भारतीय न्यायपालिका का सशक्तीकरण

प्रिलिम्स के लिये:

भारतीय न्यायपालिका, न्यायालायीय कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग, ADR तंत्र, केंद्रीय बजट 2023-24, अखिल भारतीय न्यायिक सेवाएँ (AIJS)

मेन्स के लिये:

भारतीय न्यायपालिका में प्रमुख कमियाँ

चर्चा में क्यों?  

भारतीय न्यायपालिका कानून के शासन को बनाए रखने और सभी नागरिकों के लिये न्याय सुनिश्चित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती है। प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हालिया प्रगति के बावजूद भारतीय न्यायपालिका विभिन्न कमियों का सामना कर रही है।

भारतीय न्यायपालिका में प्रमुख कमियाँ: 

  • बड़ी संख्या में लंबित मामले:
    • भारत के न्यायालयों पर मुकदमों का अधिक बोझ है जिसके कारण न्याय देने में देरी होती है। लंबित मामलों का कारण मुख्य रूप से न्यायाधीशों की कमी और अकुशल मामला प्रबंधन प्रणाली है।
      • मई 2022 तक न्यायपालिका के विभिन्न स्तरों पर  न्यायालयों  में 4.7 करोड़ से अधिक मामले लंबित हैं। यह आँकड़ा लगातार बढ़ रहा है और न्याय प्रणाली की अपर्याप्तता को प्रदर्शित करता है।
  • अपर्याप्त भौतिक और डिजिटल अवसंरचना: 
    • देश भर में कई न्यायालयों को कक्षों की कमी का सामना करना पड़ता है, शौचालय, प्रतीक्षालय और पार्किंग जैसी बुनियादी सुविधाओं तक सीमित पहुँच है जो वादियों, वकीलों तथा न्यायालय के कर्मचारियों के लिये असुविधा उत्पन्न करता है, जिसके कारण भीड़-भाड़ अधिक होती है और कार्यवाही में देरी होती है।
      • कोविड-19 महामारी ने आभासी सुनवाई करने और न्याय वितरण की निरंतरता सुनिश्चित करने के लिये डिजिटल बुनियादी ढाँचे की आवश्यकता पर बल दिया है
      • भारत के 25 उच्च न्यायालयों में से केवल 9 ने न्यायालय की कार्यवाही की लाइव स्ट्रीमिंग लागू की हैसर्वोच्च न्यायालय में लाइव स्ट्रीमिंग केवल संवैधानिक मुकदमों तक ही सीमित है

नोट: लाइव स्ट्रीमिंग और न्यायालय की कार्यवाही की रिकॉर्डिंग हेतु मॉडल नियम कुछ मामलों को लाइव स्ट्रीमिंग से बाहर करते हैं जैसे कि वैवाहिक मामले, बच्चे को गोद लेना, यौन अपराध, बाल यौन शोषण और कानून का उल्लंघन करने वाले किशोर।

  • वैकल्पिक विवाद निवारण (ADR) का सीमित उपयोग: मध्यस्थता और मध्यस्थता जैसे ADR तंत्र, न्यायालयों पर बोझ को कम करने में सहायता कर सकते हैं। हालाँकि इनका उपयोग अभी भी भारत में सीमित है।
  • भर्ती में विलंब: न्यायिक पदों को यथाशीघ्र नहीं भरा जाता है। 135 मिलियन जनसंख्या वाले देश में प्रति मिलियन जनसंख्या पर केवल 21 न्यायाधीश हैं (फरवरी 2023 तक)।
    • उच्च न्यायालयों में लगभग 400 रिक्तियाँ और निचले न्यायालयों में करीब 35 फीसदी पद रिक्त हैं।
  • प्रतिनिधित्व में असमानता: चिंता का एक अन्य विषय उच्च न्यायपालिका की संरचना है जहाँ महिलाओं का प्रतिनिधित्व बहुत कम है। पंजीकृत 1.7 मिलियन अधिवक्ताओं में से केवल 15% महिलाएँ हैं।
    • उच्च न्यायालयों में महिला न्यायाधीशों का प्रतिशत मात्र 11.5% है।
    • वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में केवल तीन महिला न्यायाधीश हैं।
      • न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना वर्ष 2027 में केवल 36 दिनों के लिये भारत के मुख्य न्यायाधीश बनेंगे।

भारत की न्यायपालिका को सुदृढ़ एवं सशक्त बनाने हेतु उपाय: 

