विश्व आदिवासी दिवस, 2021
प्रिलिम्स के लिये:विश्व आदिवासी दिवस, संयुक्त राष्ट्र, स्वदेशी भाषाओं का दशक, स्वदेशी मुद्दों पर स्थायी संयुक्त राष्ट्र फोरम मेन्स के लिये:विश्व आदिवासी दिवस की प्रासंगकिता एवं आदिवासियों की स्थिति तथा उनका योगदान |
चर्चा में क्यों?
विश्व आदिवासी दिवस या विश्व के स्वदेशी लोगों का अंतर्राष्ट्रीय दिवस हर वर्ष 9 अगस्त को मनाया जाता है।
- इसका उद्देश्य दुनिया की स्वदेशी आबादी के अधिकारों को बढ़ावा देना और उनकी रक्षा करना है तथा उन योगदानों को स्वीकार करना है जो स्वदेशी लोग वैश्विक मुद्दों जैसे पर्यावरण संरक्षण हेतु करते हैं।
प्रमुख बिंदु
पृष्ठभूमि:
- यह दिन वर्ष 1982 में जिनेवा में स्वदेशी आबादी पर संयुक्त राष्ट्र कार्य समूह की पहली बैठक को मान्यता देता है।
- यह संयुक्त राष्ट्र की घोषणा के अनुसार वर्ष 1994 से हर वर्ष मनाया जाता है।
- आज भी कई स्वदेशी लोग अत्यधिक गरीबी, वंचन और अन्य मानवाधिकारों के उल्लंघन का अनुभव करते हैं।
थीम 2021:
- "किसी को पीछे नहीं छोड़ना: स्वदेशी लोग और एक नए सामाजिक अनुबंध का आह्वान।"
स्वदेशी लोग:
- स्वदेशी लोग अद्वितीय संस्कृतियों, लोगों और पर्यावरण समर्थित परंपराओं के उत्तराधिकारी व अभ्यासी हैं। उन्होंने सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और राजनीतिक विशेषताओं को बरकरार रखा है जो उन प्रमुख समाजों से अलग हैं जिनमें वे रहते हैं।
- दुनिया भर के 90 देशों में 476 मिलियन से अधिक स्वदेशी लोग रहते हैं, जो वैश्विक आबादी का 6.2% हिस्सा है।
महत्त्व:
- महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा:
- विश्व की लगभग 80% जैव विविधता स्वदेशी आबादी द्वारा आबाद और संरक्षित है।
- महत्त्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र तथा प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिये भूमि, प्रकृति और इनके विकास के बारे में उनका सहज, विविध ज्ञान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है।
- भाषाओं का संरक्षण:
- दुनिया की अधिकांश सांस्कृतिक विविधता का प्रतिनिधित्व करने वाले 370-500 मिलियन स्वदेशी लोगों के साथ वे दुनिया में लगभग 7000 भाषाओं में सर्वाधिक भाषाएँ बोलते हैं।
- शून्य भूख लक्ष्य में योगदान:
- स्वदेशी लोगों द्वारा उगाई जाने वाली फसलें अत्यधिक अनुकूलनीय होती हैं। वे सूखा, ऊँचाई, बाढ़ और तापमान किसी भी प्रकार की आपदा से भी बच सकती हैं। नतीजतन ये फसलें खेतों को पर्यावरण अनुकूल बनाने में मदद करती हैं।
- इसके अलावा क्विनोआ, मोरिंगा और ओका कुछ ऐसी देशी फसलें हैं जो हमारे खाद्य आधार का विस्तार एवं विविधता लाने की क्षमता रखती हैं। ये ज़ीरो हंगर लक्ष्य हासिल करने में योगदान देंगे।
अन्य वैश्विक प्रयास:
- स्वदेशी भाषाओं का दशक (2022-2032): इसका उद्देश्य स्थानीय/स्वदेशी भाषाओं का संरक्षण करना है, जो उनकी संस्कृतियों, विश्व के विचारों और दृष्टिकोणों के साथ-साथ आत्मनिर्णय की अभिव्यक्ति को संरक्षित करने में मदद करता है।
- स्वदेशी लोगों के अधिकारों पर संयुक्त राष्ट्र घोषणा (UNDRIP): यह दुनिया के स्वदेशी लोगों के अस्तित्व, सम्मान और कल्याण हेतु न्यूनतम मानकों का एक सार्वभौमिक ढाँचा प्रस्तुत करता है।
- स्वदेशी मुद्दों पर स्थायी संयुक्त राष्ट्र फोरम: इसकी स्थापना आर्थिक और सामाजिक विकास, संस्कृति, पर्यावरण, शिक्षा, स्वास्थ्य और मानवाधिकारों से संबंधित स्वदेशी मुद्दों से निपटने के लिये की गई थी। यह संयुक्त राष्ट्र आर्थिक और सामाजिक परिषद हेतु एक सलाहकार निकाय है।
भारत में जनजातियांँ:
डेटा विश्लेषण:
- भारत में जनजाति की लगभग 104 मिलियन (जो देश की आबादी का लगभग 8.6% है) आबादी है।
- यद्यपि 705 ऐसे जातीय समूह हैं जिनकी औपचारिक रूप से पहचान गई है, इनमें से लगभग 75 विशेष रूप से कमज़ोर जनजातीय समूह (PVTGs) हैं।
- गोंड भारत का सबसे बड़ा जनजातीय समूह है।
- सबसे अधिक संख्या में जनजातीय समुदाय (62) ओडिशा में पाए जाते हैं।
- केंद्रीय जनजातीय बेल्ट जिसमें भारत के पूर्वोत्तर राज्य शामिल हैं (राजस्थान से लेकर पश्चिम बंगाल तक के क्षेत्र सहित), सबसे अधिक स्वदेशी आबादी (Indigenous Population) का क्षेत्र है।
प्रमुख संवैधानिक प्रावधान:
- अनुच्छेद 342 (1)- राष्ट्रपति किसी भी राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में, राज्यपाल के परामर्श के बाद एक सार्वजनिक अधिसूचना द्वारा उस राज्य या केंद्रशासित प्रदेश के संबंध में अनुसूचित जनजाति के रूप में जनजातीय या आदिवासी समुदायों या जनजातियों के उप- समूह या समूहों को निर्दिष्ट कर सकता है।
- अनुच्छेद 15- केवल धर्म, मूल वंश, जाति, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव का निषेध करता है।
- अनुच्छेद 16- लोक नियोजन के मामलों में अवसरों की समानता पर बल।
- अनुच्छेद 46- अनुसूचित जातियों, जनजातियों और अन्य कमज़ोर वर्गों के शैक्षिक और आर्थिक हितों को बढ़ावा देना।
- अनुच्छेद 335- अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों संबंधी सेवाओं और पदों पर दावा।
- भारतीय संविधान के अनुच्छेद 338-A के तहत राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग की स्थापना की गई है।
- 5वीं और 6वीं अनुसूची- अनुसूचित और जनजातीय क्षेत्रों का प्रशासन व नियंत्रण।
कानूनी प्रावधान:
- अस्पृश्यता के खिलाफ नागरिक अधिकार संरक्षण अधिनियम, 1955।
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के खिलाफ अत्याचार के अपराधों को रोकने के लिये।
- पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, 1996, पंचायतों से संबंधित संविधान के भाग IX के प्रावधानों को अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तारित करने के लिये आधार प्रदान करता है।
- अनुसूचित जनजाति और अन्य पारंपरिक वन निवासी (वन अधिकारों की मान्यता) अधिनियम, 2006, वन भूमि में रहने वाले अनुसूचित जनजातियों और अन्य पारंपरिक वन निवासियों के वन अधिकारों और कब्ज़े को मान्यता प्रदान करता है।
पहलें:
- ट्राइफेड एक राष्ट्रीय स्तर का शीर्ष संगठन है जो जनजातीय मामलों के मंत्रालय के प्रशासनिक नियंत्रण में कार्य करता है। यह MFP और ट्राइफूड ( TRIFOOD) के लिये MSP जैसी योजनाओं में शामिल है।
- प्रधानमंत्री वन धन योजना: यह जनजातीय स्वयं सहायता समूहों (SHG) के गठन और उन्हें जनजातीय उत्पादक कंपनियों को मज़बूत करने के लिये एक बाज़ार से जुड़े आदिवासी उद्यमिता विकास कार्यक्रम है।
- क्षमता निर्माण पहल: आदिवासी पंचायती राज संस्थान (PRI) को सशक्त बनाना।
- GIS आधारित स्प्रिंग एटलस पर 1000 स्प्रिंग्स इनिशिएटिव और ऑनलाइन पोर्टल: हार्नेसिंग स्प्रिंग्स, जो भूजल निर्वहन के प्राकृतिक संसाधन हैं।
- जनजातीय स्कूलों का डिजिटल परिवर्तन: पहले चरण में 250 एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (EMRS) को माइक्रोसॉफ्ट द्वारा अपनाया गया है, जिसमें से 50 EMRS स्कूलों को गहन प्रशिक्षण दिया जाएगा और 500 मास्टर प्रशिक्षकों को प्रशिक्षित किया जाएगा।
जनजातीय समुदायों से संबंधित समितियाँ:
- शाशा समिति (2013)
- भूरिया आयोग (2002-2004)
- लोकुर समिति (1965)