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पीआरएस कैप्सूल्स

विविध

जनवरी 2020

  • 07 Apr 2020
  • 72 min read

PRS की मुख्य विशेषताएँ

  • संसद
    • संसद का बजट सत्र 2020 
    • सरकार की मुख्य उपलब्धियाँ 
  • समष्टि आर्थिक (मैक्रोइकोनॉमिक) विकास
    • आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 
    • GDP का अनुमान 
    • खुदरा मुद्रास्फीति 
  • खनन
    • खनिज कानून (संशोधन) अध्यादेश, 2020 
    • कोयला खदानों की नीलामी 
    • रॉयल्टी की दरों में संशोधन से संबंधित मुद्दों की जाँच हेतु कमेटी 
  • परिवहन
    • फ्यूल थ्रूपुट चार्ज 
    • इंफ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट ट्रस्ट्स 
    • निर्भया फ्रेमवर्क के अंतर्गत वाहन ट्रैकिंग योजना 
    • ड्रोन्स की स्वैच्छिक घोषणा 
  • विधि और न्याय
    • जम्मू एवं कश्मीर में टेलीकॉम सेवाओं को रद्द करने एवं सेक्शन 144 लगाने पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला
    • दल बदल विरोधी कानून पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी
    • भारत ने UAE को पारस्परिक देश घोषित किया 
  • गृह मामले
    • भारत सरकार, असम सरकार और बोडो प्रतिनिधियों के बीच समझौता 
  •  वित्त
    • वित्तीय समावेश के लिये राष्ट्रीय रणनीति 
    • शहरी सहकारी बैंकों के लिये सुपरवाइजरी एक्शन फ्रेमवर्क 
    • स्टैंडर्ड इनडिविजुअल हेल्थ इंश्योरेंस प्रॉडक्ट 
  • स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण
    • मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) विधेयक, 2020 
    • राष्ट्रीय डेंटल आयोग विधेयक, 2020 
    • राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग विधेयक, 2019 में संशोधन
    • राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयोग बिल, 2019 में संशोधन 
  • पर्यावरण एवं वन
    • वेटलैंड्स (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2019 
    • सैंड माइनिंग के प्रवर्तन और निगरानी संबंधी दिशा-निर्देश 
  • वाणिज्य और उद्योग
    • राष्ट्रीय स्टार्टअप एडवाइजरी काउंसिल का गठन
  • रक्षा
    • डिफेंस एक्विजिशन काउंसिल ने 5,100 करोड़ रुपए की लागत से खरीद को मंज़ूरी 
  • संचार
    • ट्रैफिक मैनेजमेंट प्रैक्टिसेज़ और नेट न्यूट्रिलिटी हेतु मल्टी-स्टेकहोल्डर बॉडी 

संसद

संसद का बजट सत्र 2020 

संसद का बजट सत्र 31 जनवरी, 2019 को शुरू हुआ। सत्र के दौरान 31 दिन बैठकें हुई और यह दो चरणों में संपन्न हुआ। पहला चरण 31 जनवरी से 11 फरवरी तक चला और दूसरा चरण 2 मार्च से 3 अप्रैल तक। 

सत्र की शुरुआत संसद के दोनों सदनों में राष्ट्रपति के अभिभाषण से हुई। वित्त मंत्री ने 1 फरवरी, 2020 को बजट प्रस्तुत किया।

संसद की कार्यसूची में 14 बिलों पर विचार और उन्हें पारित करना शामिल है। इनमें DNA टेक्नोलॉजी (प्रयोग और लागू होना) रेगुलेशन विधेयक, 2019, माता-पिता एवं वरिष्ठ नागरिकों का भरण-पोषण और कल्याण (संशोधन) विधेयक, 2019 तथा इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता (दूसरा संशोधन) विधेयक, 2019 (वतर्मान में अध्यादेश के रूप में लागू) शामिल हैं।  

इसके अतिरिक्त 28 बिल प्रस्तुत, विचार और पारित करने के लिये सूचीबद्ध हैं। इनमें खनिज कानून (संशोधन) विधेयक, 2020 (अध्यादेश का स्थान लेने वाला), कंपीटीशन (संशोधन) बिल, 2020, बैंकिंग रेगुलेशन (संशोधन) विधेयक, 2020 और सीड्स विधेयक, (2020) शामिल हैं। 

सरकार की मुख्य उपलब्धियाँ 

भारत के राष्ट्रपति श्री राम नाथ कोविंद ने 31 जनवरी, 2020 को संसद के दोनों सदनों के संयुक्त अधिवेशन को संबोधित किया। उन्होंने अपने अभिभाषण में सरकार की प्रमुख नीतिगत उपलब्धियों को रेखांकित किया। अभिभाषण के मुख्य अंश निम्नलिखित हैं:

  • अर्थव्यवस्था: विदेशी मुद्रा भंडार 450 बिलियन USD से भी अधिक का है। अप्रैल से अक्तूबर 2019 के दौरान प्रत्यक्ष विदेशी निवेश तीन अरब USD बढ़ा है।
  • वित्त और बैंकिंग: इनसॉल्वेंसी और बैंकरप्सी संहिता, 2016 की वजह से बैंकों और अन्य संस्थानों के करीब 3.5 लाख करोड़ रुपए वापस आए हैं।   
  • आंतरिक मामले: कुछ प्रवासियों को नागरिकता देने के लिये संसद ने नागरिकता संशोधन अधिनियम, 2019 को पारित किया है। जम्मू एवं कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35A को रद्द किया गया है। 
  • कृषि: प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के अंतर्गत 43,000 करोड़ रुपए से अधिक की राशि आठ करोड़ से अधिक किसान परिवारों के बैंक खातों में जमा हुई है। 
  • रोज़गार सृजन: विश्व में तीसरा सबसे बड़ा स्टार्ट-अप इकोसिस्टम भारत में है। स्टार्ट अप इंडिया अभियान के अंतर्गत देश में 27,000 नए स्टार्ट-अप को मान्यता दी गई है। 
  • स्वास्थ्य: प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के अंतर्गत 75 लाख गरीबों को मुफ्त उपचार की सुविधा मिली है। आयुष्मान भारत योजना के अंतर्गत 27,000 से अधिक स्वास्थ्य और वेलनेस केंद्रों की स्थापना की गई है। 
  • महिला एवं बाल विकास: महिला सुरक्षा की दृष्टि से देश में 600 से अधिक वन स्टॉप सेंटर, 1,000 फास्ट ट्रैक स्पेशल कोर्ट और प्रत्येक पुलिस स्टेशन में महिला हेल्प डेस्क बनाए गए हैं।
  • जल: देश के गाँवों में हर घर तक पर्याप्त मात्रा में शुद्ध पेय जल की पहुँच सुनिश्चित हो सकें, इसके लिये सरकार ने जल जीवन मिशन शुरू किया है। इस योजना पर 3,60,000 रुपए खर्च किये जाएंगे। 

समष्टि आर्थिक (मैक्रोइकोनॉमिक) विकास

आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन ने आर्थिक सर्वेक्षण 2019-20 को संसद के पटल पर रखा। सर्वेक्षण की मुख्य झलकियाँ निम्नलिखित हैं:

  • GDP और मुद्रास्फीति: 2018-19 में 6.8% की तुलना में 2019-20 में GDP की वृद्धि 5% रही। यह निरंतर छठी छमाही है, जब GDP की वृद्धि में गिरावट रही। 2020-21 में भारत की GDP की वृद्धि दर 6.0%-6.5% के बीच रहने की उम्मीद है। उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) आधारित मुद्रास्फीति 2018-19 (अप्रैल से दिसंबर, 2018) में 3.7% से बढ़कर 2019-20 (अप्रैल से दिसंबर) में 4.1% रही। इसका मुख्य कारण खाद्य स्फीति में बढ़ोतरी थी। थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index- WPI) आधारित मुद्रास्फीति वर्ष 2018-19 में 4.3% से गिरकर वर्ष 2019-20 (अप्रैल से दिसंबर) में 1.5% रही। 
  • चालू खाता घाटा (Current Account Deficit- CAD) और राजकोषीय घाटा: भारत का CAD वर्ष 2018-19 में GDP के 2.1% से गिरकर वर्ष 2019-20 (अप्रैल-दिसंबर) में GDP का 1.5% हो गया। वर्ष 2019-20 के लिये राजकोषीय घाटा GDP का 3.3% और प्राथमिक घाटा 0.2% पर अनुमानित है (प्राथमिक घाटा ब्याज भुगतान को छोड़कर राजकोषीय घाटा होता है)। नवंबर 2019 तक राजकोषीय घाटा बजटीय स्तर के 114.8% पर रहा। सर्वेक्षण में कहा गया कि राजकोषीय घाटे के लक्ष्य में मौजूदा वर्ष में थोड़ी ढिलाई दी जा सकती है, चूँकि सरकार की तात्कालिक प्राथमिकता यह है कि अर्थव्यवस्था में वृद्धि को पुर्नजीवित किया जाए।  
  • बाज़ार में भरोसा बढ़ाना: सर्वेक्षण में कहा गया कि वर्ष 2025 तक भारत की 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की अभिलाषा के लिये यह जरूरी है कि लोगों का बाज़ार में भरोसा बढ़े। इसके लिये कारोबार समर्थक नीतियों की भी ज़रूरत होगी। इन नीतियों में निम्नलिखित शामिल हैं- 
    (i) नए लोगों को समान अवसर प्रदान करना, निष्पक्ष प्रतिस्पर्द्धा और ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नेस को कायम करना, 
    (ii) सरकारी हस्तक्षेप के ज़रिये ऐसी नीतियों को समाप्त करना जोकि अनावश्यक रूप से बाज़ार को कमज़ोर बनाए, 
    (iii) रोज़गार सृजन के लिये व्यापार को सक्षम बनाना, 
    (iv) बैंकिग क्षेत्र को अर्थव्यवस्था के सानुपातिक बनाना।  
  • इसके अतिरिक्त सर्वेक्षण में निम्नलिखित सुझाव दिये गए: 
    (i) सभी स्तरों पर कर्मचारी स्टॉक स्वामित्व देना और सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की कार्यकुशलता में सुधार हेतु वित्तीय तकनीक का उपयोग करना,
    (ii) केंद्रीय सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों में तीव्र गति से विनिवेश जिससे उनमें लाभपरकता लाई जा सके,
    (iii) रोज़गार सृजन के लिये नेटवर्क प्रॉडक्ट्स के निर्यात पर ध्यान केंद्रित करना। नेटवर्क प्रॉडक्ट्स ऐसे उत्पादों को कहते हैं जिनमें ग्लोबल वैल्यू चेन के ज़रिये उत्पादन किया जाता है। 

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GDP का अनुमान 

देश का सकल घरेलू उत्पाद (Gross Domestic Product- GDP) (2011-12 के मौजूदा मूल्यों पर) पिछले वर्ष के मुकाबले वर्ष 2019-20 में 5% की दर से बढ़ने का अनुमान है। यह वर्ष 2018-19 में 6.8% की दर से कम है।

आर्थिक क्षेत्रों में GDP का मूल्यांकन सकल मूल्य संवर्द्धन (Gross Value Added- GVA) के आधार पर किया जाता है। देश की GVA वर्ष 2019-20 में 4.9% से बढ़ने का अनुमान है जोकि वर्ष 2018-19 में 6.6% था। खनन को छोड़कर सभी क्षेत्रों में वृद्धि दर में वर्ष 2018-19 के मुकाबले गिरावट की उम्मीद है। खनन में मामूली वृद्धि की उम्मीद है। मैन्यूफैक्चरिंग में जबरदस्त गिरावट हुई है। वर्ष 2018-19 में वृद्धि दर 6.9% से गिरकर वर्ष 2019-20 में 2% हो गई है। तालिका 1 में विभिन्न क्षेत्रों में GVA की वृद्धि प्रदर्शित है।

तालिका 1: विभिन्न क्षेत्रों में सकल मूल्य संवर्द्धन (वर्ष दर वर्ष वृद्धि का प्रतिशत) 

क्षेत्र

2017-18

2018-19 2019-20
कृषि 

5.0%

2.9% 2.8%
खनन

5.1%

1.3% 1.5%
विनिर्माण

5.9%

6.9% 2.0%
बिजली

8.6%

7.0% 5.4%
निर्माण

5.6%

8.7% 3.2%
सेवा

8.1%

7.5% 6.9%
GVA

6.9%

6.6% 4.9%

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खुदरा मुद्रास्फीति 

उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (Consumer Price Index- CPI) मुद्रास्फीति (आधार वर्ष: 2011-12, वर्ष दर वर्ष) अक्तूबर 2019 में 4.62% से बढ़कर दिसंबर 2019 में 7.35% हो गई। खाद्य मूल्य भी पूरी तिमाही में बढ़े। अक्तूबर 2019 में यह 7.89% थे, जोकि दिसंबर 2019 में बढ़कर 14.12% हो गए।

थोक मूल्य सूचकांक (Wholesale Price Index- WPI) मुद्रास्फीति (आधार वर्ष: 2011-12, वर्ष दर वर्ष) अक्तूबर 2019 में 0% से बढ़कर दिसंबर 2019 में 2.59% हो गई। 

रेखाचित्र 1: 2019-20 की तिमाही में मुद्रास्फीति की प्रवृत्तियाँ (परिवर्तन का %, वर्ष दर वर्ष में)

Inflation-food


खनन 

खनिज कानून (संशोधन) अध्यादेश, 2020 

खनिज कानून (संशोधन) अध्यादेश, 2020 [Mineral Laws (Amendment) Ordinance, 2020] को 10 जनवरी, 2020 को जारी किया गया। यह अध्यादेश खान और खनिज (विकास एवं रेगुलेशन) एक्ट, 1957 [Mines and Minerals (Development and Regulation) Act, 1957] और कोयला खदान (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 2015 [Coal Mines (Special Provisions) Act, 2015] में संशोधन करता है। CMSP एक्ट में उन खदानों की नीलामी और आबंटन का प्रावधान है जिनका आबंटन वर्ष 2014 में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा रद्द कर दिया गया था। अधिनियम की अनुसूची-I में ऐसी सभी खदानों की सूची है, अनुसूची-II और III में अनुसूची-I में सूचीबद्ध सभी खदानों की उपश्रेणियाँ हैं। अनुसूची-II में ऐसी खदानें शामिल हैं जहाँ उत्पादन शुरू हो चुका है और अनुसूची-III में ऐसी खदानें शामिल हैं जिन्हें निर्दिष्ट अंतिम उपयोग (एंड-यूज) के लिये चिन्हित किया गया है। 

अध्यादेश की मुख्य विशेषताएँ निम्नलिखित हैं:

  • कोयले के अंतिम उपयोग पर लगे प्रतिबंध को हटाना: वर्तमान में नीलामी के ज़रिये अनुसूची-II और अनुसूची-III की कोयला खदानों का अधिग्रहण करने वाली कंपनियाँ सिर्फ निर्दिष्ट अंतिम उपयोग के लिये कोयला उत्पादन कर सकती हैं जैसे- बिजली उत्पादन और स्टील उत्पादन। अध्यादेश कंपनियों द्वारा कोयला उपयोग पर लगे इस प्रतिबंध को हटाता है। कंपनियों को अपने उपभोग, बिक्री या दूसरे उद्देश्यों, जिसे केंद्र सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया जा सकता है, के लिये कोयला खनन की अनुमति होगी। कंपनियाँ इस कोयले को अपने सहायक संयंत्रों में भी इस्तेमाल कर सकती हैं। अध्यादेश स्पष्ट करता है कि कोयला और लिग्नाइट ब्लॉक्स की नीलामी में भाग लेने के लिये कंपनियों के पास कोयला खनन का अनुभव होना जरूरी नहीं। 
  • उत्खनन (प्रॉस्पेक्टिंग) और खनन के लिये कम्पोजिट लाइसेंस: वर्तमान में कोयले और लिग्नाइट के उत्खनन और खनन, जिन्हें क्रमशः प्रॉस्पेक्टिंग लाइसेंस और माइनिंग लीज़ कहा जाता है, के लिये अलग-अलग लाइसेंस दिये जाते हैं। उत्खनन में खनिज भंडार की खोज, स्थान निर्धारण या तलाश शामिल हैं। अध्यादेश एक नए प्रकार का लाइसेंस जोड़ता है जिसे प्रोस्पेक्टिंग लाइसेंस-कम-माइनिंग लीज़ कहा गया है। यह उत्खनन और खनन, दोनों प्रकार की गतिविधियों के लिये कंपोजिट लाइसेंस होगा।
  • नए बिडर्स (बोली लगाने वालों) को वैधानिक मंज़ूरियों का हस्तांतरण: कुछ खनिजों (कोयला, लिग्नाइट और एटॉमिक खनिजों को छोड़कर अन्य खनिज) की माइनिंग लीज़ की समाप्ति के बाद उसे नीलामी के ज़रिये नए लोगों को हस्तांतरित किया जा सकता है। इन नए लोगों से अपेक्षा की जाती है कि वे खनन का काम शुरू करने से पहले वैधानिक मंज़ूरी हासिल करेंगे। अध्यादेश में प्रावधान है कि पूर्व पट्टाधारी को मिली मंज़ूरियाँ और लाइसेंस दो साल की अवधि के लिये सफल बिल्डर को दिया जाएगा। इस अवधि के दौरान नए पट्टाधारी को खनन जारी रखने की अनुमति होगी। हालाँकि नए पट्टाधारी को दो साल में ज़रूरी मंज़ूरियाँ हासिल करनी होंगी।

