इज़रायल-हिजबुल्लाह संघर्ष और युद्ध सिद्धांत
प्रारंभिक परीक्षा:इज़रायल, फिलिस्तीन, मध्य-पूर्व, अरब-विश्व, योम-किप्पुर युद्ध, ज़ायोनीवाद, अल-अक्सा, गाजा पट्टी, यरुशलम, फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन (PLO) मुख्य विषय:इज़रायल-फिलिस्तीन संघर्ष का प्रभाव, युद्ध और शांति के लिये नैतिक आधार और संबंधित मुद्दे |
स्रोत: इंडियन एक्सप्रेस
चर्चा में क्यों?
हाल के संघर्षों जैसे कि लंबे समय से चल रहा इज़रायल-हिजबुल्लाह युद्ध, रूस -यूक्रेन युद्ध तथा विश्व के कई अन्य भागों में अशांति से इस विमर्श को बढ़ावा मिला है कि क्या बड़े पैमाने पर हिंसा को उचित ठहराया जा सकता है।
- तीन प्रमुख विचारधाराओं का इस मामले पर अलग-अलग नैतिक दृष्टिकोण है जिससे युद्ध की नैतिकता के संबंध में अलग-अलग दृष्टिकोण मिलते हैं, जिससे यह मुद्दा वर्तमान में और अधिक प्रासंगिक हो जाता है।
इज़रायल और हिजबुल्लाह के बीच संघर्ष के क्या कारण हैं?
- संघर्ष की उत्पत्ति (1982):
- वर्ष 1948 में इज़रायल राज्य की स्थापना के कारण 750,000 से अधिक फिलिस्तीनी अरबों को बड़े पैमाने पर विस्थापित होना पड़ा (वर्ष 1948 के अरब-इज़रायल युद्ध के दौरान)।
- इनमें से कई शरणार्थियों ने दक्षिणी लेबनान में शरण ली, जिससे इस क्षेत्र में तनाव बढ़ गया। ईसाई मिलिशिया और फिलिस्तीनी समूहों सहित विभिन्न लेबनानी गुटों के बीच संघर्षों से यह स्थिति और भी जटिल हो गई।
- 1960 और 1970 के दशक के दौरान दक्षिणी लेबनान में फिलिस्तीन मुक्ति संगठन (PLO) की उपस्थिति से इज़रायल की सुरक्षा चिंताएँ बढ़ गईं।
- उत्तरी इज़रायली शहरों पर PLO के हमलों की प्रतिक्रया में इज़रायल ने लेबनान में सैन्य अभियान शुरू किया (वर्ष 1978 और 1982), जिसके परिणामस्वरूप लंबे समय तक इसका कब्ज़ा रहने से अंततः हिजबुल्लाह का उदय हुआ।
- हिजबुल्लाह की स्थापना वर्ष 1982 में ईरानी समर्थन से इज़रायल के आक्रमण और चल रहे गृहयुद्ध की प्रतिक्रया में हुई थी, जिसका उद्देश्य इज़रायल के कब्जे का विरोध करना तथा लेबनानी संप्रभुता की रक्षा करना था।
- हिंसा में वृद्धि (1980-1990 का दशक): 1980 के दशक के दौरान हिजबुल्लाह ने लेबनान में इज़रायली सेना और उनके सहयोगियों के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध चलाया (विशेष रूप से वर्ष 1983 में अमेरिकी और फ्राँसीसी बैरकों पर बमबारी की) जिससे बड़ी संख्या में लोग हताहत हुए।
- वर्ष 1985 तक जब हिजबुल्लाह की सैन्य शक्ति बढ़ गयी तो इज़रायल दक्षिणी लेबनान में एक स्व-घोषित "सुरक्षा क्षेत्र" में चला गया, जिस पर उसका वर्ष 2000 तक कब्ज़ा रहा।
- राजनीतिक एकीकरण और शत्रुता की निरंतरता (1990 का दशक): लेबनानी गृहयुद्ध के बाद हिजबुल्लाह राजनीति में एकीकृत हो गया और इसने संसद में सीटें हासिल कीं, जिससे शिया समुदायों के बीच इसकी वैधता बढ़ गई।
- वर्ष 1993 में इज़रायल ने हिजबुल्लाह के हमलों की प्रतिक्रया में "ऑपरेशन अकाउंटेबिलिटी" शुरू किया, जिसके परिणामस्वरूप लेबनान में बड़ी संख्या में नागरिक हताहत हुए तथा बुनियादी ढाँचे को नुकसान पहुँचा, जिसे सात दिवसीय युद्ध (1993) के रूप में जाना जाता है।
