नोएडा शाखा पर IAS GS फाउंडेशन का नया बैच 9 दिसंबर से शुरू:   अभी कॉल करें
ध्यान दें:

पीआरएस कैप्सूल्स


विविध

जनवरी 2024

  • 05 May 2024
  • 50 min read

PRS के प्रमुख हाइलाइट्स:

  • संसद:
    • संसद का बजट सत्र
    • राष्ट्रपति के अभिभाषण में सरकार की उपलब्धियों का उल्लेख
  • वित्त:
    • अंतर्राष्ट्रीय एक्सचेंजों पर प्रतिभूतियाँ 
    • भारतीय स्टांप विधेयक, 2023
    • विदेशी मुद्रा जोखिम के प्रबंधन हेतु निर्देश 
    • राज्य सरकार की गारंटियों पर कार्य समूह की रिपोर्ट
    • स्व-नियामक संगठनों के लिये मसौदा
    • हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों के नियामक ढाँचे हेतु मसौदा परिपत्र जारी
    • सेबी ने अनुपालन को सरल बनाने के सुझावों पर टिप्पणियाँ मांगी
    • कुछ योजनाओं हेतु निवेश को समाप्त करने में लचीलापन प्रदान करने पर टिप्पणियाँ  
  • शिक्षा:
    • कोचिंग सेंटरों के नियमन हेतु दिशा-निर्देश
    • साक्षरता केंद्रों का गठन
  • कोयला:
    • कोयला/लिग्नाइट गैसीकरण परियोजना
  • खनन:
    • अन्वेषण लाइसेंस प्रदान करने हेतु खनन नियम संशोधन अधिसूचित
  • ऊर्जा:
    • कॉस्ट इफेक्टिव टैरिफ और ओपन एक्सेस शुल्क की सीमा तय करने हेतु नियमों में संशोधन 
  • नवीन एवं अक्षय ऊर्जा:
    • गैर-विद्युतीकृत घरों के लिये सौर ऊर्जा हेतु दिशा-निर्देश 

  • पृथ्वी विज्ञान:

    • पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय हेतु व्यापक योजना पृथ्वी को मंज़ूरी
  • पर्यावरण:
    • एंड-ऑफ-लाइफ वाहनों के प्रबंधन हेतु मसौदा नियम 
  • सड़क परिवहन एवं राजमार्ग:
    • वाहनों की स्क्रैपिंग के नियमों में मसौदा संशोधन

संसद

संसद का बजट सत्र

संसद का बजट सत्र 31 जनवरी, 2024 को शुरू हुआ और 9 फरवरी, 2024 को समाप्त हुआ। इस सत्र में आठ बैठकें हुईं।

  • राष्ट्रपति का संबोधन:
    • राष्ट्रपति ने 31 जनवरी, 2024 को संसद के दोनों सदनों को संबोधित किया तथा सरकार की उपलब्धियों और राष्ट्र के समक्ष उत्पन्न चुनौतियों पर प्रकाश डाला।
  • अंतरिम केंद्रीय बजट 2024-25:
    • अंतरिम केंद्रीय बजट 2024-25 वित्त मंत्री द्वारा 1 फरवरी, 2024 को पेश किया गया था। बजट में अगले वित्तीय वर्ष के लिये सरकार की अनुमानित प्राप्तियों और व्यय की रूपरेखा तैयार की गई।
  • परिचय, विचार और पारित करने के लिये विधेयक:

राष्ट्रपति के अभिभाषण में सरकार की उपलब्धियों का उल्लेख: 

भारत की राष्ट्रपति ने 31 जनवरी, 2024 को संसद के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित किया। उन्होंने अपने अभिभाषण में सरकार की प्रमुख नीतिगत उपलब्धियों और लक्ष्यों को रेखांकित किया। संबोधन की कुछ प्रमुख बातें इस प्रकार हैं:

  • आर्थिक विकास और स्थिरता:
    • गंभीर वैश्विक संकट के बीच भारत सबसे तेज़ी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था के रूप में उभरा है और इसने लगातार दो तिमाहियों में 7.5% से अधिक की विकास दर बनाए रखी है।
    • वर्ष 2014 से पहले के 10 वर्षों में मुद्रास्फीति 8% से अधिक थी, जबकि पिछले दशक में यह 5% रही।
  • औद्योगिक विकास और व्यापार में सुगमता:
    • स्टार्टअप की संख्या जो 100 हुआ करती थी, अब बढ़कर चार लाख से भी अधिक हो गई है। 
    • व्यापार को सुगम बनाने के लिये 40,000 से अधिक अनुपालनों को हटा दिया गया है या उन्हें सरल बना दिया गया है।
  • इंफ्रास्ट्रक्चर और परिवहन: 
    • 10 वर्षों में पूंजीगत व्यय पाँच गुना बढ़कर 10 लाख करोड़ रुपए हो गया है। 
    • राष्ट्रीय राजमार्ग की लंबाई 90,000 किमी. से बढ़कर 1.46 लाख किमी. हो गई है। फोर-लेन वाले राजमार्गों की लंबाई 2.5 गुना बढ़ गई है।
  • ऊर्जा संक्रमण और जलवायु कार्रवाई:
    • 10 वर्षों में गैर-जीवाश्म ईंधन आधारित ऊर्जा क्षमता 81 गीगावाट से बढ़कर 188 गीगावाट हो गई है।
    • भारत ने वर्ष 2030 तक गैर-जीवाश्म ईंधन से 50% स्थापित क्षमता हासिल करने का लक्ष्य रखा है।
  • शिक्षा की गुणवत्ता और पहुँच:
    • सरकार गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने के लिये 14,000 से अधिक पीएम-श्री स्कूलों पर काम कर रही है। इनमें से लगभग 6,000 ने कार्य करना शुरू कर दिया है।
  • अंतरिक्ष अन्वेषण और नवाचार: भारत ने आदित्य मिशन लॉन्च करने के साथ ही  पृथ्वी से 15 लाख किमी. दूर सैटेलाइट भेजा। भारत चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर अपना झंडा फहराने वाला पहला देश बन गया है।

वित्त

अंतर्राष्ट्रीय एक्सचेंजों पर प्रतिभूतियाँ 

वित्त मंत्रालय ने भारत की सार्वजनिक कंपनियों को विदेशी मुद्रा पर अपनी प्रतिभूतियों को सूचीबद्ध करने में सक्षम बनाया है। इससे उनकी वैश्विक उपस्थिति और पूंजी तक पहुँच बढ़ने की उम्मीद है। मंत्रालय ने इस प्रक्रिया को विनियमित करने एवं विदेशी मुद्रा कानूनों का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिये नए नियम जारी किये हैं।

