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भारत की रक्षा खरीद प्रक्रिया अधिक पारदर्शी होनी चाहिये : रिपोर्ट

  • 17 Jan 2018
  • 7 min read

सेंटर फॉर अमेरिकन प्रोग्रेस तथा सेंटर फॉर पॉलिसी रिसर्च द्वारा संयुक्त रूप से ज़ारी रिपोर्ट ‘The United States and India: Forging an Indispensable Democratic Partnership’ के मुताबिक भारत को सेना, नौसेना और वायु सेना के लिये रक्षा उपकरणों की खरीद प्रक्रिया को ‘पारदर्शी, कुशल और प्रभावी’ बनाने के लिये ‘कम लागत के दृष्टिकोण’ (Low-Cost Approach) पर निर्भर नहीं रहना चाहिये।

रिपोर्ट से प्रमुख विश्लेषण 

  • रिपोर्ट में कहा गया है कि बेहतर रक्षा अधिग्रहण प्रक्रिया से आपूर्ति श्रृंखलाओं के एकीकरण में और रक्षा क्षेत्र में भारत और अमेरिका द्वारा संयुक्त अनुसंधान एवं विकास से दोनों देशों में रोज़गार के सृजन और रक्षा उपकरणों की लागत को नीचे लाने में सहायता मिलेगी।
  • रिपोर्ट के अनुसार भारत को रक्षा खरीद प्रक्रिया (Defence Procurement Process-DPP) में संशोधन करके अपनी ऑफसेट नीति को विस्तारित करने की आवश्यकता है। एक बेहतर और निष्पक्ष खरीद प्रक्रिया रक्षा क्षेत्र में भारत के आत्मनिर्भर होने की दिशा में अनुकूल वातावरण तैयार करेगी।
  • ऑफसेट नियमों  के तहत भारत सरकार के साथ सौदा करने वाली विदेशी कंपनी को सौदे का 30 प्रतिशत सामान भारत से खरीदना आवश्यक होता है। रक्षा खरीद नीति-2016 में ऑफसेट सीमा को 300 करोड से बढ़ाकर 2000 करोड़ रुपए कर दिया गया है।
  • भारत को भी इस बात पर पुनर्विचार करना चाहिये कि रक्षा उपकरणों के अधिग्रहण में सबसे कम लागत का दृष्टिकोण राष्ट्रीय हित के अनुरूप है या नहीं, क्योंकि सर्वाधिक महत्त्व वाली और सक्षम प्रणाली सबसे कम लागत वाली नहीं हो सकती।
  • रिपोर्ट में यह भी उल्लेख किया गया है कि रक्षा समझौतों के कार्यान्वयन से भारत को उन्नत प्रौद्योगिकी, अमेरिकी आसूचना तक पहुँच और अमेरिकी समकक्षों के साथ सुरक्षित संचार संपर्क स्थापित होने जैसे विभिन्न प्रकार के लाभ होंगे। 

भारत और अमेरिका के बीच रक्षा समझौते  

  • भारत-अमेरिका के बीच लंबित रक्षा समझौतों का उल्लेख करते हुए इसमें कहा गया है कि भारत एक ‘कठिन वार्ताकार’ (Tough Negotiator) है और रक्षा क्षेत्र के मूलभूत और संवेदनशील समझौतों पर बातचीत करते समय भारत को "कुछ विश्वास" के साथ वार्ता के लिये आना चाहिये।
  • उल्लेखनीय है की भारत ने 2016 में अमेरिका के साथ लॉजिस्टिक्स एक्सचेंज मेमोरेन्डम ऑफ एग्रीमेंट (Logistics Exchange Memorandum of Agreement-LEMOA) पर हस्ताक्षर किये थे।
  • LEMOA के तहत दोनों देश एक-दूसरे के सैन्य साजो-सामान और सैन्य अड्डों का इस्तेमाल कर सकेंगे। इस रक्षा सहयोग का उद्देश्य हथियारों की पर्याप्त आपूर्ति और उन्हें सुधारने में एक-दूसरे का सहयोग करना है।
  • हालाँकि, भारत में किसी भी सैन्य अड्डे को स्थापित करने या इस तरह की किसी गतिविधि का कोई प्रावधान इसमें शामिल नहीं है।
  • भारत और अमेरिका के बीच ‘संचार संगतता और सुरक्षा समझौता’ (Communications Compatibility and Security Agreement-COMCASA) तथा ‘भू-स्थानिक सूचना और सेवा सहयोग के लिये बुनियादी आदान-प्रदान एवं सहयोग समझौता’ (Basic Exchange and Cooperation Agreement for Geospatial Information and Services Cooperation-BECA) पर अभी हस्ताक्षर होने बाकी हैं। 

क्या है COMCASA?

  • COMCASA को अमेरिका में CISMOA (Communication and Information Security Memorandum of Agreement) भी कहा जाता है। 
  • यह समझौता संयुक्त राज्य अमेरिका को अपने इन्क्रिप्टेड (Encrypted) संचार उपकरणों और गुप्त प्रौद्योगिकियों को भारत के साथ साझा करने की अनुमति देगा, जिससे दोनों पक्षों के उच्च स्तर के सैन्य-नेतृत्व के बीच युद्धकाल और शांतिकाल दोनों में ही सुरक्षित संचार संभव हो सकेगा।
  • CISMOA का विस्तार नौसेना और वायु सेना सहित सभी भारतीय और अमेरिकी सैन्य परिसंपत्तियों तक होगा। इससे संयुक्त सैन्य अभियान के दौरान सुरक्षित संचार में सहायता मिलेगी।
  • इस तरह की उन्नत प्रौद्योगिकियों और संवेदनशील उपकरणों को सामान्यत अमेरिका से खरीदे गए सिस्टमों पर ही स्थापित किया जाता है। अत: यह समझौता भारत-अमेरिका रक्षा संबंधों में मील का पत्थर सिद्ध होगा।

क्या है BECA?

  • यह समझौता दोनों देशों के बीच सैन्य और नागरिक दोनों ही उद्देश्यों के लिये स्थल, समुद्री एवं वैमानिकी तीनो प्रकार की सूचनाओं के आदान-प्रदान में सहायता करने के लिये वैधानिक ढांचा निर्धारित करेगा।

निष्कर्ष

  • LEMOA, BECA और COMCASA तीनों समझौते भारत के लिये महत्त्वपूर्ण हैं, क्योंकि अब भारत को अमेरिका के 'प्रमुख रक्षा सहयोगी’ (Major Defence Partner) के रूप में मान्यता दी जा रही है। वर्तमान में अमेरिकी सरकार अपने अत्याधुनिक एफ -16 ब्लॉक 70 लड़ाकू विमान और सी-गार्डियन ड्रोन्स (Sea Guardian Drones) भारत को बेचने की योजना बना रही है।
  • सी-गार्डियन ड्रोन अमेरिका सहित उसकी सहयोगी सेनाओं का प्रमुख रक्षा उपकरण है। भारत पहला गैर-नाटो देश है जिसे इस ड्रोन की पेशकश की गई है। इससे हिन्द महासागर में भारत का निगरानी तंत्र मज़बूत होगा। इस ड्रोन को इज़राइल के हेरॉन ड्रोन का प्रतियोगी माना जा रहा है।
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