- जुलाई युद्ध (2006): जुलाई 2006 में हिजबुल्लाह ने दो इज़रायली सैनिकों को पकड़ लिया, जिसके कारण इज़रायली सेना ने बड़े पैमाने पर जवाबी कार्रवाई की। यह संघर्ष 34 दिनों तक चला और इसके परिणामस्वरूप लगभग 1,200 लेबनानी तथा 158 इज़रायली सैनिक मारे गए। इस युद्ध से हिजबुल्लाह की सैन्य क्षमताओं पर प्रकाश पड़ने के साथ लेबनानी और क्षेत्रीय राजनीति में एक प्रमुख हितधारक के रूप में इसकी स्थिति मज़बूत हुई।
- हालिया घटनाक्रम (2010 से वर्तमान तक):
- सीरियाई गृहयुद्ध में भागीदारी: वर्ष 2012 से हिजबुल्लाह ने असद शासन का समर्थन करने के लिये सीरियाई गृहयुद्ध में हस्तक्षेप किया, जिससे आलोचना का सामना करने के बावजूद उसे बहुमूल्य युद्ध अनुभव प्राप्त हुआ।
- गाजा संघर्ष (2023): अक्टूबर 2023 में हिजबुल्लाह ने बढ़ती इज़रायली सैन्य कार्रवाइयों के बीच गाजा के साथ एकजुटता दिखाते हुए एक व्यापक अभियान शुरू किया, जिससे सीमा पार शत्रुता तेज़ हो गई।
- हाल ही में तनाव में वृद्धि: प्रमुख हिजबुल्लाह नेताओं की हत्या के साथ सितंबर 2024 में वॉकी-टॉकी और पेजर विस्फोट से तनाव बढ़ने के साथ हिजबुल्लाह की जवाबी कार्रवाई से संघर्ष की संभावना को बढ़ावा मिला है।
युद्ध और शांति का नैतिक आधार क्या है?
न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत (JWT): एक मानक दृष्टिकोण:
- परिचय:
- न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत (JWT) अंतर्राष्ट्रीय कानून में एक महत्त्वपूर्ण ढाँचा है, जिसे मुख्य रूप से ऑगस्टीन और एक्विनास जैसे दार्शनिकों द्वारा व्यक्त किया गया है।
- इसके अनुसार कुछ स्थितियों में युद्ध को नैतिक रूप से उचित ठहराया जा सकता है, हालांकि यह केवल अपनी रणनीतिक या साहसिक प्रकृति के कारण सराहनीय नहीं है।
- इसमें युद्ध को विशिष्ट परिस्थितियों में सामूहिक राजनीतिक हिंसा का स्वीकार्य रूप माना गया है।
- JWT के भाग:
- जूस एड बेलम (जस्ट कॉज़): यह सिद्धांत युद्ध शुरू करने के औचित्य पर केंद्रित है। इसके न्यायपूर्ण कारणों में आत्मरक्षा, भविष्य में आक्रमण को रोकना और चल रहे अत्याचारों को रोकना शामिल है।
- उदाहरण: द्वितीय विश्व युद्ध में मित्र देशों की सेनाओं के हस्तक्षेप को अक्सर एक न्यायपूर्ण युद्ध के रूप में उद्धृत किया गया, जिसे धुरी शक्तियों द्वारा किये गए आक्रमण और अत्याचारों की प्रतिक्रिया के रूप में देखा गया था।
- जूस इन बेल्लो (सही आचरण): यह सिद्धांत बताता है कि युद्ध कैसे लड़ा जाता है। यह नागरिक हताहतों को कम करने, अनावश्यक पीड़ा से बचने और युद्ध में शामिल न होने वालों के अधिकारों का सम्मान करने पर बल देता है।
- इन सिद्धांतों के उल्लंघन से युद्ध अपराधों को जन्म मिल सकता है, जैसा कि अंतर्राष्ट्रीय मानवीय कानून में उल्लिखित है।
- जूस पोस्ट बेलम (न्यायपूर्ण शांति): यह सिद्धांत युद्ध के बाद न्यायपूर्ण और स्थायी शांति पर केंद्रित है। यह हारने वालों के साथ उचित व्यवहार, पुनर्निर्माण प्रयासों और संघर्ष के मूल कारणों को हल करने पर केंद्रित है।
- जूस एड बेलम (जस्ट कॉज़): यह सिद्धांत युद्ध शुरू करने के औचित्य पर केंद्रित है। इसके न्यायपूर्ण कारणों में आत्मरक्षा, भविष्य में आक्रमण को रोकना और चल रहे अत्याचारों को रोकना शामिल है।
यथार्थवाद: सत्ता की राजनीति
दृष्टिकोण:
- यथार्थवाद का मानना है कि अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में नैतिक विचारों का कोई स्थान नहीं है।
- यथार्थवादियों के अनुसार, राज्य एक अराजक अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली में कार्य करते हैं जहाँ शक्ति और राष्ट्रीय सुरक्षा सर्वोपरि है।
- उनका मानना है कि राष्ट्रीय सुरक्षा, राष्ट्रीय हित और सत्ता की खोज अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में प्रेरक शक्तियाँ हैं और युद्ध इन लक्ष्यों को प्राप्त करने का एक साधन बन जाता है।
- इसे थ्यूसीडाइड्स और मैकियावेली जैसे दार्शनिकों ने व्यक्त किया था।
- ये न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत की अव्यावहारिक एवं आदर्शवादी होने के कारण आलोचना करते हैं तथा तर्क देते हैं कि नैतिकता पर ध्यान केंद्रित करने से राज्य की स्वयं की रक्षा करने तथा अपने हितों को आगे बढ़ाने की क्षमता कमज़ोर हो जाती है।
- यथार्थवाद की आलोचना: यथार्थवाद के आलोचक कहते हैं कि नैतिकता की पूर्ण अवहेलना से क्रूर और अनावश्यक युद्धों को जन्म मिल सकता है।
- उदाहरण: प्रथम विश्व युद्ध और द्वितीय विश्व युद्ध की पूर्व संध्या जैसी ऐतिहासिक घटनाएँ दर्शाती हैं कि राज्य नैतिकता की तुलना में रणनीतिक गणनाओं को प्राथमिकता देते हैं।
- क्यूबा मिसाइल संकट से इस यथार्थवादी दृष्टिकोण पर प्रकाश पड़ता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा नैतिक चिंताओं से अधिक महत्त्वपूर्ण है।
- शांतिवाद: सभी प्रकार की हिंसा से घृणा
- विचार:
- शांतिप्रियता युद्ध सहित सभी प्रकार की हिंसा को अस्वीकार करते हैं, तथा महात्मा गांधी और मार्टिन लूथर किंग जूनियर जैसे नेताओं के आदर्शों के साथ तालमेल बिठाते हुए संघर्षों को हल करने के लिये अहिंसक प्रतिरोध और कूटनीति को बढ़ावा देते हैं।
- शांतिवादी न्यायपूर्ण युद्ध सिद्धांत की आलोचना करते हुए तर्क देते हैं कि युद्ध का कोई भी औचित्य अधिक हिंसा और पीड़ा को जन्म देता है।
- उनका मानना है कि रचनात्मक और सतत् अहिंसक तरीकों से सशस्त्र संघर्ष की तुलना में अधिक स्थायी रूप से शांति प्राप्त की जा सकती है।
- शांतिवाद की आलोचना:
- आलोचकों का मानना है कि अपराधों को रोकने या समाप्त करने के लिये कभी-कभी सशस्त्र बल की आवश्यकता पड़ सकती है, तथा उनका तर्क है कि आक्रामकता एवं बुराई से निपटने के लिये शांतिवाद अवास्तविक है।
- विचार:
हिजबुल्लाह क्या है?
- हिज़्बुल्लाह (Hezbollah) का अनुवाद “ईश्वर की पार्टी (Party of God) ” है। लेबनान स्थित एक शिया मिलिशिया और राजनीतिक पार्टी है।
- हिजबुल्लाह की उत्पत्ति:
- हिजबुल्लाह की उत्पत्ति वर्ष 1982 में लेबनानी गृहयुद्ध (1975-1990) के दौरान लेबनान पर इज़रायल के आक्रमण के विरुद्ध एक प्रतिरोध आंदोलन के रूप में की गई थी।
- इसे लेबनान के शिया समुदाय, ईरान और उसके इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड कॉर्प्स (IRGC) तथा वर्ष 1979 में ईरान (Iran) में एक इस्लामी क्रांति से प्रभावित फिलिस्तीनी समूहों से समर्थन प्राप्त हुआ।
- सामरिक एवं अंतर्राष्ट्रीय अध्ययन केंद्र (CSIS) के अनुसार, इसे वैश्विक स्तर पर सबसे अधिक सशस्त्र गैर-राज्य अभिकर्त्ताओं में से एक माना जाता है।
- संयुक्त राज्य अमेरिका और इज़रायल समेत कई देशों ने हिजबुल्लाह को आतंकवादी संगठन घोषित किया है।
भारत की विदेश नीति के सिद्धांत क्या हैं?
- पंचशील (पाँच सिद्धांत): इसे सर्वप्रथम वर्ष 1954 में भारत और चीन के तिब्बत क्षेत्र के बीच व्यापार समझौते में औपचारिक रूप दिया गया था, जिसने भारत के अंतर्राष्ट्रीय संबंधों की बुनियाद रखी। ये सिद्धांत इस प्रकार हैं:
- सभी देशों द्वारा अन्य देशों की क्षेत्रीय अखंडता और प्रभुसत्ता का सम्मान करना
- एक-दूसरे देश पर आक्रमण न करना
- दूसरे देश के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप न करना
- परस्पर सहयोग एवं लाभ को बढ़ावा देना
- शांतिपूर्ण सहअस्तित्व की नीति का पालन करना
- वसुधैव कुटुंबकम (संपूर्ण विश्व एक परिवार है): भारत विश्व को एक वैश्विक परिवार के रूप में देखता है, तथा सबका साथ, सबका विकास, सबका विश्वास के साथ सद्भाव, सामूहिक विकास और राष्ट्रों के बीच विश्वास को बढ़ावा देता है।
- गुजराल सिद्धांत भारत के अपने निकटतम पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को निर्देशित करने के लिये 5 सिद्धांतों का एक समूह है, जो मैत्रीपूर्ण, सौहार्दपूर्ण संबंधों के महत्त्व को मान्यता देता है। ये 5 सिद्धांत इस प्रकार हैं:
- भारत बाँग्लादेश, भूटान, मालदीव, नेपाल और श्रीलंका जैसे पड़ोसी देशों को पारस्परिकता की अपेक्षा किये बिना, सद्भावना और विश्वास के साथ सहायता प्रदान करता है।
- किसी भी दक्षिण एशियाई देश को अपने भूभाग का उपयोग क्षेत्र के किसी अन्य देश के हितों के विरुद्ध नहीं करने देना चाहिये।
- देशों को एक दूसरे के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने से बचना चाहिये।
- सभी दक्षिण एशियाई देशों को एक-दूसरे की क्षेत्रीय अखंडता और संप्रभुता का सम्मान करना चाहिये।
- विवादों का समाधान द्विपक्षीय वार्ता के माध्यम से शांतिपूर्ण ढंग से किया जाना चाहिये।
- गुजराल सिद्धांत भारत के अपने निकटतम पड़ोसी देशों के साथ संबंधों को निर्देशित करने के लिये 5 सिद्धांतों का एक समूह है, जो मैत्रीपूर्ण, सौहार्दपूर्ण संबंधों के महत्त्व को मान्यता देता है। ये 5 सिद्धांत इस प्रकार हैं:
- सक्रिय एवं निष्पक्ष सहायता: भारत सक्रिय सहायता के माध्यम से लोकतंत्र और विकास को बढ़ावा देता है, अपितु संबंधित सरकार की सहमति से।
- यह साझेदार देशों में क्षमता निर्माण और संस्थागत सुदृढ़ीकरण पर बल देता है, जैसा कि अफगानिस्तान में भारत के प्रयासों में देखा गया है।
- संयुक्त राष्ट्र के लिये समर्थन: भारत संयुक्त राष्ट्र (UN) का संस्थापक सदस्य है और संयुक्त राष्ट्र के उद्देश्यों और सिद्धांतों का समर्थन करता है।
- सामरिक स्वायत्तता: इसमें स्वतंत्र निर्णय लेने पर ज़ोर दिया गया है और भारत साझेदारी का पक्षधर है, लेकिन औपचारिक सैन्य गठबंधनों से बचता है, तथा अपने अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में लचीलापन बनाए रखता है।
UPSC सिविल सेवा परीक्षा, विगत वर्ष के प्रश्नप्रिलिम्स:प्रश्न 1. निम्नलिखित में से दक्षिण-पश्चिम एशिया का कौन-सा देश भूमध्य सागर की तरफ नहीं खुलता है? (2015) (a) सीरिया उत्तर: (b) प्रश्न. कभी-कभी समाचारों में उल्लिखित पद "टू-स्टेट सोल्यूशन" किसकी गतिविधियों के संदर्भ में आता है। (2018) (a) चीन उत्तर: (b) मेन्सप्रश्न : “भारत के इज़रायल के साथ संबंधों ने हाल ही में एक ऐसी गहराई और विविधता हासिल की है, जिसकी पुनर्वापसी नहीं की जा सकती है।” विवेचना कीजिये। (मुख्य परीक्षा- 2018) |