  • विदेशी मुद्रा प्रबंधन (गैर-ऋण लिखत) संशोधन नियम, 2024: मंत्रालय ने विदेशी मुद्रा प्रबंधन (गैर-ऋण लिखत) संशोधन नियम, 2024 को अधिसूचित किया है, जो विदेशी मुद्रा प्रबंधन (गैर-ऋण लिखत) नियम, 2019 में संशोधन करता है। ये नियम अनुमत अंतर्राष्ट्रीय एक्सचेंजों पर भारतीय कंपनियों की प्रत्यक्ष लिस्टिंग के लिये शर्तों और मानदंडों को निर्दिष्ट करते हैं।
  • प्रत्यक्ष लिस्टिंग के लिये शर्तें: संशोधन भारतीय सार्वजनिक कंपनियों को कुछ शर्तों के अधीन अंतर्राष्ट्रीय एक्सचेंजों पर इक्विटी शेयर जारी करने की अनुमति देता है। इसमें शामिल हैं:
    • भारत के साथ भूमि सीमा साझा करने वाले देशों के नागरिक या संस्थाएँ केवल केंद्र सरकार की मंज़ूरी के साथ ऐसी कंपनियों के शेयर रख सकती हैं।
    • सार्वजनिक भारतीय कंपनियाँ या मौजूदा शेयरधारक कुछ मानदंडों के आधार पर अंतर्राष्ट्रीय एक्सचेंजों पर इक्विटी शेयर जारी कर सकते हैं। इसमें शामिल हैं:
      • कंपनी, उसके निदेशक या निदेशकों को पूंजी बाज़ार तक पहुँचने से प्रतिबंधित नहीं किया गया है।
      • कंपनी, प्रमोटर या निदेशक इच्छुक डिफॉल्टर नहीं हैं।
      • प्रवर्तक या निदेशक भगोड़े आर्थिक अपराधी नहीं हैं।

भारतीय स्टांप विधेयक, 2023

वित्त मंत्रालय ने भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 में परिवर्तन के लिये सार्वजनिक प्रतिक्रियाएँ आमंत्रित करते हुए भारतीय स्टांप विधेयक, 2023 का मसौदा जारी किया। मसौदा विधेयक में अधिनियम के कई प्रावधानों को बरकरार रखा गया है, जिसमें प्रमुख बदलावों के साथ शपथ-पत्र, विनिमय विधेयक और बाॅण्ड जैसे उपकरणों पर स्टांप शुल्क लगाना शामिल है।

मुख्य परिवर्तनों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • उपकरणों के लिये शुल्क बाज़ार मूल्य पर आधारित: लीज़ समझौते और बाॅण्ड जैसे उपकरणों के निष्पादन पर शुल्क देय है। मसौदा विधेयक में कहा गया है कि खनन लीज़ के नवीनीकरण या किसी संपत्ति के ब्याज के हस्तांतरण जैसे कुछ लेन-देन पर शुल्क उपकरण के बाज़ार मूल्य पर आधारित होगा।
  • छूट: अधिनियम उन उपकरणों को स्टांप शुल्क से छूट देता है जिनका उपयोग जहाज़ों की बिक्री और उन्हें स्थानांतरित करने के लिये किया जाता है। मसौदा विधेयक इसमें बदलाव करता है। वह विशेष आर्थिक क्षेत्र (SEZ) से संबंधित डेवलपर्स या इकाइयों द्वारा उनके लिये या उनकी ओर से निष्पादित उपकरण/इंस्ट्रूमेंट्स को शुल्क से छूट देता है। डेवलपर का मतलब केंद्र सरकार द्वारा अधिकृत व्यक्ति या राज्य सरकार से है। किसी उद्यमी द्वारा SEZ में इकाई स्थापित की जा सकती है।
  • अधिनियम प्रतिभूतियों और म्यूचुअल फंड इकाइयों के लाभकारी स्वामित्व हस्तांतरण पर स्टांप शुल्क से छूट देता है, लेकिन मसौदा विधेयक इस छूट को हटा देता है, जबकि यह एक व्यक्ति और डिपॉज़िटरी के बीच पंजीकृत स्वामित्व हस्तांतरण एवं किसी अन्य सरकार की सरकारी संपत्ति की रणनीतिक बिक्री या विनिवेश पर भी छूट देता है।
  • निजी संस्थाओं द्वारा शुल्क जमा करना: विधेयक के मसौदे के अनुसार, निजी संस्थाएँ जैसे स्टॉक एक्सचेंज, डिपॉज़िटरी और अधिकृत क्लियरिंग कॉरपोरेशन, राज्य सरकार को हस्तांतरित करने से पहले सुविधा शुल्क के रूप में स्टांप शुल्क का एक प्रतिशत जमा करेंगी और काट लेंगी।
  • उपकरणों का कम मूल्यांकन: अगर किसी उपकरण/इंस्ट्रूमेंट को पंजीकरण अधिकारी द्वारा कम मूल्य का माना जाता है, तो ज़िला कलेक्टर इसका उचित मूल्य निर्धारित करेगा। कलेक्टर के आदेश के विरुद्ध अपील मुख्य नियंत्रक राजस्व प्राधिकारी के समक्ष की जा सकती है।

विदेशी मुद्रा जोखिम के प्रबंधन हेतु निर्देश 

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने विदेशी मुद्रा जोखिम के प्रबंधन के लिये संशोधित निर्देश जारी किये हैं। 

