वाराणसी में डॉल्फिन सफारी | 28 Mar 2025

चर्चा में क्यों?

उत्तर प्रदेश सरकार ने वाराणसी में डॉल्फिन सफारी स्थापित करने की घोषणा की।

मुख्य बिंदु

  • सफारी के बारे में:
    • ये सफारी वाराणसी ज़िले के कैथी से ढकवा गाँव के बीच स्थापित किया जाएगा। 
    • इस क्षेत्र में डॉल्फिन की संख्या सबसे अधिक गई जाती है।
    • वाराणसी ज़िले में गंगा नदी में डॉल्फिन संरक्षण के लिये उत्तर प्रदेश सरकार ने 'डॉल्फिन मित्र' नियुक्त किये हैं। 
  • उद्देश्य:
    • इस सफारी का उद्देश्य गंगा नदी में गंगेटिक डॉल्फिन की संख्या में वृद्धि को बढ़ावा देना एवं उनके प्राकृतिक आवास की सुरक्षा सुनिश्चित करना। इसके अतिरिक्त इको-टूरिज्म को प्रोत्साहित करना है।
    • ‘डॉल्फिन मित्र’ एवं वन विभाग के सहयोग से लोगों को डॉल्फिन संरक्षण के महत्त्व के बारे में शिक्षित करना।

गंगा नदी डॉल्फिन:

  • परिचय:

 

  • गंगा नदी डॉल्फिन (Platanista gangetica), जिसे "टाइगर ऑफ द गंगा" के नाम से भी जाना जाता है, की खोज आधिकारिक तौर पर वर्ष 1801 में की गई थी।
  • पर्यावास: गंगा नदी डॉल्फिन मुख्य रूप से भारत, नेपाल और बांग्लादेश की प्रमुख नदी प्रणालियों (गंगा-ब्रह्मपुत्र-मेघना और कर्णफुली-सांगु) में पाई जाती है।
    • हाल के अध्ययन के अनुसार, गंगा नदी बेसिन में इसकी विभिन्न प्रजातियाँ गंगा नदी की मुख्य धारा तत्पश्चात् सहायक नदियों- घाघरा, कोसी, गंडक, चंबल, रूपनारायण और यमुना से दर्ज की गई हैं।
  • विशेषताएँ:
    • गंगा नदी डॉल्फिन केवल मीठे जल स्रोतों में ही रह सकती है और मूलतः दृष्टिहीन होती है। ये अल्ट्रासोनिक ध्वनियाँ उत्सर्जित कर मछली एवं अन्य शिकार को उछालती हैं, जिससे उन्हें अपने दिमाग में एक छवि "देखने" में मदद मिलती है और इस प्रकार अपना शिकार करती हैं। 
    • वे प्रायः अकेले या छोटे समूहों में पाए जाते हैं और आमतौर पर मादा डॉल्फिन तथा शिशु डॉल्फिन एक साथ यात्रा करते हैं।
      • मादाएँ नर से आकार में बड़ी होती हैं और प्रत्येक दो से तीन वर्ष में केवल एक बार शिशु को जन्म देती हैं।
    • स्तनपायी होने के कारण गंगा नदी डॉल्फिन जल में साँस नहीं ले सकती है और उसे प्रत्येक 30-120 सेकंड में सतह पर आना पड़ता है।
      • साँस लेते समय निकलने वाली ध्वनि के कारण इस जीव को लोकप्रिय रूप से 'सोंस' अथवा सुसुक कहा जाता है।
  • महत्त्व:
    • इनका बहुत अधिक महत्त्व है क्योंकि यह संपूर्ण नदी पारिस्थितिकी तंत्र के स्वास्थ्य का एक विश्वसनीय संकेतक है।
      • भारत सरकार ने वर्ष 2009 में इसे राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया।
      • यह असम का राज्य जलीय पशु भी है।
  • सुरक्षा की स्थिति:
  • संबंधित सरकारी पहल: