सामाजिक न्याय
गर्भपात संबंधी नियमों में बदलाव
- 29 Jan 2020
- 7 min read
प्रीलिम्स के लिये:
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम 1971, मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (संशोधन) विधेयक, 2020
मेन्स के लिये:
महिला अधिकारों से संबंधित मुद्दे, स्वास्थ्य संबंधी मुद्दे
चर्चा में क्यों?
हाल ही में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने वैधानिक रूप से गर्भपात संबंधी नियमों में बदलाव के लिये मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (Medical Termination of Pregnancy- MTP) अधिनियम, 1971 में संशोधन को मंज़ूरी दे दी है।
महत्त्वपूर्ण बिंदु
- प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में केंद्रीय मंत्रिमंडल ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम, 1971 में संशोधन करने के लिये मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी (संशोधन) विधेयक, 2020 को मंज़ूरी दी है। इस विधेयक को संसद के आगामी सत्र में पेश किया जाएगा।
- यह विधेयक महिलाओं के लिये उपचारात्मक, मानवीय या सामाजिक आधार पर सुरक्षित और वैध गर्भपात सेवाओं का विस्तार करने के लिये लाया जा रहा है।
- प्रस्तावित संशोधन का उद्देश्य कुछ उप-धाराओं को स्थानापन्न करना, मौजूदा गर्भपात कानून, 1971 में निश्चित शर्तों के साथ गर्भपात के लिये गर्भावस्था की ऊपरी सीमा बढ़ाने के उद्देश्य से कुछ धाराओं के तहत नए अनुच्छेद जोड़ना और सुरक्षित गर्भपात की सेवा एवं गुणवत्ता से किसी तरह का समझौता किये बगैर कठोर शर्तों के साथ समग्र गर्भपात देखभाल प्रणाली को पहले से और अधिक सख्ती से लागू करना है।
- ध्यातव्य है कि हाल के दिनों में गर्भपात से संबंधित कई मामले सामने आए हैं जिनमें से अधिकतर गर्भपात की समयसीमा से संबंधित थे। इन मामलों पर न्यायालय द्वारा पीड़ित को राहत प्रदान की गई तथा सरकार से इन नियमों में बदलाव करने का आग्रह किया गया था।
प्रस्तावित संशोधन की मुख्य बातें
- गर्भावस्था के 20 सप्ताह तक गर्भपात कराने के लिये एक चिकित्सक की राय लेने का प्रस्ताव किया गया है और गर्भावस्था के 20 से 24 सप्ताह तक गर्भपात कराने के लिये दो चिकित्सकों की राय लेना ज़रूरी होगा।
- महिलाओं के गर्भपात के लिये गर्भावस्था की सीमा को 20 सप्ताह से बढ़ाकर 24 सप्ताह किया जाएगा। इन बदलावों को MTP (Medical Termination of Pregnancy) नियमों में संशोधन के जरिये परिभाषित किया जाएगा। ध्यातव्य है कि इन महिलाओं में दुष्कर्म पीड़ित, सगे-संबंधियों के साथ यौन संपर्क की पीड़ित और अन्य असुरक्षित महिलाएँ (दिव्यांग महिलाएँ, नाबालिग) शामिल होंगी।
- मेडिकल बोर्ड द्वारा जाँच में पाई गई भ्रूण संबंधी विषमताओं के मामले में गर्भावस्था की ऊपरी सीमा लागू नहीं होगी।
- जिस महिला का गर्भपात कराया जाना है उसका नाम और अन्य जानकारियाँ उस वक्त के कानून के तहत निर्धारित किसी खास व्यक्ति के अलावा किसी और के सामने ज़ाहिर नहीं की जाएंगी।
- स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय ने महिलाओं को सुरक्षित गर्भपात सेवाएँ उपलब्ध कराने और चिकित्सा क्षेत्र में प्रौद्योगिकी के विकास को ध्यान में रखते हुए विभिन्न हितधारकों और मंत्रालयों के साथ वृहद् विचार-विमर्श के बाद गर्भपात कानून में संशोधन का प्रस्ताव किया है।
गर्भपात कानून में बदलाव के निहितार्थ
- MTP अधिनियम, 1971 को संशोधित करना महिला सशक्तीकरण की दिशा में एक प्रगतिशील कदम है।
- यह महिलाओं को बेहतर प्रजनन अधिकार प्रदान करेगा क्योंकि गर्भपात को महिलाओं के प्रजनन स्वास्थ्य का एक महत्त्वपूर्ण पहलू माना जाता है।
- इस विधेयक के माध्यम से असुरक्षित गर्भपात से होने वाली मौतें और चोटें काफी हद तक रोकी जा सकती हैं, बशर्ते प्रशिक्षित चिकित्सकों द्वारा कानूनी तौर पर सेवाएँ प्रदान की जाएँ।
मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम (MTP Act) , 1971
वर्तमान गर्भपात कानून लगभग पाँच दशक पुराना है और इसके तहत गर्भपात की अनुमति के लिये गर्भधारण की अधिकतम अवधि 20 सप्ताह निर्धारित की गई है।
- मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेगनेंसी अधिनियम, 1971 की धारा 3 की उप-धारा (2) व उप-धारा (4) के अनुसार, कोई पंजीकृत डॉक्टर गर्भपात कर सकता है। यदि -
a. गर्भावस्था की अवधि 12 सप्ताह से अधिक की नहीं है।
b. गर्भावस्था की अवधि 12 सप्ताह से अधिक है लेकिन 20 सप्ताह से अधिक नहीं है, तो गर्भपात उसी स्थिति में हो सकता है जब दो डॉक्टर ऐसा मानते हैं कि:
1. गर्भपात नहीं किया गया तो गर्भवती महिला का जीवन खतरे में पड़ सकता है, या
2. अगर गर्भवती महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य को गंभीर खतरा पहुँचने की आशंका हो, या
3. अगर गर्भाधान का कारण बलात्कार हो, या
4. इस बात का गंभीर खतरा हो कि अगर बच्चे का जन्म होता है तो वह शारीरिक या मानसिक विकारों का शिकार हो सकता है जिससे उसके गंभीर रूप से विकलांग होने की आशंका है, या
5. बच्चों की संख्या को सीमित रखने के उद्देश्य से दंपति ने जो गर्भ निरोधक या तरीका अपनाया हो वह विफल हो जाए।