  • हेजिंग उत्पादों की पेशकश के लिये प्लेटफॉर्म: विदेशी मुद्रा कॉन्ट्रैक्ट काउंटर पर और मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज, दोनों के माध्यम से पेश किये जा सकते हैं। काउंटर पर लेन-देन मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंजों के अलावा अन्य प्लेटफॉर्मों पर भी किया जाता है। 
  • यूज़र्स का वर्गीकरण: काउंटर पर विदेशी मुद्रा व्युत्पन्न अनुबंध के यूज़र्स को रीटेल और नॉन-रीटेल में विभाजित किया जाएगा। एक विदेशी मुद्रा डेरेवेटिव अनुबंध का मूल्य दो मुद्राओं की विनिमय दर में परिवर्तन से प्राप्त होता है, जिनमें से कम-से-कम एक भारतीय रुपया नहीं है। नॉन-रीटेल यूजर्स में बीमा कंपनियाँ, पेंशन फंड, म्यूचुअल फंड और न्यूनतम 500 करोड़ रुपए की शुद्ध संपत्ति या 1,000 करोड़ रुपए के न्यूनतम कारोबार वाले निवासी शामिल हैं।
  • स्टॉक एक्सचेंज द्वारा पेश किये जाने वाले उत्पाद: मान्यता प्राप्त स्टॉक एक्सचेंज कॉन्ट्रैक्टेड एक्सपोज़र की हेजिंग के लिये भारतीय रुपए से जुड़े विदेशी मुद्रा व्युत्पन्न अनुबंध की पेशकश कर सकते हैं। कॉन्ट्रैक्टेड एक्सपोज़र का आशय चालू या पूंजी खाता लेन-देन से संबंधित मुद्रा जोखिम से है।    

राज्य सरकार की गारंटियों पर कार्य समूह की रिपोर्ट

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने राज्य सरकार की गारंटी पर कार्य समूह की रिपोर्ट जारी की। गारंटी एक आकस्मिक देनदारी है जो ऋणदाता को उधारकर्त्ता के डिफॉल्ट होने के जोखिम से बचाती है। राज्य सरकारें अक्सर राज्य उद्यमों, शहरी स्थानीय निकायों, सहकारी संस्थानों और अन्य राज्य के स्वामित्व वाली संस्थाओं द्वारा लिये गए ऋण की गारंटी देती हैं। 

प्रमुख सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं: 

  • गारंटी की परिभाषा: कार्य समूह ने सुझाव दिया की कि विस्तारित गारंटी की कुल राशि की गणना करने के लिये यह अंतर नहीं किया जाना चाहिये कि गारंटी किस प्रकार की है। इनमें सशर्त/बिना शर्त गारंटी और वित्तीय/प्रदर्शन गारंटी शामिल हैं। इसमें वे सभी इंस्ट्रूमेंट शामिल होने चाहिये जो उधारकर्त्ता की ओर से भुगतान सुनिश्चित करने हेतु जारीकर्त्ता पर बाध्यता बनाते हैं, चाहे आकस्मिक हो या अन्यथा।
  • गारंटी की अधिकतम सीमा: रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि एक वर्ष के दौरान जारी की गई वृद्धिशील गारंटी की अधिकतम सीमा राजस्व प्राप्तियों का 5% या GSDP का 0.5%, जो भी कम हो, होनी चाहिये। 
  • गारंटी नीति के लिये दिशा-निर्देश: राज्य सरकारें अपनी गारंटी नीति तैयार करते समय केंद्र सरकार द्वारा जारी दिशा-निर्देशों का पालन कर सकती हैं। इन दिशा-निर्देशों में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • केवल ऋण के मूलधन और सामान्य ब्याज के लिये गारंटी देना।
    • बाहरी वाणिज्यिक उधार के लिये गारंटी नहीं देना।
    • परियोजना ऋण के 80% से अधिक की गारंटी नहीं देना।
    • निजी कंपनियों और संस्थानों के ऋण की गारंटी नहीं देना।
  • जोखिम वर्गीकरण: राज्यों को परियोजनाओं को उच्च जोखिम, मध्यम जोखिम और कम जोखिम के रूप में वर्गीकृत करना चाहिये तथा गारंटी बढ़ाने हेतु जोखिम भार निर्दिष्ट करना चाहिये। जोखिम वर्गीकरण में चूक के पिछले रिकॉर्ड को ध्यान में रखा जाना चाहिये।

स्व-नियामक संगठनों के लिये एक मसौदा

मानकों और प्रथाओं को बढ़ाने, समय और लागत बचाने के लिये भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) फिनटेक क्षेत्र में स्व-नियामक संगठनों (Self-Regulatory Organizations- SRO) के लिये एक मसौदा रूपरेखा जारी करता है। प्रमुख प्रस्तावों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • SRO की विशेषताएँ: RBI की देख-रेख वाले स्व-नियामक संगठनों (SRO) को निष्पक्ष रूप से क्षेत्र की स्थिरता को बढ़ावा देने, अनुपालन योजनाएँ के निर्माण, व्यापक क्षेत्र प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने, स्वतंत्र रूप से कार्य करने, विवादों में मध्यस्थता के साथ ही सदस्य भागीदारी को प्रोत्साहित करना चाहिये।
  • सदस्यता का मानदंड: SRO को क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करना चाहिये और उसके सदस्यता के लिये सभी आकार, चरण और गतिविधियों वाली संस्थाएँ शामिल होनी चाहिये। सदस्यता स्वैच्छिक होगी लेकिन RBI फिनटेक को किसी मान्यता प्राप्त SRO का सदस्य बनने के लिये प्रोत्साहित कर सकता है।
  • कार्य: SRO के पास नियम और मानक बनाने के लिये वस्तुनिष्ठ एवं परामर्शात्मक प्रक्रियाएँ होनी चाहिये। उसे उद्योग मानक तथा आधारभूत प्रौद्योगिकी मानक भी निर्धारित करने चाहिये। SRO को क्षेत्र की निगरानी करने तथा अपवादों का पता लगाने और उन्हें उजागर करने के लिये सर्विलांस उपायों का इस्तेमाल करना चाहिये। उन्हें अपने सदस्यों के लिये शिकायत निवारण और विवाद समाधान फ्रेमवर्क तैयार करना चाहिये। 
  • कार्य: SRO को उद्देश्यपूर्ण, परामर्शी नियम-निर्माण, उद्योग मानक निर्धारण, निगरानी और शिकायत निवारण ढाँचे की स्थापना करनी चाहिये।

हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों के नियामक ढाँचे हेतु मसौदा परिपत्र जारी 