कोयला बिक्री हेतु कोयला खदानों की नीलामी 

कोयला मंत्रालय ने कोयले की बिक्री हेतु कोयला खदानों की नीलामी के मसौदा नियमों से संबंधित एक परिचर्चा पत्र जारी किया।  

खनिज कानून (संशोधन) अध्यादेश, 2020 (Mineral Laws (Amendment) Ordinance, 2020) में प्रावधान है कि नीलामी में भाग लेने के लिये कंपनियों के पास कोयला खनन का अनुभव होना जरूरी नहीं। अध्यादेश में लाइसेंस-कम-माइनिंग लीज़ के ज़रिये अब तक खोजे न गए और आंशिक रूप से खोजे गए कोयला ब्लॉक्स की नीलामी का भी प्रावधान है। 7 अगस्त, 2019 में FDI नीति को संशोधित किया गया था ताकि कोयले की बिक्री के लिये कोयला खनन गतिविधियों में 100% FDI को अनुमति दी जा सके। मंत्रालय उपरोक्त पहल के ज़रिये कोयले की बिक्री के लिये कोयला खदानों की नीलामी पर विचार कर रहा है। मंत्रालय ने पत्र में उन खदानों की प्राथमिकता बताने की मांग की है जिनकी पहली शृंखला के अंतर्गत नीलामी की जाएगी और और खदानों की एक अस्थायी सूची प्रकाशित की है। मसौदा नियमों की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं:

  • पात्रता के मानदंड: निम्नलिखित कंपनियाँ नीलामी में भाग लेने के लिये पात्र हैं: 
    (i) सरकारी कंपनी, या ऐसी कंपनियों द्वारा स्थापित संयुक्त उपक्रम, या केंद्र और राज्य का संयुक्त उपक्रम, या
    (ii) भारत में निगमित कंपनी या दो या उससे अधिक कंपनियों द्वारा स्थापित संयुक्त उपक्रम। \
    पूर्व आबंटी जिन्होंने: (i) निर्धारित समय अवधि में पूर्व आबंटित खदानों के लिये अतिरिक्त लेवी नहीं चुकाई हो, या 
    (ii) जो किसी अपराध का दोषी हो, नीलामी प्रक्रिया में भाग लेने का पात्र नहीं है।
  • बोली का मानदंड: नीलामी में भाग लेने वाले राजस्व के एक प्रतिशत हिस्से के लिये बोली लगाएंगे जिसे सरकार को चुकाना होगा। फ्लोर प्राइज़ राजस्व के हिस्से का 4% होगा।  
  • भुगतान/गारंटी: नीलामी में सफल होने वालों को निम्नलिखित चुकाना होगा: 
    (i) कोयला खदानों के अनुमानित संसाधनों के मूल्य की 0.5% अपफ्रंट राशि, 
    (ii) सिक्योरिटी के रूप में बैंक गारंटी,
    (iii) प्रदर्शन सुरक्षा, और
    (iv) निश्चित राशि जिसमें व्यय शामिल होंगे जैसे ज़मीन और खदान के इंफ्रास्ट्रक्चर का मूल्य एवं वैधानिक मंज़ूरियाँ हासिल करने की लागत। 
  • कोयला उत्पादन में फ्लेक्सिबिलिटी: नीलामी में सफलता पाने वाले से एक वर्ष में अधिसूचित उत्पादन का कम-से-कम 50% उत्पादित करने की अपेक्षा की जाती है, जैसा कि खदान योजना में मंज़ूर किया गया है। तीन वर्षों में कोयला उत्पादन कम-से-कम 70% ज़रूर होना चाहिये।  

रॉयल्टी की दरों में संशोधन से संबंधित मुद्दों की जाँच हेतु कमेटी का गठन

खदान मंत्रालय ने रॉयल्टी की दरों में संशोधन तथा निर्दिष्ट खनिजों के डेड रेंट से संबंधित फीडबैक की समीक्षा के लिये कमेटी का गठन किया है। इन खनिजों में कोयला, लिग्नाइट, सैंड स्टोइंग और गौण खनिज जैसे- ग्रेनाइट और माइका शामिल नहीं।

खान और खनिज (विकास और रेगुलेशन) एक्ट, 1957 (Mines and Minerals (Development and Regulation) Act, 1957) के अनुसार, खनिजों (गौण खनिजों को छोड़कर) के लिये रॉयल्टी और डेड रेंट को केंद्र सरकार द्वारा हर तीन साल में एक बार संशोधित किया जा सकता है। पहले इन दरों को सितंबर 2014 में संशोधित किया गया था। गौण खनिजों की दरों को राज्य सरकार द्वारा निर्दिष्ट किया जाता है। वर्ष 2018 में मंत्रालय ने मुख्य खनिजों (कोयला लिग्नाइट और सैंड फॉर स्टोइंग) के लिये रॉयल्टी एवं डेड रेंट में संशोधन का सुझाव देने के लिये अध्ययन समूह का गठन किया था। मंत्रालय को अध्ययन समूह की रिपोर्ट पर स्टेकहोल्डर्स की टिप्पणियाँ प्राप्त हुई हैं। कमेटी स्टेकहोल्डर्स द्वारा उठाए गए मुद्दों की जाँच करेगी।

मंत्रालय के अतिरिक्त सचिव कमेटी के अध्यक्ष होंगे। कमेटी के सदस्यों में भारतीय खदान ब्यूरो के प्रतिनिध, और कुछ राज्य सरकारों के खनन सचिव (झारखंड, ओड़िशा, तेलंगाना) शामिल होंगे। कमेटी को अपनी पहली बैठक की तिथि के एक महीने के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपनी होगी। 

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परिवहन

फ्यूल थ्रूपुट चार्ज 

नागरिक उड्डयन मंत्रालय ने एयरपोर्ट ऑपरेटरों द्वारा एविएशन टर्बाइन फ़्यूल (Aviation Turbine Fuel- ATF) पर वसूले जाने वाले फ्यूल थ्रूपुट चार्ज को रैशनलाइज किया है। ईंधन संबंधी शुल्क तीन तरह से वसूला जाता है: 

(i) एयरपोर्ट ऑपरेटर चार्ज, 

(ii) ईंधन इंफ्रास्ट्रक्चर चार्ज, और 

(iii) इन टू प्लेन चार्ज, या इन तीनों को जोड़कर फ्यूल थ्रूपुट चार्ज बनता है। 

मंत्रालय ने निम्नलिखित बदलावों को मंज़ूरी दी है:

  • एयरपोर्ट ऑपरेटर चार्ज या फ्यूल थ्रूपुट चार्ज की किसी भी तरह से वसूली प्रत्येक एयरपोर्ट, एयरस्ट्रिप्स और हेलीपैड से तत्काल प्रभाव से हटा दी जाएगी।
  • मंत्रालय या एयरपोर्ट इकोनॉमिक रेगुलेटरी अथॉरिटी (जैसा मामला हो) एयरपोर्ट ऑपरेटर की भरपाई करेगा- एयरपोर्ट टैरिफ को निर्धारित करते समय दूसरे टैरिफ को फिर से उपयुक्त तरीके से जाँच की जाएगी। 

इंफ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट ट्रस्ट्स की स्थापना 

केंद्रीय कैबिनेट ने भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण (National Highway Authority of India- NHAI) को इंफ्रास्ट्रक्चर इनवेस्टमेंट ट्रस्ट्स (InvITs) को गठित करने तथा पूर्ण एवं परिचालित राष्ट्रीय राजमार्ग (NH) प्रोजेक्ट्स का मुद्रीकरण करने के लिये अधिकृत किया है। इन इनविट्स को सेबी के दिशा-निर्देशों के आधार पर गठित किया जाएगा। मुद्रीकृत होने वाले एनएच प्रोजेक्ट्स का कम-से-कम एक वर्ष का टोल कलेक्शन ट्रैक रिकॉर्ड होना चाहिये। NHAI को इन चिन्हित राजमार्गों पर टोल वसूलने का अधिकार होगा। 

प्रत्येक इनविट के पास दो विशेष प्रयोजन वाहन (Special Purpose Vehicle- SPV) होने चाहिये: 

(i) सभी चिन्हित पब्लिक फंडेड प्रोजेक्ट्स को होल्ड करना, जिसे इनविट में रखा जाना है, और 

(ii) प्रस्तावित इनविट में इनवेस्टमेंट मैनेजर के तौर पर कार्य करना। NHAI इन InvITs को प्राप्त होने वाली राशि के लिये अलग फंड बनाएगा। NHAI के चेयरपर्सन को InvITs में रखे जाने वाले प्रोजेक्ट्स को चुनने और इन InvITs को परिचालित करने का अधिकार है। 

