत्तराखंड में है।
  • यह वन्यजीव अनुसंधान और प्रबंधन में प्रशिक्षण कार्यक्रम, शैक्षणिक पाठ्यक्रम और परामर्श प्रदान करता है

फिशिंग कैट

  • वैज्ञानिक नाम: प्रियोनेलुरस विवेरिनस (Prionailurus viverrinus)।
  • विवरण:
    • इसका आकार घरेलू बिल्ली से दोगुना है।
    • फिशिंग कैट रात्रिचर (रात में सक्रिय) होती है और मछली के अलावा मेंढक, क्रस्टेशियन, साँप, पक्षियों का भी शिकार करती है तथा बड़े पशुओं के शवों को भी खाती है।
    • यह प्रजाति पूरे वर्ष प्रजनन करती है।
    • वे अपना अधिकांश जीवन जलाशयों के निकट घनी वनस्पतियों वाले क्षेत्रों में व्यतीत करते हैं और उत्कृष्ट तैराक होते हैं।
  • प्राकृतिक वास:
    • फिशिंग कैट पूर्वी घाट के किनारे बिखरे हुए स्थानों पर पाई जाती हैं। वे मुहाना के बाढ़ के मैदानों, ज्वारीय मैंग्रोव वनों और अंतर्देशीय स्वच्छ जल के आवासों में भी बहुतायत में पाई जाती हैं।
    • पश्चिम बंगाल और बांग्लादेश में सुंदरबन के अलावा, फिशिंग कैट्स ओडिशा में चिल्का लैगून और आसपास की आर्द्रभूमि तथा आंध्र प्रदेश में कोरिंगा और कृष्णा मैंग्रोव में निवास करती हैं।
  • परिसंकटमय:
    • फिशिंग कैट के लिये एक बड़ा खतरा उनके पसंदीदा निवास स्थान, आर्द्रभूमि का विनाश है।
    • झींगा पालन, फिशिंग कैट के मैंग्रोव आवासों के लिये एक और बढ़ता हुआ खतरा है।
    • इस अनोखी बिल्ली को मांस और त्वचा के लिये शिकार का भी खतरा रहता है।
    • जनजातीय शिकारी पूरे वर्ष अनुष्ठानिक शिकार प्रथाओं में लिप्त रहते हैं।
    • कभी-कभी इसकी खाल के लिये भी इसका अवैध शिकार किया जाता है।
  • संरक्षण स्थिति:
  • IUCN रेड लिस्ट: असुरक्षित
  • CITES: परिशिष्ट II
  • भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: अनुसूची I


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