उत्तर प्रदेश
महाकुंभ का डिजिटल परिवर्तन
- 01 Jan 2025
- 4 min read
चर्चा में क्यों?
उत्तर प्रदेश सरकार महाकुंभ 2025 में तीर्थयात्रियों की संख्या पर नज़र रखने के लिये आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) सक्षम कैमरों, रेडियो फ्रीक्वेंसी आइडेंटिफिकेशन (RFID) रिस्टबैंड और मोबाइल ऐप ट्रैकिंग का उपयोग करने जा रही है।
मुख्य बिंदु
- महाकुंभ 2025 का अवलोकन:
- सरकार को उम्मीद है कि महाकुंभ के दौरान लगभग 450 मिलियन श्रद्धालु आएँगे, जो कि UNESCO द्वारा मान्यता प्राप्त मानवता की अमूर्त सांस्कृतिक विरासत है।
- यह विश्व का सबसे बड़ा शांतिपूर्ण समागम है, जहाँ तीर्थयात्री नदी में पवित्र डुबकी लगाते हैं।
- महाकुंभ का डिजिटल परिवर्तन:
- डिजिटल और AI-आधारित पहल:
- कार्यक्रम की जानकारी के लिये एक समर्पित वेबसाइट और ऐप का शुभारंभ।
- AI-संचालित चैटबॉट 11 भाषाओं में उपलब्ध है।
- लोगों और वाहनों के लिये QR कोड-आधारित पास।
- आगंतुकों के लिये बहुभाषी डिजिटल खोया-पाया केंद्र।
- डिजिटल और AI-आधारित पहल:
- ICT और निगरानी प्रणालियाँ:
- सफाई और टेंट आवास के लिये ICT निगरानी।
- भूमि एवं सुविधा आवंटन और बहुभाषी डिजिटल साइनेज के लिये सॉफ्टवेयर।
- स्वचालित राशन आपूर्ति प्रणाली और ड्रोन आधारित निगरानी एवं आपदा प्रबंधन।
- 530 परियोजनाओं के लिये वास्तविक समय निगरानी सॉफ्टवेयर और एक इन्वेंट्री ट्रैकिंग प्रणाली।
- सभी आयोजन स्थलों को गूगल मानचित्र पर एकीकृत करना।
- बुनियादी ढाँचा और सुविधाएँ:
- भक्तों के लिये घाट
- स्नान की सुविधा के लिये 35 स्थायी घाट और नौ नये घाटों का निर्माण किया गया।
- सभी 44 घाटों पर 12 किलोमीटर क्षेत्र में हवाई पुष्प वर्षा की योजना बनाई गई है।
- उन्नत आगंतुक अनुभव:
- भीड़ प्रबंधन और सुविधा बढ़ाने के लिये बहुभाषी डिजिटल साइनेज और अन्य तकनीकी सहायताएँ।
रेडियो फ्रीक्वेंसी पहचान (RFID)
- RFID एक प्रकार की निष्क्रिय वायरलेस तकनीक है जो किसी वस्तु या व्यक्ति की ट्रैकिंग या मिलान की अनुमति देती है।
- इस प्रणाली के दो मूल भाग हैं: टैग और रीडर।
- रीडर रेडियो तरंगें छोड़ता है और RFID टैग से सिग्नल प्राप्त करता है, जबकि टैग अपनी पहचान और अन्य जानकारी संप्रेषित करने के लिये रेडियो तरंगों का उपयोग करता है।
- टैग को कई फीट की दूरी से पढ़ा जा सकता है और उसे ट्रैक करने के लिये रीडर की सीधी दृष्टि रेखा के भीतर होना आवश्यक नहीं है।
- इस प्रौद्योगिकी को 1970 के दशक से पहले ही मंज़ूरी मिल गई थी, लेकिन वैश्विक आपूर्ति शृंखला प्रबंधन और पालतू जानवरों की माइक्रोचिपिंग जैसी चीजों में इसके उपयोग के कारण हाल के वर्षों में यह काफी प्रचलित हो गई है।