निर्भया फ्रेमवर्क के अंतर्गत वाहन ट्रैकिंग योजना 

सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय (Ministry of Road Transport and Highways) ने निर्भया फंड फ्रेमवर्क के अंतर्गत सुरक्षा हेतु वाहन ट्रैंकिंग प्लेटफॉर्म को लागू करने से संबंधित एक योजना शुरू की। यह योजना सभी राज्यों में लागू होगी। केंद्र सरकार निर्भया फंड बनाएगी जिसे महिलाओं की सुरक्षा में सुधार हेतु विशेष रूप से डिज़ाइन प्रोजेक्ट्स पर खर्च किया जा सकता है। यह नॉन-लैप्सेबल कॉरपस फंड है जिसे वित्त मंत्रालय के आर्थिक मामलों के विभाग द्वारा प्रबंधित किया जाएगा। 

योजना की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • उद्देश्य: प्रस्तावित प्रणाली महिलाओं और बालिकाओं की सुरक्षा बढ़ाने का प्रयास करती है। इसके लिये सभी सार्वजनिक यात्री परिवहन वाहनों पर लोकेशन ट्रैकिंग उपकरण और इमरजेंसी बटन लगाए जाएंगे ताकि आपात स्थिति में चेतावनी दी जा सके। प्रत्येक राज्य/केंद्रशासित प्रदेश में निरीक्षण केंद्र स्थापित किये जाएंगे जो इन इकाइयों का निरीक्षण करेंगे और डिस्ट्रेस कॉल्स का जवाब देंगे। 
  • सिस्टम की जाँच: प्रस्तावित प्रणाली में एक वेहिकल लोकेशन ट्रैकिंग (Vehicle Location Tracking-VLT) डिवाइस होगा जिसमें इमरजेंसी बटन लगे होंगे। ये डिवाइस वाहन की लोकेशन, स्वास्थ्य की स्थिति, चेतावनी और दूसरे डेटा को समय-समय पर निरीक्षण केंद्र भेजेंगे। परिवहन विभाग के अधिकारी इस सिस्टम को एक्सेस कर सकेंगे और केंद्र में चेतावनियों का निरीक्षण कर सकेंगे। 
  • कार्यान्वयन: राज्य 1 जनवरी, 2019 से पहले पंजीकृत होने वाले वाहनों में VLT डिवाइस लगाने के लिये समय अवधि को अधिसूचित करेंगे। VLT मैन्यूफैक्चरर वाहन डेटाबेस में यूनीक आइडेंटिफिकेशन नंबर इंटर करेगा ताकि VLT डिवाइस को निर्दिष्ट वाहन से लिंक किया जा सके। 
  • फंडिंग: योजना की कुल लागत को केंद्र और राज्यों द्वारा उस अनुपात में वहन किया जाएगा, जिसका उल्लेख निर्भया फ्रेमवर्क में है। मंत्रालय द्वारा फंडिंग में बैकएंड सॉफ्टवेयर की लागत, निरीक्षण केंद्रों की स्थापना, अधिकारियों का प्रशिक्षण, डेटा स्टोरेज के लिये क्लाउड सर्विस शामिल हैं।  

ड्रोन्स की स्वैच्छिक घोषणा से संबंधित दिशा-निर्देश 

नागरिक उड्डयन मंत्रालय (Ministry of Civil Aviation) ने भारत में गैर अनुपालन वाले ड्रोन्स की स्वैच्छिक घोषणा से संबंधित दिशा-निर्देश जारी किये। मंत्रालय ने अगस्त 2018 में असैन्य ड्रोन्स के परिचालन से संबंधित रेगुलेशन जारी किये थे। रेगुलेशंस में यूनिक आइडेंटिफिकेशन नंबर हासिल करने की प्रक्रिया, मानव रहित एयरक्राफ्ट ऑपरेटर परमिट और अन्य शर्तें, जैसे असैन्य ड्रोन्स के आइडेंटिफिकेशन का प्रावधान है। 

हालिया दिशा-निर्देशों में यह प्रावधान है कि ड्रोन्स संचालकों को 31 जनवरी, 2020 तक सरकार को जरूरी सूचना देनी होगी। सूचना मिलने के बाद ड्रोन मान्यता संख्या और स्वामित्व मान्यता संख्या दी जाएगी। ये ऐसे ड्रोन को संचालित करने के लिये कोई अधिकार नहीं प्रदान करेंगे। इन संख्याओं के बिना ड्रोन संचालक के खिलाफ लागू कानूनों के अंतर्गत दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।  


विधि और न्याय

जम्मू एवं कश्मीर में टेलीकॉम सेवाओं को रद्द करने एवं सेक्शन 144 लगाने पर सर्वोच्च न्यायालय का फैसला

सर्वोच्च न्यायालय ने निम्नलिखित को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला दिया: 

(i) दूरसंचार सेवाओं के अस्थायी निलंबन (Temporary Suspension of Telecom Services) (लोक आपात या लोक सेवा-Public Emergency or Public Service) नियम, 2017 के अंतर्गत अगस्त 2019 से जम्मू एवं कश्मीर में मोबाइल, लैंडलाइन और इंटरनेट सेवाओं को रद्द करने की संवैधानिकता,

(ii) आपराधिक दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 (Criminal Criminal Procedure Code, 1973) के सेक्शन 144 के अंतर्गत अगस्त 2019 से ज़िला मजिस्ट्रेट द्वारा गतिविधियों और सार्वजनिक सभाओं पर पाबंदी के आदेश की वैधता।  

अदालत ने निम्नलिखित प्रश्नों पर सुनवाई की: (i) क्या सरकार को वर्ष 2017 के नियमों और CRPC के सेक्शन 144 के अंतर्गत दिये गए आदेश को प्रस्तुत करने की ज़रूरत है, (ii) क्या बोलने और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और किसी पेशे, व्यापार या कारोबार को करने की स्वतंत्रता संविधान के अनुच्छेद 19 के अंतर्गत प्रदत्त मूलभूत अधिकारों का अंग हैं, और (iii) क्या इंटरनेट एक्सेस पर प्रतिबंध एवं CRPC के सेक्शन 144 के अंतर्गत प्रतिबंध वैध थे।

पहले प्रश्न पर सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि सभी टेलीकॉम सस्पेंशन आदेशों को प्रस्तुत किया जाना चाहिये। अगर राज्य के पास विशेषाधिकार या सार्वजनिक हित से संबंधित दावा है तो वह इस सीमा तक आदेश को फिर से लागू कर सकता है। राज्य को किसी भी नए सिरे से औचित्य साबित करना होगा।

दूसरे प्रश्न पर न्यायालय ने कहा कि बोलने की स्वतंत्रता और इंटरनेट पर व्यापार करने की स्वतंत्रता को क्रमशः संविधान के अनुच्छेद 19 (1) (ए) और (जी) के अंतर्गत संवैधानिक संरक्षण प्राप्त है। इसलिये इन स्वतंत्रताओं पर प्रतिबंध: 

(i) संविधान के अनुच्छेद 19 (2) और अनुच्छेद 19 (6) के अंतर्गत निर्दिष्ट, जैसे राज्य सुरक्षा, तक सीमित होने चाहिये, और 

(ii) उन्हें आनुपातिकता के सिद्धांत पालन करना चाहिये। 

इन सिद्धांतों का एक वैध उद्देश्य होना चाहिये, उद्देश्य और स्वतंत्रता के प्रतिबंध के बीच एक औचित्य संबंध होना चाहिये और इसका सबूत होना चाहिये कि वह उपाय लक्ष्य हासिल करने का सबसे आसान तरीका है।  

इन सिद्धांतों को लागू करते हुए न्यायालय ने सस्पेंशन के मौजूदा आदेशों की समीक्षा का निर्देश दिया और कहा कि इंटरनेट सेवाओं को अनिश्चितकाल के लिये बंद करना वर्ष 2017 के नियमों के अंतर्गत अनुचित है। न्यायालय ने सभी संबंधित अधिकारियों को आदेशों को प्रकाशित करने और वर्ष 2017 के नियमों के अंतर्गत समीक्षा समितियों को हर सात वर्किंग दिनों में आदेशों की समीक्षा करने का निर्देश दिया। वर्ष 2017 के नियमों में प्रावधान है कि केंद्र और राज्यों की समीक्षा समितियों की स्थापना की जाए जिनमें सरकारी सचिव शामिल हों।

न्यायालय ने CRPC के सेक्शन 144 के अंतर्गत शक्तियों के उपयोग से संबंधित कानूनी स्थिति का सारांश भी प्रस्तुत किया। सेक्शन 144 के अंतर्गत शक्तियों को तभी इस्तेमाल किया जा सकता है जब निम्नलिखित शर्तों का पालन किया जाए: (i) आदेश में वे भौतिक तथ्य हों जिनके आधार पर उन्हें पारित किया गया है, और (ii) प्रस्तुत किये गए खतरे की प्रकृति आपातकालीन है और यह लोगों को नुकसान पहुँचा सकती है। यह कहा गया कि सेक्शन 144 के अंतर्गत बार-बार आदेश देने से शक्तियों का दुरुपयोग हो सकता है। उसने निर्देश दिया कि संबंधित अथॉरिटीज़ जम्मू एवं कश्मीर में सेक्शन 144 के अंतर्गत दिये गए सभी आदेशों को प्रकाशित करें। 

दल बदल विरोधी कानून पर सर्वोच्च न्यायालय की टिप्पणी 

सर्वोच्च न्यायालय ने मणिपुर विधानसभा के अध्यक्ष को निर्देश दिया कि वह चार हफ्ते के भीतर दल बदल से संबंधित याचिका पर फैसला सुनाएं। इससे पूर्व राज्य में एक राजनीतिक दल का विधायक दूसरे राजनीतिक दल में चला गया था। यह मामला उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ दायर किया गया था। इसमें अध्यक्ष द्वारा अयोग्यता की याचिका के निपटारे में विलंब को चुनौती दी गई थी। 

न्यायालय ने कहा कि अध्यक्ष को एक उचित एवं निश्चित समय सीमा में अयोग्यता संबंधी याचिका पर फैसला लेना चाहिये, जोकि तीन महीने से अधिक नहीं होनी चाहिये। उसने कहा कि अयोग्यता संबंधी याचिका में अध्यक्ष की भूमिका पर पुनर्विचार किया जाना चाहिये क्योंकि अध्यक्ष भी किसी न किसी राजनीतिक दल का सदस्य होता है। उसने सुझाव दिया कि संसद संविधान को संशोधित करने पर विचार कर सकती है ताकि अध्यक्ष के स्थान पर एक वैकल्पिक मध्यस्थ अथॉरिटी को लाया जा सके। यह अथॉरिटी स्थायी ट्रिब्यूनल हो सकता है जिसका प्रमुख सर्वोच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त न्यायाधीश या उच्च न्यायालय का सेवानिवृत्त मुख्य न्यायाधीश हो या उसके स्थान पर एक बाह्य स्वतंत्र तंत्र की स्थापना की जाए।

भारत ने UAE को पारस्परिक देश घोषित किया 

विधि और न्याय मंत्रालय (Ministry of Law and Justice) ने संयुक्त अरब अमीरात (UAE) को सिविल प्रोसीजर कोड, वर्ष 1908 के अंतर्गत ‘पारस्परिक क्षेत्र’ घोषित किया। उसने UAE की अदालतों की एक सूची को ‘सुपीरियर कोर्ट्स’ घोषित किया। इन अदालतों में निम्नलिखित शामिल हैं: (i) फेडरल सुप्रीम कोर्ट, और (ii) कुछ स्थानीय अदालतें, जैसे अबू धाबी ज्यूडीशियल डिपार्टमेंट और दुबई कोर्ट्स। सामान्यतः भारत की दीवानी अदालत के आदेश को उसी अदालत या किसी अन्य अदालत (जिसके क्षेत्राधिकार में वह मामला आता हो) में आदेश की प्रति फाइल करके लागू किया जाता है। पारस्परिक क्षेत्र के सुपीरियर कोर्ट्स के स्थानीय आदेशों को भारत में लागू किया जा सकता है, जैसे वह भारत की दीवानी अदालत में दिये गए हों।  


गृह मामले

भारत सरकार, असम सरकार और बोडो प्रतिनिधियों के बीच समझौता 

भारत सरकार, असम सरकार और बोडो प्रतिनिधियों ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किये। प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, बोडो क्षेत्रों के विकास हेतु विशिष्ट परियोजनाएँ चलाने के लिये केंद्र सरकार तीन वर्षों के लिये 1500 करोड़ रुपए का विशेष पैकेज देगी। इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार और असम सरकार नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ बोडोलैंड के कुछ गुटों के 1500 कैडेट्स के पुनर्वास के लिये उपाय करेगी।  


वित्त

वित्तीय समावेश के लिये राष्ट्रीय रणनीति 

RBI ने वित्तीय समावेश 2019-2024 के लिये राष्ट्रीय रणनीति जारी की। यह रणनीति भारत में वित्तीय समावेश की नीतियों के दृष्टिकोण और लक्ष्यों को निर्धारित करती है। रिपोर्ट के अनुसार, वित्तीय समावेश वित्तीय सेवाओं तक पहुँच को सुनिश्चित करने तथा संवेदनशील समूहों एवं निम्न आय वर्ग के समूहों को निश्चित समय तथा सस्ती दरों पर ऋण मुहैया कराने की प्रक्रिया होती है। RBI के मुख्य निष्कर्षों तथा सुझावों में निम्नलिखित शामिल हैं: 

  • वित्तीय समावेश के उपाय: RBI ने कहा कि देश में वित्तीय समावेश को बढ़ाने के लिये अनेक कदम उठाए गए हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: 
    (i) प्रधानमंत्री जन धन योजना (Pradhan Mantri Jan Dhan Yojana- PMJDY), जिसके अंतर्गत 89,257 करोड़ रुपए की जमा से 34 करोड़ खाते खोले गए हैं।
    (ii) बैंक खाता धारकों को सबस्क्राइब करने हेतु अटल पेंशन योजना (Atal Pension Yojana- APY) जैसी योजनाएँ। 
  • हालाँकि उसने अनेक अंतरालों को चिन्हित किया है जोकि वित्तीय समावेश के लिये एक बाधा बने हुए हैं, जैसे: (i) अपर्याप्त इंफ्रास्ट्रक्चर (ग्रामीण इलाकों के कुछ हिस्सों में, पर्वतीय और उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में दूर-दराज के क्षेत्रों में), (ii) ग्रामीण क्षेत्रों में खराब दूरसंचार एवं इंटरनेट कनेक्टिविटी, (iii) सामाजिक-सांस्कृतिक अवरोध, और (iv) पेमेंट प्रॉडक्ट स्पेस में मार्केट प्लेयर्स की कमी।  
  • वित्तीय समावेश के रणनीतिक उद्देश्य: RBI ने वित्तीय समावेश के लिये राष्ट्रीय नीति के छह रणनीतिक उद्देश्यों को चिन्हित किया: 
    (i) वित्तीय सेवाओं तक सार्वभौमिक पहुँच, 
    (ii) वित्तीय सेवाओं का बेसिक बुके देना, 
    (iii) जीविकोपार्जन और दक्षता विकास तक पहुँच, 
    (iv) वित्तीय साक्षरता और शिक्षा, 
    (v) उपभोक्ता संरक्षण और शिकायत निवारण, और 
    (vi) प्रभावी समन्वय। 

इस दृष्टिकोण को हासिल करने के लिये उसने कुछ माइलस्टोन्स चिन्हित किये गए जैसे: (क) मार्च 2020 तक पाँच किलोमीटर के दायरे में आने वाले प्रत्येक गाँव (या पहाड़ी क्षेत्रों में 500 घरों का छोटा गाँव) को बैंकिंग एक्सेस देना, और (b) मार्च 2022 तक नकदरहित समाज बनाने हेतु इंफ्रास्ट्रक्चर निर्माण के लिये डिजिटल वित्तीय सेवाओं को मज़बूत करना।  

  • वित्तीय समावेश के मापदंड: RBI ने सुझाव दिया कि वित्तीय समावेश को तीन मुख्य संकेतकों से जुड़े मापदंडों पर मापा जाना चाहिये। इनमें निम्नलिखित के लिये मापदंड शामिल हैं: 
    (i) एक्सेस, जैसे एक निर्दिष्ट आबादी पर बैंक शाखाओं या ATM की संख्या, 
    (ii) उपयोग, जैसे बचत खाते, बीमा या पेंशन पॉलिसी वाले वयस्कों का प्रतिशत, 
    (iii) और सेवाओं की गुणवत्ता, जैसे शिकायत निवारण (प्राप्त होने वाली शिकायतों की संख्या और उन्हें निपटाए जाने की संख्या के ज़रिये)। 

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शहरी सहकारी बैंकों के लिये सुपरवाइजरी एक्शन फ्रेमवर्क 

भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने प्राथमिक (शहरी) सहकारी बैंकों ((Urban) Co-Operative Banks- UCB) के लिये अपने सुपरवाइजरी एक्शन फ्रेमवर्क में संशोधन किये हैं ताकि वित्तीय स्ट्रेस वाले UCB को रिजॉल्व किया जा सके और फ्रेमवर्क को अधिक प्रभावशाली बनाया जा सके। 

सुपरवाइजरी एक्शन फ्रेमवर्क के अंतर्गत UCB द्वारा सुधारात्मक कार्रवाई शुरू करने या RBI द्वारा सुपरवाइजरी कार्रवाई के लिये कुछ ट्रिगर्स को चिन्हित किया गया है। संशोधित फ्रेमवर्क ने विशिष्ट कार्रवाइयों को अधिसूचित किया है जोकि RBI द्वारा तब शुरू की जा सकती हैं जब बैंक सुपरवाइजरी एक्शन फ्रेमवर्क के अंतर्गत रखा जाएगा: 