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने हाउसिंग फाइनेंस कंपनियों (HFC) के लिये नियमों को अद्यतन करने हेतु एक मसौदा परिपत्र जारी किया, ये गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियाँ (NBFC) हैं जो मुख्य रूप से आवास ऋण प्रदान करती हैं। इनकी मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • तरल संपत्ति रखना: वर्तमान में जमा स्वीकार करने वाली HFC को सार्वजनिक जमा के मुकाबले 13% तरल संपत्ति रखने की आवश्यकता होती है। भारतीय रिज़र्व बैंक ने 31 मार्च, 2025 तक इसे 15% तक बढ़ाने का प्रस्ताव दिया है।
  • HFC की क्रेडिट रेटिंग: सार्वजनिक जमा स्वीकार करने के लिये HFC को वर्ष में कम-से-कम एक बार इनवेस्टमेंट ग्रेड क्रेडिट रेटिंग प्राप्त करनी होगी। अगर उनकी क्रेडिट रेटिंग न्यूनतम इनवेस्टमेंट ग्रेड से नीचे आती है, तो HFC इनवेस्टमेंट ग्रेड रेटिंग प्राप्त होने तक मौजूदा जमा को रीन्यू नहीं करेगी या नई जमा स्वीकार नहीं करेगी।
  • एकाउंट्स को अंतिम रूप देना: HFC को वित्तीय वर्ष के लिये अपना वित्तीय विवरण 31 मार्च को तैयार करना होगा। RBI ने प्रस्ताव दिया है कि HFC को संबंधित तारीख से तीन महीने के भीतर अपनी बैलेंस शीट को अंतिम रूप देना होगा। इस अवधि को बढ़ाने हेतु कंपनी रजिस्ट्रार से संपर्क करने से पहले राष्ट्रीय आवास बैंक से पूर्व अनुमोदन की आवश्यकता होगी।

सेबी ने अनुपालन को सरल बनाने के सुझावों पर टिप्पणियाँ मांगी

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) व्यापार में सुगमता पर ध्यान केंद्रित करते हुए सेबी नियमों के अनुपालन को सरल बनाने के लिये विशेषज्ञ समूह की अंतरिम सिफारिशों पर प्रतिक्रिया प्राप्त करना चाहता है। प्रमुख सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं: 

  • बाज़ार पूंजीकरण की गणना: अगर लिस्टेड संस्थाओं का बाज़ार पूंजीकरण एक निश्चित सीमा से अधिक है तो सेबी को अतिरिक्त शर्तों का पालन करना होता है। उदाहरणतः बाज़ार पूंजीकरण के हिसाब से शीर्ष 1,000 कंपनियों के लिये निम्नलिखित का होना आवश्यक है:
    • कम-से-कम एक महिला स्वतंत्र निदेशक।
    • एक जोखिम प्रबंधन समिति।
    • एक लाभांश वितरण नीति। 
  • वर्तमान में सेबी अनुपालन के लिये हर वर्ष 31 मार्च को बाज़ार पूंजीकरण का उपयोग करता है। समिति ने सुझाव दिया है कि सेबी छह महीने (जुलाई-दिसंबर) के औसत बाज़ार पूंजीकरण का उपयोग करे। जिन कंपनियों को पहली बार अनुपालन करने की आवश्यकता होगी, उन्हें संबंधित प्रावधानों का अनुपालन करने के लिये तीन महीने का समय भी मिलेगा।
  • निदेशकों के लिये समिति की सदस्यता: निदेशक केवल सूचीबद्ध संस्थाओं में 10 समिति सदस्यता और 5 अध्यक्ष पदों तक सीमित हैं।
  • प्रमोटर्स का न्यूनतम योगदान: प्रॉस्पेक्टस दाखिल करने से पहले एक वर्ष के भीतर अर्जित परिवर्तनीय प्रतिभूतियों के शेयरों को छोड़कर, प्रमोटरों को लिस्टिंग के बाद कम-से-कम 20% शेयर रखने होंगे।
    • हालाँकि ऐसी प्रतिभूतियों को प्रॉस्पेक्टस दाखिल करने से पहले कम-से-कम एक वर्ष के लिये रखा जाना चाहिये।

कुछ योजनाओं हेतु निवेश को समाप्त करने में लचीलापन प्रदान करने पर टिप्पणियाँ 

भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (SEBI) ने वैकल्पिक निवेश कोष (AIF) और वेंचर कैपिटल फंड्स (VCF) को लचीलापन प्रदान करने के लिये परामर्श-पत्र जारी किया है। AIF एक परिभाषित निवेश नीति के साथ निजी तौर पर एकत्रित निवेश माध्यम है। विचार के लिये मुद्दों में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • एक परिसमापन/लिक्विडेशन योजना की आवश्यकता: AIF की समयावधि समाप्त होने के बाद एक वर्ष की परिसमापन अवधि होती है। वे इस अवधि के भीतर एक परिसमापन योजना शुरू कर सकते हैं। परिसमापन अवधि के दौरान विघटन प्रक्रिया शुरू करने के लिये AIF को योजना में मूल्य के हिसाब से 75% निवेशकों की सहमति प्राप्त करनी होगी।
  • VCF हेतु विघटन प्रक्रिया: VCF को शुरू में 1996 में सेबी द्वारा विनियमित किया गया था, फिर AIF विनियमों के तहत लाया गया, लेकिन मौजूदा VCF पुराने नियमों के तहत बने रहेंगे, जब तक कि वे अधिसूचना के छह महीने के भीतर AIF विनियमों में स्थानांतरित नहीं हो जाते।
  • वन टाइम फ्लेक्सिबिलिटी योजना: 15 जून, 2023 के बाद AIF को परिसमापन अवधि में पूर्ण परिसमापन, विघटन या विशिष्ट वितरण के लिये वन टाइम फ्लेक्सिबिलिटी प्रदान की जानी चाहिये।

शिक्षा

कोचिंग सेंटरों के नियमन हेतु दिशा-निर्देश 

शिक्षा मंत्रालय के दिशा-निर्देश कोचिंग सेंटरों को शिक्षण, बुनियादी ढाँचे और पंजीकरण के मानकों के साथ नियंत्रित करते हैं, जिन्हें विचार के लिये राज्यों को भेजा जाता है। दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताओं में शामिल हैं:

  • पंजीकरण: कोचिंग सेंटरों को राज्य द्वारा नियुक्त अधिकारी के साथ पंजीकरण करना होगा, प्रत्येक शाखा को एक अलग इकाई के रूप में माना जाएगा, व्यक्तिगत पंजीकरण समाप्ति से पहले नवीनीकरण की आवश्यकता होगी।
  • पंजीकरण की शर्तें: पंजीकरण की पात्रता के लिये एक कोचिंग सेंटर को कुछ शर्तों को पूरा करना होगा। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: 
    • ऐसे ट्यूटरों को नियुक्त करना जो कम-से-कम स्नातक हैं और किसी अपराध के लिये दोषी नहीं हैं।
    • उन विद्यार्थियों का नामांकन नहीं करना जिन्होंने अभी तक माध्यमिक परीक्षा (कक्षा 10) उत्तीर्ण नहीं की है।
    • अच्छे अंकों को लेकर भ्रामक वादे न करना। 
    • पंजीकरण के दौरान इन नियमों के अनुपालन का विवरण देने वाला एक वचन-पत्र दिया जाना चाहिये।
  • शुल्क: प्रत्येक पाठ्यक्रम का उचित  शुल्क होना चाहिये और पाठ्यक्रम की अवधि के दौरान इसे बढ़ाया नहीं जाना चाहिये। अगर विद्यार्थी बीच में पाठ्यक्रम छोड़ देता है तो भुगतान किया गया पूरा शुल्क आनुपातिक आधार पर वापस करना होगा। भावी विद्यार्थियों/अभिभावकों को फीस, सुविधाओं और लेक्चर संबंधित सभी जानकारी निःशुल्क दी जानी चाहिये। इसे केंद्र के परिसर में भी प्रमुखता से प्रदर्शित किया जाना चाहिये।
  • कक्षाएँ: कोचिंग सेंटर्स को क्षेत्र के लोकप्रिय त्योहारों के दौरान छुट्टियों के साथ-साथ विद्यार्थियों को साप्ताहिक अवकाश भी प्रदान करना चाहिये। कक्षाएँ एक दिन में पाँच घंटे से अधिक संचालित नहीं की जानी चाहिये और संबंधित विद्यार्थियों के स्कूल/कॉलेज के घंटों के दौरान संचालित नहीं की जानी चाहिये।
  • इंफ्रास्ट्रक्चर: कोचिंग कक्षाओं में हर बैच में हर विद्यार्थी के बीच न्यूनतम एक वर्ग मीटर की जगह होनी चाहिये। परिसर पूरी तरह से विद्युतिकृत और हवादार होना चाहिये। पीने का पानी एवं फर्स्ट एड किट जैसी सुविधाएँ उपलब्ध होनी चाहिये।

साक्षरता केंद्रों का गठन

शिक्षा मंत्रालय ने 'राज्य शिक्षा साक्षरता और प्रशिक्षण परिषद में राज्य साक्षरता केंद्र को लेकर दिशा-निर्देश' जारी किये हैं। ये दिशा-निर्देश प्रत्येक राज्य/केंद्रशासित प्रदेश में साक्षरता केंद्र का गठन करते हैं। ये राज्य/केंद्रशासित प्रदेश स्तर पर प्रौढ़ शिक्षा के शिक्षण परिणामों के मापन हेतु रूपरेखा प्रस्तुत करेंगे। ये राष्ट्रीय साक्षरता केंद्र के समकक्ष के रूप में काम करेंगे, जो प्रौढ़ शिक्षा हेतु एक राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रुपरेखा विकसित करेगा। दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं: 

संयोजन: 

  • प्रत्येक राज्य/केंद्रशासित प्रदेश में राज्य शिक्षा अनुसंधान और प्रशिक्षण परिषद (State Council of Educational Research and Training- SCERT) द्वारा राज्य साक्षरता केंद्र (SCL) की स्थापना की जाएगी। SCL के पदेन सदस्यों में निम्नलिखित शामिल हैं:
    • SCERT का निदेशक (अध्यक्ष), 
    • SCERT का एक प्रोफेसर/फैकेल्टी (प्रभारी)
    • एससीईआरटी के दो फैकेल्टी। 
  • अन्य सदस्यों में उच्च शिक्षण संस्थानों के प्रतिनिधि और स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों के प्रतिनिधि शामिल हैं।

संघटन:

  • पाठ्यक्रम/करिकुलम: राज्य साक्षरता केंद्र राज्य/केंद्रशासित प्रदेश स्तर पर प्रौढ़ शिक्षा के राष्ट्रीय पाठ्यक्रम की रुपरेखा को अपनाने के लिये मुख्य रूप से ज़िम्मेदार होगा। यह फ्रेमवर्क नया भारत साक्षरता कार्यक्रम (प्रौढ़ शिक्षा हेतु) के तहत शिक्षण के पाँच क्षेत्रों के परिणामों की रूपरेखा तैयार करेगा।
    • मूलभूत साक्षरता और संख्यात्मकता
    • महत्त्वपूर्ण जीवन कौशल
    • व्यावसायिक कौशल
    • बुनियादी शिक्षा
    • सतत् शिक्षा।
  • राज्य साक्षरता केंद्र प्रशिक्षण मैनुअल बनाएगा, शिक्षण सामग्री डिज़ाइन करेगा और पाठ्यक्रम के अनुरूप गतिविधि मॉड्यूल विकसित करेगा।
  • बजटीय सहायता: राज्य/केंद्रशासित प्रदेश प्रशासन मुख्य रूप से राज्य साक्षरता केंद्र (SCL) के सेटअप और संचालन का वित्तपोषण और निगरानी करेगा।

कोयला

कोयला/लिग्नाइट गैसीकरण परियोजना

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने कोयला/लिग्नाइट गैसीकरण परियोजनाओं को बढ़ावा देने के लिये एक योजना को मंज़ूरी दी। कोयले को गैस में परिवर्तित करने की प्रक्रिया को कोयला गैसीकरण कहा जाता है, जिसका उपयोग बिजली पैदा करने जैसे विभिन्न उद्देश्यों हेतु किया जा सकता है। यह योजना तीन श्रेणियों के तहत गैसीकरण परियोजनाओं की स्थापना के लिये अनुदान प्रदान करेगी। योजना के तहत 8,500 करोड़ रुपए के कुल परिव्यय का अनुमान है।

कोयला/लिग्नाइट गैसीकरण को बढ़ावा देने की योजना के तहत मानदंड और लाभ

पात्र संस्थाएँ/परियोजनाएँ

मानदंड/लाभ

परिव्यय (करोड़ रुपए)

PSU

  • 1,350 करोड़ रुपए या पूंजीगत व्यय का 15%, जो भी कम हो, का अनुदान।
  • तीन परियोजनाओं को समर्थन दिया जाएगा।