  • E-कोर्ट प्रणाली को सशक्त बनाना: एक मज़बूत E-कोर्ट प्रणाली को लागू करने की आवश्यकता है जो न्यायालयी प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित कर सकती है, कागज़ी कार्रवाई को कम कर सकती है तथा दक्षता में सुधार कर सकती है। इसमें केस रिकॉर्ड को डिजिटाइज़ करना, मामलों की ऑनलाइन फाइलिंग को सक्षम बनाना, E-समन, E-पेमेंट तथा सुनवाई हेतु वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग शामिल हैं। 
    • E-न्यायालय परियोजना के तीसरे चरण के शुभारंभ हेतु केंद्रीय बजट 2023-24 में 7,000 करोड़ रुपए आवंटित किये गए हैं।
    • न्याय विभाग द्वारा केंद्र प्रायोजित योजना (CSS) का उद्देश्य न्यायपालिका के लिये बुनियादी सुविधाओं का विकास करना भी है।
      • CSS न्यायालय भवनों, डिजिटल कंप्यूटर कक्षों, वकीलों के लिये हॉल, शौचालय परिसरों और न्यायिक अधिकारियों के आवासों के निर्माण हेतु राज्य सरकार के संसाधनों में वृद्धि करता है।
      • वित्त वितरण प्रारूप (फंड-शेयरिंग पैटर्न) 60:40 (केंद्र:राज्य), 8 उत्तर-पूर्वी एवं 2 हिमालयी राज्यों के लिये 90:10 तथा केंद्रशासित प्रदेशों हेतु 100% केंद्रीय वित्त पोषण है।
      • पूर्व CJI, एन.वी. रमना ने न्यायालयों के लिये पर्याप्त बुनियादी ढाँचे की व्यवस्था करने हेतु एक भारतीय राष्ट्रीय न्यायिक अवसंरचना प्राधिकरण (NJIAI) विकसित करने का सुझाव दिया।
  • नियुक्ति प्रणाली में बदलाव: रिक्तियों को तुरंत भरा जाना चाहिये और न्यायाधीशों की नियुक्ति के लिये एक उपयुक्त समय-सीमा तय करना एवं अग्रिम सुझाव प्रदान करना आवश्यक है। 
    • एक और महत्त्वपूर्ण तत्त्व जो निर्विवाद रूप से एक बेहतर न्यायिक प्रणाली विकसित करने में भारत की सहायता कर सकता है, वह अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS) है। 
  • केस मैनेजमेंट सॉफ्टवेयर: केस मैनेजमेंट सॉफ्टवेयर को विकसित और तैनात करने की आवश्यकता है जो केस की प्रगति को ट्रैक करने में मदद कर सके, प्रशासनिक कार्यों को स्वचालित कर सके तथा न्यायाधीशों, वकीलों एवं अदालत के कर्मचारियों के बीच बेहतर समन्वय की सुविधा प्रदान कर सके। यह न्यायिक प्रक्रिया की समग्र दक्षता में सुधार कर सकता है।
  • डेटा एनालिटिक्स और केस पूर्वानुमान:  भारत पिछले निर्णयों का विश्लेषण करने और मामले के परिणामों का पूर्वानुमान करने के लिये डेटा एनालिटिक्स तथा कृत्रिम बुद्धिमत्ता का उपयोग कर सकता है ताकि न्यायाधीशों को सूचित निर्णय लेने, विसंगतियों को कम करने एवं निर्णयों की गुणवत्ता में सुधार करने में सहायता मिल सके।
    • हालाँकि यह सुनिश्चित करना महत्त्वपूर्ण है कि यह केवल एक माध्यमिक भूमिका निभाता है।
  • सार्वजनिक कानूनी शिक्षा: सार्वजनिक कानूनी शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रमों को बढ़ावा देने की आवश्यकता है जो नागरिकों को उनके अधिकारों और दायित्वों को समझने, अनावश्यक मुकदमेबाज़ी को कम करने और आउट-ऑफ-कोर्ट सेटलमेंट को बढ़ावा देने के लिये सशक्त बना सके।
  • नागरिक प्रतिक्रिया तंत्र: एक प्रतिक्रिया तंत्र स्थापित करने की आवश्यकता है जहाँ नागरिक न्यायिक प्रक्रिया पर प्रतिक्रिया प्रदान कर सकें और अदालती अनुभव कमियों एवं सुधार के क्षेत्रों की पहचान करने में मदद कर सकें।

  UPSC यूपीएससी सिविल सेवा परीक्षा, पिछले वर्ष के प्रश्न  

प्रिलिम्स:

प्रश्न. निम्नलिखित कथनों पर विचार कीजिये: (2019)

  1. भारत के संविधान के 44वें संशोधन ने प्रधानमंत्री के चुनाव को न्यायिक समीक्षा से मुक्त रखकर एक अनुच्छेद प्रस्तुत किया।
  2. भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता के उल्लंघन के रूप में भारत के संविधान में 99वें संशोधन को समाप्त कर दिया।

उपर्युक्त कथनों में से कौन-सा/से सही है/हैं? 

(a) केवल 1  
(b) केवल 2   
(c) 1 और 2 दोनों
(d) न तो 1 और न ही  2 

उत्तर: (b) 


मेन्स:

प्रश्न. भारत में उच्चतर न्यायपालिका में न्यायाधीशों की नियुक्ति के संदर्भ में 'राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम, 2014' पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का समालोचनात्मक परीक्षण कीजिये। (2017) 

स्रोत:द हिंदू