  • वर्तमान में एक UCB को फ्रेमवर्क के अंतर्गत रखा जा सकता है, अगर उसके ग्रॉस (सकल) नॉन परफॉर्मिंग एसेट्स (Non Performing Assets- NPA) उसके एडवांस (अग्रिम) के 10% से अधिक हों। संशोधित फ्रेमवर्क निर्दिष्ट करता है कि एक UCB को फ्रेमवर्क में रखा जा सकता है, अगर उसका शुद्ध NPA (यानी प्रोविजंस को हटाकर सकल NPA) उसके शुद्ध अग्रिम का 6% से अधिक हो। इसके अतिरिक्त यह निर्दिष्ट करता है कि ऐसे मामलों में RBI कुछ उपाय कर सकती हैं, जैसे: (i) शुद्ध NPA को 6% से कम करने के लिये बोर्ड अनुमोदित योजना प्रस्तुत करने की UCB को सलाह देना, (ii) RBI के पूर्व अनुमोदन के बिना लाभांश के भुगतान पर रोक लगाना, (iii) जिन क्षेत्रों में NPA का बड़ा अनुपात है, उन्हें ऋण देने पर रोक लगाना। 
  • एक USB को फ्रेमवर्क के अंतर्गत रखा जा सकता है, अगर उसे लगातार दो वित्तीय वर्षों तक घाटा (या संचित घाटा) हुआ है। संशोधित फ्रेमवर्क निर्दिष्ट करता है कि ऐसे मामलों में RBI कुछ कार्रवाई कर सकती है, जैसे: (i) लाभांश के भुगतान पर रोक लगाना, (ii) RBI के पूर्व अनुमोदन के लिये पूंजीगत व्यय पर रोक लगाना, या (iii) ऑपरेटिंग या प्रशासनिक व्यय में कमी के लिये उपाय करना।
  • एक UCB को फ्रेमवर्क में रखा जा सकता है, अगर उसका कैपिटल टू रिस्क वेटेड एसेट्स रेशो (CRAR) 9% से कम है। संशोधित फ्रेमवर्क के अनुसार, ऐसे मामलों में RBI :
    (i) UCB को यह सलाह दे सकती है कि वह 12 महीने के भीतर CRAR को 9% से अधिक करने के संबंध में बोर्ड समर्थित योजना सौंपे, 
    (ii) UCB का विलय दूसरे बैंक में करने या उसे क्रेडिट सोसायटी में बदलने हेतु बोर्ड समर्थित प्रस्ताव की मांग कर सकती है, या 
    (iii) नई उधारियों पर रोक लगा सकती है और नए लोन्स की सीमाएँ तय कर सकती है, इत्यादि। 

इसके अतिरिक्त RBI ने यह भी अधिसूचित किया है कि 500 करोड़ रुपए या उससे अधिक की कुल परिसंपत्ति वाले UCB को अपने उन सभी उधारकर्त्ताओं की क्रेडिट इनफॉरमेशन RBI के सेंट्रल रेपोसिटरी ऑफ इनफॉरमेशन ऑन लार्ज क्रेडिट्स को देनी चाहिये जिनका एग्रीगेट एक्सपोजर 5 करोड़ रुपए या उससे अधिक है। 

स्टैंडर्ड इनडिविजुअल हेल्थ इंश्योरेंस प्रॉडक्ट 

भारतीय बीमा और नियामक विकास प्राधिकरण (Insurance and Regulatory Development Authority of India- IRDAI) ने सभी सामान्य और स्वास्थ्य बीमा कंपनियों को स्टैंडर्ड इनडिविजुअल हेल्थ इंश्योरेंस प्रॉडक्ट से संबंधित दिशा-निर्देश जारी किये। ये दिशा-निर्देश निम्नलिखित सुनिश्चित करने का प्रयास करते हैं: 

(क) उद्योग में स्टैंडर्ड प्रॉडक्ट, और 

(ख) बीमित लोगों को उद्योग में पोर्टेबिलिटी देना। 

दिशा-निर्देशों के अनुसार, यह प्रॉडक्ट एक वर्ष की अवधि तथा क्षतिपूर्ति के आधार पर प्रदान किया जाएगा। उसमें कोई एड-ऑन्स या वैकल्पिक कवर नहीं होगा। प्रॉडक्ट में कुछ बुनियादी अनिवार्य कवर शामिल होंगे: 

(i) अस्पताल में भर्ती होने का खर्च (अधिकतम 5,000 रुपए प्रतिदिन), 

(ii) अस्पताल में भर्ती होने से पहले के मेडिकल खर्च जोकि भर्ती होने से 30 दिन पहले किये जाएंगे, और 

(iii) भर्ती होने के बाद का मेडिकल खर्च, जोकि डिस्चार्ज होने के 60 दिन बाद तक किया जाए। 

पॉलिसी के तहत बीमित न्यूनतम और अधिकतम राशि क्रमशः एक लाख रुपए और पाँच लाख रुपए होगी। 


स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण

मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) विधेयक, 2020 

केंद्रीय कैबिनेट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (संशोधन) विधेयक, 2020 (Medical Termination of Pregnancy (Amendment) Bill, 2020) को मंज़ूरी दी। विधेयक मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट, 1971 में संशोधन का प्रयास करता है जोकि पंजीकृत मेडिकल प्रैक्टीशनर द्वारा कुछ स्थितियों में गर्भपात का प्रावधान करता है।  

राष्ट्रीय डेंटल आयोग विधेयक, 2020 

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने राष्ट्रीय डेंटल आयोग विधेयक, 2020 (National Dental Commission Bill, 2020) का मसौदा सार्वजनिक टिप्पणियों के लिये जारी किया गया। मसौदा बिल डेंटिस्ट्स अधिनियम, 1948 को रद्द करने का प्रयास करता है और डेंटल शिक्षा प्रणाली के लिये प्रावधान करता है जोकि निम्नलिखित को सुनिश्चित करे: 

(i) पर्याप्त और उच्च क्वालिटी के डेंटल प्रोफेशनल्स की उपलब्धता, 

(ii) डेंटल प्रोफेशनल्स द्वारा हालिया डेंटल रिसर्च को अपनाया जाए, 

(iii) डेंटल संस्थानों का आवर्ती मूल्यांकन, और 

(iv) प्रभावशाली शिकायत निवारण प्रणाली। 

बिल की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • राष्ट्रीय डेंटल आयोग का संयोजन: विधेयक राष्ट्रीय डेंटल आयोग (National Dental Commission- NDC) की स्थापना का प्रावधान करता है। विधेयक के पारित होने के तीन वर्षों के भीतर राज्य सरकारें अपने स्तर पर राज्य डेंटल काउंसिल बनाएंगी। NDC में 30 सदस्य होंगे, जिन्हें केंद्र सरकार द्वारा नियुक्त किया जाएगा। 
  • NDC के सदस्यों में निम्नलिखित शामिल होंगे: 
    (i) चेयरपर्सन (जोकि डेंटस प्रैक्टीशनर होने चाहिये), 
    (ii) अंडर ग्रैजुएट एवं पोस्ट ग्रैजुएट डेंटल एजुकेशन बोर्ड के प्रेज़िडेंट्स, 
    (iii) स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के महानिदेशक, और 
    (iv) पंजीकृत डेंटल प्रैक्टीशनर्स द्वारा अपने बीच से नौ सदस्यों (पार्ट टाइम) का चयन। राज्यों तथा केंद्र शासित प्रदेशों में से चुने गए ये सदस्य दो वर्षों तक अपने पद पर बने रहेंगे। 
  • राष्ट्रीय डेंटल आयोग के कार्य: NDC के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: 
    (i) डेंटल संस्थानों और डेंटल प्रोफेशनल्स को रेगुलेट करने के लिये नीतियाँ बनाना, 
    (ii) स्वास्थ्य सेवाओं से संबंधित मानव संसाधन और इंफ्रास्ट्रक्चर संबंधी ज़रूरतों का मूल्यांकन करना, 
    (iii) यह सुनिश्चित करना कि राज्य की डेंटल काउंसिल्स बिल के रेगुलेशंस का पालन कर रही हैं, 
    (iv) निजी डेंटल संस्थानों और डीम्ड विश्वविद्यालयों, जोकि बिल के अंतर्गत रेगुलेट होते हैं, में अधिकतम 50% सीटों के लिये फीस निर्धारित करने हेतु दिशा-निर्देश बनाना। 
  • स्वायत्त बोर्ड्स: विधेयक NDC की निगरानी में कुछ स्वायत्त बोर्डों का गठन करता है। प्रत्येक बोर्ड में प्रेज़िडेंट और चार सदस्य होंगे जिनकी नियुक्ति केंद्र सरकार द्वारा की जाएगी। ये बोर्ड हैं: 
    (i) अंडर ग्रैजुएट डेंटल एजुकेशन बोर्ड, 
    (ii) पोस्ट ग्रैजुएट डेंटल डेंटल एजुकेशन बोर्ड, 
    (iii) डेंटल असेसमेंट और रेटिंग बोर्ड, और 
    (iv) एथिक्स और डेंटल रजिस्ट्रेशन बोर्ड। 

राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग विधेयक, 2019 में संशोधन

केंद्रीय कैबिनेट ने राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग विधेयक, 2019 में संशोधनों को मंज़ूर किया। इन संशोधनों का विवरण पब्लिक डोमेन में उपलब्ध नहीं है। प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, इन संशोधनों में होम्योपैथी शिक्षा के क्षेत्र में ज़जरूरी रेगुलेटरी सुधारों को सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है।

राष्ट्रीय होम्योपैथी आयोग विधेयक 2019 को राज्यसभा में 7 जनवरी, 2019 को पेश किया गया था। विधेयक केंद्रीय होम्योपैथी काउंसिल एक्ट, 1973 को रद्द करता है और होम्योपैथी चिकित्सा की शिक्षा और प्रैक्टिस के रेगुलेशन का प्रावधान करता है। 

स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी कमेटी ने (चेयरपर्सन: प्रो. राम गोपाल यादव) 27 नवंबर, 2019 को विधेयक पर अपनी रिपोर्ट सौंपी।

कमेटी ने आयोग की स्थापना, अपील प्रक्रिया, फीस के रेगुलेशन और आयोग के अंतर्गत गठित स्वायत्त बोर्ड्स के संबंध में अनेक सुझाव दिये। 

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राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयोग विधेयक, 2019 में संशोधन 

केंद्रीय कैबिनेट ने राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयोग विधेयक, 2019 में संशोधनों को मंज़ूर किया। इन संशोधनों का विवरण पब्लिक डोमेन में उपलब्ध नहीं है। प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, इन संशोधनों के ज़रिये आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध और सोवा-रिग्पा शिक्षा के क्षेत्रों में जरूरी रेगुलेटरी सुधारों को सुनिश्चित करने का प्रयास किया गया है। 

राष्ट्रीय भारतीय चिकित्सा प्रणाली आयोग विधेयक, 2019 को 7 जनवरी, 2019 को राज्यसभा में पेश किया गया। विधेयक केंद्रीय भारतीय चिकित्सा प्रणाली काउंसिल एक्ट, 1970 को रद्द करता है और आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध एवं सोवा-रिग्पा की शिक्षा तथा प्रैक्टिस के रेगुलेशन का प्रावधान करता है। स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण संबंधी कमेटी (चेयरपर्सन: प्रो. राम गोपाल यादव) ने 27 नवंबर, 2019 को विधेयक पर अपनी रिपोर्ट सौंपी। कमेटी ने आयोग की स्थापना, अपील प्रक्रिया, फीस के रेगुलेशन और आयोग के अंतर्गत गठित स्वायत्त बोर्ड्स के संबंध में अनेक सुझाव दिये। 

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पर्यावरण एवं वन

वेटलैंड्स (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2019 

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने वेटलैंड्स (संरक्षण और प्रबंधन) नियम, 2019 को लागू करने से संबंधित दिशा-निर्देशों को अधिसूचित किया। इन नियमों में वेटलैंड्स के संरक्षण हेतु विभिन्न निकायों की स्थापना का प्रावधान है और इसमें उनकी शक्तियाँ एवं कार्यों को स्पष्ट किया गया है। 

दिशा-निर्देश राज्य/केंद्र शासित प्रदेश (Union Territories- UT) के प्रशासनों को नियमों को लागू करने के संबंध में सहयोग देते हैं। इन नियमों में वेटलैंड्स (आर्द्रभूमि) के प्रबंधन और प्रशासनिक मामलों से संबंधित दिशा-निर्देश समाहित हैं। दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं: 

  • वेटलैंड अथॉरिटी की भूमिका: वेटलैंड्स नियमों के अनुसार, राज्य में वेटलैंड्स अथॉरिटी राज्य/केंद्र शासित प्रदेश में सभी वेटलैंड अथॉरिटीज़ के लिये विशिष्ट एक नोडल अथॉरिटी है। अथॉरिटी के कार्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: 
    (i) राज्य/केंद्र शासित प्रदेश के सभी वेटलैंड्स की एक सूची तैयार करना और नियमों के अंतर्गत रेगुलेशंस के लिये वेटलैंड्स का सुझाव देना, 
    (ii) जिन गतिविधियों को रेगुलट किया जाना है और अधिसूचित वेटलैंड्स में किन गतिविधियों की अनुमति है, उनकी एक व्यापक सूची बनाना, और 
    (iii) संबंधित कार्यान्वयन एजेंसियों को वेटलैंड्स के संरक्षण और सतत् प्रबंधन के संबंध में ज़रूरी निर्देश देना। 
  • प्रतिबंधित गतिविधियाँ: दिशा-निर्देशों में ऐसी गतिविधियों की सूची दी गई है जोकि वेटलैंड्स में प्रतिबंधित हैं। इनमें निम्नलिखित शामिल हैं: 
    (i) उद्योग लगाना और मौजूदा उद्योगों का विस्तार, 
    (ii) ठोस अपशिष्ट या उद्योगों और मानव बस्तियों से अपशिष्टों को बहाना, और 
    (iii) अतिक्रमण या गैर वेटलैंड्स उपयोग हेतु वेटलैंड्स को बदलना।  
  • एकीकृत प्रबंधन योजना: दिशा-निर्देशों में सुझाव दिया गया है कि राज्य/केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन प्रत्येक अधिसूचित वेटलैंड के प्रबंधन के लिये योजना तैयार करे। योजना एक ऐसे दस्तावेज़ को कहा गया है जोकि:- 
    (i) वेटलैंड के उपयोग हेतु रणनीतियों और कार्रवाइयों को स्पष्ट करता है, 
    (ii) वेटलैंड्स की इकोलॉजिकल प्रकृति में बदलाव का पता लगाने के लिये निगरानी के महत्त्व के बारे में बताता है, और 
    (iii) रेगुलेटरी फ्रेमवर्क और नीतिगत प्रतिबद्धताओं का अनुपालन सुनिश्चित करता है।  
  • उल्लंघन: वेटलैंड्स अथॉरिटीज़ यह सुनिश्चित करती हैं कि वेटलैंड्स नियम और दूसरे संबंधित अधिनियम, नियम एवं रेगुलेशंस का पालन किया जा रहा है। वेटलैंड्स या उसके प्रभावी जोन की सीमा (राज्य/केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन) के भीतर कोई प्रतिबंधित या रेगुलेटेड गतिविधियों को वेटलैंड्स नियम का उल्लंघन माना जाएगा। नियमों का उल्लंघन करने पर पर्यावरण (संरक्षण) एक्ट, 1986 के अंतर्गत सज़ा हो सकती है। 

सैंड माइनिंग के प्रवर्तन और निगरानी संबंधी दिशा-निर्देश 

पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने सैंड माइनिंग के प्रवर्तन और निगरानी संबंधी दिशा-निर्देश जारी किये। यह स्थायी रेत प्रबंधन दिशा-निर्देश, 2016 का अनुपूरक है जोकि देश में सैंड माइनिंग के प्रबंधन पर केंद्रित है। अवैध सैंड माइनिंग से संबंधित मामलों पर नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल द्वारा जारी किये गए विभिन्न आदेशों को ध्यान में रखते हुए दिशा-निर्देश तैयार किये गए हैं।

दिशा-निर्देश के उद्देश्यों में निम्नलिखित शामिल हैं: 

(i) देश में सैंड माइनिंग को रेगुलेट करना, 

(ii) अवैध लैंड माइनिंग को रोकना, 

(iii) सैंड माइनिंग की निगरानी के लिये आईटी- एनेबल्ड सेवाओं और तकनीक का इस्तेमाल, और 

(iv) पर्यावरणीय मंज़ूरियों के बाद निगरानी को सुनिश्चित करना। 

दिशा-निर्देशों की मुख्य विशेषताओं में निम्नलिखित शामिल हैं:

  • ज़िला सर्वेक्षण रिपोर्ट: दिशा-निर्देशों में खनन की अनुमति या प्रतिबंध वाले क्षेत्रों को चिन्हित करने की प्रक्रियाओं का प्रावधान है। उसमें ज़िला सर्वेक्षण रिपोर्ट तैयार करने से संबंधित दिशा-निर्देशों का प्रावधान है जिनमें निम्नलिखित शामिल हैं: 
    (i) खनन लीज़ देने से पहले रिपोर्ट तैयार करना, और 
    (ii) पर्यावरणीय एवं सामाजिक कारकों के आधार पर माइनिंग और नो माइनिंग क्षेत्रों को स्पष्ट करना। 
  • अवैध खनन: सभी रेगुलेटरी प्रक्रियाओं और नीतियों के बावजूद, अवैध खनन के मामले और नियमित निगरानी की ज़रूरत होती है। दिशा-निर्देशों में सुझाव दिया गया है कि साइट्स पर मानवरहित कृत्रिम वाहनों या ड्रोन्स का प्रयोग करते हुए दूर से नज़र रखी जा सकती है।  
  • ड्रोन का उपयोग मात्रा का विश्लेषण करने और भूमि उपयोग पर निगरानी रखने के लिये किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त दिशा-निर्देश नाइट-विज़न ड्रोन के माध्यम से खनन गतिविधियों की रात में निगरानी का प्रस्ताव करते हैं। अवैध खनन के कारण होने वाले पर्यावरणीय नुकसान का आकलन ज़िला प्रशासन द्वारा गठित एक कमेटी द्वारा किया जाएगा। 
  • पर्यावरणीय मंजूरियाँ: संभावित पर्यावरणीय प्रभावों पर विचार करने के बाद रेगुलेटरी अथॉरिटीज़ द्वारा खनन के लिये मंज़ूरी दी जाती है। हालाँकि यह देखा गया है कि अक्सर लेटर ऑफ इंटेंट (Letter of Intent- LoI) एक ऐसे स्थान के लिये दिया जाता है जहाँ पर्यावरण के लिहाज से खनन नहीं किया जाना चाहिये। दिशा-निर्देशों में प्रावधान है कि LoI को उन स्थानों के लिये प्रदान किया जाना चाहिये जहाँ पर्यावरण और आस-पास के लोगों पर कम-से-कम असर होने की आशंका है।  

वाणिज्य और उद्योग

राष्ट्रीय स्टार्टअप एडवाइजरी काउंसिल का गठन

केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्टार्टअप एडवाइजरी काउंसिल के गठन की अधिसूचना दी। काउंसिल स्टार्टअप्स को बढ़ावा देने के लिये ज़रूरी उपायों पर सरकार को सलाह देगी। परिषद के कार्यों में शामिल हैं: 

(i) सभी क्षेत्रों में नवाचार को बढ़ावा देना, 

(ii) रेगुलेटरी अनुपालन और लागत को कम करना, और 

(iii) स्टार्टअप्स को आसानी से पूंजी उपलब्ध करना।

काउंसिल की अध्यक्षता वाणिज्य और उद्योग मंत्री करेंगे। परिषद के गैर-आधिकारिक सदस्यों में शामिल होंगे: 

(i) सफल स्टार्टअप के अधिकतम 10 संस्थापक, 

(ii) उद्योग संघों के अधिकतम छह सदस्य, और 

(iii) इनक्यूबेटर्स और एसिलेटर्स के इंटरेस्ट्स का प्रतिनिधित्व करने वाले अधिकतम छह सदस्य। 

वे दो साल तक या अगले आदेशों तक, जो भी पहले हो, अपनी सेवाएँ प्रदान करेंगे। पदेन सदस्यों में निकायों से नामांकित व्यक्ति जैसे नीति आयोग, राजस्व विभाग और कॉर्पोरेट मामलों के मंत्रालय शामिल होंगे।


रक्षा

डिफेंस एक्विजिशन काउंसिल ने 5,100 करोड़ रुपए की लागत से खरीद को मंज़ूरी 

डिफेंस एक्विजिशन काउंसिल ने सशस्त्र बलों के लिये 5,100 करोड़ रुपए की लागत से उपकरणों की खरीद को मंज़ूरी दी। इस तरह की खरीद स्वदेशी स्रोतों से की जाएगी। इस राशि से रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन द्वारा थल सेना के लिये डिज़ाइन और भारत में निर्मित इलेक्ट्रॉनिक वॉरफेयर सिस्टम्स खरीदे जाएंगे।

काउंसिल ने रक्षा खरीद प्रक्रिया (Defence Procurement Procedure- DPP) में रक्षा उत्कृष्टता के लिये नवाचार (Innovation for Defence Excellence- iDEX) के समावेश को भी मंज़ूरी दी। iDEX का उद्देश्य रक्षा क्षेत्र में तकनीक के विकास को बढ़ावा देना है। इसके लिये अनुसंधान संस्थानों, शिक्षाविदों, उद्योग और स्टार्टअप्स को फंडिंग या अनुदान दिये जाएंगे। DPP में iDEX के समावेश से सशस्त्र बलों के लिये उन संस्थाओं द्वारा पूंजीगत खरीद के नए आयाम खुलेंगे जो iDEX में संलग्न हैं।  


संचार

ट्रैफिक मैनेजमेंट प्रैक्टिसेज़ और नेट न्यूट्रिलिटी के लिये मल्टी-स्टेकहोल्डर बॉडी

भारतीय दूरसंचार नियामक प्राधिकरण (Telecom Regulatory Authority of India- TRAI) ने ‘ट्रैफिक मैनेजमेंट प्रैक्टिसेज़ और नेट न्यूट्रिलिटी के लिये मल्टी स्टेकहोल्डर बॉडी’ पर परामर्श पत्र जारी किया। नेट न्यूट्रिलिटी का अर्थ है, एक्सेस होने वाले कंटेंट, इस्तेमाल होने वाले प्रोटोकॉल्स या तैनात किये जाने वाले यूज़र एक्विपमेंट की परवाह किये बिना इंटरनेट का गैर भेदभावकारी एक्सेस।

इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर टेलीकॉम नेटवर्क में ट्रैफिक के कन्जेशन के प्रबंधन के लिये यातायात प्रबंधन अभ्यास (Traffic Management Practices- TMP) जैसी विभिन्न प्रैक्टिसेस को तैनात कर सकते हैं। लेटेंसी सेंसिटिव ट्रैफिक को प्राथमिकता देने के लिये भी TMP की ज़रूरत पड़ सकती है। उदाहरण के लिये इंटरनेट टेलीफोनी में यह आवश्यक है कि अच्छी वॉयस क्वालिटी प्राप्त करने के लिये नियमित अंतराल पर ऑडियो डेटा दिया जाए। ऑडियो डेटा की अनियमित डिलीवरी से यूज़र को खराब आवाज़ सुनाई देती है। TMP में कुछ प्रतिबंध भी लागू हो सकते हैं जैसे कंटेंट की श्रेणी और प्रकृति के आधार पर इंटरनेट ट्रैफिक पर प्रतिबंध। 

TRAI ने कहा कि इनमें से कुछ नेट न्यूट्रिलिटी के लिहाज चिंता का विषय हो सकते हैं और इसे सामान्य रूप से लागू नहीं किया जाना चाहिये, क्योंकि नेट न्यूट्रिलिटी के लिये सभी प्रकार के ट्रैफिक से साथ एक समान व्यवहार किया जाना चाहिये। कुछ TMP विशिष्ट स्थितियों जैसे कि अधिक ट्रैफिक की स्थिति के लिये ज़रूरी हो सकते हैं। TMP के अंतर्गत सर्विस प्रोवाइडर द्वारा किसी भी प्रतिबंध या हस्तक्षेप को आनुपातिक, अस्थायी और पारदर्शी होना चाहिये। इसलिये विभिन्न TMP की तर्कशीलता को निर्धारित करने और ऐसी प्रैक्टिसेज़ के बारे में पारदर्शिता सुनिश्चित करने के लिये एक फ्रेमवर्क अपनाया जाना चाहिये।

नेट न्यूट्रिलिटी के सिद्धांतों की निगरानी और प्रवर्तन की चुनौतियों के मद्देनज़र ट्राई द्वारा एक मल्टी-स्टेकहोल्डर बॉडी की परिकल्पना की गई है। यह निकाय दूरसंचार विभाग को नेट न्यूट्रिलिटी के सिद्धांतों की निगरानी और प्रवर्तन के बारे में सलाह एवं सहयोग दे सकता है। इसमें विभिन्न श्रेणियों का प्रतिनिधित्व करने वाले सदस्य शामिल हो सकते हैं जैसे: (i) दूरसंचार और इंटरनेट सर्विस प्रोवाइडर, (ii) कंटेंट सर्विस प्रोवाइडर, (iii) शिक्षाविद और अनुसंधानकर्त्ता, और (iv) नागरिक समाज।

TRAI ने निम्नलिखित मामलों पर विचार मांगे हैं: 

(i) TMP के प्रकार, 

(ii) नेट न्यूट्रिलिटी के परिप्रेक्ष्य से TMP का तर्क 

(iii) क्या ऐसे TMP की अग्रिम सूची तैयार की जा सकती है या समय-समय पर अपडेट किये जाने की ज़रूरत होगी, 

(iv) नेट न्यूट्रिलिटी के उल्लंघन का पता लगाने के लिये सेटअप, और 

(v) मल्टी-स्टेकहोल्डर बॉडी की संरचना, कार्य, भूमिका और ज़िम्मेदारियाँ।

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