4,050

निजी कंपनियाँ और PSU

  • 1,000 करोड़ रुपए का अनुदान या पूंजीगत व्यय का 15%, जो भी कम हो।
  • प्रतिस्पर्द्धी बोली के माध्यम से कम-से-कम एक परियोजना का चयन किया जाएगा। 

3,850

प्रदर्शन परियोजनाएँ या छोटे पैमाने के उत्पाद-आधारित गैसीकरण संयंत्र

  • 100 करोड़ रुपए या पूंजीगत व्यय का 15%, जो भी कम हो, का अनुदान।
  • न्यूनतम 100 करोड़ रुपए का पूंजीगत व्यय आवश्यक है।
  • सभी परियोजनाओं का चयन प्रतिस्पर्द्धी बोली के माध्यम से किया जाएगा।

600


खनन

अन्वेषण लाइसेंस प्रदान करने हेतु खनन नियम संशोधन अधिसूचित

खान मंत्रालय ने खनिज (नीलामी) नियम, 2015 में संशोधन अधिसूचित किये हैं। नियम खान एवं खनिज (विकास और विनियमन) अधिनियम, 1957 के तहत तैयार किये गए हैं। यह अधिनियम भारत में खनन क्षेत्र को विनियमित करता है। 2015 के नियम खदानों की नीलामी की प्रक्रिया निर्धारित करते हैं। 

संशोधित नियमों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं: 

  • अन्वेषण (एक्सप्लोरेशन) लाइसेंस की नीलामी: अधिनियम की सातवीं अनुसूची में निर्दिष्ट खनिजों के लिये अन्वेषण लाइसेंस शुरू करने हेतु 1957 के अधिनियम को वर्ष 2023 में संशोधित किया गया था।  इनमें लिथियम, कोबाल्ट, चाँदी और सोना शामिल हैं। अन्वेषण लाइसेंस या तो टोही (रीकानसंस) या पूर्वेक्षण (प्रॉस्पेक्टिंग) या दोनों गतिविधियों की अनुमति देता है। टोही से तात्पर्य खनिज संसाधनों को निर्धारित करने के लिये प्रारंभिक सर्वेक्षण से है। पूर्वेक्षण में खनिज भंडार की खोज, उसका पता लगाना या साबित करना शामिल है।
    • अन्वेषण लाइसेंसी को उस नीलामी प्रीमियम का एक हिस्सा मिलेगा, जो खनन लीज़ के भावी लीज़ी ने उस क्षेत्र के लिये चुकाया हो, जिसका अन्वेषण उसने किया है। यह हिस्सा पूरे पचास वर्ष की अवधि के लिये या संसाधनों के समाप्त होने तक, जो भी पहले हो, देय होगा।
    • संशोधित नियमों में प्रावधान है कि राज्य सरकार अन्वेषण लाइसेंस के लिये नीलामी प्रक्रिया शुरू कर सकती है। अन्वेषण लाइसेंस प्राप्त करने का इच्छुक कोई भी व्यक्ति नीलामी हेतु किसी क्षेत्र को अधिसूचित करने के लिये राज्य सरकार को एक प्रस्ताव प्रस्तुत कर सकता है। उन्हें इस उद्देश्य के लिये उपलब्ध भूविज्ञान डेटा देना होगा।
  • नीलामी के मानदंड: अन्वेषण लाइसेंस की नीलामी के लिये राज्य सरकार एक अधिकतम कीमत निर्दिष्ट करेगी। अधिकतम कीमत को खनन पट्टे के भावी लीज़ी द्वारा देय नीलामी प्रीमियम में अधिकतम प्रतिशत हिस्सेदारी के रूप में व्यक्त किया जाएगा। बोलीदाता ऐसी कीमत उद्धृत करेंगे जो अधिकतम कीमत के बराबर या उससे कम होगी। न्यूनतम उद्धृत मूल्य वाली बोली को लाइसेंस प्रदान किया जाएगा।
  • प्रदर्शन सुरक्षा: लाइसेंसधारी को प्रदर्शन सुरक्षा प्रदान करनी होगी। यह सुरक्षा निर्दिष्ट मामलों में विनियोजित की जा सकती है। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: 
    • टोही या पूर्वेक्षण योजना का पालन न करना।
    • संपूर्ण अन्वेषण डेटा का खुलासा न करना।
    • अन्वेषण डेटा में विसंगति।
    • नियमों या लाइसेंस की शर्तों का उल्लंघन।

ऊर्जा

कॉस्ट इफेक्टिव टैरिफ और ओपन एक्सेस शुल्क की सीमा तय करने हेतु नियमों में संशोधन 

विद्युत मंत्रालय ने विद्युत अधिनियम, 2005 में संशोधन अधिसूचित किये हैं। नियम विद्युत अधिनियम, 2003 के तहत तैयार किये गए हैं। अधिनियम विद्युत क्षेत्र को विनियमित करता है। संशोधनों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं: 

  • लागत पर विचार करके शुल्क निर्धारित किया जाए: संशोधित नियमों के अनुसार, डिस्कॉम का शुल्क लागत प्रतिबंबित यानी कॉस्ट इफेक्टिव होना चाहिये। इसका मतलब यह है कि शुल्क को इस तरह निर्धारित किया जाना चाहिये कि वह दी गई अवधि में सभी लागतों की वसूली कर सके। संशोधित नियमों में यह भी प्रावधान है कि केवल प्राकृतिक आपदाओं की स्थिति में ही कम शुल्क को मंज़ूरी दी जा सकती है। यह अंतर अनुमानित वार्षिक राजस्व आवश्यकता के 3% से अधिक नहीं हो सकता है, जिसे तीन वर्षों के भीतर वसूल किया जाना चाहिये। किसी भी मौजूदा अंतर को समान वार्षिक किस्तों में सात वर्षों के भीतर वसूल किया जाना चाहिये। 
  • ओपन एक्सेस के लिये अतिरिक्त अधिभार: 2005 के नियमों के तहत ओपन एक्सेस उपयोगकर्त्ताओं पर अतिरिक्त अधिभार लगाया जा सकता है। ओपन एक्सेस वाले उपभोक्ता सीधे उत्पादक से बिजली खरीदते हैं और आपूर्ति प्राप्त करने हेतु ट्रांसमिशन एवं वितरण इकाइयों के नेटवर्क का उपयोग करते हैं। संशोधित नियम इस अधिभार को डिस्कॉम द्वारा भुगतान की गई बिजली की प्रति यूनिट निर्धारित लागत से कम रखते हैं। अधिभार को इस प्रकार कम किया जाना चाहिये कि यह एक्सेस प्रदान करने के चार वर्षों के भीतर समाप्त हो जाए। अधिभार केवल तभी लगाया जाएगा, जब ओपन एक्सेस उपभोक्ता डिस्कॉम के उपभोक्ता हों या पहले उपभोक्ता रहे हैं।
  • राज्य नेटवर्क के इस्तेमाल पर शुल्क की सीमा: कुछ सामान्य नेटवर्क एक्सेस उपभोक्ता राज्य ट्रांसमिशन इकाई के नेटवर्क का उपयोग कर सकते हैं। संशोधित नियमों में कहा गया है कि अल्पकालिक या अस्थायी ओपन एक्सेस के लिये लगाया जाने वाला शुल्क दीर्घकालिक उपयोगकर्त्ताओं पर लगाए गए शुल्क के 110% से अधिक नहीं होना चाहिये। अस्थायी उपयोगकर्त्ता वे हैं, जिनके पास 11 महीने से कम अवधि के लिये सामान्य नेटवर्क पहुँच है।
  • समर्पित ट्रांसमिशन लाइनों हेतु लाइसेंस हटाया गया: संशोधित नियमों में कहा गया है कि कुछ संस्थाओं को समर्पित ट्रांसमिशन लाइनें स्थापित करने और संचालित करने के लिये लाइसेंस की आवश्यकता नहीं होगी। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: 
    • उत्पादन कंपनियाँ। 
    • कैप्टिव उत्पादन संयंत्र। 
    • ऊर्जा भंडारण प्रणाली। 
  • समर्पित ट्रांसमिशन लाइनें उन बिजली आपूर्ति लाइनों को कहा जाता है जो कैप्टिव उत्पादन संयंत्रों या उत्पादन स्टेशनों को ट्रांसमिशन लाइनों, उप-स्टेशनों या उत्पादन स्टेशनों से जोड़ती हैं। अंतर-राज्यीय ट्रांसमिशन के मामले में न्यूनतम 25 मेगावाट (MW) और इंट्रा-स्टेट ट्रांसमिशन के मामले में 10 मेगावाट वाले उपभोक्ताओं को भी इस लाइसेंस से छूट दी जाएगी।

नवीन एवं अक्षय ऊर्जा

गैर-विद्युतीकृत घरों के लिये सौर ऊर्जा हेतु दिशा-निर्देश 

नवीन और अक्षय ऊर्जा मंत्रालय ने प्रधानमंत्री जनजाति आदिवासी न्याय महा अभियान (PM-JANMAN) के तहत सौर ऊर्जा योजना को लागू करने हेतु दिशा-निर्देश जारी किये हैं।  PM-JANMAN को नवंबर 2023 में शुरू किया गया था तथा इसमें 18 राज्यों में विशेष रूप से कमज़ोर आदिवासी समूहों के लिये ऑफ-ग्रिड सौर ऊर्जा एवं सोलर स्ट्रीट लाइटिंग जैसी पहलें शामिल हैं। योजना के इन घटकों का वित्तीय परिव्यय तीन वर्षों में 515 करोड़ रुपए का है। संबंधित क्षेत्रों में वितरण लाइसेंसधारी (डिस्कॉम) कार्यान्वयन एजेंसियाँ होंगी। 

दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

  • व्यक्तिगत घरों का विद्युतीकरण: केंद्र सरकार जनजातीय परिवारों के लिये उपकरणों के साथ ऑफ-ग्रिड सौर ऊर्जा प्रणालियों को वित्तपोषित करेगी, जो डिस्कॉम द्वारा टेंडर दिये जाने के तीन महीने के भीतर चालू हो जाएंगी।
  • घरों के समूह के लिये मिनी-ग्रिड: जिन क्षेत्रों में घरों के समूह हैं, वहाँ एक व्यक्तिगत सिस्टम की बजाय एक मिनी-ग्रिड स्थापित किया जा सकता है। इस घटक के तहत उपकरण भी उपलब्ध कराए जाएंगे। घर मिनी-ग्रिड से बिजली लेने के पात्र होंगे और ग्रिड को इस तरह डिज़ाइन किया जाना चाहिये कि इसे भविष्य में मुख्य ग्रिड से जोड़ा जा सके। इस घटक हेतु प्रति परिवार 50,000 रुपए तक का केंद्रीय हिस्सा प्रदान किया जाएगा।
  • बहुउद्देश्यीय केंद्रों का सौर्यीकरण: बहुउद्देश्यीय केंद्रों का ऑफ-ग्रिड सोलर के माध्यम से विद्युतीकरण किया जाएगा। इस ग्रिड से प्राप्त बिजली का उपयोग स्ट्रीट लाइटिंग के लिये किया जा सकता है। इस घटक के तहत केंद्र सरकार प्रति केंद्र एक लाख रुपए प्रदान करेगी। टेंडर दिए जाने के नौ महीने के भीतर डिस्कॉम को ग्रिड का संचालन करना होगा।
  • निरीक्षण और निगरानी: कार्यान्वयन एजेंसियाँ पहले दो वर्षों तक निरीक्षण करेंगी, जिसके बाद एक तीसरा पक्ष इसे अंजाम देगा। 

पृथ्वी विज्ञान

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय हेतु व्यापक योजना पृथ्वी को मंज़ूरी

केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक व्यापक योजना पृथ्वी विज्ञान (पृथ्वी) [PRITHvi Vigyan (PRITHVI)] को मंज़ूरी दी है। इसमें पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के तहत चल रही पाँच उप-योजनाएँ शामिल हैं। ये जलवायु अनुसंधान मॉडलिंग, ध्रुवीय विज्ञान, भूकंप विज्ञान एवं शिक्षा एवं आउटरीच से संबंधित हैं। 

  • यह योजना वर्ष 2021 से 2026 तक 4,797 करोड़ रुपए की कुल लागत से लागू की जानी है।
  • पृथ्वी योजना का उद्देश्य है:
    • वायुमंडल, महासागर और ठोस पृथ्वी के दीर्घकालिक अवलोकन को बढ़ाना तथा बरकरार रखना।
    • मौसम और जलवायु के खतरों को समझने तथा पूर्वानुमान के लिये मॉडल सिस्टम विकसित करना।
    • ध्रुवीय और उच्च समुद्र क्षेत्रों का पता लगाना।
    • समुद्री संसाधनों के सतत् दोहन के लिये प्रौद्योगिकी विकसित करना। 

पर्यावरण

एंड-ऑफ-लाइफ वाहनों के प्रबंधन हेतु मसौदा नियम 

पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने एंड-ऑफ-लाइफ वाहन (प्रबंधन) नियम, 2024 का मसौदा जारी किया है। ये नियम पर्यावरण (संरक्षण) अधिनियम, 1986 के तहत तैयार किये गए हैं और उपभोक्ताओं तथा वाहन निर्माताओं की ज़िम्मेदारियों को निर्दिष्ट करते हैं। एंड-ऑफ-लाइफ वाले वाहनों में वे वाहन शामिल हैं जो अब पंजीकृत नहीं हैं, परीक्षण स्टेशनों द्वारा अयोग्य घोषित कर दिये गए हैं या जिनका पंजीकरण रद्द कर दिया गया है। मसौदा नियमों की मुख्य विशेषताओं में शामिल हैं:

  • उत्पादकों के लिये रीसाइकिलिंग का लक्ष्य: वाहन निर्माताओं को एंड-ऑफ-लाइफ वाहनों से स्टील की रीसाइकिलिंग हेतु निर्दिष्ट लक्ष्यों को पूरा करना होगा। उत्पादक विस्तारित उत्पादक उत्तरदायित्व (EPR) प्रमाण-पत्र खरीदकर इन लक्ष्यों को पूरा करेंगे। प्रमाण-पत्र पंजीकृत वाहन स्क्रैपिंग केंद्रों द्वारा तैयार किया जाएगा और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा प्रमाणित किया जाएगा। प्रमाण-पत्र उपलब्ध न होने की स्थिति में कलेक्शन की ज़िम्मेदारी भी निर्माता की होगी।
  • वाहन मालिकों की ज़िम्मेदारियाँ: एक बार जब किसी वाहन को एंड-ऑफ-लाइफ घोषित कर दिया जाता है, तो मालिकों को अपने वाहन को छह महीने से अधिक समय तक रखने की अनुमति नहीं होगी। उन्हें यह प्रमाण-पत्र प्रस्तुत करना होगा कि उन्होंने अपना वाहन स्क्रैपिंग केंद्र में जमा कर दिया है।
  • थोक उपभोक्ताओं की ज़िम्मेदारियाँ: थोक उपभोक्ताओं का मतलब उन लोगों से है जिनके पास 100 से अधिक वाहन हैं। ऐसे उपभोक्ता यह सुनिश्चित करने के लिये ज़िम्मेदार होंगे कि एंड-ऑफ-लाइफ वाहनों को पंजीकृत वाहन स्क्रैपिंग केंद्रों या नामित संग्रह केंद्रों पर जमा किया जाए। उन्हें अपने फ्लीट के बारे में और जमा किये गए वाहनों के एंड-ऑफ-लाइफ के बारे में वार्षिक रिटर्न दाखिल करना होगा।
  • परीक्षण स्टेशनों की जिम्मेदारियाँ: अगर कोई वाहन ऑटोमेटेड फिटनेस टेस्ट में पास नहीं होता तो स्वचालित परीक्षण स्टेशनों को वाहन के एंड-ऑफ-लाइफ की घोषणा करनी चाहिये। स्टेशन टेस्ट किये गए वाहनों की संख्या का रिकॉर्ड रखेगा और डेटा को केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड द्वारा प्रबंधित पोर्टल से लिंक किया जाएगा।   

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग

वाहनों की स्क्रैपिंग के नियमों में मसौदा संशोधन

सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने केंद्रीय मोटर वाहन (पंजीकरण और वाहन स्क्रैपिंग केंद्र के कार्य) नियम, 2021 में मसौदा संशोधन जारी किये हैं।  नियम मोटर वाहन अधिनियम, 1988 के तहत बनाए गए हैं। 

मसौदा संशोधन की मुख्य विशेषताएँ हैं:

  • केंद्र स्थापित करने हेतु सहमति: 2021 के नियमों के तहत वाहन स्क्रैपिंग केंद्र स्थापित करने के लिये राज्य/केंद्रशासित प्रदेश सरकार के पंजीकरण प्राधिकारी से सहमति प्राप्त करनी होगी। इसके बजाय मसौदा संशोधन में प्रावधान है कि राज्य/केंद्रशासित प्रदेश का प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ऐसे किसी केंद्र को स्थापित करने के लिये मंज़ूरी देगा।
  • संचालन शुरू करने के लिये सहमति: 2021 के नियमों के तहत स्क्रैपिंग केंद्र को संचालन शुरू करने के छह महीने के भीतर राज्य/केंद्रशासित प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड से संचालन की सहमति प्राप्त करनी होगी। मसौदा संशोधन में प्रावधान है कि स्क्रैपिंग केंद्र को काम शुरू करने से कम-से-कम 60 दिन पहले सहमति प्राप्त करनी होगी या आवेदन करना होगा।
  • पंजीकरण का हस्तांतरण: 2021 के नियमों के तहत स्क्रैपिंग केंद्रों का पंजीकरण गैर-हस्तांतरणीय है। मसौदा संशोधन पंजीकरण ऐसे हस्तांतरण की अनुमति देता है।
  • वाहन जमा करने का प्रमाण-पत्र: स्क्रैपिंग केंद्र वाहन मालिक को वाहन जमा करने का प्रमाण-पत्र जारी करता है। प्रमाण-पत्र वाहन के स्वामित्व के हस्तांतरण को मान्यता देता है। अगर लोग नया वाहन खरीदते हैं तो इनसेंटिव और लाभ प्राप्त करने के लिये ये प्रमाण-पत्र अनिवार्य रूप से होने चाहिये। प्रमाण-पत्र इलेक्ट्रॉनिक रूप से व्यापार योग्य है। मसौदा संशोधन प्रमाण-पत्र की वैधता को दो वर्ष से बढ़ाकर तीन वर्ष करते हैं। सरकारी स्वामित्व वाले वाहनों या ज़ब्त किये गए वाहनों को जारी किये गए प्रमाण-पत्रों पर कोई इनसेंटिव नहीं मिलेगा। ऐसे प्रमाण-पत्र इलेक्ट्रॉनिक रूप से व्यापार योग्य नहीं होंगे।
close
एसएमएस अलर्ट
Share Page
images-2
images-2